आमंत्रण
आमन्त्रण मेरे मन का कोना है जो मेरी रचनात्मकता को आप से रूबरू कराता है ।अपना स्नेह और आशीष बनाये रखें
।। नीली जर्सी ।।
आज आसमाँ नीला हो
आज धरा भी हो नीली
हुंकार उठे समवेत स्वरों में
प्रतिद्वंदी की हालत ढीली,
बाइस गज की पट्टी पर
अदभुत आज का खेला हो
हो प्रहार प्रतिस्पर्धी पर ऐसा
उसने ना अब तक झेला हो,
खुल कर खेलो मिल कर खेलो
एक दूजे की ताकत ले लो
अपने श्रम प्रतिभा के बल
जो अपना वो हक से ले लो ,
आस टिकी हर भारतवासी की
अपना परचम लहराएगा
जो माही ने खुशियां दी थीं
वो पल रोहित दोहराएगा ,
होगा विराट रवि उदित आज
शुभ विजय का श्रेय जो पायेगा
कुलदीपक हर इतना राहुल
सूर्य को जस ही भायेगा ,
एक सिराज भभकेगा जो
शमी में स्वाह होगा अरिदल
हुंकारों मिल कर सब जन
जो हो दूना निजदल का बल,
कोटि कोटि जन हैं आतुर
तुम पर ही आस लगाये हैं
माटी पीली के ऊपर हमको
ये नीला रंग ही भाये है
ये नीला रंग ही भाये है ।।
भारत की विश्वकप में विजय कामना के लिए रचित ये कविता जिस में मैंने रूपक का काफी प्रयोग किया है और कोशिश की है अपने 11 खिलाड़ियों को उनके नाम के अर्थ के अनुरूप पंक्तियों में सजाने की।
एक दिया उनके भी नाम ।।
दीपावली का पर्व ये पावन
दीप श्रंखला हर घर निखरी
अंधकार को मिटा मूल से
श्वेत चांदनी हर दर बिखरी
वचन हेतु वन वन जो भटके
मर्यादा के पालक प्रभु राम
सिया लखन हनुमत के संग
ये प्रथम दिया है उनके नाम ।।
जग में जिन से पहला नाता
उनसा कोई न हमको भाता
उनका अनुभव उनकी सीखें
कोई भुला नहीं इस जग पाता
जिनसे मेरी सुबह सुनहरी
जो हैं बस मेरे चारों धाम
आज दिवाली के अवसर पर
एक दिया पितु मात के नाम ।।
हम जीवन में कितना बढ़ते
सूरज सा हर दिन ही चढ़ते
हमको जितना ज्ञान मिला
जग में जो भी सम्मान मिला
खुद की प्रतिभा से मिलवाया
दिया मंत्र जो हरदम साकाम
आज दिवाली के अवसर पर
एक दिया गुरुवर के नाम ।।
मेरे दुख में दुखी रहे जो
मैं मुसकाया तो है मुस्कान
जादूगर के शुक के जैसी
जिनमें बसती मेरी जान
जिनके संग हैं कितने किस्से
मेरे कठिनाई के वो आराम
आज दिवाली के अवसर पर
एक दिया उन मित्रों के नाम ।।
जाने कब उसने बार आखिरी
की परिवार संग दिवाली थी
हम जो रहें सुरक्षित हरदम
उसने सीमा पर की रखवाली थी
अपनी ड्योडी को छोड़ के वो
देता फर्ज़ को अपने अंजाम
आज दिवाली के अवसर पर
एक दिया उस सैनिक के नाम ।।
आप सभी को दीपावली की ढेरों शुभकामनाएं।।
।। दीवाली ।।
पटाखों की नहीं इस बार
मुस्कानों की दिवाली है
दिये हर घर जले हैं और
भरी खुशियों से थाली है ।।
जो बैठा राह पर लेकर
दीये और भगवान की मूरत
उन्हीं से तुम सजाना घर
कि उसकी भी दिवाली है ।।
जो तुमने कुछ खरीदे हैं
नए परिधान इस अवसर
पुराने उन को दे आना
बदन बस जिनके खाली है ।।
ये मौका है चलो निकलो
गले उनको लगालो तुम
कि पूरे साल जिनसे बस
है ये तुमने रार पाली है ।।
सजालो घर को तुम अपने
और अंतर्मन निखारो निज
राम का आगमन जीवन
घड़ी कितनी निराली है ।।
हैं दुआऐं हर तरफ बिखरी
रंगोली के रंगों सी अब
हो मुरादें सब की ही पूरी
सभी को शुभ दिवाली है
सभी को शुभ दिवाली है ।।
आप सभी को और परिवारजन को दीपवाली की अनेकानेक शुभकामनाएं। मां लक्ष्मी आप के जीवन में सदैव वैभव का संचार करें और गणपति आप के सभी विघ्न हरण करें ऐसी मेरी कामना हैं।
देर सुबह तक सोते रहना
मां का कुछ कुछ कहते रहना
छोटी बहन से बिन बात लड़ाई
पापा दिखते तो शुरु पढ़ाई ।।
अपना घर कमरा एक अपना
हर दीवार लिखा एक सपना
मां के हाथ का स्वाद सुहाना
और पिता का सुर में गाना ।।
लूडो की हो बिछी बिसात
या बाबा संग शतरंज में मात
हो बहन के साथ बनाई रील
या सिम्बा की कडलिंग की फील।।
पापा की झिड़की मां का प्यार
वो आते जाते त्योहार
मन कितना भी भूलना चाहे
यादें अब तक भी उसी मुहाने
कैसे कहदूं कुछ शब्दों मैं
कितने मेरे वो दिन थे सुहाने ।।
जीवन का अब है वो पड़ाव
छूटी मां की ममता की छांव
अपने सपने जीने को बस
है उनसे ये दूरी और अलगाव ।।
घर से दूर नया घरबार
जोड़ रही फिर से परिवार
गुरुओं में मातपिता दिखते
दोस्तों से अपनों सा प्यार ।।
जो घर दाल न खाती थी
पर यहां दाल ना गलती है
स्वाद कि गलियां कब की छूटी
कब भूख के आगे चलती है ।।
मां से अब चटियाती हूं
वीडियो कॉल पर बतियाती हूं
हैं पापा अब भी चिंता करते
पर अब में उन को समझाती हूं ।।
छोड़ के मात पिता की अंगुली
इस नए सफर हम बने सयाने
लगने लगे हैं धीरे धीरे
मुझको अपने अब दिन ये सुहाने ।।
ये कविता मैने अपनी बेटी जो kmc manipal में mbbs की i पढ़ाई के लिए गई हैं उस के कान की भावनाओं को व्यक्त करने के लिए लिखी हैं। आशा है आप को पसंद आयेगी ।।
#प्रदूषण
।। शहर की साँसें ।।
धुंध से लिपटा हुआ
भय से कुछ सिमटा हुआ
हर सांस जैसे बोझ हो
वो उखड़ी हुई ये झपटा हुआ
सूरज को जो जाती निगल
चादर ये धुएं की बिछी
दिन के उजाले में भी ये
है शाम सा लिपटा हुआ
आई कहां से ये हवा
बोझिल सी सबकी जान है
इस जहर की आमद से तो
ये सारा शहर हैरान है ।।
घुट रहे हैं लोग बस
असहाय हैं लाचार हैं
कैसे कहें ये झूठ अब
इस आबो हवा से प्यार है
कौन जिम्मेदार है जो
इस हवा घुलता जहर
है फिसलती जिंदगी बस
हर सांस जैसे हो कहर
जो खींचता भीतर हवा
तो फूलती सी जान है
कसरत करें या हों कैद घर
ये सारा शहर हैरान है ।।
सब दिखे चिंतित बड़े
मशवरे भी कितने मिले
कुछ पर चढ़ी हैं त्योरियां
कुछ पे हैं चेहरे खिले
हर साल ही लगता है ये
अब आखिरी ये साल है
कोशिशें तो की बहुत
पर ना बदलते हाल हैं
दिनबदिन खाता रहा
प्रदूषण बना हैवान है
कैसे मिलेगी जीत अब
ये सारा शहर हैरान है ।।
इस बढ़ते प्रदूषण और शुद्ध वायु में सांस लेने की जो हमारी तड़प है उसी को समाहित करती ये कविता । दिल्ली में सर्दी के 3 महीने पिछले कुछ सालों में होलोकास्ट जैसे संस्मरण दे जाते हैं । सरकारें बस AIQ नापती हैं पर कोई स्थाई समाधान नहीं है। सोच कर बहुत दुख होता है कि हम अपनी भावी पीढ़ी को कैसा शहर सौंप कर जा रहे हैं ।।
।। बेतरतीबियां ।।
आहटों की बस्तियों में
सन्नाटे सा है मेरा पता
खत कोई आता नहीं है
है डाकिया भी बेखता ।।
कोशिशें की हमने बहुत
खुद को नुमाया कर सकें
बोल ही निकले थे बस
अहसास सब थे लापता।
इस दानिशी में गुम कहीं
जाने अल्लहड़पन हुआ
जाता रहा न जाने कहां
खुद से खुद का राब्ता।।
जाने कहां से ज़िद थी एक
हो कामिल हर अपने हुनर
राह में सब बढ़ गए
मैं खुद को रहा बस नापता ।।
ये बात दीगर है कि मेरे
अशआर तजुर्बों से भरे
कौन इस दुनियां में अब
बेतरतीबियों को है छापता।।
#दशहरा
।। दशहरा।।
आज फिर है दशहरा,
सत्य की असत्य पर विजय का प्रतीक,
जो सिखाता कि शत्रु हो कितना बड़ा,
तो बस रहो निडर, रहो निर्भीक।
कितनी सदियों और पीढ़ियों से,
बस ये कथा हम सुनते आए,
दिन ये ही वो पावन था जब,
मार दशानन विजय राम थे पाये।।
बात चूंकि कथा में थी सुनी,
तो वो बस कथा तक ही रह गयी,
हर साल बस फूंक पुतला रावण का,
हमने मान लिया कि बुराई ,
सत्य के अविरल प्रवाह में बह गई ।।
सच पूछो तो अब सत्य और असत्य को,
विभक्त करना भी बड़ी दुस्वारी है,
आज तो जो जीत गया वही सत्य है,
धर्म की ये कितनी बड़ी लाचारी है।।
अब सत्य , केवल सत्य नहीं ,
तेरा औऱ मेरा सत्य है होता,
निर्भर समय औऱ परिस्तिथि पर,
कौन विजयी और कौन है खोता ।।
हर ओर असत्य बस,
ओढ़ कर लिबास सत्य का,
निडर निर्भीक सा घूम रहा,
राम भी हैं असहाय से लगते,
हर ओर दशानन झूम रहा,
तब ये दहन पुतलों का जरा बेमानी है,
कौन से किसके सत्य की ,
किस असत्य पे जीत मनानी है,
उठो जागो और तोड़ के निकलो,
ये जो मानस पटल पे पड़ा पहरा,
चुनौतियां राम कि सब कर धारण,
करो अन्वेषित उस सत्य का चेहरा,
वो सत्य जो सास्वत है,
है हर स्वार्थ से परे,
वो सत्य जो निर्भीक है,
असत्य हर उस से डरे,
विजयादशमी नहीं त्योहार सिर्फ मनाने का,
ये तो है पर्व खुद पे विजय पाने का,
एक राम और एक दशानन ,
अंगीकृत हैं हम सब में ,
तो अपने अंदर के रावण से लड़ ,
बस खुद में राम जगाना है,
पर्व न रहे बस रीति तक सीमित,
इस कथा को सत्य बनाना है।।
जब हर जन में हौंगे राम जगे,
विद्वेष का रावण सबका हुआ मरा,
उस दिन असत्य सच में हारेगा,
सत्य निर्भीक स्वर्ण सा निखर खरा,
उस दिन की अनुभूति और आशा में,
मन व्याकुल सा है ये फिरे जरा,
आज फिर से है दशहरा ।।
@ दिनेश पालीवाल ।।
।। प्रश्न ।।
हर व्यक्ति ही प्रश्न खोजता
उत्तर कौन सुझाएगा
लिए पहेली बस सब घूमें
हल इसका कौन बुझाएगा ।
आसां कितना होता है
प्रश्न किए जाना इस जीवन
चाह सभी को जब मीठे की
तब कड़वा किसको भाएगा ।
नदिया ने क्या प्रश्न किए हैं
कैसी होगी वो राह मेरी
सागर जिसमें हुई समाहित
खारा मीठा क्या चाह मेरी ।
क्या वृक्ष कभी ये प्रश्न पूछते
मेरे फल किसके बने निमित्त
खग मृग जन तन सब पोषित
हो अंधकार या रोशन चित्त ।
माना प्रश्न है एक जिज्ञासा
नया जानने की है आशा
प्रश्न ही हैं जो करते प्रेरित
उत्तर देने की अभिलाषा ।
पर प्रश्न मात्र पूछा जाना
मन के उत्तर पर अड़ जाना
जो प्रश्न नहीं हो मनमाफिक
हिय को उस का ना भाना।
हरदम उलझन कोई राह नहीं
निज मन की कोई चाह नहीं
चिन्ह प्रश्नवाचक सा घूमूं
उथला या गहरा थाह नहीं ।
अल्पज्ञ कहूं या जिज्ञासु
खुद को मैं अब क्या जानूं
इन प्रश्नों के भ्रमजाल फंसा
खुद को कैसे अब पहचानूं ।
प्रश्नों की इस दुनियां में ,
ना प्रश्नचिन्ह बनना चाहूँ ,
निकल ढूँढ हों हल हासिल ,
कुछ उलझन तो सुलझा पाऊं ,
प्रश्न रहें जिनसे जीवन गति ,
को और नये आयाम रहें ,
सुबह निरखती हो हर मुख,
अब पलकों में ना शाम रहे ।
इन पलकों में ना शाम रहे ।।
#मैं
।। मैं ।।
मैं आशिक हूँ दीवाना हूँ
जो लय में हूँ तराना हूँ
मेरी फितरत में शोखी है
मुहब्बत का फसाना हूं ।।
जो मानो तुम मुझे रहबर
तुम्हारे ये गम हैं सब मेरे
है मुकद्दस आशिकी मेरी
वफ़ा में बस सयाना हूं ।।
जो चाहो आजमालो तुम
कसौटी पर किसी अपनी
न कभी मायूस तुम होगे
मैं ऐसा एक खज़ाना हूं ।।
बादल दुख के हैं काफी
मेरे जीवन में आए भी
हरेक मंजर जिया खुलकर
मैं मस्तीखोर मस्ताना हूं ।।
अदा अपनी रही ऐसी
जमाना क्या ही समझेगा
पिरो के तार में दुख के
एक खुशियों का गाना हूं ।।
ना मिल पाए चाहत के
सुनहरे ख्वाब क्यों रुस्वा
न समझे तुम मुझे अबतक
मैं एक मौसम सुहाना हूं ।।
वो अहमक हैं जो माने हैं
कि उन बिन ना गुजर मेरी
फकीरी से है मेरी कुर्बत
मौसीक़ी का मैं घराना हूं
मौसीक़ी का मैं घराना हूं ।।
।।अवशेष।।
वो चमकती चांदनी सी
मैं तिमिर सा शेष हूँ
वो भव्य सा कोई भवन
मैं तो खड़ा अवशेष हूं ।।
जो दीप्त हो लौ की तरह
वो बस दमकती हर तिमिर
ख़ुद को समेटे फिर रहा
मैं उस तिमिर का वेष हूं।।
बात कहनी थी जरा सी
और उम्र एक जाया हुई
जो न पहुंचा उस तक कभी
बस मैं वही संदेश हूँ ।।
आहटें कितनी रहीं जो
ये मन न समझा आज तक
उन आहटों की आह से
उपजा हुआ मैं क्लेश हूं ।।
वो है सुसज्जित रूप से
श्रृंगार की हो देवी कोई
एक चाह को तरसा हुआ
मैं अब भी वही दरवेश हूं ।।
चांदनी हो चांद की
या इठलाती हुई नदिया कोई
उपमा सभी शोभित उसी पर
मैं बस देखता अनिमेष हूं ।
मैं बस देखता अनिमेष हूं ।।
@ dineshkpaliwal
श्रृंगार मैं थर्ड पर्सन का प्रयोग कर लिखी ये कविता आशा है आप को पसंद आयेगी।।🙏🙏
।। गणेश ।।
विघ्नहर्ता मेरे गणपति,
मेरे घर आज पधारे हैं,
चहुँओर हुआ उल्ल्हास,
लंबोदर कितने प्यारे हैं।।
आज गजानन एकदंत,
मेरे घर में मेहमान हुए,
दस दिन सेवा वक्रतुंड की,
हम इनके यजमान हुए।।
सिद्धिविनायक हे प्रभु मेरे,
तुम भालचंद्र सुंदर प्यारे,
नाम जपूँ गौरिसुत कितने,
हर रूप लगो बस तुम न्यारे।।
मोदक का नित भोग लगाके,
कर मंगलमूर्ति का अभिषेक,
सिद्धिदाता सब भली करेंगे,
जीवन से जाएं सब क्लेश।।
हे भीम हे ईशान पुत्र तुम,
इतना बस दो मुझको वरदान,
हर वर्ष पधारो आंगन मेरे,
हर लो मेरे सब दुख अज्ञान ।।
आप सब को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं। भगवान गणेश आपके जीवन में उल्ल्हास और प्रसन्नता लाएं यही कामना है।।
@ दिनेश पालीवाल।।
।। सिंह की दहाड़ ।।
हो सिंह की दहाड़ तुम
निश्चय में ज्यों पहाड़ तुम
जो ठान लो तो तयशुदा
दो विश्व को पछाड़ तुम ।
तुम अडिग तुम निडर
चुनौतियों है भरी डगर
शूल कितने राह इस
बढ़ते रहे उखाड़ तुम ।।
राष्ट्रहित की सोच बस
आतंक की लगाम कस
दुलार देशवासियों का
मां भारती के लाड़ तुम ।।
गर्व से हम हैं जो बढ़े
द्रुत विकास पर खड़े
आत्मनिर्भरता कुंजी मिली
सब खोलते किवाड़ तुम ।।
विश्व के हरेक पटल
आशा तुम्ही तुमही पहल
हुंकार भर छलांग ली
हर संशय रहे उखाड़ तुम ।।
हो सिंह की दहाड़ तुम
निश्चय में ज्यों पहाड़ तुम
जो ठान लो तो तयशुदा
दो विश्व को पछाड़ तुम ।।
आज हमारे यशश्वी प्रधानमंत्री जी को उनके जन्मदिवस पर समर्पित ये कविता। ईश्वर उन को दीर्घायु करें और मां भारती की सेवा का निरंतर अवसर प्रदान करें ।।
#हिन्दी
।। हिन्दी दिवस ।।
हिन्दी खड़ी हुई रस्ते में ,
लेकर अपने तख्ती हाथ ,
झांको तुम निज मन देखो ,
कब कब तुम थे मेरे साथ ।।
उर्दू को मौसी बनवाया ,
चाची है बनी हुई अंग्रेजी ,
कब वो था बार आखिरी ,
जब थी हिन्दी में पाती भेजी ।।
कब तुमने हिन्दी में अपना ,
जन्मदिवस का गीत था गाया ,
सोचो कब बच्चे को अपने ,
कोई हिन्दी कविता गीत गवाया ।।
स्वभाषा पर अभिमान नहीं,
ना ही है उन्नती का विश्वास ,
मुगलों और अंग्रेजों के तुम,
स्वतंत्र होकर भी रहे हो दास ।।
बस मेरी कुछ झूठी प्रशंसा ,
इस हिन्दी दिवस पे करते हो ,
सच तो ये है महफिल में ,
मुझ को कहने से डरते हो ।।
जिस सामाज को अपनी भाषा ,
और लेखनी का अभिमान नहीं ,
वो समाज बड़ा ही है कुंठित ,
कुछ निज क्ष्मता का ज्ञान नहीं ।।
अपनी बोली को तुम बस अब ,
एक दिन तक सीमित मत करना ,
मौसी चाची के सम्मान निहित ,
इस माँ को ना अपमानित करना ,
इस माँ को ना अपमानित करना ।।
@दिनेश पालीवाल।।
आज हिन्दी दिवस पर कटाक्ष रूप मेरी ये कविता हमें कहीं न कहीं ये विचार करने को प्रेरित करती है कि क्या हम सच में मातृभाषा के सच्चे पूजक हैं या बस एक रीति निर्वाहन कर रहे हैं ।।
#जन्माष्टमी #कृष्ण
।। कृष्ण जन्माष्टमी ।।
आज फिर तान मुरली की
हुआ सुनने को मेरा मन
चले आओ मेरे माधव
सुना दो धुन वो मनभावन ।।
तुम्हारी सूरत पे बलिहारी
छटा कितनी है ये पावन
ये मन बरसाने रहा मेरा
हुआ अब तन है वृंदावन ।।
तुम्हारा नाम ले कान्हा
पवन कैसी है ये महकी
प्रकृति तुमसे सुसज्जित है
है हर मौसम लगे सावन ।।
चले आओ फिर एक बार
पुकारें भक्त सब मिल कर
झलक एक से ही हो जाता
मन बियावन ये एक उपवन ।।
हृदय में वास बस तुम्हरा
हो जिव्या कृष्ण ही रटती
कृपा बस इतनी तुम रखना
सुफल मेरा हो ये जीवन
सुफल मेरा हो ये जीवन ।।
।। मेरे अध्यापक ।।
है नमन सदा तुम को गुरुवर,
तुम जीवन में हर क्षण व्यापक,
ये तरु तुम से ही पोषित हैं,
तुम शिक्षा संस्कृति के संस्थापक।
मात पिता थे जन्म निमित्त,
कर्म पथ के पर तुम संचालक,
पग धूल से सर का मुकुट बने,
तुमको पाकर हम से बालक।
कर्ज़ बहुत हैं इस जीवन में,
मात पिता और संबंधों के,
हर पल इन से बंध कर जीना,
ये सब धागे हैं अनुबंधों के
पर तुम से उऋण नहीं हूँगा,
इस जन्म में, ना जाने के बाद,
इस जीवन रूपी तरु में पाए,
हर फल में बस तेरी ही याद।
मैं बना आज तक जो भी हूँ,
उसमें यह सब शिक्षा तेरी हैं,
मैं इठलाऊँ जो ये सब पाकर,
वो हर महिमा तेरी चेरी हैं।
हर दम हैं श्रद्धा पुष्प समर्पित ,
तुमसे मिले ज्ञान का हो साया
तुमसा अध्यापक पा कर मैंने,
ये मानव जन्म सफल पाया।
।। दिनेश पालीवाल ।।
।। फकीरी ।।
न खबर राह की
ना मंजिलों से यारी है
हमें तो आज भी
बस सफर की खुमारी है ।।
न खुशी कि मैं मुक्कमल हूं
न ही मायूस कि कुछ अधूरा है
खत्म जो राह हुई एक
पकड़ने की और एक तैयारी है।।
हैं फूल भी शूल भी जितने
हर हार को छुपाते फलसफे कितने
नहीं चुभती यूँ तो कोई बात इस दिल
आंख क्यों बेवजह ये खारी है।।
कोई नुक्ता कहीं तो अटका है
बड़े दिन बाद दिल ये भटका है
चाहता हूँ कि कह दूँ उनसे
एक तुम्हीं से फरमाबरदारी है।।
फिर आज शब जो गीली है
ठंड सी आ गयी जज़्बातों में
ये कुहासा नहीं है बेरुखी उनकी
मुझपे रात अब ये भारी है।।
कैसे मानूं कि मुकद्दर
है ये मेरा फिदा मुझ पर ,
मेरे दरीचों से कहीं ऊंची
उन की चार दिवारी है ।।
फिर आना कभी निकाल वक्त
अपने मशरूफ लम्हों से
हम फकीरों के अपने हैं किस्से
जिनमें न कोई गम न कोई दुश्वारी है ।।
#रक्षाबंधन #बहन
।। रक्षा बंधन ।।
जो ये राखी का है बंधन,
ये बंधन है बड़ा पावन,
लो भादों का आगमन है,
कि जाने को है ये सावन,
इस रक्षा सूत्र से बंध कर
तुम्हें बस ये है प्रण करना,
सुरक्षित हो बहन हरएक
हो आतंकित हरेक रावन।।
बहनें राखी के धागों में ,
हैं पिरोती याद के मोती,
वो बचपन का हंसी ठट्ठा,
जो विदाई में थी वो रोती,
राखी नाम ही विश्वास का,
और जिम्मेदारी ये धागा है,
सुरक्षित मुझ से है भगिनी ,
न टपके आंख से मोती।।
रही मज़बूरियां कुछ ऐसी,
कि बहन राखी पे न आई,
हो कलाई भाई की सूनी,
ना उसे ये बात थी भाई,
चुन कर फिर प्रेम के धागे,
डाकिये मन के कबूतर से,
स्नेह बंधन की वो राखी,
भावनाओं से ही थी बंधवाई।।
नहीं मोहताज़ एक दिन का,
ये रिश्ता बहन भाई का,
ये एक धागा दिलाता याद,
बस हर दम रहनुमाई का,
बड़ी किस्मत से मिलती हैं
जहां में हम को ये बहनें,
गौरवांकित इन्ही से तो है
अब मेरा दर्ज़ा ये भाई का।।
@दिनेश पालीवाल ।।
रक्षाबंधन पर मेरी सब बहनों को समर्पित। आप का जीवन सदैव खुशियों से भरा रहे यही कामना हैं।
।। बोल कर नहीं आता ।।
दस्तक दे कर वो कभी
दरवाजे खोल कर नहीं आता
बुरा वक्त जान लो यारो
कभी बोल कर नहीं आता ।।
लाख दौलत हो पास
या हो फकीरी में बसर
नसीब किसी का भी तो
यहां तोल कर नहीं आता।।
कद्र सीखो अपने तुम
हर उस खुशगवार लम्हे की
वक्त अच्छा जल्द ये फिर
डोल कर नहीं आता ।।
वजन दुआओं में ज्यादा
और रखो द्वेष में कम
नशा आब मे कोई जहर
घोल कर नहीं आता ।।
कमियां जमाने की जो हमने
परत दर परत संजोई हैं
ये मन न जाने क्यूं अब
खुद को टटोल कर नहीं आता।।
न हंसो देख कर तुम
ग़म ये इस दुनियां के
दबे पांव ही आता है वो
कोई ढोल कर नहीं आता ।।
सबकुछ ही तो गड़बड़ है
यहां सपने और हकीकत में
न जाने इस खुमारी में
कोई झोल क्यों कर नहीं आता ।।
।। चांद।।
आज परचम चांद पर
भारत का है लहरा गया
चांदनी का रंग यारो
सब दिलों पर छा गया ।
देखे हैं परचम बहुत
चित्र जिनमें चांद का
अपने की क्या बात है
ये चांद पर फहरा गया ।
चांद पर यूं तो पहले
उतरे हैं कुछ और यान भी
बस उजाला उनको भाया
शायद था सीमित ज्ञान भी।
हमने अंधेरे उस के पढ़ने
को ही किया संधान है
मां धरा के भ्रातृ चंदा
तुमसे बढ़ा सम्मान है ।
अब तुम्हारी अठखेलियों पर
निगहबानी हरदम रहेगी
ढूंढ ही लेंगे वो भागीरथ
कि तुम पे भी गंगा बहेगी ।
नाप ले कर तुम्हारा
एक झिंगोला भेज देंगे
ना ठिठुरना ठंड से तुम
सूरज सा उसको तेज देंगे।
अब तो दूरी पट गई है
कुछ और अब चमका करो
बस मेरे मेहबूब जैसे
तुम सदा दमका करो ।।
#स्वतंत्रता #आजादी #भारतमाताकीजय
।। स्वतंत्रता दिवस ।।
आजादी का पर्व आज
ध्वज फहराने की तैयारी
फूलों से शोभित हर उपवन
लगे छटा ये कितनी प्यारी।।
वीरों के बलिदानों से सिंचित
हैं कितने जतन शहीदों के
सफर शिखर तक जाने के
तब से हैं अब तक भी जारी ।।
कुछ जो चाहा वो है पाया
कुछ मनचाहा ना मिल पाया
कुछ कदम उजाले को जाते
कुछ पर दिखता काला साया।।
अब भी हैं कितने खतरे ऐसे
जो इस आजादी पर हैं भारी
पहन बसंती चोला अपना
बनने की भगतसिंह है तैयारी ।।
कितने आगे हम बढ़ आये
बादल आशा के ही छाये
जो ठान लिया हमने इस मन
सपने सब वो सच हो पाये।।
अनेकता में एकता कितनी
पहचान हमारी है ये न्यारी
जात पांत को भुला आज
भारतीय बनने की कोशिश सारी ।।
हमको है यूंही चलते रहना
स्वावलंबन हो अपना गहना
आत्मनिर्भरता मंत्र हमारा
सीखा रुख से उल्टा बहना ।।
आजादी तो सौगात मिली
हमने कब कष्ट सहे इस तन
ये शान तिरंगे की बस दमके
हम पर ये ही जिम्मेदारी ।
सफर शिखर तक जाने के
तब से हैं अब तक भी जारी ।।
स्वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं।।
।। पुकार ।।
पुकारता है देश ये कि
चल पड़ो निकल पड़ो
निडर भी हो निर्भीक तुम
पथ सत्य का तो तुम अड़ो ।।
पुकारती मां भारती
फिर से वही हुंकार हो
देश मुस्कुरा रहा जो
देशवासियों में प्यार हो ।।
कौन धर्म कौन जात
कौन प्रांत,ये ना कहो
मां भारती के पूत जो
बन भारतीय ही तुम रहो ।।
विकास की बयार है
तो देश अब तैयार है
भरनी बड़ी उड़ान है
अब विश्व में पहचान है ।।
तुमको जगाती आ रही
अब एक सुहानी भोर है
हैं दमकते ही शीश सब
ये जोश अब पुरजोर है ।।
लो शपथ ध्वज की सभी
कुछ और ना दरकार हो
गुंजन हर तुम्हारे कर्म की
मां भारती की जयकार हो
मां भारती की जयकार हो।।
#दोस्ती #दोस्त
Happy friendship day to all my friends and we'll wishers.
#दो #जीवन
।। दो ।।
दो हाथ मिले तो शक्ति भी
दो हाथ मिले तो भक्ति भी
दो हाथ मिले तो ताली है
दो हाथों से ही खुशहाली है ।।
दो हाथों से मजदूरी है
दो हाथ फैला मजबूरी है
दो हाथ सहारा गर देते
दो हाथों की ही दूरी है ।।
दो हाथ उठे तो दुआ बनी
दो तन जाएं तो रार ठनी
दो दीवाने लें जो इन्हें मिला
दो दिल चालू है तना तनी।।
दो और दो होते जब चार
दो मिल कर रचते संसार
दो से ही दोगुना हो जाता
दो बातें मन का व्यवहार ।।
दो दिन की अपनी जिंदगानी
दो दिन ही हैं खुशियां आनी
दो दिन तो चल हंसले जीलें
दो दिन ही की तो ये जवानी ।।
दो रास्ते मिलते हैं सब को
दो से एक को ही चुनना है
दो आंखों देखे कितने सपने
दो पल में खाका बुनना है ।।
दो बातें अब बस हूं कहता
दो आखर पर जिंदा रहता
दो कदम चलो फिर एक बनें
दो नावों में ना जीवन बहता
दो नावों में ना जीवन बहता।।
।। जय जय बोल ।।
अश्रु धरा पर गिरे जो मेरे,
न समझो मेरी कमजोरी है,
ये तो उन वीरों को समर्पित,
रक्षित जिनसे घर की देहरी है।।
जान हथेली पर हरदम रखते,
सपूत ये भारत माँ के मतवाले,
मुंह से तो निकली आह नहीं,
पग पड़े भले कितने ही छाले।।
कोई लालच कोई धन वैभव,
इन को तो बस रास नहीं आये,
लिपट तिरंगे में हो अंत विदाई,
ये ही इनके बस दिल को भाये।।
इनके भी मात, पिता,बालक,
बहुतों से जग में इनका नाता,
जब बात निभाने की रिश्ता हो,
सब से पहले है भारत माता ।।
इनके बलिदानों और कुर्बानी का,
तुम दे पाओगे क्या कुछ भी मोल ,
बस पकड़ राह उनकी चल देखो,
हर पग उनकी जय जय बोल ।।
@ दिनेश पालीवाल
कारगिल दिवस पर देश के अमर शहीदों को समर्पित 🙏🙏
#बंधन #अन्तर्मन #शोर #मुर्दे #साँसें
#सफर #धूप #एहसास
।। कदर ।।
दुख ने जब जब शोर मचाया
सुख की कीमत जानी हमने
लगती ठोकर पे हंसा जमाना
तो कदर तेरी पहचानी हमने।।
यूं तो कितने पर्वत हैं नापे
सागर को भी बांध लिया है
धोखा जब अपनों से खाया
है हार तभी बस मानी हमने ।।
लंबी रातों के अंधियारे रस्ते
जब नहीं सूझता कोई किनारा
चैन जला कर खुदही अपना
दीपक बनने की ठानी हमने ।।
जग को भाती मुख की मिठास
हो लाख भले ही मन मलिन
बस तालमेल ये बिठलाने को
अपना ली मीठी बानी हमने ।।
हम भी हो सकते थे कलंदर
अनुभव अपने भी थे क्या कम
बस इतना ही तो हो ना पाया
ना खुद ही खुदकी बखानी हमने ।।
#गहरी #जिद #मंज़िल
#बंजर
#बचपन #मुस्कान #उम्मीद
#यार #शेर
#खत #आंसू
#राज़ #खत #अंदाज़
#खत #राज़
।। बोली। ।
कुछ तो टुकड़े डाले होंगे
उसने इस तेरी झोली में
दिखता फर्क मुझे जो इतना
तेरी इस बदली बोली में।।
जो कल तक बातें था करता
मर्यादा और उसूलों की
कैसे सब कुछ बदल गया
जा बैठा शैतानों की टोली में।।
फर्क नहीं करता था अबतक
जो अपने और बेगनों में
आज शिकन चेहरे पर दिखती
क्यों तबीजों और मोली में।।
इंसानों की है फितरत
धोखा,मायूसी, बड़बोलापन
हां पैमाने सब के हैं अपने
मत जाना सूरत भोली में ।।
क्यों खुद से हो नाराज बताओ
दंभ है या कि अवसाद कोई
चार दिनों का जीवन भाई
काटो बस हंसी ठिठोली में।।
कुछ बातें रक्खी हैं इस मन
तुमसे तो ना कह पाऊंगा
शब्दों का नासूर बुरा है
क्या दर्द भला फिर गोली में।।
कुछ तो वक्त लगेगा मुझको
तेरे ये बदलाव पचाने में
पर वादा तुझसे गले मिलूंगा
अब की इस आती होली में।।
#पिता
।। पिता।।
ज़िम्मेदारी का दूजा नाम पिता है
कर्त्तव्य जिये जो वो नाम पिता है
खुद की जो सब इक्षाऐं भुला कर
जीता बस तुममें वो नाम पिता है ।
श्रेय नहीं है बस विश्वास पिता है
हर निराश में एक आस पिता है
जब थक कर गिरने को दिल हो
दे हाथ उठादे वो उल्लास पिता है ।
जो माफ़ करे वो हर भूल पिता है
जो सब जीता मैं वो उसूल पिता है
हूँ मैं तो बस एक सूद तुल्य बस
हर मिली साँस का मूल पिता है ।
दुःख में भी स्थिर चट्टान पिता है
हर संबल ख़ातिर आव्हान पिता है
जग में जो अब मैं ये सीना ताने हूँ
इस के पीछे का अभिमान पिता है ।
हर कर्म में छुपा वो सम्मान पिता है
जिंदगी की किताब का उनमान पिता है
यूँ ना इतराओ अपनी सरपरस्ती पर
नेकदिली के पीछे का इंसान पिता है।।
आज 👨 फादर्स डे पर सभी पिताओं को समर्पित। मैं आज जिस मुक़ाम पर हूँ अगर उस की दुआएं मेरी माँ की हैं तो अथक परिश्रम मेरे पिता का भी है ।
#खत
।। खत। ।
कुछ पुराने खत मिले हैं
हर्फ हैं कुछ अल्फाज़ हैं
कुछ जो तुम्हारे अनखुले
कुछ मेरे छुपे भी राज हैं ।।
शोखियां इन मैं तुम्हारी
मेरी शरारत है कैद सब
सच कहूं तो हर एक खत
कहता नया अंदाज है ।।
ये ढलकते आंख से जो
ना समझ तू आंसू इन्हें
जब तक भिगोएं हर्फ ना
बसआते नहीं ये बाज़ हैं ।।
दिख गया चेहरा तुम्हारा
जो झांकता अशआर से
तब हर लिखे उस शेर पर
अब तक हमें भी नाज़ है ।।
फिर से नज्में हैं इकट्ठी
किस को करूं इनको नज़र
तू आके मिलजा फिर कभी
चल करते नया आगाज हैं ।।
।। यार ।।
रह रह के उसके मन को
कुछ सताता तो बहुत है
मेरा यार लिख के जाने
क्यों मिटाता जो बहुत है ।।
कुछ घाव गहरे उसके
यकीनन हैं लगे दिल पे
वो बात बात मैं बस
मुस्कुराता जो बहुत है ।।
कुछ दिनों से ना जाने
लगता है कुछ यूं डर सा
जो इजहार से था डरता
प्यार जताता जो बहुत है ।।
मुझसे ना कोई पूछे
अब हाल उस का आके
जो मुझसे था खुला कलतक
ना अब बताता वो बहुत है।।
रोक लेता है कुछ तो उसको
जो दिल का बयां नहीं है
चहरे से हूं पढ़ मैं सकता
वो कसमसाता तो बहुत है ।।
दीवानेपन की उसकी
ये लगता है आखिरी हद
हर ठोकर पे होके घायल
वो कहकहाता तो बहुत है ।।
कैसा भी है कुछ भी है वो
पर आदमी है वो सच्चा
जब जब खुदा को चाहा
याद आता वो बहुत है
याद आता वो बहुत है ।।
#जिंदगी #कल #आज
।। जिंदगी ।।
सारा गुरूर मेरा जो
बर्फ के माफिक रहा,
पलटते वक्त की तपिश
और ये बस पानी,
जोश यूं तो बहुत रखते
इस दिल थे अपने,
साहिल की खोज में बस
बहती गई जवानी ।।
स्वप्न जो ना नींद के,
ना ही थे खुली आंख के,
हार जो जाती हुई,
इस मन को कर विकल गई,
अहसास की गर्मी पे,
पकाते रहे ख्वाब हम,
जिंदगी सर्र से आई,
और फुर्र से निकल गई ।।
समेटता यादें जेहन में किस्से,
ताउम्र बस चलता रहा,
जो हाथ था न सुकून था,
जो ना मिला खलता रहा,
हर गली हर मोड़,
कुछ पाया कुछ आया छोड़,
बंधन कितने इस पांव बंधे,
कितना चाहा पर क्या पाया तोड़।।
मन का चाहा ना मिला कभी,
बेमन की बस फांस चुभी,
इस जोड़ तोड़ की तिकड़म,
बस अपनी सारी अकल गई,
सोचते ही हम रहे उम्रभर,
नफा और नुकसान सभी में,
जिंदगी सर्र से आई ,
और फुर्र से निकल गई ।।
फुरसत की चाह कितनी,
पर वक्त ही नहीं था,
वो पल, थी जिसकी चाहत,
हम कहीं तो वो कहीं था,
कैसे बताएं अब हम,
कि निचुड़े हुए हैं इतने,
ये पलकें हैं थक के बोझिल,
पर मन मुआ वहीं था ।।
खुद के लिए समय जो,
हमने हैं खुद से मांगा,
वो तारीख ना मिली है,
ये उम्र मेरी सकल गई,
हम बस निहारते खड़े,
कल के स्वप्न अपने आज,
जिंदगी सर्र से आई
और फुर्र से निकल गई ।।
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