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इसलिए पूजा में नहीं होता सरयू नदी के जल का प्रयोग
आज भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या में राममंदिर के निर्माण के लिए भूमि पूजन का आयोजन हुआ। इस अवसर पर अयोध्या नगरी की शोभा का वर्णन कर पाना कठिन हो रहा है। इस अवसर पर राम नगरी के चरण पखारने वाली सरयू नदी वर्णन ना हो तो अयोध्या की गाथा अधूरी रह जाएगी क्योंकि श्रीराम के जन्म से वनगमन और बैकुंठ गमन की यह साक्षी रही है। फिर भी इस नदी के साथ एक शाप है जिसकी वजह से पूजा कर्म में इसके जल का प्रयोग नहीं होता है। आइए जानें सरयू नदी की कुछ रोचक बातें।
कैलाश से निकलती है सरयू नदी
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के अवतरण व लीला परमधाम-गमन की साक्षी रही सरयू नदी का उदगम स्थल यूं तो कैलास मानसरोवर माना जाता है, परंतु अब यह नदी उत्तर प्रदेश के लखीमपुरी खीरी जिले के खैरीगढ़ रियासत की राजधानी रही सिंगाही के जंगल की झील से श्रीराम नगरी अयोध्या तक ही बहती है। मत्स्यपुराण के अध्याय 121 और वाल्मीकि रामायण के 24वें सर्ग में इस नदी का वर्णन मिलता है। इसमें कहा गया है कि हिमालय पर कैलाश पर्वत है, जिससे लोकपावन सरयू निकली है, यह अयोध्यापुरी से सट कर बहती है।
पुराणों में सरयू नदी का वर्णन
वामन पुराण के 13वें अध्याय, ब्रह्म पुराण के 19वें अध्याय और वायुपुराण के 45वें अध्याय में गंगा, यमुना, गोमती, सरयू और शारदा आदि नदियों का हिमालय से प्रवाहित होना बताया गया है। सरयू का प्रवाह कैलास मानसरोवर से कब बंद हुआ, इसका विवरण तो नहीं मिलता, लेकिन सरस्वती व गोमती की तरह इस नदी में भी प्रवाह भौगोलिक कारणों से बंद होना माना जा रहा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सरयू व शारदा नदी का संगम तो हुआ ही है, सरयू व गंगा का संगम श्रीराम के पूर्वज भगीरथ ने करवाया था।
से प्रगट हुई सरयू नदी
पुराणों में वर्णित है कि सरयू भगवान विष्णु के नेत्रों से प्रगट हुई हैं। आनंद रामायण के यात्रा कांड में उल्लेख है कि प्राचीन काल में शंखासुर दैत्य ने वेदों को चुराकर समुद्र में डाल दिया और स्वयं भी वहां छिप गया था। तब भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण कर दैत्य का वध किया और ब्रह्माजी को वेद सौंपकर अपना वास्तविक स्वरूप धारण किया। उस समय हर्ष के कारण भगवान विष्णु की आंखों से प्रेमाश्रु टपक पड़े। ब्रह्माजी ने उस प्रेमाश्रु को मानसरोवर में डालकर उसे सुरक्षित कर लिया। इस जल को महापराक्रमी वैवस्वत महाराज ने बाण के प्रहार से मानसरोवर से बाहर निकाला। यही जलधारा सरयू नदी कहलाई।
स्वर्ग के समान अयोध्या नगरी
बाद में भगीरथ अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाए और उन्होंने ही गंगा व सरयू का संगम करवाया।
‘अवधपुरी मम पुरी सुहावनि,
दक्षिण दिश बह सरयू पावनि।‘
तुलसी कृत मानस की इस चौपाई में सरयू नदी को अयोध्या की पहचान का प्रमुख प्रतीक बताया गया है। राम की जन्मभूमि अयोध्या उत्तर प्रदेश में सरयू नदी के दाएं तट पर स्थित है। अयोध्या हिंदुओं के प्राचीन व सात पवित्र तीर्थस्थलों (सप्तपुरियों) में एक है। अयोध्या को अथर्ववेद में ईशपुरी बताया गया है और इसके वैभव की तुलना स्वर्ग से की गयी है। राममंदिर भूमि पूजन के अवसर सजी हुई अयोध्या को देखकर तो स्वर्ग की अनुभूति आप अभी भी कर सकते हैं।
ऐतिहासिक और पौराणिक मान्यताएं
नदियों में ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण सरयू नदी का अस्तित्व अब खतरे में है। रामायण के अनुसार, भगवान राम ने इसी नदी में प्रवेश करके जल समाधि ली थी। उत्तर रामायण में उल्लेख मिलता है कि भगवान राम के सरयू में जल समाधि लेने पर शिवजी बहुत नाराज हुए। क्रोधित होकर शिवजी ने सरयू को शाप दे दिया कि तुम्हारे जल में आचमन करने पर भी लोगों को पाप लगेगा। तुम्हारे जल में कोई स्नान भी नहीं करेगा। सरयू इस शाप से आहत होकर शिव की शरण में पहुंची और बोली कि मेरे जल में भगवान के जल समाधि लेने में मेरा क्या अपराध है, यह तो पहले से ही विधि का विधान बना हुआ था। शिवजी सरयू के तर्क से शांत हुए और कहा कि मेरा शाप व्यर्थ नहीं जाएगा, तुम्हारे जल में स्नान करने से पाप नहीं लगेगा, लेकिन तुम्हारे जल का प्रयोग पूजा में नहीं होगा।
बहराइच से हुआ नदी का उद्गम
सरयू नदी का उद्गम उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले से हुआ है। बहराइच से निकलकर यह नदी गोंडा से होती हुई अयोध्या तक जाती है। पहले यह नदी गोंडा के परसपुर तहसील में पसका नामक तीर्थ स्थान पर घाघरा नदी से मिलती थी। अब यहां बांध बन जाने से यह नदी पसका से करीब आठ किमी आगे चंदापुर नामक स्थान पर मिलती है।
ऋग्वेद में सरयू नदी का जिक्र
अयोध्या तक यह नदी सरयू के नाम से जानी जाती है, लेकिन उसके बाद यह नदी घाघरा के नाम से जानी जाती है। सरयू की कुल लंबाई करीब 160 किमी है। भगवान श्री राम के जन्मस्थान अयोध्या से होकर बहने से हिंदू धर्म में इस नदी का विशेष महत्व है। सरयू नदी का वर्णन ऋग्वेद में भी मिलता है। CS
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Good morning
एक बार भगवान ने जब इंसान की रचना की तो उसे दो पोटली दी। कहा एक पोटली को आगे की तरफ लटकाना और दूसरी को कंधे के पीछे पीठ पर।आदमी दोनों पोटलियां लेकर चल पड़ा।*हाँ, भगवान ने उसे ये भी कहा था कि आगे वाली पोटली पर नजर रखना पीछे वाली पर नहीं। समय बीतता गया। वह आदमी आगे वाली पोटली पर बराबर नजर रखता। आगे वाली पोटली में उसकी कमियां थीं और पीछे वाली में दुनिया की। वे अपनी कमियां सुधारता गया और तरक्की करता गया। पीछे वाली पोटली को इसने नजरंदाज कर रखा था।
एक दिन तालाब में नहाने के पश्चात, दोनों पोटलियां अदल बदल हो गई। आगे वाली पीछे और पीछे वाली आगे आ गई।अब उसे दुनिया की कमियां ही कमियां नजर आने लगी। ये ठीक नहीं,वो ठीक नहीं। बच्चे ठीक नहीं, पड़ोसी बेकार है, सरकार निक्कमी है आदि-आदि। अब वह खुद के अलावा सब में कमियां ढूंढने लगा।
परिणाम ये हुआ कि कोई नहीं सुधरा, पर उसका पतन होने लगा। वह चक्कर में पड़ गया कि ये क्या हुआ है? वो वापस भगवान के पास गया। भगवान ने उसे समझाया कि जब तक तेरी नजर अपनी कमियों पर थी, तू तरक्की कर रहा था। जैसे ही तूने दूसरों में मीन-मेख निकालने शुरू कर दिए, वहीं से तेरा पतन शुरू हो गया।
हकीकत भी यही है कि हम किसी को नहीं सुधार सकते, हम अपने आपको सुधार ले इसी मै हमारा कल्याण है। हम सुधरेंगे तो जग सुधरेगा। हम यही सोचते है कि सबको ठीक करके ही शांति प्राप्त होगी, जबकि खुद को ठीक नहीं करते!! क्या खुब लिखा है-बीतता वक़्त है, लेकिन !ख़र्च, हम हो जाते हैं..!!
कैसे "नादान"है हम
दुःख आता है तो,"अटक" जाते है, औऱ सुख आता है तो, "भटक" जाते है
आपका दिन मंगलमय हो।
जय माता दी 🙏
⊰╾ঔৣ तत्त्वबोध शिवोहम🌹●❥
~~~~~~~~~~~~~~~~~
🌹कलयुग के दानवीर
यह जानकर सुखद आश्चर्य होता है कि पूज्यनीय रामचंद्र डोंगरे जी महाराज जैसे भागवताचार्य भी हुए हैं जो कथा के लिए एक रुपया भी नहीं लेते थे 🙏 मात्र तुलसी पत्र लेते थे।
जहाँ भी वे भागवत कथा कहते थे, उसमें जो भी दान दक्षिणा चढ़ावा आता था, उसे उसी शहर या गाँव में गरीबों के कल्याणार्थ दान कर देते थे। कोई ट्रस्ट बनाया नहीं और किसी को शिष्य भी बनाया नहीं।
अपना भोजन स्वयं बना कर ठाकुरजी को भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करते थे।
उनके अंतिम प्रवचन में चौपाटी में एक करोड़ रुपए जमा हुए थे, जो गोरखपुर के कैंसर अस्पताल के लिए दान किए गए थे।-स्वंय कुछ नहीं लिया|
डोंगरे जी महाराज की शादी हुई थी। प्रथम-रात के समय उन्होंने अपनी धर्मपत्नी से कहा था- 'देवी मैं चाहता हूं कि आप मेरे साथ 108 भागवत कथा का पारायण करें, उसके बाद यदि आपकी इच्छा होगी तो हम ग्रहस्थ आश्रम में प्रवेश करेंगे'।
इसके बाद जहाँ -जहाँ डोंगरे जी महाराज भागवत कथा करने जाते, उनकी पत्नी भी साथ जाती।108 भागवत पूर्ण होने में करीब सात वर्ष बीत गए।
तब डोंगरे जी महाराज पत्नी से बोले-' अब अगर आपकी आज्ञा हो तो हम ग्रहस्थ आश्रम में प्रवेश कर संतान उत्पन्न करें'।
इस पर उनकी पत्नी ने कहा,' आपके श्रीमुख से 108 भागवत श्रवण करने के बाद मैंने गोपाल को ही अपना पुत्र मान लिया है, इसलिए अब हमें संतान उत्पन्न करने की कोई आवश्यकता नहीं है'।
धन्य हैं ऐसे पति-पत्नी, धन्य है उनकी भक्ति और उनका कृष्ण प्रेम।
डोंगरे जी महाराज की पत्नी आबू में रहती थीं और डोंगरे जी महाराज देश दुनिया में भागवत रस बरसाते थे।
पत्नी की मृत्यु के पांच दिन पश्चात उन्हें इसका पता चला।
वे अस्थि विसर्जन करने गए, उनके साथ मुंबई के बहुत बड़े सेठ थे- रतिभाई पटेल जी |
उन्होंने बाद में बताया कि डोंगरे जी महाराज ने उनसे कहा था ‘कि रति भाई मेरे पास तो कुछ है नहीं और अस्थि विसर्जन में कुछ तो लगेगा। क्या करें’ ?
फिर महाराज आगे बोले थे, ‘ऐसा करो, पत्नी का मंगलसूत्र और कर्णफूल- पड़ा होगा उसे बेचकर जो मिलेगा उसे अस्थि विसर्जन क्रिया में लगा देते हैं’।
सेठ रतिभाईपटेल ने रोते हुए बताया था....
जिन महाराजश्री के इशारे पर लोग कुछ भी करने को तैयार रहते थे, वह महापुरुष कह रहा था कि पत्नी के अस्थि विसर्जन के लिए पैसे नहीं हैं।
हम उसी समय मर क्यों न गए l
फूट फूट कर रोने के अलावा मेरे मुँह से एक शब्द नहीं निकल रहा था।
ऐसे महान विरक्त महात्मा संत के चरणों में कोटि-कोटि नमन भी कम है 🙏
यह प्रसंग इसलिए संप्रेषित किया
ताकि वर्तमान कथाकार-------?
꧁༒ॐ हर हर महादेव ॐ ༒꧂
।। साधना के स्तर।।
यह बात मत भूलिए कि आप सब साधक है। क्योंकि मनुष्य योनि में जन्म होते ही अन्य प्राणियों से अधिक विशिष्टता तो आपमें आ ही चुकी है।
बस आवश्यकता इस बात की है कि आप सृष्टि का भला करने के लिए कितने सजग हैं।
जो जितनी मात्रा में सजग होकर सृष्टि हित करता है वही उसकी साधना है।
उस आर्जित स्तर के अनुसार ही एक दैवीय बल उत्पन्न होकर आपकी जमा पूंजी के रूप में आपका कार्य करता है।
सृष्टि हित करने में किस कार्य से कितनी मात्रा में दैवीय बल उत्पन्न होता है यह अनुसंधान पाना जरा मुश्किल है।
क्योंकि एक अमीर आदमी द्वारा सौ लोगों को भोजन कराने की तुलना में किसी गरीब व्यक्ति द्वारा कुछ चींटियों के लिए डाला गया आटा भी हो सकता है अधिक पुण्यदाई हो।
अतः सृष्टि हित में बल, सामर्थ्य बुद्धि की अपेक्षा मनोयोग और अपनी सामर्थ्य अर्थात उस काम को आप कितनी प्रसन्नता और मन से कर रहे हैं यह महत्वपूर्ण है।
अमीर या बलवान का दायित्व निर्धन और बलहीनों से कहीं अधिक बनता है।
एक जरुरतमंद को सीट देने में एक बलवान और कमजोर व्यक्ति दोनों आगे आएं तो कमजोर को अधिक पुण्य मिलता है। क्योंकि बलिष्ठ को बल भगवान् ने अधिक दिया है, परन्तु कमजोर की हिम्मत देखिए और आप ही फ़ैसला करिए।
हर काम को फायदे से न जोड़कर सृष्टि के कायदे से जोड़ना चाहिए।
आप अपने बच्चे को आइसक्रीम दिलवा रहे हैं तो गौर कीजिए उस बच्चे की ओर जो आपसे मांग नहीं रहा है परन्तु आपकी ओर आशान्वित दृष्टि से देख रहा है।
उसको भी ऐन मौके पर यदि आप आईसक्रीम दिला देते हैं तो उसका फल एक विधिपूर्वक किए गए यज्ञ के समान फलदाई हो जाता है।
क्योंकि यहां छोटे बच्चे में बैठा परमात्मा ही आपको देख रहा है कि आप इस मौके पर कैसा व्यवहार बरतेंगे।
ऐसे अनेक छोटे मौके आते हैं जो फल के हिसाब से बहुत बड़े होते हैं।
इनका फल भी आपको ऐसे मिलता है --
१. गर्मी की चिलचिलाती धूप में आप पर बादल का टुकड़ा छांव कर लेता है।
२.बारिश की बूंदें पड़ने लगती हैं,आप रस्ते में होते हैं लेकिन आपके गन्तव्य पर पहुंचने तक बूंदें हल्की रहती हैं और पहुंचते ही तेज हो जाती है।
३.अचानक छोटी/बड़ी समस्या से आपको आकर कोई अचानक निकाल देता है।
बहुत गहरे अनुभव आपको बता रहे हैं, आप भी गौर करें।
कुछ कहते हैं --
वह महात्मा ऐसा था, वैसा था , जो कह देता था हो जाता था।
मैं कहता हूं --
अरे भाई, वह सच्चा सृष्टि हित साधक था। सृष्टि परमात्मा की फुलवारी है,जो इस फुलवारी का ध्यान रखेगा, परमात्मा उसको अपना विश्वासपात्र मानकर उसे फुलवारी के पेड़ पौधों को लगाने, संवारने काट छांट का अधिकार दे देता है।
मुनीम यदि विश्वासपात्र है तो सेठ उसे धन,खजाने आदि के अधिकार दे देता है।
यह सब साधना के स्तर हैं।
जो भोजन करते समय उपस्थित अन्य कीट, पतंग,प्राणियों का पेट भरता है चाहे अपना पेट थोड़ा खाली ही रहे/ दूसरी तरफ मात्र अपना पेट भरने वाला..
इन दोनों में बहुत अंतर है।
आप पहचानिए, और अपनी साधना का स्तर बढ़ाईये।
यह शुरुआत अभी और जहां खड़े हैं वहीं से शुरू करें।
परमात्मा की फुलवारी इस सृष्टि के संरक्षण,पोषण, विकास में सहयोग करें।
यह सृष्टि ही आदिशक्ति है।
इसकी नवधा भक्ति ही नवरात्र सेवा है।
मीरा का मान रखने के लिये स्वयं श्री कृष्ण ने स्त्री रूप धारण किया l
राणा सांगा के पुत्र और अपने पति राजा भोजराज की मृत्यु के बाद जब संबन्धीयो के मीरा बाई पर अत्याचार अपने चरम पे जा पहुँचे तो मीरा बाई मेवाड़ को छोड़कर तीर्थ को निकल गई। घूमते-घूमते वे वृन्दावन धाम जा पहुँची।
जीव गोसांई वृंदावन में वैष्णव-संप्रदाय के मुखिया थे। मीरा जीव गोसांई के दर्शन करना चाहती थीं, लेकिन उन्होंने मीरा बाई से मिलने से मना कर दिया। उन्होंने मीरा को संदेशा भिजवाया कि वह किसी औरत को अपने सामने आने की इजाजत नहीं देंगे। मीराबाई ने इसके जवाब में अपना संदेश भिजवाया कि ‘वृंदावन में हर कोई औरत है। अगर यहां कोई पुरुष है तो केवल गिरिधर गोपाल। आज मुझे पता चला कि वृंदावन में कृष्ण के अलावा यहां कोई और भी पुरुष है।
जीव गुसाईं ने सुबह जब भगवान कृष्ण के मंदिर के पट खोले तो हैरत से उनकी आँखें फटी रह गई, सामने विराजमान भगवान कृष्ण की मूर्ति घाघरा चोली पहने हुये थी, कानों में कुंडल, नाक में नथनी, पैरों में पाजेब, हाथों में चूड़ियाँ मतलब वे औरत के संपूर्ण स्वरूप को धारण किये हुये थे।
जीव गुसाईं ने मंदिर सेवक को आवाज लगाई, किसने किया ये सब ??
कृष्ण की सौगंध पुजारी जी मंदिर में आपके जाने के बाद किसी का प्रवेश नही हुआ ये पट आपने ही बंद किये और आपने ही खोले।
जीव गुसाईं अचंभित थे, सेवक बोला कुछ कहूँ पुजारी जी -
वे खोए-खोए से बोले, हाँ बोलो..
पास ही धर्मशाला में एक महिला आई हुई हैं जिसने कल आपसे मिलने की इच्छा जताई थी, आप तो किसी महिला से मिलते नहीं इसलिये आपने उनसे मिलने से मना कर दिया, परन्तु लोग कहते हैं कि वो कोई साधारण महिला नही उनके एकतारे में बड़ा जादू हैं कहते हैं वो जब भजन गाती हैं तो हर कोई अपनी सुधबुध बिसरा जाता हैं, कृष्ण भक्ति में लीन जब वो नाचती हैं तो स्वयं कृष्ण का स्वरूप जान पड़ती हैं, आपने उनसे मिलने से इंकार किया कही ऐसा तो नही भगवान जी आपको कोई संदेश देना चाहते हो ??
जीव गुसाईं तुरंत समझ गए कि उनसे बहुत बड़ी भूल हो गई हैं, मीरा बाई कोई साधारण महिला नही अपितु कोई परम कृष्णभक्त हैं।
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जीव गुसाईं मीरा जी के सामने नतमस्तक हो गये और भरे कंठ से बोले मुझ अज्ञानी को आज आपने भक्ति का सही स्वरूप दिखाया हैं देवी इसके लिये मैं सदैव आपका आभारी रहूंगा।आईए चलकर स्वयं अपनी भक्ति की शक्ति देखिये।
मीरा बाई केवल मुस्कुराई वे कृष्ण कृष्ण करती उनके पीछे हो चली। मंदिर पहुँचकर जीव गौसाई एक बार फिर अचंभित हुये कृष्ण भगवान वापस अपने स्वरूप में लौट आये थे,पर एक अचम्भा और भी था उन्हें कभी कृष्ण की मूर्ति में मीरा बाई दिखाई पड़ती तो कभी मीराबाई में कृष्ण।
राधे राधे 🙏
#साला" शब्द की रोचक जानकारी
हम प्रचलन की बोलचाल में साला शब्द को एक "गाली" के रूप में देखते हैं साथ ही "धर्मपत्नी" के भाई/भाइयों को भी "साला", "सालेसाहब" के नाम से इंगित करते हैं।
"पौराणिक कथाओं" में से एक "समुद्र मंथन" में हमें एक जिक्र मिलता है, मंथन से जो 14 दिव्य रत्न प्राप्त हुए थे वो थे :
कालकूट (हलाहल), ऐरावत, कामधेनु, उच्चैःश्रवा, कौस्तुभमणि, कल्पवृक्ष, रंभा (अप्सरा), महालक्ष्मी, #शंख (जिसका नाम साला था!)*, वारुणी मदिरा, चन्द्रमा, शारंग धनुष, गंधर्व, और अंत में #अमृत।
"लक्ष्मीजी" मंथन से "स्वर्ण" के रूप में निकली थी, इसके बाद जब "साला शंख" निकला, तो उसे लक्ष्मी जी का भाई कहा गया!
दैत्य और दानवों ने कहा कि अब देखो लक्ष्मी जी का भाई साला (🐚शंख) आया है ..
तभी से ये प्रचलन में आया कि नव विवाहिता "बहु" या धर्मपत्नी जिसे हम "गृहलक्ष्मी" भी कहते है, उसके भाई को बहुत ही पवित्र नाम "साला" कहकर पुकारा जाता हैं।
समुद्र मंथन के दौरान "पांचजन्य साला शंख" प्रकट हुआ, इसे भगवान विष्णु ने अपने पास रख लिया।
इस शंख को "विजय का प्रतीक" माना गया है, साथ ही इसकी ध्वनि को भी बहुत ही शुभ माना गया है।
विष्णु पुराण के अनुसार माता लक्ष्मी समुद्रराज की पुत्री हैं तथा शंख उनका सहोदर भाई है।
अतः यह भी मान्यता है कि जहाँ शंख है, वहीं लक्ष्मी का वास होता है।
इन्हीं कारणों से हिन्दुओं द्वारा पूजा के दौरान शंख को बजाया जाता है।
जब भी धन-प्राप्ति के उपाय करो "🐚शंख" को कभी नजर अंदाज ना करे, लक्ष्मी जी का चित्र या प्रतिमा के नजदीक रखें।
जब भी किसी जातक का साला या जातिका का भाई खुश होता है तो ये उनके यहाँ "धन आगमन" का शुभ सूचक होता है और इसके विपरीत साले से संबंध बिगाड़ने पर जातक घोर दरिद्रता का जीवन जीने लगता है।
अतः सालेसाहब को सदैव प्रसन्न रखे ..
लक्ष्मी स्वंय चलकर आपके घर दस्तक देगी।
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Hasna mana hai
दिसंबर 2022 के व्रत त्योहार
दिसंबर माह के व्रत-त्यौहार
3 दिसंबर (शनिवार) मोक्षदा एकादशी, गीता जयंती
5 दिसंबर (सोमवार) प्रदोष व्रत (शुक्ल)
7 दिसंबर (मंगलवार)- दत्त पूर्णिमा
8 दिसंबर (गुरुवार) मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत
11 दिसंबर (रविवार) संकष्टी चतुर्थी
16 दिसंबर (शुक्रवार)- रुक्मिणी अष्टमी/ खर मास आरंभ (Khar Maas 2022)
16 दिसंबर (शुक्रवार) धनु संक्रांति
19 दिसंबर (सोमवार) सफला एकादशी
21 दिसंबर (बुधवार) प्रदोष व्रत (कृष्ण), मासिक शिवरात्रि
23 दिसंबर (शुक्रवार) पौष अमावस्या
25 दिसंबर (रविवार) क्रिसमस
दिसंबर माह में मनाए जाएंगे ये इवेंट्स
दिसंबर माह में त्योहारों के अलावा कई दूसरे इवेंट्स भी मनाए जाएंगे, जिसमें 1 -दिसंबर (गुरुवार) को विश्व एड्स दिवस, 2-दिसंबर (शुक्रवार) विश्व कंप्यूटर साक्षरता दिवस, 3-दिसंबर (शनिवार) विकलांग लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस, विश्व संरक्षण दिवस, 4-दिसंबर (रविवार) को नौसेना दिवस मनाया जाएगा.
दिसंबर माह के इवेंट्स
दिसंबर में महत्वपूर्ण दिनों की सूची
1-दिसंबर (गुरुवार) विश्व एड्स दिवस
2-दिसंबर (शुक्रवार) विश्व कंप्यूटर साक्षरता दिवस
दासता के उन्मूलन का अंतर्राष्ट्रीय दिवस
3-दिसंबर (शनिवार) विकलांग लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस
विश्व संरक्षण दिवस
4-दिसंबर (रविवार) नौसेना दिवस
5-दिसंबर (सोमवार) आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक दिवस
7-दिसंबर ((बुधवार) सशस्त्र सेना झंडा दिवस
अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन दिवस
9-दिसंबर (शुक्रवार) भ्रष्टाचार के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस
10-दिसंबर (शनिवार) मानवाधिकार दिवस
11-दिसंबर (रविवार) अंतर्राष्ट्रीय पर्वतीय दिवस
14-दिसंबर (बुधवार) अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा दिवस
18-दिसंबर (रविवार) अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी दिवस
19-दिसंबर (सोमवार) गोवा का मुक्ति दिवस
20-दिसंबर (मंगलावऱ) अंतर्राष्ट्रीय मानव एकजुटता
23-दिसंबर (शुक्रवार) किसान दिवस (किसान दिवस)
29-दिसंबर (गुरुवार) अंतर्राष्ट्रीय जैव-विविधता दिवस
मंगलवार उपाय - जाने हनुमान जी को प्रसन्न करने के तरीके
Magalwar Upay: बहुत असरदार हैं हनुमान जी के ये पाठ, नियमानुसार पढ़ने से सारे दुख होते हैं दूर -
मंगलवार का दिन हनुमान जी को समर्पित है. मान्यता है कि इस दिन भगवान अपने भक्तों पर विशेष कृपा बरसाते हैं. इस दिन हनुमान जी के कुछ पाठ करने मात्र से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है.
हिंदू धर्म में हर दिन किसी ना किसी देवता की पूजा की जाती है. मंगलवार का दिन भगवान हनुमान को समर्पित है. इस दिन पवनपुत्र हनुमान की पूजा करना बहुत शुभ और फलदायी माना गया है. मंगलवार के दिन लोग हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के उपाय करते हैं. मान्यता है कि इस दिन भगवान अपने भक्तों पर विशेष कृपा बरसाते हैं. हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए लोग मंगलवार के दिन हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं लेकिन इसके अलावा कई अन्य पाठ भी हैं, जिन्हें पढ़ने मात्र से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
बजरंग बाण का पाठ
मंगलवार के दिन बजरंग बाण का पाठ करने के विशेष लाभ मिलते हैं. बजरंग बाण का पाठ करने से शत्रुओं पर विजय मिलती है. कई बार लोगों को आपकी तरक्की और सफलता से जलन महसूस होती है. लोग आपके खिलाफ षड्यंत्र रचते हैं. ऐसे में बजरंग बाण का पाठ शत्रुओं से रक्षा करता है. इसका पाठ व्यक्ति को एक जगह बैठकर 21 दिनों तक करना चाहिए.
हनुमान बाहुक
रोगों से मुक्ति के लिए हनुमान बाहुक का पाठ बहुत चमत्कारी है. अगर आप हमेशा गठिया, वात, सिरदर्द, कंठ रोग और जोड़ों के दर्द जैसी समस्या से परेशान रहते हैं, तो एक पात्र में जल लेकर हनुमान बाहुक का 26 या 21 दिन तक पाठ करें. पाठ करने के बाद पात्र में रखा जल पी लें और दूसरे दिन फिर ताजा जल लें. ऐसा करने से शरीर के सभी रोगों से मुक्ति मिलती है.
हनुमान मंत्र
हनुमान मंत्र भूत-प्रेत या अंधेरे से डरने वाले लोगों के मन से भय खत्म करता है. रात को सोने से पहले हाथ-पैर और कान-नाक धोकर हं हनुमते नमः का 108 बार जप करें. जाप करने के बाद भगवान हनुमान की सच्चे मन से आराधना करने के बाद ही सोएं.
शाबर मंत्र
हनुमान जी के शाबर मंत्र को बहुत ही सिद्ध मंत्र माना जाता है. मान्यता है कि इस मंत्र के जाप से हनुमान जी जल्द ही भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं. इस मंत् के जाप से जीवन से संकट और कष्ट चमत्कारिक रूप से समाप्त होते हैं. हनुमान जी के कई शाबर मंत्र हैं. अलग-अलग कार्यों के लिए हैं अलग-अलग मंत्र का जाप किया जाता है.
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