Abhishekkumar808454

yah peg masti ke liye hai

05/11/2023

कोपर व आईरन कि खोज करते राजस्थान अलवर के रियासत कालीन दृश्य 1873

A KUMAR

24/10/2023

शायद.... इतिहास में इनका जिक्र हैं कही नही

बागपत जिले के खेकड़ा कस्बे की एक वीरांगना नीरा आर्य जिसने आजाद हिंद फौज में रहकर देश की आजादी की लड़ाई लड़ी ,सुभाष चंद्र बोस पर गोली चलाने वाले अपने पति को इन्होंने मार डाला ।
भारत की पहली महिला जासूस कहलाई , इससे अंग्रेजों ने इन्हें काले पानी की सजा दी और स्तन काट के इन्हें सजा और प्रताड़ना दी गई ।
आजादी के बाद सड़क के किनारे फूल बेचकर इन्होंने गुमनाम जिंदगी जी ।
बागपत की महान क्रांतिकारी महिला को हम नमन करते हैं ,स्मरण करते हैं
🙏🙏🙏🙏

22/10/2023
21/10/2023

Hamhu jawan bani tuhu jawan maza lutaa

04/09/2023

दिलावरपुर पंचायत के नया बाजार चौक पर महावीर झंडा लगाने को लेकर आज बैठक किया गया हर साल की भांति इस साल महावीर झंडा 20/09/2023 तारीख को लगने वाली है इस साल की महावीर झंडा में कुछ अलग देखने को मिलेगा ।

#मेला

17/06/2023

#भारत की वो #एकलौती ऐसी घटना जब , अंग्रेज़ों ने एक साथ 52 क्रांतिकारियों को इमली के पेड़ पर लटका दिया था, पर वामपंथियों ने इतिहास की इतनी बड़ी घटना को आज तक गुमनामी के अंधेरों में ढके रखा।

#उत्तरप्रदेश के फतेहपुर जिले में स्थित बावनी इमली एक प्रसिद्ध इमली का पेड़ है, जो भारत में एक शहीद स्मारक भी है। इसी इमली के पेड़ पर 28 अप्रैल 1858 को गौतम क्षत्रिय, जोधा सिंह अटैया और उनके इक्यावन साथी फांसी पर झूले थे। यह स्मारक उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के बिन्दकी उपखण्ड में खजुआ कस्बे के निकट बिन्दकी तहसील मुख्यालय से तीन किलोमीटर पश्चिम में मुगल रोड पर स्थित है।

यह स्मारक स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किये गये बलिदानों का प्रतीक है। 28 अप्रैल 1858 को ब्रिटिश सेना द्वारा बावन स्वतंत्रता सेनानियों को एक इमली के पेड़ पर फाँसी दी गयी थी। ये इमली का पेड़ अभी भी मौजूद है। लोगों का विश्वास है कि उस नरसंहार के बाद उस पेड़ का विकास बन्द हो गया है।

10 मई, 1857 को जब बैरकपुर छावनी में आजादी का शंखनाद किया गया, तो 10 जून,1857 को फतेहपुर में क्रान्तिवीरों ने भी इस दिशा में कदम बढ़ा दिया जिनका नेतृत्व कर रहे थे जोधासिंह अटैया। फतेहपुर के डिप्टी कलेक्टर हिकमत उल्ला खाँ भी इनके सहयोगी थे। इन वीरों ने सबसे पहले फतेहपुर कचहरी एवं कोषागार को अपने कब्जे में ले लिया। जोधासिंह अटैया के मन में स्वतन्त्रता की आग बहुत समय से लगी थी। उनका सम्बन्ध तात्या टोपे से बना हुआ था। मातृभूमि को मुक्त कराने के लिए इन दोनों ने मिलकर अंग्रेजों से पांडु नदी के तट पर टक्कर ली। आमने-सामने के संग्राम के बाद अंग्रेजी सेना मैदान छोड़कर भाग गयी ! इन वीरों ने कानपुर में अपना झंडा गाड़ दिया।

जोधासिंह के मन की ज्वाला इतने पर भी शान्त नहीं हुई। उन्होंने 27 अक्तूबर, 1857 को महमूदपुर गाँव में एक अंग्रेज दरोगा और सिपाही को उस समय जलाकर मार दिया, जब वे एक घर में ठहरे हुए थे। सात दिसम्बर, 1857 को इन्होंने गंगापार रानीपुर पुलिस चैकी पर हमला कर अंग्रेजों के एक पिट्ठू का वध कर दिया। जोधासिंह ने अवध एवं बुन्देलखंड के क्रान्तिकारियों को संगठित कर फतेहपुर पर भी कब्जा कर लिया।

आवागमन की सुविधा को देखते हुए क्रान्तिकारियों ने खजुहा को अपना केन्द्र बनाया। किसी देशद्रोही मुखबिर की सूचना पर प्रयाग से कानपुर जा रहे कर्नल पावेल ने इस स्थान पर एकत्रित क्रान्ति सेना पर हमला कर दिया। कर्नल पावेल उनके इस गढ़ को तोड़ना चाहता था, परन्तु जोधासिंह की योजना अचूक थी। उन्होंने गुरिल्ला युद्ध प्रणाली का सहारा लिया, जिससे कर्नल पावेल मारा गया। अब अंग्रेजों ने कर्नल नील के नेतृत्व में सेना की नयी खेप भेज दी। इससे क्रान्तिकारियों को भारी हानि उठानी पड़ी। लेकिन इसके बाद भी जोधासिंह का मनोबल कम नहीं हुआ। उन्होंने नये सिरे से सेना के संगठन, शस्त्र संग्रह और धन एकत्रीकरण की योजना बनायी। इसके लिए उन्होंने छद्म वेष में प्रवास प्रारम्भ कर दिया, पर देश का यह दुर्भाग्य रहा कि वीरों के साथ-साथ यहाँ देशद्रोही भी पनपते रहे हैं। जब जोधासिंह अटैया अरगल नरेश से संघर्ष हेतु विचार-विमर्श कर खजुहा लौट रहे थे, तो किसी मुखबिर की सूचना पर ग्राम घोरहा के पास अंग्रेजों की घुड़सवार सेना ने उन्हें घेर लिया। थोड़ी देर के संघर्ष के बाद ही जोधासिंह अपने 51 क्रान्तिकारी साथियों के साथ बन्दी बना लिये गये।

28 अप्रैल, 1858 को मुगल रोड पर स्थित इमली के पेड़ पर उन्हें अपने 51 साथियों के साथ फाँसी दे दी गयी। लेकिन अंग्रेजो की बर्बरता यहीं नहीं रुकी । अंग्रेजों ने सभी जगह मुनादी करा दिया कि जो कोई भी शव को पेड़ से उतारेगा उसे भी उस पेड़ से लटका दिया जाएगा । जिसके बाद कितने दिनों तक शव पेड़ों से लटकते रहे और चील गिद्ध खाते रहे । अंततः महाराजा भवानी सिंह अपने साथियों के साथ 4 जून को जाकर शवों को पेड़ से नीचे उतारा और अंतिम संस्कार किया गया । बिन्दकी और खजुहा के बीच स्थित वह इमली का पेड़ (बावनी इमली) आज शहीद स्मारक के रूप में स्मरण किया जाता है।

16/06/2023

कांसे की ये तलवार देखिए. क्या देखकर लगता है कि ये तलवार 3,000 साल से भी ज्यादा पुरानी है? आर्कियोलॉजिस्ट्स की एक टीम को डोनाओ-रीस में खुदाई के दौरान कांस्य युग की यह तलवार मिली. यह एक कब्र में दफनाए गए सामान की शक्ल में मिला. जर्मनी के डोनाओ-रीस में नॉर्डलिंगन नाम का एक शहर है. पिछले हफ्ते यहीं पर आर्कियोलॉजिस्ट्स को ये तलवार मिली. तीन हजार साल से ज्यादा पुरानी होने पर भी तलवार इतनी अच्छी हालत में है कि अब भी इसमें चमक बाकी है. यह कांसे की मूठ वाली उन तलवारों में है, जिनका अष्टभुजाकार हैंडल पूरी तरह कांसे का बना होता था.

09/06/2023

कुछ लड़के समय से पहले ही मर्द बन जाते है

यह घर से निकले हुए लौंडे है साहब, घर से निकले हुए लौंडे है ये, यह साले रोते नहीं हैं बस कमाते हैं रुकते नहीं है बस दौड़ते हैं साला इतना दौड़ते हैं इतना कमाते हैं कि साला इनके पास कुछ बचता ही नहीं है,₹20 के हवाई चप्पल से 4000 के बाद तक का सफर बाटा के जूते तक का सफर और फिर भी अपने गांव अपने वतन अपने घर लौटने के बाद गमछा और लुंगी पर ज़िंदा रहने वाले ये लौंडे है साहब।

काश आपको समझा पाता कि घर से दूर रहना क्या होता है
गलियों के नवाब परदेश में मजदूर बन कर रह जाते है
हीरो वाली २४ इंच की साइकिल से चलने वाले लौंडे पल्सर १५० पर भी तन्हा हो जाते है

पर्व और त्योहारों में जब घर पर तरह तरह के पकवान बनते हैं तो दाल भात चोखा खाकर ,मां से झूठ बोल कर उसे पूरी सब्जी का नाम देकर रह जाते है उम्र के इस मोड़ पर अचानक से लड़के बड़े हो जाते है , छोटी बहनों से लड़ना छोड़ उनकी शादी के लिए पैसे इक्कठा करने लगते है ,
लौंडे से लड़का रूपी मर्द बनना इतना भी आसान कहा है यारा , घर के चिराग परदेश में रूम नंबर के आधार पर पहचाने जाते है चार तरह की सब्जी खाने वाले लौंडे लड़के परदेश आते ही मैग्गी चावल पर ज़िंदा रहना सीख जाते है

घर से दूर अक्सर लौंडे अपने गांव का घर बनाने का सपना देखने लगते हैं
उस पुराने घर की ईट उस घर का सीमेंट उस घर का छड़ ,एकड़ में फैली ज़मीन की चिंता इन्हे होने लगती है धिरे धिरे ये गांव से दूर होते जाते है धिरे धिरे एकड़ से जमीन बीघा में और बीघा से डिसमिल में ,साला पता ही नही चलता है कि किलोमिटर तक चलने वाले लौंडे कब 10*10 के कमरे में सिमट कर रह जाते है एक एकड़ में कितने बीघे होते है एक बीघा में कितने कट्ठे होते हैं एक कट्ठा में कितने डिसमिल होते हैं एक डिसमिल में कितना स्क्वायर फिट होता है और एक एक स्क्वायर फीट में हजारों सपने जोड़ने वाले वह लड़के परदेश में 10 बाई 10 में के रूम में सिगरेट के धुए के तले अपना त्यौहार मना लेते हैं

गांव का वह आम का पेड़ त्रिलोकी चाचा का दलाल सुमारू का चौपाल कलावती चाची के हाथ का चटनी,माई का खाना,बाबू जी का चप्पल नुक्कड़ की चाय की दुकान को ये लौंडे परदेश में आजकल बड़े-बड़े मॉलों में खोजते हुए नजर आते हैं वह लौंडे आज कल मॉल में जाकर भी तंहा रह जाते हैं कुछ कर गुजरने की चाहत आंखों में न जाने कितने सपने कितने अरमान जगाती इनकी आंखे अचानक से परिवार की जरूरत बन जाती है 24 घंटे बहनों और छोटे भाइयों से लड़ने वाले लौंडे अचानक से संजीदा हो जाते हैं। छोटे भाई बहनों के लिए महंगे महंगे फोन खरीदने वाले लौंडे खुद के लिए सदा मोबाइलसेट पर खुश हो जाया करते हैं यह कहकर इस का बैटरी बैकअप अच्छा है

खुद के लिए बुलेट खरीदने से पहले बाबू जी के ज़मीन पर लिया हुआ कर्जा याद करने लगते है मां बाप बहन भाई के लिए महंगा कपड़ा खरीदने के बाद अपने लिए फुटफ़ाट का रास्ता अपना लेते है हजारों किलोमीटर दूर लौंडे फिर से त्योहारों में अकेले हो जाते हैं

हजारों किलोमीटर दूर अपनों के लिए रहने वाले हैं लौंडे फिर से त्योहारों में तन्हा हो जाते हैं कभी-कभी जी चाहता है इन लौंडो का कि बंद कमरे में बहुत तेज रो लेे, लेकिन बचपन कि वो नसियत की लड़कियां रोती है जो मां ने दी थी इन लौंडो को चुप करा देती है और फिर वो वह घुटन वह दर्द न जाने कितने सालों तक इन्हें रुलाता रहता है

ये लौंडे है ये रोते नहीं है बस महसूस करते है कि शायद अगला छठ गला दिवाली अगला राखी अगला होली घर पर हो

कोई पर्व त्योहार नही है बे बस गांव की याद आ रही थी

चलो बे अब चलते है ऑफिस में बहुत काम था आज,बहुत थक गए है

06/06/2023

मुंशी प्रेमचंद जी (नवाब राय) की अपनी पत्नी के साथ फोटो जिसमें उन्होंने फटे जूते पहने हुए हैं। इस फोटो को देखकर महान लेखक हरिशंकर परसाई जी ने एक लेख लिखा था जिसमें उन्होंने कहा था "सोचता हूँ, यदि फोटो खिंचवाने की अगर यह वेश-भूषा है, तो पहनने की कैसी होगी? नहीं, इस आदमी की अलग-अलग वेश-भूषा नहीं होंगी। इसमें वेश-भूषा बदलने का गुण नहीं है। यह जैसा है, वैसा ही फोटो में खींच जाता है।
यह व्यक्ति पोशाक बदल भी नहीं सकता क्योंकि इसने भारत की जनता के मर्म को छुआ है। इस की पोशाक के पीछे #गोदान जैसे महाकाव्य की आदरांजलि भी तो है। इसलिए महान् लेखक मुंशी प्रेमचन्द जी को सादर प्रणाम व शत शत नमन् करता हूँ..🙏🙏🇮🇳🇮🇳
हिन्दी साहित्य दर्पण

03/06/2023

Aaj Kal ka program

Photos from Abhishekkumar808454's post 02/06/2023
28/05/2023

11 सितम्बर 1857 का दिन था जब #बिठूर में एक पेड़ से बंधी तेरह वर्ष की लड़की को ब्रिटिश सेना ने जिंदा ही आग के हवाले किया, धूँ धूँ कर जलती वो लड़की उफ़ तक न बोली और जिंदा लाश की तरह जलती हुई राख में तब्दील हो गई|

ये लड़की थी #नाना_साहब_पेशवा की दत्तक पुत्री जिसका नाम था #मैना_कुमारी जिसे 160 वर्ष पूर्व आउटरम नामक ब्रिटिश अधिकारी ने जिंदा जला दिया था|

जिसने 1857 क्रांति के दौरान अपने पिता के साथ जाने से इसलिए मना कर दिया की कही उसकी सुरक्षा के चलते उसके पिता को देश सेवा में कोई समस्या न आये और बिठूर के महल में रहना उचित समझा|

#नाना_साहब पर ब्रिटिश सरकार इनाम घोषित कर चुकी थी और जैसे ही उन्हें पता चला #नाना_साहब महल से बाहर है ब्रिटिश सरकार ने महल घेर लिया, जहाँ उन्हें कुछ सैनिको के साथ बस #मैना_कुमारी ही मिली|

#मैना_कुमारी ब्रटिश सैनिको को देख कर महल के गुप्त स्थानों में जा छुपी, ये देख ब्रिटिश अफसर आउटरम ने महल को तोप से उड़ने का आदेश दिया और ऐसा कर वो वहां से चला गया पर अपने कुछ सिपाहियों को वही छोड़ गया|

रात को #मैना को जब लगा की सब लोग जा चुके है और वो बहार निकली तो दो सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया और फिर आउटरम के सामने पेश किया आउटरम ने पहले #मैना को एक पेड़ से बंधा फिर #मैना से #नाना_साहब के बारे में और #क्रांति की गुप्त जानकारी जाननी चाही पर उस से मुँह नही खोला|

यहाँ तक की आउटरम ने #मैना_कुमारी को जिंदा जलाने की धमकी भी दी, पर उसने कहा की "वो एक क्रांतिकारी की बेटी है मृत्यु से नही डरती" ये देख आउटरम तिलमिला गया और उसने #मैना_कुमारी को जिंदा जलाने का आदेश दे दिया, इस पर भी #मैना_कुमारी बिना प्रतिरोध के आग में जल गई ताकि क्रांति की मशाल कभी न बुझे|

"बिना खड्ग बिना ढाल" वाली गैंग या धूर्त वामपंथी लेखक चाहे जो लिखें, पर हमारी स्वतंत्रता इन जैसे असँख्य #क्रांतिवीर और #वीरांगनाओं के बलिदानों का ही प्रतिफल है और इनकी गाथाएँ आगे की पीढ़ी तक पहुँचनी चाहिए|

इन्हें हर कृतज्ञ भारतीय का नमन पहुँचना चाहिये|
आज उसी वीरांगना के नाम पर *कानपुर नगर* से , पेशवाओं की नगरी *बिठूर* तक जाने वाले मार्ग को "मैनावती मार्ग" कहते हैं।

शत शत नमन है इस महान बाल वीरांगना को ।| 🙏🙏
साभार

27/05/2023

*केरला की सच्ची स्टोरी*
*वीरांगना नगेली कौन??*

हम प्रत्येक शनिवार को महिला दिवस के रूप में मनाएंगे और क्रांतिकारी महिलाएं जैसे कि वीरांगना फूलन देवी और वीरांगना नगेली, वीरांगना झलकारी बाई कोरी को नमन करेंगें और उनके जीवन संघर्षों को जन जन तक पहुंचाने की कोशिश करेंगे।

*‼️जब हिन्दू धर्म में महिलाओं को स्तन ढकने का भी अधिकार नहीं था इसलिए स्तन ही काट दिया ‼️*

नंगेली का नाम केरल के बाहर शायद किसी ने न सुना हो. किसी स्कूल के इतिहास की किताब में उनका ज़िक्र या कोई तस्वीर भी नहीं मिलेगी.

लेकिन उनके साहस की मिसाल ऐसी है कि एक बार जानने पर कभी नहीं भूलेंगे, क्योंकि नंगेली ने स्तन ढकने के अधिकार के लिए अपने ही स्तन काट दिए थे.

केरल के इतिहास के पन्नों में छिपी ये लगभग सौ से डेढ़ सौ साल पुरानी कहानी उस समय की है जब केरल के बड़े भाग में त्रावणकोर के राजा का शासन था.

जातिवाद की जड़ें बहुत गहरी थीं और निचली जातियों की महिलाओं को उनके स्तन न ढकने का आदेश था. उल्लंघन करने पर उन्हें 'ब्रेस्ट टैक्स' यानी 'स्तन कर' देना पड़ता था.

डॉ.शीबा
केरल के श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय में जेंडर इकॉलॉजी और दलित स्टडीज़ की एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ. शीबा केएम बताती हैं कि ये वो समय था जब पहनावे के कायदे ऐसे थे कि एक व्यक्ति को देखते ही उसकी जाति की पहचान की जा सकती थी.

डॉ. शीबा कहती हैं, "ब्रेस्ट टैक्स का मक़सद जातिवाद के ढांचे को बनाए रखना था. ये एक तरह से एक औरत के निचली जाति से होने की कीमत थी. इस कर को बार-बार अदा कर पाना इन ग़रीब समुदायों के लिए मुमकिन नहीं था."

केरल के हिंदुओं में जाति के ढांचे में नायर जाति को शूद्र माना जाता था जिनसे निचले स्तर पर एड़वा और फिर दलित समुदायों को रखा जाता था.

दलित समुदाय
उस दौर में दलित समुदाय के लोग ज़्यादातर खेतिहर मज़दूर थे और ये कर देना उनके बस के बाहर था. ऐसे में एड़वा और नायर समुदाय की औरतें ही इस कर को देने की थोड़ी क्षमता रखती थीं.

डॉ. शीबा के मुताबिक इसके पीछे सोच थी कि अपने से ऊंची जाति के आदमी के सामने औरतों को अपने स्तन नहीं ढकने चाहिए.

वो बताती हैं, "ऊंची जाति की औरतों को भी मंदिर में अपने सीने का कपड़ा हटा देना होता था, पर निचली जाति की औरतों के सामने सभी मर्द ऊंची जाति के ही थे. तो उनके पास स्तन ना ढकने के अलावा कोई विकल्प नहीं था."

इसी बीच एड़वा जाति की एक महिला, नंगेली ने इस कर को दिए बग़ैर अपने स्तन ढकने का फ़ैसला कर लिया.

केरल के चेरथला में अब भी इलाके के बुज़ुर्ग उस जगह का पता बता देते हैं जहां नंगेली रहती थीं.

मोहनन नारायण
ऑटो चलाने वाले मोहनन नारायण हमें वो जगह दिखाने साथ चल पड़े. उन्होंने बताया, "कर मांगने आए अधिकारी ने जब नंगेली की बात को नहीं माना तो नंगेली ने अपने स्तन ख़ुद काटकर उसके सामने रख दिए."

लेकिन इस साहस के बाद ख़ून ज़्यादा बहने से नंगेली की मौत हो गई. बताया जाता है कि नंगेली के दाह संस्कार के दौरान उनके पति ने भी अग्नि में कूदकर अपनी जान दे दी.

नंगेली का जन्म स्थान
नंगेली की याद में उस जगह का नाम मुलच्छीपुरम यानी 'स्तन का स्थान' रख दिया गया. पर समय के साथ अब वहां से नंगेली का परिवार चला गया है और साथ ही इलाके का नाम भी बदलकर मनोरमा जंक्शन पड़ गया है.

बहुत कोशिश के बाद वहां से कुछ किलोमीटर की दूरी पर रह रहे नंगेली के पड़पोते मणियन वेलू का पता मिला.

मणियन
साइकिल किनारे लगाकर मणियन ने बताया कि नंगेली के परिवार की संतान होने पर उन्हें बहुत गर्व है.

उनका कहना था, "उन्होंने अपने लिए नहीं बल्कि सारी औरतों के लिए ये कदम उठाया था जिसका नतीजा ये हुआ कि राजा को ये कर वापस लेना पड़ा."

लेकिन इतिहासकार डॉ. शीबा ये भी कहती हैं कि इतिहास की किताबों में नंगेली के बारे में इतनी कम पड़ताल की गई है कि उनके विरोध और कर वापसी में सीधा रिश्ता कायम करना बहुत मुश्किल है.
वो कहती हैं, "इतिहास हमेशा पुरुषों की नज़र से लिखा गया है, पिछले दशकों में कुछ कोशिशें शुरू हुई हैं महिलाओं के बारे में जानकारी जुटाने की, शायद उनमें कभी नंगेली की बारी भी आ जाए और हमें उनके साहसी कदम के बारे में विस्तार से और कुछ पता चल पाए."

27/05/2023

5000 साल पहले ब्राह्मणों ने हमारा बहुत शोषण किया ब्राह्मणों ने हमें पढ़ने से रोका। यह बात बताने वाले महान इतिहासकार यह नहीं बताते कि,100 साल पहले अंग्रेजो ने हमारे साथ क्या किया। 500 साल पहले मुगल बादशाहों ने क्या किया।।

हमारे देश में शिक्षा नहीं थी लेकिन 1897 में शिवकर बापूजी तलपडे ने हवाई जहाज बनाकर उड़ाया था मुंबई में जिसको देखने के लिए उस टाइम के हाई कोर्ट के जज महा गोविंद रानाडे और मुंबई के एक राजा महाराज गायकवाड के साथ-साथ हजारों लोग मौजूद थे जहाज देखने के लिए।

उसके बाद एक डेली ब्रदर नाम की इंग्लैंड की कंपनी ने शिवकर बापूजी तलपडे के साथ समझौता किया और बाद में बापू जी की मृत्यु हो गई यह मृत्यु भी एक षड्यंत्र है हत्या कर दी गई और फिर बाद में 1903 में राइट बंधु ने जहाज बनाया।

आप लोगों को बताते चलें कि आज से हजारों साल पहले की किताब है महर्षि भारद्वाज की विमान शास्त्र जिसमें 500 जहाज 500 प्रकार से बनाने की विधि है उसी को पढ़कर शिवकर बापूजी तलपडे ने जहाज बनाई थी।

लेकिन यह तथाकथित नास्तिक लंपट ईसाइयों के दलाल जो है तो हम सबके ही बीच से लेकिन हमें बताते हैं कि भारत में तो कोई शिक्षा ही नहीं था कोई रोजगार नहीं था।

अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंगटन 14 दिसंबर 1799 को आये थे। सर्दी और बुखार की वजह से उनके पास बुखार की दवा नहीं थी। उस टाइम भारत में प्लास्टिक सर्जरी होती थी और अंग्रेज प्लास्टिक सर्जरी सीख रहे थे हमारे गुरुकुल में अब कुछ वामपंथी लंपट बोलेंगे यह सरासर झूठ है।

तो वामपंथी लंपट गिरोह कर सकते है ऑस्ट्रेलियन कॉलेज ऑफ सर्जन मेलबर्न में ऋषि सुश्रुत ऋषि की प्रतिमा "फादर ऑफ सर्जरी" टाइटल के साथ स्थापित है।

महर्षि सुश्रुत: ये शल्य चिकित्सा विज्ञान यानी सर्जरी के जनक व दुनिया के पहले शल्यचिकित्सक (सर्जन) माने जाते हैं। वे शल्यकर्म या आपरेशन में दक्ष थे। महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखी गई ‘सुश्रुतसंहिता’ ग्रंथ में शल्य चिकित्सा के बारे में कई अहम ज्ञान विस्तार से बताया है। इनमें सुई, चाकू व चिमटे जैसे तकरीबन 125 से भी ज्यादा शल्यचिकित्सा में जरूरी औजारों के नाम और 300 तरह की शल्यक्रियाओं व उसके पहले की जाने वाली तैयारियों, जैसे उपकरण उबालना आदि के बारे में पूरी जानकारी बताई गई है।

जबकि आधुनिक विज्ञान ने शल्य क्रिया की खोज तकरीबन चार सदी पहले ही की है। माना जाता है कि महर्षि सुश्रुत मोतियाबिंद पथरी हड्डी टूटना जैसे पीड़ाओं के उपचार के लिए शल्यकर्म यानी आपरेशन करने में माहिर थे। यही नहीं वे त्वचा बदलने की शल्यचिकित्सा भी करते थे।

भास्कराचार्य: आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्यजी ने उजागर किया। भास्कराचार्यजी ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है’।

आचार्य कणाद: कणाद परमाणु की अवधारणा के जनक माने जाते हैं। आधुनिक दौर में अणु विज्ञानी जॉन डाल्टन के भी हजारों साल पहले महर्षि कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं।

उनके अनासक्त जीवन के बारे में यह रोचक मान्यता भी है कि किसी काम से बाहर जाते तो घर लौटते वक्त रास्तों में पड़ी चीजों या अन्न के कणों को बटोरकर अपना जीवनयापन करते थे। इसीलिए उनका नाम कणाद भी प्रसिद्ध हुआ।

गर्गमुनि: गर्ग मुनि नक्षत्रों के खोजकर्ता माने जाते हैं। यानी सितारों की दुनिया के जानकार। ये गर्गमुनि ही थे, जिन्होंने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के बारे में नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया, वह पूरी तरह सही साबित हुआ। कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था। तिथि-नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनिजी ने पहले बता दिए थे।

आचार्य चरक: ‘चरकसंहिता’ जैसा महत्वपूर्ण आयुर्वेद ग्रंथ रचने वाले आचार्य चरक आयुर्वेद विशेषज्ञ व ‘त्वचा चिकित्सक’ भी बताए गए हैं। आचार्य चरक ने शरीर विज्ञान, गर्भविज्ञान, औषधि विज्ञान के बारे में गहन खोज की। आज के दौर में सबसे ज्यादा होने वाली बीमारियों जैसे डायबिटीज, हृदय रोग व क्षय रोग के निदान व उपचार की जानकारी बरसों पहले ही उजागर कर दी।

पतंजलि: आधुनिक दौर में जानलेवा बीमारियों में एक कैंसर या कर्करोग का आज उपचार संभव है। किंतु कई सदियों पहले ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर को भी रोकने वाला योगशास्त्र रचकर बताया कि योग से कैंसर का भी उपचार संभव है।

बौद्धयन: भारतीय त्रिकोणमितिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। कई सदियों पहले ही तरह-तरह के आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाने की त्रिकोणमितिय रचना-पद्धति बौद्धयन ने खोजी। दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी, उतने क्षेत्रफल का ‘समकोण’ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में बदलना, इस तरह के कई मुश्किल सवालों का जवाब बौद्धयन ने आसान बनाया।

15 साल साल पहले का 2000 साल पहले का मंदिर मिलते हैं जिसको आज के वैज्ञानिक और इंजीनियर देखकर हैरान में हो जाते हैं कि मंदिर बना कैसे होगा अब हमें इन वामपंथी लंपट लोगो से हमें पूछना चाहिए कि मंदिर बनाया किसने

ब्राह्मणों ने हमें पढ़ने नहीं दिया यह बात बताने वाले महान इतिहासकार हमें यह नहीं बताते कि सन 1835 तक भारत में 700000 गुरुकुल थे इसका पूरा डॉक्यूमेंट Indian house में मिलेगा।

भारत गरीब देश था चाहे है तो फिर दुनिया के तमाम आक्रमणकारी भारत ही क्यों आए हमें अमीर बनाने के लिए।

भारत में कोई रोजगार नहीं था। भारत में पिछड़े दलितों को गुलाम बनाकर रखा जाता था लेकिन वामपंथी लंपट आपसे यह नहीं बताएंगे कि हम 1750 में पूरे दुनिया के व्यापार में भारत का हिस्सा 24 परसेंट था और सन उन्नीस सौ में एक परसेंट पर आ गया आखिर कारण क्या था।

अगर हमारे देश में उतना ही छुआछूत थे हमारे देश में रोजगार नहीं था तो फिर पूरे दुनिया के व्यापार में हमारा 24 परसेंट का व्यापार कैसे था।

यह वामपंथी लंपट यह नहीं बताएंगे कि कैसे अंग्रेजों के नीतियों के कारण भारत में लोग एक ही साथ 3000000 लोग भूख से मर गए कुछ दिन के अंतराल में

एक बेहद खास बात वामपंथी लंपट या अंग्रेज दलाल कहते हैं इतना ही भारत समप्रीत था इतना ही सनातन संस्कृति समृद्ध थी तो सभी अविष्कार अंग्रेजों ने ही क्यों किए हैं भारत के लोगों ने कोई भी अविष्कार क्यों नहीं किया।

उन वामपंथी लंपट लोगों को बताते चलें कि किया तो सब आविष्कार भारत में ही लेकिन उन लोगों ने चुरा करके अपने नाम से पेटेंट कराया नहीं तो एक बात बताओ भारत आने से पहले अंग्रेजों ने कोई एक अविष्कार किया हो तो उसका नाम बताओ और थोड़ा अपना दिमाग लगाओ कि भारत आने के बाद ही यह लोग आविष्कार कैसे करने लगे उससे पहले क्यों नहीं करते थे।

साभार सनातन वैदिक पेज

11/05/2023

एक गरीब परिवार की व्यथा देख आंसू भी निकल गए गरीब होना भी एक गुनाह है😭😭😭😭
#प्रयास करना हमारा काम है,,,,,,

जैसे ही ट्रेन रवाना होने को हुई, (समय निकाल कर पढ़े🙏)
एक औरत और उसका पति एक ट्रंक लिए डिब्बे में घुस पडे़।
दरवाजे के पास ही औरत तो बैठ गई पर आदमी चिंतातुर खड़ा था।
जानता था कि उसके पास जनरल टिकट है और ये रिज़र्वेशन डिब्बा है।
टीसी को टिकट दिखाते उसने हाथ जोड़ दिए।
" ये जनरल टिकट है। अगले स्टेशन पर जनरल डिब्बे में चले जाना। वरना आठ सौ की रसीद बनेगी।"
कह टीसी आगे चला गया।
पति-पत्नी दोनों बेटी को पहला बेटा होने पर उसे देखने जा रहे थे।
सेठ ने बड़ी मुश्किल से दो दिन की छुट्टी और सात सौ रुपये एडवांस दिए थे।
बीबी व लोहे की पेटी के साथ जनरल बोगी में बहुत कोशिश की पर घुस नहीं पाए थे।
लाचार हो स्लिपर क्लास में आ गए थे।
" साब, बीबी और सामान के साथ जनरल डिब्बे में चढ़ नहीं सकते। हम यहीं कोने में खड़े रहेंगे। बड़ी मेहरबानी होगी।"
टीसी की ओर सौ का नोट बढ़ाते हुए कहा।
" सौ में कुछ नहीं होता। आठ सौ निकालो वरना उतर जाओ।"
" आठ सौ तो गुड्डो की डिलिवरी में भी नहीं लगे साब। नाती को देखने जा रहे हैं। गरीब लोग हैं, जाने दो न साब।" अबकि बार पत्नी ने कहा।
" तो फिर ऐसा करो, चार सौ निकालो। एक की रसीद बना देता हूँ, दोनों बैठे रहो।"
" ये लो साब, रसीद रहने दो। दो सौ रुपये बढ़ाते हुए आदमी बोला।
" नहीं-नहीं रसीद दो बनानी ही पड़ेगी। ऊपर से आर्डर है।रसीद तो बनेगी ही।
चलो, जल्दी चार सौ निकालो। वरना स्टेशन आ रहा है, उतरकर जनरल बोगी में चले जाओ।"
इस बार कुछ डांटते हुए टीसी बोला।
आदमी ने चार सौ रुपए ऐसे दिए मानो अपना कलेजा निकालकर दे रहा हो।

दोनों पति-पत्नी उदास रुआंसे
ऐसे बैठे थे, मानो नाती के पैदा होने पर नहीं उसके शोक में जा रहे हो।
कैसे एडजस्ट करेंगे ये चार सौ रुपए?
क्या वापसी की टिकट के लिए समधी से पैसे मांगना होगा?
नहीं-नहीं।
आखिर में पति बोला- "सौ-डेढ़ सौ तो मैं ज्यादा लाया ही था। गुड्डो के घर पैदल ही चलेंगे। शाम को खाना नहीं खायेंगे। दो सौ तो एडजस्ट हो गए। और हाँ, आते वक्त पैसिंजर से आयेंगे। सौ रूपए बचेंगे। एक दिन जरूर ज्यादा लगेगा। सेठ भी चिल्लायेगा। मगर मुन्ने के लिए सब सह लूंगा।
मगर फिर भी ये तो तीन सौ ही हुए।"☺️
" ऐसा करते हैं, नाना-नानी की तरफ से जो हम सौ-सौ देनेवाले थे न, अब दोनों मिलकर सौ देंगे। हम अलग थोड़े ही हैं। हो गए न चार सौ एडजस्ट।"
पत्नी के कहा।
" मगर मुन्ने के कम करना....""
और पति की आँख छलक पड़ी।
" मन क्यूँ भारी करते हो जी। गुड्डो जब मुन्ना को लेकर घर आयेंगी; तब दो सौ ज्यादा दे देंगे। "
कहते हुए उसकी आँख भी छलक उठी।
फिर आँख पोंछते हुए बोली-
" अगर मुझे कहीं मोदीजी मिले तो कहूंगी-"
इतने पैसों की बुलेट ट्रेन चलाने के बजाय, इतने पैसों से हर ट्रेन में चार-चार जनरल बोगी लगा दो, जिससे न तो हम जैसों को टिकट होते हुए भी जलील होना पड़े और ना ही हमारे मुन्ने के सौ रुपये कम हो।"
उसकी आँख फिर छलक पड़ी।
" अरी पगली, हम गरीब आदमी हैं, हमें वोट देने का तो अधिकार है, पर सलाह देने का नहीं। रो मत।

__________एक मध्यम परिवार से,,,,,
__________™®हित📿

12/04/2023

#प्रेम_का_स्मारक
चित्र में दिखाई गई महिला की फोटो को ज़ूम करके देखेंगे तो उनके गले में पहना हुआ एक बड़ा डायमंड दिखाई देगा.....यह 254 कैरेट का #जुबली डायमंड है जो आकार और वजन में विश्व विख्यात "कोह-ए-नूर" हीरे से दोगुना है...ये महिला मेहरबाई टाटा हैं जो जमशेदजी टाटा की बहू और उनके बड़े बेटे सर दोराबजी टाटा की पत्नी थी...!

सन 1924 में प्रथम विश्वयुद्ध के कारण जब मंदी का माहौल था और #टाटा कंपनी के पास कर्मचारियों को वेतन देने के पैसे नहीं थे... तब मेहरबाई ने अपना यह बेशकीमती जुबली डायमंड *इम्पीरियल बैंक में 1 करोड़ रुपयों में गिरवी* रख दिया था ताकि कर्मचारियों को लगातार वेतन मिलता रहे और कंपनी चलती रहे...!

इनकी ब्लड #कैंसर से असमय मृत्यु होने के बाद सर दोराबजी टाटा ने भारत के कैंसर रोगियों के बेहतर इलाज के लिये यह हीरा बेचकर ही टाटा मेमोरियल कैंसर रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की थी...!

प्रेम के लिये बनाया गया यह स्मारक #मानवता के लिये एक उपहार है .... विडम्बना देखिये हम प्रेम स्मारक के रुप मे ताजमहल को महिमामंडित करते रहते हैं ,और जो हमें जीवन प्रदान करता है, उसके इतिहास के बारे में जानते तक नहीं....!

29/03/2023

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून का प्रसिद्ध स्थान घंटाघर, सन 1881 का अद्भुत दृश्य।।

22/03/2023

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