Shaheed Udyan
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सारण पुलिस अधीक्षक ने किया राइडर राकेश को सम्मानित
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य पर राइड फॉर जेंडर फ्रीडम के सूत्रधार और तरियानी छपरा में आरंभ हो रहे भारत के प्रथम ग्रीन स्कूल 'बागमती विद्यापीठ' के संस्थापक राइडर राकेश को जेंडर समानता के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए सारण के जिलाधिकारी राजेश मीणा और पुलिस अधीक्षक संतोष कुमार द्वारा प्रशस्ति-पत्र और स्मृति चिह्न प्रदान कर सम्मानित किया गया। यह समस्त शिवहर के लिए गौरव की बात है।
अपने उद्बोधन में जिलाधिकारी ने इस बात के लिए राइडर राकेश की सराहना की कि उन्होंने बिहार के एक छोटे से गाँव से निकल कर पूरे देश में जेंडर स्वाधीनता का संदेश दिया। ऐसे पुरुषों से उम्मीद बढती है।
इस अवसर पर पुलिस अधीक्षक ने कहा कि राइडर राकेश जैसे लोग समाज के लिए धरोहर होते हैं। शिवहर में अपने कार्यकाल के दौरान राकेश जी के साथ मिलकर महिला सशक्तिकरण की दिशा में ऐतिहासिक काम करने का अवसर मिला है। राकेश जी ने भारत छोड़ो आंदोलन के शहीदों की स्मृति में अपने गाँव में जनसहयोग से भव्य स्मारक भी बनवाया है। उनसे प्रेरित होकर हमने सारण पुलिस केंद्र में शहीद स्मारक का निर्माण करवाया है।
अपने उद्बोधन में राइडर राकेश ने सारण के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक का आभार प्रकट किया। जेंडर समानता के प्रति एसपी संतोष कुमार की संवेदनशीलता सराहनीय है। अपने सेवा क्षेत्र में संतोष कुमार जी न सिर्फ महिलाओं को समुचित सम्मान और अवसर प्रदान करते हैं बल्कि समाज में स्त्रियों के सशक्तिकरण के लिए रचनात्मक प्रयास भी करते हैं। बस बच्चियों के माता-पिता उनके लिए दहेज जुटाने के बजाय उनके प्रति भरोसा जुटायें। इस अवसर पर राइडर राकेश ने अपनी चर्चित कविता 'सृजना' का पाठ भी किया।
बाँस-संपन्न हमारे क्षेत्र में बाँस का उपयोग घर बनाने के अलावा टोकरी, डलिया, डगरा, सूप, कोठी जैसी कुछ वस्तुओं के उत्पादन तक सीमित था। आज एक दरवाज़े पर अपने एक ग्रामीण नौजवान की इस कारीगरी को देखकर सुखद आश्चर्य हुआ। इस पर बैठकर चाय सुरकते हुए पता चला कि उन्होंने कभी कोई ट्रेनिंग नहीं ली। इस कुर्सी के अलावा उन्होंने किचन रैक भी बनाया है। जल्दी ही उनसे मिलकर उनकी कारीगरी और शौक़ के बारे में विस्तार से बातचीत करनी है।
पंचायत चुनाव
शाम सात बजे तरियानी छपरा 'उत्तरी' से पंचायत समिति प्रत्याशी सतीश कुमार उर्फ लोहा सिंह से राइडर राकेश की बातचीत। लोहा सिंह तरियानी छपरा के ऊर्जावान नौजवान हैं। सामुदायिक गतिविधियों में इनकी सक्रियता रहती है। जानिए इनसे पंचायत समिति सदस्य के रूप में क्या कुछ करना चाहते हैं लोहा सिंह। आप चाहें तो लोह सिंह के लिए अपने प्रश्न भी यहां साझा कर सकते हैं।
शहीदोत्सव 29-30 अगस्त 2021: 30 अगस्त 1942 के शहीदों के सम्मान में श्रद्धांजलि-पर्व
सुनिये देहाती सरकारी स्कूल की इस बिटिया को। प्रतिभाएँ ब्रैंडेड स्कूलों का मोहताज नहीं होतीं।
कोरोना काल में बच्चों की क्या हालत है, जानिये इस विडियो में।
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ऑनलाइन क्लासेज और आँखों का दर्द कोरोना के कारण बच्चे ऑनलाइन क्लासेज के लिए बाध्य किये गये। सवा-डेढ साल से बच्चे स्कूल नहीं गये। क्या हालत है बच्चो.....
मंदिर माँगा है तुम्हीं ने हॉस्पिटल कैसे दूँ ...
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में तिरहुत के लोगों की सक्रिय भागीदारी ने अंग्रेज़ी हुकूमत की चूलें हिलाकर रख दी थी। संयुक्त मुज़फ़्फ़रपुर ज़िला बिहार में भारत छोड़ो आन्दोलन का गढ था। तरियानी में सत्याग्रहियों की तादाद अच्छी-खासी थी। सभाओं और जुलूसों का सिलसिला जारी था यहाँ।
कांग्रेस के बंबई अधिवेशन में 8 अगस्त 1942 को महात्मा गाँधी ने भारतीयों से 'करो या मरो' का आह्वान किया। रातों-रात आंदोलन उग्र हो गया। रामवरण सिंह के नेतृत्व में कुछ गरम मिजाजी सत्याग्रहियों ने बेलसंड थाने में तोड़फोड़ कर दी थी और रजिस्ट्री ऑफिस की छत पर तिरंगा फहरा दिया था।
30 अगस्त 1942 की तारीख थी। तक़रीबन दोपहर के तीन बजे का वक्त था। अचानक शोर हुआ कि अंग्रेजी पलटन तरियानी की ओर बढ़ती चली आ रही है। गहमागहमी बढ़ गई। कुछ क्रांतिकारी नौजवानों ने गाँव पहुंचने वाले पुल को क्षतिग्रस्त कर दिया कि ब्रिटिश फौज तरियानी में दाखिल न हो सके।
4 बजते-बजते अंग्रेजी पलटन पुल पर पहुंच गई। घंटे भर में अस्थाई पुल बना लिया और बंदूकों और युद्ध वाहन के साथ गाँव में दाखिल हो गये।
शोर सुनकर तरियानी छपरा समेत आसपास के गांवों की जनता दक्षिण की ओर एकत्र हो रही थी। जनसैलाब बड़ा होता देख ब्रितानियों ने फायर खोल दिए। हमारे निहत्थे क्रांतिवीरों को मगर अंग्रेजों की गोलियां डरा न सकीं। अंग्रेज़ों भारत छोड़ो का नारा बुलंद करते रहे। किसी ने सीने पर, किसी ने माथे पर, किसी ने जबड़े पर, किसी ने गर्दन पर, किसी ने पेट पर गोली खाई।
30 अगस्त 1942 की ब्रिटिश फौज की चौतरफा गोलीबारी में तरियानी छपरा के जयमंगल सिंह, परसन साह, बालदेव साह, नवजद सिंह, बूधन महतो, भूपन सिंह, सुंदर राम, सुखदेव सिंह, वंशी दास और छठु महतो शहीद हो गये। बिकाऊ महतो और मुक्तिनाथ सिंह समेत कुल 37 लोग घायल भी हुए।
इसी माटी के क्रांतिवीर श्यामनंदन सिंह पर भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान सरकारी खजाना लूट का मुकदमा चलाया गया और सात साल की सजा सुना कर वे बक्सर जेल भेज दिये गये। जेल में राजनीतिक बंदियों के साथ जारी हिंसा और बदसलूकी के खिलाफ अनशन करते हुए श्यामनंदन सिंह 32वें दिन शहीद हो गए।
शहीद ग्राम तरियानी छपरा ने भारत की आजादी के लिए कुल ग्यारह लाल न्यौछावर किए। एक साथ इतनी कुर्बानियां देने वाला तरियानी छपरा देश का इकलौता गाँव है। अपने महान बलिदानों के लिए यह देश-प्रदेश का गौरव है।
इतनी बड़ी कुर्बानियों के बाद भी बीते 78 सालों में शहीद स्थल पर कायदे का प्रतीक या स्मारक का निर्माण नहीं हो पाया था। जन की इच्छाशक्ति कमज़ोर रही या तंत्र की, नामालूम। कहीं कमी तो ज़रूर रही! बीते दो सालों से राइडर राकेश की बेइंतहा मशक्कत के बाद ग्रामवासियों के सहयोग से शहीद स्थल के विकास और संवर्द्धन की प्रक्रिया आरंभ हुई है।
विगत 30 अगस्त को मनिका देवी पत्नी स्व. दरवेशी सिंह के हाथों शहीद स्थल का शहीद उद्यान के तौर पर लोकार्पण हुआ। शीघ्र ही नवस्थापित पुस्तकालय की विधिवत शुरुआत की जाएगी तथा अंग्रेजी हुकूमत से मुक्ति व जनता के राज के लिए बलिदान हुए ग्यारह बेटों की स्मृति व सम्मान में नवसृजित ग्यारहमूर्ति का अनावरण होगा।
आपसे विनम्र अनुरोध है कि देश की आजादी और लोकतंत्र की स्थापना के लिए बलिदान हुए अपने पुरखों के सम्मान में बन रहे शहीद उद्यान के लिए हरसंभव सहायता प्रदान करें तथा अपने इष्ट-मित्रों से सहयोग की विनती करें। आपका हर छोटा-बड़ा सहयोग अपने बलिदानी पुरखों के सपनों को साकार करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण होगा। आपके सहयोग से तरियानी छपरा और तरियानी छपरा वासियों की मर्यादा बढेगी।
सादर
राइडर राकेश सिंह
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