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ज्योतिष सेवा
त्रियुगी नारायण मंदिर उत्तराखंड जहाँ शिव-पार्वती के सात फेरे हुए थे!
देवों की भूमि से प्रशिद्ध उत्तराखंड अपनी पौराणिक कथाव संस्कृति व प्राकृतिक सौंदर्यता से परिपूर्ण अपनी अलौकिक छवि प्रदर्शित करता है यहां के कण- कण में देवी देवताओ का वास बताया जाता है जो समय समय पर देवी-देवताओ द्वारा अवतार लिए जाते है।
यह देवभूमि में अनेक धार्मिक स्थलों के अतिरिक्त विभिन प्रकार की पवित्र नदियों का उद्गम स्थल भी है उन्ही पौराणिक स्थलों में से एक है त्रियुगीनारायण मंदिर जो भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित एक पवित्र स्थल है।
ये त्रिजुगी नारायण मंदिर कहां है?
यह भव्य धार्मिंक स्थल भगवन विष्णु जी को समर्पित उत्तरखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले के त्रिजुगीनारायण गाँव में स्थित है।
यह प्राचीन धार्मिक स्थल पगडण्डी मार्ग गुटठुर माध्यम से यह श्री केदारनाथ को जोड़ता है। इस मंदिर में जो भी भक्तजन श्रद्धा भावना से आता है यह मंदिर में स्थानियों लोगो में बहुत अधिक लोकप्रिय मान्यता है की इस मंदिर पर भगवन विष्णु द्वारा देवी पार्वती के शिव से विवाह के स्थल के रूप में श्रेय दिया जाता है।
इस मंदिर की बनावट श्री केदारनाथ धाम मंदिर पर जैसी प्रदर्शित होती हैं।
त्रिजुगी नारायण मंदिर मान्यताये क्या है ?
त्रिजुगी नारायण मंदिर यह स्थान में भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह सम्पन हुआ था। इस मंदिर कि एक मुख्य विशेषता है कि मंदिर के अंतर्गत अग्नि ज्योत तीन युगो से जलते हुए आ रही है।
इसलिए इस मंदिर को त्रियुगी कहा जाता है। मान्यता है कि इस ज्योती को साक्षी मानकर विवाह करने वाले जोड़े एक जीवनभर खुशाल जीवन यापन करते है और जीवन भर प्रसन्न रहते है।
त्रियुगीनारायण मंदिर का अतीत है क्या ?
त्रियुगीनारायण मंदिर का इतिहास पौराणिक काल से मन जाता है।
ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर माना जाता है की त्रियुगीनारायण मंदिर भगवान शिव जी एवं माता पार्वती की विवाह स्थल के रूप में जानी जाती है।
यही वह स्थान है जहाँ पर भगवान् शिव जी एवं माँ पार्वती जी ने अग्नि को साक्षी मान कर विवाह किया था।
पौराणिक मान्यता है की मंदिर के अंदर प्रज्वलित अग्नि युगों से जल रही है जिसके कारण इस स्थल का नाम त्रियुगी हो गया यानी तीन युगों से जल रही अग्नि।
वेदों में उल्लेख है कि यह त्रियुगीनारायण मंदिर त्रेतायुग से स्थापित है।
शिव पार्वती के विवाह में भगवान विष्णु जी ने पार्वती के भाई के रूप में सभी रीतियों का पालन किया था।
त्रियुगीनारायण मंदिर की मान्यता है की जो भक्त मंदिर के दर्शन के लिए आते है वह मंदिर अखंड ज्योति की भभूत (भस्म) अपने साथ ले जाते हैं शिव-पार्वती की कृपा भगवान् शिव और माँ पार्वती की कृपा से उनका वैवाहिक जीवन मंगलमय बना रहें।
ज्योतिषाचार्य एवं हस्तरेखाशास्त्री
विनोद सोनी पौद्दार
भोपाल,मधयप्रदेश,भारत
9993031142
सावधान हो जाये यदि आपकी कुण्डली में इस प्रकार के कुंडली में सबसे बुरे योग अगर आपकी कुंडली में भी उपस्थित हैं तो जल्द से जल्द करवाएं इनका निदान
जातक का संपूर्ण जीवन उसकी कुंडली का ही आईना होता है,
सौरमंडल के नौ ग्रह हमारे जन्म के समय किस स्थिति और दशा में थे, इसके आधार पर कुंडली का निर्माण होता है और यही कुंडली हमारे जीवन का आधार बन जाती है।
अगर ये ग्रह अच्छे रहे तो निश्चित तौर पर ये हमारे जीवन पर अपना शुभ प्रभाव डालेंगे, इनसे बनने वाले योग भी अशुभ ही होंगे जो हमें सुख, खुशहाली प्रदान करेंगे।
लेकिन अगर हमारे जन्म के समय इनका प्रभाव हमारे ऊपर अच्छा या सकारात्मक नहीं रहा तो जाहिर सी बात है अपना अशुभ फल देने से भी नहीं चूकेंगे।
(1)- अंगारक, विष कन्या, कालसर्प....
इन सब बुरे योगों के बारे में तो अकसर हम सुनते आए हैं, लेकिन इस लेख के जरिए हम आपको कुछ
ऐसे योग से भी परिचित करवाएंगे जिनके बारे में भले ही बहुत कम लोग जानते हैं लेकिन ये कहीं ज्यादा भयानक और घातक है। अगर आपकी कुंडली में भी इनमें से कोई योग है,
तो आपको अच्छे ज्योतिष की सलाह लेने की आवश्यकता है।
(2)- ऐसे ही बुरे योग में सबसे पहला नाम है केमदु्रम योग का, यह योग कुंडली में चंद्रमा के वजह से बनता है।
जब चंद्रमा दूसरे या बारहवें भाव में होता है और चंद्र के आगे-पीछे के भावों में कोई गृह ना हो तो यह स्थिति केमदुरम योग कही जाती है। जिस किसी भी जातक की कुंडली में यह योग होता है
उसे आजीवन आर्थिक कष्ट झेलना पड़ता है। और उसका जीवन संकटों से घिरा रहता है।
उपाय- अगर आपकी कुंडली में ये योग है तो आपको भगवान गणेश और
माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए नियमित तौर पर हर शुक्रवार महालक्ष्मी को लाल गुलाब अर्पित करें
(3)- कुंडली में अगर किसी भाव में चंद्रमा और राहु या केतु साथ बैठे हों तो यह स्थिति ग्रहण योग कहलाती है। यदि इसमें सूर्य भी साथ हो जाए तो ऐसे व्यक्ति की मानसिक स्थिति बहुत ज्यादा खराब हो जाती है।
वह एक जगह स्थिर नहीं बैठता है, वह व्यापार,नोकरी,और अपना आवास स्थान में बदलाव करता ही रहता है। ऐसे व्यक्ति को पागलपन के दौरे भी पड़ सकते हैं।
उपाय- अगर आपकी कुंडली में भी ऐसे योग बनते हैं तो आपको सूर्य की अराधना करनी चाहिए, ताकि ग्रहण योग का प्रभाव कम से कम हो जाए।
(4)- यदि आपकी की कुंडली में गुरु के साथ राहु भी उपस्थित होता है उसकी कुंडली में चांडाल योग बनता है। इस योग को गुरु चांडाल योग भी कहा जाता है। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव शिक्षा और आर्थिक स्थिति पर पड़ता है।
उपाय- अगर आप भी इस योग की चपेट में हैं तो आपको गुरु की अराधना करनी चाहिए, उसे मजबूत करने के उपाय करने चाहिए।
(5)- मंगल जिसे क्षत्रीय ग्रह माना जाता है, जब कुंडली के लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या बारहवें भाव में हो तो यह कुज योग बनाता है। सामान्य भाषा में इसे मंगल दोष भी कहा जाता है। जिस किसी भी जातक की कुंडली में यह योग बनता है उसका विवाहित जीवन कष्टप्रद हो जाता है।
उपाय- इसलिए विवाह पूर्व वर-वधु की कुंडली अवश्य मिलवा लेनी चाहिए।
मंगल दोष निदान के लिए पीपल और वट वृक्ष पर नियमित तौर पर जल चढ़ाना और कम से कम पांच परिक्रमा प्रति दिन करनी चाहिए।
(6)- यदि कुंडली का लग्नेश आठवें घर में विराजमान हो और उसके साथ कोई भी शुभ ग्रह ना बैठा हो तो यह षडयंत्र योग बनता है। यह योग बहुत खराब माना गया है क्योंकि जो भी जातक इस योग की चपेट में आता है उसे किसी करीबी व्यक्ति के षड्यंत्र का सामना करना पड़ता है।
उसके साथ धोखेबाजी होती है और अपना ही कोई व्यक्ति उसे बड़ी मुसीबत में फंसा देता है।
इस दोष को शांत करने के लिए भगवान शिव और शिव परिवार की पूजा करनी चाहिए।
प्रत्येक सोमवार शिवलिंग पर जल और आक के फूल चढ़ाने चाहिए।
(7)- जन्मकुंडली में जब किसी भी भाव का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें स्थान पर जाकर बैठ जाता है
तो वह उस भाव के सभी प्रभावों को नष्ट कर देता है।
उपाय- कुंडली में जिस ग्रह को लेकर भावनाशक योग बन रहा है उससे संबंधित
दिन अर्थात वार को पवनपुत्र हनुमानजी की पूजा करनी चाहिए और साथ ही
संबंधित ग्रह के रत्न पहनकर भी उसका प्रभाव बढ़ाया जा सकता है।
(8)- चंद्रमा पाप ग्रहों से युति कर और साथ ही उसकी बैठकी छठे, आठवें या बारहवें स्थान पर हो
या फिर लग्नेश पर पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तो ऐसा व्यक्ति निश्चित तौर पर अल्पायु होता है।
उसके जीवन पर हर समय खतरा मंडराता रहता है।
उपाय- इस योग के प्रभाव से मुक्ति पाने के लिए व्यक्ति को महामृत्युंजय का जाप करते
रहना चाहिए या सुयोग्य पात्र से समय-समय पर करवाते रहना लाभ दायक होता हे,
ज्योतिषाचार्य एवं हस्तरेखार्विंद
विनोद सोनी पौद्दार
भोपाल,म,प्र,भारत
9993031142
शनि और चंद्रमा का संयोग जातक के लिए बेहद कष्टकारी माना जाता है।
शनि अपनी धीमी प्रकृति के लिए बदनाम है और चंद्रमा अपनी द्रुत गति के लिए विख्यात। किंतु शनि क्षमताशील होने की वजह अक्सर चंद्रमा को प्रताड़ित करता है।
यदि चंद्र और शनि की युति कुंडली के किसी भी भाव में हो, तो ऐसे में उनकी आपस में दशा-अंतर्दशा के दौरान विकट फल मिलने की संभावना बलवती होती है।
शनि धीमी गति, लंगड़ापन, शूद्रत्व, सेवक, चाकरी, पुराने घर, खपरैल, बंधन, कारावास, आयु, जीर्ण-शीर्ण अवस्था आदि का कारक ग्रह है जबकि चंद्रमा माता, स्त्री, तरल पदार्थ, सुख, सुख के साथ, कोमलता, मोती, सम्मान, यश आदि का कारकत्व रखता है।
शनि और चंद्र की युति से विष योग नामक दुर्लभ अशुभ योग की सृष्टि होती है।
ये विष योग जातक के जीवन में यथा नाम विषाक्तता घोलने में पूर्ण सक्षम है।
जिस भी जातक की कुण्डली में विष योग का निर्माण होता है, उसे जीवन भर अशक्तता, मानसिक बीमारी, भ्रम, रोग, बिगड़े दाम्पत्य आदि का सामना करना पड़ता है।
हां, जिस भी भाव में ऐसा विष योग निर्मित हो रहा हो, उस भाव अनुसार भी अशुभ फल की प्राप्ति होती है।
जैसे यदि किसी जातक के लग्न चक्र में शनि-चंद्र के संयोग से विष योग बन रहा हो तो ऐसा जातक शारीरिक रूप से बहुत अक्षम अनुभव करता है।
उसे जीवनभर कंगाली और दरिद्रता का भी सामना करना पड़ता है।
लग्न में शनि-चंद्र के बैठ जाने से उसका प्रभाव सप्तम भाव पर बहुत नकारात्मक होता है, जिससे जातक का घरेलू दाम्पत्य जीवन बहुत बुरा जाता है।
लग्न शरीर का प्रतिनिधि है इसलिए इस पर चंद्र और शनि की युति बहुत नकारात्मक असर छोड़ती है।
जातक जीवन भर रोग-व्याधि से पीड़ित रहता है।
इसी प्रकार यदि द्वितीय भाव में शनि-चंद्र का संयोग बने तो जातक जीवन भर धनाभाव से ग्रसित होता है।
तृतीय भाव में यह युति जातक के पराक्रम को कम कर देती है।
चतुर्थ भाव में सुख और मातृ सुख की न्यूनता तथा पंचम भाव में संतान व विवेक का नाश होता है।
छठे भाव में ऐसी युति शत्रु-रोग-ऋण में बढ़ोत्तरी व सप्तम भाव में शनि-चंद्र का संयोग पति-पत्नी के बीच सामंजस्य को खत्म करता है।
अष्टम भाव में आयु नाश व नवम भाव में भाग्य हीन बनाता है। दशम भाव में ऐसी
युति पिता से वैमनस्य व पद-प्रतिष्ठा में कमी एवं ग्यारहवें भाव में एक्सिडेंट करवाने की संभावना बढ़ाने के साथ लाभ में न्यूनता लाती है।
जबकि बारहवें भाव में शनि-चंद्र की युति व्यय को आय से बहुत अधिक बढ़ाकर जातक का जीवन कष्टमय बना देने में सक्षम है।
ज्योतिषाचार्य एंव हस्तरेखर्विंद पौद्दार
भोपाल म,प्र,भारत
9993031142
जीवन वो फूल है जिसमें काँटे तो बहुत हैं मगर सौन्दर्य की भी कोई कमी नहीं।
ये और बात है कुछ लोग काँटो को कोसते रहते हैं और कुछ सौन्दर्य का आनन्द लेते हैं।
जीवन को बुरा सिर्फ उन लोगों के द्वारा कहा जाता है जिसकी द्रष्टि फूलों पर नही और काँटो पर ही लगी रहती है।
जीवन का तिरस्कार वे ही लोग करते हैं जिनके लिए यह मूल्यहीन है।
जीवन में सब कुछ पाया जा सकता है परन्तु सब कुछ देने पर भी जीवन को नहीं पाया जा सकता है।
जीवन का तिरस्कार नहीं अपितु इससे प्यार करो।
जीवन को बुरा कहने की अपेक्षा जीवन की बुराई मिटाने का प्रयास करो, यही समझदारी है।
"सुंदरता" और "सरलता"की तलाश चाहे ...
हम सारी दुनिया घूमके कर लें,लेकिन.....
अगर वो हमारे भीतर नहीं तो फिर सारी दुनिया में कहीं नहीं है ।
भगवान श्रीकृष्ण ने हर लीला के माध्यम से अधर्म को सहन करने की लत से सभी के दबे और सोए आत्मविश्वास और पराक्रम को अन्दर से जगाया है।
भगवान होकर भी श्रीकृष्ण का सांसारिक जीव के रूप में लीलाएं करने के पीछे आशय उन आदर्शों को स्थापित करना ही था, जिनको साधारण मनुष्य देख, समझ व अपनाकर स्वमं की शक्तियों को जगाए और जीवन को सही दिशा व सोच के साथ सफल बनाए।
इसलिए भगवान श्रीकृष्ण को ‘लीलाधर’ भी पुकारे जाते हैं।
ज्योतिषाचार्य एवं हस्तरेखाशास्त्री
विनोद सोनी पौद्दार
भोपाल, मध्यप्रदेश,भोपाल
9993031142
बुद्ध पूर्णिमा, जिसे वेसाक के नाम से भी जाना जाता है, दुनिया भर में बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है।
यह शुभ दिन बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञानोदय और मृत्यु का प्रतीक है और बौद्ध संप्रदायों द्वारा बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है।
23 मई, 2024 आज बुद्ध पूर्णिमा का पर्व मनाया जा रहा है ।
बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर, कई भक्त बौद्ध मंदिरों में जाते हैं और वहां भगवान बुद्ध के जीवन और उनकी शिक्षाओं और सिद्धांतों के बारे में भजन और उपदेश पढ़ते हुए दिन बिताते हैं।
बुद्ध की मूर्ति की पूजा करने के लिए फूल और मोमबत्तियाँ अर्पित की जाती हैं, जिसे पानी से भरे बेसिन में रखा जाता है।
इस दिन बुद्ध की शिक्षाओं का निष्ठा से पालन किया जाता है और इस प्रकार, भक्त मांसाहारी भोजन से बचते हैं, गरीबों को दान और खीर भेंट में देते हैं और पवित्रता बनाए रखने के लिए सफेद वस्त्र धारण करते हैं।
इस दिव्य दिन पर, भगवान बुद्ध का आशीर्वाद आप पर बना रहे। शांतिपूर्ण बुद्ध पूर्णिमा हो।
भगवान बुद्ध का ज्ञान आपकी दुनिया को प्रबुद्ध करे और आपका मार्गदर्शन करे। बुद्ध पूर्णिमा की शुभकामनाएँ।
ज्योतिषाचार्य एवं हस्तरेखाशास्त्री
विनोद सोनी पौद्दार
भोपाल,मधयप्रदेश,भारत
9993031142
खसरा
खसरा जिसे अंग्रेज़ी में मीसल्स कहते हैं,एक विषाणु (वायरस) द्वारा फैलाए जाने वाला श्वसन प्रणाली,प्रतिरक्षा प्रणाली तथा त्वचा का संक्रमण है जो बच्चों में होता है | इसके लक्षण संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने के ७-१४ दिन बाद प्रकट होते हैं | इसके प्रारम्भिक लक्षणों में बच्चे को छींकें आना,नाक बहना,आँखे लाल होना तथा सूखी खांसी होती है| बुखार भी १०३-१०४ डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता है | बुखार होने के ३-४ दिन बाद से चेहरे और छाती पर लाल दाने दिखने लगते हैं | जैसे-जैसे दाने समाप्त होने लगते हैं, बुखार और खांसी भी समाप्त होने लगती हैं | खसरा के विषाणु किसी भी स्वस्थ बच्चे के कंठ, नाक और गले की श्लेष्मिक कला पर संक्रमण करते हैं | इस रोग में औषधियों की अपेक्षा रोगी की देखभाल आवश्यक है | रोगी को अधिक से अधिक आराम कराना चाहिए | तो आइये जानते हैं खसरा के कुछ सरल घरेलु उपचार-
१- प्रतिदिन तुलसी के पत्तों का एक चम्मच रस रोगी को पिलायें | लगातार ३-४ तक यह प्रयोग करने से खसरे के रोग में लाभ होता है |
२- खसरा निकलने के बाद शरीर में जलन और खुजली होती है | इसके लिए ३-४ आंवले एक भगोने पानी में उबाल लें | ठंडा होने के बाद इस पानी से प्रतिदिन शरीर को साफ़ करें, इससे खसरे की खुजली और जलन दूर होती है |
३- नागरमोथा,गिलोय,खस,धनिया और आंवला को बराबर मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बना लें | इसमें से ५ ग्राम चूर्ण को ३०० ग्राम पानी में उबालकर काढ़ा बना लें | इसे छानकर थोड़ी -थोड़ी मात्रा में दो से तीन बार बच्चे को पिलाने से बहुत आराम होता है |
४- खसरा के रोगी को प्यास बहुत अधिक लगती है और बार-बार पानी पीने से उसे उल्टी होने लगती है | ऐसे में पानी उबालते समय उसमे ३-४ लौंग दाल दें ,इस पानी को छानकर थोड़ी -थोड़ी मात्रा में रोगी को पिलाने से प्यास समाप्त होती है |
५- खस ,चन्दन और हल्दी सामान मात्रा में मिलाकर गुलाबजल में पीसकर लेप बना लें | खुजली वाले अंगों पर सुबह शाम लगाने से शान्ति मिलती है |
ईश्वर स्वभाव से ही दयालु व कृपालु है । भक्तवत्सल प्रभु हजार हाथो से देते है। लेकिन जब आप उनके दिये गए जीवन का, संसाधनो का, विभिन्न प्रकार के पदार्थो का, कृपा का सदुपयोग नहीं करोगे तो ? तो वे उसे वापस ले लेते है। यही न्याय है । क्यो कि दयालु व कृपालु होने के साथ साथ ईश्वर न्यायकारी भी है। देने और छीनने वाले ईश्वर है, किन्तु वे अपनी इच्छा से नहीं बल्कि आपके कर्मो के, आपके आचरण के आधार पर ही , सुख व दुख प्राप्त कराते है। अपने भाग्य के , अपने सुख दुख के निर्माता आप स्वयं है। ईश्वर निरपेक्ष रहकर केवल न्याय करते है । अतः सब सज्जनों से प्रेम करे, उनका सम्मान करे। , किसी भी प्रकार की हिंसा का त्याग करे। बाहर और भीतर दोनों ओर से शुद्ध रहे। यही भगवद कृपा प्राप्ति का सोपान है। ओ३म् । जय श्री राम
तुलसी के बीज का औषधीय उपयोग........
जब भी तुलसी में खूब फूल यानी मञ्जरी लग जाए तो उन्हें पकने पर तोड़ लेना चाहिए वरना तुलसी के पौधे में चीटियाँ और कीड़ें लग जाते है और उसे समाप्त कर देते है इन पकी हुई मञ्जरियों को रख ले , इनमे से काले काले बीज अलग होंगे उसे एकत्र कर ले , इसे सब्जा कहते है
अगर आपके घर में तुलसी के पौधे नही है तो बाजार में पंसारी या आयुर्वैदिक दवाईयो की दुकान से भी तुलसी के बीज ले सकते हैं वहाँ पर भी ये आसानी से मिल जाएंगे |
शीघ्र पतन एवं वीर्य की कमी
तुलसी के बीज 5 ग्राम रोजाना रात को गर्म दूध के साथ लेने से समस्या दूर होती है,
नपुंसकता
तुलसी के बीज 5 ग्राम रोजाना रात को गर्म दूध के साथ लेने से नपुंसकता दूर होती है और यौन-शक्ति में बढ़ोत्तरी होती है।
मासिक धर्म में अनियमियता
जिस दिन मासिक आए उस दिन से जब तक मासिक रहे उस दिन तक तुलसी के बीज 5-5 ग्राम सुबह और शाम पानी या दूध के साथ लेने से मासिक की समस्या ठीक होती है और जिन महिलाओ को गर्भधारण में समस्या है वो भी ठीक होती है
तुलसी के पत्ते गर्म तासीर के होते है पर सब्जा शीतल होता है .
इसे फालूदा में इस्तेमाल किया जाता है .
इसे भिगाने से यह जैली की तरह फूल जाता है .
इसे हम दूध या लस्सी के साथ थोड़ी देशी गुलाब की पंखुड़ियां डाल कर ले तो गर्मी में बहुत ठंडक देता है .
इसके अलावा यह पाचन सम्बन्धी गड़बड़ी को भी दूर करता है तथा यह पित्त घटाता है ये त्रिदोषनाशक व क्षुधावर्धक है
कुंडली में चंद्र से संबंधित कोई दोष हो तो क्या करें ?
कुंडली में ग्रह दोषों की वजह से जीवन में कई प्रकार की परेशानियों आती रहती है।
ऐसे में यदि ग्रह दोषों को दूर करने के लिए ज्योतिष में बताए गए उपाय करने पर निश्चित ही लाभ प्राप्त होता है।
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्र से संबंधित कोई दोष हो तो सोमवार यह
उपाय करें-
सोमवार को शिवलिंग पर जल चढ़ाएं और
ॐ नम: शिवाय
मंत्र का जप करें।
शिवजी को जल चढ़ाने के बाद दूध चढ़ाएं।
दूध के बाद बिल्वपत्र, अक्षत (चावल), कुमकुम, पुष्प आदि अर्पित करें।
प्रति सोमवार शिवजी की विधि-विधान से पूजा करें।
किसी जरूरतमंद या ब्राह्मण को सफेद वस्त्रों का दान करें।
किसी मंदिर में शकर, चावल, दूध का दान करें।
छोटी-छोटी लड़कियों को खीर बनाकर खिलाएं।
नदी, तालाब या कुएं में दूध प्रवाहित करें।
चंद्र ग्रह के निमित्त किसी ब्राह्मण से विशेष पूजन कराएं।
ज्योतिषाचार्य एवं हस्तरेखार्विंद
विनोद सोनी पौद्दार
भोपाल.म.प्र.भारत
9993031142
क्या हे घर की पूजा में दीपक जलाने का महत्त्व?
बहुत कम लोगों को पता है कि पूजा में जलाया जाने वाला दीपक कई प्रकार के ग्रह-दोषों को भी शांत करता है। इसके अतिरिक्त इस दौरान दीपक का प्रयोग किया जाना उस जगह पर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। इसके अलावा भी पूजा के दौरान दीपक जलाया जाना कई प्रकार से महत्व रखता है। यही वजह कि हर प्रकार की पूजा में दीपक जलाया जाना अनिवार्य समझा जाता है तथा इसके बिना पूजा-अर्चना अधूरी मानी जाती है।
शास्त्रीय मान्यताओं में अलग-अलग भगवान की पूजा में अलग-अलग प्रकार के दीपक जलाये जाने का महत्व बताया गया है जो आपकी मनोकामना भी पूरी कर सकते हैं। आगे हम आपको इसके बारे में बता रहे हैं।
अगर घर में लगातार आर्थिक समस्याएं बनी रहती हों या धन आने के बावजूद इसका संचय नहीं हो पाता, तो घर के मंदिर या पूजास्थल पर प्रतिदिन सुबह-शाम घी का दीपक जलाना शुरु कर दें। इससे मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं तथा धीरे-धीरे घर में धन का आगमन होने लगता है, साथ ही रोग-व्याधियों जैसी समस्याएं दूर होने लगती हैं। इस प्रकार घर में आय हुए धन का आप पूर्ण उपयोग कर पाएंगे।
सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए शनिदेव के मंदिर में सरसों के तेल का दीपक जलाएं। अगर कॅरियर-व्यापार में लोगों के साथ संबंध खराब होने के कारण नुकसान हो रहा हो या ऑफिस में बॉस या सहकर्मियों के साथ आपके मनमुटाव हों तो ऐसे में शनिवार के दिन किसी भी मंदिर में शनिदेव की प्रतिमा के सामने सरसों तेल का दीपक जलाएं। कुछ ही दिनों में लाभ होगा।
शत्रु अगर आपको नुकसान पहुंचा रहे हों, तो किसी भी भैरव मंदिर में शनिवार या सोमवार के दिन सरसों तेल का दीपक जलाने से जल्दी ही इससे छुटकारा मिलेगा। शनि दोषों के कारण जीवन में उथल-पुथल हो, तो प्रत्येक शनिवार के दिन पीपल वृक्ष के नीचे सरसों तेल का दीपक अवश्य जलाएं।
प्रसिद्धि तथा सफलता प्राप्ति कुंडली में सूर्य कमजोर होना व्यक्ति को सफलता से जहां दूर ले जाता है, वहीं सामाजिक सम्मान में भी कमी लाता है। ऐसी स्थिति में प्रतिदिन संध्याकाल में तेल का दीपक जलाना जल्द ही ऐसी स्थितियों से मुक्त करता है।
अगर परिवार का कोई सदस्य बार-बार बीमार पड़ता हो या लंबी बीमारी से पीड़ित हो, तो परिवार के मुखिया या किसी भी सदस्य को घर के मुख्य दरवाजे पर संध्याकाल में महुए के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इसके अतिरिक्त व्यक्ति अगर स्वयं भी प्रतिदिन सुबह सूर्यदेव को जल का अर्घ्य अर्पित करते हुए उनके समझ तेल का दीपक जलाए तो भी वह रोगों से मुक्त हो जाता है।
राहु-केतु के दुष्प्रभावों से पीड़ित व्यक्ति को जीवन में कभी सुख-शांति नहीं मिल पाती। अगर कुंडली में इन ग्रहों की नीच स्थिति हो तो नित्य सुबह या संध्याकाल में अलसी के तेल का दीपक जलाएं। जल्द ही स्थिति में सुधार होगा।
पारिवारिक सुख-शांति तथा मनोवांछित जीवनसाथी की प्राप्ति के लिए परिवार में झगड़े-कलह समाप्त ना हो रहे हों, हमेशा किसी ना किसी बात पर पति-पत्नी या परिवार के सदस्यों के बीच अनबन बनी रहती हो, तो भगवान राम की प्रतिमा के सामने घर या मंदिर में घी का दीपक जलाएं।
पारिवारिक सुख-शांति के लिए भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष पूजा के बाद सोलह बातियों का प्रयोग करते हुए घी का दीपक जलाएं। इसके अतिरिक्त प्रतिदिन कृष्ण मंदिर में घी का दीपक जलाने से मनोनुकूल जीवनसाथी की प्राप्ति होती है।
शिक्षा, व्यवसाय में सफलता तथा आर्थिक संपन्नता के लिए
अध्ययन-कला आदि से जुड़े लोग अगर प्रतिदिन मां सरस्वती की प्रतिमा के सामने दोमुखी घी का दीपक जलाएं तो उनके ज्ञान तथा कला में निखार आता है।
इसी प्रकार बुद्धिदेव भगवान गणेश के सामने तीन बातियों का प्रयोग करते हुए एक घी का दीपक प्रतिदिन जलाएं। जो भी व्यक्ति ऐसा करता है वह अपनी बुद्धि के बल पर प्रसिद्धि और सम्मान पाता है।
आर्थिक समृद्धि प्राप्ति तथा धन वृद्धि के लिए रोजाना मां लक्ष्मी के सामने सातमुखी घी का दीपक जलाएं। जल्द ही आपको आय के नए तथा लाभकारी स्रोत प्राप्त होने लगेंगे।
संकटों से मुक्ति के लिए भगवान भोलेनाथ को प्रलय का नाश करने वाला माना जाता है, इसलिए इनकी कृपा प्राप्त व्यक्ति को जीवन में कभी भी बुरे समय का सामना नहीं करना पड़ता या वह बुरे समय से आसानी से निकल जाता है। हर सोमवार को नियमित रूप से बारहमुखी घी का दीपक जलाने से भोलेनाथ जल्द ही प्रसन्न होते हैं। ऐसे व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
अलग-अलग मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु दीपक किस चीज से बना है यह भी महत्वपूर्ण होता है। पीतल, तांबा, सोना तथा चांदी जैसी धातुओं के अलावा विशेष मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आटे का दीपक जलाये जाने का भी विधान है।
इसमें मनोकामना अनुसार ही आटे का प्रयोग किया जाता है। सभी प्रकार की मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए चावल, गेहूं, उड़द, ज्वार तथा मूंग को मिलाकर आटा बनाएं तथा इससे बना दीपक जलाएं।
मनोकामना पूर्ति के लिए दीपक किस दिशा में जलाया गया है इसका भी अति महत्व होता है। आयु-धन वृद्धि तथा सर्वमनोकामना पूर्ति के लिए उत्तर दिशा में दीपक जलाएं।
साथ ही दक्षिण तथा पश्चिम दिशा में दीपक जलाने से हमेशा बचें। शास्त्रानुसार इन दो दिशाओं में दीपक जलाना निषेध है, ऐसा करना दुखों तथा विपत्ति को आमंत्रित करना है।
ज्योतिषाचार्य एवं हस्तरेखार्विंद
विनोद सोनीपौद्दार
भोपाल.म.प्र.भारत,
9993031142
नाखून पर बने सफेद निशान कुछ कहते हे ?
कई बार हम देखते हैं हमारे नाखूनों के ऊपर कुछ निशान दिखने लगते हैं कभी ये निशान पीलापन लिए होते हैं तो कभी ये पूरी तरह सफेद होते हैं। बहुत से लोगों के नाखूनों पर सफेद रंग के कुछ निशान होते हैं, जिनकी सहायता से व्यक्ति के स्वभाव और उसके चरित्र के विषय में बहुत कुछ जाना जा सकता है।
नाखूनों पर सफेद निशानों की सहायता से व्यक्तित्व के बारे में जानने की इस विधा को ऑनिकोमैंसी कहा जाता है। इस विधा के अंतर्गत आपके नाखूनों का आकार, उनका रंग और उस पर मौजूद विभिन्न निशानों को आधार बनाकर व्यक्ति के बारे में बहुत कुछ जाना जा सकता है।
अलग-अलग देशों, अलग-अलग समुदायों में इन निशानों की अलग-अलग व्याख्या की गई है। तो चलिए जानते हैं नाखूनों पर बने ये निशान आपके बारे में क्या कहते हैं।
सबसे पहले तो आप ये बात जान लें कि नाखूनों पर मौजूद ये सफेद निशान किसी के भी सौभाग्यशाली होने की निशानी हैं।
एक बहुत ही हैरानी भरी अवधारणा जर्मनी के लोगों के बीच व्याप्त है। हम शायद इस पर विश्वास ना करें लेकिन जर्मनी के लोग यह मानते हैं कि आपके नाखूनों पर जितने सफेद निशान हैं, आपके जीवन के साल भी कुछ इतने ही बाकी रह गए हैं।
तर्जनी अंगुली के नाखून पर सफेद निशान दिखाई देने लगा है तो इसका अर्थ यह है कि आपके जीवन में कोई नया दोस्त या नया साथी आने वाला है।
लेकिन अगर यह सफेद निशान आपको अपनी मध्यमा अंगुली के नाखून पर नजर आने लगा है तो हो सकता है गुपचुप तरीके से कोई आपसे दुश्मनी मोल लेने वाला है।
अनामिका अंगुली के नाखून पर अगर सफेद निशान ने दस्तक दी है तो यह बहुत लकी है। या तो आपके जीवन में कोई नया प्यार आने वाला है या फिर धन की बरसात होने वाली है।
अगर सफेद निशान आपकी सबसे छोटी यानि कनिष्ठिका अंगुली के नाखून पर पर आ गया है तो बस आप अपना बैग पैक कर लीजिए। अरे भई, आपको मजेदार यात्रा करनी पड़ सकती है।
अगर यह सफेद निशान आपके अंगूठे के नाखून पर है तो कोई बहुत ही प्रिय व्यक्ति आपको तोहफा देने की सोच रहा है। तो बस खुश हो जाइए, आपको गिफ्ट जो मिलने वाला है।
जहां सफेद निशान आपके गुड लक की बात कहते हैं वहीं काले निशान आपके लिए दुर्भाग्य लेकर आते हैं।
अगर आपके हाथ के नाखून अगर नीले से सफेद होने के कगार पर हैं तो यह दर्शाते हैं कि जब तक यह निशान सफेद होगा तब तक आपके हाथ में कोई सरप्राइज गिफ्ट जरूर आ जाएगा।
ये तो कुछ भी नहीं, बहुत सी परंपराओं में तो यह भी माना जाता है कि ये निशान आपको किसी के झूठे होने की निशानी भी देते हैं। निशानों की संख्या ही यह बताती है कि आप कितनी बार झूठ बोल चुके हैं।
अजीब तो हैं लेकिन यकीन मानिए ये मान्यताएं वाकई मौजूद हैं।
ज्योतिषाचार्य एवं हस्तरेखार्विंद
विनोद सोनी पौद्दार
भोपाल.म.प्र.भारत
9993031142
पाटण की रानी रुदाबाई जिसने सुल्तान बेघारा के सीने को फाड़ कर दिल निकाल लिया था, और कर्णावती शहर के बिच में टांग दिया था, ओर
धड से सर अलग करके पाटन राज्य के बीचोबीच टांग दिया था।
गुजरात से कर्णावती के राजा थे, राणा_वीर_सिंह_वाघेला( सोलंकी ), ईस राज्य ने कई तुर्क हमले झेले थे, पर कामयाबी किसी को नहीं मिली, सुल्तान बेघारा ने सन् 1497 पाटण राज्य पर हमला किया राणा वीर सिंह वाघेला के पराक्रम के सामने सुल्तान बेघारा की 40000 से अधिक संख्या की फ़ौज
2 घंटे से ज्यादा टिक नहीं पाई, सुल्तान बेघारा जान बचाकर भागा।
असल मे कहते है सुलतान बेघारा की नजर रानी रुदाबाई पे थी, रानी बहुत सुंदर थी, वो रानी को युद्ध मे जीतकर अपने हरम में रखना चाहता था। सुलतान ने कुछ वक्त बाद फिर हमला किया।
राज्य का एक साहूकार इस बार सुलतान बेघारा से जा मिला, और राज्य की सारी गुप्त सूचनाएं सुलतान को दे दी, इस बार युद्ध मे राणा वीर सिंह वाघेला को सुलतान ने छल से हरा दिया जिससे राणा वीर सिंह उस युद्ध मे वीरगति को प्राप्त हुए।
सुलतान बेघारा रानी रुदाबाई को अपनी वासना का शिकार बनाने हेतु राणा जी के महल की ओर 10000 से अधिक लश्कर लेकर पंहुचा, रानी रूदा बाई के पास शाह ने अपने दूत के जरिये निकाह प्रस्ताव रखा,
रानी रुदाबाई ने महल के ऊपर छावणी बनाई थी जिसमे 2500 धर्धारी वीरांगनाये थी, जो रानी रूदा बाई का इशारा पाते ही लश्कर पर हमला करने को तैयार थी, सुलतान बेघारा को महल द्वार के अन्दर आने का न्यौता दिया गया।
सुल्तान बेघारा वासना मे अंधा होकर वैसा ही किया जैसे ही वो दुर्ग के अंदर आया राणी ने समय न गंवाते हुए सुल्तान बेघारा के सीने में खंजर उतार दिया और उधर छावनी से तीरों की वर्षा होने लगी जिससे शाह का लश्कर बचकर वापस नहीं जा पाया।
सुलतान बेघारा का सीना फाड़ कर रानी रुदाबाई ने कलेजा निकाल कर कर्णावती शहर के बीचोबीच लटकवा दिया।
और..उसके सर को धड से अलग करके पाटण राज्य के बिच टंगवा दिया साथ ही यह चेतावनी भी दी की कोई भी आक्रांता भारतवर्ष पर या हिन्दू नारी पर बुरी नज़र डालेगा तो उसका यही हाल होगा।
इस युद्ध के बाद रानी रुदाबाई ने राजपाठ सुरक्षित हाथों में सौंपकर कर जल समाधि ले ली, ताकि कोई भी तुर्क आक्रांता उन्हें अपवित्र न कर पाए।
ये देश नमन करता है रानी रुदाबाई को, गुजरात के लोग तो जानते होंगे इनके बारे में। ऐसे ही कोई क्षत्रिय और क्षत्राणी नहीं होता, हमारे पुर्वज और विरांगानाये ऐसा कर्म कर क्षत्रिय वंश का मान रखा है और धर्म बचाया है।
दो लोगों को जोड़ने का काम प्रेम से कहीं अधिक.. दुःख ने किया है ll
गणेश जी के जन्म से जुडी कुछ रोचक ज्ञानवर्धक कहानियाँ :-
किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले गणेश आराधना को विशेष कहा गया है।
हिन्दू शास्त्रों और पौराणिक कथाओं में यह स्पष्ट तौर पर यह उल्लिखित किया गया है कि सर्वप्रथम भगवान गणेश के स्मरण से पहले किसी भी देवी-देवता की पूजा करना फलित नहीं हो पाएगा।
शिव और पार्वती की संतान गणेश को हम कई नामों से पुकारते हैं, लेकिन बहुत ही कम लोग ये बात जानते हैं कि इंसान के शरीर और गज के सिर वाले भगवान गणेश ने यह आकृति किन कारणों से प्राप्त की।
गणेश जी का जन्म और उनके प्रादुर्भाव से जुड़ी अनेक कथाएं प्रचलित हैं, वह किन परिस्थितियों में जन्मे और किन परिस्थितियों में उन्हें गज का सिर धारण करना पड़ा, इसके संबंध में अनेक कथा कहानियां हैं।
आज हम आपको ऐसी ही कुछ प्रसिद्ध कथाओं के विषय में बताते हैं, जो गणेश जी के प्रादुर्भाव की कहानी कहती हैं।
ग्रंथो के अनुसार गणपति शब्द गण और पति शब्द के युग्म से बना है। महर्षि पाणिनी के अनुसार दिशाओं को गण कहा जाता है। इस आधार से गणपति का अर्थ हुआ सभी दिशाओं का स्वामी। गणपति की आज्ञा के बिना कोई भी देवता किसी भी दिशा से पूजा स्थल पर नहीं पहुंचते।
पहले स्वयं गणपति आकर दिशाओं से जुड़ी बाधाओं को दूर करते हैं और फिर अन्य देवी-देवता वहां उपस्थित होते हैं। इस प्रक्रिया को महाद्वार पूजन या महागणपति पूजन भी कहा जाता है।
यही कारण है कि किसी भी देवी-देवता की पूजा अर्चना करने से पहले गणेश जी का आह्वान किया जाता है।
यह भी कहा जाता है कि एक बार देवताओं में मुखिया का निर्णय करने हेतु एक प्रतियोगिता का आरंभ हुआ। इस प्रतियोगिता में सभी गणों को समस्त ब्रह्मांड की परिेक्रमा करके शीघ्रातिशीघ्र वापस भगवान शिव तक पहुंचना था।
सभी देवताओं ने इस प्रतियोगिता में भाग लिया और अपने-अपने वाहन पर ब्रह्मांड की परिक्रमा करने निकल गए। गणेश जी ने ब्रह्मांड की परिक्रमा करने की अपेक्षा भगवान शिव और देवी पार्वती की ही परिक्रमा कर ली और यह कहा कि माता-
पिता की परिक्रमा ही ब्रह्मांड की परिक्रमा के समान है।
भगवान शिव, गणपति के इस उत्तर से संतुष्ट हुए और उन्होंने गणेश को विजेता घोषित कर गणपति के पद पर नियुक्त कर दिया। साथ ही साथ उन्हें यह वरदान दिया कि किसी भी कार्य का शुभारंभ या देवी-देवताओं की आराधना गणपति के स्मरण के बिना अधूरी ही रह जाएगी।
पुराण तो यह भी कहते हैं कि “ॐ” का अर्थ ही गणेश है।
इसी कारण किसी भी मंत्र से पहले ॐ यानि गणपति का नाम आता है।
गणपति को अनेक नामों से पुकारा जाता है, जिनमें विघ्नहर्ता, गणेश, विनायक आदि प्रमुख हैं। शिव और पार्वती के पुत्र भगवान गणपति के नामों में गणेश, गणपति, विघ्नहर्ता और विनायक सर्वप्रमुख हैं।
पौराणिक कथाओं में गणेश जी की ऋद्धि, सिद्धि दो पत्नियां और शुभ और लाभ नाम के दो पुत्रों का वर्णन किया गया है।
स्कंद पुराण में स्कंद अर्बुद खण्ड में भगवान गणेश के प्रादुर्भाव से जुड़ी कथा उपस्थित है जिसके अनुसार भगवान शंकर द्वारा मां पार्वती को दिए गए पुत्र प्राप्ति के वरदान के बाद ही गणेश जी ने अर्बुद पर्वत (माउंट आबू), जिसे अर्बुदारण्य भी कहा जाता है, पर जन्म लिया था।
इसी कारण से माउंट आबू को अर्धकाशी भी कहा जाता है।
गणेश जी के जन्म के बाद समस्त देवी-देवताओं के साथ स्वयं भगवान शंकर ने अर्बुद पर्वत की परिक्रमा की, इसके अलावा ऋषि-मुनियों ने वहां गोबर द्वारा
निर्मित गणेश की प्रतिमा को भी स्थापित किया।
आज के समय में इस मंदिर को सिद्धिगणेश के नाम से जाना जाता है। भगवान शंकर ने सहपरिवार इस पर्वत पर वास किया था इसलिए इस स्थान को वास्थान जी तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है।
पौराणिक दस्तावेजों के अनुसार भगवान गणेश का जन्म भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को अभिजित मुहूर्त में वृश्चिक लग्न में हुआ था। इस दिन को आज भी विनायक चतुर्दशी के रूप में पूरी धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
गणेश चतुर्दशी के त्यौहार के दस दिन पश्चात मिट्टी से बनी गणेश जी की मूर्तियों को बहते जल में प्रवाहित किया जाता है।
शिव पुराण के अनुसार एक बार मां पार्वती स्नान के लिए जा रही थीं। सेविकाओं की अनुपस्थिति की कारण उन्होंने बालक रूपी हल्दी,चन्दन,के उपटन के मेल की एक प्रतिमा बनाकर उसमें प्राण भर दिए। इस तरह भगवान गणेश जी का जन्म हुआ। पार्वती ने अपने पुत्र गणेश को यह आदेश दिया कि किसी को भी भीतर ना आने दें।
गणेश अपनी माता की आज्ञा का पालन कर रहे थे कि अचानक शिव की वहां उपस्थिति हुई। पार्वती के कहे अनुसार गणपति जी भगवान शिव को भी भीतर जाने से रोका, जिस पर शिव क्रोधित हो उठे। क्रोध में आकर उन्होंने गणपति जी से युद्ध कर उनका सिर उनके धड़ से अलग कर दिया।
जब पार्वती स्नान कर के बाहर आईं तो अपने पुत्र का मृत देह देखकर उन्हें अत्यंत दुख हुआ। उन्होंने अपने पति भगवान शिव से प्रार्थना की और कहा की वे गणेश को जीवनदान दें। भगवान शिव ने एक गज का सिर गणेश जी के धड़ के साथ जोड़कर उन्हें पुनर्जीवित कर दिया।
एक अन्य कथा के अनुसार गजासुर नाम के एक दैत्य ने कड़ी तपस्या के बाद भगवान शिव यह वरदान मांगा कि वे हमेशा उसके पेट में निवास करें। भगवान शिव ने उसकी यह इच्छा मान ली और गजासुर के पेट में रहने लगे। एक दिन भगवान शिव की खोज करते हुए माता पार्वती विष्णु जी के पास पहुंची।
विष्णु जी ने माता पार्वती को सारा घटनाक्रम बताया। विष्णु जी, भगवान शिव की सवारी नंदी बैल को अपने साथ लेकर गजासुर के पास गए। नंदी, गजासुर के सामने नृत्य करने लगे और विष्णु जी मधुर बांसुरी बजाने लगे। गजासुर दोनों से काफी प्रसन्न हुआ और उनसे कहा “मांगो जो मांगना है”।
गजासुर की यह बात सुनते ही बांसुरी वादक के रूप में भगवान विष्णु ने उससे कहा कि वह अपने पेट में बैठे शिव जी को मुक्त करे। तब तक गजासुर भी विष्णु जी की सत्यता समझ गया था। विष्णु जी की बात मानकर उसने शिव को मुक्त तो कर दिया किन्तु शिव जी से आग्रह करने लगा कि वह उसकी ये इच्छा बिलकुल पूरी करें कि मृत्यु के बाद भी लोग उसे याद करें। उसकी ये बात सुनते ही भगवान शिव ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया और उस सिर को अपने पुत्र गणेश के धड़ से लगा दिया।
ब्रह्मवैवर्त पुराण में उल्लिखित एक अन्य कथा यह कहती है कि जैसे ही शनि देव की दृष्टि बालक गणेश पर पड़ी, गणेश जी का सिर धड़ से अलग हो गया। इस घटना के बाद शिव और पार्वती शोक करने लगे। उनकी यह हालत देखकर भगवान विष्णु ने हाथी के बच्चे का सिर काटकर गणेश जी के धड़ से जोड़ दिया।
भगवान गणेश को एकदंत भी कहा जाता है, जिससे संबंधित भी एक अद्भुत कथा वर्णित है। कहा जाता है महर्षि वेद व्यास ने स्वयं गणेश जी से कहा कि वह महाभारत को लिखने की कृपा करें। गणेश जी ने उनकी बात सशर्त स्वीकार कर ली, गणेश जी की शर्त थी कि वेद व्यास बिना रुके महाभारत की कहानी कहेंगे और गणेश जी बिना रुके ये कहानी लिखते जायेंगे।
गणेश जी की इस शर्त को स्वीकार करते हुए व्यास लगातार बोलते रहे और गणेश जी लिखते रहे। लिखते-लिखते अचानक उनकी कलम टूट गई तो उन्होंने शीघ्रता से अपना एक दांत तोड़कर उसे कलम के रूप में प्रयोग करके लिखना आरंभ किया। इसी वजह से उन्हें एकदंत भी कहा जाने लगा।
एक अन्य कथा के अनुसार एक बार विष्णु के अवतार भगवान परशुराम, शिव से मिलने के लिए जा रहे थे कि रास्ते में उन्हें गणेश जी ने रोक लिया।
इस पर क्रोधित होकर भगवान परशुराम ने महादेव द्वारा दिए गए फरसे से गणेश पर प्रहार किया। भगवान शिव द्वारा प्रदत्त फरसे का सम्मान करते हुए गणेश उसके आगे से नहीं हटे और अपने दन्त पर वार झेल लिया और एक दांत गवां दिया।
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