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26/11/2008 के मुंबई आतंकी हमले में अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले शहीद जवानों, पुलिस कर्मियों और निर्दोष नागरिकों को विनम्र श्रद्धांजलि 🪔🪔🙏

08/05/2022
08/05/2022
08/05/2022

मां का कोई दिन नहीं होता हर दिन मां का होता है 🙏❤️

Happy mother's day ❤️

Photos from Study pdf's post 07/05/2022
07/05/2022

गुरुदेव के नाम से मशहूर #रवींद्रनाथ_टैगोर का #जन्म आज ही के दिन, को कोलकाता (Kolkata) में हुआ था. विश्वविख्यात महाकाव्य ' #गीतांजलि' की रचना के लिए 1913 में उन्‍हें साहित्य के लिए #नोबेल_पुरस्कार (Nobel Prize) से सम्मानित किया गया था. वह विश्वविख्यात कवि तो थे ही साथ ही लेखक, नाटककार, संगीतकार, दार्शनिक, समाज सुधारक और चित्रकार भी थे।
उन्‍होंने अपने जीवन में दो हजार से अधिक गीतों की रचना की. उन्‍हें भारत का #'जन_गण_मन' और #बांग्‍लादेश का ' #आमार_सोनार_बांग्ला' राष्‍ट्रगान (National Anthem) लिखने का गौरव प्राप्‍त है। इनकी #मृत्यु_07_अगस्त_1941
#कलकत्ता, ब्रिटिश भारत में हुआ था।

01/05/2022

#गुजरात_और_महाराष्ट्र_कि_स्थापना_दिवस
#महाराष्ट्रदिन #गुजरातदिवस

गुजरात और महाराष्ट्र की स्थापना 1 मई, 1960 को हुई थी। दोनों राज्यों के लोग आज के दिन बड़ी धूमधाम से स्थापना दिवस मनाते हैं। 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अंतर्गत तेलुगु बोलने वालों को आंध्र प्रदेश, #कन्नड़ भाषी लोगों के लिए कर्नाटक राज्य बना, वहीं #मलयालम बोलने वालों के लिए केरल और तमिल भाषी लोगों के लिए #तमिलनाडु बना लेकिन तब भी बॉम्बे के मराठी और #गुजराती लोगों को अलग राज्य नहीं मिला। गुजराती और मराठी लोगों ने अलग राज्य की मांग के लिए #बॉम्बे में आंदोलन करना शुरू कर दिया।
अपनी मांगों को लेकर लोगों ने कई आंदोलन किए जिनमें ‘महा गुजरात आंदोलन’ हुआ। वहीं महाराष्ट्र की मांग के लिए महाराष्ट्र समिति का गठन कर किया गया।1 मई #1960 को बॉम्बे को बांटकर दो राज्य महाराष्ट्र और #गुजरात बना दिए गए। बॉम्बे को महाराष्ट्र की राजधानी बना दिया गया क्योंकि यहां पर ज्यादातर लोग मराठी बोलते हैं।

01/05/2022

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गुलाम भारत की कई दास्तां हैं, जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। आज की पीढ़ी जब उन कहानियों को सुनती है तो रगो में खून दौड़ जाता है तो कभी गर्व से सीना चौड़ा हो जाता है। कभी आंखों में आंसू आ जाते हैं, तो कभी क्रोध से भर जाते हैं। गुलाम भारत के इतिहास में एक ऐसी खूनी दास्तां भी है, जिसमें अंग्रेजो के अत्याचार और भारतीयों के नरसंहार की दर्दनाक घटना है। हर साल वह दिन जब भी आता है, उस नरसंहार की यादें ताजा हो जाती हैं। शहादत का यह दिन 13 अप्रैल को होता है। इस दिन जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था। हर भारतीय के लिए #जलियांवाला_बाग_हत्याकांड बेहद दर्दनाक घटना है, जिसमें खून की नदियां बह गईं। कुआं भारतीयों की लाशों से पट गए और मौत का वह मंजर हर किसी की रूह को चोटिल कर गया।

जलियांवाला बाग नरसंहार कब हुआ था?

पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग नाम की एक जगह है। ्रैल_1919 के दिन इसी जगह पर अंग्रेजों ने कई भारतीयों पर गोलियां बरसाई थीं। उस कांड में कई परिवार खत्म हो गए। बच्चे, महिला, बूढ़े तक को अंग्रेजो ने नहीं छोड़ा। उन्हें बंद करके गोलियों से छलनी कर दिया।

जलियांवाला बाग का दोषी कौन?

जब ब्रिटिश हुकूमत ने जलियांवाला बाग पर इतने लोगों की भीड़ देखी, तो वह बौखला गए। उनको लगा कि कहीं भारतीय 1857 की क्रांति को दोबारा दोहराने की ताक में तो नहीं। ऐसी नौबत आने से पहले ही वह भारतीयों की आवाज कुचलना चाहते थे और उस दिन अंग्रेजों ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दी। सभा में शामिल नेता जब भाषण दे रहे थे, तब #ब्रिगेडियर_जनरल_रेजीनॉल्ड_डायर वहां पहुंच गए। कहा जाता है कि इस दौरान वहां 5000 लोग पहुंचे थे। वहीं जनरल डायर ने अपने 90 ब्रिटिश सैनिकों के साथ बाग को घेर लिया। उन्होंने वहां मौजूद लोगों को चेतावनी दिए बिना ही गोलियां चलानी शुरू कर दी।

जलियांवाला बाग नरसंहार के 10 मिनट

ब्रिटिश सैनिकों ने महज 10 मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाईं। इस दौरान जलियांवाला बाग में मौजूद लोग उस मैदान से बाहर नहीं निकल सकते थे, क्योंकि बाग के चारों तरफ मकान बने थे। बाहर निकलने के लिए बस एक संकरा रास्ता था। भागने का कोई रास्ता न होने के कारण लोग वहां फंस कर रह गए।

लाशों से पट गए कुएं

अंग्रेजों की गोलियों से बचने के लिए लोग वहां स्थित एकमात्र कुए में कुद गए। कुछ देर में कुआं भी लाशों से भर गया। जलियांवाला बाग में शहीद होने वालो का सही आंकड़ा आज भी पता न चल सका लेकिन डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, तो जलियांवाला बाग में 388 शहीदों की लिस्ट है। ब्रिटिश सरकार के दस्तावेजों में 379 लोगों की मौत और 200 लोगों के घायल होने का दावा किया गया। हालांकि अनाधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, ब्रिटिश सरकार और जनरल डायर के इस नरसंहार में 1000 से ज्यादा लोग शहीद हुए थे और लगभग 2000 से अधिक भारतीय घायल हुए थे।

12/01/2022

🙏🙏🙏

12/01/2022

ार_जरुर_पढ़े 🙏
भारत में स्वामी विवेकानंद के #जन्मदिवस को ' #राष्ट्रीय_युवा_दिवस' के रूप में मनाया जाता है. स्वामी विवेकानंद महान #दार्शनिक, #आध्यात्मिक और #सामाजिक नेताओं में से एक थे. उनकी जयंती को पूरा देश युवा दिवस के रुप में मनाता है. स्वामी विवेकानंद का #जन्म ी_1863 को #कोलकाता में हुआ था। इनके पिता जी का नाम #श्री_विश्वनाथ_दत्त जो कोलकाता #हाईकोर्ट के प्रसिद्ध वकील थे। उनकी माता का नाम #भुनेश्वरी_देवी था। जो की बहुत ही धार्मिक थी। घर में धार्मिक वातावरण के कारण स्वामी जी भी धार्मिक और समाज प्रवृति के हो गए। वे एक #सच्चे_राष्ट्रभक्त🇮🇳 भी थे। उनका देशप्रेम किसी से छिपा नहीं है। वह लोगों की मदद करने से कभी भी पीछे नहीं हटते थे, बल्कि लोगों की सेवा करने को वह ईश्वर की पूजा करने के बराबर मानते थे. स्वामी विवेकानंद आज भी करोड़ों युवाओं को प्रेरणा देते हैं.

ितंबर_1893 में #अमेरिका के #शिकागो में धर्म संसद का आयोजन हुआ, जिसमें स्वामी विवेकानंद भी शामिल हुए थे। यहां उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत हिंदी में ये कहकर की कि ' #अमेरिका_के_भाइयों_और_बहनों'। उनके भाषण पर #आर्ट_इंस्टीट्यूट_ऑफ_शिकागो में पूरे दो मिनट तक तालियां बजती रहीं। जो भारत के इतिहास में एक गर्व और सम्मान की घटना के तौर पर दर्ज हो गई।

स्वामी विवेकानंद ने 1897 में कोलकाता में #रामकृष्ण_मिशन की स्थापना की थी। वहीं 1898 में गंगा नदी के किनारे #बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना भी की थी।.

स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन को युवाओं के लिए समर्पित करने की #शुरुआत_1984 में हो गई थी। उन दिनों भारत सरकार ने कहा था कि स्वामी विवेकानंद का दर्शन, आदर्श और काम करने का तरीका भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा का एक बड़ा स्रोत हो सकते हैं। तब से स्वामी विवेकानंद की जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर मनाने की घोषणा कर दी गई।


आइए जानते हैं उनके कुछ विचार और जीवन जीने के सूत्र और प्रेरणादायक विचार जो जीवन में ऊर्जा भर देते हैं

#प्रेरणादायक_विचार
1- जिस समय जिस काम का संकल्प करो, उस काम को उसी समय पूरा करो, वरना लोग आप पर विश्वास नहीं करेंगे.
2- जीवन में ज्यादा रिश्ते होना जरूरी नहीं हैं, बल्कि जो रिश्ते हैं उनमें जीवन होना जरूरी है.
3- दिन में एक बार खुद से जरूर बात करो, वरना आप दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति से बात करने का मौका खो देंगे.
4- दिल और दिमाग के टकराव में हमेशा अपने दिल की बात सुनो
5- खुद को कभी कमजोर न समझो, क्योंकि ये सबसे बड़ा पाप है.
6- उठो, जागो और तब तक नहीं रुको, जब तक तुम अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर लेते.
7- जितना बड़ा संघर्ष होगा, जीत उतनी ही शानदार होगी.
8- लोग तुम्हारी स्तुति करें या निन्दा, लक्ष्य तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या न हो, तुम्हारा देहांत आज हो या युग में, तुम न्यायपथ से कभी भ्रष्ट न हो.
8- जो लोग आपकी मदद करते हैं उन्हें कभी मत भूलो। जो आपको प्यार करते हैं उनसे कभी घृणा न करो। जो लोग तुम पर भरोसा करते हैं उन्हें कभी भी धोखा न दो।
9- जब तक तुम अपने आप पर भरोसा नहीं कर सकते तब तक तुम्हें ईश्वर पर भरोसा नहीं हो सकता।
10- अपने मस्तिष्क को ऊंचे विचारों और उच्चतम आदर्शों से भर दो। इसके बाद आप जो भी कार्य करेंगे वह महान होगा।
11- कोई भी चीज, जो तुम्हें शारीरिक, मानसिक और धार्मिक रूप से कमजोर करती है, उसे जहर की भांति त्याग दो।
12- पढ़ने के लिए जरूरी है एकाग्रता, एकाग्रता के लिए जरूरी है ध्यान। ध्यान से ही हम इन्द्रियों पर संयम रखकर एकाग्रता प्राप्त कर सकते है।
✍️ 🙏

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11/01/2022

श्री लाल बहादुर शास्त्री
9 जून, 1964 – 11 जनवरी, 1966 | कॉन्‍ग्रेस
श्री लाल बहादुर शास्त्री
श्री लाल बहादुर शास्त्री का #जन्म_2_अक्टूबर_1904 को उत्तर प्रदेश के #वाराणसी से सात मील दूर एक छोटे से रेलवे टाउन, #मुगलसराय में हुआ था। उनके पिता एक स्कूल शिक्षक थे। जब #लाल_बहादुर_शास्त्री केवल डेढ़ वर्ष के थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया था। उनकी माँ अपने तीनों बच्चों के साथ अपने पिता के घर जाकर बस गईं।

उस छोटे-से शहर में लाल बहादुर की स्कूली शिक्षा कुछ खास नहीं रही लेकिन गरीबी की मार पड़ने के बावजूद उनका बचपन पर्याप्त रूप से खुशहाल बीता।

उन्हें वाराणसी में चाचा के साथ रहने के लिए भेज दिया गया था ताकि वे उच्च विद्यालय की शिक्षा प्राप्त कर सकें। घर पर सब उन्हें नन्हे के नाम से पुकारते थे। वे कई मील की दूरी नंगे पांव से ही तय कर विद्यालय जाते थे, यहाँ तक की भीषण गर्मी में जब सड़कें अत्यधिक गर्म हुआ करती थीं तब भी उन्हें ऐसे ही जाना पड़ता था।

बड़े होने के साथ-ही लाल बहादुर शास्त्री विदेशी दासता से आजादी के लिए देश के संघर्ष में अधिक रुचि रखने लगे। वे भारत में ब्रिटिश शासन का समर्थन कर रहे भारतीय राजाओं की महात्मा गांधी द्वारा की गई निंदा से अत्यंत प्रभावित हुए। लाल बहादुर शास्त्री जब केवल ग्यारह वर्ष के थे तब से ही उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर कुछ करने का मन बना लिया था।

#गांधी_जी_ने_असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए अपने देशवासियों से आह्वान किया था, इस समय लाल बहादुर शास्त्री केवल सोलह वर्ष के थे। उन्होंने महात्मा गांधी के इस आह्वान पर अपनी पढ़ाई छोड़ देने का निर्णय कर लिया था। उनके इस निर्णय ने उनकी मां की उम्मीदें तोड़ दीं। उनके परिवार ने उनके इस निर्णय को गलत बताते हुए उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन वे इसमें असफल रहे। लाल बहादुर ने अपना मन बना लिया था। उनके सभी करीबी लोगों को यह पता था कि एक बार मन बना लेने के बाद वे अपना निर्णय कभी नहीं बदलेंगें क्योंकि बाहर से विनम्र दिखने वाले लाल बहादुर अन्दर से चट्टान की तरह दृढ़ हैं।

लाल बहादुर शास्त्री ब्रिटिश शासन की अवज्ञा में स्थापित किये गए कई राष्ट्रीय संस्थानों में से एक वाराणसी के काशी विद्या पीठ में शामिल हुए। यहाँ वे महान विद्वानों एवं देश के राष्ट्रवादियों के प्रभाव में आए। विद्या पीठ द्वारा उन्हें प्रदत्त स्नातक की डिग्री का नाम ‘शास्त्री’ था लेकिन लोगों के दिमाग में यह उनके नाम के एक भाग के रूप में बस गया।

1927 में उनकी शादी हो गई। उनकी #पत्नी_ललिता देवी मिर्जापुर से थीं जो उनके अपने शहर के पास ही था। उनकी शादी सभी तरह से पारंपरिक थी। दहेज के नाम पर एक चरखा एवं हाथ से बुने हुए कुछ मीटर कपड़े थे। वे दहेज के रूप में इससे ज्यादा कुछ और नहीं चाहते थे।

1930 में महात्मा गांधी ने नमक कानून को तोड़ते हुए दांडी यात्रा की। इस प्रतीकात्मक सन्देश ने पूरे देश में एक तरह की क्रांति ला दी। लाल बहादुर शास्त्री विह्वल ऊर्जा के साथ स्वतंत्रता के इस संघर्ष में शामिल हो गए। उन्होंने कई विद्रोही अभियानों का नेतृत्व किया एवं कुल सात वर्षों तक ब्रिटिश जेलों में रहे। आजादी के इस संघर्ष ने उन्हें पूर्णतः परिपक्व बना दिया।

आजादी के बाद जब कांग्रेस सत्ता में आई, उससे पहले ही राष्ट्रीय संग्राम के नेता विनीत एवं नम्र लाल बहादुर शास्त्री के महत्व को समझ चुके थे। #1946 में जब #कांग्रेस_सरकार का गठन हुआ तो इस ‘छोटे से डायनमो’ को देश के शासन में रचनात्मक भूमिका निभाने के लिए कहा गया। उन्हें अपने #गृह_राज्य_उत्तर_प्रदेश_का_संसदीय सचिव नियुक्त किया गया और जल्द ही वे गृह मंत्री के पद पर भी आसीन हुए। कड़ी मेहनत करने की उनकी क्षमता एवं उनकी दक्षता उत्तर प्रदेश में एक लोकोक्ति बन गई। वे 1951 में नई दिल्ली आ गए एवं केंद्रीय मंत्रिमंडल के कई विभागों का प्रभार संभाला – रेल मंत्री; परिवहन एवं संचार मंत्री; वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री; गृह मंत्री एवं नेहरू जी की बीमारी के दौरान बिना विभाग के मंत्री रहे। उनकी प्रतिष्ठा लगातार बढ़ रही थी। एक रेल दुर्घटना, जिसमें कई लोग मारे गए थे, के लिए स्वयं को जिम्मेदार मानते हुए उन्होंने रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। देश एवं संसद ने उनके इस अभूतपूर्व पहल को काफी सराहा। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने इस घटना पर संसद में बोलते हुए लाल बहादुर शास्त्री की ईमानदारी एवं उच्च आदर्शों की काफी तारीफ की। उन्होंने कहा कि उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री का इस्तीफा इसलिए नहीं स्वीकार किया है कि जो कुछ हुआ वे इसके लिए जिम्मेदार हैं बल्कि इसलिए स्वीकार किया है क्योंकि इससे संवैधानिक मर्यादा में एक मिसाल कायम होगी। रेल दुर्घटना पर लंबी बहस का जवाब देते हुए लाल बहादुर शास्त्री ने कहा; “शायद मेरे लंबाई में छोटे होने एवं नम्र होने के कारण लोगों को लगता है कि मैं बहुत दृढ नहीं हो पा रहा हूँ। यद्यपि शारीरिक रूप से में मैं मजबूत नहीं है लेकिन मुझे लगता है कि मैं आंतरिक रूप से इतना कमजोर भी नहीं हूँ।”

अपने मंत्रालय के कामकाज के दौरान भी वे कांग्रेस पार्टी से संबंधित मामलों को देखते रहे एवं उसमें अपना भरपूर योगदान दिया। 1952, 1957 एवं 1962 के आम चुनावों में पार्टी की निर्णायक एवं जबर्दस्त सफलता में उनकी सांगठनिक प्रतिभा एवं चीजों को नजदीक से परखने की उनकी अद्भुत क्षमता का बड़ा योगदान था।

तीस से अधिक वर्षों तक अपनी समर्पित सेवा के दौरान लाल बहादुर शास्त्री अपनी उदात्त निष्ठा एवं क्षमता के लिए लोगों के बीच प्रसिद्ध हो गए। विनम्र, दृढ, सहिष्णु एवं जबर्दस्त आंतरिक शक्ति वाले शास्त्री जी लोगों के बीच ऐसे व्यक्ति बनकर उभरे जिन्होंने लोगों की भावनाओं को समझा। वे दूरदर्शी थे जो देश को प्रगति के मार्ग पर लेकर आये। लाल बहादुर शास्त्री महात्मा गांधी के राजनीतिक शिक्षाओं से अत्यंत प्रभावित थे। अपने गुरु महात्मा गाँधी के ही लहजे में एक बार उन्होंने कहा था – “मेहनत प्रार्थना करने के समान है।” महात्मा गांधी के समान विचार रखने वाले लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठ पहचान हैं।

लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु का रहस्य आज तक सुलझाया नहीं जा सका है. शास्त्री जी का #निधन_11_जनवरी_1966 को #उजबेकिस्तान की राजधानी #ताशकंद में हुआ था. तब उजबेकिस्तान सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करता था. कुछ लोग शास्त्री जी की #मृत्यु को स्वाभाविक मानते हैं तो कुछ लोग कहते हैं कि उनके साथ षडयंत्र हुआ था . इसलिए आज हमने शास्त्री जी से जुड़े इतिहास का अध्ययन किया है.
✍️ 😊

11/01/2022

आदरणीय #लाल_बहादुर_शास्त्री जी को उनकी पुण्यतिथि पर Study pdf download की तरफ से 🙏कोटि कोटि नमन 🙏

10/01/2022

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