Osho Golden Wings International

This page is meant for spreading our Enlightened Masters word of love and witnessing. .. through his

10/12/2023
10/12/2023

Good new for our sannyasins and beloved of bhagwan...

29/11/2023

All r invited to Japani park rohini New Delhi for dhyan yog shibir on 3rd Dec 2023 at 10 a.m onwards...

23/11/2023

To be in the present moment just keep watching carefully the seconds niddle of the time watch....

12/11/2023

Happy deepwali to everyone.

08/11/2023

Upcoming osho eco temple at dheradun..

28/10/2023

The entire eternity is guru for The Enlightened ones..

22/10/2023

ओशो -- नाम ही काफी है।

किसी भी व्यक्ति को जीवन के अपने पड़ावों को समझने के लिए प्रेरणा की जरूरत होती है। शक्ति का संचार और दूसरों से अलग करने की जिद मनुष्य को सही दिशा दे सकती है, इसलिए ओशो ने जीवन को अलग रूप में ही परिभाषित किया है। उनका कहना है कि जिंदगी के हर लमहे को आजादी से जिएं, क्योंकि जिंदगी आज है कल हो ना हो बस यही सोचकर जिंदगी का हर पल पूरी आजादी के साथ जिएं। इस ब्लाॅग में हम ओशों के कुछ महत्वपूर्ण विचारों के बारे में जानेंगे जो जिंदगी को सही ढंग से जीने के उपदेश देते हैं।

ओशो कौन थे? ----
ओशो के विचारों से पूरी दुनिया परिचित है, लेकिन हमें ओशो के विचारों के साथ ही ओशो के बारे में जानना चाहिए। ओशो का जन्म 11 दिसंबर, 1931 को मध्य प्रदेश के कुचवाड़ा में हुथा। उस समय ओशो का नाम नाम चंद्रमोहन जैन था। ओशो को बचपन से ही दर्शन में रूचि थी। ओशो के पिता का नाम बाबूलाल जैन और माता का नाम सरस्वती जैन था।

ओशो को विद्यार्थी जीवन से ही कुशल वक्ता और तर्कवादी माना जाता था। *कुछ समय के लिए वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) में भी शामिल हुए थे।* ओशो के अनुसार शब्द ओश्निक अनुभव का वर्णन करता है। लेकिन अनुभवकर्ता यानी अनुभ करने वाले के बारे में क्या कहेंगे? इसके लिए हम खुद के लिए ओशो शब्द का प्रयोग करते हैं। ओशो का मतलब है कि सागर से एक हो जाने का अनुभव करने वाला।

1956 में ओशो ने सागर यूनिवर्सिटी से दर्शनशास्त्र में MA किया था। 1957 में वह दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर के तौर पर रायपुर यूनिवर्सिटी में नियुक्त किए गए थे, लेकिन बाद में उनका ट्रांसफर जबलपुर यूनिवर्सिटी में करा दिया। 1957 से 1966 तक जबलपुर यूनिवर्सिटी में वह फिलाॅस्फी के प्रोफेसर रहे। इस दौरान उन्होंने पूरे देश का दौरा किया।
क्रमशः --
द्वारा - बोधिसत्वा 💕

22/10/2023

BELOVED BHAGWAN,

YOU ARE AT ONCE SUCH AN INCREDIBLE STRENGTH AND SWEETNESS SEEPING THROUGH ME. WHY DO I FEEL THERE IS A NEED TO PROTECT YOU?

It is one of the fundamental laws of life that everything that is higher is very vulnerable. The roots of a tree are very strong, but not the flowers. The flowers are very vulnerable -- just a strong breeze and the flower may be destroyed.

The same is true about human consciousness……

As you reach higher into consciousness, the ultimate blossoming which we call enlightenment is the most vulnerable thing in the whole of existence…...

You feel my love, you feel my strength -- it is there. I can stand against the whole world... in fact that's what I have been doing my whole life. But those who have hearts will certainly feel my vulnerability. Just a bullet is enough. It won't see whether it is killing an animal, an idiot, or a buddha.

So the idea to protect me arises in your heart from the second possibility. All my sannyasins feel exactly the same. They feel both -- they feel my strength and they feel my vulnerability. And all my sannyasins around the earth are in the same dilemma you are: "When there is so much strength in the man, what is the need for us to be worried about protecting him?"

The strength is coming from one source, and the danger of destroying such a man is coming from a different source. There is no contradiction in it.

And it is natural for the sannyasins to feel immensely protective towards me, for the simple reason that they know the light of a candle is strong enough to fill the whole room with light, but it is so vulnerable: just a small breeze from the window may put it out.

There is no contradiction in it. Both are coming from different sources.

- Osho (Light on the Path # 5)

12/10/2023

❤️मित्रता – आपके मौन की खिलावट❤️

सबसे महत्वपूर्ण ध्यान रखें, बात यह है कि हर एक को दोस्तों की आवश्यकता होती है क्योंकि वह अकेले रहने में असमर्थ होता है। और जब तक किसी को मित्रों की आवश्यकता होती है, तब तक वह अच्छा मित्र नहीं हो सकता- क्योंकि आवश्यकता दूसरे को वस्तु बना देती है। जो अकेला होने में सक्षम है वही दोस्त बनने में सक्षम है। लेकिन यह उसकी जरूरत नहीं है, यह उसका आनंद है; यह उसकी भूख नहीं है, न उसकी प्यास है, बल्कि उसके प्रेम की प्रचुरता है जिसे वह बाँटना चाहता है।

"जब ऐसी दोस्ती होती है, तो इसे दोस्ती नहीं कहा जाना चाहिए, क्योंकि इसने एक बिल्कुल नए आयाम पर कब्जा कर लिया है: मैं इसे 'मित्रता' कहता हूं। यह रिश्ते से परे चला गया है, क्योंकि सभी रिश्ते किसी न किसी तरह से बंधन हैं - वे आपको गुलाम बनाते हैं और वे दूसरों को गुलाम बनाते हैं। बिना किसी शर्त के, बिना किसी अपेक्षा के, बिना किसी इच्छा के कि कुछ लौटाया जाए, साझा करने का आनंद ही मित्रता है - कृतज्ञता भी नहीं।

"मित्रता सबसे शुद्ध प्रेम है।

"यह कोई आवश्यकता नहीं है; यह कोई आवश्यकता नहीं है: यह अत्यधिक प्रचुरता है, उमड़ता हुआ परमानंद…।
मैत्री एक रिश्ता बन जाती है, तय हो जाती है; मित्रता अधिक प्रवाहित होती है, अधिक तरल होती है। मैत्री एक रिश्ता है, मित्रता आपके होने की एक अवस्था है। आप बस मिलनसार हैं; किसके लिए, यह बात नहीं है। यदि आप एक पेड़ के किनारे खड़े हैं तो आप पेड़ के अनुकूल हैं, या यदि आप चट्टान पर बैठे हैं, तो आप चट्टान के अनुकूल हैं। इंसानों के लिए, जानवरों के लिए, पक्षियों के लिए, आप बस मित्रवत हैं। यह कुछ स्थिर नहीं है; यह एक प्रवाह है, जो पल-पल बदलता रहता है।
मित्रता साधक के विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण गुणों में से एक है; यह वास्तव में मीठा है। यह आपके पूरे जीवन को मधुर संगीत से भरपूर, मधुर सामंजस्य से परिपूर्ण बनाता है। बुद्ध की दृष्टि में यह तथाकथित प्रेम से ऊंचा है।
मित्रता का स्वाद लेने के लिए इसे आप में एक महान परिवर्तन की आवश्यकता होगी। अभी तो आप जैसे हैं, आपके लिए मित्रता दूर का तारा है। आप दूर के तारे को देख सकते हैं, आपके पास एक निश्चित बौद्धिक समझ हो सकती है, लेकिन वह केवल एक बौद्धिक समझ रह जाएगी, अस्तित्वगत स्वाद नहीं।
जब तक आपके पास मित्रता का अस्तित्वगत स्वाद नहीं है, तब तक मैत्री और मित्रता के बीच अंतर करना बहुत मुश्किल, लगभग असंभव होगा।

"मित्रता सबसे शुद्ध चीज है जिसे आप प्रेम के संदर्भ में सोच सकते हैं। यह इतना शुद्ध है कि आप इसे फूल भी नहीं कह सकते, आप इसे केवल एक सुगंध कह सकते हैं जिसे आप महसूस कर सकते हैं और अनुभव कर सकते हैं, लेकिन आप इसे पकड़ नहीं सकते। वह वहीं है, आपके नथुने इससे भरे हुए हैं, आपका अस्तित्व उससे घिरा हुआ है। आप कंपन महसूस करते हैं, लेकिन इसे पकड़ने का कोई तरीका नहीं है; अनुभव इतना बड़ा और इतना विशाल है और हमारे हाथ बहुत छोटे हैं वास्तविक बनो, प्रामाणिक बनो और आप प्रेम के शुद्धतम गुणवत्ता को जानोगे - बस आपके चारों ओर प्रेम की सुगंध। और शुद्धतम प्रेम की वह गुणवत्ता है मित्रता।"
ध्यान करो। आप क्या कर रहे हैं, आप क्या सोच रहे हैं, आप क्या महसूस कर रहे हैं, इसके बारे में अधिक जागरूक बनें। अधिक से अधिक जागरूक बनें, गहन रूप से जागरूक हों, और एक चमत्कार घटित होने लगता है। जब आप अधिक जागरूक होते हैं, तो सभी प्रकार के विश्वास गायब होने लगते हैं, अंधविश्वास विलीन हो जाते हैं, तितर-बितर हो जाते हैं, अंधेरा वाष्पित हो जाता है और आपका आंतरिक प्रकाश रौशनी से भर जाता है। उस रौशनी से निकली मोहब्बत, दोस्ती है...जिस क्षण आप ध्यानपूर्ण हो जाते हैं आप दूसरे को किसी चीज़ में कम करना बंद कर देते हैं।"

🌹❣️ओशो वाणी ❣️🌹

30/09/2023

Osho song

27/09/2023

Osho says live by your own decision......

13/09/2023

हमने सेक्स को सिवाय गाली के आज तक दूसरा कोई सम्मान नहीं दिया। हम तो बात करने में भयभीत होते हैं। हमने तो सेक्स को इस भांति छिपा कर रख दिया है जैसे वह है ही नहीं, जैसे उसका जीवन में कोई स्थान नहीं है। जब कि सच्चाई यह है कि उससे ज्यादा महत्वपूर्ण मनुष्य के जीवन में और कुछ भी नहीं है। लेकिन उसको छिपाया है, उसको दबाया है। दबाने और छिपाने से मनुष्य सेक्स से मुक्त नहीं हो गया, बल्कि मनुष्य और भी बुरी तरह से सेक्स से ग्रसित हो गया। दमन उलटे परिणाम लाया है।

#सेक्स_को_समझो:– युवकों से मैं कहना चाहता हूँ कि तुम्हारे माँ-बाप तुम्हारे पुरखे, तुम्हारी हजारों साल की पीढ़ियाँ सेक्स से भयभीत रही हैं। तुम भयभीत मत रहना। तुम समझने की कोशिश करना उसे। तुम पहचानने की कोशिश करना। तुम बात करना। तुम सेक्स के संबंध में आधुनिक जो नई खोजें हुई हैं उसको पढ़ना, चर्चा करना और समझने की कोशिश करना कि क्या है सेक्स?

#सेक्स_का_विरोध_ना_करें:– सेक्स थकान लाता है। इसीलिए मैं तुमसे कहता हूँ कि इसकी अवहेलना मत करो, जब तक तुम इसके पागलपन को नहीं जान लेते, तुम इससे छुटकारा नहीं पा सकते। जब तक तुम इसकी व्यर्थता को नहीं पहचान लेते तब तक बदलाव असंभव है।

मैं बिलकुल भी सेक्स विरोधी नहीं हूँ। क्योंकि जो लोग सेक्स का विरोध करेंगे वे काम वासना में फँसे रहेंगे। मैं सेक्स के पक्ष में हूँ क्योंकि यदि तुम सेक्स में गहरे चले गए तो तुम शीघ्र ही इससे मुक्त हो सकते हो। जितनी सजगता से तुम सेक्स में उतरोगे उतनी ही शीघ्रता से तुम इससे मुक्ति भी पा जाओगे। और वह दिन भाग्यशाली होगा जिस दिन तुम सेक्स से पूरी तरह मुक्त हो जाओगे।

ेक्स:– धन में शक्ति है, इसलिए धन का प्रयोग कई तरह से किया जा सकता है। धन से सेक्स खरीदा जा सकता है और सदियों से यह होता आ रहा है। राजाओं के पास हजारों पत्नियाँ हुआ करती थीं। बीसवीं सदी में ही केवल तीस-चालीस साल पहले हैदराबाद के निजाम की पाँच सौ पत्नियाँ थीं।

मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूँ जिसके पास तीन सौ पैंसठ कारें थीं और एक कार तो सोने की थी। धन में शक्ति है क्योंकि धन से कुछ भी खरीदा जा सकता है। धन और सेक्स में अवश्य संबंध है।

एक बात और समझने जैसी है, जो सेक्स का दमन करता है वह अपनी ऊर्जा धन कमाने में खर्च करने लग जाता है क्योंकि धन सेक्स की जगह ले लेता है। धन ही उसका प्रेम बन जाता है, धन के लोभी को गौर से देखना- सौ रुपए के नोट को ऐसे छूता है जैसे उसकी प्रेमिका हो और जब सोने की तरफ देखता है तो उसकी आँखें कितनी रोमांटिक हो जाती हैं... बड़े-बड़े कवि भी उसके सामने फीके पड़ जाते हैं। धन ही उसकी प्रेमिका होती है। वह धन की पूजा करता है, धन यानी देवी। भारत में धन की पूजा होती है, दीवाली के दिन थाली में रुपए रखकर पूजते हैं। बुद्धिमान लोग भी यह मूर्खता करते देखे गए हैं।

#दुख_और_सेक्स:– जहाँ से हमारे सुख दु:खों में रूपांतरित होते हैं, वह सीमा रेखा है जहाँ नीचे दु:ख है, ऊपर सुख है इसलिए दु:खी आदमी सेक्सुअली हो जाता है। बहुत सुखी आदमी नॉन-सेक्सुअल हो जाता है क्योंकि उसके लिए एक ही सुख है। जैसे दरिद्र समाज है, दीन समाज है, दु:खी समाज है, तो वह एकदम बच्चे पैदा करेगा। गरीब आदमी जितने बच्चे पैदा करता है, अमीर आदमी नहीं करता। अमीर आदमी को अकसर बच्चे गोद लेने पड़ते हैं!

उसका कारण है। गरीब आदमी एकदम बच्चे पैदा करता है। उसके पास एक ही सुख है, बाकी सब दु:ख ही ‍दु:ख हैं। इस दु:ख से बचने के लिए एक ही मौका है उसके पास कि वह सेक्स में चला जाए। वह ही उसके लिए एकमात्र सुख का अनुभव है, जो उसे हो सकता है। वह वही है।

#सेक्स_से_बचने_का_सूत्र:– जब भी तुम्हारे मन में कामवासना उठे तो उसमें उतरो। धीरे- धीरे तुम्हारी राह साफ हो जाएगी। जब भी तुम्हें लगे कि कामवासना तुम्हें पकड़ रही है, तब डरो मत शांत होकर बैठ जाओ। जोर से श्वास को बाहर फेंको- उच्छवास। भीतर मत लो श्वास को क्योंकि जैसे ही तुम भीतर गहरी श्वास को लोगे, भीतर जाती श्वास काम-ऊर्जा को नीचे की तरफ धकाती है।

जब तुम्हें कामवासना पकड़े, तब बाहर फेंको श्वास को। नाभि को भीतर खींचो, पेट को भीतर लो और श्वास को फेंको...जितनी फेंक सको फेंको। धीरे-धीरे अभ्यास होने पर तुम संपूर्ण रूप से श्वास को बाहर फेंकने में सफल हो जाओगे।

#सेक्स_और_प्रेम:– वास्तविक प्रेमी अंत तक प्रेम करते हैं। अंतिम दिन वे इतनी गहराई से प्रेम करते हैं जितना उन्होंने प्रथम दिन किया होता है; उनका प्रेम कोई उत्तेजना नहीं होता। उत्तेजना तो वासना होती है। तुम सदैव ज्वरग्रस्त नहीं रह सकते। तुम्हें स्थिर और सामान्य होना होता है। वास्तविक प्रेम किसी बुखार की तरह नहीं होता यह तो श्वास जैसा है जो निरंतर चलता रहता है।

प्रेम ही हो जाओ। जब आलिंगन में हो तो आलिंगन हो जाओ, चुंबन हो जाओ। अपने को इस पूरी तरह भूल जाओ कि तुम कह सको कि मैं अब नहीं हूँ, केवल प्रेम है। तब हृदय नहीं धड़कता है, प्रेम ही धड़कता है। तब खून नहीं दौड़ता है, प्रेम ही दौड़ता है। तब आँखें नहीं देखती हैं, प्रेम ही देखता है। तब हाथ छूने को नहीं बढ़ते, प्रेम ही छूने को बढ़ता है। प्रेम बन जाओ और शाश्वत जीवन में प्रवेश करो।

#ओशो
पथ के प्रदीप, धम्मपद: दि वे ऑफ दि बुद्धा, ओशो उपनिषद, तंत्र सूत्र, रिटर्निंग टु दि सोर्स, एब्सोल्यूट ताओ से संकलित अंश।

05/09/2023

Man is an organic unity -Osho

28/08/2023

तुम जो करते हो , वहीं तुमपे वापिस लौट आता है।हजार गुना होके लौट आता है।
अच्छा तो अच्छा और
बुरा तो बुरा।
क्या तुम्हे पड़ी, अपनी स्वारों।
थोड़े दिन, थोड़ा समय
अपने को निखारो।
कही ऐसे ही समय ना बीत जाए।किसी आदमी का छोटा सा कृत्य देखा और पूरे आदमी का निर्णय ले लिया।
यही हम कर रहे व्यक्तियों के संबंध में। जन्मों जन्मों की लंबी यात्रा पीछे है।

21/07/2023

"Whenever love opens in your heart, the fragrance goes to the feet of God. it may take any route: it may go through your child, through your wife, through your husband, through your friend, through a tree, through a rock. It may go through anything, via anything but it always reaches God." - Osho

03/07/2023

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹.
🙏गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं🙏
💐 🪷🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏.

17/06/2023

Feminine mistery. ...

साक्षी का प्रयोग
साक्षी का प्रयोग शुरु करना होता है शरीर को चलते हुए, बैठे हुए, बिस्तर पर जाते हुए,
या खाते हुए देखने से!
स्थूलतम चीजों से व्यक्ति को शुरु करना चाहिए,
क्योंकि यह सरल है। और फिर उसे सूक्ष्म अनुभवों की ओर जाना चाहिए -- विचारों को देखना शुरु करना चाहिए।
और जब व्यक्ति विचारों को देखने में कुशल हो जाता है, तो उसे अनुभूतियों को देखना शुरु करना चाहिए। जब तुम्हें लगे कि तुम अपनी अनुभूतियों को भी देख सकते हो, तो फिर अपनी भाव-दशाओं को देखना शुरु करो, जो कि अनुभूतियों से अधिक सूक्ष्म भी हैं, और स्पष्ट भी।
द्रष्टा होने का चमत्कार यह है कि जब तुम शरीर को देखते हो, तो तुम्हारा द्रष्टा अधिक मजबूत होता है। जब तुम अपने विचारों को देखते हो, तो तुम्हारा द्रष्टा और भी मजबूत होता है। और जब अनुभूतियों को देखते हो, तो तुम्हारा द्रष्टा फिर और मजबूत होता है। जब तुम अपनी भाव-दशाओं को देखते हो, तो द्रष्टा इतना मजबूत हो जाता है कि स्वयं बना रह सकता है -- स्वयं को देखता हुआ, जैसे कि अंधेरी रात में जलता हुआ एक दीया न केवल अपने आस-पास प्रकाश करता है, बल्कि स्वयं को भी प्रकाशित करता है!
लेकिन लोग बस दूसरों को देख रहे हैं, वे कभी स्वयं को देखने की चिंता नहीं लेते। हर कोई देख रहा है -- यह सबसे उथले तल पर देखना है -- कि दूसरा व्यक्ति क्या कर रहा है, दूसरा व्यक्ति क्या पहन रहा है, वह कैसा लगता है। हर व्यक्ति देख रहा है -- देखने की प्रक्रिया कोई ऐसी नई बात नहीं है, जिसे तुम्हारे जीवन में प्रवेश देना है। उसे बस गहराना है -- दूसरों से हटाकर स्वयं की आंतरिक अनुभूतियों, विचारों और भाव-दशाओं की ओर करना है -- और अंततः स्वयं द्रष्टा की ओर ही इंगित कर देना है।
लोगों की हास्यास्पद बातों पर तुम आसानी से हंस सकते हो, लेकिन कभी तुम स्वयं पर भी हंसे हो? कभी तुमने स्वयं को कुछ हास्यास्पद करते हुए पकड़ा है? नहीं, स्वयं को तुम बिलकुल अनदेखा रखते हो -- तुम्हारा सारा देखना दूसरों के विषय में ही है, और उसका कोई लाभ नहीं है।
अवलोकन की इस ऊर्जा का उपयोग अपने अंतस के रूपांतरण के लिए कर लो। यह इतना आनंद दे सकती है, इतने आशीष बरसा सकती है कि तुम स्वप्न में भी नहीं सोच सकते। सरल सी प्रक्रिया है, लेकिन एक बार तुम इसका उपयोग स्वयं पर करने लगो, तो यह एक ध्यान बन जाता है।

किसी भी चीज को ध्यान बनाया जा सकता है!

अवलोकन तो तुम सभी जानते हो, इसलिए उसे सीखने का कोई प्रश्न नहीं है, केवल देखने के विषय को बदलने का प्रश्न है। उसे करीब पर ले आओ। अपने शरीर को देखो, और तुम चकित होओगे।
अपना हाथ मैं बिना द्रष्टा हुए भी हिला सकता हूं, और द्रष्टा होकर भी हिला सकता हूं। तुम्हें भेद नहीं दिखाई पड़ेगा, लेकिन मैं भेद को देख सकता हूं। जब मैं हाथ को द्रष्टा-भाव के साथ हिलाता हूं, तो उसमें एक प्रसाद और सौंदर्य होता है, एक शांति और एक मौन होता है।
तुम हर कदम को देखते हुए चल सकते हो, उसमें तुम्हें वे सब लाभ तो मिलेंगे ही जो चलना तुम्हें एक व्यायाम के रूप में दे सकता है, साथ ही इससे तुम्हें एक बड़े सरल ध्यान का लाभ भी मिलेगा।
|| ओशो ||🙏🙏
ध्यानयोग: प्रथम और अंतिम मुक्ति

04/06/2023

Seek and u shall find....osho

08/05/2023

Spontaneous answer by osho

20/04/2023

𝗔 𝗺𝗮𝗻 𝘄𝗵𝗼 𝗱𝗼𝗲𝘀 𝗻𝗼𝘁 𝗸𝗻𝗼𝘄 𝘄𝗵𝗮𝘁 𝗧𝗿𝘂𝘁𝗵 𝗶𝘀, 𝗶𝘀 𝗺𝗼𝗿𝗲 𝗟𝗼𝗴𝗶𝗰𝗮𝗹, 𝗯𝗲𝗰𝗮𝘂𝘀𝗲 𝘁𝗵𝗮𝘁 𝘄𝗵𝗶𝗰𝗵 𝗱𝗶𝘀𝘁𝘂𝗿𝗯𝘀 𝗮𝗹𝗹 𝗟𝗼𝗴𝗶𝗰 𝗵𝗮𝘀 𝗻𝗼𝘁 𝗵𝗮𝗽𝗽𝗲𝗻𝗲𝗱 𝗬𝗲𝘁 🤔😳😶

How is it that people who are not enlightened can talk with such apparent inside knowledge and so convincingly about the whole business?

Precisely because of that. Not knowing, they don’t hesitate; not knowing, they have nothing to say really, so they can go on spinning; not knowing, they can use language more perfectly. If you know, language is always a barrier; rather than a help it is a hindrance. When you know, you have to be constantly aware because whatsoever you are saying is not that which you know — there is great distance between the two. Sometimes that which you say goes directly opposite to that which you know...

Truth is not arguable, truth is not provable. There is no way to prove it, there is no way to logically propose it — it is at the most a seduction. You can seduce a person towards truth but you cannot convince him. Truth is very paradoxical, absurd. A man who does not know what truth is, is more logical, because that which disturbs all logic has not happened yet.

The man who knows, hesitates. Lao Tzu says, ‘Everybody seems to be very certain except me.’ He says, ‘I hesitate as a man who, coming to an ice-bound river, stands on the bank, thinks twice — and then walks very, very carefully. Everybody is walking so confidently.’ Blindness is very confident because it cannot see anything; you can walk into a wall with tremendous confidence. Because he sees things, a man who has eyes cannot walk with as much confidence as a blind man.

All great mystics are unconvincing. By the very nature of things they have to be. You can find a thousand and one flaws in their statements — and they themselves know that the flaws are there. For them it was just a necessary evil to speak. They had to speak. They would have avoided it if it had been possible.

– OshO

Discourse Series - Zen: The Path of Paradox

18/04/2023

Love is a jump don't think too much just raise in love - Osho 🌾 🌾 🌾

29/03/2023

*Video - 4:51*
*The complete excerpt on Mala as a choice out of freedom.*
*Must Watch and Share*
❤‍🔥🙏🏼📿🙏🏼❤‍🔥

26/03/2023

"हर्षिदा, साजिश बड़ी है। कहना चाहिए अंतर्राष्ट्रीय है। झूठ को भी अगर बार-बार दोहराया जाये तो वह सच मालूम होने लगता है।....

अगर यूरोप के सारे देशों की पार्लियामेंट मेरे खिलाफ यह कानून बना सकती है कि मैं उनके देश में प्रवेश नहीं कर सकता, तो निश्चित ही साजिश अंतर्राष्ट्रीय है और पीछे धर्मगुरुओं का हाथ है, राजनेताओं का हाथ है, धनपतियों का हाथ है। उनके पास ताकत है। लेकिन यह बात मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि झूठ के पास कितनी ही ताकत हो, सत्य के समझ झूठ नपुंसक है। वे सारी साजिशें बेकार हो जायेंगी।

*जो मैं कह रहा हूं, अगर वह सच है और जो मैं कर रहा हूं, अगर वह अस्तित्व के अनुकूल है, जो मैं बोल रहा हूं, वह सनातन धर्म है तो सारे षड़यंत्र, सारी साजिशें मिट्टी में मिल जायेंगी, उनकी कोई कीमत नहीं है।*"

-भगवान श्री रजनीश,
फिर पत्तों की पाजेब बजी-(प्रवचन-01)

10/03/2023

ओशो बोले परमात्मा पर ...osho explains about God ...it's meaning in very simple way....love is God

07/03/2023

Pls share this video in all groups/individuals on Facebook, WhatsApp and YouTube. Make it viral

ह्रदय पूर्ण आमंत्रण चलो पुणे 05/03/2023

https://youtu.be/2AOAQ9CUdAY

ह्रदय पूर्ण आमंत्रण चलो पुणे MA PREM OORJA INVITING TO ALL SANYASI 21 MARCH 2023ह्रदय पूर्ण आमंत्रण चलो पुणे Production byTAP Media Studio is an Audio- Visuals Production house. We make...

21 March Reach Pune for Osho Enlightenment Day Celebration 25/02/2023

अबकी बार आखरी बार

*Now it is upto you to help this buddhafield survive, to protect it so that it can live long and serve humanity long...*
https://youtu.be/7sluZjMgicE

*I Leave You My Dream*
*- Osho*

कितना जानते हैं आप जयेश को ?
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■ रियल एस्टेट एजेंट जयेश ने ओशो की जाली वसीयत बनाई ताकि आश्रम की संपत्ति के अधिकार उसकी निजी कंपनी के नाम पर लिए जा सकें।
(प्रमाण मौजूद)

■ जयेश ने अमेरिका की अदालतों में एफिडेविट दिया कि ओशो उनके OIF के कर्मचारी थे। OIF ओशो को भोजन और रहने की व्यवस्था देती थी, बदले में ओशो OIF के कहने पर सार्वजनिक प्रवचन देते थे।
(प्रमाण मौजूद)

■ OSHO शब्द का TRADEMARK बना दिया और मनमाना दुरुपयोग किया। ओशो की करुणामयी भावना के खिलाफ कॉपीराइट पॉलिसी का गलत इस्तेमाल किया।
(प्रमाण मौजूद)

■ OIF ज्यूरिख, स्विट्जरलैंड को अधिकार हस्तांतरित करके OIF पुणे को गरीब व नपुंसक बना दिया जबकि जुरिख में कोई आश्रम मौजूद नहीं है बल्कि एक छोटा सा आफिस भर है।
(प्रमाण मौजूद)

■ अपनी और अपने सहयोगियों की निजी कंपनियां बनायीं और OIF, पुणे को होने वाली आय को इनमें transfer किया जो वस्तुतः OIF, पुणे में आना चाहिए था। परिणाम यह कि आश्रम को घाटा होता गया और अब कोरोना की आड़ में फर्जी घाटा दिखाकर अब पुणे के आश्रम को बेचना चाहता है।
(प्रमाण मौजूद)

■ OIF ने कोर्ट में एफिडेविट जमा किया है कि समाधि का अस्तित्व नहीं है जबकि ओशो और उनके 5 शिष्यों की समाधि खुद ओशो ने तय की थी और स्थापित की थी।
(प्रमाण मौजूद)

■ देश भर में फैले अन्य आश्रमों की गतिविधियों को रोकने और उन पर शासन करने की कोशिश की । इसी क्रम में australia के आश्रम बन्द किये गए। जर्मनी में 97 में से 94 ओशो संस्थान बन्द हुए। हालांकि अभी तक भारत और नेपाल में यह आंशिक रूप से असफल रहा है।
(प्रमाण मौजूद)

■ पुणे आश्रम से ओशो के सभी 800 से अधिक चित्रों को चुरा लिया।
(प्रमाण मौजूद)

■ उस पोडियम को तोड़ा गया जहां ओशो बैठते थे, प्रवचन देते थे । यह इसलिये की ओशो से जुड़ी कोई भी बात मौजूद न रहे। इसीलिए ओशो के चित्र हटाये गए, ओशो के लॉकेट वाली माला हटाई गई।
(प्रमाण मौजूद)

■ आज OIF अधिक लाभ के लिए प्रकाशकों को ओशो की पुस्तकों के कॉपीराइट बेचता है और उन्हें ओशो के मूल प्रवचनों में बदलाव करने की अनुमति देता है।
(प्रमाण मौजूद)

■ ओशो द्वारा बनाए गए inner circle को नष्ट कर दिया ताकि वे और उनके लोग सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट और उसकी संपत्तियों के पूर्ण शासक बन सकें।
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● संन्यासियों को धमका कर ओशो की किताबों को जलवाया...

● उन सभी ओशो चित्रों को हटा दिया जो ओशो स्वयं अपनी पुस्तकों पर चाहते थे। ओशो के सभी चित्रों को हटा दिया ताकि वह स्थान एक आश्रम की तरह न दिखे बल्कि एक व्यावसायिक व्यवसाय स्थल लगे...

● osho festivals को मनाने की अनुमति नहीं दी जो ओशो के समय से थे लेकिन केवल 31 दिसंबर की अनुमति देते हैं और साथ ही एक नया आविष्कार किया गया है जिसे mansoon festival कहा जाता है...

● आश्रम को एक रिसॉर्ट व्यवसाय के रूप में चलाने के लिए एक निजी कंपनी को किराए पर लिया और कम्यून के काम में संन्यासियों की भागीदारी को हटा दिया और साथ ही कम्यून के काम में महिला संन्यासियों की भागीदारी को भी हटा दिया...

How much of it did you know !
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SAVE OSHO LEGACY !

21 March Reach Pune for Osho Enlightenment Day Celebration This is a call for friends to Join the wave !21st march 2023 is our big celebration day and this time, we will celebrate this 70th Osho Enlightenment day in ...

15/02/2023

निम्न पता और लिफाफे पर ऊपर यह लिखें -
👇🏻
Hon. Charity Commissioner
Charity Commissioner Office
Sasmira's Institute Compound,
Worli,
Mumbai - 400030
Maharashtra

Applications no.2. of 2021
PTR no F-14570

Subject : Against sale of land pieces of Osho International Foundation, Pune

(..........×..........×.............×............×.........×.........)

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प्रिय मित्रो,
सब मित्रो से निवेदन है --और इस निवेदन के साथ बहुत संन्यासी मित्रों का भाव भी जुड़ा है --कि जैसा कि इस बार हम 21 मार्च को ओशो के सम्बोधि महोत्सव को मनाने के लिए बहुत बड़ी संख्या में एकत्रित होने वाले हैं। यह एक बहुत आल्हादकारी दृश्य होगा कि हज़ारों की संख्या में ओशो के शिष्य और प्रेमी पुणे में एकत्रित होंगे, सब मित्र ओशो की माला के साथ मैरून रोब पहने होंगे। यह संघीय नज़ारा अपने आप में बहुत मनभावन होगा, क्योंकि कितने वर्ष हो गए हमें कोरेगांव पार्क में ओशो के प्रेमभरे संन्यासियों को इतनी बड़ी संख्या में देखे हुए , ऐसे लगता है जैसे कि ऐसा कभी पूर्व जन्म हुआ था जब इतनी संख्या में ओशो के मैरून वस्त्रधारी संन्यासी पुणे में दिखाई पड़ते थे.
इस बात की रसमयता और मुग्धता को ध्यान में रख कर हम में से कोई भी मित्र किसी राजनतिक पार्टी के लोगों को 20-21 मार्च के दिनों में निमंत्रित न करे. हम ओशो इन्टरनेशनल फाउंडेशन की अंधी शक्ति का सामना अपने प्रेम ध्यान और उत्सव के साथ करेंगे। हो सका तो हम आश्रम के भीतर उत्सव मनाएंगे अथव आश्रम के द्वार पर मनाएंगे। हमें प्रेम ध्यान उत्सव की शक्ति पर भरोसा है --अगर सब संन्यासी एक समस्वरता से अपने संन्यास का गीत गाते हुए वहां उपस्थित होते हैं। हमारे इस महोत्सव की पूरे विश्व में एक अनुगूँज पैदा होगी--उसका संगीत प्रतिध्वनित होगा।
हम यह सब आंदोलन किसी शक्ति को प्राप्त करने के लिए अथवा किसी शक्तिशाली पद पर आसीन होने के लिए नहीं कर रहे हैं, हमें यह सब इसलिए करना है कि वे लोग जो शक्ति से पिछले 33 वर्षों से बुरी तरह चिपके हुए अचेतन हो गए हैं उन्हें हमारे प्रेम और ध्यान और उत्सव की शक्ति उनकी नींद में झकझोरे, उनके भीतर भी यह भाव कसमसाये कि उन्हें भी इस विराट उत्सव में शामिल होना है, सबको शामिल करना है.
ऐसे संवेदनशील अवसर पर किसी भी राजनीतिज्ञ की उपस्थिति बेसुरी होगी. हम सब संन्यासियों को एक दूसरे के साथ सुर के साथ सुर मिलाना है, ताल से ताल मिलाना है। आप चाहें तो अपने किसी कलाकार--गायक, नर्तक, कवि, लेखक, अभिनेता, चित्रकार -- मित्र को अपने साथ ला सकते हैं। लेकिन राजनेताओं और उनके लोगों को इस अवसर पर नहीं लाएं।
आशा है आप सब इस माहौल की संवेदना को समझेंगे और अपनी और अधिक ऊर्जा अपने क्षेत्र से संन्यासियों को लाने में लगाएंगे। हमें सम्बोधि उत्सव को पूरे भाव के साथ आश्रम के भीतर अथवा बाहर जहाँ भी सम्भव हुआ मनाना है. लेकिन जो हमारी उचित मांगें हैं --जैसे समाधि के द्वार अधिक समय के लिए सब प्रेमी शिष्यों के लिए खुले हों। हम माला पहन कर, ऊपर या भीतर रख कर आएं, इस बात के लिए कोई भी ट्रस्टी मुल्ला पादरी बन कर आदेश नहीं देगा, यह प्रत्येक संन्यासी का अपना निर्णय होगा। किसी भी ट्रस्टी को ओशो ने ऐसा कोई काम कभी नहीं सौंपा था. काम जो सौपा गया था वो यह था कि कोरेगांव के अन्य खाली स्थानों को खरीदो और उन्हें आश्रम के साथ जोड़ लो --वो काम उन्होंने नहीं किया, बल्कि बने बनाये स्थान को खंडित करके बेचने में लगे हुए हैं।
पश्चिम में प्राप्त की गयी कॉपीराइट और ट्रेडमार्क सारी पूँजी को भारत में लाओ, कम्यून के विस्तार में लगाओ--विदेश में अपने निजी खातों से धन को वापस भारत लाओ.
और यह तो पूरी तरह स्पष्ट हो गया है कि ये ट्रस्टी किसी काम के सिद्ध नहीं हुए, इसलिए आश्रम को और अधिक बोझिल मत करो, आश्रम को इस चंगुल से मुक्ति दो। आप भी निर्भार हो जाओ. अभी तक वे राजनेताओं, प्रशासकों और उनके मिडलची लोगों की जेबें भरते रहे हैं, क्योंकि अवैध कार्य करने वालों को हर जगह घूस देनी पड़ती है। हमें उन्हें उनके इन कृत्यों से जगाना है. लेकिन हमें उन जैसा नहीं हो जाना है।
मुझे वह दिन याद है जब जयेश स्वयं एक बहुत बड़े नेता को समाधि दिखाने के लिए ले आये थे और दोनों ने अपने जूते बाहर नहीं छोड़े थे। उस समय एक जापानी मा केयरटेकर थी, वो दुखी हुई और रोने लगी थी. तब यह बात आश्रम में चर्चा का विषय बनी थी। उस समय तो सबको एड्स टेस्ट के बाद अंदर आने दिया जाता था --सब कलाकार भी आश्रम में एड्स टेस्ट करवाने के बाद अंदर अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करते थे. पंडित हरिप्रसाद, शिव कुमार शर्मा, पंडित जसराज इस प्रक्रिया से गुज़रते थे, लेकिन जयेश के राजनीतिक मेहमानों के लिए यह कभी ज़रूरी नहीं था।
इसलिए जयेश अमृतो जैसे लोगों के लिए यह कहना आसान है कि आश्रम में कोई समाधि नहीं है। समाधि का ख्याल ही उन्हें भयभीत करता है क्योंकि उसके साथ एक पवित्रता जुड़ी है-- उन्हें पवित्रता में घुटन अनुभव होती है. झुकना तो बहुत दूर की बात है.
स्वामी चैतन्य कीर्ति

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