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Good feel विस्व पूंजीवादी व्यवस्था के ध्वस?
शहीदों का रक्त रंग लायेगा
ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति के बाद भी पूंजी की बर्बर गुलामी कायम
पूंजी की सत्ता को मिटाकर श्रम की सत्ता कायम करने हेतु संकल्पित, संगठित क्रियाशील होना ही शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि मयी ऐतिहासिक अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस पर सर्वहारा समाजवादी शसस्त्र क्रांति के लिए दुनियां के मानववादी मजदूरों एक हों।
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- इतिहास के पन्नों से -
स्टालिनपंथी कम्युनिस्ट भारत में अपने जन्म काल से ही
ब्रिटिश सरकार की पहरेदारी में लगी थी, तो जाति और धर्म के ठेकेदार बनें,सारे संगठन और उसके नेताशाह
पत्र लिख -लिखकर ब्रिटिश साम्राज्यशाहों के प्रति अपनी आस्था व्यक्त कर रहे थे। इसी के चलते तमाम कुर्बानी के
बावजूद अगस्त क्रान्ति सफल न हो सकी। वास्तव में ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध यह विद्रोह कोई नयी घटना नहीं थी, बल्कि विद्रोह का सिलसिला उसी क्षण से सुरू हो गया था, जिस क्षण भारत ब्रिटिश साम्राज्य का गुलाम बना था। तभी तो ५ अगस्त १९७६ को महांराज नंदकुमार (बंगाल) ने फांसी का फंदा चूमकर शहादत की जो परंपरा शुरू की, वह आगे परवान चढ़ता गया। ११अगस्त १९०८ को किशोर क्रान्तिवीर खुदीराम बोस और १६अगस्त १९०९ को मदनलाल ढींगरा ने फांसी का फंदा चूमकर शहादत का एक नया अध्याय जोड़ा। इन
शहीदों का सपना था -- मनुष्य में मनुष्यत्व विकसित करना। चूंकि किसी भी प्रकार की गुलामी में मनुष्यत्व का विकास सम्भव नहीं होता । अतः महान गौरवशाली क्रान्तिकारी दल -अनुशीलन समिति (१९०२) ने अपना लक्ष्य -उद्देश्य राष्ट्रीय जन क्रान्ति द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य को उखाड़ फेंकना घोषित किया था। जो अपने विकास की प्रक्रिया में हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन (१९२३)
--ऐसे समाज की रचना करना जिसमें मानव द्वारा मानव का शोषण सम्भव न हो, फिर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (१९२८) में --पूंजी की सत्ता को मिटाकर श्रम की सत्ता (सर्वहारा वर्ग का अधिनायकत्व)
कायम करना और फिर अपने चरम उत्कर्ष के रूप में
भारत की क्रांतिकारी समाजवादी पार्टी (मार्क्सवादी -लेनिनवादी) (१९४०) --विशव सर्वहारा क्रांति द्वारा विश्व पूंजीवाद का उन्मूलन और विश्व मानववादी मानव -समाज की स्थापना के रूप में व्यक्त हुआ। किंतु असंख्य शहीदों की शहादत का लक्ष्य --उद्देश्य पूरा न हो सका ।
अन्ततः ब्रिटिश साम्राज्यशाहों के कूटनीति का सडयंत्र
तथा हिन्दू -मुसलमान पूंजीशाहो के आपसी पूंजीवादी
स्वार्थ गत टकरावों के चलते १४अगस्त १९४७ को विशाल भारतवर्ष साम्प्रदायिकता के आधार पर अंग -भंग कर दिया गया और हिंदुस्तान -पाकिस्तान में बांट दिया गया। इसी के साथ -साथ राष्ट्रीय जन क्रान्ति की पीठ में छूरा भोंककर ब्रिटिश साम्राज्यशाही और भारतीय पूंजीशाहों के बीच समझौता हो गया। भारतीय श्रमिक -शोषित
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२१जनवरी विश्व विप्लवी लेनिन ,रासविहारी बोस व हेमूकालानी शहादत दिवस तथा २६जनवरी शोषण गुलामी के चार्टर दिवस पर भारत की क्रांतिकारी समाजवादी पार्टी (मार्क्सवादी -लेनिनवादी)का आवाह्न क्रान्तिकारी मानवीय
इतिहास गवाह है, मनुष्य में मनुष्यत्व विकसित करने के लिए राष्ट्रीय जन क्रान्ति द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य को उखाड़ फेंकने के साथ ही पूंजी की भी सत्ता मिटाकर श्रम की सत्ता कायम करना ही तो अनुशीलन समिति, यच, आर, ए,-यच , यस, आर, ए और उनकी सर्वोच्च कड़ी भारत की क्रांतिकारी समाजवादी पार्टी (मार्क्सवादी -लेनिनवादी)!r,s,p,i(,m-l)का लक्ष्य -उद्देश्य रहा। किन्तु इतिहास का सच यह भी है कि न रूस में मजदूर वर्ग राज कायम रह सका, और न विश्व सर्वहारा क्रांति की विश्व प्रक्रिया ही आगे जारी रह सकी। भारतीय क्रान्तिकारी शहीदों का भी लक्ष्य -उद्देश्य अधूरा रह गया।१५ अगस्त १९४७को ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति आवश्य मिली किन्तु पूंजी की गुलामी से मुक्ति नहीं मिली ।।
प्रश्न है ऐसा क्यों और कैसे हुआ।
साथियों! नवम्बर रूसी क्रान्ति के बाद साथी लेनिन की लम्बी बीमारी के चलते २१ जनवरी १९२४को असामायिक मृत्यु हो गई।
इसी दौर में रूस के मजदूर वर्ग राज, कम्युनिस्ट पार्टी और क्रमागत विकशित होते मजदूर वर्ग आन्दोलन का नेतृत्व स्टालिन के हाथों में आ गया। जिसके वर्ग सहयोगवादी नीतियों के कारण न केवल रूस का मजदूर वर्ग राज मिटकर राज इजारेदार पूंजीवादी राज में बदल गया, बल्कि मजदूर वर्गीय कम्युनिस्ट पार्टी भी मध्यम वर्गीय पार्टी बन गई। स्टालिन के शान्ति पूर्ण सह -अस्तित्व के वर्ग सहयोगवादी सिद्धांत पर आधारित
'एक देशीय समाजवाद 'के नारे के घातक संघात में बिभिन्न देशों में गठित कम्युनिस्ट पार्टियां अपने -अपने देशों में सर्वहारा क्रांति के लिए क्रियाशील होने की जगह रूस की एजेंसी बन गई। जिसके चलते विकसित होता विश्व मजदूर वर्ग आन्दोलन, अर्थवादी, सुधारवादी,विधानवादी, जनवादी, पूंजीवादी आन्दोलनों में बदल गया।
क्रान्ति कोई हिंसा नहीं है और ना ही यह कोई द्वेष व अमानवीयता है। बल्कि यह तो हिंसक बने मनुष्यों तथा वर्गीय समाज को बदल कर मानवीय समाज में रूपांतरित करने का प्राकृतिक नियम है जिसे कोई प्रतिक्रियावादी नहीं बदल सकता।
आर. एस. पी. आई. (एम.एल) के उत्तर प्रदेश राज्य मंत्री, कर्मठ, निष्ठावान कामरेड चतुरी प्रसाद की दिनांक 26 नवंबर 2 बजे रात को शारीरिक मानसिक क्रिया सदा के लिए बंद हो गई। पार्टी के महामंत्री कॉमरेड आनंद प्रकाश मिश्र ने उनके निधन को पार्टी की अपूरणीय क्षति बताया। 😭😭😭😭
नवम्बर 1917में सम्पन्न रूस की सर्वहारा समाजवादी क्रान्ति को 1शताब्दी से भी अधिक समय बीत गया।20वी सदी के दूसरे दशक काल में सम्पन्न रूसी सर्वहारा क्रांति वस्तुत,: विश्व पूंजीवादी वर्ग व्यवस्था के अन्तर्गत रूप की दृष्टि से, रूसी क्रान्ति अवस्य थी किन्तु अन्तर्य सारतत्व की दृष्टि से अन्तर्राष्ट्रीय अर्थात विश्व सर्वहारा क्रांति की विश्व प्रक्रिया की आरम्भिक कड़ी थी, जिसे दुनियां के अन्य पूंजीवादी देशों में गठित विकसित होकर क्रमागत पूंजीवादी राज व राज्यन्त्रो का ध्वंस व सर्वहारा वर्ग का जनतांत्रिक अधिनायक त्वं
कायम कर विश्व आधार पर विश्व पूंजीवाद का उन्मूलन तथा मानववादी विश्व मानव -समाज की संरचना करनी थी।
तभी तो महान मार्क्सवादी विप्लवी लेनिन ने अपने समाज शास्त्रीय विश्लेषण में बीसवीं सदी को सर्वहारा क्रान्तियों और साम्राज्यवादी विश्व महायुद्धों की सदी कहा था।
कामरेड लेनिन का विश्लेषण -मूल्यांकन कितना वैग्यानिक सच था , इसे किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं। बीसवीं सदी में दुनियां दो, दो साम्राज्यवादी विश्व महायुद्धों की भट्ठी में जली और तीसरे विश्व महायुद्ध के दरवाजे से लौटी।
फांसी से 3 दिन पूर्व भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव द्वारा फांसी के बजाय गोली से उड़ाये जाने की मांग करते हुए पंजाब के गवर्नर को लिखे गए पत्र का एक अंश -"साम्राज्यवाद एवं पूंजीवाद कुछ समय के मेहमान हैं । यही वह युद्ध है जिसमें हमने प्रत्यक्ष रूप में भाग लिया है। हम इसके लिए अपने पर गर्व करते हैं। इस युद्ध को न तो हमने प्रारंभ ही किया है, न यह हमारे जीवन के साथ समाप्त ही होगा। हमारी सेवायें इतिहास के उस अध्याय के लिए मानी जायेंगी, जिसे यतींद्रनाथ दास और भगवती चरण के बलिदानों ने विशेष रूप से प्रकाशमान कर दिया है। इनके बलिदान महान है।"
विश्व मानव -समाज को जिंदा रखने के लिए हमें ऐसे लोगों की जरूरत है जो व्यक्तिगत स्वार्थ को त्याग कर विश्व मानव -समाज के लिए अपनी कुर्बानी दे सकते हैं, और जो सर्वहारा समाजवादी शसस्त्र क्रांति के लिए अपना जीवन को त्यागकर अपने को मानव -समाज के हितों में निस्वार्थ भाव से काम करने की चेष्ठा करता हो।
कार्ल मार्क्स पूंजी भाग -१ अध्याय १८
मार्क्सवाद ने दिखाया कि सर्वहारा ही वह अकेला वर्ग है,
जो सत्ता पर अधिकार कर लेने के बाद उस सत्ता का केवल अपने वर्ग हितों की सिद्धि के लिए ही नहीं, अपितु सारी मानव जाति के समूचे तौर पर सारे मानव -समाज के हितों की सिद्धि के लिए उपयोग करेगा क्योंकि वह शोषण के लिए नहीं, उपयोग के लिए होगा।वुर्जुआ का तख्ता उलटने के बाद मजदूर वर्ग अपने अधिनायकत्व सर्वहारा अधिनायकत्व की स्थापना करेगा जो वर्ग विहीन समाज कम्यूनिज्म में संक्रमण के दौर का काम करेगा। मार्क्स तथा एंगेल्स द्वारा वैज्ञानिक आधार पर निरूपित यह नया सामाजिक सिद्धांत मानव जाति के लिए अपार महत्व रखता है, किन्तु वह एक प्रबल शक्ति केवल तभी बन सकता है जब वह जन साधारण के दिलो दिमाग पर छा जाय।
विश्व सर्वहारा समाजवादी शसस्त्र क्रांति ही एक मात्र विकल्प
♦️ In any class society, philosophy always favors one class. Philosophy, on the one hand, propounds principles and rules about the world, the universe and the whole of reality and conditions, and at the same time expresses and protects the interests of any classes or social groups. Classes and social groups theoretically present their position in society and their role and relationship in the processes going on in the objective world through philosophical considerations. Philosophy is the basis of presenting the world view of a particular class and for this reason it represents the thinking and behavior of a particular class, its need and its ideals.
Theoretically, materialism is associated with progressive classes and those social groups that are interested in carrying forward the process of historical development, while idealism is associated with reactionary classes that struggle to maintain the present order. Materialism relies on science and uses scientific facts. On the contrary, idealism often associates itself with religion and tries to prove the justification and necessity of maintaining it based on religious stereotypes and beliefs.
लहू से सींचे चमन की बहार जिंदा है,
शहीदे -नाज से लिफ्टी मजार जिंदा है,
भले ही खो गये हम जामें -शहादत पीकर,
उनके अरमानों से लिफ्टा खुमार जिंदा है।
फैसिस्टवाद के अंतर्गत शान्तिमय जीवन संभव?
साम्राज्यवादियों के साथ सहयोगी मोर्चे को गठित करने में हों,फैसिस्टवादी जर्मनी के साथ मित्रता कायम करके
स्टैलिन ने सोबियत रूस की रक्षा करने का प्रयास किया।
जर्मनी और रूस के बीच सन्धि होने के एक सप्ताह बाद
फैसिस्टवादी जर्मनी ने जनतांत्रिक पोलैंड के ऊपर हमला कर दिया। इसके बाद पोलैंड दो टुकड़ों में बटकर जर्मनी और रूस में मिला लिया गया। फिर रूस और जर्मनी के बीच सन्धि हुई जिसमें यह कहा गया कि पोलैंड के पूर्ण राज्य को खतम कर लेने के बाद वहां शांति और व्यवस्था कायम रखना और वहां के निवासियों के लिए शान्तिमय जीवन कायम करना जर्मनी -रूस की सरकारें अपना कर्तव्य समझती हैं। क्या फासिस्टवाद के अन्तर्गत शान्तिमय जीवन संभव हो सकता है? लेखक
पूंजीपति सर्वोपरि अपने क़ब्र खोदने वालों को पैदा करता है।उसका पतन और सर्वहारा वर्ग की विजय दोनों समान रूप से अनिवार्य है।
कार्ल मार्क्स और एंगेल्स
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