Atman

Atman means a real self of an individual. A soul which expresses freely and without any limitations.

18/11/2023
24/05/2023

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14/05/2023

मैं माँ हूँ, केवल माँ तेरी,
तुझे पत्र मेरा ये याद रहे,
इतिहास की सारी मांओं की,
हर इक गाथा आबाद रहे।

महलों के राजकुमारों को,
जब सड़कों पर पाला होगा,
मजबूत कलेजा सीता का,
क्या रंज से ना कांपा होगा।

कोंखजने के टुकड़ों पर,
जब पार्वती रोई होगी,
आकाश गवाह है उस पल का,
अपना आपा खोई होगी।

अपने नन्हें से पुष्प को जब,
अपरिचित गोदी सौंपा होगा,
अपने सीने को दर्द तले,
उस देवकी ने रौंदा होगा।

क्या बात करूँ कौशल्या की,
वो तो इक ऐसी नारी थी,
बेटे को वन में विदा करा,
अपनी ममता बिसरा दी थी।

इतिहास में जब जब मांओं ने,
ममता की बेड़ी तोड़ी है,
वासुदेव, गणपति, राम सहित,
लव-कुश की गिनती जोड़ी है।

गर कठिन परीक्षा आई तो,
पग पीछे नहीं घटाऊंगी,
अग्नि में चाहे, तपाना हो,
तुझे सोने सा चमकाउंगी।

कल्पना।

11/04/2023

बिन बोले, बहुत कुछ कह देना,
बिन पूछे, बहुत कुछ समझ लेना,
समझौते की बुनियाद पर,
परिपक्व होते रिश्तों को,
ख़ामोशी से बयां कर देना।

कल्पना।

16/03/2023

प्यार और नफ़रत के बीच, एक अजीब सी क़राबत है.
छुपता न प्यार है, न नफ़रत छुपती है.
प्यार, हर पल, अपने होने के एहसास से, थोड़ा और रंग भरता है.
और नफ़रत, हर दिन, कुछ और बेरंग करती है.

कल्पना.

15/02/2023

किसने कहा, कि सिर्फ साथ फोटो खिंचवाना ही प्यार है,
कभी मेरे पसंद वाले समोसे बिन मंगाए, ले आना भी प्यार है.

कल्पना.

19/01/2023

वो बचपन की नींद थी,
बुलाने से पहले आ जाती थी.
अब तो कई रातें,
इंतज़ार में कट जाती हैं.

कल्पना.

01/01/2023

लो एक और साल गया,
ज़्यादा हंसा के, थोड़ा रूला के,
ज़्यादा कमा के, थोड़ा गवां के.

लो एक और साल गया,
थोड़ी सी और समझदारी सिखा के,
थोड़ी बड़ी, पहचान बना के.

लो एक और साल गया,
इतिहास का एक पन्ना बढ़ा के,
सभ्यता से थोड़ी ज़्यादा दूरी बना के,
लो एक और साल गया.

कल्पना.

09/12/2022

फूलों में पलने वाले तो,
पत्तों को देखकर डरते हैं.
फिर शुक्र करो उन कांटों का,
जो चुभ कर पुख्ता करते हैं.

कल्पना.

04/12/2022

अपने अंदर के मोती जब,
सारी दुनिया में बांट दिए,
उनकी माला गुंथवाने को,
दिल क्यों फिर आज मचलता है.

खुद को न्यौछावर कर कर के,
अब मुट्ठी अपनी खाली है.
खाली मुट्ठी में भरने को,
उपहार मांगना पड़ता है.

इक मोती वापस, मांग लिया,
तो दुनिया की पहचान हुई.
हम सारे मोती खो बैठे,
उन्हें एक भी भारी, पड़ता है.

अपने मोती, ऐसे रखना,
ना देना हो, ना लेना हो.
प्रत्याशा ना हो जीवन में,
सच्चा सुख ऐसा होता है.

कल्पना.

28/11/2022

मैं राह देखता रहता हूँ,
तू चली न जाने गई कहाँ,
मैं तेरे पग का धूल सही,
तू मेरे दिल की नूरजहाँ.

स्व. श्री उमेश्वर प्रसाद शर्मा.

इक बार इशारा कर देती,
मैं चांद तोड़ कर ले आता,
उसको पाने की चाहत में,
कोई इतनी दूर नहीं जाता.

सूना करके मेरा आंगन,
यादें बिखेर कर यहाँ - वहाँ,
मैं राह देखता रहता हूँ,
तू चली न जाने गई कहाँ.

कल्पना.

These lines were left incomplete by my late grandfather 🙏
Pc: flying soul

26/11/2022

कीर्ति, कविता और संपत्ति, वही अच्छी है, जो सबके हित में हो.

श्री रामचरितमानस.

26/11/2022

जिनको तकलीफ़ छुपाने की कला आती है, वो अक्सर सबके दुश्मन हुआ करते हैं.
लोग इस कला को खुशकिस्मती समझ लेते हैं.
और दुनिया का सबसे बड़ा दुख, दूसरों की खुशी है.
इस में अपना सुख दिखाई नहीं देता.

10/11/2022

नानी चूल्हे को फूंक मारती जा रही थी. धुआँ, टेढ़ी मेढ़ी चाल से, लहराते हुए, ऊपर उठता और पत्तों में जाकर कहीं खो जाता. मैं उचक उचक कर ये देखने की कोशिश करती रही कि आखिर सारा धुआँ कहां खो जा रहा था.
पर कुछ पता नहीं लग पाया.
हार कर मैं फिर से चूल्हे के पास बैठ गयी.
और मिट्टी की सोंधी हांडी में, खिचड़ी के पकने का इंतज़ार करने लगी.
आज के जैसी उत्सुकता, पहले कभी नहीं हुई खिचड़ी खाने की. ऐसा लग रहा था, जैसे आम की लकड़ी की तपन और हांडी की पकती मिट्टी, दोनों का स्वाद, धीमे - धीमे जलते चूल्हे की गर्मी पाकर, चावल और दाल में मिलता जा रहा था. हर बार जब नानी ढक्कन हटाती और कड़छे से उसे जैसे ही चलाती, कि थोड़ी सी खुश्बू चुपके से निकल कर, मुझ तक होते हुए पता नहीं कहां गायब हो जा रही थी.
और मैं खडी़ होकर देखने लगती, कि शायद इस बार पक गयी होगी.
नानी ये बोलकर बिठा देती कि," हांडी में कूद जाएगी क्या? "
" नानी, ये इतने सारे लोग, इस एक पेड़ के नीचे, चूल्हा लगा कर क्यों बैठे हैं? "
" अरे, आज आंवले के पेड़ से, अम्रित टपकेगा. आंवला नवमी जो है." नानी इधर उधर देखते हुए बोली.
" अम्रित, और आंवले के पेड़ से?"
मैंने धीरे से गर्दन ऊपर कर के देखा, छोटी छोटी पत्तियों के बीच आंवले लदे थे. पर अम्रित गिरता कहीं दिख तो नहीं रहा था.
तभी नानी बोली,
" विष्णु जी क्या अम्रित, दिखा कर गिराएंगे? "
" अच्छा, इस पेड़ में, विष्णु जी भी हैं? " मैंने पूछा.
" और क्या ? पूरे साल इंतज़ार करो, फिर ये मौसम आता है, जब विष्णु जी के अम्रित से भरे खूब सारे आंवले खाने का सौभाग्य प्राप्त होता है. उनके आशीर्वाद से, हर रोग और बला दूर भागती है. इन आंवलों के जितने पेड़ लगाओ, उतना ज़्यादा आशीर्वाद मिलेगा." नानी खिचड़ी की गरम हांडी कपड़े से पकड़ कर, नीचे उतारती हुई बोली.
थाली में गरम-गरम सोंधी खिचड़ी के ऊपर घी डालते हुए, नानी ने एक आंवला पकड़ाया. और मैं, एक बार आंखों को मीच कर वो खट्टा प्रसाद दांत से काटती, फिर खिचड़ी का निवाला मुंह में डाल कर ऊपर पत्तियों में, आंवलों के बीच, विष्णु जी को देखने की कोशिश करती.

कल्पना.

10/11/2022

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आप सबका बहुत बहुत शुक्रिया 🙏

01/11/2022

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19/10/2022

बगीचे में, फाटक के दांईं ओर
हरसिंगार का एक बड़ा सा पेड़ था.
हर सुबह जब भी मैं उठ कर जाती,
उसके छोटे - छोटे, उजले और लाल पीले रंग से मिलते मोती जैसे फूल, पेड़ के नीचे बिछे होते थे.
लगता था जैसे कोई सफेद और नारंगी रंग की मखमली चादर हो.
मैं अगली सुबह, और सवेरे उठकर सोचती, आज तो पेड़ों को बरसता
देख ही लूंगी, पर पेड़ों को जैसे पता
होता.
और उस दिन फूल उसके भी पहले बिछ जाते.
हर रात मैं बस कल्पना ही करती रह
गई, कि वो क्या नज़ारा होता होगा, जब ये परिजात के फूल रंग बिरंगे ओस की तरह एक साथ टपकते होंगे.
ऐसे ही आंख - मिचोली चलती रही, और मैं कभी देख नहीं पाई उनकी वो बरसात.

11/10/2022

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03/10/2022

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25/09/2022

Happy Daughters day

बेटी हूं मैं, मुझे अपनी औलाद ही रहने देना, देवी मत बनाना.

घर की रौनक हूँ, खानदान की इज़्ज़त के नाम पर मेरे अरमानों की बलि मत चढा़ना.

मुझे भी सिखलाना खुद के लिए जीना.
धरती माँ के नाम पर, त्याग और बलिदान की मूरत मत बनाना.

मुझे आशीर्वाद के साथ बिदा करना,
जिसमें घुट के रह जाऊँ,
ऐसी मर्यादा का टोकरा मत पकड़ाना.

कल्पना.

17/09/2022

अगर तहज़ीब वाला, हर माँ तुम्हारा
लाल हो जाए,
हर दाग़ से आधी धरा,
बेदाग़ हो जाए.

कल्पना.

15/09/2022

रास्ते पर पड़ा एक बड़ा पत्थर,
आते जाते ठोकर मारता था.
गुस्सा आता, ये ठोकर क्यों मारता है,
पर उस रास्ते से गुज़रने की पुरानी आदत पड़ गई थी.
कितनी बेवकूफी़ की बात थी,
क्यों समझ नहीं आता,
जब ऊपर वाले की मर्जी़ के बिना,
पत्ता नहीं हिलता,
फिर पत्थर चोट कैसे कर सकता है.
और शायद वो ठोकर,
रास्ता बदलने का इशारा हो.....

कल्पना.

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