Masoom Art Group
'Masoom Art Group'(MAG) works for the promotion of art and culture and regularly organises various A
आइये जानिए इन कलाकारों को (06)....... गिरेंद्र यादव उर्फ़ गिरु बाबा
फिल्म इंडस्ट्री में संजय दत्त को प्यार से संजू बाबा कहा जाता है. हमारे मासूम का गिरेन्द्र यादव को हमलोग इसी तरह प्यार से गिरु बाबा कहते है. जिस तरह इंडस्ट्री में संजू बाबा अपने बिंदासपन के कारण किसी किसी के लिए बैड बॉय थे और किसी किसी के लिए शानदार इंसान बिलकुल ऐसी ही छबि हमारे मासूम में गिरु बाबा का है. अपने हद से ज्यादा मजाक करने की और दूसरों पर चुस्की लेने की आदत के कारण गिरु बाबा किसी किसी के लिए बैड बॉय है. पर इतना तो सब जानते है की गिरु बाबा का दिल साफ है. इंसान बेहतरीन है. इसलिए कुछ देर के लिए गिरु जिन लोगों का शिकार करता है वे मेरे पास शिकायत करने के बाद भी फिर उससे घुल मिल जाते है. मैंने जहाँ तक गिरु को रीड किया है तो लगता है इसका दिल अभी भी बच्चा ही है. खास कर जब अपने हम उम्र के साथियों के साथ रहता है तो इसका टांग खींचने वाला दिमागी कीड़ा कुछ ज्यादा ही कुलबुलाने लगता है और अक्सर हद पार कर देता है. और इसी रेंज में कभी कभी सीनियर भी फस जाते है. मुझे मालूम है की ये टीम के लिए सही नहीं है, पर साथ में मुझे यह भी मालूम है की गिरु बाबा एक अच्छा अभिनेता बन सकता है. बस यही एक कारण है की इसकी कई शिकायतों को मैं अभी तक नजरअंदाज कर रहा हूँ. गिरु में एक और अच्छी बात है की इसकी गलतियों को जब बताया जाता है तो उसे मान लेता है, ये अलग बात है फिर से कोई दूसरा इतिहास गढ़ देता है. वैसे मुझे उम्मीद है की गिरु बाबा आने वाले एक दो साल में अपना बैड बॉय वाला इमेज से मुक्ति पा लेगा. गिरु अभी तक ग्रुप के साथ चलने, उसमे खुद को मिला लेने , एडजस्ट करने का हुनर को पूरी तरह से अपना नहीं पाया है. पर मुझे उम्मीद ही नहीं पूरा यकीन है की समय के साथ साथ गिरु बाबा एक शानदार टीम मैन भी बनेगा. जहाँ तक अभिनय की बात है तो मुझे लगता है गिरु बाबा नाटक से ज्यादा फिल्मों का सटीक अभिनेता बनेगा. सिनेमेटिक एक्टिंग को जो कुछ चाहिए उसके पार्ट्स गिरु बाबा में मौजूद है. आगे की भविष्य को कोई नहीं जनता पर मुझे लगता है पर गिरु बाबा अगर अभिनय को लेकर सीरियस होगा तो उसका फ़िल्मी भबिष्य उज्जवल है. मासूम की शार्ट फिल्म उड़ चली में गिरेन्द्र ने बेहतरीन तो नहीं पर भविष्य के दरवाजे पर दस्तक देता हुआ एक अभिनेता के रूप में अपनी एक पहचान बनाई है. उम्मीद है आगे भी गिरु बाबा कुछ ऐसा करेगा जिससे पूरा पलामू उसपर गर्व करेगा. लव यू गिरु बाबा. मुझे यकीन है तुम मुझे निराश नहीं करोगे
आइये जानिए इन कलाकारों को (05 )... राज प्रतिक पाल
'देखन में छोटन लागे घाव करे गंभीर' ये तो सब सुने होंगे पर राज प्रतिक पर ये बात नहीं एक दूसरी बात फिट बैठती है और वो है " कील अलग अलग. नट बोल्ट एक " . जी हाँ यही है हमारा राज प्रतिक पाल. हर कील में फिट . अरे भाई फलाना सामान कहा है ? राज को पता होगा. अरे भाई ये वाला ड्रेस कहा रखाया ? राज को पता होगा. रास्ते में सबको खाना खिलाने की जिम्मेवारी कौन लेगा ? राज है न. दो दिन से बिजली नहीं है, कोई मिस्त्री पकड़ के लाओ , कौन लाएगा ? राज है न. ट्रेन का टिकट बुक करना है, राज है न. यात्रा के दौरान पैसा का हिसाब रखना है, राज है न. अच्छा यार ये वाला रोल कौन करेगा जी दो दिन में कैसे याद करेगा कोई , राज है न. ये है राज प्रतिक पाल.
यकीन मानिये जितना बड़ा एक कट्ठा में फैला हुआ इसका नाम है अपने खुद दो डिसमिल में समेटा हुआ है. पर हर काम में आगे. इसके और कामरूप के रहते मजाल है की मैं किसी यात्रा में कोई भारी बैग या सामान उठा लूँ. खुद पहले से चार गो पीठ पर लाद के मेरा वाला सामान भी हाथ से छीन लेगा. कहेगा दीजिये न सर कोई दिक्कत नहीं है. 20 किलो का देह लेके 120 किलो का सामान उठा के चल देगा. कितना बार समझा चूका हूँ की अबे गधे दिक्कत तुझे नहीं मुझे है. जब लोग देखेगा की पुरे ग्रुप में यही एक बन्दा बिना सामान उठाये चल रहा है तो समझ जायेगा की ये बूढ़ा है. फिर 200 रुपये देकर जो दाढ़ी रंगवाया वो गया न फ़ोकट का. पर ये समझे तब तो. कामरूप के दिशा निर्देश में राज, राहुल, गिरेन्द्र, राजा खान ये सारे लोग मेरे खिलाप साजिश रच कर मुझे बूढ़ा साबित करना चाहता है.
साथियों आज के समय जब बेटा बाप पर हाथ उठा दे रहा है, भाई भाई को नहीं मान रहा. खून के रिश्ते बिखर रहे है,तब मुझे इन बच्चो से जो प्यार और सन्मान मिलता है तो कभी कभी सोचता हूँ अच्छा है की मेरा कोई औलाद नहीं है, इतने सारे बच्चो को मेरे हवाले कर भगवान ने हिसाब पूरा कर दिया. वैसे मासूम आर्ट ग्रुप का हर शैतान मुझे मासूम ही लगता है पर सच कहूं तो राज की मासूमियत कुछ और ही है. इस मासूमियत का फ़ायदा भी ये खूब उठता है. किसी ऐसी बात जिसे मुझसे छुपाना चाहता है उसको मासूम सा चेहरा बनाकर साफ कहता है हम इसमें नहीं थे सर. या हमको नहीं मालूम सर. मुझे भी पता रहता है की गधा झूट बोल रहा है. पर इतनी मासूमियत से बोलता है की दोबारा पूछने की जगह उसे ही सच मान लेता हूँ. दोस्तों बात राज की अभिनय की करूँ तो मासूम के ढेर सारे ताबड़तोड़ अभिनेताओं के सामने ये बहुत ज्यादा नहीं टिकता, पर धीरे धीरे ये आगे बढ़ रहा है, धीमा आंच में पक रहा है. भूख बढ़ रही है, जिस दिन इसकी भूख बेतहाशा होगी उसदिन अच्छे अच्छे को खा जायेगा. अभी शिमला में राजपाट नाटक में गूंगा का अभिनय में राज ने जो झलक दिखाई उससे साफ़ है की आने वाले दिनों में ये लड़का मंच पर आग उगलेगा. शिमला में नाटक प्रस्तुति के बाद हमसे मिलने आने वाला हर दर्शक राज को ढूंढ रहा था. उससे अलग से मिल रहा था. उसे बधाई दे रहा था. और राज संकोच से सिमटता जा रहा था और मैं गर्व से अपने आने वाले भविष्य को देख रहा था.
राज की आँखों में मासूमियत है. दिल में मुहब्बत है, दिमाग में सच्चाई है, इसलिए ये अपने जिंदगी के रास्ते बहुत धोखा खायेगा. पर आखिरकार राज भी यही करेगा. आमीन .........
आइये जानिए इन कलाकारों को (04).... कामरूप सिन्हा
कामरूप अपने पिता से मिली नाटक के विरासत और कई अन्य संस्थाओं में किये हुए नाटकों का अनुभव लेकर मेरे पास जब आया था तब उसे कुछ रंगकर्मियों ने कहा था कि जहां जा रहे हो वहां टिक नहीं पाओगे. दादा एक वट वृक्ष है अपने निचे किसी को बढ़ने नहीं देगा. खैर कामरूप आया और जब से आया तब से लेकर अब तक मुझे छोड़ कर कही नहीं गया. अलबत्ता ये बातें जिन महान रंगकर्मियों ने कहा था उनमे से किसी का नाता अब रंगमंच से नहीं है. इधर मेरे निर्देशन में काम करते करते कामरूप कई यादगार भूमिकाओं को जी कर अनेकों राष्ट्रीय पुरस्कार अपने नाम किया. आज के तारीख में अपने शहर से बाहर रंगकर्मियों की दुनिया में पलामू से , झारखंड से आने वाला रंगकर्मी के रूप में कामरूप तेजी से अपनी पहचान बनाई है. ( बहुत लोगो को ये बात बुरा लगेगा पर यही हकीकत है, कला की दुनिया में लोग आपको तब तक पहचानते है जब तक आप लगातार काम कर रहे है, आपने काम से मुँह मोड़ा, गैप दिया बस आप लोगो के दिल में फोटो बनकर रह गए, फिर कहानिया कही जाएगी वन्स अपन ए टाइम देयार वाज ए ..... ) . खैर यह पहचान कामरूप को इसलिए नहीं मिली की वो मासूम आर्ट ग्रुप के साथ काम किया. यह पहचान उसने मेहनत कर बनाई. अपने काम के प्रति प्रतिवद्धता, प्यार और समर्पण से अर्जित किया. अगर वो मासूम के साथ , मेरे साथ काम नहीं भी करता तो भी उसे यह पहचान मिलती क्यों की उसके अंदर यह जुनून मौजूद है. कामरूप के बिना आज मैं कोई भी नाटक उठाने को नहीं सोच सकता. उससे सलाह मशवरा किया बिना कोई कदम नहीं उठा पाता। यह अलग बात है की उसके और मेरे विचार ज्यादातर अलग अलग ही होते है. फिर भी उसके साथ सलाह किये बिना कोई काम करता हूँ तो अधूरा सा लगता है. मेरे लिए सबसे ख़ुशी की बात यह है की कामरूप अब धीरे धीरे अभिनेता से ऊपर उठकर निर्देशकीय गतिविधि में शामिल हो रहा है. मेकअप की शानदार कुशलता के कारण उसने मेरा बहुत बड़ा बोझ अपने सर पर ले लिया. वर्षो हो गए मुझे किसी को मेकअप नहीं करना पड़ा. मेकअप में भी कामरूप को कई पुरस्कार मिले. विरासत में कामरूप को नाटक की जो बीमारी मिली थी उसे मैंने सींच कर लाइलाज बना दिया है. अब मै यह प्रयास कर रहा हूँ की उसके अंदर जो भी बचा है उसे निचोड़कर उसको निर्देशन वाला लत लगा दूँ. उस दिशा में कदम बढ़ गया है. मुझे पक्का यकीन है निर्देशन का लत उसे जल्द ही अपने आगोश में जकड़ लेगा और मैं थोड़ा मुक्त हो जाऊंगा. मैं अपने नाटक के राजपाट को लम्बे समय से चलाते चलाते थक रहा हूँ, मेरा समय अब धीरे धीरे भोग नहीं बल्कि वानप्रस्थ की ओर जा रहा है. इस समय मेरी सबसे बड़ी जित यही होगी की अपने बाद के जेनरेशन में एक ऐसा किसी को खड़ा कर सकूँ जो मेरे नहीं रहने के बाद साढ़े सात बजे रिहर्सल रूम का ताला खोल सके. नाटक अच्छे से तैयार नहीं हो तो रात रात भर तड़प सके. दूसरे दिन वो तड़प गुस्सा बनकर कलाकारों पर बरसे, उस गुस्से से नफरत नहीं एक जिद पैदा हो और नाटक खूबसूरत बन जाये. मै अपने कमाई का यह हिस्सा धीरे धीरे कामरूप के अंदर डाल रहा हूँ. और मुझे पूरा यकीन है मेरे बाद भी रिहर्सल रूम का ताला साढ़े सात बजे खुलेगा. क्यों कम्मो डार्लिंग खोलोगे न ........ ?
ये कम्मो डार्लिंग हम प्यार से कामरूप को बुलाते है. क्यों की ढेर सारे जूनियर कलाकार के भीड़ में कामरूप ही एक ऐसा बुजुर्ग कलाकार है जिससे मैं खुलकर बात कर पाता हूँ, हालाँकि कामरूप खुद को जूनियर साथियों के साथ ही रखता है और कहता है की उसकी उम्र 40 ही है और यह पिछले छह साल से यही अटकी हुई है. खैर उसके सर के बाल अब धीरे धीरे हल्का हो रहा है, ज्यादा दिन 40 में खुद को नहीं रोक पायेगा.
कामरूप की कुछ और खासियत जाने बिना यह कहानी अधूरी रह जाएगी. कामरूप की एक सबसे बड़ी खासियत यह है की अगर आपको मोबाइल पर श्रीमान से बात करनी हो तो कुछ भोग नैवैद्य ईश्वर को चढ़ाकर कामरूप को फ़ोन कीजियेगा. अगर 10 बार रिंग होने के बाद आपका फ़ोन रिसीव हो जाये तो समझियेगा की आपकी बात ईश्वर सुन ली. कामरूप को एक और नाम से पुकारते है हम लोग " समस्या सिन्हा " . दुनिया में एक आदमी को जो जो समस्या हो सकती है उनमे से 80 % समस्या एक अकेला कामरूप के पास है. इनमे से 40 % उन लोगों द्वारा तैयार किये जाते है जिनपर कामरूप भरोसा करता है, विश्वास करता है. और धोखा खा जाता है. बाकि के 60 % बड़े मियां खुद बटोर कर लाते है. और मैं सोच सोच कर हैरान हो जाता हूँ की एक आदमी इतने सारे समस्याओं से घिर कर आखिर नाटक के लिए कैसे समय निकालता है. वो भी लगातार, सालो साल. पिछले 20 साल में कामरूप को जितनी समस्याओं से जूझते हुए नाटक करते देखे है, उतना झेलने के बाद मैं भी नहीं कर पाता। इसीलिए मुझे पूरा यकीन है मेरे बाद भी ये आदमी साढ़े सात बजे रिहर्सल रूम का ताला खोलेगा.
आइये जानिए इन कलाकारों को (03).... अमर कुमार भांजा उर्फ़ मेरा राजा बाबा
अपने इस छोटे से शहर में हम सभी लगभग एक दूसरे को जानते पहचानते है. पर अक्सर हम ये नहीं जानते की रोजाना हमारे सामने से गुजरने वाला , साधारण सा दिखने वाला कोई अंदर से कितना प्रतिभाशाली या कितना बेहतरीन कलाकार भी है. तो आइये आज कलाकारों को जानने की इस तीसरी कड़ी में हम जानते है उस कलाकार को जो अपने संकोची स्वभाव के कारन खुद को लोगो के सामने प्रस्तुत नहीं कर पाया. पर सच तो यह है की ये कलाकार नहीं होता तो मुझे निजी तौर पर बहुत परेशानी होती. ये नहीं होता तो नाटक रुकता नहीं वो तो चलता ही रहता पर मुझे बहुत परेशानी होती. ये एक ऐसा कलाकार जिस पर अभिनय के अलावा भी मै ढेर सारी जिम्मेवारी देकर निश्चिन्त हो जाता हूँ की ये है तो काम हो ही जायेगा. बात कर रहा हूँ अमर कुमार भांजा यानि कि हम सब का राजा बाबा का. इस मासूम आर्ट ग्रुप में मेरे और विक्रम के बाद परिमल और राजा ही फ़िलहाल सबसे पुराना सदस्य है. फिर कामरूप , नसीम, मुनमुन जी और अन्य, 1989 से अभिनय यात्रा की शुरुआत के बाद कई लोगों के साथ काम करने का मौका मिला. कई लोग जुड़े, कई लोग बिछड़े, कुछ लोगो को गलत समझा कर हमसे अलग करवाया गया. कुछ लोग मुझे झेल नहीं पाने के कारण अलग हो गए. कुछ लोगो से मैं ही दूर हो गया. सबके अलग अलग कारण थे. पर कुछ लोग ऐसे थे जो मुझसे जुड़ने के बाद मुझे कभी नहीं छोड़ा उनमे से एक है अमर कुमार भांजा यानि की राजा बाबा। राजा को भी मुझसे अलग करने की कई प्रयास किये गए , पर राजा अभी तक मेरे साथ जुड़ा हुआ है. सिर्फ जुड़ा हुआ ही नहीं है मासूम आर्ट ग्रुप के एक मजबूत पिलर के रूप में खड़ा है जिसके बिना अब कोई प्रोजेक्ट करना मेरे लिए कठिन है. राजा का जिक्र आते ही मुझे दिलीप वेंगसरकर की याद आ जाती है। जिस तरह से सुनील गावस्कर, कपिल देव, अमरनाथ आदि के सामने वेंगसरकर की कई शानदार पारी लाइमलाइट में नहीं आ पाती थी उसी तरह मासूम में भी मेरे, मुनमुन जी, कामरूप, बिल्लू, परिमल का नाम के आगे राजा का नाम उतना लाइमलाइट में नहीं आ पाता है . पर जिस तरह से उस दौर में वेंगसरकर के बिना भारतीय टीम का मध्यक्रम लचर हो जाती थी उसी तरह राजा के बिना मासूम का हर एक नाटक लचर है. राजा एक ऐसा कलाकार जिसे कोई भी नाटक का हर एक चरित्र का हर एक डायलॉग याद रहता है. सैकड़ो बार ऐसा हुआ है की अंतिम दौर में अचानक कोई कलाकार नाटक के दिन उपस्थित होने में सहमति नहीं दी तो कौन इतना जल्दी इतना बड़ा रोल कर पायेगा. राजा बाबा है न, क्या राजा हो जायेगा? जबाब आता हो जायेगा. और दो दिन में वो तैयार. सच कहूं तो मासूम का संकट मोचन है राजा. पर यह भी सच है की इतने दिनों में राजा को नाटक से जो शोहरत मिलनी चाहिए थी वो नहीं मिली. इसका कारन है एक तो उसका संकोची स्वभाव. दूसरा उसे अभी तक वैसा रोल कम ही मिला जिससे उसकी अभिनय खुल कर सामने आ सके. ये एक निर्देशक के रूप में मेरी भी विफलता है. असल में मासूम की हालत भी इंडिया टीम जैसी है. मध्यक्रम में कौन बैटिंग करेगा इसे लेकर बहुत मारामारी है. बावजूद इसके राजा ने राजपाट नाटक में पचन, आप कौन चीज के डायरेक्टर है जी में मुखिया, दुर्योधन, कृष्ण , राधा की नौटंकी में बेटा, पत्रकार, उदघोषक, आदि कई यादगार रोल कर अपनी एहमियत बता दी है. अभिनय के अलावा राजा एक और जिम्मेवारी उठा रखी है वो यह की मासूम के नए आने वाले सदस्यों को अपनी हद बताते रहना. जिससे संस्था की गरिमा, मर्यादा और अनुशासन बरक़रार रहे. सच तो यह है की मासूम आर्ट ग्रुप के नए सदस्य हमसे ज्यादा राजा से ही डरते है की उसकी आँखों से कुछ नहीं छुप सकता. एक निर्देशक के रूप में मेरी एक ही ख्वाहिश है कि राजा से अब कुछ ऐसा चरित्र करवाया जाये जिससे उसके सामने मैं , कामरूप, मुनमुन जी, परिमल सबके सब फीके पर जाये.
आइये जानिए इन कलाकारों को (02 ) ..... परिमल भत्याचार्य
राजपाट नाटक में शानदार अभिनय कर शिमला में जिन कलाकारों ने झारखंड का झंडा बुलंद किया उनके बारे में कुछ बात कहने की इस दूसरी कड़ी में हम बात करेंगे परिमल भत्याचार्य का. परिमल यानी संघर्ष का एक दूसरा नाम. परिमल का बड़ा भाई नीलकमल और मै एक साथ जिला स्कूल से पढाई की. पूरा परिवार कला के प्रति समर्पित. परिमल और नीलकमल दोनों भाई के अलावा बहन शम्पा और लाली भी मासूम से जुड़कर कई नाटकों में अभिनय किया. फिर सभी अपने अपने काम और ससुराल सम्हालने में लग गए. पर परिमल नाटक कभी नहीं छोड़ा. परिमल की खुद की जिंदगी भी किसी फ़िल्मी स्क्रिप्ट से काम नहीं है. अपने संघर्ष के दिनों में कुरकुरे कंपनी का टेम्पो चलाने से लेकर आज फेविकोल बनाने वाली कंपनी के उच्च पद पर लाखों के पैकेज पर काम करने तक का सफर बेहद रोचक और संगीन रहा. परिमल ने अपनी जिंदगी में इतना कुछ बर्दाश्त किया की वो आपने आप में एक अलग कहानी है. पर संघर्ष से लेकर सफलता तक के सफर में परिमल ने नाटक करना नहीं छोड़ा. ये जरूर है की अपनी अलग-अलग प्रतिवद्धता के कारण नाटक करना कम हो गया. पर एकदम छोड़ नहीं दिया. राजपाट नाटक में बूढ़ा के चरित्र में अभिनय कर कई पुरस्कार अपने नाम करने वाला परिमल शिमला के लम्बी ट्रिप के लिए उपलब्ध नहीं था. पर मै जानता था वो रोल उसके अलावा कोई उस तरह से इतने कम दिनों में नहीं कर पायेगा. इसलिए नाटक बढ़िया हो इस स्वार्थ मै बार बार उसे फ़ोन करना शुरू किया. आखिरकार परिमल तैयार हुआ, सात दिनों की छुट्टी ली. पर मामला अटका रिहर्सल पर, अब उसने जो त्याग किया वो सबकी बस की बात नहीं. सप्ताह भर जी तोड़ मेहनत करके शनिबार की शाम वो खुद गाड़ी चलाकर गया से सीधे रिहर्सल रूम पहुँचता, रविबार को दो बार रिहर्सल कर फिर पांच दिनों के लिए काम पर चला जाता. मुझे मालूम है परिमल जो सात दिनों की छुट्टी ली उसमे उसे हजारों रुपये का नुकसान हुआ होगा. चेहरे पर शिकन नहीं आई. शिमला में भी शानदार अभिनय कर पुरस्कार जीता. यही नहीं रास्ते भर संस्था के जूनियर साथियों के साथ जबरदस्त तालमेल बैठाकर उन्हें अलग थलग नहीं होने दिया. एक काम और किया था परिमल ने शिमला आने-जाने के रस्ते सबको जमकर कई दफा सत्तू सरबत पिलाया. इसके लिए एक झोला में सत्तू. प्याज, नमक. निम्बू, दाल घोटनी, गिलास सब लेके चला था. इस परफेक्ट टीम मैन को दिल से सैलूट। एक नाटक के लिए तुमने आज के भौतिकवादी युग में त्याग स्वीकार नहीं किये होते तो नाटक राजपाट इतना सशक्त नहीं होता. एक निर्देशक के नाते हमेशा तुम्हारा ऋणी रहूँगा. परिमल तुम जैसे सिपाही है, इसलिए टीम मासूम टिकाऊ और मजबूत है.
Rocking Masoom Art Group hold 1st prize on 26 January 2024 jhanki
Masoom art group ne khole sambhavana ke naye dwar . Apne shahar me bhi ban rahe hai vigyapan film
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Artist: kamroop sinha, ujjwal sinha, adnan kasif, raj pratik pal
bahut halka mahsus kar raha hun, apna sare organ donate kar diya . ishwar se prarthana karunga ki kisi ka kam a sake
देश के कई प्रतिष्ठित उर्दू अखबारों में भी छपी मासूम आर्ट ग्रुप की उपलब्धि, धन्यवाद भाई फातमी जी.
अभिनव कला संगम द्वारा डेहरी ऑन सोन में आयोजित नाट्य प्रतियोगिता में मुझे लेखक व हास्य कलाकार का प्रथम पुरस्कार मिला. सभी का धन्यवाद
डेहरी ऑन सोन में अभिनव कला संगम द्वारा आयोजित नाट्य प्रतियोगिता में मासूम ने जीते कुल आठ पुरस्कार, सभी का धन्यवाद
रिहर्सल के बाद क्रिसमस सेलिब्रेशन,
जिला जन संपर्क विभाग के द्वारा मासूम आर्ट ग्रुप के कलाकारों ने पलामू जिले के चैनपुर में नुक्कड़ नाटक व गीत के माध्यम से सरकारी योजनाओं का प्रसार प्रचार किया
मासूम आर्ट ग्रुप के कला निर्देशक, शानदार चित्रकार, कलाकार संजीत प्रजापति को पलामू टाइगर रिजर्व द्वारा टाइगर डे के मौके पर आयोजित कहानी लिखो प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार मिला है, भाई संजीत को ढेरो बधाई
media coverage from dhanbad
get 8 prize on kala heera all India drama compitition, dhanbad
Ek ajnabi - 1St best play
Saikat chatterjee - 1St best actor
Saikat Chatterjee - 1St best writer
Saikat Chatterjee - 1St best director
Munmun chakraborty - 2nd best actress
Kamalkant kumar- 2nd best supporting actor
Jiten das - 2nd best light
Amar bhanja - 2nd best satge setting
मासूम के वरीय रंगकर्मी कामरूप सिन्हा का जन्मदिन मनाया गया,
विश्व एड्स दिवस पर कठौतिया कोल माइंस में जागरूकता नुक्कड़ नाटक, कनक लता तिर्की, कामरूप सिन्हा, अमर भांजा, उज्ज्वल सिन्हा का बेहतरीन अभिनय व सिकंदर कुमार के जानदार गीतों ने कार्यक्रम को शानदार बनाया
नही रहे पलामू के शास्त्रीय संगीत जगत के पुरोधा पंडित राजाराम मिश्र, मासूम आर्ट ग्रुप की ओर से उन्हें अश्रुपूरित श्रद्धांजलि, हम कलाकारों को हमेशा उनका आशीर्वाद मिलता रहा.
नाटक के प्रारंभिक दिनों के साथी, वर्तमान में इवेंट जर्नलिज्म के पुरोधा, देश के कई प्रमुख टीवी शो और मंचीय कार्यक्रमों के एंकर, सीने अभिनेता भाई अमर आनंद अमरेश जी का इन दिनों अपने गृह नगर डाल्टनगंज में आना हुआ, इसी क्रम में मासूम आर्ट ग्रुप के साथियों को उन्होंने अपना अनुभव साझा किया, मासूम आर्ट ग्रुप उनका स्वागत और सम्मान किया, आनंद जी पलामू के लिए भी कुछ शानदार आयोजन करना चाहते है, उन्हें ढेरो शुभकामनाए,
masoom;s artist at CM program
masoom's artists at nukkad natak
आजादी के अमृत महोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं।
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