Educated Indian Adiwasi Bhil

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भील समाज सेवक # वसुधैव कुटुम्बकम (वंदे प्रकृति मातरम्) जय जोहार जय आदिवासी जय भीम ����

भील समाज सेवक """ वसुधैव कुटुम्बकम् """ वंदे प्रकृति मातरम् """ शिक्षित बने! संगठित रहे!! संघर्ष करे!!!
जय जोहार जय आदिवासी जय भीम जय संविधान जय भारत ��������

21/07/2024

🇮🇳🇮🇳भारत का संविधान🇮🇳🇮🇳
भाग 4क
नागरिको के मूल कर्तव्य
अनुच्छेद 51 क
👉✍️मूल कर्तव्य:-भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह,,,
🔵(क) संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों संस्थाओं राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करें
🔵(ख) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखें और उनका पालन करें
🔵(ग) भारत की संप्रभुता एकता और अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण बनाए रखें
🔵(घ) देश की रक्षा करें और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करें
🔵(ड) भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभावो से परे हो ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो महिलाओं के सम्मान के विरुद्ध हो
🔵(च) हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझें और उसका परिरक्षण करें
🔵(छ) प्राकृतिक पर्यावरण की जिसके अंतर्गत वान झील नदी और वन्य जीव है रक्षा करें और उसका संवर्धन करें तथा प्राणी मात्र के प्रति दयाभाव रखें
🔵(ज) वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें
🔵(झ) सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें
🔵(ञ) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्र में उत्कृर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करें जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए पर्यटन और उपलब्धि की नई ऊंचाइयों को छू सकें
🔵(ट) यदि माता-पिता या सरक्षक हैं छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले अपने यथास्थिति बालक या प्रतिपाल्य को शिक्षा के अवसर प्रदान करें!!

जय संविधान जय भारत 🇮🇳🇮🇳🙏🙏

20/06/2024

💥 दास प्रथा 💥
🔵👉✍️भारत में दास प्रथा की प्राचीनता ऋग्वैदिक काल तक जाती है ऋग्वेद में दास दस्यू तथा असुरों का उल्लेख आर्यों से भिन्न वर्ण के रूप में किया गया है
ऋग्वेद में जिन दास दस्यू का उल्लेख किया गया है वे द्रविड़ भाषा भाषी लोग थे तथा
उन्हें ही सेंधव सभ्यता का निर्माता स्वीकार किया गया है
✍️ऋग्वेद में दासों की निम्नलिखित विशेषताएं बताई गई है
अकर्मन -वे वैदिक क्रियाओं का संपादन नहीं करते थें
अदेवयु -वे वैदिक देवताओं की उपासना नहीं करते थे
अयज्वन -वे यज्ञ करने वाले नहीं थे
अब्रह्मन -वे श्रध्दा तथा धार्मिक विश्वासो से हीन थें
अन्यव्रत -वे वैदिकेतर व्रतो का अनुसरण करने वाले थे
मृध्दवाक -वे संस्कृत भाषा से भिन्न अपरिचित भाषा बोलते थे
शिश्नदेव वे लिंग की पूजा करते थे
✍️स्पष्टतः यह अनार्यों की ही विशेषताएं हैं
आर्यों को भारत में अपना अधिकार जमाने के पूर्व इनसे कड़ा संघर्ष करना पड़ा ऋग्वेद से पता चलता है कि वे चौड़े तथा पाषाण निर्मित पूरो में रहते थे इन पुरो को वैदिक देवता इन्द्र ने विनष्ट कर दिया जिसके कारण इन्द्र को पुरंदर कहा गया है
✍️उत्तर वैदिक साहित्य में भी हमें दासों के विषय में जानकारी मिलती है
तैत्तिरीय ब्राह्मण संहिता से पता चलता है कि दास दासियों को उपहार स्वरूप भेंट दिए जाने की प्रथा थी
उपनिषद साहित्य में भी दास दासियो से संबंधित कई उल्लेख प्राप्त होते हैं इसे पता चलता है कि दास रखना सामाजिक कुलीनता का प्रतीक समझा जाता था राजाओं महाराजाओं तथा कुलीन वर्ग के लोगों के यहां दास-दासियां सेवा कार्य किया करती थी
✍️मनुस्मृति में सात प्रकार के दासों का उल्लेख किया गया है
ध्वजाहत -युध्द में बन्दी बनाया गया
भक्तदास भोजन के लिए बना हुआ दास
गृहज घर में उत्पन्न दासी पुत्र
क्रीत -खरीदा गया दास
दत्त्रिम -किसी के द्वारा उपहार में दिया गया दास
पैत्रिक -पितृ परम्परा से चला आता हुआ दास पैत्रिक दास कहलाता था
दण्डदास -ऋणादि न चुका सकने के कारण दण्ड स्वरूप बनाया गया दास दण्डदास कहलाता था ✍️कौटिल्य तथा मनु दोनों ने इस बात पर बल दिया है कि आर्य दास नहीं बनाए जा सकते बल्कि इस कार्य के लिए केवल शुद्र वर्ण ही है दास दासियों को झाड़ू लगाने मैला ढोने साफ सफाई करने एवं नीच कार्य करवाए जाते थे उनका मानसिक सामाजिक शारीरिक आर्थिक शोषण अत्याचार किए जाते थे इन अत्याचारों से तंग आकर कभी कभी दास दासियां आत्महत्या कर देते थे
✍️इस प्रकार से विभिन्न प्रमाणों से यह सूचित होता है कि भारत में वैदिक युग से लेकर पूर्व मध्य युग तक किसी न किसी रूप में दास प्रथा विद्यमान रही
यद्यपि प्राचीन व्यवस्थाकारो ने दास प्रथा की यत्र तत्र आलोचना की है
भारत ही नहीं पूरी दुनिया में दास प्रथा का एक अहम चलन था
✍️इस प्रथा में एक इंसान को ही दूसरे इंसान द्वारा दास बनाया जाता था और वह एक कीमत या गलती का भुगतान करते हुए पूरी जिंदगी किसी की गुलामी करते रहता था वाकई दास प्रथा समाज में कलंकित एवं अमानवीय प्रथा थीं
✍️भारत में दासप्रथा का उन्मूलन
विलियम बैंटिक द्वारा ब्रिटिश शासन में 1833ई में तीसरे चार्टर अधिनियम में कंपनी शासित प्रदेशों में गुलामी के उन्मूलन का प्रावधान किया गया ब्रिटिश सरकार ने भारतीय दासता अधिनियम 1843पारित कर भारत में दासता को अवैध घोषित कर दिया
स्वतंत्र भारत में भी संविधान निर्माता ने दास प्रथा को जड़ से खत्म करने के लिए नियम कायदा कानून बनाए!!
🔵👉✍️गर्व से कहो हम आदिवासी हैं!!
हमें गर्व है कि हम आदिवासी हैं!!







जय जोहार,,,,
जय आदिवासी,,,,,,,
जय भीम,,,,,,,,
जय संविधान,,,,,,,,
जय भारत,,,,,,,
🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Photos from Educated Indian Adiwasi Bhil's post 19/06/2024

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🔵👉✍️आदिवासी विरांगना काली बाई भील
कालीबाई के शहादत दिवस (19 जून, 1947) आज ही के दिन सन् 1947 मे शिक्षा की अलख जगाते हुए रास्तापाल हत्याकांड में शहीद हुई, शिक्षा की देवी भील वीरांगना काली बाई एक होनहार साहसी निडर छात्रा थी
आदिवासीयों को शिक्षा से दूर। रखने की प्रवृत्ति सदियों से चली आ रही है इसी को लेकर काली भाई भील पर अंग्रेज और स्थानीय सामंतों ने मिलकर गोली। चलाई थी
साथ ही शिक्षण कार्य के लिए सामंतीयो से लड़कर अपना घर देने वाले स्वतंत्र सेनानी नाना भाई खांट एवं स्वतंत्र सेनानी शिक्षक सेंगा भाई रोत को भी नमन जोहार। 💐💐
#भील_वीरांगना_कालिबाई_कलासुआ






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15/06/2024

अमर बलिदानी: उर्लादानी, कालाहांडी, उड़ीसा की कन्ध जनजाति से
🔵👉✍️रेंडो मांझी
जनजाति समाज के स्वशासन को भारतीय राजाओं ने हमेशा मान्यता दी है। उस मान्यता को समाप्त करके जनजाति समाज से कर वसूलने के नाम पर लूटने का काम प्रारंभ किया अंग्रेजों ने। इसका जो देशव्यापी विरोध हुआ, उसमें उड़ीसा के कालाहांडी क्षेत्र में नेतृत्व किया रेंडी मांझी ने। कन्ध जनजाति के लोगों को लूटा और प्रताड़ित किया जाने लगा। रेंडो मांझी के नेतृत्व में विद्रोह हुआ और उसका दमन करने के लिए अंग्रेज मेजर कैम्पबेल को भेजा गया। मेरिया पर्व के दिन युद्ध हुआ और कई अंग्रेज सैनिक मारे गए, परंतु रेंडो मांझी को पकड़ लिया गया। कन्ध समाज का मनोबल तोड़ने के लिए रेंडो मांझी को बंदी के रूप में गाँव-गाँव घुमाया गया और फिर फाँसी देकर हत्या कर दी गई।
अमर बलिदानी रेंडो मांझी को शत शत नमन!
गर्व से कहो हम आदिवासी हैं!
हमें गर्व है कि हम आदिवासी हैं!!
जय जोहार,,,,,
जय आदिवासी,,,,
जय भीम,,,,
जय संविधान,,,,,
जय भारत,,,,,






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14/06/2024

अमर बलिदानी:भोगनाडीह,साहेबगंज, झारखण्ड की संथाल जनजाति से वीरांगना
🔵👉✍️फूलो-झानो मुर्मू
फूलो-झानो सिदो-कान्हू की बहनें थीं। भारत के राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में पूरे परिवार ने अपनी आहुति दे दी थी। हूल क्रांति का संदेश सखुआ पेड़ की डाली के माध्यम से गाँव-गाँव में इन्हीं दोनों बहनों ने पहुँचाया था। दोनों बहनें घोड़ों पर बैठ कर गाँव-गाँव घूमा करती थीं। उन्होंने स्त्री-सेना का गठन किया और अंग्रेज सेना से छापामार तथा गुरिल्ला युद्ध किया। वर्ष 1856 में ऐसे ही एक युद्ध में लड़ते हुए उनका बलिदान हुआ।
अमर बलिदानी वीरांगना फूलो-झानो मुर्मू को शत शत नमन!
गर्व से कहो हम आदिवासी हैं!!
हमें गर्व है कि हम आदिवासी हैं!!
जय जोहार,,,, जय आदिवासी,,,,
जय भीम,,,,
जय संविधान,,,,, जय भारत,,,,,





🏹🏹🇮🇳🇮🇳💐💐🙏🙏

14/06/2024

अमर बलिदानी: रोहतासगढ़, बिहार की उराँव जनजाति से सिनगी दई
🔵👉✍️उराँव वीरांगना सिनगी दई का नाम सुनकर ही हम उनके शौर्य और पराक्रम से रोमांचित हो उठते हैं। उन्होंने अपने उरांव राज्य को उस समय संभाला जब संगठित सेना तुर्कों के साथ युद्ध में बिखर चुकी थी। लड़ने वाले पुरुष यौद्धा राष्ट्ररक्षण में प्राण न्यौछावर कर चुके थे। ऐसे समय में रोहतासगढ़ के राजा रुईदास की पुत्री राजकुमारी सिनगी दई ने योग्यता, वीरता, बुद्धिमत्ता, चातुर्य के साथ उराँव राज्य को संभाला। सिनगी दई ने महिलाओं को प्रशिक्षित करने के लिए उराँव समाज के शिकार उत्सव विशु सेन्दरा' को चुना। इस स्त्री सेना के बल पर मुस्लिम तुर्कों के आक्रमण को सिनगी ने विफल कर अपने शौर्य का परिचय दिया। वीरांगना सिनगी दई की याद में आज भी उराँव समाज “मुक्का सेन्दरा" का आयोजन करता है।
अमर बलिदानी सिनगी दई को शत शत नमन!
हमें गर्व है कि हम आदिवासी हैं!
गर्व से कहो हम आदिवासी हैं!
जय जोहार,,,,
जय आदिवासी,,,,,
जय भीम,,,,,,
जय संविधान,,,,,,,
जय भारत,,,,,,




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Photos from Educated Indian Adiwasi Bhil's post 09/06/2024

🔵👉✍️बिरसा तेरे नाम की हर घर में ज्योति जलाएंगे
हर घर में अलख जगाएंगे,,,,,
डोम्बाडी पहाड़ी पर भीडंत हुई भयंकर भरी
गगन घटा घनघोर हो रही गोलाबारी
फिर भी गोरो पर तीर कबाण थे भारी,,,,
आदिवासी जननायक क्रांति सूर्य भगवान बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि पर श्रद्धापूर्वक सादर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं एवं उनके आदर्शों को अपने जीवन में आत्मसात करते हैं
💐💐🙏🙏

09/06/2024

🔵👉✍️द्वन्द कहा तक पाला जाये
युध्द कहा तक टाला जाये...
तू भी हैं राणा वंशज का
फेंक जहाँ तक भाला जाये।

मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पण करने वाले, राजस्थान की आन-बान-शान के प्रतीक, मेवाड़ मुकुट वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जी की जयंती पर कोटि-कोटि नमन!

उनका देशप्रेम, पराक्रम और स्वाभिमानी जीवन हम सभी की लिए प्रेरणा है। आइए, उनके उच्च आदर्शों को जीवन में आत्मसात कर, नवभारत के निर्माण में भागीदारी बनें।
💐💐🙏🙏

08/06/2024

💥आदिवासी भूमि हस्तांतरण, और विस्थापन💥

🔵👉✍️भारत के जनजातीय समुदाय पहाड़ी क्षेत्रों में रहते हैं जो खनिज और वन आवरण से समृद्ध हैं। भूमि उनकी सामाजिक-सांस्कृतिक व धार्मिक पहचान, आजीविका और उनके अस्तित्व का आधार है।
परंपरागत रूप से, भूमि का स्वामित्व सामुदायिक रहा है और आर्थिक गतिविधियाँ झूम खेती सहित मुख्यतः कृषकीय रही हैं, जिसने समतावादी मूल्यों को बढ़ावा दिया और इसने उनके शक्ति संबंधों और संगठनात्मक प्रणाली को प्रभावित किया।
यही वह परिप्रेक्ष्य है जिसके अंतर्गत जंगल तक पहुँच में कमी और अपनी भूमि से अनैच्छिक विस्थापन के कारण जनजातीय लोगों के जीवन में आने वाली तबाही को समझना आवश्यक है।
रेलवे जैसे बुनियादी ढांचे के निर्माण हेतु वन भूमि के अधिग्रहण के लिये लाए गए
🔵👉✍️भारतीय वन अधिनियम, 1865 (1878, 1927 में संशोधन) ने राज्य को व्यावसायीकरण के उद्देश्य से वन भूमि पर एकाधिकारवादी नियंत्रण का अवसर दिया।
स्वतंत्रता के बाद भी, इस अधिनियम के प्रावधान के अंतर्गत राज्य द्वारा सर्वोपरि नए अधिकारों के माध्यम से इस क्षेत्र के मूल निवासियों की कृषि को अवैध घोषित किया गया।
🔵👉✍️जनजातीय भूमि हस्तांतरण के तरीके:
संविधान की पाँचवीं अनुसूची भूमि की सुरक्षा और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण व उन्नति के लिये प्रावधान करती है।
संविधान की छठी अनुसूची: स्वायत्त ज़िलों और स्वायत्त क्षेत्रों को भूमि के संबंध में, किसी भी वन (जो आरक्षित वन नहीं हों) के प्रबंधन के संबंध में, संपत्ति के उत्तराधिकार के संबंध में अधिनयम बनाने की शक्ति प्राप्त है।
आरक्षित वनों और संरक्षित वनों को वैधानिक अधिकार चकबंदी के दायरे से बाहर लाकर जनजातीय लोगों के वन अधिकारों को समाप्त कर दिया गया।
🔵👉✍️वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972, वन संरक्षण अधिनियम, 1980, वृक्ष निवारण अधिनियम और वन नीति, 1988 ने भी जनजातीय लोगों को प्रभावित किया।
भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013 में सन्निहित उचित मुआवजे और पारदर्शिता के अधिकार ने समग्र पुनर्वास को कानूनी रूप से अनिवार्य बनाया और परियोजना से प्रभावित लोगों को इसके दायरे में लिया किंतु, इस नए कानून के अस्तित्व में आने से पहले तक सर्वोपरि अधिग्रहण अधिकार के दुरुपयोग से पर्याप्त नुकसान किया जा चुका है।
🔵👉✍️अनुशंसाएँ,,,,
विस्थापन में कमी लाने के लिये राज्य द्वारा गंभीर प्रयास की आवश्यकता है। समग्र पुनर्वास के लिये एक अधिकार-आधारित दृष्टिकोण होना चाहिये।
भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013 में सन्निहित उचित मुआवजे और पारदर्शिता का अधिकार अपने अभिप्राय में प्रगतिशील है। हालाँकि नए कानून में 'सार्वजनिक उद्देश्य' की परिभाषा बहुत व्यापक है और इससे अनुसूचित क्षेत्रों में और अधिक अधिग्रहण और विस्थापन को अवसर मिलेगा।
भूमि अधिग्रहण के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी प्रारूप भूमि के हस्तांतरण का एक अप्रत्यक्ष तरीका है।
🔵👉✍️केंद्र व राज्य के सार्वजनिक उपक्रमों और केंद्र/राज्य सरकारों के पास बहुत सी अप्रयुक्त जनजातीय भूमि बेकार पड़ी है और जिस उद्देश्य से इनका अधिग्रहण किया गया था, वहाँ इनका उपयोग नहीं हुआ।
सरकारों के ऊपर यह कानूनी बाध्यता होनी चाहिये कि वे ऐसी भूमियों को मूल भूस्वामी या उनके उत्तराधिकारियों को वापस करे अथवा इन भूमियों का उपयोग विस्थापित जनजातियों, आदिवासियों के पुनर्वास के लिये करें।
🔵👉✍️जनजातीय क्षेत्रों में औद्योगिक और खनन परियोजनाओं से प्रदूषित हुई भूमि और जल स्रोतों पर ध्यान देने की आवश्यकता है और सुधारात्मक उपाय अपनाने का दायित्व है।
जनजातीय लोगों को राज्य सरकार द्वारा उनके गांवों में पुनर्वासित किया जाना चाहिये और उन्हें आवास, सुरक्षित पेयजल, स्वास्थ्य व शिक्षा, कौशल विकास, बिजली की आपूर्ति, सिंचाई की सुविधा और कृषि की सुविधाएँ प्रदान की जानी चाहिये।

हमें गर्व है कि हम आदिवासी हैं!!
गर्व से कहो हम आदिवासी हैं!!!
एक तीर एक कमान!!
आदिवासी एक समान!!!
जय जोहार,,,,
जय आदिवासी,,,,
जय भीम,,,,,
जय संविधान,,,,
जय भारत,,,,,





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08/06/2024

💥पाँचवीं अनुसूची💥

🔵👉✍️अनुसूचित क्षेत्र (संविधान की पाँचवीं अनुसूची के तहत) से “ऐसे क्षेत्र अभिप्रेत हैं जिन्हें राष्ट्रपति आदेश द्वारा अनुसूचित क्षेत्र घोषित करें।"
वर्तमान में 10 राज्यों - आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना में ‘पाँचवीं अनुसूची के तहत अनुसूचित क्षेत्र’ (Fifth Schedule Areas) विद्यमान हैं।
🔵👉✍️पाँचवीं अनुसूची में अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित उपबंध है।
पाँचवीं अनुसूची के भाग ख में अनुसूचित क्षेत्रों वाले प्रत्येक राज्य में एक जनजाति सलाहकार परिषद (टीएसी) के गठन का प्रावधान है। टीएसी का कर्तव्य अनुसूचित जनजातियों के ‘कल्याण और उन्नति’ से संबंधित मामलों पर सलाह देना है, "जैसा कि राज्यपाल द्वारा उन्हें संदर्भित किया जा सकता है"।
🔵👉✍️जनजाति सलाहकार परिषद की कमियाँ:
TAC केवल उन मुद्दों पर चर्चा कर सकते हैं और सिफारिश दे सकते हैं, जिन्हें राज्यपाल द्वारा संदर्भित किया जाता है।
यह केवल सलाहकारी क्षमता के रूप में कार्य करता है और इसके पास कार्यान्वयन की कोई शक्ति नहीं है।
परिषद जनजातीय आबादी के लिये जवाबदेह नहीं है, क्योंकि वे राज्यपाल या राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किए जाते हैं।
पाँचवीं अनुसूची ने जनजातीय क्षेत्रों को कहीं अधिक स्वायत्तता प्रदान की, लेकिन जनजाति सलाहकार परिषद स्वायत्त निर्णय लेने वाली एक संस्था के बजाय मात्र एक सलाहकारी निकाय बना रहा है।
🔵👉✍️छठी अनुसूची के विपरीत, जहाँ स्वायत्त ज़िला परिषदों को कई महत्त्वपूर्ण विषयों में उल्लेखनीय विधायी, न्यायिक और कार्यकारी शक्तियाँ प्रदान की गई हैं, पाँचवीं अनुसूची जनजातीय क्षेत्रों के शासन को (मुख्यतः राज्यपाल) के पास संकेंद्रित रखती है।
TAC कार्यप्रणाली के संबंध में नियमों का निर्माण राज्यपाल के बजाय राज्य सरकारों द्वारा किया गया है, जिसके कारण सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों द्वारा इन निकायों का पूर्णरूपेण अधिकार हड़पने का प्रयास किया जा रहा है।
🔵👉✍️राज्यपाल की रिपोर्ट विस्थापन एवं पुनर्वास, विधि-व्यवस्था की समस्या, जनजातीय विरोध प्रदर्शनों, जनजातियों के उत्पीड़न और ऐसे अन्य मुद्दों को दायरे में नहीं लेती हैं। ये रिपोर्टें अनुसूचित क्षेत्रों में राज्य सरकारों की नीतियों के स्वतंत्र मूल्यांकन का अवसर नहीं प्रदान करतीं।
बड़ी संख्या में ऐसे राज्य मौजूद हैं, जहाँ जनजातियाँ प्रखंड या गाँवों में एक बड़ी आबादी वाले प्रखंड या गाँवों का निर्माण करती हैं। उदाहरण के लिये, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, गोवा आदि। इन राज्यों में जनजातीय क्षेत्रों को अनुसूचित क्षेत्रों के दायरे से बाहर रखा गया है!!!!!
जय जोहार,,,,,
जय आदिवासी,,,,,,
जय भीम,,,,,,
जय संविधान,,,,,
जय भारत,,,,,,
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08/06/2024

💥संविधान के अंतर्गत ‘पाँचवीं अनुसूची💥
के क्षेत्र’(Fifth Schedule Areas) ऐसे क्षेत्र हैं,
जिन्हें
🔵👉✍️ राष्ट्रपति आदेश द्वारा अनुसूचित क्षेत्र घोषित करे। वर्तमान में 10 राज्यों - आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना में पाँचवीं अनुसूची के तहत क्षेत्र विद्यमान हैं।
पाँचवीं अनुसूची के प्रावधानों को ‘पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996’ के रूप में और विधिक व प्रशासनिक सुदृढ़ीकरण प्रदान किया गया, ताकि लोकतंत्र और आगे बढ़े।
🔵👉✍️छठी अनुसूची के क्षेत्र (Sixth Schedule areas) कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जो पूर्ववर्ती असम और अन्य जनजातीय बहुल क्षेत्रों में भारत सरकार अधिनियम, 1935 से पहले तक बाहर रखे गए थे तथा बाद में अलग राज्य बने।
इन क्षेत्रों (छठी अनुसूची) को संविधान के भाग XXI के तहत भी विशेष प्रावधान दिए गए हैं।
क्षेत्र प्रतिबंध (संशोधन) निरसन अधिनियम, 1976 ने अनुसूचित जनजातियों की पहचान में क्षेत्र प्रतिबंध की समाप्ति की और सूची को राज्यों के भीतर प्रखंडों और ज़िलों के बजाय पूरे राज्य पर लागू किया।
🔵👉✍️ऐसे क्षेत्र जहाँ अनुसूचित जनजातियाँ संख्यात्मक रूप से अल्पसंख्यक हैं, वे देश के सामान्य प्रशासनिक ढाँचे का हिस्सा हैं। शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण के माध्यम से देश भर में अनुसूचित जनजातियों को कुछ अधिकार प्रदान किए गए हैं।
🔵👉✍️पाँचवीं और छठी अनुसूचियों के दायरे से बाहर जनजातीय स्वायत्त क्षेत्रों के निर्माण के लिये संसद और राज्य विधानसभाओं को शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। उदाहरण के लिये- लेह स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद, कारगिल स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद, दार्जिलिंग गोरखा हिल परिषद।
अनुसूचित जनजातियों और विभिन्न समितियों को परिभाषित करना
🔵👉✍️वर्ष 1931 की जनगणना के अनुसार, अनुसूचित जनजातियों को ‘बहिर्वेशित’ और ‘आंशिक रूप से बहिर्वेशित’ क्षेत्रों में ‘पिछड़ी जनजातियों’ के रूप में जाना जाता है। वर्ष 1935 के भारत सरकार अधिनियम ने पहली बार ‘पिछड़ी जनजातियों’ के प्रतिनिधियों को प्रांतीय विधानसभाओं में आमंत्रित किया।
संविधान अनुसूचित जनजातियों की मान्यता के मानदंडों को परिभाषित नहीं करता है और इसलिये वर्ष 1931 की जनगणना में निहित परिभाषा का उपयोग स्वतंत्रता के बाद के आरंभिक वर्षों में किया गया था।
🔵👉✍️हालाँकि संविधान का अनुच्छेद 366 (25) अनुसूचित जनजातियों को परिभाषित करने के लिये प्रक्रिया निर्धारित करता है: “अनुसूचित जनजातियों का अर्थ ऐसी जनजातियों या जनजातीय समुदायों के अंदर कुछ हिस्सों या समूहों से है, जिन्हें इस संविधान के उद्देश्यों के लिये अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजाति माना जाता है।”
🔵👉✍️अनुच्छेद 340 के तहत भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त पहला पिछड़ा वर्ग आयोग (काका कालेलकर आयोग, 1953) ने अनुसूचित जनजातियों को इस रूप में परिभाषित किया है: “वे एक अलग अनन्य अस्तित्व रखते हैं और लोगों की मुख्य धारा में पूरी तरह से आत्मसात् नहीं किए गए हैं। वे किसी भी धर्म के हो सकते हैं।”
🔵👉✍️एलविन कमेटी (1959) का गठन सभी जनजातीय विकास कार्यक्रमों के लिये बुनियादी प्रशासनिक इकाई ‘बहु-उद्देश्यीय विकास खंड’ (मल्टी-पर्पज डेवलपमेंट ब्लॉक) के कार्यकरण की जाँच के लिये किया गया था।
🔵👉✍️यू.एन. ढेबर आयोग का गठन वर्ष 1960 में जनजातीय क्षेत्रों में भूमि अलगाव के मुद्दे सहित जनजातीय समूहों की समग्र स्थिति को संबोधित करने के लिये किया गया था।
🔵👉✍️लोकुर समिति (1965) का गठन अनुसूचित जनजातियों को परिभाषित करने के मानदंड पर विचार करने के लिये किया गया था। समिति ने उनकी पहचान के लिये पाँच मानदंडों - आदिम लक्षण, विशिष्ट संस्कृति, भौगोलिक अलगाव, बड़े पैमाने पर समुदाय के साथ संपर्क में संकोच और पिछड़ापन - की सिफारिश की।
🔵👉✍️शीलू ओ समिति, 1966 ने एल्विन समिति की ही तरह जनजातीय विकास और कल्याण के मुद्दे को संबोधित किया।
1970 के दशक में गठित कई समितियों की सिफारिशों पर सरकार का जनजातीय उप-योजना दृष्टिकोण सामने आया।
🔵👉✍️भूरिया समिति (1991) की सिफारिशों ने पेसा अधिनियम (PESA Act), 1996 के अधिनियमित होने का मार्ग प्रशस्त किया।
भूरिया आयोग (2002-2004) ने पाँचवीं अनुसूची से लेकर जनजातीय भूमि व वन, स्वास्थ्य व शिक्षा, पंचायतों के कामकाज और जनजातीय महिलाओं की स्थिति जैसे कई मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया।
🔵👉✍️बंदोपाध्याय समिति (2006) ने वामपंथी चरमपंथ प्रभावित क्षेत्रों में विकास और शासन पर विचार किया।
🔵👉✍️मुंजेकर समिति (2005) ने प्रशासन और शासन के मुद्दों का परीक्षण किया।
जिन मुद्दों पर उपर्युक्त समितियों ने विचार किया, उन्हें मुख्यतः दो श्रेणियों में रखा जा सकता है: विकास और संरक्षण, फिर भी इन दोनों ही विषयों में जनजातीय समुदायों के लिये प्राप्त परिणाम मिश्रित ही रहे हैं।
अध्ययन और विश्लेषण
🔵👉✍️पाँच महत्त्वपूर्ण मुद्दों: (1) आजीविका व रोज़गार, (2) शिक्षा, (3) स्वास्थ्य, (4) अनैच्छिक विस्थापन और प्रवासन, और (5) विधिक एवं संवैधानिक मामलों का अध्ययन शाशा समिति द्वारा किया गया है।
इन पाँच मुद्दों में से, पहले तीन मुद्दे ऐसे विषयों से संबंधित हैं जो जनजातियों के लिये उत्तर-औपनिवेशिक राज्य के विकास एजेंडे के मूल में रहे हैं: आजीविका व रोज़गार, शिक्षा और स्वास्थ्य।
🔵👉✍️भारत के योजनाबद्ध विकास के पहले चरण से ही इन सभी क्षेत्रों में जनजातियों के लिये विशेष रूप से संसाधनों का आवंटन किया गया है और इन मोर्चों पर विद्यमान समस्याओं के समाधान के लिये विशेष कार्यक्रम व योजनाएँ भी बनाई गई हैं।फिर भी इन क्षेत्रों में जनजातियों की वर्तमान स्थिति भारत के विकास मार्ग में एक महत्त्वपूर्ण अंतराल को प्रकट करती है। इससे सार्वजनिक वस्तुओं एवं सेवाओं की आपूर्ति के लिये संस्थानों और प्रणालियों की क्षमता पर भी सवाल भी उठता है।
🔵👉✍️व्यापक विकासशील विस्थापन: दोषपूर्ण राष्ट्र-निर्माण प्रक्रिया के एक अंग के रूप में, जनजातीय क्षेत्रों में वृहत् पैमाने पर उद्योग, खनन, सड़क व रेलवे जैसे बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं, बांधों व सिंचाई जैसी जलीय परियोजनाओं का विकास देखने को मिला है।
शहरीकरण की प्रक्रियाओं ने भी इनमें योगदान किया है।
इससे प्रायः आजीविका की हानि, बड़े पैमाने पर विस्थापन और जनजातियों के अनैच्छिक प्रवास की स्थिति बनी है।
समिति द्वारा विश्लेषित एक अन्य महत्त्वपूर्ण मुद्दा विधानों का कार्यकरण रहा है।
🔵👉✍️पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम (पेसा), 1996 और अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम (FRA), 2006, जनजातीय और वन समुदायों के प्रति ऐतिहासिक अन्याय के निवारण के लिये अधिनियमित महत्त्वपूर्ण पहलू रहे हैं, जिनसे उनकी वैधानिक स्थिति में परिवर्तन आया।
हालाँकि, कानून में मान्यता प्राप्त परिवर्तित परिस्थितियों को आत्मसात् करने में नीतियाँ और कार्यान्वयन सुस्त रहे हैं।
भविष्य के संशोधन के लिये इन विधानों और उनके उल्लंघनों का परीक्षण किया गया है।
भूमि अधिग्रहण, खाद्य सुरक्षा, निरोध व कारावास, विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTGs) और गैर-अधिसूचित जनजातियों की स्थिति पर भी प्रकाश डाला गया है।
🔵👉✍️अन्य अवलोकन
एक विमर्श में जनजातीय लोगों की गरीबी सहित समग्र स्थिति के लिये उनके सामाजिक और भौगोलिक अलगाव को ज़िम्मेदार ठहराया गया है।
एकीकरण और विकास: राष्ट्रवादी नेतृत्व ने इन दोनों आयामों (सामाजिक और भौगोलिक अलगाव) को चिह्नित किया और उन्हें संबोधित किया। भारतीय संविधान में अनुसूचित जनजातियों के लिये निहित प्रावधान इस दोहरे दृष्टिकोण का प्रमाण हैं।
संविधान में उनके विकास के साथ-साथ उनके हितों की सुरक्षा और संरक्षण का भी प्रावधान किया गया है।
🔵👉✍️हालाँकि, राज्य वास्तव में जनजातियों के एकीकरण के बजाय उनके सम्मिलन की नीति पर आगे बढ़ रहे हैं, जो दावे (विकास के साथ-साथ उनके हितों की सुरक्षा और संरक्षण) के विपरीत है।एकीकरण की नीति उनकी अलग पहचान के लिये सुरक्षा और संरक्षण का अवसर प्रदान करेगी, जो संविधान में निहित भावना के अनुरूप है।
जनजाति विकास के लिये अपर्याप्त संसाधन आवंटन के तर्क को भी उठाया गया है।
जनजातियों के अंदर सामाजिक विकास में कमी के लिये कार्यक्रमों के कमजोर कार्यान्वयन को एक अन्य कारण के रूप में पेश किया गया है।
जनजातीय आबादी के कमतर विकास के संबंध में एक और तर्क जनजातीय जीवन के पारंपरिक सामाजिक-सांस्कृतिक पहलुओं पर आधारित है।
इस प्रकार जनजातीय संस्कृति के अनुरूप विकास को पुनः उन्मुख करने और जनजातीय विकास के लिये अधिक मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
🔵👉✍️अपर्याप्त संसाधन आवंटन, अप्रभावी कार्यान्वयन या जनजातीय परंपराओं की चिंताओं से परे, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय विकास के वृहत् प्रश्न से संलग्न होना अधिक आवश्यक समझा गया।
झारखंड और ओडिशा राज्यों के पास बड़ी मात्रा में प्राकृतिक संसाधन तो हैं, लेकिन गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले जनजातीय लोगों का प्रतिशत भी यहीं सबसे अधिक है।
वर्ष 2004-05 में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले जनजातीय लोगों का अनुपात झारखंड में 54.2 प्रतिशत और ओडिशा में 75.6 प्रतिशत था।
इन राज्यों में बड़े पैमाने पर खनन, औद्योगिक और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के माध्यम से जनजातीय अलगाव पर काबू पाने की प्रक्रिया ने उनकी दुर्बलता और भेद्यता और बढ़ी दी है।
आदिवासियों पर थोपे गए विकास के मॉडल पर भी सवाल उठाया गया है। आर्थिक उदारीकरण और जनजातीय क्षेत्रों में निजी निगमों के प्रवेश के साथ इस विकास के एजेंडे के व्यापक प्रोत्साहन का जनजातीय समुदायों द्वारा प्रबल प्रतिरोध किया गया है।
🔵👉✍️जनजातियों को सुरक्षा प्रदान करने वाले नियम-कानूनों के साथ लगातार हेर-फेर किया जा रहा है और कॉर्पोरेट हितों को समायोजित करने के लिये इन्हें विकृत किया जा रहा है।
आदिवासियों के प्रतिरोध का उत्तर राज्य के अर्धसैनिक बलों और संलग्न निगमों के निजी सुरक्षा कर्मचारियों द्वारा हिंसा से दिया जा रहा है।

गर्व से कहो हम आदिवासी हैं!!!
हमें गर्व है कि हम आदिवासी हैं!!!
जय जोहार,,,
जय आदिवासी,,,,,
जय भीम,,,,,
जय संविधान,,,,,
जय भारत,,,,,,





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08/06/2024

परिचय
🏹💥अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes-ST)

🔵👉✍️भारत में जनजातीय आबादी संख्यात्मक रूप से एक अल्पसंख्यक समूह होने के बावजूद समूहों की विशाल विविधता का प्रतिनिधित्व करती है!!!!
जबकि जनजातियों की अपनी विशिष्ट संस्कृति और इतिहास है, वे भारतीय समाज के अन्य वंचित वर्गों के साथ अपर्याप्त राजनीतिक प्रतिनिधित्व, आर्थिक वंचना और सांस्कृतिक भेदभाव जैसे विषयों में समानताएँ रखते हैं।
🔵👉✍️'जनजाति' का श्रेणीकरण सामाजिक और सांस्कृतिक आयाम को दर्शाता है, लेकिन ‘अनुसूचित जनजाति’ के रूप में श्रेणीकरण के राजनीतिक-प्रशासनिक निहितार्थ भी हैं।
अनुसूचित जनजाति की अधिकांश आबादी पूर्वी, मध्य और पश्चिमी पट्टी में संकेंद्रित है, जो नौ राज्यों - ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल तक विस्तृत हैं।
उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में लगभग 12 प्रतिशत, दक्षिणी क्षेत्र में लगभग 5 प्रतिशत और उत्तरी राज्यों में लगभग 3 प्रतिशत जनजातीय आबादी निवास करती है।
🔵👉✍️राजनीतिक और प्रशासनिक इतिहास
उन्नीसवीं शताब्दी में जनजातीय विद्रोहों के परिणामस्वरूप जनजातीय क्षेत्रों को सामान्य विधियों के कार्यान्वयन से बाहर रखने की ब्रिटिश नीति का विकास हुआ।
वर्ष 1833 के रेगुलेशन XIII ने गैर-विनियमित (नॉन-रेगुलेशन) प्रांतों का निर्माण किया, जिन्हें नागरिक (सिविल) एवं आपराधिक न्याय, भू-राजस्व के संग्रह और एवं अन्य विषयों में विशेष नियमों द्वारा शासित किया जाना था। इसने सिंहभूमि क्षेत्र में प्रशासन की एक नई प्रणाली की शुरुआत की।
पूर्वोत्तर क्षेत्र में अंग्रेजों ने वर्ष 1873 में आंतरिक रेखा विनियमन (Inner LIne Regulation) को उस बिंदु के रूप में लागू किया जिसके पार उपनिवेश के लिये प्रचलित सामान्य कानून लागू नहीं होते थे और इस क्षेत्र के बाहर रहने वाले शासितों (Subjects) का यहाँ प्रवेश करना सख्त वर्जित था।
भारत सरकार अधिनियम, 1935 के अनुसार, गवर्नर जनजातीय क्षेत्रों में प्रत्यक्ष रूप से या अपने अभिकर्त्ताओं के माध्यम से नीति निर्धारित कर सकता था।
🔵👉✍️स्वतंत्रता के उपरांत, वर्ष 1950 में संविधान (अनुच्छेद 342) के अंगीकरण के बाद ब्रिटिश शासन के दौरान जनजातियों के रूप में चिह्नित व दर्ज समुदायों को अनुसूचित जनजाति के रूप में पुन: वर्गीकृत किया गया।
जिन क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियाँ संख्यात्मक रूप से प्रभावी हैं, उनके लिये संविधान में पाँचवीं और छठी अनुसूचियों के रूप में दो अलग-अलग प्रशासनिक व्यवस्थाओं का प्रावधान किया गया है।

जय जोहार,,,,,,
जय आदिवासी,,,,,,,
जय भीम,,,,,
जय संविधान,,,,,,,
जय भारत,,,,,,,,

गर्व से कहो हम आदिवासी हैं !!!
हमें गर्व है कि हम आदिवासी हैं !!!





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07/06/2024

राम,,,,कृष्ण,,, लिखा रहीम,,,रहमान लिखा
ईश्वर,,,,ईसा,,, रब,, सतनाम,,साहेब लिखा
होड लगीं जब सारी दुनिया
एक शब्द में लिखने की
सबने सब दुनिया लिख डाली
मैंने '''“माँ”''' का नाम लिखा…
मां एक तु ही सहारा तु ही जग सारा,,,
मां से बढ़कर कोई नहीं देख लिया जग सारा,,,
❤️🙏
सभी साथी एक लाइक शेयर कमेंट अपनी अपनी मां के लिए जरूर करें!!

Photos from Educated Indian Adiwasi Bhil's post 05/06/2024

💥आईए जानते हैं,,,,,💥
#क्रांतिसूर्यधरतीआंबाभगवानबिरसामुंडा जीवन संघर्ष,,,,,,
🔵👉✍️झारखंड के छोटा नागपुर खूंटी जिले में स्थित उलीहातु गांव में 15 नवंबर 1875 को जन्मे बिरसा मुंडा को आदिवासी समुदाय ने अपना भगवान माना है,,,,
बचपन से कुशाग्र बुद्धि के धनी बिरसा ने इसाई षडयंत्रों तथा सामाजिक कुरीतियों आदि का जमकर प्रतिकार किया वहीं ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों तथा दमनकारी नीतियों के विरुद्ध आदिवासियों को संघर्ष के लिए तैयार किया !!!
🔵👉✍️बिरसा की माता का नाम करमीहातु व पिता का नाम सुगना मुंडा था बृहस्पतिवार के दिन जन्म होने के कारण उनका नाम बिरसा रखा गया था साल्गा गांव में प्रारंभिक शिक्षा के बाद बिरसा ने जर्मन ईसाई द्वारा संचालित चाईबासा इंग्लिश मीडिल स्कूल में पढ़ाई की स्कूली शिक्षा के दौरान ही,,,,,
🔵👉✍️ब्रिटिश शासको के अत्याचारों को महसूस करने लगे थे पादरी अपनी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों का धर्म बदलने के बाद ही शिक्षा देते थे बिरसा मुंडा का भी मत्तांतरण कर नाम रख दिया डेविड बिरसा जिस स्कूल में बिरसा शिक्षा प्राप्त कर रहे थे वहां विद्यार्थियों को इसाई संस्कृति से सराबोर किया जाता था !!!
🔵👉✍️बिरसा ईसाइयत में दीक्षित जरूर थे किंतु उनके हृदय में जंगल और सनातन परंपराएं विराजमान थी मिशनरियों के मन माने नियमों व धर्महीन कार्यों का अनुसरण करना बिरसा के लिए संभव नहीं था ईसाईयत को वह लादे गए बोझ की तरह ढोह रहे थे स्कूल में पादरी मुंडाओं व हिंदू धर्म के विरुद्ध बोलते थे जिसका प्रतिकार करने पर बिरसा को स्कूल से निष्कासित कर दिया गया !!!
🔵👉✍️सन 1891 में बिरसा मुंडा की भेंट आनंद पांडे से हुई उन्होंने उनके साथ रहकर वेद पुराण उपनिषद रामायण महाभारत गीता आदि धार्मिक ग्रंथो तथा आयुर्वेद का गहन अध्ययन किया बिरसा मुंडा अपने समुदाय के लोगों का निशुल्क इलाज करते थे उनकी लोकप्रियता बढ़ती गई लोग उन्हें धरती आबा पृथ्वी का पिता भगवान का दूध कहने लगे थे माना जाता है कि,,,,,,
🔵👉✍️1895 तक उनके हजारों अनुयाई बन गए थे बिरसा ने आदिवासियों से ईसाईयत त्याग देने का आह्वान किया उन्होंने कहा कि मिशनरियों की बढ़ती शक्ति को रोकने के लिए ईसाई धर्म का बहिष्कार किया जाना चाहिए जब आदिवासी ईसाई धर्म छोड़कर पुनः अपने धर्म में लौट आए बिरसा ने आर्थिक धार्मिक और सामाजिक सुधारो का सूत्रपात किया इस प्रतिकार ने अंग्रेजों चर्च के पादरियों को हिला कर रख दिया एक साधारण आदिवासी नवयुवक उनके मिशन के सामने चट्टान की तरह अडकर खड़ा हो जाए यह उन्हें स्वीकार नहीं था यह इस दीवार को किसी भी तरह गिरा देना चाहते थें !!!
🔵👉✍️बिरसा मुंडा गांव गांव घूम कर अपने आदिवासी समुदाय को जागरूक करने लगे उन्होंने समझना शुरू किया कि मिशनरी और ब्रिटिश सरकार अलग-अलग नहीं है दोनों एक है और हमारे शत्रु हैं इन्हीं के शोषण के कारण आज हमारी स्थिति दयनीय है !!!
🔵👉✍️सन 1900 में बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा करते हुए कहा था हम ब्रिटिश शासन तंत्र के विरुद्ध विद्रोह की घोषणा करते हैं तथा कभी भी अंग्रेजों के नियमों का पालन नहीं करेंगे बिरसा ने अंग्रेजों की दमनकारी नीति का विरोध करने के लिए आदिवासी समुदाय के लोगों को जागरूक किया उन्होंने कहा रानी का शासन खत्म करो और अपना स्वराज्य स्वशासन स्थापित करो,,,,,
🔵👉✍️ब्रिटिश सरकार ने बिरसा की गतिविधियों को रोकने के लिए उन्हें बंदी बनाने के आदेश जारी किए डिप्टी कमिश्नर ने उन्हें,,,,,
बंदी बनाने के लिए सैनिकों की एक टुकड़ी भेजी अंग्रेजों की टुकड़ी का सामना मुंडा सरदारों और उनकी सैना से हुआ अंग्रेजी हुकूमत को मुंह की खानी पड़ी आदिवासियों ने वहां स्थित ब्रिटिश कार्यालयों में आग लगा दी बिरसा के विरुद्ध सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने सरकारी कार्य में बाधा डालने पुलिस पर हमला करने तथा सार्वजनिक स्थलों पर शांति फैलाने से संबंधित आपराधिक मामले दर्ज किये !!!
🔵👉✍️9 अगस्त 1895 को बिरसा मुंडा को पहली बार गिरफ्तार किया गया उन्हें 2 वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई तथा ₹50 जुर्माना लगाया गया जेल से छूटने पर बिरसा मुंडा फिर से अंग्रेजों के विरुद्ध आदिवासियोंको को संगठित करने लगे और अपने आंदोलन,,,,विद्रोह को तीव्रता से आगे बढ़ने लगे !!!
🔵👉✍️डोम्बाडी पहाड़ी पर आदिवासी समुदाय की बैठक हुई इसमें अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष की रणनीति बनाई बिरसा के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध गोरिल्ला युद्ध होने लगा बड़ी संख्या में ब्रिटिश सैनिकों द्वारा कार्यवाही शुरू कि गई आदिवासी मुंडाओं एवं अंग्रेजी सेना के बीच लंबी लड़ाई लड़ी गई एक तरफ से तीर धनुष भाले बर्छी चल रहे थे तो दूसरी तरफ अंग्रेजों द्वारा गोला बारूद बंदूके चलाई जा रही थी !!!!
🔵👉✍️अंततः डोंम्बाडी पहाड़ियों पर अंग्रेजी सेना ने बिरसा व उनके साथियों को घेर लिया विद्रोहियों ने नारा गूंजाया गोरो अपने देश वापस जाओ वापस जाओ हजारों आंदोलनकारी को गोलियों से भून दिया गया फिर भी बिरसा नहीं पकड़े गए परंतु एक दिन जाम्क्रोपी के जंगलों में उन्हें सोते समय गिरफ्तार कर लिया गया !!!
🔵👉✍️जेल से समाचार आया कि बिरसा मुंडा को हैजा हो गया है उन्हें खून की उल्टियां हुई और वह बेहोश हो गए अगले दिन यानी 10 जून 1900 को उनका देहांत हो गया लोगों का मानना था कि भयभीत अंग्रेजों ने जेल में बिरसा को जहर दे दिया था झारखंड ही नहीं बिहार उड़ीसा छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी क्षेत्रों में आज भी बिरसा को भगवान बिरसा कहकर श्रद्धा से याद किया जाता हैं आदिवासी युवा ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण देश के युवा उन्हें अपना आदर्श मानते हैं,,,,,
ऐसे हमारे आदिवासी जननायक क्रांति सूर्य बिरसा मुंडा जी के चरणों में कोटि-कोटि वंदन प्रणाम करते हुए उन्हें श्रद्धापूर्वक सादर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं !!!!!

गर्व से कहो हम आदिवासी हैं !!
हमें गर्व है कि हम आदिवासी हैं !!!







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