Sushrutayurveda
A uniqe centre for pure Ayurvedic treatment
Specialities...
*Ano Rectal(piles,fistula ,fissure etc.)
*Arthritis
* Abdominal diseases
*Respiratory diseases
Consultation fees Rs.500
#ग्रीष्मऋतुचर्या …
(REGIME TO BE FOLLOWED DURING SUMMER )
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प्रिय साथियों गर्मी आ गई है अतः स्वास्थ्य रक्षण के लिये हर ऋतु की तरह ग्रीष्म ऋतु में भी जीवन-शैली में कुछ बदलाव लाने आवश्यक होते हैं| सबसे पहले यह देखते हैं कि यह बदलाव क्यों आवश्यक हैं ? संक्षेप में देखें तो पहली बात यह है कि आयुर्वेद का लोक-पुरुष-साम्य सिद्धांत यह स्पष्ट करता है कि पुरुष लोक के समान है (च.शा.5.3: पुरुषोऽयं लोकसम्मितः)
इस सिद्धांत के प्रकाश में देखने पर पता चलता है कि
लोक या पृथ्वी के वातावरण का सीधा सीधा प्रभाव मानव के स्वास्थ्य पर पड़ता है क्योंकि लोक और पुरुष में समानता (च.शा.5.3: लोकपुरुषयोः सामान्यम्) होने से सामान्य-विशेष का सिद्धांत कार्य करता है अर्थात सामान भावों को सामान भावों से मिलाने पर उस भाव की वृद्धि और असमान भावों को मिलाने पर ह्रास होता है| यहाँ पर लोक से तात्पर्य पूरी दुनिया के वातावरण से है जिसमें पाँच महाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश)तथा आत्मा शामिल हैं।
इन आयुर्वेदिक सिद्धांतों को आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो पर्यावरण और पारिस्थिक तंत्र के साथ मानव के रिश्तों की अनवरत सार-संभाल या अनुकूलन ही ऋतुचर्या है। इसे साधारण शब्दों में यों समझें कि यदि हवा, पानी, तापक्रम, मिट्टी, पेड़-पौधों में ऋतु के अनुसार परिवर्तन होते हैं तो हमें भी उसके अनुसार जीवन-शैली और खान-पान और पहनावे में परिवर्तन करना पड़ता है| यह परिवर्तन या अनुकूलन ही धातुसाम्य रखता है। यही अनागत रोगों का प्रतिकार या विकार-अनुत्पत्ति में सहायक है।
ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की किरणें अत्यन्त तीक्ष्ण होने से वातावरण के तापमान को बढ़ा देती हैं, जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरण और द्रव्यों से जल का अंश धीरे-धीरे कम होने लगता है। यही कारण है कि इस ऋतु में कफ का क्षय तथा वात की वृद्धि होती जाती है। बल में कमी तथा अग्नि सामान्य रहती है ।
शोध से ज्ञात होता है कि किसी भी दिन तापमान में 10 डिग्री फैरेनहीट की बढ़त होने पर उसी दिन हृदय रोगों, स्ट्रोक, श्वसन रोग, निमोनिया, निर्जलीकरण, गर्मी से स्ट्रोक, मधुमेह और गुर्दे की विफलता सहित कई बीमारियों के लिये अस्पताल में भर्ती होने का खतरा बढ़ जाता है। ऋतुचर्या प्राकृतिक कारणों से उत्पन्न जोखिम को कम करने की रणनीति है।
ग्रीष्म ऋतु में कठोर शारीरिक श्रम, व्यायाम व सहवास आदि की अति से बचना चाहिये। धूप में अधिक देर तक समय नहीं गुजारना चाहिये। लवण, कटु एवं अम्ल रसों की प्रधानता वाले द्रव्य, शुष्कताकारक व उष्ण पदार्थों का उपयोग छोड़ देना श्रेयस्कर है। अल्कोहल का प्रयोग भी नहीं करना चाहिये, यदि करें तो बहुत कम मात्रा में, और उसमें भी बहुत पानी मिलाकर ही उपयोग करें। अन्यथा शोथ, शिथिलता, दुर्बलता, दाह व मोह जैसी समस्यायें उत्पन्न होती हैं।
पेय पदार्थों में रायता एवं खाण्ड (खट्टे, मीठे, नमकीन द्रव्यों का घोल) शक्कर या खाण्ड मिला हुआ सुंगधित एवं शीतल पानक या पन्ना लाभकारी है। मंथ अर्थात घी-युक्त सत्तू का शीतल जल में बनाया गया हल्का गाढ़ा घोल जिसमें शक्कर , खाण्ड या शहद भी मिलाई जा सकती है, लिया जा सकता है। केले के पत्तों से ढके हुये मिट्टी के नये बर्तन में आम पन्ना या शर्बत भी कुछ समय रखकर पिया जा सकता है। मधु, द्राक्षा (दाख या मुनक्का), फालसा, आमलकी (आँवला) खण्ड (खांड़) को शीतल जल में मथ कर पंचसार बनाया जाता है।पंचसार में एक चुटकी सैन्धव डाल दें तो इससे स्वादिष्ट, तृप्तिकर, पौष्टिक और शीतल पेय दुनियाभर में उपलब्ध नहीं है। यह उच्चकोटि का एंटीऑक्सीडेंट होने के कारण ऑक्सीडेटिव-स्ट्रेस को कम करने वाला स्वादिष्ट रसायन भी है। पाढ़ल के पुष्पों से सुगंधित, पुदीना या कर्पूरयुक्त शीतल जल पिया जा सकता है। रात में भैंस के दूध में खाण्ड मिलाकर ठंडा कर पिया जा सकता है। बाजारू कृत्रिम शीतल पेय से छुटकारा पाना ही श्रेयस्कर है|
खाद्य पदार्थों में ग्रीष्म ऋतु में मधुर रस प्रधान, स्वादिष्ट, शीतल और स्निग्ध अन्नपान हितकारी होता है। उदाहरण के लिये, शालि-चावल के भात में घी या दूध में मिलाकर खाना बहुत स्वादिष्ट लगता है। यह ध्यान देना आवश्यक है कि किसी भी ऋतु में प्रत्येक भोजन में सभी छः रसों का होना आवश्यक है। ग्रीष्म ऋतु में शीतल, स्निग्ध और मधुर रस प्रधान स्वादिष्ट भोज्य पदार्थों को प्रधानता देते हुये अन्य रसों को भी थोड़ी मात्रा में ग्रहण करना चाहिये।
ग्रीष्म ऋतु में शरीर में चन्दन का लेप करना, सूक्ष्म व लघुवस्त्र पहनना व माला धारण करना लाभकारी रहता है। शीतल घरों में निवास, विशेषकर ऐसे कक्ष जिनमें जलधारा प्रवाहित हो रही हो, में विश्राम करने से शरीर की थकान नष्ट हो जाती है ।रात्रि में सोने हेतु चन्द्रमा की शीतल किरणों से ठंडी हुई घर की छत पर सोने का आनन्द भी लिया जा सकता है। हालाँकि शहरों में औद्योगिक व यातायातीय वायु प्रदूषण की गंभीर समस्या है। प्रदूषित वायु में निलंबित श्वसनीय विविक्त कणों की मात्रा भारत की परिवेशी वायु गुणवत्ता को हानिकारक स्तर पर ले जा रही है। अतः खुले में वहीं सोयें जहाँ प्रदूषण न हो ।
ग्रीष्म ऋतु में हालाँकि व्यायाम और कठोर शारीरिक श्रम वर्जित हैं, परंतु तालाबों, नदियों अैर बावड़ियों के समीप के शीतल वातावरण में लघु व्यायाम का लाभ लिया जा सकता है। दोपहर की तेज धूप में निकलने से बचना चाहिए । प्रातः उपवन में घूमते हुये फूलों से सुगंधित वायु का सेवन स्वास्थ्य के लिए अति उत्तम होता है ।
इन सब बातों का ध्यान रखकर ग्रीष्म ऋतु में स्वयं को दोष संचय से बचाते हुये शरीर को स्वस्थ व सुखी रखा जा सकता है।
*सर्वे भवन्तु सुखिना ,सर्वे भवन्तु निरामया ।*🙏🙏
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Colours play vital role in fitness of human body. Deficiency of a particular colour could cause an ailment and can be cured when that colour element is supplemented either through diet or medicine. In ancient times, when people started playing Holi, the colours used by them were made from natural sources like turmeric, Neem, Palash (Tesu) etc. The playful pouring and throwing of colour powders made from these natural sources has a healing effect on the human body. It has the effect of strengthening the ions in the body and adds health and beauty to it.
So try to play holi with natural colours. I know it is practically not possible all of a sudden. In the meantime, you can minimize the side effects of synthetic colours by following some simple steps.
*Tips Before playing Holi*
1-It’s also a good idea to apply a thick layer of moisturizer, Petroleum jelly or coconut oil on your face and other exposed parts of the body.
2-Use a sunglass to protect your eyes.
3-Apply a lip balm on your lips
4- Drink plenty of water before start playing Holi.This will keep your skin hydrated.
5-Don't consume Bhang if you are a heart patien.
6-Consuming alcohol may spoil your Holi experience so avoid drinking it.
Hope with keeping these tips in your mind you will enjoy this great festival of not only colors but also of great love and affection.
HAPPY BUT HEALTHY HOLI🎈🎈
( #गृध्रसी )—-Modern and Ayurvedic Concept.
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is nerve pain arising from an injury or irritation to our sciatic nerve. In addition to pain, it can involve tingling or numbness in our back or butt that may also radiate down to leg. More severe symptoms are also possible.
We have two sciatic nerves, one on each side of our body. Each sciatic nerve runs through our hip and buttock on one side. They each go down the leg on their side of our body until they reach just below our knee. Once there, they split into other nerves that connect to parts farther down, including our lower leg, foot and toes, That’s why in sciatica we can experience mild to severe pain anywhere with nerves that connect to the sciatic nerve. The symptoms can affect lower back, hips, buttocks or legs. Some symptoms may extend as far down as feet and toes, depending on the specific nerve(s) affected.
of Sciatica—-
1- PAIN - Sciatica pain happens because of pressure on the affected nerve(s). Most people describe sciatica pain as burning or like an electric shock. This pain also often shoots or radiates down the leg on the affected side. Pain commonly happens with coughing, sneezing, bending or lifting your legs upward when lying on your back.
2-Tingling or “pins and needles” (Paresthesia )like sensation
3- Numbness- In this condition patient can’t feel sensations on the skin in the affected areas of his back or leg. It happens because signals from back or leg are having trouble reaching brain.
4- Muscle weakness - This is a more severe symptom. It means that muscle command signals are having trouble reaching their destinations in patient’s back or legs.
5- Urinary incontinence or f***l incontinence - This is a very severe symptom. It means signals that control patient’s bladder and bowels aren’t reaching their destinations.
Cause of Sciatica —-
Herniated disks.
Degenerative disk disease.
Spinal stenosis.
Foraminal stenosis.
Spondylolisthesis.
Osteoarthritis.
Injuries.
Pregnancy.
Tumors, cysts or other growths.
Conus medullas syndrome.
Cauda equina syndrome.
Tests—
1- Spine X-rays or computed tomography (CT) scans.
2- Magnetic resonance imaging (MRI) scans.
3- Nerve conduction velocity studies
4- Electromyography.
5- Myelogram
of Sciatica—
1- Self care
2- Prescription medication
Painkillers, muscle relaxers and other medications may help with sciatica symptoms. Other medications, like tricyclic antidepressants and anti-seizure medications, may also help in case of chronic or nerve-based pain.
3- Physiotherapy—
The goal of physical therapy is to find exercise movements that decrease sciatica by reducing pressure on the nerve. Options include stretching exercises or low-impact activities like walking, swimming or water aerobics.
4- Spinal injections -
Injections like corticosteroids may provide short-term relief (typically up to three months). These usually involve local anesthesia, so there’s less discomfort.
5- Alternative therapies ——.
These treatments are increasingly popular and offer options other than standard medical therapies or medications. They include seeing a chiropractor for spine adjustments, yoga, acupuncture and more. Massage therapy might also help muscle spasms that occur with sciatica. Biofeedback can also help manage pain and relieve stress.
6- Surgical Treatment for sciatica—
Surgery may be the best option when sciatica is more severe. Usually, healthcare providers don’t recommend surgery unless patient have symptoms that indicate nerve damage is happening or imminent. They may also recommend surgery if patient have severe pain that prevents him from working or going office.
Surgery options to relieve sciatica include:-
1- Diskectomy—
This is a surgery that removes fragments or small sections of a herniated disk that are pressing on a nerve.
2- Laminectomy —————-
Each vertebra has a rear section called the lamina (it’s on the side of the vertebra just underneath the skin of our back). A laminectomy involves removing a section of the lamina that’s pressing on spinal nerves.
ASPECT—
This disease (SCIATICA) has been taken as GRIDHRASI in Ayurveda.It is a most common disorder which affects the movements of leg particular in middle age . Gridhrasi is one among Vataja Nanatmaja Vyadhi. It is pain dominated lifestyle disorder in which the pain starts from Sphik Pradesh & radiates down to foot, here piercing type of pain which restricts the movement of the affected leg, make his walking pattern-like bird vulture and put him in disgraceful condition.
Gridhrasi is a Vata Vyadhi characterised by Stambha(stiffness), Toda(pricking pain), Ruk(pain) and Spandana(frequents tingling). These above mentioned Lakshana’s initially affect Sphik (buttock) as well as posterior aspect of Kati(waist) and then gradually radiates to posterior aspects of Uru(thigh), Janu (knee), Jangha(calf) and Pada(foot).
(etiology) of Gridhrasi #—
In case of Gridhrasi specific Nidana has not been mentioned ,So causative factors mentioned in producing Vata Vyadhi’s are considered as Nidana of Gridhrasi also. Since Gridhrasi is considered as Nanatmaja type of Vata Vyadhi,the provocative factors of Vata can also be taken as the causes of Gridhrasi.All the etiological factors of Vata Vyadhias well as Vata Prakopaare taken as Nidanaof Gridhrasi.
(A) Aharaja Nidana —
Ruksha, Sheeta, Laghu Anna, Alpa Anna, Katu, Tikta, Kashaya Rasa, Langhana, Abhojana.
(B) Viharaja Nidana —
Ativyayama, Ativyavaya, Atiprajagara,VishamaUpachara, Plavana, Atiadhava, Diwaswapna, Vega dharana etc.
(C)Manasika Nidana —
Chinta, Shoka, Krodha & Bhaya
(D)Anya Nidana —
Ati Asruk Sravana, Dhatukshaya, Varsha ritu, Marmabhighata, Marg avarana, Rogatikarshana etc.
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In classics the description regarding the Purvarupa of Gridhrasi is not available. Acharya’s has mentioned that Avyakta Lakshana are the Poorvaroopa of Vata Vyadhi.
Chakrapani datta commenting on the word Avyakta mentions that few mild symptoms are to be taken as the Poorvaroopa So, symptoms of Gridhrasi like Ruk, Toda, Stambha & Spandhana are seen in mild form.
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Ruk,Toda,Stambha and spandana are the cardinal symptoms.
To be more precise about the track of pain, the pain starts at Sphik Pradesh and then radiates to Kati, Pristha, Uru, Janu, Jangha and Padain order.
In Vata-Kaphaja Gridhrasi there is Tandra, Gaurava, Arochaka.‘Sakthikshepanigraha’ is also one of the predominant sign seen in Gridhrasi told by our Acharya.
ofGridhrasi——
Gridhrasi is one of the 80 Nanatmaja Vata Vyadhii. It is caused only because of vitiated Vata. Hence, Vataprakopaka Lakshanas like Shoola, Supti, Stambha etc. are found as the cardinal symptoms in the disease. Depending on the Karma & Sthana we can assume that Apana and Vyana Vayu Dusti can be assessed in Gridhrasi. Gati, Prasarana(extension) Akunchana(flexion), Utkshepana(lifting) etc. are the functions of Prakrut Vyana Vata.The hampered Sakthikshepa Karma indicates Vyana Vayu Dusti in Gridhrasi, the Sthana samshraya takesplace in Sphika,Kati,Pristha affecting the Kandara of leg which are the Ashraya Sthana of Apna Vayu.There are two main reasons by which Vata get vitiated. They are Dhatukshaya and Margavarodha.Because of the Samprapti Vishesha, the same Nidanas produces different Vata Vyadhis.
CHIKITSA:
It is the process of breaking down the pathogenesis of a disease. Diseases are caused due to vitiated Doshas involving Dhatu etc. The process, which establishes equilibrium in these body elements,is Chikitsa. The therapeutic approach of Ayurveda can be broadly classified into two types.
1- Samshodhana,
2-Samshamna.
The samshodhana is an eleminative process of vitiated Dosha and it includes
1- Antah parimarjana(Internal purification) – Like Vamana, Virechana, Nasya and Basti.
2- Bahirparimarjana(External purification) – Like Abhyanga, Swedana, Parisheka, Mardana etc.
3- Shastra pranidana(Surgical intervention)- like Shastrakarma,Ksharakarma, Agnikarma etc.
While treating any disease, the first and foremost principle to be followed is to avoid nidana.
For Gridhrasi, all the vataprakopaka karak
including external factors such as excessive walking, riding etc should be avoided. Gridhrasi, being a vatavyadhi, the general line of treatment of vatavyadhy can applied to it.
Charaka has advised to use Dravya having Madhur, Amla, Lavana, Snigdha, Ushna properties
and upakrama like Snehana, Swedana, and Anuvasana Basti, Nasya, Abhyanga, Utsadana, Parisheka etc.should be used.
Among these,he has praised asthapana and Anuvasana Basti as the best treatment for vata.
Vagbhatta has stated that snehan ,swedan and mridu Samshodhana along with Madhur, Amla and Lavana dravya ,Madya, Sneha siddha with Deepan and Pachan drugs, Mamsarasa and Anuvasana Basti pacify the vata.
In Ashtang Samgraha Hemant rutucharya is indicated in Vata vyadhi. Similarly, Sushruta has advised shiroBasti, Snaihik dhumapana, Sukhoshna Gandusha for the treatment of vata vyadhi.
All the above Upakramas have their own qualities. In addition, when they are done in a proper sequence, the therapy as a whole also has its benefits.
Vishesha Chikitsa*—
According to Acharya Charaka:
Siravedha between kandara and gulf, Anuvasana and Niruha Basti.
Acording to Acharya Bhavprakash and Vangasena: Samyak Vamana, Virecana and in Niramavastha Agnideepana followed by Bastiis done.
According to Bhela:
Basti, Snehpan ,Mardana and Shonitmokshan.
Chikitsa (palliative therapy)—-
There are so many drugs and Ayurvedic formulations are prescribed and used by Vaidyas.Here we will discuss three medicines which are very much effective in the treatment of Gridhrasi .
• Simhanad guggul:
The soothing and lubricating qualities of the drugs work to nourish and strengthen joint tissue and support their function. It also detoxifies and rejuvenates the joints due to its Ushna virya (hot potency). It helps to reduce pain and inflammation. This medicine contains Triphala, Shuddha Guggul, Shuddha Gandhak and Erand tail. It helps to pacify Vata, Pitta and Kapha dosha.
• Trayodashang guggul:
Its anti- spasm property treats muscle spasms and relieves pain in Sciatica. It is mainly guru and snigdha gunatmak, which helps reduce the aggravated dosha due to manifestation of Gridhrasi; this medication is indicated in Sciatica with inflammation .This medicine contains Abha, Ashwagandha (Withania somnifera), Hapusha (Junniperous communis Linn), Guduchi, Shatavari, Gokshur, Vriddhradaru, Rasna, Shatahva (Anethum Sowa kurz), Shati (Hedychium spicatum), Yamani (Trachispermum Amani), Nagara, Shuddha Guggul, and Ghrita. It acts as the best antiinflammatory and analgesic .
• Amapachak vati:
Give two tablets before meal for better digestion. It contains Chitrak chal, Pippalimula, Ajvain, Shuddha javakhar, Shunthi, Chavya, Pippali, saindhav lavana, Beeda lavana, Samudra lavana .
All this treatment should be taken under the guidance of a Ayurvedic Physician. #
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आधुनिक समय में आयुर्वेद की महत्ता एवं लाभ (IMPORTANCE AND BENEFITS OF AYURVEDA IN MODERN ERA ) :::::::::::::::
जीर्ण रोगों (Chronic diseases )और जीवनशैली से संबंधित रोगों ( Lifestyle disease ) में आधुनिक चिकित्सा पद्धति (Modern Medicine ) की limitations के चलते आयुर्वेद आज के समय में एक सबसे ज़्यादा प्रचारित एवं प्रचलित Traditional medical system है ।यही कारण है कि समस्त विश्व की Health care industry आजकल एक holistic ,affordable और inclusive Health system की तलाश में है और उनकी तलाश बहुत मायनों में भारत के आयुर्वेद पर आ कर समाप्त हो रही है ।यही वजह है कि आयुर्वेद आज के समय में सबसे प्रसिद्ध Traditional Medical System के रूप में स्थापित हो रहा है ।बीते दिनों में COVID की Crisis के दौरान आयुर्वेद ने निःसंदेह अपनी प्रमाणिकता एवं महत्ता एक अधिक उपयोगी एवं सस्ती चिकित्सा पद्धति के रूप में हासिल की है ।
आयुर्वेद का त्रिदोष सिद्धांत ( Three Humour Principle of Ayurveda) :::::::::;:
आयुर्वेद के अनुसार पूरा ब्रम्हाण्ड (Universe ) पाँच महाभूतों- वायु (Air), जल (Water),आकाश (Space), पृथ्वी (Earth), अग्नि (Fire) से निर्मित है । इन्हीं पाँच महाभूतों के विभिन्न संयोजनों से शरीर के तीन दोषों (Vital Forces) वात , पित्त और कफ का निर्माण होता है ।यह त्रिदोष ही शरीर को धारण करने वाले और प्रकृति(Body Type) का निर्माण करने वाले होते हैं ।आयुर्वेद में कहा गया है कि इन तीन दोषों की साम्यावस्था ही स्वास्थ्य है और इनकी साम्यावस्था का भंग होना ही विकारों (रोगों ) को जन्म देता है ।
#वात #दोष :::::::
वात दोष के द्वारा शरीर की Catabolism (चयापचय) संचालित होती है ।वात की चलायमान प्रवृत्ति के कारण यह Cellular transport ,Electrolyte Balance और Waste products के disposal जैसे महत्वपूर्ण कार्य करता है ।किसी भी प्रकार की रुक्षता (Dryness) इस दोष को बढ़ाने वाली होती है ।
#पित्त #दोष :::::::
पित्त दोष के द्वारा शरीर की Metabolism ( उपापचय )संचालित होती है ।यह दोष शरीर के तापमान ,शरीर में क्षुधा एवं तृषा और पाचन (Digestion) को नियंत्रित करता है ।किसी भी तरह की उष्णता (Heat ) इस दोष को बढ़ाने वाली होती है ।
#कफ #दोष ::::::::
कफ दोष के द्वारा शरीर की Anabolism ( उपचय) संचालित होती है ।यह संधियों (Joints) में स्निग्धता और शरीर में स्थिरता देने वाला होता है ।मधुर और वसा युक्त भोजन इस दोष को बढ़ाने वाले होते हैं ।
आयुर्वेद में स्वास्थ्य की परिभाषा (Definition of Perfect Health)::::::
आयुर्वेद में स्वास्थ्य की परिभाषा में कहा गया है कि-
“सम दोषः समाग्निश्च: सम धातु मल क्रिया…!
प्रसन्नात्मेन्द्रिये मनः स्वस्थ इत्यभिधीयते …!!”
अर्थात् इन तीन दोषों की साम्यावस्था , जठराग्नि की साम्यावस्था, सप्त धातुओं का साम्य और निर्बाध मल क्रिया के साथ जिनकी आत्मा,इन्द्रियाँ और मन प्रसन्न हो वही व्यक्ति स्वस्थ है ।
आधुनिक जीवन में आयुर्वेद का महत्व (IMPORTANCE OF AYURVEDA IN MODERN LIFE ) :::::::::::
आयुर्वेद का वास्तविक अर्थ है “जीवन का विज्ञान “ अगर इसको दूसरे शब्दों में कहें तो यह विज्ञान और जीवन जीने की कला (Science and Art of living) का अद्भुत संगम है | आधुनिक समय में भी जबकि Allopathy और अन्य Health System काफ़ी प्रचलित हैं बहुत से लोग अब अपनी अच्छी सेहतमंद ज़िंदगी के लिए हज़ारों वर्ष पुरानी आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति पर निर्भर हैं और सन्तुष्ट भी हैं ।
आजकल Healthy Lifestyle के लिए एक नया मंत्र- NATURAL / ORGANIC / HERBAL बहुत प्रयोग में है ,जिसका तात्पर्य है कि लोग अब खान पान ही नहीं बल्कि दवाइयों और चिकित्सा के सम्बन्ध में भी इनकी तरफ आकर्षित हो रहे हैं ,यही कारण है कि आयुर्वेद इस समय चिकित्सा जगत में मुख्य भूमिका (Center Stage) में है ।आधुनिक चिकित्सा पद्धतिओं से होने वाले दुष्प्रभावों (Side effects )के चलते भी दुनियाँ के लोगों में आयुर्वेद के प्रति रुझान बढ़ा है और यह एक विश्वव्यापी महत्वपूर्ण चिकित्सा पद्धति बनता जा रहा है ।
आयुर्वेद में आधुनिक जीवन शैली (Modern Lifestyle) से होने वाले दुष्प्रभावों से बचने के सिद्धांत और उपाय विस्तार से वर्णित हैं , जिनकी वजह से Modern Lifestyle के चलते होने वाली अधिकांश बीमारियों जैसे PepticUlcer ,Colitis ,Hypertension ,Diabetes,Haemorrhoids ,Cancer आदि में इस पद्धति से चमत्कारिक लाभ मिल रहे हैं ।
आजकल बहुत ज़ोर शोर से प्रचलित कहावत (Phrase) -
“PREVENTION IS BETTER THAN CURE “
हमारे आयुर्वेद के सिद्धांतों पर ही आधारित है ।वर्षों पूर्व आयुर्वेद के आचार्यों ने आयुर्वेद का प्रयोजन बताते हुए लिखा था कि-
“ स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणं ,
आतुरस्य विकार प्रशमनं च् ..!!
अर्थात् स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की विभिन्न उपायों द्वारा रक्षा करना (PREVENTION ) और रोगी व्यक्ति के रोग को दूर करने के लिए चिकित्सा करना (CURE )आयुर्वेद के ये दो ही प्रयोजन हैं ।
उपरोक्त श्लोक से स्पष्ट है कि आयुर्वेद में पहले Prevention द्वारा ही रोगों से बचने को कहा गया है और रोग हो जाने की स्थिति में ही चिकित्सा ( CURE) करने को कहा गया है |
आयुर्वेद के स्वास्थ्य संबंधी लाभ (Health Benefits of Ayurveda ) :::::::::::::::
आयुर्वेद में चिकित्सा के आठों अंग (अष्टांग आयुर्वेद) का वर्णन है और उसमें सभी व्याधियों की शास्त्र सम्मत चिकित्सा विधियों तथा जीवन को रोग मुक्त रखने अनेकानेक विधियों/ औषधियों का विवरण है फिर भी Physical और Mental Health के लिए आयुर्वेद में वर्णित कुछ Basic Benefits निम्न प्रकार हैं—
* Ayurveda ensures better health at cellular level .
* Lowers Blood pressure and Cholesterol.
* Improves Digestion and reduces inflammation.
* Helps in weight loss management.
* Completely Cures the
today’s Lifestyle disorders.
* Reduces Stress and Anxiety.
* Cleanses the Body
* And many more
आयुर्वेद की राह (Road ahead of Ayurveda) ::::::::::
वर्षों पुरानी चिकित्सा पद्धति (traditional medicines) होने के बावजूद यह पद्धति Active and Progressive Science के तौर पर आगे बढ़ रही है ।देश के आयुर्वेदिक महाविद्यालयों एवं चिकित्सा संस्थानों में नित नई Research हो रही हैं और आयुर्वेदिक चिकित्सा के चमत्कारिक परिणाम सामने आ रहे हैं ,जिसके लाभ स्वरूप देश ही नहीं विदेशों से भी रोगी आयुर्वेद के प्रति आकर्षित हो रहे हैं,जिनका साक्षात उदाहरण बड़ी मात्रा में बाहर से आकर आयुर्वेदिक चिकित्सा कराने वाले रोगियों की लगातार बढ़ती संख्या है और यही कारण है कि आयुर्वेद की लोकप्रियता दिनों दिन बढ़ती जा रही है ।
एक आयुर्वेदिक विशेषज्ञ चिकित्सक होने के नाते मेरा पाठकों से अनुरोध है कि कृपया आयुर्वेद में वर्णित जीवन शैली को अपनायें एवं आयुर्वेद के सिद्धांतों पर आधारित स्वदेशी चिकित्सा पद्धति अपना कर पूरे परिवार सहित स्वस्थ और निरोगी रहें ।
धन्यवाद 🙏
CYSTIC FIBROSIS (कफज अतिसार ) A life threatening disease :::::
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Cystic fibrosis की तुलना कफज अतिसार से क्यों की गई या इसे आयुर्वेद में कफज अतिसार क्यों माना गया है, इसके लिए सर्वप्रथम यह जानना आवश्यक है है कि वस्तुतः Cystic Fibrosis है क्या ??
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार यह एक Inherited disorder (वंशानुगत बीमारी) है जो कि मुख्यतः Respiratory System और Digestive System को क्षति पहुँचाती है ।
इस रोग में शरीर की वो Cells जो Mucus (श्लेष्मा/कफ) , Sweat ( स्वेद) और Digestive juices को उत्पन्न करती हैं, प्रभावित होती हैं ।सामान्यतः यह Cells जो भी fluid Produce करती हैं वो पतला (Thin) और चिकना (Slippery) होता है परन्तु इस रोग में यही Cells एक defective gene के कारण गाढ़ा (Thick ) एवं चिपकने और न बहने वाला (Sticky ) स्राव (Secretion ) पैदा करने लगती हैं ।अधिकांश Secretions का कार्य शरीर में Lubrication के साथ बह कर अपना सामान्य कार्य करना होता है ,पर यही Secretions Thick और Sticky हो जाने के कारण बहते नहीं हैं बल्कि अपनी Tubes ,Ducts या उनके जो भी passageway होते हैं उनको Plug की तरह Block (अवरुद्ध) कर देते हैं ।
इस रोग में यदि लक्षणों की बात करें तो मुख्यतः दो System इसमें प्रभावित होते हैं-
1- Respiratory System
2- Digestive System
1- श्वसन संस्थान संबंधी लक्षण—-
Cystic Fibrosis के कारण जो Thick और Sticky Mucus (श्लेष्मा/कफ) बनता है वो Lungs 🫁 को जाने वाली Airways tubes (Bronchioles )को अवरुद्ध (Clog ) कर देता है और उसके चलते ही निम्न लक्षण उत्पन्न होते हैं —
* लगातार खाँसी जिसमें गाढ़ा कफ (Sputum ) निकलता है ।
*साँस के साथ सीटी की आवाज़ (Wheezing )
*व्यायाम या ज़्यादा चलने पर साँस फूलना ।
*जल्दी जल्दी श्वसन संस्थान के रोग यथा Bronchitis आदि
*नाक में गाढ़ा Mucus होने से नाक अवरुद्ध रहना ( Stuffy Nose) ।
*बार बार Sinusitis रोग का होना ।
2- पाचन संस्थान संबंधी लक्षण —-
जब Thick mucus Digestive System की विभिन्न tubes या Ducts ,विशेषतः वो Tubes/Ducts जो Pancreas से Digestive Enzymes को Small Intestine तक पहुँचाती हैं, को अवरुद्ध कर देता है तो छोटी आँत खाये हुए पदार्थों के पोषक तत्वों (Nutrients) को Absorb नहीं कर पाती,परिणाम स्वरूप अधिकांशतः पाचन संस्थान संबंधी निम्न लक्षण मिलते हैं —
*बदबूदार और चिकनाहट युक्त मल ।
*शारीरिक वृद्धि का रुकना और वज़न का कम होना ।
*नवजात शिशुओं में कभी-कभी आंत्रावरोध (Intestinal Blockade) भी हो सकता है ।
*जीर्ण बिबन्ध (Chronic Constipation) होना जिसके चलते बाद में Piles,Fissures और Re**al Prolapse (गुद भ्रंश) जैसी बीमारियाँ भी हो सकती हैं ।
इस बीमारी में एक और दिलचस्प बात देखने को मिलती है कि ऐसे रोगियों के स्वेद (पसीने)में नमक (लवण) की मात्रा सामान्य से काफ़ी अधिक होती है , जो कि आयुर्वेद में कफ दोष की वृद्धि करने वाला माना जाता है,यह तथ्य सिद्ध करता है कि यह एक कफ दोष की विकृति के कारण होने वाली विकार है ।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि यह आयुर्वेद के अनुसार एक कफज व्याधि है जिसमें श्लेष्मा (Mucus) अपने स्वाभाविक गुणों यथा चिकनाहट,पतलापन,बहना आदि को त्याग कर अधिक गाढ़ा,चिकनाहट रहित और चिपकने वाला हो जाता है ।अब प्रश्न रह जाता है कि इसे कफज अतिसार क्यों माना गया है ??
अतिसार का तात्पर्य होता है अति सरण या अधिक स्राव । जैसा कि उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि इस व्याधि में कफ का अति स्राव तो होता है परन्तु कफ दोष के गुणों में दोषों की विकृति के चलते परिवर्तन हो जाने के कारण वो अति स्राव बाहर नहीं निकल पाते या अपने गंतव्य स्थान तक नहीं पहुँच पाते अपितु वहीं जमा होकर स्रोतों (Tubes/Ducts) आदि को Block करके यह रोग (Cystic Fibrosis )उत्पन्न करते हैं ।इसीलिए आयुर्वेदज्ञों ने इसे एक तरह का “कफज अतिसार “ माना है ।
आयुर्वेदिक चिकित्सा :::::
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इस कृच्छ साध्य रोग में आयुर्वेदिक चिकित्सा के दोनों साधनों १-संशोधन चिकित्सा २-संशमन चिकित्सा का प्रयोग करना चाहिए ।
१- संशोधन चिकित्सा—
* अनुवासन बस्ती— पिपल्यादि तैल से
* विरेचन कर्म
* वमन कर्म
* धूपन कर्म
२- संशमन चिकित्सा—-
A- (श्वास कास आदि Respiratory symptoms के लिए )—-
* तालिसादि चूर्ण 3 gm
श्वास कुठार रस 125 mg
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सुबह शाम 1 चम्मच शहद के साथ
* वासावलेह 1 चम्मच सुबह शाम दूध के साथ
* कनकासव 25 ml सुबह शाम खाने के बाद
* व्योषादि बटी 2 गोली दिन में तीन बार चूसने के लिए
* छाती पर कर्पूरादि तैल की मालिश
B- (बिबन्ध एवं अम्लपित्त आदि Digestive symptoms के लिए )—
* चिरबिल्वादि कषाय और गंधर्व हरीतकी कषाय दोनों को 20-20 ml की मात्रा में एक कप पानी में डालकर सुबह शाम खाने के बाद
* अविपत्तिकर चूर्ण 3 gm सुबह शाम खाने से पूर्व
Note- कृपया कोई भी औषधि किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की देखरेख में ही लें ।
BLACK HAIRY TONGUE :::::
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इस बिमारी में जीभ के ऊपर उपस्थित पैपिला सामान्य तौर पर पुरानी मरी हुई कोशिकाओं को नष्ट नहीं करते और यह पैपिला आकार में बढ़ कर जीभ को खुरदरी और कांटेदार बना देते हैं ।इन जगहों पर मरी हुई कोशिकाओं के एकत्र होने के कारण जीवाणु (bacteria/fungus) संक्रमण हो जाता है और जीभ का रंग काला हो जाता है ।जीभ मोटी परतदार और खुरदरी दिखाई देने लगती है ।
यद्यपि इस रोग के exact कारण पता नहीं चल सके हैं परंतु निम्न कारण इसमें सहयोगी होते हैं -
१- अपर्याप्त मुख शोधन
२- मुख शुष्कता (लार का पर्याप्त न बनना)
३- तम्बाकू का नियमित सेवन
४- ऐसे mouthwashes का नियमित उपयोग जिनमें Peroxide जैसे विषैले chemicals मौजूद होते हैं ।
५- अधिक मात्रा में चाय,काफ़ी या मद्यपान
६- खाने में केवल द्रव्य (liquid )का सेवन जिसके कारण जीभ के ऊपर की सतह से मरी हुई कोशिकाएँ दूर नहीं हो पाती हैं ।
सामान्यतः यह painless problem होती है और बहुत हानिकारक नहीं होती,सिवाय मुख से दुर्गंध आने या स्वाद में परिवर्तन के ।
परंतु अगर रोगी कई साल से पीड़ित है तो रोग के कुछ और कारण भी हो सकते हैं अतः जीभ की Biopsy कराना इसमें नितांत आवश्यक है ।यदि Biopsy normal आती है तो मरीज़ को कोई ख़तरा नहीं है और उसे oral hygiene ठीक रखने के उपायों पर विमर्श देना चाहिए ।आयुर्वेद में मुख शुद्धि के लिए बहुत सी औषधियाँ हैं जिनका प्रयोग लाभकारी हो सकता है ।
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