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१. धारणा क्या है?
"देशबन्धश्चित्तस्य धारणा - मन को किसी बाह्य विषय अथवा आन्तरिक बिन्दु पर एकाग्र करना धारणा है।
एक बार एक संस्कृत के विद्वान् कबीर के पास गये और उनसे प्रश्न किया - "कबीर, अभी आप क्या कर रहे हैं?” कबीर ने उत्तर दिया – “पण्डित जी, मैं मन को सांसारिक विषयों से वापस खींच कर भगवान् के चरण कमलों पर एकाग्र कर रहा हूँ।" इसे धारणा कहते हैं।
उत्तम आचरण, आसन-प्राणायाम तथा विषय-वस्तुओं से प्रत्याहार धारणा में शीघ्र सफलता प्राप्ति को सरल बनाते हैं। धारणा योग की सीढ़ी का छठवाँ पायदान है। मन जिस पर टिक सके, ऐसी किसी वस्तु के बिना धारणा नहीं हो सकती। एक निश्चित उद्देश्य, रुचि, एकाग्रता धारणा में सफलता लाते हैं।
इन्द्रियाँ आपको बाहर खींच लाती हैं और आपके मन की शान्ति को भंग कर देती हैं। यदि आपका मन बैचैन है, तो आप किसी प्रकार की प्रगति नहीं कर सकते हैं। जब अभ्यास के द्वारा मन की किरणें एकत्रित हो जाती हैं, तो मन एकाग्र हो जाता है और आपको मन के भीतर से आनन्द प्राप्त होता है। विचारों और आवेगों को शान्त करें।
आपके भीतर धैर्य, दृढ़ संकल्प तथा अथक दृढ़ता होनी चाहिए। आपको अपने अभ्यास में बड़ा ही नियमित होना चाहिए, अन्यथा आलस्य और विपरीत बल आपको लक्ष्य से दूर ले के चले जायेंगे।
एक उत्तम प्रशिक्षित मन को संकल्प के अनुसार किसी भी विषय पर, चाहे वह बाहरी हो या आन्तरिक, सभी विचारों के निषेध के लिए एकाग्र किया जा सकता है।
प्रत्येक व्यक्ति के पास कुछ विषयों पर धारणा हेतु क्षमता होती है। लेकिन आध्यात्मिक प्रगति के लिए धारणा का अत्यन्त उच्च स्तर तक विकास हो जाना चाहिए| उत्तम धारणा वाले व्यक्ति की अर्जन - क्षमता अच्छी होती है तथा वह कम समय में अधिक कार्य कर सकता है। धारणा करते समय मस्तिष्क पर किसी प्रकार का तनाव नहीं होना चाहिए। आपको मन के साथ संघर्ष नहीं करना चाहिए।
सात्विक आहार की महत्ता:
हमारे मन का निर्माण हम जो आहार ग्रहण करते हैं, उससे होता है। इसलिए ध्यान करने वाले को सात्विक आहार लेना चाहिए, जिससे कि उसका मन सात्विक रहेगा और उसे नियंत्रित करने में आसानी होगी। मन के नियंत्रित होने पर उसका ध्यान अच्छा लगेगा। इसके साथ ही उन्होंने यह बताया कि ध्यान के लिए पतंजलि महर्षि द्वारा बताए गए आठों अंगों में पारंगतता प्राप्त करना अनिवार्य है क्योंकि, यम नियम के पालन से हमारी बाह्य और आंतरिक शुद्धि होती है, आसनों से शरीर दृढ़ और रोगों से अभेद्य होगा। जिससे हम ध्यान हेतु अधिक देर तक बैठ सकेंगे । प्राणायाम से श्वाँस पर नियंत्रण होगा, प्रत्याहार से इंद्रियों पर नियंत्रण होगा जिससे मन स्थिर बनेगा और तब हमें उत्तम धारणा की प्राप्ति होगी और ध्यान लगेगा। ध्यान के निरंतर अभ्यास से हमें समाधि की प्राप्ति होगी। अतः ये आठों अंग हमें हमारे लक्ष्य की प्राप्ति कराऐंगे।
स्वामी शिवानंद सरस्वती जी
राजसिक मन सदैव नयी वस्तुओं की माँग करता है। इसे विभिन्नता चाहिए। इसे एकरसता से अरुचि है। इसे स्थान में परिवर्तन, आहार में परिवर्तन संक्षेप में कहें तो प्रत्येक चीज़ में परिवर्तन चाहिए। लेकिन आपको इसे एक चीज़ से चिपके रहने का प्रशिक्षण देना होगा।
आपको एकरसता की शिकायत नहीं करनी चाहिए। आपमें धैर्य, दृढ़ संकल्प और अथक प्रयत्न की आवश्यकता है। तभी आप योग में आगे बढ़ सकेंगे।
- स्वामी शिवानंद सरस्वती जी
*संतों का आध्यात्मिक आभामंडल* -
संतों का आध्यात्मिक आभामंडल मन का मनोमय या प्राणिक आभामंडल होता है। आभामंडल वह तेज है, जो मन से निकलता है। जिनका मन विकसित है उनमें यह बहुत अधिक प्रकाशवान होता है। यह बहुत अधिक दूर तक जा सकता है और अपने संपर्क में आने वाले लोगों को लाभकारी ढंग से प्रभावित कर सकता है। प्राणिक आभामंडल से आध्यात्मिक आभामंडल अधिक शक्तिशाली होता है ।
शारीरिक, मानसिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक रुप से वृद्धि तथा विकास के अनुसार मानवीय आभामंडल के विभिन्न रंग होते हैं, तथा प्रत्येक रंग का अपना अर्थ और महत्व है।
आध्यात्मिक आभामण्डल पीले रंग का होता है। यह संतों, ऋषियों, पैगम्बरों तथा योगियों के सिर के चारों ओर होता है। जब ये आदि मंच पर प्रवचन देने के लिए खड़े होते हैं तब यह कभी कभी साधारण लोगों को भी दिखाई देता है।
जब मानसिक योग्यताऐं एक असामान्य रुप से प्रयोग में आ रही होती हैं तो पीला रंग तीव्र हो जाता है। संत का मुखमण्डल एक तेज से दमकता है। यह संत की महिमा है। यह आभामंडल आध्यात्मिक संतों के चित्रों में दिखाई देता है।
भगवान बुद्ध का चुंबकीय आभामंडल चारों ओर तीन मील तक विस्तृत था। जो भी लोग इस तीन मील के क्षेत्र के भीतर आये वे वशीभूत हो गये। वे उनके शिष्य बन गए। योगी काक भुषुण्ड का चुंबकीय दिव्य आभामंडल आठ मील तक विस्तृत था।
एक प्रथम श्रेणी के साधक का आभामंडल ४०० यार्ड तक विस्तृत होता है। आप भी ध्यान के नियमित निरंतर अभ्यास से इस आध्यात्मिक आभामंडल को विकसित कर सकते हैं ।
*अभ्यास कैसे करें ?*
एक संरक्षक आभामंडल के विकास हेतु विधि इस प्रकार है:- आराम से बैठ जाऐं श्वांस को आधा या एक मिनट तक रोककर रखें। कल्पना करें कि आपके शरीर के चारों ओर शरीर से तीन या चार फीट दूर एक विचारों का एक आभामंडल का एक संरक्षक आवरण है। एक स्पष्ट मानसिक चित्र बनाऐं । इस क्रिया विधि को दस से पंद्रह मिनट तक दोहरायें। जब आप श्वांस रोकें तब मानसिक रुप से ऊँ का जप करें।
- प्रिय मित्र ! स्वयं के बाहर और भीतर समन्वयपूर्ण स्पंदनों का घेरा तैयार करें। नियमित ध्यान आपको इस लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक सिद्ध होगा।
- यदि बात छोटी होगी तो उसका प्रकाश भी कम होगा। यदि बाती बड़ी होगी तो लौ भी बड़ी होगी तथा अधिक शक्तिशाली होगी। इसी प्रकार यदि जीव शुद्ध है यदि वह ध्यान का अभ्यास करता है, तो आत्मा का प्राकट्य अथवा अभिव्यक्ति शक्तिशाली होगी और वह विशाल प्रकाश का विकिरण करेगा ।
- यदि उसका आध्यात्मिक उत्थान नहीं हुआ है तथा जो अशुद्ध है, वह जले हुए कोयले की भांति होगा। जितनी बड़ी बाती उतना बड़ा प्रकाश, उसी प्रकार जितनी शुद्ध आत्मा उतनी महान अभिव्यक्ति ।
- यदि चुम्बक शक्तिशाली है तो लोहे के कर्णो को तब भी प्रभावित कर सकेगा जब वे उससे बहुत अधिक दूर रखें हुये हों। इसी प्रकार यदि योगी उच्च है तो वह अपने संपर्क में आने वाले लोगों पर अधिक प्रभाव डाल सकेगा। वह लोगों पर तब भी प्रभाव डाल सकेगा जबकि वे दूरस्थ स्थानों में निवास कर रहे हों ।
प्रिय मित्र ! स्वयं के बाहर और भीतर समन्वयपूर्ण स्पंदनों का घेरा तैयार करें।
नियमित ध्यान आपको इस लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक सिद्ध होगा। नियमित ध्यान से अपने चारों ओर एक दृढ़ आध्यात्मिक किला तथा एक चुंबकीय आभामंडल निर्मित करें जिसे माया के संदेश वाहक न भेद सकें।
जहाँ भी जाऐं शक्ति, आनंद, शांति, दयालुता, प्रेम, करुणा तथा सहानुभूति के स्पंदन लेकर जाऐं।
सभी अच्छे स्पंदन अवशोषित करें। सभी अशांत स्पंदनों को दूर भगा दें ।
प्राचीन काल के ऋषियों के स्पंदन जो वातावरण में तैर रहे हैं उन्हें अवशोषित करना सीखें । जीवित जीवनमुक्त ऋषियों के स्पंदनों के साथ एक लय में रहें। वे सभी आपको ऊपर उठाऐंगे।
ईश्वर करे कि शांति तथा आनंद के स्पंदन आपके नेत्रों, मुखमंडल, जीभ, हाथों, पैरों तथा त्वचा द्वारा प्रवाहित हों। जो भी आपके साथ संपर्क में आए वह इसका अनुभव करें। ईश्वर करे कि अमर आत्मा आपके समन्वय पूर्ण स्पंदनों के विकास के द्वारा आपकी आत्मसाक्षात्कार की प्राप्ति में पथ प्रदर्शन करें।
हरि ॐ तत्सत् ।
- *स्वामी शिवानंद सरस्वती जी*
धारणा का अभ्यास क्यों करें?
योग क्या है?
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Child Pose #dailyyogapose https://yogawithankit.org/बढ़ाएं एक कदम योग की ओर Personal/ Group Training Session (Online / Offline) Inquiry:+91 9428353623
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