Jai radha madhab

ब्रज रसिक परम श्रद्धेय
आचार्य -- सुनील कृष्ण जी महाराज
( बृजबासी )

31/01/2024

*“रामायण” क्या है?*

अगर कभी पढ़ो और समझो तो आंसुओ पे काबू रखना.......

रामायण का एक छोटा सा वृतांत है, उसी से शायद कुछ समझा सकूँ... 😊

एक रात की बात हैं, माता कौशल्या जी को सोते में अपने महल की छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई दी।
नींद खुल गई, पूछा कौन हैं ?

मालूम पड़ा श्रुतकीर्ति जी (सबसे छोटी बहु, शत्रुघ्न जी की पत्नी)हैं ।
माता कौशल्या जी ने उन्हें नीचे बुलाया |

श्रुतकीर्ति जी आईं, चरणों में प्रणाम कर खड़ी रह गईं

माता कौशिल्या जी ने पूछा, श्रुति ! इतनी रात को अकेली छत पर क्या कर रही हो बेटी ?
क्या नींद नहीं आ रही ?

शत्रुघ्न कहाँ है ?

श्रुतिकीर्ति की आँखें भर आईं, माँ की छाती से चिपटी,
गोद में सिमट गईं, बोलीं, माँ उन्हें तो देखे हुए तेरह वर्ष हो गए ।

उफ !
कौशल्या जी का ह्रदय काँप कर झटपटा गया ।

तुरंत आवाज लगाई, सेवक दौड़े आए ।
आधी रात ही पालकी तैयार हुई, आज शत्रुघ्न जी की खोज होगी,
माँ चली ।

आपको मालूम है शत्रुघ्न जी कहाँ मिले ?

अयोध्या जी के जिस दरवाजे के बाहर भरत जी नंदिग्राम में तपस्वी होकर रहते हैं, उसी दरवाजे के भीतर एक पत्थर की शिला हैं, उसी शिला पर, अपनी बाँह का तकिया बनाकर लेटे मिले !!

माँ सिराहने बैठ गईं,
बालों में हाथ फिराया तो शत्रुघ्न जी नेआँखें खोलीं,

*माँ !*

*उठे, चरणों में गिरे, माँ ! आपने क्यों कष्ट किया ?*
*मुझे बुलवा लिया होता ।*

माँ ने कहा,
शत्रुघ्न ! यहाँ क्यों ?"

*शत्रुघ्न जी की रुलाई फूट पड़ी, बोले- माँ ! भैया राम जी पिताजी की आज्ञा से वन चले गए,*
*भैया लक्ष्मण जी उनके पीछे चले गए, भैया भरत जी भी नंदिग्राम में हैं, क्या ये महल, ये रथ, ये राजसी वस्त्र, विधाता ने मेरे ही लिए बनाए हैं ?*

माता कौशल्या जी निरुत्तर रह गईं ।

देखो क्या है ये रामकथा...

यह भोग की नहीं....त्याग की कथा हैं..!!

यहाँ त्याग की ही प्रतियोगिता चल रही हैं और सभी प्रथम हैं, कोई पीछे नहीं रहा...
*चारो भाइयों का प्रेम और त्याग एक दूसरे के प्रति अद्भुत-अभिनव और अलौकिक हैं ।*

*"रामायण" जीवन जीने की सबसे उत्तम शिक्षा देती हैं ।*

*भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ तो उनकी पत्नी सीता माईया ने भी पत्नी धर्म निभाते हुए सहर्ष वनवास स्वीकार कर लिया..!!*

परन्तु बचपन से ही बड़े भाई की सेवा मे रहने वाले लक्ष्मण जी कैसे राम जी से दूर हो जाते!
माता सुमित्रा से तो उन्होंने आज्ञा ले ली थी, वन जाने की..

परन्तु जब पत्नी “उर्मिला” के कक्ष की ओर बढ़ रहे थे तो सोच रहे थे कि माँ ने तो आज्ञा दे दी,
परन्तु उर्मिला को कैसे समझाऊंगा.??

क्या बोलूँगा उनसे.?

यहीं सोच विचार करके लक्ष्मण जी जैसे ही अपने कक्ष में पहुंचे तो देखा कि *उर्मिला जी आरती का थाल लेके खड़ी थीं और बोलीं-*

*"आप मेरी चिंता छोड़ प्रभु श्रीराम की सेवा में वन को जाओ...मैं आपको नहीं रोकूँगीं। मेरे कारण आपकी सेवा में कोई बाधा न आये, इसलिये साथ जाने की जिद्द भी नहीं करूंगी।"*

लक्ष्मण जी को कहने में संकोच हो रहा था.!!

परन्तु उनके कुछ कहने से पहले ही उर्मिला जी ने उन्हें संकोच से बाहर निकाल दिया..!!

*वास्तव में यहीं पत्नी का धर्म है..पति संकोच में पड़े, उससे पहले ही पत्नी उसके मन की बात जानकर उसे संकोच से बाहर कर दे.!!*

लक्ष्मण जी चले गये परन्तु 14 वर्ष तक उर्मिला ने एक तपस्विनी की भांति कठोर तप किया.!!

*वन में “प्रभु श्री राम माता सीता” की सेवा में लक्ष्मण जी कभी सोये नहीं , परन्तु उर्मिला ने भी अपने महलों के द्वार कभी बंद नहीं किये और सारी रात जाग जागकर उस दीपक की लौ को बुझने नहीं दिया.!!*

मेघनाथ से युद्ध करते हुए जब लक्ष्मण जी को “शक्ति” लग जाती है और हनुमान जी उनके लिये संजीवनी का पर्वत लेके लौट रहे होते हैं, तो बीच में जब हनुमान जी अयोध्या के ऊपर से गुजर रहे थे तो भरत जी उन्हें राक्षस समझकर बाण मारते हैं और हनुमान जी गिर जाते हैं.!!

तब हनुमान जी सारा वृत्तांत सुनाते हैं कि, सीता जी को रावण हर ले गया, लक्ष्मण जी युद्ध में मूर्छित हो गए हैं।

*यह सुनते ही कौशल्या जी कहती हैं कि राम को कहना कि “लक्ष्मण” के बिना अयोध्या में पैर भी मत रखना। राम वन में ही रहे.!!*

माता “सुमित्रा” कहती हैं कि राम से कहना कि कोई बात नहीं..अभी शत्रुघ्न है.!!

*मैं उसे भेज दूंगी..मेरे दोनों पुत्र “राम सेवा” के लिये ही तो जन्मे हैं.!!*

*माताओं का प्रेम देखकर हनुमान जी की आँखों से अश्रुधारा बह रही थी। परन्तु जब उन्होंने उर्मिला जी को देखा तो सोचने लगे कि, यह क्यों एकदम शांत और प्रसन्न खड़ी हैं?*

क्या इन्हें अपनी पति के प्राणों की कोई चिंता नहीं?

हनुमान जी पूछते हैं- देवी!

आपकी प्रसन्नता का कारण क्या है? आपके पति के प्राण संकट में हैं...सूर्य उदित होते ही सूर्य कुल का दीपक बुझ जायेगा।

उर्मिला जी का उत्तर सुनकर तीनों लोकों का कोई भी प्राणी उनकी वंदना किये बिना नहीं रह पाएगा.!!

उर्मिला बोलीं- "
*जिनके साथ श्री राम हैं तो -मेरा दीपक संकट में नहीं है, वो बुझ ही नहीं सकता.!!*

रही सूर्योदय की बात तो आप चाहें तो कुछ दिन अयोध्या में विश्राम कर लीजिये, क्योंकि आपके वहां पहुंचे बिना सूर्य उदित हो ही नहीं सकता.!!

आपने कहा कि, प्रभु श्रीराम मेरे पति को अपनी गोद में लेकर बैठे हैं..!

जो “योगेश्वर प्रभु श्री राम” की गोदी में लेटा हो, काल उसे छू भी नहीं सकता..!!

यह तो वो दोनों लीला कर रहे हैं..

मेरे पति जब से वन गये हैं, तबसे सोये नहीं हैं..

उन्होंने न सोने का प्रण लिया था..इसलिए वे थोड़ी देर विश्राम कर रहे हैं..और जब भगवान् की गोद मिल गयी तो थोड़ा विश्राम ज्यादा हो गया...वे उठ जायेंगे..!!

और “शक्ति” मेरे पति को लगी ही नहीं, शक्ति तो प्रभु श्री राम जी को लगी है.!!

*मेरे पति की हर श्वास में राम हैं, हर धड़कन में राम, उनके रोम रोम में राम हैं, उनके खून की बूंद बूंद में राम हैं, और जब उनके शरीर और आत्मा में ही सिर्फ राम हैं, तो शक्ति राम जी को ही लगी, दर्द राम जी को ही हो रहा.!!*

इसलिये हनुमान जी आप निश्चिन्त होके जाएँ..सूर्य उदित नहीं होगा।"

*राम राज्य की नींव जनक जी की बेटियां ही थीं...*

कभी “सीता” तो कभी “उर्मिला”..!!

भगवान् राम ने तो केवल राम राज्य का कलश स्थापित किया ..
*परन्तु वास्तव में राम राज्य इन सबके प्रेम, त्याग, समर्पण और बलिदान से ही आया .!!*

*जिस मनुष्य में नैतीकता,ईमानदारी,दया,प्रेम,*
*करुणा,त्याग, समर्पण की भावना हो उस मनुष्य में राम ही बसते है...*
कभी समय मिले तो अपने वेद, पुराण, गीता, रामायण को पढ़ने और समझने का प्रयास किजिएगा .,जीवन को एक अलग नज़रिए से देखने और जीने का सऊर मिलेगा .!!

*"लक्ष्मण सा भाई हो, कौशल्या माई हो,*
*स्वामी तुम जैसा, मेरा रघुराइ हो..*
*नगरी हो अयोध्या सी, रघुकुल सा घराना हो,*
*चरण हो राघव के, जहाँ मेरा ठिकाना हो..*
*हो त्याग भरत जैसा, सीता सी नारी हो,*
*लव कुश के जैसी, संतान हमारी हो..*
*श्रद्धा हो श्रवण जैसी, सबरी सी भक्ति हो,*
*हनुमत के जैसी निष्ठा और शक्ति हो... "*
*ये रामायण न है, पुण्य कथा श्री राम की।*

31/12/2023

2023के आखिरी दिन.......

धन्यवाद्....!! उन लोगो का जो मुझसे नफरत करते है क्यों की उन्होंने मुझे मजबुत बनाया.....!!

धन्यवाद् उन लोगो का जो मुझसे प्यार करते है क्यों की उन्होंने मेरा दिल बड़ा कर दीया......!!

धन्यवाद् उन लोगो का जो मेरे लिए परेशान हुए..... और मुझे बताया की दरअसल वो मेरा बहुत ख्याल रखते है...!!

धन्यवाद् उन लोगो का जिन्होंने मुझे अपना बना के छोड़ दिया और मुझे एहसास दिलाया की दुनिया में हर चीज आखिरी नही होती....!!

धन्यवाद् उन लोगो का जो मेरी जिंदगी में शामिल हुए और बना दीया ऐसा जैसा मैंने सोचा भी नही था.....!!

धन्यवाद् मेरे भगवान का जिन्होंने मुझे इन सभी हालातो का सामना करने की हिम्मत दी।आपको और आपके पूरे परिवार को अंग्रेजी नववर्ष की शुभ कामनायें!

जय राधा माधव चैरिटेबल ट्रस्ट
आचार्य सुनील कृष्ण जी महाराज बृजवासी 9897520476

30/12/2023

*तीन लोक 14 भुवन*

*विष्णुपुराण के अनुसार लोकों या भुवनों की संख्या 14 है। इनमें से 7 लोकों को ऊर्ध्वलोक व 7 को अधोलोक कहा गया है। यहाँ 7 ऊर्ध्वलोकों का विवरण निम्न है।*

*1. भूलोक :- वह लोक जहाँ मनुष्य पैरों से या जहाज, नौका आदि से जा सकता है। अर्थात हमारी पूरी पृथ्वी भूलोक के अन्तर्गत है।*

*2. भुवर्लोक :- पृथ्वी से लेकर सूर्य तक अन्तरिक्ष में जो क्षेत्र है वह भुवर्लोक कहा गया है और यहाँ उसमें अन्तरिक्षवासी देवता निवास करते हैं।*

*3. स्वर्लोक :- सूर्य से लेकर ध्रुवमण्डल तक जो प्रदेश है उसे स्वर्लोक कहा गया है और इस क्षेत्र में इन्द्र आदि स्वर्गवासी देवता निवास करते हैं।*

*पूर्वोक्त तीन लोकों को ही त्रिलोकी या त्रिभुवन कहा गया है और इन्द्र आदि देवताओं का अधिकारक्षेत्र इन्हीं लोकों तक सीमित है।*

*4. महर्लोक :- यह लोक ध्रुव से एक करोड़ योजन दूर है। यहाँ भृगु आदि सिद्धगण निवास करते हैं।*

*5. जनलोक :- यह लोक महर्लोक से दो करोड़ योजन ऊपर है और यहाँ सनकादिक आदि ऋषि निवास करते हैं।*

*6. तपलोक :- यह लोक जनलोक से आठ करोड़ योजन दूर है और यहाँ वैराज नाम के देवता निवास करते हैं।*

*7. सत्यलोक :- यह लोक तपलोक से बारह करोड़ योजन ऊपर है और यहाँ ब्रह्मा निवास करते हैं अतः इसे ब्रह्मलोक भी कहते हैं और सर्वोच्च श्रेणी के ऋषि मुनि यहीं निवास करते हैं।*

*जैसा कि विष्णु पुराण में कहा गया है नीचे के तीनों लोकों का स्वरूप उस तरह से चिरकालिक नहीं है यहाँ जिस तरह से ऊपर के लोकों का है और वे प्रलयकाल में नष्ट हो जाते हैं जबकि ऊपर के तीनों लोक इससे अप्रभावित रहते हैं।*

*अतः भूलोक, भुवर्लोक और स्वर्लोक को ‘कृतक लोक’ कहा गया है और जनलोक, तपलोक और सत्यलोक को ‘अकृतक लोक’। महर्लोक प्रलयकाल के दौरान नष्ट तो नहीं होता पर रहने के अयोग्य हो जाता है अतः वहाँ के निवासी जनलोक चले जाते हैं। यहां इस कारण महर्लोक को ‘कृतकाकृतक’ कहा गया है।*

*यहाँ जिस तरह से ऊर्ध्वलोक हैं और उसी तरह से सात अधोलोक भी हैं जिन्हें पाताल कहा गया है। यहाँ इन सात पाताल लोकों के नाम निम्न हैं।*

*1. अतल :- यह हमारी पृथ्वी से दस हजार योजन की गहराई पर है और इसकी भूमि शुक्ल यानी सफेद है।*

*2. वितल :- यह अतल से भी दस हजार योजन नीचे है और इसकी भूमि कृष्ण यानी काली है।*

*3. नितल :- यह वितल से भी दस हजार योजन नीचे है और इसकी भूमि अरुण यानी प्रातः कालीन सूर्य के रङ्ग की है।*

*4. गभस्तिमान :- यह नितल से भी दस हजार योजन नीचे है और इसकी भूमि पीत यानी पीली है।*

*5. महातल :- गभस्तिमान से यह दस हजार योजन नीचे है और इसकी भूमि शर्करामयी यानी कँकरीली है।*

*6. सुतल :- यह गभस्तिमान से दस हजार योजन नीचे है और इसकी भूमि शैली अर्थात पथरीली बतायी गयी है।*

*7. पाताल :- यह सुतल से भी दस हजार योजन नीचे है और इसकी भूमि सुवर्णमयी यानी स्वर्ण निर्मित है।*

*इन सात अधोलोकों में दैत्य, दानव और नाग आदि निवास करते हैं।*

*हम यह कह सकते हैं कि अन्ततोगत्वा हर लोक भगवान् के अधीन है। यहां (हर ईश्वरवादी ऐसा ही मानेगा।) फिर भी हम अलग अलग लोकों की प्रकृति को देखें तो यह माननें को बाध्य होगें कि जिस प्रकार हमारे लोक में कई राज्य है और उनकी शासनपद्धति भिन्न है और यहां शासक भी भिन्न हैं उसी प्रकार से अन्य लोकों में भी यही बात है।*

*पाताललोकों के वर्णन से प्रकट होता है कि उसमें दैत्यों, दानवों और नागों के बहुत से नगर हैं और यहां इसी प्रकार से स्वर्ग में भी इन्द्र, वरुण, चन्द्रमा आदि के नगर हैं। ऊपर के लोक महर्लोक जनलोक, तपलोक और सत्यलोक के निवासी इतने उन्नत हैं कि वहाँ किसी सत्ता की आवश्यकता ही नहीं है।*

*आपका शरीर स्वस्थ्य रहे आप दीर्घायु हों आपका जीवन मंगलमय हो प्रभु की कृपा अनवरत आप पर बनी रहे।*

जय राधा माधव सेवा समिति
आचार्य सुनील कृष्ण जी महाराज बृजवासी
9897520476

25/12/2023

👏 क्रिश्चियन लड़की ने कहा कि यीशु हमारे लिए सूली पर लटके और मर गए।
मैने कहा पगली भगवान शिव ने हमारे लिए जहर पिया और जिंदा है।
*स्वयं पढ़ें और बच्चों को भी अनिवार्यतः पढ़ाएं*
एक ओर जहां *ईसामसीह* को सिर्फ चार कीलें ठोकी गई थीं, वहीं *भीष्म पितामह* को धनुर्धर अर्जुन ने सैकड़ों बाणों से छलनी कर दिया था।
तीसरे दिन कीलें निकाले जाने पर ईसा होश में आया था, वहीं पितामह भीष्म 58 दिनों तक लगातार बाणों की शैय्या पर पूरे होश में रहे और जीवन, अध्यात्म के अमूल्य प्रवचन, ज्ञान भी दिया तथा अपनी इच्छा से अपने शरीर का त्याग किया था।
सोचें कि पितामह भीष्म की तरह अनगिनत त्यागी महापुरुष हमारे भारत वर्ष में हुए हैं, तथापि सैकड़ों बाणों से छलनी हुए पितामह भीष्म को जब हमने भगवान् नहीं माना, तो चार कीलों से ठोंके गए ईसा को गॉड क्यों मानें???
ईसा का भारत से क्या संबंध है???
25 दिसंबर हम क्यों मनाएं???
क्यों बनाएं हम अपने बच्चों को सेंटा क्लाज???
क्यों लगाएं अपने घर पर प्लास्टिक की क्रिसमस ट्री???
कदापि नहीं, इस पाखंड में नहीं फंसना है, न किसी को फंसने देना है। हमारे पास हमारे पूर्वजों की विरासत में मिली वैज्ञानिक सनातन संस्कृति है, जो हमारे जीवन को महिमामय और गौरवशाली बनाती हैं
अपने बच्चों को इस कुचक्र से बचाएं!!

जय राधा माधव सेवा समिति
आचार्य सुनील कृष्ण जी महाराज बृजवासी
989752047

ॐ ॐ ॐ 🙏🌹

18/12/2023

हर शाम हर किसी के लिए सुहानी नहीं होती,
हर प्यार के पीछे कोई कहानी नहीं होती,
कुछ असर तो होता है दो आत्मा के मेल का
वरना गोरी राधा, सांवले कृष्णा की दीवानी न होती।

02/12/2023

अगहन (मार्गशीर्ष) मास की 10 विशेषताएं

〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️
मार्गशीर्ष मास को हिन्दू पंचांग के अनुसार अगहन मास भी कहा जाता है। यूं तो हर माह की अपनी विशेषताएं है लेकिन मार्गशीर्ष का सम्पूर्ण मास धार्मिक दृष्टि से पवित्र माना जाता है। गीता में स्वयं भगवान ने कहा है।

"मासाना मार्गशीर्षोऽयम्"

पढ़ें 10 विशेषताएं....
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
आचार्य सुनील कृष्ण जी महाराज के द्वारl

1👉 सत युग में देवों ने मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही वर्ष प्रारंभ किया।

2👉 इसी मास में कश्यप ऋषि ने सुन्दर कश्मीर प्रदेश की रचना की। इसी मास में महोत्सवों का आयोजन होना चाहिए। यह अत्यं‍त शुभ होता है।

3👉 मार्गशीर्ष शुक्ल 12 को उपवास प्रारम्भ कर प्रति मास की द्वादशी को उपवास करते हुए कार्तिक की द्वादशी को पूरा करना चाहिए।प्रति द्वादशी को भगवान विष्णु के केशव से दामोदर तक 12 नामों में से एक-एक मास तक उनका पूजन करना चाहिए। इससे पूजक 'जातिस्मर' पूर्व जन्म की घटनाओं को स्मरण रखने वाला हो जाता है तथा उस लोक को पहुंच जाता है, जहां फिर से संसार में लौटने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

4👉 मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को चन्द्रमा की अवश्य ही पूजा की जानी चाहिए, क्योंकि इसी दिन चन्द्रमा को सुधा से सिंचित किया गया था। इस दिन माता, बहिन, पुत्री और परिवार की अन्य स्त्रियों को एक-एक जोड़ा वस्त्र प्रदान कर सम्मानित करना चाहिए। इस मास में नृत्य-गीतादि का आयोजन कर उत्सव भी किया जाना चाहिए।

5👉 मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को 'दत्तात्रेय जयन्ती' मनाई जाती है।

6👉 मार्गशीर्ष मास में इन 3 पावन पाठ की बहुत महिमा है। 1- विष्णुसहस्त्र नाम, 2- भगवत गीता और 3- गजेन्द्रमोक्ष। इन्हें दिन में 2-3 बार अवश्य पढ़ें।

7👉 इस मास में 'श्रीमद भागवत' ग्रन्थ को देखने भर की विशेष महिमा है। स्कन्द पुराण में लिखा है- घर में अगर भागवत हो तो अगहन मास में दिन में एक बार उसको प्रणाम करना चाहिए।

8👉 इस मास में अपने गुरु को, इष्ट को ॐ दामोदराय नमः कहते हुए प्रणाम करने से जीवन के अवरोध समाप्त होते हैं।

9👉 इस माह में शंख में तीर्थ का पानी भरें और घर में जो पूजा का स्थान है उसमें भगवान के ऊपर से शंख मंत्र बोलते हुए घुमाएं, बाद में यह जल घर की दीवारों पर छीटें। इससे घर में शुद्धि बढ़ती है, शांति आती है, क्लेश दूर होते हैं।*

10👉 अगहन मास को मार्गशीर्ष कहने के पीछे भी कई तर्क हैं। भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अनेक स्वरूपों में व अनेक नामों से की जाती है। इन्हीं स्वरूपों में से एक मार्गशीर्ष भी श्रीकृष्ण का रूप है।

13/11/2023

आदरणीय 🙏,
साक्षात मिलने का मौका नहीं मिलता, इसलिए शब्दों से नमन कर लेता हूं, अपनों को।। प्रत्येक व्यक्ति मुझसे कहीं ना कहीं श्रेष्ठ है, अतः मैं सभी श्रेष्ठ व्यक्तियों को हृदय की गहराइयों से *प्रणाम* करता हूं। आपको व आपके परिजनों को मेरी तरफ से दीपावली, गोवर्धन पूजा, भाई दूज की हार्दिक शुभकामनायें । आपके जीवन में यश, कीर्ति, वैभव, समृद्धि सदैव बनी रहे। माँ महालक्ष्मी का आशीर्वाद हम सब पर बना रहे। आपका प्रेम, आपका विश्वास ही सबसे बडा धन है।
शुभकामनाओं सहित

जय राधा माधव सेवा समिति
आचार्य सुनील कृष्ण जी महाराज बृजवासी

9897520476 (WhatsApp)

06/11/2023

0️⃣6️⃣❗1️⃣1️⃣❗2️⃣0️⃣2️⃣3️⃣
*🪯एक सुंदर कथा 🪯*
एक राजा की पुत्री के मन में वैराग्य की भावनाएं थीं।जब राजकुमारी विवाह योग्य हुई तो राजा को उसके विवाह के लिए योग्य वर नहीं मिल पा रहा था।

राजा ने पुत्री की भावनाओं को समझते हुए बहुत सोच-विचार करके उसका विवाह एक गरीब संन्यासी से करवा दिया।

राजा ने सोचा कि एक संन्यासी ही राजकुमारी की भावनाओं की कद्र कर सकता है।

विवाह के बाद राजकुमारी खुशी-खुशी संन्यासी की कुटिया में रहने आ गई।

कुटिया की सफाई करते समय राजकुमारी को एक बर्तन में दो सूखी रोटियां दिखाई दीं। उसने अपने संन्यासी पति से पूछा कि रोटियां यहां क्यों रखी हैं?

संन्यासी ने जवाब दिया कि ये रोटियां कल के लिए रखी हैं, अगर कल खाना नहीं मिला तो हम एक-एक रोटी खा लेंगे।

संन्यासी का ये जवाब सुनकर राजकुमारी हंस पड़ी। राजकुमारी ने कहा कि मेरे पिता ने मेरा विवाह आपके साथ इसलिए किया था, क्योंकि उन्हें ये लगता है कि आप भी मेरी ही तरह वैरागी हैं, आप तो सिर्फ भक्ति करते हैं और कल की चिंता करते हैं।

सच्चा भक्त वही है जो कल की चिंता नहीं करता और भगवान पर पूरा भरोसा करता है।

अगले दिन की चिंता तो जानवर भी नहीं करते हैं, हम तो इंसान हैं। अगर भगवान चाहेगा तो हमें खाना मिल जाएगा और नहीं मिलेगा तो रातभर आनंद से प्रार्थना करेंगे।

ये बातें सुनकर संन्यासी की आंखें खुल गई। उसे समझ आ गया कि उसकी पत्नी ही असली संन्यासी है।

उसने राजकुमारी से कहा कि आप तो राजा की बेटी हैं, राजमहल छोड़कर मेरी छोटी सी कुटिया में आई हैं, जबकि मैं तो पहले से ही एक फकीर हूं, फिर भी मुझे कल की चिंता सता रही थी। सिर्फ कहने से ही कोई संन्यासी नहीं होता, संन्यास को जीवन में उतारना पड़ता है। आपने मुझे वैराग्य का महत्व समझा दिया।

शिक्षा: अगर हम भगवान की भक्ति करते हैं तो विश्वास भी होना चाहिए कि भगवान हर समय हमारे साथ है।

उसको (भगवान्) हमारी चिंता हमसे ज्यादा रहती हैं।

कभी आप बहुत परेशान हो, कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा हो।

आप आँखे बंद कर के विश्वास के साथ पुकारे, सच मानिये
थोड़ी देर में आप की समस्या का समाधान मिल जायेगा..!!

जय राधा माधव सेवा समिति
आचार्य सुनील कृष्ण जी महाराज
098975 20476

*🙏🏾🙏🏼🙏🏿जय श्री कृष्ण*🙏🏽🙏🙏🏻

25/10/2023

स्त्रियां
बाथरूम मे जाकर कपड़े भिगोती हैं,बच्चो और पति की शर्ट की कॉलर घिसती है,बाथरूम का फर्श धोती है ताकि चिकना न रहे,फिर बाल्टी और मग भी मांजती है तब जाकर नहाती है
और तुम कहते हो कि स्त्रियां नहाने में कितनी देर लगातीं है।

स्त्रियां
किचन में जाकर सब्जियों को साफ करती है,तो कभी मसाले निकलती है।बार बार अपने हाथों को धोती है,आटा मलती है,बर्तनों को कपड़े से पोंछती है।वही दही जमाती घी बनाती है
और तुम कहते हो खाना में कितनी देर लगेगी ???

स्त्रियां
बाजार जाती है।एक एक सामान को ठहराती है,अच्छी सब्जियों फलों को छाट ती है,पैसे बचाने के चक्कर में पैदल
चल देती है,भीड में दुकान को तलाशती है।और तुम कहते हो कि इतनी देर से क्या ले रही थी ???

स्त्रियां
बच्चो और पति के जाने के बाद चादर की सलवटे सुधारती है,सोफे के कुशन को ठीक करती है,सब्जियां फ्रीज में रखती है,कपड़े घड़ी प्रेस करती है,राशन जमाती है,पौधों में पानी डालती है,कमरे साफ करती है,बर्तन सामान जमाती है,और तुम कहते हो कि दिनभर से क्या कर रही थी ???

स्त्रियां
कही जाने के लिए तैयार होते समय कपड़ो को उठाकर लाती है,दूध खाना फ्रिज में रखती है बच्चो को दिदायते देती है,नल चेक करती है,दरवाजे लगाती है,फिर खुद को खूबसूरत बनाती है ताकि तुमको अच्छा लगे और तुम कहते हो कितनी देर में तैयार होती हो।

स्त्रियां
बच्चो की पढ़ाई डिस्कस करती,खाना पूछती,घर का हिसाब बताती,रिश्ते नातों की हालचाल बताती,फीस बिल याद दिलाती और तुम कह देते कि कितना बोलती हो।

स्त्रियां
दिनभर काम करके थोड़ा दर्द तुमसे बाट देती है,मायके की कभी याद आने पर दुखी होती है,बच्चों के नंबर कम आने पर परेशान होती है,थोड़ा सा आसू अपने आप आ जाते है,मायके में ससुराल की इज़्ज़त,ससुराल में मायके की बात को रखने के लिए कुछ बाते बनाती और तुम कहते हो की स्त्रियां कितनी नाटकबाज होती है।

पर स्त्रियां फिर भी तुमसे ही सबसे ज्यादा प्यार 😘
करती है...
समर्पित हमारी मां बहन बेटियों और धर्मपत्नियों को,,,

जय राधा माधव सेवा समिति
आचार्य सुनील कृष्ण जी महाराज बृजवासी
9897520476

भजन - लगन तुमसे लगा बैठे जो होगा देखा जाएगा आचार्य सुनील कृष्ण जी महाराज बृजवासी 9897520476 14/10/2023

https://youtu.be/91holkk4bbg?feature=shared

भजन - लगन तुमसे लगा बैठे जो होगा देखा जाएगा आचार्य सुनील कृष्ण जी महाराज बृजवासी 9897520476 भजन - लगन तुमसे लगा बैठे जो होगा देखा जाएगा आचार्य सुनील कृष्ण जी महाराज बृजवासी 9897520476

14/10/2023

भजन - आली री मोहे लागे वृन्दावन निको
आचार्य सुनील कृष्ण जी महाराज बृजवासी
9897520476

07/10/2023

((((((( कंगन सरोवर )))))))
श्री कृष्ण ने व्रज लौटने का निश्चय किया. व्रज में श्री कृष्ण को अनुपस्थिति देखकर अरिष्टासुर ने व्रज को तहस-नहस करने के उद्देश्य से व्रज में प्रवेश किया. उसने वृषभ का रूप धारण कर रखा था.
उसका शरीर असामान्य रूप से विशाल था. खुरों के पटकने से धरती में कंपन हो रहा था. पूंछ खड़ी किए हुए अपने भयंकर सींगों से चहारदीवारी, खेतों की मेड़ आदि तोड़ता हुआ वह आगे बढ़ता ही जा रहा था.
उस तीखे सींग वाले वृषभ को देख समस्त वृजवासी कृष्ण को पुकारते हुए वन की ओर भागे. पूरे वृन्दावन को भयभीत भागता देखकर श्री कृष्ण ने अरिष्टासुर को ललकारा.
क्रोध से तिलमिलाता अरिष्टासुर खुरों से धरती को खोदता हुआ श्री कृष्ण पर झपटा. श्री हरि ने उसके दोनों सींग पकड़ ऐसा झटका दिया कि वह अठारह कदम पीछे जाकर चारों खाने चित्त हो गया.
श्री कृष्ण दौड़े और उसे धर दबोचा. अरिष्टासुर को न तो उठने का अवसर मिला न ही संभलने और पलटवार का. भगवान ने उसके दोनों सींग उखाड़ लिए और उसे सीगों से ही उस पर प्रहार करने लगे. अपने तेज सींगों के प्रहार से अरिष्टासुर के प्राण निकल गए.
अरिष्टासुर था तो राक्षस लेकिन उसने बैल का रूप धरा रखा था. श्री कृष्ण ने गोवंश का वध कर दिया, मूर्खता में गोपियां ऐसा सोचने लगीं. वध के बाद प्रभु ने राधा को स्पर्श कर लिया.
राधा जी उनसे कहने लगी की आप कभी मुझे स्पर्श मत करना क्योंकि आपके सिर पर गोवंश हत्या का पाप है. आपके स्पर्श से मैं भी गौहत्या के पाप में भागीदार बन गई हूं. श्री कृष्ण को राधा जी के भोलेपन पर हंसी आ गई.
उन्होंने कहा कि मैंने किसी बैल का नहीं, बल्कि असुर का वध किया है. राधा जी बोलीं- आप कुछ भी कहें, लेकिन उस असुर का वेष तो बैल का ही था. इसलिए आप गोहत्या के दोषी हुए. अजीब उलझन फंसी ये तो.
यह सुनकर गोपियां बोली- वृत्रासुर भी तो राक्षस था लेकिन उसकी हत्या करने पर इन्द्र को ब्रह्महत्या का पाप लगा था तो फिर आपको गोहत्या का पाप क्यों नहीं लगेगा ?
श्री कृष्ण मुस्कुराकर बोले- अच्छा तो बताओ कि मैं इस पाप से कैसे मुक्त हो सकता हूं. तब राधा जी ने अपनी सखियों के साथ श्री कृष्ण से कहा- हमने सुना है कि सभी तीर्थों में स्नान के बाद ही आप इस पाप से मुक्त हो सकते हैं.
यह सुनकर श्री कृष्ण ने अपने पैर को अंगूठे से भूमि को दबाया तो पाताल से जल निकल आया. जल देखकर राधा और गोपियां बोली हम विश्वास कैसे करें कि यह तीर्थ की धाराओं का जल है.
ऐसा सुनकर सभी तीर्थ धाराओं ने अपना परिचय देना शुरू किया. श्री कृष्ण ने राधा जी और गोपियों को उस कुंड में स्नान करने को कहा तो वे कहने लगीं कि हम इस गोहत्या लिप्त पापकुंड में क्यों स्नान करें. इसमें स्नान से हम भी पापी हो जाएंगे.
तब राधिका जी ने अपनी सखियों से कहा कि सखियों हमें अपने लिए एक मनोहर कुंड तैयार करना चाहिए. उन्होंने कृष्ण कुंड की पश्चिम दिशा में वृषभासुर के खुर से बने एक गड्ढे को खोदना शुरु किया.
गीली मिट्टी को सभी सखियों और राधा जी ने अपने कंगन से खोदकर एक दिव्य सरोवर तैयार कर लिया.
राधा जी और सखियों ने कुंड भर लिया लेकिन जब बारी तीर्थों के आवाहन की आई तो राधा जी को समझ नहीं आया वे क्या करें. उस समय श्री कृष्ण के कहने पर सभी तीर्थ वहां प्रकट हुए
इस प्रकार कहने लगे – मैं लवण समुद्र हूँ. मैं क्षीर सागर हूँ. मैं सुर्दीर्घिका हूँ .मैं शौण. मैं सिन्धु हूँ. मैं ताम्रपर्णी हूँ. मैं पुष्कर हूँ. मैं सरस्वती हूँ. मैं गोदावरी हूँ. मैं यमुना हूँ. मैं सरयू हूँ. मैं प्रयाग हूँ. मैं रेवा हूँ. हम सबों के इस जल समूह हो देखकर आप विश्वास कीजिये.
राधा जी से आज्ञा लेकर तीर्थ उनके कुंड में विद्यमान हो गए. यह देखकर राधा जी कि आंखों से आंसू आ गए और वे प्रेम से श्री कृष्ण को निहारने लगीं.

जय राधा माधव सेवा समिति
आचार्य सुनील कृष्ण जी महाराज बृजवासी
9897520476

~~~~~~~~~~~~~~~~~
((((((( जय जय श्री राधे )))))))
~~~~~~~~~~~~~~~~~

04/10/2023

*भंडारा में कुछ देने से पहले*
*एक बार अवश्य पढ़ें*
🙏 *दिल को छुने वाली कहानी* 🙏
एक पाँच छ: साल का मासूम सा बच्चा अपनी छोटी बहन को लेकर गुरुद्वारे के एक तरफ कोने में बैठा हाथ जोडकर भगवान से न जाने क्या मांग रहा था ।
कपड़े में मैल लगा हुआ था मगर निहायत साफ, उसके नन्हे नन्हे से गाल आँसूओं से भीग चुके थे
बहुत लोग उसकी तरफ आकर्षित थे और वह बिल्कुल अनजान अपने भगवान से बातों में लगा हुआ था ।
जैसे ही वह उठा एक अजनबी ने बढ़ के उसका नन्हा सा हाथ पकड़ा और पूछा : -
*क्या मांगा भगवान से*
उसने कहा: -
*मेरे पापा मर गए हैं* *उनके लिए स्वर्ग मांगा*

मेरी माँ रोती रहती है उनके लिए सब्र मांगा, और
मेरी बहन माँ से कपडे सामान मांगती है उसके लिए पैसे मांगे"..
"तुम स्कूल जाते हो"..?
अजनबी का सवाल स्वाभाविक सा सवाल था
हां जाता हूं, उसने कहा ।
किस क्लास में पढ़ते हो ?
*अजनबी ने पूछा*
नहीं अंकल पढ़ने नहीं जाता, मां चने बना देती है, वह स्कूल के बच्चों को बेचता हूँ ।
बहुत सारे बच्चे मुझसे चने खरीदते हैं, हमारा यही काम धंधा है ।
बच्चे का एक एक शब्द मेरी रूह में उतर रहा था
*तुम्हारा कोई रिश्तेदार*

न चाहते हुए भी अजनबी बच्चे से पूछ बैठा ।

पता नहीं, माँ कहती है गरीब का कोई रिश्तेदार नहीं होता,
*माँ झूठ नहीं बोलती पर अंकल*
मुझे लगता है मेरी माँ कभी कभी झूठ बोलती है,
जब हम खाना खाते हैं हमें देखती रहती है ।
जब कहता हूँ
माँ तुम भी खाओ, तो कहती है ,
मैने खा लिया था, उस समय लगता है झूठ बोलती है ।
बेटा अगर तुम्हारे घर का खर्च मिल जाय तो पढाई करोगे ?
"बिल्कुलु नहीं"
"क्यों"
पढ़ाई करने वाले, गरीबों से नफरत करते हैं अंकल,
हमें किसी पढ़े हुए ने कभी नहीं पूछा - पास से गुजर जाते हैं ।
अजनबी हैरान भी था और शर्मिंदा भी ।
फिर उसने कहा
"हर दिन इसी इस गुरुद्वारे में आता हूँ,
कभी किसी ने नहीं पूछा - यहाँ सब आने वाले मेरे पिताजी को जानते थे - मगर हमें कोई नहीं जानता ।
"बच्चा जोर-जोर से रोने लगा"
अंकल जब बाप मर जाता है तो सब अजनबी क्यों हो जाते हैं ?
मेरे पास इसका कोई जवाब नही था...
ऐसे कितने मासूम होंगे जो हसरतों से घायल हैं ।
बस एक कोशिश कीजिये और अपने आसपास ऐसे ज़रूरतमंद यतीमों, बेसहाराओ को ढूंढिये और उनकी मदद किजिए .....
मन्दिर/गुरुद्वारे मे सीमेंट या अन्न की बोरी देने से पहले अपने आस - पास किसी गरीब को देख लेना शायद उसको आटे की बोरी की ज्यादा जरुरत हो ।
आपको पसंद आऐ तो सब काम छोडके ये मेसेज कम से कम एक या दो ग्रुप मे जरुर डाले ।
कहीं ग्रुप मे ऐसा देवता इंसान मिल जाऐ ।
कहीं एसे बच्चो को अपना भगवान मिल जाए ।
कुछ समय के लिए एक गरीब बेसहारा की आँख मे आँख डालकर देखे, आपको क्या महसूस होता है ।
फोटो या विडीयो भेजने कि जगह ये मेसेज कम से कम एक ग्रुप मे जरुर डाले ।
स्वयं में व समाज में बदलाव लाने के प्रयास जारी रखें..!आप से अगर हो सके तो आप भी मदद करै जिससे भगवान जी भी आप का ख्याल रखे ऐसी हमारी मनोकामना पूर्ण करे

जय राधा माधव सेवा समिति
आचार्य सुनील कृष्ण जी महाराज बृजवासी
9897520476
🌷🙏 जय माता दी🙏🌷

03/10/2023

ध्यान पूर्वक जानकारी लें -

क्या श्राद्ध में सन्यासियों को भोजन करा सकते हैं??

नहीं श्राद्धमें सन्यासियोंको निमंत्रित नहीं करना चाहिए।।

* #प्रमाण—
* #मुण्डान्_जटिलकाषायान्_श्राद्धे_यत्नेन_वर्जयेत्।*

* #पूर्वपक्ष (प्रश्न)—
हमने सुना है कि श्राद्धमें यतियों/सन्यासियोंको निमंत्रित करना चाहिए, उसका शास्त्रोंमें फल भी लिखा है देखिए—
* #एके_यतीन्_निमन्त्रयन्ति ।
(कात्यायनप्रणीत पारस्कर श्राद्धपरिशिष्ट सूत्र)

तदुक्तम्-
*सम्पूजयेद्यतिं श्राद्धे पितॄणां पुष्टिकारकम् ।
*ब्रह्मचारी यतिश्चैव पूजनीयो हि नित्यशः।।
*तत्कृतं सुकृतं यत्स्यात्तस्य षड्भागमाप्नुयात् ।

#मार्कण्डेयोऽपि - *भिक्षार्थमागतान्वाऽपि काले संयमिनो यतीन् ।*
*भोजयेत्प्रणताद्यैस्तु प्रसादोद्यतमानसः ।।
इति।

* #उत्तरपक्ष (समाधान)—
यतिस्तु= त्रिदण्डी।
एकदण्डिनां श्राद्धे निरस्तत्वात् ।
तथाहि —

*मुण्डान् जटिलकाषायान् श्राद्धे यत्नेन वर्जयेत् ।
*शिखिभ्यो धातुरक्तेभ्यस्त्रिदण्डिभ्यः प्रदापयेत् ।।
(गदाधरकृत_श्राद्धसूत्र_भाष्ये)
* #अर्थ—* जहां श्राद्धसंबंधी शास्त्रवचनोंमें यति/सन्यासियोंका ग्रहण किया गया है वहां यतिका अर्थ है त्रिदंडी सन्यासी।

क्योंकि एकदंडी- मुंडितशिर, काषायवस्त्र धारी सन्यासियोंका श्राद्धमें निषेध है।

त्रिदंडी,शिखाधारी,सन्यासियोंको श्राद्धमें निमंत्रित किया जा सकता है।
१ #श्राद्धमें_द्विर्नग्न ( #दोबार_नंगा) #का_निषेध—

*यस्य वेदश्च वेदी च विच्छिद्येत त्रिपूरुषम्।
*द्विर्नग्न: स तु विज्ञेयः श्राद्धकर्मणि निन्दितः।।
(गदाधरकृत_श्राद्धसूत्र_भाष्ये)
#अर्थ—* जिन द्विजातियोंके परिवारमें तीन पीढ़ीसे न वेद पढ़नेकी परंपरा है और ना ही अग्निहोत्र करने की, तो उन्हें शास्त्रोंमें द्विर्नग्न/ दोनों प्रकारसे नंगा कहा गया है। ऐसे ब्राह्मण श्राद्धमें निन्दित कहे गए हैं।

*२ #श्राद्धकर्ताके_नियम—

*दन्तधावनताम्बूलं स्नेहस्नानमभोजनम्।*
*रत्यौषधं परान्नं च श्राद्धकृत् सप्त वर्जयेत्।।*
(व्याघ्रपादस्मृति:-155)

* #अर्थ—*
1 दंतधावन करना
2 तांबूल/ तंबाकू खाना
3 तेलमर्दन पूर्वक स्नानकरना
4 उपवास करना
5 स्त्री संभोग करना
6 औषधि खाना
7 परान्नभक्षण/ दूसरेका भोजन करना
ये सब 7कार्य श्राद्धकर्ताको श्राद्ध वाले दिन नहीं करना चाहिए।

*श्राद्धं कृत्वा परश्राद्धे योऽश्नीयाज्ज्ञानवर्जित:।*
*दातु: श्राद्धफलं नास्ति भोक्ता किल्बिषभुग्भवेत्।।*
(स्कन्दपुराण_ब्रह्म_धर्मा.6/65)

*३ #श्राद्धमें_तन्तधावनका_प्रायश्चित्त—*

*श्राद्धोपवासदिवसे खादित्वा दन्तधावनम्।* *गायत्रीशतसम्पूतमम्बु प्राश्य विशुध्यति।।*
(विष्णुरहस्ये)

* #अर्थ—* श्राद्धवाले दिन या उपवास वाले दिन यदि कोई वृक्षकी दातुन करता है तो उसे 100 बार गायत्री मंत्रसे अभिमंत्रित जलपीना चाहिए तभी वह शुद्ध होता है।

*४ #श्राद्धकर्कताके_द्वारा_नियमोंका_पालन_न_करनेपर_दोष—*

*आमन्त्रितस्तु यः श्राद्धे अध्वानम्प्रतिपद्यते।*
*भ्रमन्ति पितरस्तस्य तं मासं पांसुभोजिनः।।*
(यमः)

*अध्वनीनो भवेदश्वःपुनर्भोजी तु वायसः।।*
*होमकृन्नेत्ररोगी स्यात्पाठादायुः प्रहीयते।।*

*दानान्निष्फलतामेति प्रतिग्राही दरिद्रताम्।*
*कर्मकृज्जायते दासो मैथुनी शूकरो भवेत्।।*
(याज्ञवल्क्य:)

* #अर्थ—*
श्राद्ध करके...
यात्राकरने वाला- घोड़ा होता है दोबारा खानेवाला- कौआ बनता है
हवन करने वाला- नेत्ररोगी होता है
अध्ययन करने वाला- आयुहीन होता है
दान देने वाला- फलसे रहित होता है
दान लेने वाला- दरिद्र होता है अन्यकार्य करनेवाला- दास बनता है
मैथुन करने वाला- शूकर होता है।
इसलिए ये सब कार्य श्राद्ध वाले दिन नहीं करना चाहिए।

*५ #श्राद्धकर्ताके_नियमोंका_प्रतिप्रसव—*

तीर्थश्राद्ध करनेके बाद— यात्रा और उपवास कर सकते हैं।

गर्भाधाननिमित्तक वृद्धिश्राद्धके बाद— मैथुन करने में दोष नहीं है ।

अग्निहोत्रके निमित्तश्राद्धके बाद— होम हो सकता है ।

अपने दूसरे विवाहमें जहां नांदीश्राद्ध करनेका वरको ही अधिकार है ऐसा वृद्धिश्राद्ध करनेके बाद— कन्या प्रतिग्रह करनेमें दोष नहीं है।

कन्यादानके निमित्त नांदीश्राद्धके बाद— कन्यादान हो सकता है ।

तीर्थयात्रा आरंभ और समाप्तिपर श्राद्धके बाद— यात्रा हो सकती है, उसमें दोष नहीं है।

*६ #श्राद्धभोक्ताके_नियम—*

*पुनर्भोजनमध्वानं भाराध्ययनमैथुनम्।*
*दानं प्रतिग्रहो होम: श्राद्धभुगष्ट वर्जयेत्।।*
(व्याघ्रपादस्मृति-156)

* #अर्थ—*
1 दुबारा भोजन करना
2 यात्रा करना
3 भार ढोना
4 परिश्रम करना
5 मिथुन /स्त्री संभोग करना
6 दान देना
7 दान लेना
8 हवन करना
ये 8 कार्य श्राद्धान्न भोजन करने वालेको नहीं करना चाहिए।

*७ #श्राद्धमें_भोजन_करने_व_करानेके_नियम—*

• श्राद्धमें पधारे हुए ब्राह्मणोंको कुर्सी आदि पर बिठाकर पैर धोना चाहिए।
खड़े होकर पैर धोनेपर पितर निराश होकर चले जाते हैं।
पत्नी को दायिनी और खड़ा करना चाहिए ।
उसे पतिके बाएं रहकर जल नहीं गिराना चाहिए, अन्यथा वह श्राद्ध आसुरी हो जाता है और पितरोंको प्राप्त नहीं होता।
( #स्मृत्यन्तर)
*यावदुष्णं भवत्यन्नं यावदश्नन्ति वाग्यता:।*
*पितरस्तावदश्नान्ति यावन्नोक्ता हविर्गुणा:।।*
(मनुस्मृति- 3/237)
* #अर्थ—*
• जब तक श्राद्धान्न गर्म रहता है।
जब तक ब्राह्मण लोग मौन होकर भोजन करते हैं।
जब तक वे भोज्य पदार्थोंके गुणोंका वर्णन नहीं करते।
तभी तक पितर लोग भोजन करते हैं अर्थात् ये नियम भंग होने पर पितर भोजन करना बंद कर देते हैं।

इसलिए श्राद्धमें भोजनके समय मौन रहना चाहिए।

मांगने या प्रतिषेध करनेका संकेत हाथ से ही करना चाहिए।
( #श्राद्धदीपिकायाम्)
• भोजन करते समय ब्राह्मणसे अन्न कैसा है, यह नहीं पूछना चाहिए
तथा भोजनकर्ताको भी श्राद्धान्नकी प्रशंसा या निंदा नहीं करनी चाहिए।
• श्राद्धके निमित्त जो भी भोजन पदार्थ बने हैं उन सभीको प्रथम बारमें ही रख देना चाहिए, कुछ भी पदार्थ छूटना नहीं चाहिए, यदि कुछ छूट जाए या नमक आदि भी जो पहले नहीं रखा था उसे मध्यमें नहीं देना चाहिए जो पहले नहीं दिया था, परन्तु जो पहले भोजन थालीमें परोस दिया है उन पदार्थोंको तो दोबारा तिबारा परोसते रहना चाहिए।
• श्राद्धभोजन करते समय भोजन विधिमें बताई गई चित्राहुति भी नहीं देना चाहिए।
• श्राद्ध भोजनके बाद ब्राह्मणोंके जूठे पात्रोंको स्त्रियोंको नहीं हटाना चाहिए, पुरुषोंको ही वहांसे हटाकर प्रक्षालनस्थानपर रखना चाहिए—
*न स्त्री प्रचालयेत्तानि ज्ञानहीनो न चाव्रत:।*
*स्वयं पुत्रोऽथवा यस्य वाञ्छेदभ्युदयं परम् ॥*
(स्कन्दपुराण_प्रभास-206/42)
• श्राद्धमें ब्राह्मण भोजनके अनंतर ब्राह्मणको तिलककर तांबूल तथा वस्त्रादि दक्षिणा प्रदान करें
और ब्राह्मणदेवकी चार परिक्रमा कर प्रणाम करें ।

• एवं अंतमें—
* #शेषान्नं_किं_कर्तव्यंम्।* (बचे हुए अन्नका क्या किया जाए) इस प्रकार ब्राह्मणसे पूछे ।

ब्राह्मण उत्तरमें कहे—
* #इष्टैः_सह_भोक्तव्यम्।*
(अपने इष्ट जनोंके साथ भोजन करें)

फिर ब्राह्मणकी विदाई करने अपने घरसे बाहर किसी देवालय या जलाशय तक ब्राह्मणको छोड़ने जाए

उसके बाद श्रद्धाङ्ग तर्पण करें।

फिर हरिस्मरणपूर्वक श्राद्धकर्मको पितृस्वरूपी जनार्दन वासुदेवको समर्पित कर दें!!

Jai radha madhab seva samiti
Aacharya Sunil Krishna Ji Maharaj brijwasi 9897520476

Want your business to be the top-listed Shop in Agra?
Click here to claim your Sponsored Listing.

Videos (show all)

हर शाम हर किसी के लिए सुहानी नहीं होती,हर प्यार के पीछे कोई कहानी नहीं होती,कुछ असर तो होता है दो आत्मा के मेल कावरना गो...
भजन - आली री मोहे लागे वृन्दावन निको आचार्य सुनील कृष्ण जी महाराज बृजवासी                 9897520476
भजन- पायो जी मेने राम रतन धन पायो आचार्य सुनील कृष्ण जी महाराज बृजवासी 9897520476
Acharya Sunil Krishna Ji Maharaj brijwasi 9897520476
Bhajan - Payal ki jhankar acharya sunil Krishna ji maharaj
Bhajan shandhya - acharya sunil Krishna ji maharaj brijwasi 9897520476
Bhajan shandhya acharya sunil Krishna ji maharaj brijwasi 9897520476

Telephone

Address


Agra
282002

Other Shopping & Retail in Agra (show all)
Rahul karishma saxena. Rahul karishma saxena.
Moradabad.
Agra

ŚHŸ Ćłôśèt ŚHŸ Ćłôśèt
Delhi
Agra

•Best Online Fashion Store •Pay By- Bank Transfers & Paytm •COD Also Available •No Returns ?

Alyah Alyah
Agra

💎Follow me💎

Rajkumari  Kushwah Rajkumari Kushwah
Agra

I like Vlog, Journey and Shopping

Bobby Kushwah Samra Bobby Kushwah Samra
Agra, 282009

841077

stonecraftsagra.in stonecraftsagra.in
Agra, 282002

We R A manufacturer, Wholesaler Retailer of Marble Handicrafts products, Stoneware,Officeware,Housew

Sony Entertainment Sony Entertainment
Agra
Agra

Pubg mobile pro pleyer Pubg mobile pro pleyer
Agra, 282002

likes me follow me gusy

Myself Myself
Rajpur Chungi
Agra, 282001

Aavya collection Aavya collection
Agra, 282009

We have started online selling of all products (clothing, furniture, footwear, makeup, products, assential, etc. so hurry up nd book ur favourite dresses, clothes, furnitures, make...