श्री ठाकुर लक्ष्मीवेंकटेश मंदिर नगरह "विश्व का तीसरा श्रीपतिवेंकटेश्वर धाम"
तिरुपति बालाजी के तर्ज पर बनाई गई यह मंदिर नगरह (प्राचीन नाम-शुचिक्षेत्र) में स्थित है।
श्री वेंकटेश जी की आदमकद मूसा पत्थर से बनी 80 मन वजनी प्रतिमा की प्रतिष्ठा वर्ष 1903 ई में उस समय गाँव के जमींदार स्व ठाकुर नन्दकिशोर सिंह जी के द्वारा की गई थी। लगभग अठारहवीं सदी के चतुर्थ चरण अर्थात् 1875-76 ई की बात होगी।एक बार मौजे बैजनाथपुर जयदेव उर्फ नगरह के जमींदार स्व ठाकुर नन्दकिशोर सिंह जी एवं स्व ठाकुर बलदेव प्रसाद सिंह जी तिरूपति वेंकटेश जी के दर्शन करने गए।दर्शन के पाश्चात् स्व ठाकुर
ब्रह्मोत्सव | श्रीपतिवेंकटेश्वरदेवस्थान | प्रथम वार्षिकोत्सव
श्री ठाकुर लक्ष्मीवेंकटेश मंदिर नगरह , ठाकुरबाड़ी
नवकलश स्नान, आरती , पूजनम् , हरिदर्शनम्
॥ श्रीपतिवैंकटेश्वराय नम: ॥
ब्रह्मोत्सव | श्रीपतिवेंकटेश्वरदेवस्थान | प्रथम वार्षिकोत्सव
श्री ठाकुर लक्ष्मीवेंकटेश मंदिर नगरह , ठाकुरबाड़ी
नवकलश स्नान, पूजनम् , हरिदर्शनम्
॥ श्रीपतिवैंकटेश्वराय नम: ॥
ब्रह्मोत्सव | श्रीपतिवेंकटेश्वरदेवस्थान | प्रथम वार्षिकोत्सव
श्री ठाकुर लक्ष्मीवेंकटेश मंदिर नगरह , ठाकुरबाड़ी
नवकलश स्नान, पूजनम् , हरिदर्शनम्
॥ श्रीपतिवैंकटेश्वराय नम: ॥
🙏🪷 !! ऊँ श्री गुरुवे नम: !! 🪷🙏
परम पूज्यपाद दादा गुरुदेव श्री उत्तरतोताद्रि, परमपूज्य वैष्णवरत्न, श्रीमज्जजगद्गुरू रामानुजाचार्य अनन्तविभूषित स्वामी श्री अनन्ताचार्य जी महाराज ( उत्तरतोताद्रिमठ, विभीषण कुंड, अयोध्याधाम, उत्तरप्रदेश) के पावन अवतरोणत्सव के एक दिवसीय कार्यक्रम में आसपास के क्षेत्र,शहर,नगर के सभी श्रद्धालु भक्तजन, शिष्यगण सादर आमंत्रित हैं।
कार्यक्रम तिथि :- 30 जनवरी 2024 ( मंगलवार)
कार्यक्रम स्थल :- माँ दुर्गा मंदिर प्रागंण, नगरह
कार्यक्रम समय :- दोपहर 2 बजे से सायं 5 बजे तक
निवेदक :- समस्त नगरह ग्राम- पंचायतवासी 🙏🚩🙏
जय गुरुदेव भगवान्🙏🌹🙏
🌼दीपोत्सव व रंगोली कार्यक्रम 🙏🚩
🌼22 जनवरी - श्रीराम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा उत्सव 🙏🚩
🌼श्रीपतिवेंकटेश्वरधाम नगरह 🙏🚩
आप सभी को हरि प्रबोधिनी/देवोत्थान/देवउठनी एकादशी/तुलसी विवाह/ की हार्दिक शुभकामनाऐं।
देवउठनी एकादशी को देव प्रबोधिनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन जगत के पालनहार श्रीहरि विष्णु अपनी चार महीने की योग निद्रा से जागते हैं, इसलिए इस दिन इनकी विषेश पूजा की जाती है। यह एकादशी भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए बेहद उत्तम मानी जाती है।
ब्रह्मेन्द्ररुदाग्नि कुबेर सूर्यसोमादिभिर्वन्दित वंदनीय,
बुध्यस्य देवेश जगन्निवास मंत्र प्रभावेण सुखेन देव।
ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र, अग्नि, कुबेर, सूर्य, सोम आदि से वंदनीय, हे जगन्निवास, देवताओं के स्वामी आप मंत्र के प्रभाव से सुखपूर्वक उठें।
उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥
उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥
शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।
एकादशी तिथि प्रारम्भ- 22 नवम्बर 2023 बुधवार को सुबह 11:03 बजे से।
एकादशी तिथि समाप्त- 23 नवम्बर 2023 को रात्रि 09:01 बजे समाप्त।
24 नवम्बर को पारण (व्रत तोड़ने का) समय- सुबह 06:51 से 08:57 के बीच।
कार्तिक मास की एकादशी यानी देव उठनी एकादशी 23 नवंबर 2023 को है।
इस दिन की ग्यारस से सभी तरह के मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाएंगे।
खासकर चार माह के बाद विवाह के कार्य प्रारंभ होंगे।
इस दिन श्री हरि विष्णु अपनी चार माह की योगनिद्रा से जागते हैं।
इसीलिए उनका तुलसी माता के साथ विवाह करने की परंपरा भी है।
शालिग्राम के साथ तुलसी का आध्यात्मिक विवाह देव उठनी एकादशी को होता है।
इस दिन तुलसी की पूजा का महत्व है। तुलसी दल अकाल मृत्यु से बचाता है। शालीग्राम और तुलसी की पूजा से पितृदोष का शमन होता है।
🙏 ॥ श्रीपतिवेंकटेश्वराय नमः ॥ 🙏
🙏☀️आप सभी को लोक आस्था , पवित्रता , व सूर्य उपासना के महापर्व छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाऐं।☀️🙏
भगवान सूर्य देव की कृपा से, आपके जीवन में सभी दुख दूर हों।
और छठी मैया की कृपा आपके परिवार व आप पर सदा बनी रहे।
#छठपूजा .
🪔आप सभी को शुभ दीपोत्सव / दीपावली/ कालीपूजा /लक्ष्मीपूजा की अनंत हार्दिक शुभकामनाएँ।🪔
दीपावली का त्योहार भारतीय संस्कृति का गौरव है, क्योंकि दीपावली रोशनी का पर्व है और दीया प्रकाश का प्रतीक है और तमस को दूर करता है। यही दीया हमारे जीवन में रोशनी के अलावा हमारे लिए जीवन की सीख भी है, जीवन निर्वाह का साधन भी है।
दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्यावासियों का हृदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी।
तब से आज तक हम प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। यह पर्व विश्वास मजबूत करता है कि सत्य की सदा जीत होती है और असत्य का नाश होता है।
दीपावली यही चरितार्थ करती है-
असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय।
दीपावली सनातन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है। यह रोशनी और दीपों का त्योहार है। इस दिन को लोग बड़ी ही भव्यता के साथ मनाते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, दिवाली का त्योहार कार्तिक माह की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। इस साल दिवाली 12 नवंबर 2023 यानी आज मनाई जाने वाली है।
अमावस्या तिथि समापन - 13 नवंबर - 02:56 तक
लक्ष्मी पूजन का समय - 12 नवंबर शाम 05:19 बजे से शाम 07:19 बजे तक
भारत में प्राचीन काल से दीपावली को विक्रम संवत के कार्तिक माह में गर्मी की फसल के बाद के एक त्योहार के रूप में दर्शाया गया। पद्म पुराण और स्कन्द पुराण में दीपावली का उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि ये ग्रन्थ पहली सहस्त्राब्दी के दूसरे भाग में किन्हीं केंद्रीय पाठ को विस्तृत कर लिखे गए थे। दीये (दीपक) को स्कन्द पुराण में सूर्य के हिस्सों का प्रतिनिधित्व करने वाला माना गया है, सूर्य जो जीवन के लिए प्रकाश और ऊर्जा का लौकिक दाता है और जो हिन्दू कैलंडर अनुसार कार्तिक माह में अपनी स्तिथि बदलता है। कुछ क्षेत्रों में हिन्दू दीपावली को यम और नचिकेता की कथा के साथ भी जोड़ते हैं। नचिकेता की कथा जो सही बनाम गलत, ज्ञान बनाम अज्ञान, सच्चा धन बनाम क्षणिक धन आदि के बारे में बताती है; पहली सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व उपनिषद में लिखित है।
दिपावली का इतिहास रामायण से भी जुड़ा हुआ है, ऐसा माना जाता है कि श्री राम चन्द्र जी ने माता सीता को रावण की कैद से छुड़ाया तथा उनकी अग्नि परीक्षा के उपरान्त, 14 वर्ष का वनवास व्यतीत कर अयोध्या वापस लोटे थे। अयोध्या वासियों ने श्री राम चन्द्र जी, माता सीता, तथा अनुज लक्षमण के स्वागत हेतु सम्पूर्ण अयोध्या को दीप जलाकर रोशन किया था, तभी से दीपावली अर्थात दीपों का त्यौहार मनाया जाता है। लेकिन आपको यह जानकर बहुत हैरानी होगी की अयोध्या में केवल 2 वर्ष ही दिपावली मनायी गई थी।
७वीं शताब्दी के संस्कृत नाटक नागनंद में राजा हर्ष ने इसे दीपप्रतिपादुत्सवः कहा है जिसमें दीये जलाये जाते थे और नव वर-बधू को उपहार दिए जाते थे। 9 वीं शताब्दी में राजशेखर ने काव्यमीमांसा में इसे दीपमालिका कहा है जिसमें घरों की पुताई की जाती थी और तेल के दीयों से रात में घरों, सड़कों और बाजारों सजाया जाता था। फारसी यात्री और इतिहासकार अल बेरुनी, ने भारत पर अपने ११ वीं सदी के संस्मरण में, दीपावली को कार्तिक महीने में नये चंद्रमा के दिन पर हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला त्यौहार कहा है।
दीपावली को रोशनी का त्योहार माना जाता है। साथ ही यह पर्व अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। लोग इस त्योहार को पांच दिनों तक मनाते हैं और इससे बहुत कुछ सीखने को मिलता है। इस शुभ दिन पर मां लक्ष्मी की पूजा भक्ति और समर्पण के साथ की जाती है।
ऐसी मान्यता है कि इस दिन धन की देवी पृथ्वी पर आती हैं और अपने भक्तों को सुख- समृद्धि का वरदान देती हैं। यह हिंदुओं के बड़े त्योहारों में से एक है, जिसे लोग दीपक जलाकर मनाते हैं।
इसके अलावा परिवार और दोस्तों के बीच उपहार बांटते हैं। बता दें, दीया जलाना अच्छाई, पवित्रता और सौभाग्य का प्रतिनिधित्व करता है।
रोशनी का त्योहार आपके लिए खुशी, वैभवता और समृद्धि लाए। आपका जीवन अच्छे स्वास्थ्य, शांति और प्रेम से भरा हो।
दीपावली के इस पावन पर्व पर, अपने विचारों को प्रकाश की तरह उजागर करें और अपने प्रियजनों के साथ प्यार और खुशी का प्रसार करें।
“मीठी यादों से भरा यह त्योहार, आतिशबाजी से भरा आसमान, मिठाइयों से भरा मुंह, दीयों से भरा घर और पूरे हो सारे अरमान।
माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की कृपा से, आपका जीवन हमेशा खुशियों और सफलताओं से भरा रहे।
आपके जीवन में सुख, समृद्धि और खुशियाँ आएं और आप हमेशा स्वस्थ और प्रसन्न रहें। 🙏💫🎇
#शुभदीपावली
#नगरह #श्रीपतिवेंकटेश्वरधाम
आप सभी को शरद पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाऐं ।
जानें भगवान श्री कृष्ण ने इस रात क्यों की रासलीला?
सनातन संस्कृति में दिन और रात दोनों का ही महत्व है। रात्रि में शिवरात्रि और नवरात्रि हम बड़े उत्साह से मनाते हैं। इसी प्रकार शरद पूर्णिमा का भी अपना महत्व है, यह रात सबसे प्रकाशमयी होती है। शरद पूर्णिमा को कोजोगिरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। आइए जानते हैं शरद पूर्णिमा से जुड़ी हुई कुछ खास बातें...
संस्कृत शब्द ‘‘ को जागर्ति ’’ यानि कौन जाग रहा है, इसका ही अपभ्रंश कोजोगिरी है। पुराणों के अनुसार इस दिन लक्ष्मीजी रात्रि में वर देने के लिए भ्रमण करती हैं और जो जागता हुआ मिलता है उसे वर देती हैं। साथ ही इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है। इसके विपरित दीपावली की रात सबसे अंधकारमयी होती है। दोनों ही रातों का संबंध लक्ष्मी जी से है।
कार्तिक मास की अमावस्या को समुद्र मंथन से देवता और असुरों के द्वारा माता महालक्ष्मी का प्राकट्य हुआ। इस दिन का संबंध भगवान श्री कृष्ण से भी है। श्रीमद् भागवत के अनुसार ‘‘ हेमंते प्रथमे मासे, नंद गोप कुमारिका’’ हेमंत मास के प्रारंभ में यानि शरद पूर्णिमा को अमृतवर्षिनी मुरली का निनाद किया और 84 कोस के ब्रजमंडल की सभी गोपियों को बंसी की तान में अपना नाम सुनाई दिया। सारी सुध- बुध भूलकर वो रासमंडल में पहुंचीं।
भगवान श्रीकृष्ण ने क्यों किया रास इसके कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण है कामदेव पर विजय प्राप्ति। रास पंचाध्याया की फलश्रृति में कहा गया है कि ‘‘ काम विजय प्रख्यापनार्थम् ’’ यानि काम पर विजय प्राप्ति के लिए भगवान ने रास रचा।
ब्रम्हादि देवताओं पर विजय पाकर कंदर्प कामदेव को अतिशय दर्प यानि अभिमान हो गया। कामदेव ने उसी घमंड में भगवान को चुनौती दी। भगवान बोले, हे कामदेव हम तो तुमको हरा चुके हैं। जब त्रेतायुग में मैं राम बना था उस समय तुम्हारी एक नहीं चली। कामदेव बोले, प्रभु ! उस समय तो आपने पत्नीरूपी किले का आश्रय ले रखा था। आप एक पत्नीव्रत धारण कर मर्यादा पुरूषोत्तम थे। अभी तक किले का युध्द किया अब मैदान का युध्द करें। यानि विश्व सुंदरी गोपियां और त्रिभुवन सुंदर आप जब शरद पूर्णिमा की रात्रि को साथ होंगे तो मेरे बाण चलेंगे ही। इस दौरान श्री कृष्ण ने कामदेव पर विजय प्राप्ति के लिए रास किया।
दूसरा कारण ब्रज की गोपियों के अलग- अगल स्वरूप हैं। ब्रज की गोपी कोई मुनिरूपा हैं, दंडकारण्य के मुनि हैं जो प्रभु श्रीराम की लुभावनी मूरत को देख मोहित हो गए। वही ब्रजमंडल में गोपी बन कर आए हैं। कोई साधन सिध्दा, कोई मत्स्य कन्या तो कुछ एक दैत्य कन्या भी हैं। सभी रास के लिए गोपी बन कर ब्रज मंडल में आई।
रास पंचाध्यायी में पांच अध्याय क्यों? श्रीमद् भागवत में रासपंचाध्यायी, दशम स्कंध में 29 से 33 अध्याय तक हैं। तेनयमं वाग्मयं मूर्तिं प्रत्यक्षं वर्तते हरिः’’ भागवत स्वयं कृष्ण हैं और भागवत में दशम स्कंध ये कृष्ण का ह्रदय हैं और दशम स्कंध में ये 5 अध्याय रासपंचाध्यायी हैं। ये भगवान के पंचप्राण हैं तथा इसमें भी गोपीगीत ये मुख्य प्राण हैं।
पांच अध्यायों में वर्णन किया कामदेव के पांच ही बाण प्रसिध्द हैं, वशीकरण, उच्चाटन, मोहन, स्तम्भन और उद्दीपन, और पंचाध्यायी के पांच अध्यायों से कामदेव के पांचो बाणों का खंडन किया है।
शरद पूर्णिमा को ही क्यों प्रारंभ किया रास शरद में ही काम के बाण तीक्ष्ण हो जाते हैं, ‘‘शरम ददाति इति शरदः ’’ शर का अर्थ बाण हैं, जो तक-तक के बाण मारें वह शरद। भगवान कहते हैं कमजोर को क्या मारना, मारना ही है तो प्रबल को मारो। धोखे से मारना, छद्म रूप में मारना ये तो कायरों का काम है, जो वीर होते हैं वो तो ललकार का मारते हैं। भगवान बोले शरद में तुम बड़े बलवान हो जाते हो, तुम्हारे बाण बड़े तीक्ष्ण हो जाते हैं इसलिए तुमसे शरद में ही युध्द करेंगे।
शरद ऋतु में सारा वातावरण काम के अनुरूप है। रात्रि में काम प्रबल होता है, इसलिये शरद ऋतु को चुना। शरद पूर्णिमा की रात्रि को ऐसा मस्त होकर माधव ने मुरली रव किया कि गोपियां सुनते ही ‘‘कृष्ण गृहीत मानसा ’’, सब गोपियों का मन माधव के पास चला गया। इस प्रकार शरद पूर्णिमा की रात्रि में अमृत की तान से श्रीकृष्ण ने समस्त संसार को मोह लिया।
जय श्री राधेगोविन्द
#शरदपूर्णिमा #राधे_श्याम
🙏आप सभी को श्री अनंत चतुर्दशी (अनंत पूजा) की हार्दिक शुभकामनाऐं।🙏
भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी मनाते हैं। इस दिन भगवान अनंत (श्रीहरि) की पूजा करते हैं और पूजा के बाद अनंत धागा धारण करते हैं। अग्नि पुराण में इसका विवरण है। यह व्यक्तिगत पूजा है, इसका कोई सामाजिक या धार्मिक उत्सव नहीं होता। इस दिन पार्थिव गणेश के विसर्जन के साथ दस दिन चलने वाले गणेशोत्सव का समापन भी होता है।
मान्यता है कि महाभारत काल में इस व्रत की शुरुआत हुई थी। जब पांडव जुए में अपना राज्य गंवाकर वन-वन भटक रहे थे, तो भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी व्रत करने को कहा था। श्रीकृष्ण ने कहा- "हे युधिष्ठिर! तुम विधिपूर्वक अनन्त भगवान का व्रत करो, इससे तुम्हारा सारा संकट दूर हो जाएगा और तुम्हारा खोया राज्य पुन: प्राप्त हो जाएगा। श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने भी अनन्त भगवान का व्रत किया, जिसके प्रभाव से पाण्डव महाभारत के युद्ध में विजयी हुए तथा चिरकाल तक राज्य करते रहे।
इस व्रत में सूत या रेशम के धागे को कुमकुम से रंगकर उसमें चौदह गांठे लगाई जाती हैं। इसके बाद उसे विधि-विधान से पूजा के बाद कलाई पर बांधा जाता है। कलाई पर बांधे गए इस धागे को ही अनंत कहा जाता है। भगवान विष्णु का रूप माने जाने वाले इस धागे को रक्षासूत्र भी कहा जाता है। ये 14 गांठे भगवान श्री हरि के 14 लोकों की प्रतीक मानी गई हैं। इस अनंत रूपी धागे को पूजा में भगवान विष्णु पर अर्पित कर व्रती अपनी भुजा में बांधते हैं।
धन और संतान की कामना से यह व्रत किया जाता है। मान्यता है कि यह 'अनंत' धागा हम पर आने वाले सब संकटों से रक्षा करता है। यह अनंत धागा भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला तथा अनंत फल देता है। इस व्रत के बारे में शास्त्रों का कथन है कि यह समस्त प्रकार के कष्टों से मुक्ति दिलाता है, विपत्तियों से उबारता है। महाभारत के अनुसार माना जाता है कि इस व्रत को करने से दरिद्रता का नाश होता है, और ग्रहों की बाधाएं भी दूर होती हैं।
¤卐॥ जय श्री हरि ॥卐¤
#अनंतपूजा #2023
श्री कृष्ण जन्मोत्सव के शुभ अवसर पर श्री ठाकुर लक्ष्मीवेंकटेश जी के नवकलश पूजन व स्नान पश्चात नवीन वस्त्र धारण किए हुए मनोरम दर्शन करिए। 🙏
श्री ठाकुरलक्ष्मीवेंकटेश जी के समस्त वर्षोत्सव में से एक, ("श्री कृष्ण जन्माष्टमी" को "जन्मोत्सव" के रूप में) वर्षों से हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता रहा है।
साथ हीं झूलनोत्सव की तरह इस शुभ पावन मंगलमय अवसर पर श्री ठाकुर लक्ष्मीवैंकटेश जी का नवकलश स्नान होता है तथा ठाकुर जी के दरबार में भजन-संध्या का भी आयोजन होता है।
!! हाथी घोड़ा पालकी , जय कन्हैयालाल की !!
!! श्री वेंकटेश्वर सान्निध्यी में आपका हार्दिक अभिनंदन है !!
《《《《 श्रीपतिवेंकटेश्वराय नमः 》》》》
🙏श्री कृष्ण जन्माष्टमी/जन्मोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं। 🙏
श्रीकृष्ण जी, भगवान विष्णु जी के संपूर्ण अवतार हैं, जो तीनों लोकों के तीन गुणों सतगुण, रजगुण तथा तमोगुण में से सतगुण विभाग के प्रभारी हैं। भगवान का अवतार होने के कारण से श्रीकृष्ण जी में जन्म से ही सारी दैवीय सिद्धियां उपस्थित थी। उनके माता पिता वासुदेव और देवकी जी के विवाह के समय मामा कंस जब अपनी बहन देवकी को ससुराल पहुँचाने जा रहा था, तभी आकाशवाणी हुई थी जिसमें बताया गया था कि देवकी का आठवां पुत्र कंस का अन्त करेगा। अर्थात् यह होना पहले से ही निश्चित था अतः वासुदेव और देवकी को कारागार में रखने पर भी कंस कृष्ण जी को नहीं समाप्त कर पाया।
लीलानुसार मथुरा के बंदीगृह में जन्म के तुरंत उपरान्त, उनके पिता वसुदेव आनकदुन्दुभि कृष्ण को यमुना पार ले जाते हैं, जिससे बाल श्रीकृष्ण को गोकुल में नन्द और यशोदा को दिया जा सके।
जन्माष्टमी पर्व लोगों द्वारा उपवास रखकर, कृष्ण प्रेम के भक्ति गीत गाकर और रात्रि में जागरण करके मनाई जाती है। मध्यरात्रि के जन्म के उपरान्त, बाल कृष्ण की मूर्तियों को धोया और पहनाया जाता है, फिर एक पालने में रखा जाता है। फिर भक्त भोजन और मिठाई बांटकर अपना उपवास पूरा करते हैं। महिलाएं अपने घर के द्वार और रसोई के बाहर छोटे-छोटे पैरों के चिन्ह बनाती हैं जो अपने घर की ओर चलते हुए, अपने घरों में श्रीकृष्ण जी के आने का प्रतीक माना जाता है।
🙏🙏ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। 🙏🙏
🙏🙏प्रणत क्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नम: ॥🙏🙏
हर वर्ष की भांति गुरूगेह नगरह में श्रीहरि के प्रमुख पारंपरिक सात वर्षोत्सव में से विशिष्ट महोत्सव 'झूलनोत्सव' मनाया गया।ज्ञातव्य हों कि इस पंचदिवसीय महोत्सव में प्रतिदिन झूलन में श्री ठाकुर लक्ष्मीवेंकटेश जी ( निवास जी) की दोनो अर्धांगिनी श्रीदेवी व भूदेवी सहित स्वयं श्री निवास जी , झूलन में विराजित होते हैं, साथ हीं श्री सुदर्शन जी महाराज व शठकोप स्वामी भी विराजमान होते हैं।
वहीं दूसरे झूले में श्री रामानुजाचार्य जी महाराज, स्वामी बलभद्राचार्य जी महाराज, व श्री वरवर मुनि की 'गुरू शिष्य परंपरा' की उत्सव मुर्तियों को भी विराजित किये जाते हैं।(फिलहाल निम्न में से एक मुर्ति अनुपस्थित है।)
श्री गरूड़ महाराज की उत्सवमुर्ति गर्भगृह में स्व स्थान पर हीं रहती है, परंपरागत उनका स्थान श्रीहरि के सन्निकट हीं रहता है।
इस पावन अवसर पर प्रतिदिन भजन-कीर्तन का आयोजन होता है, जिसमें ग्रामीण भक्तजन व कलाकार की उपस्थिति होती है।
श्रीहरि के पावन महोत्सव में आप सभी श्रद्धालुओं का हार्दिक अभिनंदन है।
॥ श्रीपतिवैंकटेश्वराय नम:॥
प्रमुख पारंपरिक सात वर्षोत्सव में से विशिष्ट झूलन महोत्सव का/की आज अंतिम दिवस/निशा है।
प्रथम झूलन में श्री ठाकुर लक्ष्मीवेंकटेश जी (श्री निवास जी) की दोनो अर्धांगिनी श्रीदेवी व भूदेवी सहित श्री निवास जी , की अष्टधातु उत्सवमूर्ति झूले में विराजित किए गए हैं, साथ हीं श्री सुदर्शन जी व शठकोप स्वामी भी विराजमान हैं।
वहीं आज दूसरे झूले में श्री रामानुजाचार्य जी महाराज, स्वामी बलभद्राचार्य जी महाराज, व श्री वरवर मुनि (इनमे से एक अनुपस्थित) की 'गुरू शिष्य परंपरा' की उत्सव मुर्तियों को विराजित किया गया है।
🙏श्रीपतिवैंकटेश्वराय नम:🙏
🙏श्री वेंकटेश्वर सान्निध्यी में आपका हार्दिक अभिनंदन है।🙏
वैदिक परंपरागत, हर्षोल्लास के साथ गुरूगेह #नगरह में श्रीहरि के प्रमुख पारंपरिक सात #वर्षोत्सव में से विशिष्ट #महोत्सव 'झूलनोत्सव' मनाया जा रहा है।
इस पंचदिवसीय महोत्सव में प्रतिदिन #झूलन में श्रीदेवी , भूदेवी सहित श्री निवास जी झूलन पर विराजमान होते हैं।
#श्रीपतिवैंकटेश्वरदेवस्थानम् #नगरहधाम्
#झूलनोत्सव 2023 #हरिदर्शन #झूलन
श्रीपतिवेंकटेश्वरधाम नगरह के पावन पुनीत धरा पर, श्री ठाकुर लक्ष्मीवैंकटेश जी महाराज के पावन वार्षिक #झूलन महोत्सव के अवसर पर स्व. जनार्दन प्रसाद सिंह जी के दरवाज़े 'जनार्दन निवास' पर झूलन/ झूले में विराजित राधा रानी सहित श्रीकृष्ण भगवान् , शालिग्राम जी, साथ में लड्डू गोपाल जी एवं गरूर जी भी हैं।
ज्ञातव्य हों कि, #ठाकुरबाड़ी मंदिर की भांति हीं यहाँ पर भी लगातार कई वर्षों से झूलनोत्सव मनाया जाता रहा है । इस अवसर पर पांचो दिन भजन संध्या का भव्य आयोजन भी किया जाता है, जिसमे ग्रामीण व बाहर से आए भजन संगीत कलाकार जन अपनी सुर सरिता में श्रोताओ को गोता लगवाते हैं।
प्रमुख पारंपरिक विशिष्ट झूलन महोत्सव के चतुर्थ निशा में आज श्री ठाकुर लक्ष्मीवेंकटेश जी ( निवास जी) की दोनो अर्धांगिनी श्रीदेवी व भूदेवी सहित श्री निवास जी , झूलन में विराजित हो गए हैं, साथ हीं श्री सुदर्शन जी महाराज व शठकोप स्वामी भी विराजमान हैं।
वहीं आज दूसरे झूले में श्री रामानुजाचार्य जी महाराज, स्वामी बलभद्राचार्य जी महाराज, व श्री वरवर मुनि की 'गुरू शिष्य परंपरा' की उत्सव मुर्तियों को भी विराजित किया गया है।
श्रीहरि के पावन महोत्सव में आप सभी श्रद्धालुओं का हार्दिक अभिनंदन है।
🙏॥ श्रीपतिवैंकटेश्वराय नम:॥🙏
#श्रीपतिवैंकटेश्वरदेवस्थानम् #नगरहधाम्
#झूलनोत्सव 2023, #हरिदर्शन
झूलनोत्सव 2023 | तृतीय दिवस | लाईव प्रसारण
आज प्रमुख पारंपरिक विशिष्ट झूलन महोत्सव के तृतीय निशा में श्री ठाकुर लक्ष्मीवेंकटेश जी ( निवास जी) की दोनो अर्धांगिनी श्रीदेवी व भूदेवी सहित श्री निवास जी , झूलन में विराजित हो गए हैं, साथ हीं श्री सुदर्शन जी महाराज व शठकोप स्वामी भी विराजमान हैं।
श्रीहरि के पावन महोत्सव में आप सभी श्रद्धालुओं का हार्दिक अभिनंदन है।
🙏॥ श्रीपतिवैंकटेश्वराय नम:॥🙏
#श्रीपतिवैंकटेश्वरदेवस्थानम् #नगरहधाम्
#झूलनोत्सव 2023, #हरिदर्शन
प्रमुख पारंपरिक विशिष्ट झूलन महोत्सव के द्वितीय निशा में श्री ठाकुर लक्ष्मीवेंकटेश जी ( निवास जी) की दोनो अर्धांगिनी श्रीदेवी व भूदेवी सहित श्री निवास जी , झूलन में विराजित हो गए हैं, साथ हीं श्री सुदर्शन जी महाराज व शठकोप स्वामी भी विराजमान हैं।
श्रीहरि के पावन महोत्सव में आप सभी श्रद्धालुओं का हार्दिक अभिनंदन है।
🙏॥ श्रीपतिवैंकटेश्वराय नम:॥🙏
#श्रीपतिवैंकटेश्वरदेवस्थानम् #नगरहधाम्
#झूलनोत्सव 2023, #हरिदर्शन
¤ॐ¤ दिनांक ~ २७.०८.२३ ~ झूलन प्रारंभ, पुत्रदा एकादशी !!
¤ॐ¤ दिनांक ~ २८.०८.२३ ~ श्रावण सोमवार अंतिम
¤ॐ¤ दिनांक ~ २९.०८.२३ ~ झूलनोत्सव तृतीय दिवस
¤ॐ¤ दिनांक ~३०.०८.२३ ~ व्रत की पुर्णिमा, रक्षाबंधन
¤ॐ¤ दिनांक ~ ३१.०८.२३ ~ झूलन महोत्सव समापन !!
श्रीहरि के पावन महोत्सव में आप सभी श्रद्धालुओं का हार्दिक अभिनंदन है।
🙏॥ श्रीपतिवैंकटेश्वराय नम:॥🙏
#श्रीपतिवैंकटेश्वरदेवस्थानम् #नगरहधाम्
#झूलनोत्सव2023, #हरिदर्शन , #नगरह #गुरुगेह
श्री ठाकुर लक्ष्मीवेंकटेश मंदिर नगरह
हर वर्ष की भांति श्रीपतिवेंकटेश्वरदेवस्थान #नगरह में आज से श्रीहरि के प्रमुख पारंपरिक सात #वर्षोत्सव में से विशिष्ट #महोत्सव 'झूलनोत्सव' मनाया जा रहा है।
इस पंचदिवसीय महोत्सव में प्रतिदिन #झूलन में श्रीदेवी , भूदेवी सहित श्री निवास जी झूलन पर विराजमान होते हैं।
#श्रीपतिवैंकटेश्वरदेवस्थानम् #नगरहधाम्
#झूलनोत्सव #2023 #हरिदर्शन #गुरुगेह
अधिक मास 2023 : मंगलवार 18 जुलाई से अधिक मास शुरू हो जाएगा. इसे मलमास और पुरुषोत्तम मास कहा जाता है इस बार 19 साल बाद सावन महीने में अधिक मास आया है. इस महीने में भगवान शिव और विष्णु जी की पूजा करें, ग्रंथों का पाठ करें और दान-पुण्य करें।
अधिक मास 18 जुलाई से 16 अगस्त तक है. 17 अगस्त से सावन का शुक्ल पक्ष शुरू होगा. इस माह में भगवान शंकर और भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने से लाभ मिलेगा. अधिक मास में शालीग्राम भगवान की उपासना से भी विशेष लाभ मिलता है. इसलिए हर दिन शालीग्राम भगवान के समक्ष घी का दीपक प्रज्वलित करें. मान्यता है कि ऐसा करने से साधक को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है.अधिक मास में श्रीमद्भागवत गीता के 14वें अध्याय का नियमित रूप से पाठ करें. माना जाता है कि ऐसा करने से कार्यक्षेत्र में उत्पन्न हो रही परेशानियां दूर हो जाती है.
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि, भगवान श्रीविष्णु की आराधना के लिए श्रेष्ठ कहे जाने वाले अधिकमास का आरंभ इस साल प्रथम आश्विन शुक्लपक्ष 18 जुलाई से आरंभ हो रहा है जो द्वितीय अधिक मास आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या 16 अगस्त तक चलेगा. इस मास में प्राणी श्रीहरि विष्णु की आराधना करके अपने जीवन में आने वाली सभी विषम परिस्थितियों, समस्याओं, कार्य बाधाओं, व्यापार में अत्यधिक नुकसान आदि से संकटों से मुक्ति पा सकता है. विद्यार्थियों अथवा प्रतियोगी छात्रों को भी इनकी आराधना से पढ़ाई अथवा परीक्षा में आ रही बाधाओं से छुटकारा मिल सकता है.
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि, सावन में इस बार भगवान शिव की पूजा के साथ ही भगवान विष्णु की पूजा का महत्व भी बताया जा रहा है. दरअसल इस बार सावन मास के बीच में मलमास यानी कि अधिक मास भी लग रहा है. इसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है. इस महीने में भगवान पुरुषोत्तम यानी कि विष्णुजी की पूजा का विशेष महत्व होता है. भारतीय ज्योतिष के अनुसार हर तीन साल पर अधिकमास यानी मलमास आते हैं.
श्रीहरि को प्रिय है अधिकमास :-
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि इस मास की गिनती मुख्य महीनों में नहीं होती है. ऐसी कथा है कि जब महीनों के नाम का बंटवारा हो रहा था तब अधिकमास उदास और दुखी था. क्योंकि उसे दुख था कि लोग उसे अपवित्र मानेंगे. ऐसे समय में भगवान विष्णु ने कहा कि अधिकमास तुम मुझे अत्यंत प्रिय रहोगे और तुम्हारा एक नाम पुरुषोत्तम मास होगा जो मेरा ही एक नाम है. इस महीने का स्वामी मैं रहूंगा. उस समय भगवान ने यह कहा था कि इस महीने की गिनती अन्य 12 महीनों से अलग है इसलिए इस महीने में लौकिक कार्य भी मंगलप्रद नहीं होंगे. लेकिन कुछ ऐसे कार्य हैं जिन्हें इस महीने में किए जाना बहुत ही शुभ फलदायी होगा और उन कार्यों का संबंध मुझसे होगा.
नहीं होंगे शुभ कार्य :-
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि अधिकमास यानी मलमास में विवाह जैसे कई कार्यों पर रोक रहती है. इसके अलावा नया व्यवसाय भी शुरू नहीं किया जाता. इस मास में कर्णवेध, मुंडन आदि कार्य भी वर्जित माने जाते हैं. इस बार मलमास के कारण सावन दो महीने तक रहेगा. यह संयोग 19 साल बाद आ रहा है. ऐसे में दो महीने तक भोले की भक्ति विशेष फलदायी रहेगी. सूर्य और चंद्र वर्ष के बीच के अंतराल को मलमास संतुलित करता है. इस मास में शुभ कार्यों को वर्जित माना गया है. ऐसे में गृह प्रवेश, मुंडन जैसे शुभ कार्य नहीं होंगे.
13वां महीना होगा मलमास :-
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि इस साल पंचांग गणना के अनुसार मलमास लग रहा है जिसे पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं. संयोग ऐसा बना है कि मलमास सावन महीना में लगा है. जिससे अबकी बार सावन का महीना एक 59 दिनों का होगा. ऐसा इसलिए होगा क्योंकि दो महीना इस साल सावन का माना जाएगा. ऐसे में पहला सावन का महीना जो मलमास होगा उसमें सावन से संबंधित शुभ काम नहीं किए जाएंगे. दूसरे सावन के महीने में यानी शुद्ध सावन मास में सभी धार्मिक और शुभ काम किए जाएंगे.
कब से कब तक होगा मलमास :-
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि, इस साल 18 जुलाई से अधिकमास यानी मलमास का आरंभ हो जाएगा और फिर 16 अगस्त को मलमास समाप्त होगा. अच्छी बात यह है कि मलमास लगने से पूर्व ही सावन की शिवरात्रि 15 जुलाई को समाप्त हो जाएगी. लेकिन रक्षाबंधन के लिए करना होगा लंबा इतंजार. सामान्य तौर पर सावन शिवरात्रि के 15 दिन बाद ही रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है लेकिन मलमास लग जाने से सावन शिवरात्रि और रक्षाबंधन में 46 दिनों का अंतर आ गया है.
अधिकमास में करें ये कार्य :-
सत्यनारायण भगवान की पूजा : ज्योतिषाचार्य ने बताया कि अधिकमास में श्रीहरि यानी भगवान विष्णु की पूजा करना सबसे श्रेष्ठ माना जाता है. इसलिए अधिकमास में वैसे तो सभी प्रकार के शुभ कार्यों की मनाही होती है. लेकिन भगवान सत्यनारायण की पूजा करना सबसे शुभफलदायी माना जाता है. अधिकमास में विष्णुजी की पूजा करने से माता लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं और आपके घर में धन वैभव के साथ सुख और समृद्धि आती है.
महामृत्युंजय मंत्र का जप: ज्योतिषाचार्य ने बताया कि अधिकमास में ग्रह दोष की शांति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप करना सबसे श्रेष्ठ माना जाता है. बेहतर होगा कि आप किसी पुरोहित से संकल्प करवाकर महामृत्युंजय मंत्र का जप करवाएं. ऐसा करने से आपके घर से सभी प्रकार के दोष समाप्त होंगे और आपके घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ेगा.
यज्ञ और अनुष्ठान: ज्योतिषाचार्य ने बताया कि, अगर आप काफी समय से अपनी किसी मनोकामना को लेकर यज्ञ या अनुष्ठान करवाने के बारे में सोच रहे हैं तो अधिकमास का समय इस कार्य के लिए सर्वश्रेष्ठ है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अधिकमास में करवाए जाने वाले यज्ञ और अनुष्ठान पूर्णत: फलित होते हैं और भगवान अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.
ब्रजभूमि की यात्रा : ज्योतिषाचार्य ने बताया कि पुराणों में बताया गया है कि अधिकमास में भगवान विष्णु और उनके सभी अवतारों की पूजा करना सबसे उत्तम माना जाता है. अधिकमास के इन 30 दिनों में अक्सर लोग ब्रज क्षेत्र की यात्रा पर चले जाते हैं.
अधिकमास का महत्व :-
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि परमेश्वर श्रीविष्णु द्वारा वरदान प्राप्त मलमास अथवा पुरुषोत्तम मास की अवधि के मध्य श्रीमद्भागवत का पाठ, कथा का श्रवण, श्रीविष्णु सहस्त्रनाम, श्री राम रक्षास्तोत्र, पुरुष सूक्त का पाठ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॐ नमो नारायणाय जैसे मंत्रों का जप करके मनुष्य श्री हरि की कृपा का पात्र बनता है. अधिकमास में निष्काम भाव से किए गए जप-तप पूजा-पाठ ,दान-पुण्य, अनुष्ठान आदि का महत्व सर्वाधिक रहता है. परमार्थ सेवा, असहाय लोगों की मदद करना, बुजुर्गों की सेवा करना, वृद्ध आश्रम में अन्न वस्त्र का दान करना, विद्यार्थियों को पुस्तक का दान कथा संत महात्माओं को धार्मिक ग्रंथों का दान करना, सर्दियों के लिए ऊनी वस्त्र कंबल आदि का दान करना सर्वश्रेष्ठ फलदाई माना गया है. इस मास में किए गए जप-तप, दान पुण्य का लाभ जन्म जन्मांतर तक दान करने वाले के साथ रहता है. लगभग तीन वर्षों के अंतराल में पढ़ने वाले इस महापर्व का भरपूर लाभ उठाना चाहिए. जिस चन्द्रवर्ष में सूर्य संक्रांति नहीं पड़ती उसे मलमास कहा गया है जिसका सीधा संबंध सूर्य और चंद्रमा की गति के आधार पर निर्धारित होता है.
दान का खास महत्व :-
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि अधिक मास में जरूरतमंद लोगों को अनाज, धन, जूते-चप्पल और कपड़ों का दान करना चाहिए. अभी बारिश का समय है तो इन दिनों में छाते का दान भी कर सकते हैं. किसी मंदिर में शिव जी से जुड़ी चीजें जैसे चंदन, अबीर, गुलाल, हार-फूल, बिल्व पत्र, दूध, दही, घी, जनेऊ आदि का दान कर सकते हैं।
आज देवशयनी एकादशी है. आज से चातुर्मास लग जाएगा और भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाएंगे. इसके बाद अगले चार महीने तक सृष्टि का संचालन भगवान शिव करेंगेे. अगले चार महीने शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित रहेंगे।
Devshayani Ekadashi 2023: आज आषाढ़ माह की देवशयनी एकादशी है. इस एकादशी से श्री हरि विष्णु योग निद्रा मे चले जाते हैं और चार माह तक शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित हो जाते हैं. इस अवधि को चातुर्मास कहते हैं. चातुर्मास में सृष्टि का संचालन भगवान शिव के हाथों में होता है. आइए देवशयनी एकादशी की पूजन विधि, शुभ मुहूर्त और पौराणिक कथा के बारे में जानते हैं.
देवशयनी एकादशी पूजा विधि :
देवशयनी एकादशी पर स्नानादि के बाद पूजा के स्थान को अच्छी तरह से साफ करें. इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा या मूर्ति स्थापित करें. भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, पीला प्रसाद और पीला चंदन अर्पित करें. भगवान विष्णु को पान, सुपारी चढ़ाएं. फिर उनके आगे दीप जलाएं और पूजा करें. इसके बाद 'सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्. विबुद्धे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्' मंत्र का जाप जरूर करें।
देवशयनी एकादशी शुभ मुहूर्त :
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 29 जून को सुबह 3 बजकर 17 मिनट से लेकर 30 जून को सुबह 2 बजकर 42 मिनट तक रहेगी. इस दिन तीन शुभ मुहूर्तों में श्री हरि की पूजा की जा सकती है।
अमृत काल: सुबह 07:31 बजे से सुबह 09:09 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:56 बजे से दोपहर 12:52 बजे तक
विजय महूर्त: दोपहर 02:44 बजे से दोपहर 03:39 बजे तक
मोर मुकुट पीतांबर शोभे... 🙏
नवीन मुकुट धारण किए हुए श्री हरि के दर्शन करिए। 🙏
॥ श्रीपतिवेंकटेश्वराय नमः ॥
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