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jay siyaram
नारायण हरि ओम
आप लोगों के लिए विशेष सूचना -
जो लोग शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर का प्रसाद बना कर रखते हैं वे लोग 4:00 बजे से सूतक लग रहा है उससे पहले ही बना ले और ढक कर उसके ऊपर कुश रख करके सुरक्षित रख दें ग्रहण पड़ने के बाद हाथ पैर धूल करके खीर प्रसाद को रात्रि 2:30 बजे के बाद खुले आसमान चंद्रमा की रोशनी में रख दें और प्रातः काल स्नान पूजा आदि से निवृत होकर के तुलसीदल छोड़कर भगवान को प्रसाद का भोग लगा करके सभी लोग प्रसाद ग्रहण करें !
सीताराम
Astrologer -Krishn mohan shastri
यस्य स्नेहो भयं तस्य स्नेहो दुःखस्य भाजनम्।
स्नेहमूलानि दुःखानि तानि त्यक्तवा वसेत्सुखम्॥
भावार्थ :
संसार में जिसको जिसके प्रति प्रेम होता है उसे उसी से भय भी होता है, क्योंकि प्रीति दुःखो का आधार है । स्नेह ही सारे दुःखो का मूल है, अतः विवेकीजन, पुरुषों को संसार के सारे नेह- बन्धनों को तोड़कर भगवान से प्रेम का नाता जोड़कर सुखपूर्वक रहना चाहिए।।
चाणक्य नीति
कृष्ण मोहन शास्त्री जी महाराज
🚩।।ओम गं गणपतये नमः।।🚩
लग्नेश का कुंडली के सभी बारह भावों में फल:कुंडली के अलग-अलग भावों में विद्यमान होकर लग्नेश अलग-अलग फल प्रदान करता है | आइए जानते हैं की लग्नेश का कुंडली के सभी बारह भावों में फल क्या ..
लग्नेश का कुंडली के सभी बारह भावों में फल
कुंडली के प्रथम भाव को लग्न भाव कहा जाता है एवं इस भाव के स्वामी को लग्नेश कहा जाता है | ज्योतिष में यह माना जाता है कि जन्म कुंडली के जिस भाव में लग्नेश स्थित होता है उस भाव से संबंधित फलों में व्यक्ति की रूचि अधिक होती है या उस भाव के फलों का प्रभाव जातक के जीवन में अधिक देखा जाता है | कुंडली के अलग-अलग भावों में विद्यमान होकर लग्नेश अलग-अलग फल प्रदान करता है | आइए जानते हैं की “लग्नेश का कुंडली के सभी बारह भावों में फल” क्या होगा ?
लग्नेश प्रथम भाव में :- यदि लग्न भाव का स्वामी प्रथम भाव (लग्न) में ही स्थित हो तो जातक सुखी, स्वस्थ, ऐश्र्वर्य संपन्न, चंचल, सुन्दर, तथा दीर्घायु होता है | सामान्यतः जातक जीवन में सफलता प्राप्त करता है | वह विचारवान तथा विद्वान होता है | यदि लग्नेश पीड़ित अवस्था में हो, अशुभ ग्रहों से युत या दृष्ट हो तो जातक का स्वास्थ्य खराब रहता है | ऐसा जातक अस्थिर मानसिकता युक्त तथा अनैतिक कार्यों से युक्त होता है |
लग्नेश द्वितीय भाव में :- यदि लग्न भाव का स्वामी द्वितीय भाव में स्थित हो तो जातक तो ऐसा जातक अपने प्रयास से धन कमाता है | वह अपने जीवन में धन की कमी नहीं महसूस करेगा और अपने सम्पूर्ण जीवन काल में खूब धन कमाएगा | वह विद्वान, शुभ प्रकृति युक्त, धार्मिक तथा समाज में सम्मानित होता है | जातक अपने कुटुम्ब जनों को चाहने वाला तथा उनका ध्यान रखने वाला होता है | ऐसा जातक खाने और पीने का भी शौक़ीन होता है | इनकी रूचि ज्योतिष तथा मनोविज्ञान जैसे विषयो में होती है | ऐसा जातक व्यापार में सफल तथा दूरदर्शिता पूर्ण होता है | यदि लग्नेश यहाँ पीड़ित हो तो जातक निष्ठुर, कामी, कुटुम्ब जनों से द्वेष रखने वाला, स्वार्थी तथा धन लोलुप होता है |
लग्नेश तृतीय भाव में :- तृतीय भाव में लग्नेश की स्थिति कलात्मक विकास के लिये अति शुभ है | जातक सौभाग्यशाली, प्रसिध्द, प्रतिष्ठित, कलाकार अथवा गणितज्ञ होता है | वह सामान्यतः सभी प्रकार के सुखों से युक्त, विद्वान तथा खुशहाल होगा | लग्नाधिपति यहाँ शुभ स्थिति में है तो भाइयो के साथ बढ़िया सम्बन्ध होता है | ऐसा जातक लघु यात्रा का शौक़ीन होता है वह देश-विदेश में भ्रमण करता है | ऐसा व्यक्ति संगीतकार, नर्तक, अभिनेता, खिलाड़ी, लेखक आदि के रूप में प्रसिद्ध होता है | यदि लग्नेश यहाँ पीड़ित हो तो विपरीत परिणाम मिलते हैं | जातक में साहस तथा पराक्रम की कमी होती है |
लग्नेश चतुर्थ भाव में :- चतुर्थ भाव में लग्नेश स्थित हो तो धन और समृध्दि की शुभता दर्शाता है | ऐसे जातक को वाहन, बंधू-बान्धव, मकान, माता इत्यादि का सुख प्राप्त होता है | ऐसा जातक अपने माता पिता से बहुत ही प्यार करता है आध्यात्मिक विषयों में रुचि लेता है | लग्न भाव केन्द्र और त्रिकोण दोनों है लेकिन चतुर्थ भाव केन्द्र भाव है | अतः चतुर्थ भाव में लग्नेश की स्थिति राजयोग कारक है | यह प्रसिध्दि, धन तथा विद्या का सूचक है | यह माता की समृध्दि के लिये भी शुभ है | ऋषि पराशर के अनुसार, जातक माता-पिता सम्बन्धी सुख पूर्णता में प्राप्त करता है तथा सुख-सुविधा सम्पन्न होता है |
लग्नेश पंचम भाव में :- लग्नेश कुंडली के पंचम भाव में विद्यमान हो तो यह केन्द्र-त्रिकोण का सम्बन्ध है | ऐसा जातक मध्यम संतान प्राप्त करने वाला, राजकार्य प्रिय व विद्यावान होता है | यदि लग्नेश शुभ ग्रह हो तो अति उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाला होता है | यह जातक को प्रसिध्द, शासकों का प्रिय, अति विद्वान तथा कलात्मक अभिरुचि वाला बनाता है | ऐसा जातक आमोद-प्रमोद व मनोरंजन का प्रेमी, संतान से सुख पाने वाला तथा यशस्वी होता है |
लग्नेश षष्ठ भाव में :- यदि लग्न का स्वामी षष्ठ भाव में हो तो वह व्यक्ति शरीर से कमजोर होता है | षष्ठ भाव में स्थित लग्नेश यदि बलिष्ठ हो तो जातक चिकित्सा क्षेत्र अथवा सेना में उच्च पद प्राप्त करेगा | यदि लग्नेश इस भाव में अशुभ ग्रहों से युत अथवा दृष्ट हो तो स्वास्थ्य की दृष्टि से शुभ नही है | यदि लग्नेश कोई पाप ग्रह हो तो जातक को रुग्णता व ऋण करने वाला भी बनाता है | ऐसा जातक शत्रुओं से भी मुसीबतें पाता है | यदि लग्नेश शुभ स्थिति में शुभ ग्रहों से युत तथा दृष्ट हो तो जातक स्वस्थ तथा खेलकूद के प्रति रुचि रखने वाला होगा |
लग्नेश सप्तम भाव में :- लग्नेश का सप्तम भाव में होना स्वास्थ्य तथा समृध्दि के लिये शुभ है क्योंकि यहाँ से लग्नेश अपने भाव अर्थात लग्न को देखेगा | जातक सुशील तथा ओजस्वी होता है | उसे भ्रमण तथा पर्यटन से लाभ मिलता है | उसकी पत्नी सुंदर, सुशील तथा पतिपरायण होती है एवं पति-पत्नी में परस्पर बहुत प्यार होता है | ऐसा जातक प्रदेश में निवास करने वाला होने के साथ-साथ विरक्त भाव वाला होता है | यदि लग्नेश पर पाप प्रभाव हो तो जटिल परिस्थितियाँ उन्हें पृथक रहने पर विवश कर देती हैं | ऐसी स्थिति जातक को विदेश में भटकाव भी देती है |
लग्नेश अष्टम भाव में :- लग्नेश यदि जन्म कुंडली के अष्टम भाव में विद्यमान होता है तो जातक रुग्ण शरीर वाला होता है | साथ ही ऐसा जातक दुर्व्यसन का आचरण करने वाला होता है | अष्टम भाव में लग्नेश यदि शुभ दृष्ट हो तो जातक बुध्दिमान, सदाचारी, सौम्य स्वभाव, धार्मिक तथा यशस्वी होता है | परंतु लग्नेश के अशुभ ग्रहों से युत या दृष्ट होने पर जातक गंभीर तथा असाध्य रोग से ग्रसित होता है | ऐसा जातक धन संचय लोभी तथा कृपण होता है | वह धन को ही भगवान मानता है | वह कुरूप तथा नेत्र रोगी होता है |
लग्नेश नवम भाव में :- लग्नेश यदि जातक की जन्म कुंडली के नवम भाव में विद्यमान हो तो जातक परम भाग्यशाली, शास्त्रोक्त आचरण करने वाला व संसार में यश प्राप्त करने वाला होता है | नवम भाव में लग्नेश के होने का अर्थ है केन्द्र और त्रिकोण का शुभ सम्बन्ध ऋृशि पराशर के अनुसार ऐसा जातक लोगों का प्रिय, ईश्वर के प्रति आस्थावान, कार्य-दक्ष, प्रखर प्रवक्ता क्षमाशील एवं भाग्यशाली होता है | अपने गुणों व कार्यों से वह देश तथा विदेश में प्रसिध्द तथा समाज में मान-प्रतिष्ठा पाता है | ऐसा जातक सच्चरित्र, नैतिक गुणों से भरपूर, विनयशील व कार्यकुशल व्यक्ति होता है |
लग्नेश दशम भाव में :- दशम भाव में लग्नेश की स्थिति भी केन्द्र-त्रिकोण का शुभ सम्बन्ध बनाती है | दशम भाव कर्म से सम्बन्धित है | ऐसा जातक स्व-परिश्रम द्वारा धन अर्जित करता है | ऐसा जातक अपनी कार्यशैली से यश प्राप्त करने वाला होने के साथ-साथ राजकीय क्षेत्र में उच्च पद प्राप्त करने वाला होता है | वह माता-पिता का आदर करने वाला तथा राज्य पक्ष से लाभ पाने वाला, गुरुजनों तथा देवता का भक्त होता है | ऐसा जातक विद्वान, यशस्वी तथा पिता से सभी सुख-सुविधाएं सहज ही पाने वाला होता है |
लग्नेश एकादश भाव में :- लग्नेश एकादश भाव में होने से जातक धन-वैभव सम्पन्न, संतान पक्ष से सुखी तथा दीर्घायु होता है | वह गुणी, यशस्वी, विद्वान, सदाचारी तथा पिता के यश को बढ़ाने वाला होता है | मित्रों के सहयोग से उसे धन लाभ तथा सुख वैभव की प्राप्ति होती है | वह धनी, पुत्र तथा संतान का उत्तम सुख पाने वाला होता है | लग्नेश की दशा-अन्तर्दशा में जातक उन्नति, अधिकार, धन तथा यश पाता है |
लग्नेश द्वादश भाव में :- द्वादश भाव व्यय का भाव है | लग्नेश द्वादश भाव में विद्यमान होकर जातक को दुर्व्यसन में डालता है | अतः जातक असत्य बोलने वाला, जुआ खेलने वाला तथा धन व्यय करने वाला बनता है | शुभ ग्रहों का प्रभाव यदि द्वादश भाव में स्थित लग्नेश पर हो तो जातक दान, पुण्य व परोपकार में धन का सदुपयोग करता है | अशुभ प्रभाव युक्त लग्नेश का द्वादश भाव में स्थित होना जातक को व्यर्थ के कामों से धन हानि, देह सुख में कमी तथा स्वजनों से दूर प्रवास या अलगाव देने वाला होता है | द्वादश भाव मोक्ष स्थान होने के कारण जातक आध्यात्म में रुचि लेने वाला हो सकता है |
ज्योतिषाचार्य -कृष्ण मोहन द्विवेदी जी
सम्पर्क सूत्र-8272885218
ज्योतिष में मान्य बारह राशियों के आधार पर जन्मकुंडली में बारह भावों की रचना की गई है। प्रत्येक भाव में मनुष्य जीवन की विविध अव्यवस्थाओं, विविध घटनाओं को दर्शाता है। आइए इनके बारे में विस्तार से जानें।
1. प्रथम भाव : यह लग्न भी कहलाता है। इस स्थान से व्यक्ति की शरीर यष्टि, वात-पित्त-कफ प्रकृति, त्वचा का रंग, यश-अपयश, पूर्वज, सुख-दुख, आत्मविश्वास, अहंकार, मानसिकता आदि को जाना जाता है।
2. द्वितीय भाव : इसे धन भाव भी कहते हैं। इससे व्यक्ति की आर्थिक स्थिति, परिवार का सुख, घर की स्थिति, दाईं आँख, वाणी, जीभ, खाना-पीना, प्रारंभिक शिक्षा, संपत्ति आदि के बारे में जाना जाता है।
3. तृतीय भाव : इसे पराक्रम का सहज भाव भी कहते हैं। इससे जातक के बल, छोटे भाई-बहन, नौकर-चाकर, पराक्रम, धैर्य, कंठ-फेफड़े, श्रवण स्थान, कंधे-हाथ आदि का विचार किया जाता है।
4. चतुर्थ स्थान : इसे मातृ स्थान भी कहते हैं। इससे मातृसुख, गृह सौख्य, वाहन सौख्य, बाग-बगीचा, जमीन-जायदाद, मित्र छाती पेट के रोग, मानसिक स्थिति आदि का विचार किया जाता है।
5. पंचम भाव : इसे सुत भाव भी कहते हैं। इससे संतति, बच्चों से मिलने वाला सुख, विद्या बुद्धि, उच्च शिक्षा, विनय-देशभक्ति, पाचन शक्ति, कला, रहस्य शास्त्रों की रुचि, अचानक धन-लाभ, प्रेम संबंधों में यश, नौकरी परिवर्तन आदि का विचार किया जाता है।
6. छठा भाव : इसे शत्रु या रोग स्थान भी कहते हैं। इससे जातक के शत्रु, रोग, भय, तनाव, कलह, मुकदमे, मामा-मौसी का सुख, नौकर-चाकर, जननांगों के रोग आदि का विचार किया जाता है।
सातवाँ भाव : विवाह सौख्य, शैय्या सुख, जीवनसाथी का स्वभाव, व्यापार, पार्टनरशिप, दूर के प्रवास योग, कोर्ट कचहरी प्रकरण में यश-अपयश आदि का ज्ञान इस भाव से होता है। इसे विवाह स्थान कहते हैं।
आठवाँ भाव : इस भाव को मृत्यु स्थान कहते हैं। इससे आयु निर्धारण, दु:ख, आर्थिक स्थिति, मानसिक क्लेश, जननांगों के विकार, अचानक आने वाले संकटों का पता चलता है।
नवाँ भाव : इसे भाग्य स्थान कहते हैं। यह भाव आध्यात्मिक प्रगति, भाग्योदय, बुद्धिमत्ता, गुरु, परदेश गमन, ग्रंथपुस्तक लेखन, तीर्थ यात्रा, भाई की पत्नी, दूसरा विवाह आदि के बारे में बताता है।
दसवाँ भाव : इसे कर्म स्थान कहते हैं। इससे पद-प्रतिष्ठा, बॉस, सामाजिक सम्मान, कार्य क्षमता, पितृ सुख, नौकरी व्यवसाय, शासन से लाभ, घुटनों का दर्द, सासू माँ आदि के बारे में पता चलता है।
ग्यारहवाँ भाव : इसे लाभ भाव कहते हैं। इससे मित्र, बहू-जँवाई, भेंट-उपहार, लाभ, आय के तरीके, पिंडली के बारे में जाना जाता है।
बारहवाँ भाव : इसे व्यय स्थान भी कहते हैं। इससे कर्ज, नुकसान, परदेश गमन, संन्यास, अनैतिक आचरण, व्यसन, गुप्त शत्रु, शैय्या सुख, आत्महत्या, जेल यात्रा, मुकदमेबाजी का विचार किया जाता हैll
ज्योतिषाचार्य कृष्ण मोहन द्विवेदी
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🌸ज्योतिष जिज्ञासा🌸
वेदों के 6 अंक बताए गए है जिनमें से ज्योतिष शास्त्र को नेत्र माना गया है (ज्योतिषं नेत्र मुच्यते) इसका अभिप्राय है ज्योतिष वेदो का नेत्र है जिस प्रकार से हम लोग बिना नेत्र के कोई भी कार्य करने में संपूर्ण समर्थ नहीं होते ठीक उसी प्रकार बिना ज्योतिष ज्ञान के हम वैदिक विज्ञान शास्त्र ज्ञान हमारा अधूरा ही रहता है ज्योतिष अपने आप में अथाह सागर की तरह है जिसमें गुरु कृपा से प्राप्त उस समुद्र से जो किंचित ज्ञान के मोती हमें प्राप्त हुए हैं वह मोती आप सब ज्योतिष के जिज्ञासु सुधीजनों के समक्ष प्रस्तुत करता हूं।
ज्योतिष के प्रसिद्धतम 3 विषय कहे गए हैं
1प्रथम गणित
2 द्वितीय फलित
3 तृतीय मुहूर्त
आइए हम सब फलित के विषय में जानते हैं फलादेश में कुंडली चक्र होता है जिसे 12 भागों में विभक्त किया गया है।
जिसके क्रमश नाम है -
प्रथम तनु भाव यानी कि शरीर हमारा।
द्वितीय धन भाव ।
तृतीय पराक्रम भाव।
चतुर्थ सुख भाव ।
पंचम विद्या भाव संतान भाव ।
छठा शत्रु भाव ।
सप्तम पत्नी जीवनसाथी का भाव ।
अष्टम मृत्यु भाव ।
नवम भाग्य भाव ।
दशम कर्म भाव ।
एकादश आय भाव ।
द्वादश व्यय भाव ।
🌸श्री सीताराम🌸
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