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अरे ओ जल्लाद तेरी इतनी तो ताकत है , तू सिर मेरा कटवा दे ,
पर बहादुर तो मैं तुझे तब जानू , जब तू धर्म मेरा छुड़वा दे - #वीर_हकीकत_राय
धर्म के लिए मात्र 14 वर्ष की आयु में अपना सिर कटवा लिया लेकिन धर्म का त्याग नही किया ।
निर्भीक , वीर #हकीकत_राय के बलिदान दिवस पर शत शत नमन ।
सर कटा सकते है , लेकिन सर झुका सकते नही ।
अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नही । ।
मेहनत को अपना नशा बना लो फिर ये नशा तुम्हें कामयाबी का दीदार करावेगी। करें योग रहे निरोग
ये क्या है ? इसको देख के तो गिरगिट भी आत्म हत्या कर लेंगे !!
😂🤪😝😜😅😉🤣
।। ओ३म् ।।
आप सभी को सादर नमस्ते जी
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मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम हम आर्यों के आदर्श हैं। वे एक ऐसे समाज का प्रतिनिधित्व करते थे जो पूर्णतया आर्य था। सब प्रकार के अन्धविश्वास पाखंड से मुक्त समाज था। याज्ञिक था। राम सच्चे आर्यसमाजी थे। उन जैसा आर्यसमाजी मिलना दुर्लभ है। राम सच्चे साधु सन्यासियों व ऋषि मुनियों का बहुत सम्मान करते थे। राम आज होते तो वे ऋषि दयानंद जी का भी बहुत सम्मान करते। उनको अपना गुरु मानते ! यदि वास्तव में राम के भक्त हो और रामराज्य लाना चाहते हो तो गांव गांव में गुरुकुल, गौशाला व यज्ञशाला स्थापित करो। राम के मन्दिर व राम की बडी बडी मूर्तियां बनाने से राम प्रसन्न नहीं होते। राम को प्रसन्न करना है तो राम के आदर्शों को जीवन में धारण करो, राम की तरह आर्य बनो, याज्ञिक बनो, वेद पढो, संयम सदाचार का जीवन जीओ, माता पिता की सेवा करो, सब जीवों से प्रेम करो, तभी जय श्री राम का नारा लगाने के सच्चे अधिकारी होंगे। तभी यह नारा सार्थक होगा।
राम जी की मूर्तियां बना कर उनमें झूठमूठ की प्राण प्रतिष्ठा करने वा उनका हार श्रृंगार करने से कुछ लाभ नहीं होगा। मन्दिरों मस्जिदों के निर्माण, रखरखाव व सुरक्षा पर अरबों खरबों खर्च करना और उनके लिये झगड़े फसाद करना निपट मूर्खता है। महापुरुषों को परमात्मा मान कर पूजना वा उनकी बडी बडी मूर्तियां खड़ी करना भी मूर्खता है। परमात्मा का तो आदेश है कि वेदानुकूल आचरण करो, नित्य यज्ञ करो, योग करो और महापुरुषों के चित्र की नहीं चरित्र की पूजा करो। ऋषि दयानंद का मानना था कि मन्दिर बनाना अपनी भावी सन्तति को सदियों तक अविद्या की गहरी खाई में धकेलना है।
आज अनेक प्रकार की रामायण उपलब्ध हैं। अधिकांश रामायणों में क्षेपक जोड़कर राम के इतिहास को बहुत तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया है। वाल्मीकि रामायण शुद्ध रामायण थी जिसे भी अशुद्ध करने में कसर नहीं छोड़ी। कुछ लोग दुष्प्रचार करते हैं कि राम शुद्रों से भेदभाव करते थे, उन्होंने शम्भूक नामक एक शुद्र का वेदादि शास्त्र पढने के कारण वध कर दिया था। सत्य तो यह है कि गुरुकुलों में सब वर्णों के विद्यार्थियों के लिए बिना किसी भेदभाव के समान शिक्षा, खानपान, वस्त्र आदि का प्रबन्ध था। मध्य काल में जब वेद विद्या का लोप होने लगा था, उस काल में ब्राह्मण व्यक्ति अपने गुणों से नहीं अपितु अपने जन्म से समझा जाने लगा था। शुद्र को नीच समझा जाने लगा था। नारी को नरक का द्वार समझा जाने लगा था। मनुस्मृति में जातिवाद का पोषण करने वाले श्लोकों को मिला दिया गया था। उस काल में वाल्मीकि रामायण में शम्भूक वध वाला उत्तर काण्ड मिला दिया गया। जबकि श्रीराम के समय में किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं था।
अतः हे आर्यो! आर्यावर्त को, भारत को, सत्य सनातन वैदिक( हिन्दू ) धर्म, को बचाना चाहते हो तो राम के आदर्शों को जीवन में धारण कर आर्योचित व्यवहार करो तभी वास्तव में मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम प्रतिष्ठित हो पायेंगे। अन्यथा यह सब मात्र ढ़कोसला ही बनकर रह जायेगा और जिससे अज्ञान,अंधकार,अंधविश्वास और पाखण्ड को बढ़ावा ही मिलेगा, इसमें कोई दो राय नहीं।
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मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की जय
सत्य सनातन वैदिक धर्म की जय
जय आर्यावर्त
जय भारत
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वैदिक हवन नाम करण संस्कार
वैदिक हवन करते हुए
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Vaidik Vivah paddti
जिसके शीश पर शिखा नहीं उसका धर्म कैसा ..?
जिसकी शिखा प्रण से खुली नहीं उसका कर्म कैसा ..?
शादी समारोह में पवित्र वरमाला रस्म का बनता मजाक !!🙏 मुझ दीवाने विक्रम की आज की टॉपिक यही है जो मैं अक्सर सभी शादियों में देखता हूं तो सोचा इस पर लिखा जाए कुछ और आपकी विचार से अवगत होई जाए🙏
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आजकल शादियों में ये बात काफी नजर आ रही है, कि शादी के समय स्टेज पर वरमाला के वक्त वर या दूल्हा बड़ा तनकर खड़ा हो जाता है, जिससे दुल्हन को वरमाला डालने में काफी कठिनाई होती है, कभी कभी वर पक्ष के लोग दूल्हे को गोद में उठा लेते हैं, और फिर वधु पक्ष के लोग भी वधु को गोद में उठाकर जैसे तैसे वरमाला कार्यक्रम सम्पन्न करवा पाते हैं, आखिर ऐसा क्यों? क्या करना चाहते हैं हम?
हम एक पवित्र संबंध जोड़ रहे हैं, या इस नये संबंध को मजाक बना रहे है, और अपनी जीवनसँगनी को हजार-पांच सौ लोगो के बीच हम उपहास का पात्र बनाकर रह जाते हैं, कोई प्रतिस्पर्धा नही हो रही है, दंगल या अखाड़े का मैदान नही है, पवित्र मंडप है जहां देवी-देवताओं और पवित्र अग्नि का आवाहन होता है भगवान् प्रभु श्रीराम जी ने सम्मान सहित कितनी सहजता से सिर झुकाकर सीता जी से वरमाला पहनी थीl
"रामो विग्रहवानो धर्म:"
यही हमारी परंपरा है
विवाह एक पवित्र बंधन है, संस्कार है, कृपया इसको मजाक ना बनने दे..🙏🏼🙏
ऐसे लेख निहायत मूर्खता पूर्ण है 🤷🤷 कोई माने या ना माने जब ऐसे लेख इत्यादि देखता हूं तो गुस्सा सर चढ़ जाता है 🙂🙂
10 लाख का दहेज़
5 लाख का खाना
घड़ी पहनायी
अंगूठी पहनाई
मंडे का खाना
फिर सब सुसरालियो को कपड़े देना ।
बारात को खिलाना फिर बारात को जाते हुए भी साथ में खाना भेजना
बेटी हो गई कोई सज़ा हो गई।
और यह सब जब से शुरू होता है जबसे बातचीत यानी रिश्ता लगता है
फिर कभी नन्द आ रही है, जेठानी आ रही है
कभी चाची सास आ रही है मुमानी सास आ रही है टोलीया बना
बना के आते हैं और बेटी की मां चेहरे पे हलकी सी मुस्कराहट लिए सब
को आला से आला खाना पेश करती है सबका अच्छी तरह से वेलकम
करती है फिर जाते टाइम सब लोगो को 500-500 रूपे भी दिए जाते
है फिर मंगनी हो रही है बियाह ठहर रहा है फिर बारात के आदमी तय
हो रहे है 500 लाए या 800
बाप का एक एक बाल कर्ज में डूब जाता है और बाप जब घर आता है
शाम को तो बेटी सर दबाने बैठ जाती है कि मेरे बाप का बाल बाल मेरी
वजह से कर्ज में डूबा है
भगवान के वास्ते इन गंदे रस्म रिवाजों को खत्म कर दो ताकि हर बाप, कर्ज में डूबा ना हो व
अपनी बेटी को इज़्ज़त से विदा कर सके।
बदलाव एक कोशिश # # # # #
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नमक हमारे भोजन में ऐड किया गया है। इंसानी शरीर को नमक की कोई जरूरत ही नही। चाहे सेंधा ही क्यों न हो,नमक का काम ही है,डिस्ट्रॉय करना,गलाना।प्रकृति में कोई जीव नमक नही खाता। अब सवाल बिना नमक भोजन में टेस्ट कैसे आएगा,जबकि नमक ने वास्तविक प्राकृतिक स्वाद हमारे जिह्वा से खत्म कर दिया है। समुद्रों में प्रकृति ने नमक इसलिए पैदा किया है ,ताकि बड़े बड़े जीव समुद्रो में मरने पर गल सकें, दुनिया भर की गंदगी समुद्रों में बहकर जाती है, उसे वहा खत्म कर सके। अगर नमक हमारे शरीर के लिए प्रकृति ने बनाया होता तो हर थोड़ी थोड़ी जगह पर नमक उपलब्ध होता,जबकि ऐसा नही है। उपवास में नमक नही खाने का चलन भी इसलिए हो। सारी किताबी ज्ञान फर्जी है,प्रकृति को समझो दुनिया की सबसे बेस्ट टीचर उसके पास हर सवालों के जवाब है।
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किताबों को अपना मित्र बनाओ और #अध्ययन को अपनी आदत, यकीन मानिये ये दोस्त कभी गुमराह नहीं करते हैं !!
इतिहास के झरोखे में
भाग 1
शुद्धि समाचार और स्वामी चिदानंद के कारावास का विस्मृत इतिहास
स्वामी श्रद्धानन्द जी के नेतृत्व में हिन्दू संगठन और दलितोद्धार के रूप में दो आंदोलन सन 1920 के दशक में चलाये गए। हिन्दुओं को संगठित करने और हिन्दुओं को तेजी से कम हो रही जनसंख्या को रोकने के लिए विधर्मी हो चुके हिन्दुओं की शुद्धि आवश्यक थी। स्वामी जी ने शुद्धि आंदोलन के रूप में देश व्यापी आंदोलन आरम्भ किया। देश में ऐसे अनेक स्थान थे जहाँ हिन्दू धर्म त्याग चुकें लाखों लोग रहते थे, जिनकी जीवन पद्यति मिश्रित थी। उनके पूर्वजों को कभी बलात अथवा प्रलोभन से मुस्लिम बना दिया गया था। आगरा-मथुरा के निकट रहने वाले ऐसे लोगों को मलकाना कहा जाता था। अनेक मलकाना तो अपने सर पर चोटी तक रखते थे। स्वामी श्रद्धानन्द और आर्यसमाज के प्रयासों से मलकानों की बड़ी संख्या में शुद्धि हुई। इस्लामिक प्रेस, तबलीग और उसके प्रचारक स्वामी जी और शुद्धि आंदोलन के विरुद्ध दुष्प्रचार करने लगे। तब स्वामी जी को शुद्धि आंदोलन सम्बंधित जानकारी एवं भ्रम निवारण के लिए 'शुद्धि समाचार' के नाम से मुख पत्र आरम्भ करना पड़ा। यह लखनऊ से आरम्भ हुआ था और बाद में मार्च 1926 से दिल्ली आ गया। अल्पकाल में ही शुद्धि समाचार का कुशल संपादन स्वामी चिदानंद जी के नेतृत्व में होने लगा। स्वामी चिदानंद जी भारतवर्षीय साधु महामण्डल के मंत्री पद पर कार्य करते थे। 1923 में आप शुद्धि सभा से जुड़कर कन्नौज क्षेत्र में शुद्धि कार्य करने लगे। आपने एक दो मास के भीतर ही ऐसी उत्तमता से शुद्धि कार्य किया कि आपके क्षेत्र का विस्तार बढ़ाकर फरुखाबाद, मैनपुरी और शाजहांपुर कर दिया गया। 1925 में भारतीय शुद्धि सभा क सर्व साधारण सम्मेलन में आप शुद्धि सभा के मंत्री नियुक्त हुए और शुद्धि समाचार के सम्पादक बन गए। दिसम्बर 1926 में स्वामी जी के बलिदान के पश्चात चिदानंद जी पर शुद्धि सभा के कार्य का सारा भार स्वामी जी के कन्धों पर आ गया। जनवरी1927 में आप सभा के प्रधान मंत्री निर्वाचित हुए। आपके कार्यकाल में शुद्धि सभा ने व्यापक प्रगति की और उसका कार्यक्षेत्र सम्पूर्ण भारत में फैल गया। शुद्धि समाचार हज़ारों की संख्या में प्रकाशित होने लगा और देश भर में शुद्धि अभियान के समाचार प्रकाशित होने लगे। सन् 1928 में अप्रैल में शुद्धि समाचार में धारावाहिक रूप में 'इस्लामी सिद्धां
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