Haji Sayyedna Bahadur Shah Qadri R.A.
The biography and educations of Haji Sayyedna Bahadur Shah Qadri R.A.
उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के बांगरमऊ बिल्हौर रोड पर नौबतगंज गांव के करीब खैरुद्दीनपुर में लगभग 65-70 साल पहले एक बुजुर्ग आकर रुके थे। आपको लोग अलग-अलग नाम से जैसे बगिया वाले बाबा, बाग वाले मौलवी साहब,हाजी सैयद बहादुर शाह कादरी,नूर मोहम्मद शाह फैजाबादी, मिसलन मौलवी साहब, रेल के साथ दौड़ लगाने की वजह से रेल वाले हाफिज जी या हाफिज तूफान आदि नाम से जानते हैं खैरूद्दीन पुर में धीरे-धीरे इलाके के लोग आपकी करामातों व दुआओं से फ़ैज़ पाने लगे।आपकी कुछ मशहूर करामाते जैसे सांप काटने पर काटने वाली जगह में चीरा लगाकर जहर पी लेना खैरूद्दीनपुर गांव में आग लगने पर गांववालों को गंगा नदी पैदल ही पार करा देना। 40 दिन जमीन के अंदर समाधि लेना आपके सिर व धड़ का अलग हो जाना, रेल के आगे दौड़ लगाना तथा अपनी दुआओं से मरीज व दुखियारों को शिफायाब करना। आपने 11 फरवरी सन 2011 रबी उल अव्वल की 7 तारीख को इस फ़ानी दुनिया को अलविदा कह दिया।आपने 48 साल हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले के जंगलों में मुसलसल इबादत की, आप आखिरी वक्त तक एक कच्चे मकान में सादगी के साथ रहे और यहां पर कुम्हार के टूटे मिट्टी के बर्तन खाकर गंगा के किनारे तपती रेत पर और रात में गंगा नदी में खड़े होकर इबादत करते आपने पैदल ही हज किया और पैदल ही मदीना शरीफ, करबला शरीफ,नज़फ़ शरीफ,बैतुल मुक़द्दस शरीफ,ईरान,ईराक़, मिस्र,सीरिया, और उस इलाक़े की मुक़द्दस बारगाहों के दीदार करते हुए बगदाद शरीफ में बड़े पीर साहब के सिलसिले से बैत हुई और वहीं से खिलाफत पाई।आप जेद्दाह से साउथ अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया भी गए और वहां से वापस आकर हिंदुस्तान के अलग अलग इलाक़ों में फ़ैज़ का दरिया बाँटते रहे जहाँ भी आपका राज़फाश होता वहाँ से आप दूसरे इलाके में कूच कर जाते। आपने लगभग 95 साल की उम्र में नाबीना के साथ निकाह किया ताकि यह सुन्नत अल्लाह के रसूल की ना छूटे और उसके बाद एक बेटा हुआ मुहीत शाह क़ादरी जो कि इस वक़्त सज्जादानशीन हैं। हर साल की तरह इस साल भी 18 मई को गौस पाक का उर्स आपकी दरगाह पर मनाया गया और लंगर का एहतमाम किया गया।
18 मई को उर्स हज़रत ग़ौस पाक मनाया गया
उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के बांगरमऊ बिल्हौर रोड पर नौबतगंज गांव के करीब खैरुद्दीनपुर में लगभग 65-70 साल पहले एक बुजुर्ग आकर रुके थे। आपको लोग अलग-अलग नाम से जैसे बगिया वाले बाबा, बाग वाले मौलवी साहब,हाजी सैयद बहादुर शाह कादरी,नूर मोहम्मद शाह फैजाबादी, मिसलन मौलवी साहब, रेल के साथ दौड़ लगाने की वजह से रेल वाले हाफिज जी या हाफिज तूफान आदि नाम से जानते हैं खैरूद्दीन पुर में धीरे-धीरे इलाके के लोग आपकी करामातों व दुआओं से फ़ैज़ पाने लगे।आपकी कुछ मशहूर करामाते जैसे सांप काटने पर काटने वाली जगह में चीरा लगाकर जहर पी लेना खैरूद्दीनपुर गांव में आग लगने पर गांववालों को गंगा नदी पैदल ही पार करा देना। 40 दिन जमीन के अंदर समाधि लेना आपके सिर व धड़ का अलग हो जाना, रेल के आगे दौड़ लगाना तथा अपनी दुआओं से मरीज व दुखियारों को शिफायाब करना। आपने 11 फरवरी सन 2011 रबी उल अव्वल की 7 तारीख को इस फ़ानी दुनिया को अलविदा कह दिया।आपने 48 साल हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले के जंगलों में मुसलसल इबादत की, आप आखिरी वक्त तक एक कच्चे मकान में सादगी के साथ रहे और यहां पर कुम्हार के टूटे मिट्टी के बर्तन खाकर गंगा के किनारे तपती रेत पर और रात में गंगा नदी में खड़े होकर इबादत करते आपने पैदल ही हज किया और बगदाद शरीफ में बड़े पीर साहब के सिलसिले से बैत हुई और वहीं से खिलाफत पाई आपने लगभग 95 साल की उम्र में नाबीना के साथ निकाह किया ताकि यह सुन्नत अल्लाह के रसूल की ना छूटे। हर साल की तरह इस साल भी 18 मई को गौस पाक का उर्स आपकी दरगाह पर मनाया गया और लंगर का एहतमाम किया गया।
उर्स ए ग़ौस ए पाक मुबारक
बमुक़ाम -दरगाह चराग़-ए-बग़दाद हज़रत हाजी सैय्यद बहादुर शाह क़ादरी र. अलैह,खैरुद्दीनपुर,नौबतगंज,बांगरमऊ, उन्नाव,(उ.प्र.)
बतारीख-18 मई 2024 बरोज़-शनिवार
प्रोग्राम-बाद नमाज़ ए असर ग़ुस्ल व गुलपोशी व चादरपोशी और नज़र
बाद नमाज़ ए मग़रिब नातख़्वानी और बयान
बाद नमाज़ ए ईसा महफ़िल ए समां
नोट-आये हुए सभी मेहमानों के लिए लंगर का एहतमाम किया गया है।
अपनी बात
हिंदुस्तान की सरज़मीन पर बहुत सारे दुर्वेश, फक़ीर और सूफी गुजरे हैं जिनकी खानकाहें,मजारें आज भी हर मज़हब के मानने वालों के लिए ख़ैर ,बरकत,एखलाक़,मोहब्बत और फैज़ का मरकज़ बनी हुई हैं।तमाम दुर्वेश खिदमत ए ख़ल्क़ को अंजाम देते थे और इस्लामी तारीख़ इन औलिया ए किराम के कारनामों से भरी हुई हैं।
आज सदी के इस माहौल में यह महसूस होता है कि अब दुनिया ऐसे लोगों से ख़ाली हो चुकी है और अल्लाह के यह महबूब बरगुज़ीदा बंदे अब नहीं हैं।हम बचपन में जब भी औलिया ए किराम की करामातों को सुनते या पढ़ते थे,तो हम भी यही महसूस करते थे कि अल्लाह के यह महबूब बंदे पहले ज़माने में हुआ करते थे अब नहीं लेकिन जब हमारी मुलाक़ात हमारे पीर ओ मुर्शिद से हुई और धीरे-धीरे आपके राज़ के पर्दों की तहें छटने लगीं तो हमको महसूस हुआ कि हम गलत सोचा करते थे।यह दुनिया अल्लाह के इन महबूब बंदों से ना कभी खाली थी,ना है और इंशा अल्लाह ना कभी रहेगी।
तालिब ए दुआ
( साग़र हुसैन/हसीन)
क़ाबिले एहतराम बुज़ुर्गों,दोस्तों और साथियों आप पर अल्लाह की सलामती,रहमतें और बरकतें नाज़िल हों।
यह पेज आज रबी उल अव्वल के मुक़द्दस महीने की पहली तारीख़(17/09/2023) को इस मक़सद के साथ बनाया जा रहा है कि हम अपने पीर ओ मुर्शिद की हालात ए जिंदगी पैदल हज के वाक़यात,आपकी करामातों, खाक़सारी,सादगी, फैज़ और मोहब्बत को दुनिया से रूबरू कराएं, हालांकि अल्लाह के वलियों की शान किसी बयान की मोहताज नहीं हैं लेकिन यह मेरे लिए सुर्ख़रूई, सरबुलंदी और मग़फ़िरत का बायस हो सकती है।
अल्लाह और हम सब के आक़ा रसूल सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम इस गुनहगार की कोशिश को मुर्शिद के सदके में अपनी बारगाह में क़ुबूल फ़रमायें।(आमीन)
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