Bhagwa MERA MAAN
त्याग, तपस्या एवं बलिदान का प्रतीक
सू?
आश्चर्य घोषित करने का क्राइटेरिया क्या है ?
क्योंकि असली आश्चर्य तो यहाँ है ।
"रामप्पा मंदिर” यह शायद विश्व का एक मात्र मंदिर है जिसका नाम भगवान के नाम पर ना होकर उसके शिल्पी के नाम पर है। कई शक्तिशाली भूकंपो के बाद भी इस मंदिर को नुकसान नहीं पहुँचा तब विशेषज्ञों ने इसकी जाँच शुरू की और अंततः इस मंदिर के एक पत्थर को तोड़कर पानी में डाला तो वह पानी पर तैरने लगा । बाद में पता चला कि ऐसे हल्के पत्थरो से बने होने के कारण ही इस मंदिर को क्षति नहीं पहुँचती । अब सवाल है कि जब दुनियाँ में इस तरह के पत्थर कहीं नहीं मिलते तो क्या रामप्पा ने ही 800 साल पहले ये पत्थर खुद बनाये ?
है ना आश्चर्य ?
(रामप्पा मंदिर, तेलंगाना)
मुख्यमंत्री बनने के बाद प्रोटोकॉल के नाते
योगी जी से पूछा गया कि आपके लिए कौन
सी गाड़ी खरीदी जाये, विस्मित योगी जी ने
कहा, "जो भी कार इस्तेमाल की जा रही है
मैं वही इस्तेमाल कर लूंगा"!
उनके स्टाफ ने बताया परम्परागत रूप से हर
नया मुख्यमंत्री अपनी पसंद की गाड़ी आर्डर
करता है और सरकार उसका पैसा वहन
करती है, जैसे मायावती जी ने अपने लिए
डेढ़ करोड़ की land Cruiser आर्डर की थी।
अखिलेश यादव ने गद्दी सम्भालते ही कह
दिया मैं मायावती की पुरानी गाड़ी नही
इस्तेमाल करूँगा, इसलिए उनके लिए 7
करोड़ की मर्सेडीज SUV आर्डर की गई..!
योगी जी ने कहा,"मैं यहां tax payer का पैसा बर्बाद करने नही बल्कि सेवा करने आया हूँ..इसलिए पुरानी गाड़ियां ही इस्तेमाल करूँगा ....लेकिन परम्परा के नाते
मैं भी कुछ आर्डर करूँगा..मेरे लिए 200 रु का भगवा गमछा मेरी सीट के पीछे लगाया जाये जो मुझे हमेशा याद दिलाता है कि भगवा त्याग और तपस्या का प्रतीक है ,
"मैं एक सन्यासी हूँ और मुझे अपने लिए कुछ नही चाहिए"
-Shantanu Guptaजी की पुस्तक से उद्घृत।
MYogiAdityanath 🧡🚩
आशासे त्वज्जीवने रंगोत्सवम्
अत्युत्तमं शुभप्रदं स्वप्नसाकारकृत् कामधुग्भवतु।
भावार्थः – मुझे आशा है कि रंगों का त्यौहार आपके जीवन का सबसे अच्छा पर्व होगा।
आपके सभी सपने सच हों और आपकी सभी आशाएँ पूरी हों।
*🚩🙏 शुभ वंदन 🙏🚩*
*डिम्पल यादव ने चुनावी सभा में भगवा की तुलना जंग से की है, मेरी कलम का जवाब है ऐसे नेताओं को*
तुम मोदी को गाली देते
हमको कोई मलाल न था
हो विरोध यदि एक व्यक्ति का
ये कोई बुरा खयाल न था
पर तुम तो देश के टुकड़े करने पर ही आमादा हो बैठे
न जाने किस गफलत में थे देश से द्रोह ज्यादा कर बैठे
राम भक्तों पर गोलियाँ चलाने वाला खानदान
अब कर रहा हैं भगवा का अपमान
भगवा हमारा मान है,
सम्मान है अभिमान है
भगवा को जंग कहने वालो तुम काई क्यों नहीं खा लेते
जिस हरे के साथ खड़े हो तुम क्यों उसे नहीं अपना लेते
-मेरी कलम से
1/3/2022 , 7:30 PM
#आपको_ताजमहल_अजूबा_लगता_है,तो यह पढ़िए बारिश की पूर्व सूचना देता है कानपुर का जगन्नाथ मंदिर ।
क्या आप कल्पना कर सकते हैं किसी ऐसे भवन की जिसकी छत चिलचिलाती धूप में टपकने लगे बारिश की शुरुआत होते ही जिसकी छत से पानी टपकना बंद हो जाए
ये घटना है तो हैरान कर देने वाली लेकिन सच है उत्तर प्रदेश की औद्योगिक नगरी कहे जाने वाले कानपुर जनपद के भीतरगांव विकास खंड से ठीक तीन किलोमीटर की दूरी पर एक गांव है बेहटा
यहीं पर है धूप में छत से पानी की बूंदों के टपकने और बारिश में छत के रिसाव के बंद होने का रहस्य
यह घटनाक्रम किसी आम ईमारत या भवन में नहीं बल्कि यह होता है भगवान जगन्नाथ के अति प्राचीन मंदिर में
छत टपकने से हो जाती है बारिश की आहट -
ग्रामीण बताते हैं कि बारिश होने के छह-सात दिन पहले मंदिर की छत से पानी की बूंदे टपकने लगती हैं इतना ही नहीं जिस आकार की बूंदे टपकती हैं उसी आधार पर बारिश होती है
अब तो लोग मंदिर की छत टपकने के संदेश को समझकर जमीनों को जोतने के लिए निकल पड़ते हैं हैरानी में डालने वाली बात यह भी है कि जैसे ही बारिश शुरु होती है छत अंदर से पूरी तरह सूख जाती है
वैज्ञानिक भी नहीं जान पाए रहस्य -
मंदिर की प्राचीनता व छत टपकने के रहस्य के बारे में मंदिर के पुजारी बताते हैं कि पुरातत्व विशेषज्ञ एवं वैज्ञानिक कई दफा आए लेकिन इसके रहस्य को नहीं जान पाए हैं अभी तक बस इतना पता चल पाया है कि मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य 11वीं सदी में किया गया
मंदिर की बनावट बौद्ध मठ की तरह है। इसकी दिवारें 14 फीट मोटी हैं जिससे इसके सम्राट अशोक के शासन काल में बनाए जाने के अनुमान लगाए जा रहे हैं वहीं मंदिर के बाहर मोर का निशान व चक्र बने होने से चक्रवर्ती सम्राट हर्षवर्धन के कार्यकाल में बने होने के कयास भी लगाए जाते हैं लेकिन इसके निर्माण का ठीक-ठीक अनुमान अभी नहीं लग पाया है
भगवान जगन्नाथ का यह मंदिर अति प्राचीन है मंदिर में भगवान जगन्नाथ बलदाऊ व सुभद्रा की काले चिकने पत्थरों की मूर्तियां विराजमान हैं प्रांगण में सूर्यदेव और पद्मनाभम की मूर्तियां भी हैं जगन्नाथ पुरी की तरह यहां भी स्थानीय लोगों द्वारा भगवान जगन्नाथ की यात्रा निकाली जाती है लोगों की आस्था मंदिर के साथ गहरे से जुड़ी है लोग दर्शन करने के लिए आते रहते हैं ।
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समरस जीवन और समरस समाज *समृद्ध राष्ट्र* का आधार है। इसी आधार को सुदृढ़ करने वाले पावन पर्व *मकर संक्रांति* की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ...💐💐
*मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व*
मकर संक्रांति के पावन दिन पर लंबे दिन और रातें छोटी होने लगती हैं। सर्दियों के मौसम में रातें लंबी हो जाती हैं और दिन छोटे होने लगते हैं, जिसकी शुरुआत 25 दिसंबर से होती है। लेकिन मकर संक्रांति से ये क्रम बदल जाता है। माना जाता है कि मकर संक्रांति से ठंड कम होने की शुरुआत हो जाती है।
*मकर संक्रांति का आयुर्वेदिक महत्व*
धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व के अलावा मकर संक्रांति का आयुर्वेदिक महत्व भी है। संक्रांति को खिचड़ी भी कहते हैं। इस दिन चावल, तिल और गुड़ से बनी चीजें खाई जाती हैं। तिल और गुड़ से बनी चीजों का सेवन स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है। इन चीजों के सेवन से इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है।
*मकर संक्रांति में क्यों खाई जाती है खिचड़ी*
मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने की परंपरा होती है, इसलिए मकर संक्रांति के पावन पर्व को खिचड़ी भी कहते हैं। हालांकि इस दिन खिचड़ी खाने की एक वजह ये भी होती है कि मकर संक्रांति में फसल की कटाई होती है। चावल और दाल से बनी खिचड़ी का सेवन सेहत के लिए फायदेमंद होता है। ये पाचन तंत्र को मजबूत करती है।
*मकर संक्रांति से बदलता है वातावरण*
मकर संक्रांति के बाद से वातावरण में बदलाव आ जाता है। नदियों में वाष्पन की प्रक्रिया शुरू होने लगती है। इससे कई सारी बीमारियां दूर हो जाती हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक, सूर्य के उत्तरायण होने से सूर्य का ताप सर्दी को कम करता है।
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आप बिना चूने, सीमेंट या मिट्टी का प्रयोग किए कितनी ऊंची दीवार उठा सकते है ?
10 फीट ? 15 या 20 फीट ?
ये दीवार कितने दिनों तक खड़ी रह सकती है?
1 साल ? 5 या 10 साल?
अगर मैं आपसे कहूं कि हमारे देश में एक ऐसा मंदिर है, जो सिर्फ पत्थरों पर पत्थर रख कर बनाया गया है।
जिसकी ऊंचाई 216 फीट है और जो पिछले 1000 सालो से बिना झुके खड़ा है, तो क्या आप विश्वास करेंगे?
शायद नहीं, लेकिन ये सच है आइए जानते है कौन सी है ये इमारत।
परिचय - इस विराट मंदिर का नाम है, बृहदेश्वर मंदिर, जो कि तंजावुर, तमिलनाडु राज्य में स्थित है। ये मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसका निर्माण चोल राजा राजा चोल द्वारा 1010 ईसा मे पूर्ण कराया गया।
1 - मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जिसकी ऊंचाई 216 फीट है। मंदिर चारो ओर से ऊंची दीवारों से घिरा है, जो कि 16 वी शताब्दी में जोड़ी गई। परिसर का मुख्य द्वार (गोपुरम) लगभग 30 मीटर ऊंचा है, इसके अतिरिक्त परिसर में नंदी मंडप, प्रार्थना मंडप तथा अन्य देवी देवताओं के लिए भी मंदिर बने है, जो कि कालांतर में अन्य राजाओं द्वारा जोड़े गए है।
2 - ये दुनिया की प्रथम और एकमात्र ऐसी इमारत है जो पूरी तरह ग्रेनाइट पत्थरों से बनी है, इसको बनाने में 1.3 लाख टन पत्थर का इस्तेमाल हुआ।
आश्चर्य की बात ये है कि मंदिर परिसर के लगभग 60 किमी के दायरे में कोई पहाड़ या पत्थर का स्त्रोत नहीं है, पत्थरों को यहां तक लाने के लिए 3000 हाथियों का प्रयोग किया गया।
3 - जिस समय ये मंदिर बन कर तैयार हुआ उस समय ये दुनिया की सबसे ऊंची इमारत थी, जो विश्व में हमारी स्थापत्य कला का लोहा मनवाने में सक्षम है। इसे बनवाने में मात्र सात वर्ष का समय लगा जो अद्भुत है।
4 - मंदिर के शिखर (विमान) पर स्थापित पत्थर (कुंभम) का वजन 81 टन है जो कि एक ही पत्थर को काट कर बनाया गया है। इस पत्थर को 200 फीट की ऊंचाई पर स्थापित करना मॉडर्न तकनीकों से भी मुश्किल है तो फिर इसे 1000 साल पहले हमारे पूर्वजों ने कैसे संभव किया?
5 - इस पत्थर को स्थापित करने के लिए 6 किमी ऊंचा एक रैंप तैयार किया गया जिस पर हाथियों कि सहायता से इसे खींच कर ऊपर तक पहुंचाया गया, आप इसके निर्माण की भव्यता का अंदाज़ा केवल इस एक घटना से ही लगा सकते है।
6 - नंदी मंडप में स्थित नंदी कि प्रतिमा की ऊंचाई लगभग 13 फीट और लंबाई 16 फीट है, जो कि एक ही चट्टान को काट कर निर्मित किया गया है।
7 - गर्भ ग्रह में स्थित शिवलिंग देश के सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक है, जिसकी ऊंचाई 29 फीट है।
8 - इस मंदिर का निर्माण पत्थरों कि इंटरलॉकिंग तकनीक द्वारा किया गया है तथा चूने अथवा अन्य किसी पदार्थ से जुड़ाई नहीं की गई ।
9 - दीवारों तथा मंडपो पर सर्वत्र मूर्तियां, चित्र व तमिल व संस्कृत अभिलेख खुदे हुए है।
अपनी संस्कृति की महानता का अंदाज़ा लगाने के लिए एक बार अवश्य इस मंदिर के दर्शन करे।
मूर्खता का शिक्षा के साथ कोई संबंध नहीं है। कोई बहुत शिक्षित होकर भी मूर्ख हो सकता है। स्वयं को प्रगतिशील और आधुनिक दिखाने की होड़ में भी कुछ लोग मूर्खताएँ करते हैं। एक IAS अधिकारी हैं, जिनकी मीडिया में बड़ी वाहवाही हो रही है कि उन्होंने अपने विवाह में पिता को अपना कन्यादान करने से रोक दिया। कहा कि मैं दान की वस्तु नहीं हूँ। कुछ दिन पहले ऐसा ही ज्ञान ‘मान्यवर’ कंपनी के विज्ञापन में आलिया भट्ट द्वारा दिलाया गया था। मानो कन्यादान कोई सामाजिक बुराई है। लेकिन वो नहीं जानते कि इस परंपरा का अर्थ क्या है?
हिंदू विवाह के कुल 22 चरण होते हैं। कन्यादान इसमें सबसे महत्वपूर्ण है। अग्नि को साक्षी मानकर लड़की का पिता/अभिभावक अपनी बेटी के गोत्र का दान करता है। इसके बाद बेटी अपने पिता का गोत्र छोड़कर पति के गोत्र में प्रवेश करती है। कन्यादान का यह अर्थ नहीं कि ऐसा करके पिता बेटी को दान कर देता है। कन्यादान हर पिता का धार्मिक कर्तव्य है। इस दौरान जो मंत्रोच्चार होता है उसमें पिता होने वाले दामाद से वचन लेता है कि आज से वह उसकी बेटी की सभी ख़ुशियों का ध्यान रखेगा।
ऐसी भावुक रस्म को भी वामपंथी मूर्खता का शिकार बनाया जा रहा है। इन मूर्ख संस्कारहीनों को नहीं पता कि हिंदू धर्म के विवाह मंत्रों की रचना किसी पुरुष ने नहीं, बल्कि विदुषी सूर्या सावित्री ने की थी। कन्यादान को लेकर मूर्खतापूर्ण अभियान चलाने वालों की बुद्धि पर तरस खाइए। और चिंता कीजिए कि ऐसे IAS-IPS अधिकारी और उनकी मूर्खता पर वाह-वाह करने वाला मीडिया देश, समाज और धर्म का कितना अहित कर रहे हैं।
शिक्षा अपनी जगह है और संस्कार अपनी, जरूरत है इसके फर्क को समझने की।
साभार
सुंदरकांड पढ़ते हुए 25 वें दोहे पर ध्यान थोड़ा रुक गया* । तुलसीदास ने सुन्दर कांड में, जब हनुमान जी ने लंका मे आग लगाई थी, उस प्रसंग पर लिखा है -
हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।
अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास।।25।।
अर्थात : जब हनुमान जी ने लंका को अग्नि के हवाले कर दिया तो --
भगवान की प्रेरणा से *उनचासों पवन* चलने लगे।
हनुमान जी अट्टहास करके गर्जे और आकार बढ़ाकर आकाश से जा लगे।
मैंने सोचा कि इन उनचास मरुत का क्या अर्थ है ? यह तुलसी दास जी ने भी नहीं लिखा। फिर मैंने सुंदरकांड पूरा करने के बाद समय निकालकर 49 प्रकार की वायु के बारे में जानकारी खोजी और अध्ययन करने पर सनातन धर्म पर अत्यंत गर्व हुआ।
तुलसीदासजी के वायु ज्ञान पर सुखद आश्चर्य हुआ, जिससे शायद आधुनिक मौसम विज्ञान भी अनभिज्ञ है ।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि *वेदों में वायु की 7 शाखाओं के बारे में विस्तार से वर्णन मिलता है*।
अधिकतर लोग यही समझते हैं कि वायु तो एक ही प्रकार की होती है, लेकिन उसका रूप बदलता रहता है, जैसे कि ठंडी वायु, गर्म वायु और समान वायु, लेकिन ऐसा नहीं है।
दरअसल, जल के भीतर जो वायु है उसका वेद-पुराणों में अलग नाम दिया गया है और आकाश में स्थित जो वायु है उसका नाम अलग है। अंतरिक्ष में जो वायु है उसका नाम अलग और पाताल में स्थित वायु का नाम अलग है। नाम अलग होने का मतलब यह कि उसका गुण और व्यवहार भी अलग ही होता है। इस तरह वेदों में 7 प्रकार की वायु का वर्णन मिलता है।
ये 7 प्रकार हैं- 1.प्रवह, 2.आवह, 3.उद्वह, 4. संवह, 5.विवह, 6.परिवह और 7.परावह।
1. प्रवह : पृथ्वी को लांघकर मेघमंडलपर्यंत जो वायु स्थित है, उसका नाम प्रवह है। इस प्रवह के भी प्रकार हैं। यह वायु अत्यंत शक्तिमान है और वही बादलों को इधर-उधर उड़ाकर ले जाती है। धूप तथा गर्मी से उत्पन्न होने वाले मेघों को यह प्रवह वायु ही समुद्र जल से परिपूर्ण करती है जिससे ये मेघ काली घटा के रूप में परिणत हो जाते हैं और अतिशय वर्षा करने वाले होते हैं।
2. आवह : आवह सूर्यमंडल में बंधी हुई है। उसी के द्वारा ध्रुव से आबद्ध होकर सूर्यमंडल घुमाया जाता है।
3. उद्वह : वायु की तीसरी शाखा का नाम उद्वह है, जो चन्द्रलोक में प्रतिष्ठित है। इसी के द्वारा ध्रुव से संबद्ध होकर यह चन्द्र मंडल घुमाया जाता है।
4. संवह : वायु की चौथी शाखा का नाम संवह है, जो नक्षत्र मंडल में स्थित है। उसी से ध्रुव से आबद्ध होकर संपूर्ण नक्षत्र मंडल घूमता रहता है।
5. विवह : पांचवीं शाखा का नाम विवह है और यह ग्रह मंडल में स्थित है। उसके ही द्वारा यह ग्रह चक्र ध्रुव से संबद्ध होकर घूमता रहता है।
6. परिवह : वायु की छठी शाखा का नाम परिवह है, जो सप्तर्षिमंडल में स्थित है। इसी के द्वारा ध्रुव से संबद्ध हो सप्तर्षि आकाश में भ्रमण करते हैं।
7. परावह : वायु के सातवें स्कंध का नाम परावह है, जो ध्रुव में आबद्ध है। इसी के द्वारा ध्रुव चक्र तथा अन्यान्य मंडल एक स्थान पर स्थापित रहते हैं।
इन सातो वायु के सात सात गण हैं जो निम्न जगह में विचरण करते हैं
ब्रह्मलोक, इंद्रलोक, अंतरिक्ष, भूलोक की पूर्व दिशा, भूलोक की पश्चिम दिशा, भूलोक की उत्तर दिशा और भूलोक कि दक्षिण दिशा। इस तरह
7 x 7 = 49। कुल 49 मरुत हो जाते हैं जो देव रूप में विचरण करते रहते हैं।
अद्भुत ज्ञान।
हम अक्सर रामायण, भगवद् गीता पढ़ तो लेते हैं परंतु उनमें लिखी छोटी-छोटी बातों का गहन अध्ययन करने पर अनेक गूढ़ एवं ज्ञानवर्धक बातें ज्ञात होती हैं ! 🙏
जय श्री हनुमान 🙏🙏🙏
🚩🚩 पिलुआ वाले महावीर 🚩🚩
पवनपुत्र बंजरगबली के चमत्कारों के किस्से दुनिया भर मे मशहूर हैं, लेकिन महाभारत कालीन सभ्यता से जुडे़ उत्तर प्रदेश मे इटावा के बीहड़ों में स्थित पिलुआ महावीर मंदिर की हनुमान मूर्ति सैकड़ों सालों से उनके जिंदा होने का एहसास कराती नजर आ रही है.
मंदिर के पुजारी ने बताया कि ये हनुमान द्वापर युग से है। महाभारत के एक प्रसंग को बताते हुए उन्होंने कहा कि प्रतापनेर नगर के राजा हुकुमदेव सिंह को तुलसीदास ने इस मूर्ति के बारे में बताया था तब इसे निकाला गया। राजा हुकुमदेव इस मूर्ति को अपने नगर ले जाना चाहते थे, लेकिन हनुमान जी जाने को तैयार नहीं थे। हनुमान जी ने राजा को स्वपन में कहा कि अगर मुझे यहां से ले जाना चाहते हो तो मेरा पेट भर दो। राजा अभिमान में आकर हनुमान जी को दूध पिलाने लगे, लेकिन पूरे नगर का दूध मंगवाकर भी वो उनका मुखारविंद भर नहीं पाए।
तब रानी ने क्षमा मांगते हुए श्रद्धा से एक छोटे से लोटे में दूध भरकर हनुमान जी को पिलाया जिनसे उनका मुखारविंद भरकर तृप्त हो गया। पुजारी ने बताया कि पिलुआ वाले महावीर के नाम से इस मंदिर को जो प्रसिद्धी मिली उसके बारे में लोग ज्यादा नहीं जानते पिलुआ एक जंगली पेड़ होता है, जिसकी जड़ के नीचे हनुमान जी दबे हुए थे। राजा ने उन्हें निकलवाया था और वहां एक छोटा सा मंदिर बनवा दिया था। तब से इनका नाम पिलुआ वाले महावीर पड़ गया। पिलुआ वाले महावीर की सबसे बड़ी रहस्यमयी बात उनका मुखारविंद है।हनुमान जी की इस प्रतिमा के मुख में हर वक्त पानी भरा रहता है. कितना भी प्रसाद मुंह में डालो पूरा प्रसाद मुंह में समा जाता है. इनके मुखारविंद में प्रसाद स्वरूप जो भी लडू डाला जाता है वो सीधा उनके अंदर जाता है। वर्षों से ये क्रम ऐसे ही चलता आ रहा है। किसी को नहीं पता इनको चढ़ाया जाने वाला कुन्टलों प्रसाद आखिर जाता कहां है।
प्रत्येक मंगलवार एवं शनिवार को यहां श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है और बुढ़बा मंगल को यहाँ लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और दर्शन मात्र से भाव विभोर हो जाते है दुनिया का शायद ये पहला ऐसा मंदिर होगा जहा हनुमान जी जीवित अवस्था में दिखाई देते हैं। इस बात की गवाही उनका मुखारविंद स्वयं देता है और साथ ही मुखारविंद से राम नाम की मधुर ध्वनि सुनाई देती है।
भक्तों का दावा
इसको चमत्कार नहीं तो और क्या कहा जायेगा. हनुमान भक्तो का यह भी दावा है कि हनुमान जी इस मंदिर में जीवित अवस्था में हैं. तभी एकांत में सुनने पर प्रतिमा से सांसें चलने की आवाज सुनाई देती है. बताया जाता है कि हनुमान जी के मुख से राम नाम की ध्वनि भी सुनाई देती है. बजरंगबली के ऐसे चमत्कारों के बारे में सुनकर एवं देखकर लोगों का विश्वास उनमें और भी ज्यादा बढ़ जाता है. मान्यता है कि इस मंदिर में जो भी बजरंगबली के दर्शन करता है, उसके जीवन में कभी कष्ट नहीं आते हैं. हनुमान जी की मूूर्ति इतनी प्रभावशाली है कि इनकी आंखों में देखते ही लोगों की परेशानियां हल हो जाती हैं. इन्हें लगाया जाने वाला कई गुणा भोग भी इनके उदर को नहीं भर पाता है. यमुना नदी के किनारे बसे महाभारत कालीन सभ्यता से जुड़े यहां के बीहड में बंजरगबली के मंदिर मे हनुमान जी की एक ऐसी मूर्ति स्थापित है, जिसके चमत्कार के आगे हर कोई नतमस्तक है.
यह चमत्कारिक मंदिर चैहान वंश के अंतिम राजा हुक्म देव प्रताप की रियासत में बनाया गया. यहां पर महाबली हनुमान की प्रतिमा लेटी हुई है और लोगों की मानें तो ये मूर्ति सांस भी लेती है और भक्तों के प्रसाद भी खाती है.यहां की सबसे खास बात यह है कि इस मंदिर में महाबली हनुमान जी की प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठित नहीं है.
ियाराम
्रीराम
ीर_हनुमान
इटावा के राम भदावर जी को सुनिये।
युवा हैं पर विचार उत्तम हैं।
सनातन संस्कृति को ऐसे ही युवकों की आवश्यकता है।
कवि का नाम - राम भदावर, इटावा, उत्तरप्रदेश🙏🏻
मुम्बईया सिने जगत पर वामपन्थ का प्रभाव शुरू से ही था। कोई ऐतिहासिक मूवी भी बनायेंगे तो स्टोरी में हेर फेर कर के भारतीय राजा की हार और उसे कमतर ही दिखायेंगे।
साल 1941 में प्रोड्यूसर, डायरेक्टर, एक्टर सोहराब मोदी ने एक फ़िल्म का निर्माण किया, जिसमें खुद ही निर्देशक और लीड एक्टर भी थे। फ़िल्म का नाम था ‘सिकन्दर’.....
इस फ़िल्म में सोहराब मोदी पोरस की भूमिका में थे और पृथ्वीराज कपूर सिकन्दर की भूमिका में।
मूवी के अन्त में दिखाया जाता है कि ग्रीक लुटेरा सिकन्दर (लुटेरा ही कहेंगे, उसने शासन तो कभी किया ही नही। बाप फ़िलिप की हत्या कर मकदुनिया का राजा बना और उसके बाद ग्रीस, इजिप्ट, फ़ारस वग़ैरह में नरसंहार और लूट मचाते हुए भारत भी लूटने पहुँचा था।) राजा पोरस को युद्ध में हरा के बन्दी बना लेता है और पोरस से पूछता है कि तुमसे क्या सलूक किया जाये। पोरस का किरदार जवाब देता है कि वही जो एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है।
उसका ऐसा जवाब सुनकर सिकन्दर उससे प्रभावित होता है। उसपे तरस खा के उसे उसका पौरव राज्य लौटा देता है और वही से वापस अपने देश मकदुनिया को निकल जाता है।
पोरस वाले इस डायलॉग को मीडिया में बहुत फूटेज दिया गया। आज भी इस डायलॉग को कालजयी बताया जाता रहा है।
फिर इसी मूवी का रिमेक 1965 में बना और नाम दिया गया ‘सिकन्दर ए आज़म’...
इस मूवी में पृथ्वी राज कपूर पोरस की भूमिका में थे और सिकन्दर की भूमिका में दारा सिंह थे।
इस मूवी में भी पोरस वाला डायलॉग वैसे ही रखा गया था। ये मूवी भी अपने जमाने की ब्लॉकबस्टर मूवी रही थी।
अब बॉलीवुड से हॉलीवूड चलते हैं।
साल 2004 में Alexander मूवी आयी। इस मूवी का बस नाम सुना था और ध्यान इस लिये गया कि इसमें ऐक्ट्रेस ऐंजेलीना जोली की भी विशेष भूमिका है। वो सिकन्दर की साइको माँ की भूमिका में रहती है जो बचपन से ही सिकन्दर के दिमाग़ में ज़हर भरती रहती है । दो घंटा बीस मिनट के बाद महाराजा पोरस से युद्ध का सीन आता है।
महाराजा पोरस की गज सेना थी जिससे सिकन्दर की घुड़सवार सेना बहुत बुरी तरह से डरी हुई थी। युद्ध में सिकन्दर की सेना के कदम उखाड़ दिये थे पोरस कि गज सेना ने।
सिकन्दर और उसकी सेना ने जीवन में कभी हाथी देखा ही नही था तो उनके लिये बहुत विपरीत परिस्थिति थी।
अंत में सिकन्दर महाराजा पोरस से भिड़ गया। हाथी पर सवार महाराजा पोरस ने एक तीर सिकन्दर के घोड़े को मारा और एक तीर से सिकन्दर का सीना भेद दिया।
सिकन्दर अचेत हो के भूमि पे गिरा और मरणासन अवस्था में चला गया। अब उसके सिपाहसालारों ने किसी तरह सिकन्दर को पोरस से बचाया और किसी तरह सुरक्षित स्थान ले गए ताकि उसकी उचित चिकित्सा हो सके।
होश में आने के बाद से ही सिकन्दर का विश्वविजयी स्वप्न ध्वस्त हो गया और अपनी सेना को मकदुनिया वापसी हुक्म दिया। सेना भी खुश क्यूँकि उनकी हिम्मत नही थी भारत के प्रहरी महाराजा पोरस से युद्ध करने का।
ये सब दृश्य देख के मेरा माथा चकरा गया। ये हॉलीवुड वाले क्या दिखा रहे हैं? सिकन्दर महान की इतनी बेज्जती? पोरस से हार के भाग गया। जबकि बॉलीवुड वालों ने तो सिकन्दर की महानता में चार चाँद लगा दिये थे।
अब मैंने गुगल करना चाहा कि आख़िर किसने ऐसी स्टोरी बनाई है हॉलीवुड के लिए? तो पता चला कि एक ब्रिटिश इतिहासकार ने पूरे तथ्यों के साथ सिकंदर पर एक बुक लिखा था Alexander The Great के नाम से। उसी बुक को आधार बना के इस हॉलीवुड मूवी की स्क्रिप्ट लिखी गयी।
साभार Av Aks
कल्पना!
-- कन्हैया!
-- बोलो बन्धु!
-- देख रहे हो भारत की दशा? गंधार देश में धर्म बचा ही नहीं, बंग में वही दशा! मन्दिर तोड़े जा रहे, निरपराध मानुस मारे जा रहे, घरों को जलाया जा रहा है। भविष्य कैसा होगा?
-- तो? मैं क्या करूँ? तुम्हारा देश है, तुम्हारा युग है, तुम करो स्वयं की रक्षा!
-- किन्तु मैं तो तुमको पूजता हूँ न देव! मैं तो तुम्हारे भरोसे बैठा हुआ हूँ कि तुम हमारी रक्षा करोगे।
-- मैं? तुम्हे याद है बन्धु, अपने युग के महासमर में भी मैंने अपने परम मित्र का केवल रथ हांका था। मैं केवल राह दिखाता हूँ, अपने जीवन का युद्ध तो सबको स्वयं ही लड़ना होता है भाई!
-- किन्तु तुम तो ईश्वर हो न माधव! यूँ अपने लोगों को अकेला छोड़ दोगे?
-- नहीं बन्धु! मैं अपने लोगों को कभी अकेला नहीं छोड़ता। मैं सदैव उनके साथ होता हूँ। उन्हें उनका सही मार्ग दिखाता रहता हूँ। पर चलना तो उन्हें ही पड़ता है...
-- और यदि हम विपत्ति से लड़ कर भी पराजित हो गए, तो? क्या तुम यूँ ही धर्म को समाप्त हो जाने दोगे?
-- तुम यदि लड़ पड़ो तो पराजित हो ही नहीं सकते! मैं तुम्हे पराजित होने ही नहीं दूंगा। महाभारत युद्ध में जब अर्जुन पराजित होने लगे तो बिना बुलाये मैंने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ कर सुदर्शन उठा लिया था। जबतक तुम मेरे साथ हो, तुम पराजित नहीं हो सकते।
-- पर कन्हैया! मध्यकाल में बर्बर आतंकियों से युद्ध में अनेक भारतीय धर्मनिष्ठ शासक पराजित हो गए थे। तब तुमने उनकी सहायता क्यों नहीं की?
-- युद्ध में किसी एक राजा की पराजय क्या सभ्यता और धर्म की पराजय होती है? नहीं! यदि मध्यकाल के युद्धों में सभ्यता पराजित हुई होती आज तुम नहीं होते मित्र! तुम हो, यह सभ्यता की ही विजय है, यह धर्म की ही विजय है।
-- किन्तु आर्यावर्त की सीमाएं तो लगातार सिकुड़ती ही गयी हैं न माधव! देश तो छोटा होता ही गया है। क्या यह हमारी पराजय नहीं?
-- राष्ट्र की सीमाएं निरन्तर परिवर्तित होती हैं बन्धु! राष्ट्र को जब कोई योग्य नायक मिलता है तो सीमाएं बढ़ती हैं, और कायरों के काल में सीमाएं सिकुड़ती हैं। जो आज नहीं है, वह कल होगा। तुम अपना कार्य तो करो, सिंधु की धारा पुनः तुम्हारे आंगन से बहेगी...
-- और यदि मैं न करूँ तो?
-- तो क्या? तुम नहीं तो कोई और करेगा। तुम्हारे न करने से धर्म का कार्य बाधित नहीं होगा मित्र, उसे कोई न कोई मिल ही जायेगा। लाखों लोग प्रतिदिन जन्म लेते हैं और उतने ही नित्य मर-खप जाते हैं, समय किसको याद रखता है? समय उन्ही नायकों को याद रखता है जो धर्म का कार्य करते हैं।
-- तो क्या युग बदलेगा?
-- तुम्हे यदि गङ्गा की लहरों पर पसरता नया भगवा रंग नहीं दिखता तो यह तुम्हारा दोष है मित्र! बाकी समय अपना कार्य कर रहा है। तुम यदि नायकों की सूची में अपना नाम जोड़ना चाहते हो तो लड़ो, वरना भेंड़ बकरियों की भांति गुमनाम मर जाओगे।
-- फिर मुझे क्या करना चाहिए कन्हैया?
-- आँख बंद करो, बताता हूँ।
-- कर लिया।
-- अब खोलो...
-- खोल लिया। अरे! किधर गए? कहाँ गए कान्हा?
-- तुम्हारे अंदर ही था बन्धु! अब भी तुम्हारे अंदर ही हूँ। यह राष्ट्र मेरा है, यह सभ्यता मेरी है, मैं ही धर्म हूँ। मैं आर्यावर्त के हर सनातन शरीर में हूँ... जब ढूंढो तब मिल जाऊंगा। पर ढूंढने की आवश्यकता ही क्या है, तुम अपना कर्म करो मैं तुम्हारे साथ हूँ। अपने कार्य के लिए किसी और से आशा न करो, स्वयं लड़ो अपना युद्घ। यही धर्म है...
-- कन्हैया! कन्हैया! कन्हैया!
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काशी विश्वनाथ कॉरिडोर 🥰🥰
शल्य चिकित्सा के जनक आचार्य सुश्रुत
एशिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर, सोलन, हिमाचल प्रदेश, जहां पत्थर को थपथपाने पर आती है डमरू जैसी ध्वनि...
39 साल में बना था ये अद्भुत शिव मंदिर.!
ये शिव मंदिर कला का बेजोड़ नमूना है।
हिमाचल प्रदेश के सोलन में स्थित जटोली शिव मंदिर।
इसे एशिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर माना जाता है।
मंदिर की ऊंचाई 111 फुट है।
मंदिर दक्षिण द्रविड़ शैली से बना है।
मंदिर को बनने में ही करीब 39 साल का समय लगा।
जटोली मंदिर के पीछे मान्यता है कि पौराणिक समय में भगवान शिव यहां आए और कुछ समय यहां रहे थे।
बाद में एक सिद्ध बाबा स्वामी कृष्णानंद परमहंस ने यहां आकर तपस्या की।
उनके मार्गदर्शन और दिशा निर्देश पर ही जटोली शिव मंदिर का निर्माण हुआ।
मंदिर में कला और संस्कृति का अनूठा संगम देखने को मिलता है।
-मंदिर की ऊंचाई 111 फुट है और भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार यह मंदिर एशिया के सबसे ऊंचे मंदिरों में शामिल है।
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