Mera mann
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'वो' मुझमें पहले भी थे,
'वो' मुझमें अब भी है,
पहले मेरे 'लफ्जों' में थे,
अब मेरी 'खामोशी' में है...!!!
कहने को खुली किताब हूँ मैँ !
मगर सच कहूँ तो एक राज़ हूँ मै!
सब को लगता है
लहर हूँ,
नदी हूँ
या समन्दर हूँ मै!
मगर सच कहूँ तो बस प्यास हूँ मै!
ज़िन्दगी की राहों में ऐसा अक्सर होता है, फैसला जो मुश्किल हो वो ही बेहतर होता है..
प्रतीक्षारत स्त्रियां
*******
अपनी प्रतीक्षा के बदले इन पर
उलाहनों के जितने भी वारफेर
न्यौछावर किए गए
ये उन्हें प्रेम और ममता की
मिट्टी से बनी गुल्ल्क में भरती गई
जिसे दुनिया छोड़कर जाते भी
अपने साथ ही लेकर गई.
घर की दहलीज पर बेचैनी से
प्रतीक्षा करती इनकी आँखें
दिव्यदृष्टि प्राप्त कर ब्रह्मांड के
अंतिम छोर तक देख पाने
और कान तिनके की पदचाप
सुन पा सकने के भी अभ्यस्त हो जाते हैं.
प्रतीक्षाओं में पगी
इन सभी स्त्रियों की देह
बेचैनियों और आशंकाओं के जेवर पहने
रतजगे और उपवास रख
हर प्रतीक्षा का उत्सव मनाती है
स्त्री की प्रतीक्षा करती स्त्री
अक्सर माँ होती है
कई दफा बेटी,
बाकि, 'नसीब'.
प्रतीक्षा करती स्त्रियों की
कभी प्रतीक्षा नहीं की गई!
हरबार ,
इनकी प्रतीक्षाओं की केवल
समीक्षाएं ही की गईं...
अनाम लेखक
जिंदगी बड़ी अजीब सी हो गयी है जो मुसाफिर थे
वो रास नहीं आये, जिन्हें चाहा वो साथ नहीं आये।
आजाद कर दिए हमने मनपसंद लोग,
अब ना कोई ख्वाहिश ना कोई रोग..
खामोशियां जिन्हें अच्छी लगने लगती हैं
फिर वो लोग बोला नहीं करते ......
हर ख़्वाहिश के मुकद्दर में हक़ीक़त नहीं होती,
कुछ ख़्वाब ज़िन्दगी में महज़ ख़्वाब ही रहते हैं,
दुनिया को मेरी हकीकत पता कुछ भी नहीं..
इल्ज़ाम हजारों है और खता कुछ भी नहीं..
मेरे दिल में क्या है पढ न सकोगे .....
सारे पन्ने भरे हैं और लिखा कुछ भी नहीं ..
जज़्बात कहते हैं खामोशी से बसर हो जाए..
दर्द की ज़िद्द है कि दुनिया को खबर हो जाए..!!
मगरुर हूँ मैं अपने ही किरदार पर, कोई तुमसा नहीं तो कोई मुझसा भी कहाँ हैं!
हम किताबों के दौर से बाहर आ
गए हैं अब हमें ज़िन्दगीं पढ़ाती है..
एक रोज़ कोई आएगा सारी फुर्सतें लेकर,
एक रोज़ हम कहेंगे ज़रूरत नहीं रही अब....
किसी का मन भर गया,कोई मन से उतर गया
जिंदगी के सफर में,कोई यहां उतर गया,कोई वहां उतर गया...
एक कहानी है मुझमें जो तुम्हें नजर नहीं आएगी
जिंदगी की हकीकत हूं मैं जो तुम्हें पसंद नहीं आयेगी
चाह कर भी तुम मुझे कभी बदल नहीं पाओगे
मैं दीवार की वो तस्वीर हूं जो तुम्हें समझ नहीं आयेगी
मशवरा तो खूब देते हो कि खुश रहा करो,
कभी खुश रहने की वजह भी दे दिया करो
उदासियों का ये मौसम बदल भी सकता था
वो चाहता तो मेरे साथ चल भी सकता था।
एक चाहत होती है, जनाब अपनों के साथ जीने की,
वरना पता तो हमें भी है कि.. ऊपर अकेले ही जाना है…
ज़िंदगी में सबसे बड़ा थप्पड़ ,
आपको आपका भरोसा मारता है !!
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