Alfaaz mere
Poetry
दौर है …..,
दौर ये गुज़र जाएगा।
बाद इसके ,ये इश्क ,
कुछ और निखर जाएगा।
तुम थाम के रखना ,
कि अभी टूटा है।
दिल है…..
ज़रा सी ठेस से,
बिखर जाएगा ।
जी तो चाहे है कि,
तोड़ के चल दूँ रिश्ता।
डर ये है कि धागा ,
उलझा सा …..
कहीं रह जाएगा।
23/5/23©️नीति
मातृशक्ति को प्रणाम 🙏
बहुत महँगी पड़ी
उधार की ख़ुशियाँ हम को…
कि ज़िन्दगी भर का सुकून
गिरवी रख दिया ॥
8/5/2023©️नीति
चाहत में उनकी हम ,
हद से गुज़र गए।
वो फासलों की ,
हर ज़द से गुजर गए।
इस मोहब्बत से ,
दग़ा दी उसने।
कि टूटे भी नहीं ,
और हम बिखर गए।
6/5/23©️नीति
सही है ना ?😊
जाने क्यूँ लोग मोहब्बत किया करते हैं…..
लो आज फिर ..
रख आए हैं,
ग़म बाँध कर
तकिए तले…।
और चल पड़े
फिर थाम कर ,
मुस्कान एक….
लब पर लिए ॥
11/4/23 ©️नीति
किसी ख़ास दिन पर ,
किसी ख़ास की याद आना,
कितना ख़ास होता है ना….।
बिछड़े जिसे जमाना है हुआ,
उसके मिलने की आस रखना,
कितना ख़ास होता है ना…।
यूँ तो बरसों में बदल जाते हैं लम्हे,
लम्हे-लम्हे बरस का हो जाना,
कितना ख़ास होता है ना…।
दिल ही जो था कभी,उसको,
दुआएँ ,अब दिल से पहुँचाना,
बहुत ख़ास होता है ना….॥
नीति ©️17/1/2023
सभी मित्रों को प्यार भरा नमस्कार 😊🙏
सुनो …
आज फिर मिल आई हूँ ,
ठहरे हुए वक्त से।
ज़रा फ़ुरसत जो मिल गई थी।
आश्चर्यचकित हो जाती हूँ ,
हर मुलाक़ात पर,
कि कितनी आँधियाँ गुजर गई,
कितने मौसम बदल गए,
कितना वक्त गुजर गया,
अनछुए…॥
ठहरे लम्हों पर ,
कोई धूल नहीं मिलती।
कुछ बासी सा भी नहीं लगता।
वैसे ही महके हुए,
वैसे ही ताजगी भरे,
वैसे ही तृप्त ।
सच ही है कि..
बदलता नहीं है वक्त..
जो ठहर जाता है॥
बदल जाते हैं हम,
वक्त बीतने के साथ।।
क्यूँ ना …
मिल आया करें !
जब तब,
ठहरे हुए पलों से,
कि कसते रहे एहसास के बँध,
चटकीले रहें ताउम्र ,
फीके ना पड़ें रंग॥
16/10/22©️नीति
पदचिह्नों का श्रंगार कर ,
पगडंडियाँ इठला रही।
काल की पाती पर ,
रंग ,कुछ बिखरा रही।
ऐसा नहीं कि,ज़ख़्म कुछ ,
पीठ पर ,चुभते नहीं ।
मंज़िल पर ,पहुँचा पथिक को,
दर्द को सहला रही।
साधा है ,रेशम सा होकर,
जब-जब कदम ,थक कर थमे ।
मंज़िलों की ,राह को,
निःस्वार्थ हैं ,दिखला रही।
गुमनाम हैं ख़ामोश हैं,
हैं संकरी ,पर साथ हैं।
गंतव्य को ,आरंभ का,
छोर ,वो पकड़ा रही।
ज़िंदगी के इस सफ़र में,
रिश्तों की ये डोरियाँ ।
राह दिखाती , थामती
ये हैं वही पगडंडियाँ ॥
7/10/22©️नीति
लो ,जा रहे हैं …
ना लौट के आएँगे।
कसक ….
कि ,
क्यूँ एतबार,
किया तुझ पर..
लड़खड़ाएँगे ।
बिछड़ लें …
जरा, तुझ से,
फिर इस दिल को,
समझाएँगे ।
भरम जो…
पाल बैठे थे,
मोहब्बत का ,जज़्बातों का,
सोचेंगे तुझे,
पछताएँगे ।
कहा था …
तुझ को,
कि आख़िरी साँस तक,
चाहेंगे तुझे…
तेरी बेवफ़ाई को ,
बिछड़ के भी ,
हम निभाएँगे॥
6/10/22©️नीति
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Ghaziabad, 201002
पहल जो की नवीन हो साथ ही सार्थक भी !
Janakpuri, Sahibabad
Ghaziabad, 201005
ये वो अनसुनी आवाज़ है जो दिल में ही रह गयी, खामोशी भी चुपचाप कुछ चुपचाप कह गयी