Adarsh Ayurvedic Pharmacy
Mr. Deepak Kumar the talented expert Vaidya belongs to the dynasty of renowned Veteran Vaidya. Adars Service to humanity is service to God. Governor, Shri B.
This is the principle doctrine of “GMP Certified Adarsh Ayurvedic Aushdhalaya, Kankhal.” This Aushdhalaya has been rendering free services to the poor and the needy. Deepak Kumar the talented expert Vaidya belongs to the dynasty of renowned Veteran Vaidya (Late) Shri Lallu Ji, and Late Shri Vijay Kumar Ji who laid the foundation of Adarsh Ayurvedic Aushdhalaya (Regd) in 1947. It is worth rememberi
🍃 *Arogya*🍃
*प्याज के रस से दोबारा बाल उगाने का रामबाण उपाय, टेस्टेड और सफल तरीका, इसको अपनाएँ और लहराते बाल पाएँ*
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*प्याज का रस नये बालो को उगाये :*
प्याज के रस में गंजो के घने बाल, झड़ते बालो को जड़ से मजबूत और सफ़ेद बालो को काला करने का चमत्कारीक गुण पाया जाता है।खुबसूरत बाल हर कोई चाहता है लेकिन व्यस्त दिनचर्या के चलते बालों का ख्याल रखना नामुकिन होता जा रहा है. घर पर बालों को धोना ही कई महिलाओं को अखरता है जिसके लिए वह महंगे पार्लर में जा कर हेयर स्पा आदि लेती हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं बालों की समस्याओं के लिए आपके घर में एक रामबाण इलाज मौजूद है।
बालों का झड़ना, असमय सफेदी, रूसी की समस्या तो आम हो गई है. बालों की इन उलझनों के लिए प्याज एक वरदान है! जी हाँ, प्याज आपके बालों को झड़ने, रुसी, सफेदी और गंजे होते सिर की समस्याओं को दूर करती है।प्याज वैसे तो भारत में बहुत आम वरतों में होने वाला पदार्थ है। प्याज में सल्फर(Sulfur) नामक मिनरल भरपूर मात्र में होता है , जो के बालों के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। एक आम सा प्याज आपके बालों के बढ़ने की रफ़्तार को दोगुना तक बढ़ा सकता है।
*जानते है कैसे काम आता है प्याज, हमारे बालों को घना और लम्बा करने में :*
इस प्रक्रिया में हम आपको बतायेंगे के केसे एक लाल रंग का प्याज भूरे रंग के बालों का उगना और बालों का झडना रोक सकता है। हमारे बालों का विकास हमारे जींस (Genes) पर निर्भर करता है , लेकिन कई कारणों की वजेह से हमारे बालों का विकास रुक जाता है या कम हो जाता है। यह विधि आप के लिए लाभदायक तो होगी ही बल्कि आगे चल कर आपके बचों को भी लाभ देगी।
*प्रयोग करने की विधि :*
बालों को झड़ने से रोकने के लिए बालों पर प्याज़ के प्रयोग का सबसे बेहतरीन तरीका प्याज का रस के रूप में प्रयोग करना है।3-5 प्याज छीलें और उन्हें अच्छे से पीस लें। इस पेस्ट को अपने हाथों से निचोड़कर इसका रस निकाल लें।अब इस रस को अपने सिर पर तथा बालों पर लगाएं।अब इस रस को सिर पर आधे घंटे तक रहने दें एवं एक हलके शैम्पू का प्रयोग करके इसे धो दें।हफ्ते में 3 बार इस पद्दति का इस्तेमाल करने से मनचाहे परिणामों की प्राप्ति होगी। तुरंत अच्छे परिणाम पाने की आशा ना करें क्योंकि प्राकृतिक उपचारों में काफी समय लगता है।
*दोबारा से बालों को उगाए प्याज का रस और शहद का उपचार :*
एक कटोरी में 2 चम्मच शहद लें और इसमें एक चौथाई कप प्याज का रस डालें। इन दोनों को अच्छे से मिलाएं एवं सिर पर मसाज करते हुए धीरे धीरे लगाएं।बेहतरीन परिणामों के लिए इस प्रक्रिया का प्रयोग हफ्ते में 3 बार करें।
*प्याज, ऑलिव ऑयल और नारियल तेल पैक :*
इस पैक को बनाने के लिये कुछ प्याज ले कर पीस लीजिये और उसका रस निकाल लीजिये। उसमें चम्मच ऑलिव ऑयल और नारियल तेल मिलाइये।इस मिश्रण को बालों में लगाइये, जड़ों में इस तेल को न लगाएं।इसे 2 घंटे तक लगा रहने के बाद शैंपू से धो लें। इस पैक को आप रोज लगा सकते हैं।
*प्याज, बियर और नारियल तेल :*
बियर और नारियल तेल के साथ प्याज के गूदे को मिलाइये और बालों में लगा लीजिये।
इस मिश्रण को 1 घंटे तक बालों में रखना है इसके बाद शैंपू कर लेना है।इससे बलों में शाइन आएगी और वह घने दिखेगें।
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*6 तरीके घर से मक्खी-मच्छर-चूहे दूर रखने के*
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*1. चूहों से मुक्ति*
चूहों को पिपरमिंट की गंध बिल्कुल पसंद नहीं होती. अगर घर में चूहे उत्पात मचा रहे हैं तो रूई के कुछ टुकड़ों को पिपरमिंट में डालकर उनके होने की संभावित जगह पर रख दें. इसकी स्मेल से उनका दम घुटेगा और वे म र जाएंगे.
*2. कॉकरोच से राहत*
काली-मिर्च, प्याज और लहसुन को पीसकर मिला लें और इस पेस्ट में पानी डालकर एक सॉल्यूशन तैयार कर लें. इस सॉल्यूशन को उन जगहों पर छिड़कें, जहां कॉकरोच बहुत ज्यादा हैं. इसकी तेज गंध से वे भाग जाएंगे.
*3. मक्खी से मुक्ति*
मक्खियों को दूर रखने के लिए कोशिश करें कि घर साफ और दरवाजे बंद रहें. बावजूद इस मक्खियां घर में आ जाएं तो कॉटन बॉल को किसी तेज गंध वाले तेल में डुबोकर दरवाजे के पास रख दें. तेल की गंध से मक्खियां दूर रहती हैं और इस उपाय को आजमाएंगे तो वे आपके घर से तुरंत भाग जाएंगी.
*4. खटमल*
प्याज का रस खटमल को मा रने की नैचुरल दवा है. इसकी स्मेल से उनकी सांस बंद हो जाती है और ये तुरंत म र जाते हैं.
*5 छिपकली*
यह एक सबसे आसन tarika है छिपकली को घर से भागने का | 5-6 मोर के पंख (Peacock Feathers) को ले कर दीवाल पर चिपका दें और छिपकली कुछ ही दिनों में गायब हो जायेगी | छिपकली में सजह प्रवती होती है की कैसे अपने दुश्मनो / शिकारियों से बचना है | मोर (Peacock) छिपकली को खाते है, इसलिए छिपकली मोर के पंख को देख कर ही भाग जायेगी | अगर आपको मोर पंख नहीं मिल रहे है तो कोई और पंछी के पंख को इस्तेमाल कर सकते हैं |
*6. चूहे*
पोदीने का तेल(peppermint oil) का इस्तेमाल करने से भी चूहा भागता है। तेल के कुछ बूंद को रुई में लगा कर उस जगह पर रख दे जहाँ से चूहा घर में प्रवेश करते है ।इसके तेज smell से चूहा घर के अन्दर नहीं आता है । आप पोदीने का पौधा भी घर के बाहर लगा सकते है ।
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*माइग्रेन (आधे सिर का दर्द) MIGRAINE/HEMICRANIA*
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इस रोग से पीड़ित रोगी के सिर में बहुत तेज दर्द होता है तथा यह दर्द सिर के एक भाग में होता है। इस रोग का इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से किया जा सकता है।
*माइग्रेन (आधे सिर में दर्द) रोग होने का लक्षण:-*
इस रोग से पीड़ित रोगी के सिर के आधे भाग में तेज दर्द होता है तथा सिर में दर्द होने के साथ-साथ रोगी को उल्टी होने की इच्छा भी होती है। इसके अलावा रोगी को चिड़चडाहट तथा दृष्टिदोष भी उत्पन्न होने लगता है। इस रोग का प्रभाव अधिकतर निश्चित समय पर होता है।
*माइग्रेन (आधे सिर में दर्द) रोग होने का कारण-*
*1.* माइग्रेन (आधे सिर में दर्द) रोग रोगी व्यक्ति को दूसरे रोगों के फलस्वरूप हो जाता है जैसे- नजला, जुकाम, शरीर के अन्य अंग रोग ग्रस्त होना, पुरानी कब्ज आदि।
*2.* स्त्रियों को यदि मासिकधर्म में कोई गड़बड़ी हो जाती है तो इसके कारण स्त्रियों को माइग्रेन रोग (आधे सिर में दर्द) हो जाता है।
*3.* आंखों में दृष्टिदोष तथा अन्य रोग होने के कारण भी माइग्रेन रोग (आधे सिर में दर्द) हो जाता है।
*4.* यकृत (जिगर) में किसी प्रकार की खराबी तथा शरीर में अधिक कमजोरी आ जाने के कारण व्यक्ति को माइग्रेन रोग (आधे सिर में दर्द) हो जाता है।
*5.* असंतुलित भोजन का अधिक उपयोग करने के कारण रोगी को माइग्रेन रोग (आधे सिर में दर्द) हो सकता है।
*6.* अधिक श्रम-विश्राम करने, शारीरिक तथा मानसिक तनाव अधिक हो जाने के कारण भी यह रोग व्यक्तियों को हो सकता है।
*7.* औषधियों का अधिक उपयोग करने के कारण भी माइग्रेन रोग (आधे सिर में दर्द) हो जाता है।
*माइग्रेन रोग से पीड़ित व्यक्ति का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-*
*1.* इस रोग से पीड़ित रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा से इलाज करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को रसाहार (चुकन्दर, ककड़ी, पत्तागोभी, गाजर का रस तथा नारियल पानी) आदि का सेवन भोजन में करना चाहिए और इसके साथ-साथ उपवास रखना चाहिए।
*2.* माइग्रेन रोग (आधे सिर में दर्द) से पीड़ित रोगी को अधिक मात्रा में फल, सलाद तथा अंकुरित भोजन करना चाहिए और इसके बाद सामान्य भोजन का सेवन करना चाहिए।
*3.* रोगी व्यक्ति को अपने भोजन में मेथी, बथुआ, अंजीर, आंवला, नींबू, अनार, अमरूद, सेब, संतरा तथा धनिया अधिक लेना चाहिए। माइग्रेन रोग (आधे सिर में दर्द) से पीड़ित रोगी को भोजन संबन्धित गलत आदतों जैसे- रात के समय में देर से भोजन करना तथा समय पर भोजन न करना आदि को छोड़ देना चाहिए।
*4.* रोगी व्यक्ति को मसालेदार भोजन का उपयोग नहीं करना चाहिए तथा इसके अलावा बासी, डिब्बाबंद तथा मिठाइयों आदि का सेवन भी नहीं करना चाहिए।
*5.* माइग्रेन (आधे सिर में दर्द) रोग में रोगी व्यक्ति को कुछ दिनों तक तुलसी के पत्तों का रस शहद के साथ सुबह के समय में चाटना चाहिए तथा इसके अलावा दूब का रस भी सुबह के समय में चाट सकते हैं। जिसके फलस्वरूप माइग्रेन रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
*6.* माइग्रेन रोग (आधे सिर में दर्द) का इलाज करने के लिए पीपल के कोमल पत्तों का रस रोगी व्यक्ति को सुबह तथा शाम सेवन करने के लिए देने के फलस्वरूप माइग्रेन रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
*7.* माइग्रेन रोग का इलाज करने के लिए रोगी व्यक्ति के माथे पर पत्ता गोभी का पत्ता प्रतिदिन बांधना चाहिए, जिसके फलस्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
*8.* प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा नाक से भाप देकर रोगी व्यक्ति के माइग्रेन रोग को ठीक किया जा सकता है। नाक से भाप लेने के लिए सबसे पहल एक छोटे से बर्तन में गर्म पानी लेना चाहिए। इसके बाद रोगी को उस बर्तन पर झुककर नाक से भाप लेना चाहिए। इस क्रिया को कुछ दिनों तक करने के फलस्वरूप माइग्रेन रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
*9.* माइग्रेन रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकर के स्नान भी हैं जिन्हे प्रतिदिन करने से रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है। ये स्नान इस प्रकार हैं-रीढ़स्नान, कुंजल, मेहनस्नान तथा गर्मपाद स्नान।
*10.* माइग्रेन (आधे सिर में दर्द) रोग का इलाज करने के लिए प्रतिदिन ध्यान, शवासन, योगनिद्रा, प्राणायाम या फिर योगासन क्रिया करनी चाहिए। इसके फलस्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है
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*सोने की सबसे अच्छी और बुरी पोजीशन*
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हम हर रोज जिस पोजीशन में सोते हैं उनका हमारी सेहत पर काफी असर होता है। इन पोजीशन के फायदे के साथ-साथ नुकसान भी होते हैं। जानें किस पोजीशन में सोने के क्या फायदे हैं और क्या नुकसान हैं।
*सोयें सही, रहें सही*
जिस तरह पर्याप्त नींद हमारे सेहत के लिए बहुत जरूरी है उसी तरह सोने का तरीका भी हमारे सेहत को प्रभावित करता है। कई बार गलत तरीके से सोने से हमारे दिमाग के साथ-साथ मूड पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसलिए जरूरी है कि अपने सोने के तरीके का खास खयाल रखें। अगर हम अच्छी तरह सोते हैं तो सुबह तरोताजा उठते हैं। अच्छी नींद हमें कई तकलीफों से दूर रखती हैं। इससे हमारी कमर, गर्दन और रीढ़ की हड्डी सही रहती है। इससे इन हिस्सों में दर्द नहीं होता। आइए जानें कि किस तरह से सोने के क्या फायदे हैं और क्या नुकसान हैं।
*तकिये का सहारा*
करवट लेकर सोना जिसमें आपके घुटने मुड़े हुए हों। आपके दोनों घुटनों के बीच में तकिया हो। इसके अलावा अगर आप सीधा लेटते हैं तो अपने दोनों घुटनों के नीचे तकिया रखकर सोयें। बॉडी पिलो आपकी रीढ़ की हड्डी का कुदरती कर्व बनाये रखने में मदद करते हैं। इससे हमारी पीठ में दर्द नहीं होता।
*सिर का तकिया भी है जरूरी*
सिर के नीचे लगाया जाने वाला तकिया भी महत्वपूर्ण होता है। अगर आप करवट लेकर सोते हैं, तो तकिया सिर और गर्दन को सही सपोर्ट देने वाला होना चाहिये। इससे रीढ़ की हड्डी को भी सपोर्ट मिलता रहता है। यह तकिया कमर के बल सोने वालों के सिर के नीचे लगने वाले तकिये से थोड़ा मोटा होना चाहिये। कमर के बल सोने वालों का तकिया आपकी गर्दन और पलंग के बीच लगना चाहिये और सिर आगे की ओर नहीं झुका होना चाहिये।
*मैटर्स हों सही*
आपका बिस्तर भी सही होना चाहिये। आपका मैटर्स आपके शरीर को पूरा सहारा देने वाला होना चाहिये। इस पर सोते समय आपके शरीर के अलग-अलग पार्टस पर ज्यादा जोर नहीं पड़ना चाहिये। अगर बिस्तर आरामदेह हो तो आपको नींद अच्छी आती है।
*बुरी पोजीशन*
कई बार आपने महसूस किया होगा कि सुबह उठकर आपके शरीर में दर्द होता है। आपकी गर्दन, सिर और बदन में दर्द होता है। इसकी बड़ी वजह आपकी सोने की पोजीशन भी हो सकती है। तो जितना जरूरी आपके लिए यह जानना है कि कैसे सोना सही है, उतना ही जरूरी यह जानना भी है कि आपको किस पोजीशन में सोने से बचना चाहिये।
*पेट के बल सोने से बचें*
पेट के बल सोने से बचना चाहिये क्योंकि इससे आपकी लोअर बैक पर अतिरिक्त खिंचाव पड़ता है। और साथ ही गर्दन और कंधे की पॉश्चर भी ज्यादा जोर पड़ता है।
*घुटने छाती से लगाकर सोना*
कुछ लोग बच्चों की तरह घुटने अपनी छाती से लगाकर सोते हैं। यह फीटस या भ्रूण पोजीशन भी कहते हैं। ऐसी पोजीशन में सोने से आपकी कमर पर ज्यादा जोर पड़ता है। आपकी कमर में दर्द होने लगता है। इसके साथ ही आपकी गर्दन भी लगातार झुकी रहने के कारण उसमें भी दर्द हो सकता है।
*सिर के नीचे हाथ न लगायें*
सिर के नीचे हाथ लगाकर न सोयें। इससे आपके हाथ की मांसपेशियों में तो दर्द होता ही है साथ ही साथ सिर और गर्दन की मांसपेशियों पर भी अधिक जोर पड़ता है।
*पीठ के बल सोने के नुकसान*
कई बार लोग पीठ के बल सोते हैं उनमें खर्राटे की समस्या बढ़ जाती है। जब आप इस अवस्था में सोते हैं तो इससे जीभ पीछे की तरफ हो जाती है। तालू के पीछे यूव्यल (अलिजिह्वा - तालू के पीछे थोड़ा-सा लटका हुआ मांस) पर जाकर लग जाती है, जिससे सांस लेने और छोड़ने में रुकावट आने लग जाती है। इससे सांस के साथ आवाज और वाइब्रेशन होने लगता है।
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*गर्भनिवारक योग*
*(Contraceptive formulae)*
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प्रसवकाल में यदि पेट में दर्द बहुत अधिक हो, बच्चे को जन्म होने में देर हो तो निम्नलिखित प्रयोग करना चाहिए।
*चिकित्सा:*
*1. ऊंटकटेरी:*
ऊंटकटेरी को पीसकर स्त्री के सिर, तालु में लेप करें इससे बच्चे का जन्म तुरंत हो जाता है। बच्चा होने के तुरंत बाद इस दवा को तुरंत निकालकर फेंक देना चाहिए क्योंकि इससे हानि होने की आशंका होती है। यह गर्भ तक को बाहर निकाल देती है।
*2. अपामार्ग:*
अपामार्ग (चिरचिटा) को तीन अंगुल की मात्रा में उखाड़कर स्त्री की कमर में एक छोर बांधकर उसी छोर में एक तागा जिसमें दवा बीच में बंधी हो, दवा का सिरा स्त्री की योनि में रखना चाहिए। उस तागे का एक सिरा पेडू (नाभि) के नीचे बांध देते हैं और दूसरा सिरा कांख में बांध देते हैं। दवा को योनि में रखा रहने देते हैं। इस बूटी के इस प्रकार प्रयोग करने पर गर्भ का बच्चा बाहर आ जाएगा। बच्चे के पैदा होने पर दवा को निकालकर फेंक देना चाहिए।
*3. गाजर के बीज:*
गाजर के बीज और कबूतर की विष्टा को आग में डालकर योनि में धुंआ दें। इससे गर्भ बाहर निकल जाता है। सांप की केंचुली का धुंआ देने से मृतक गर्भ भी बाहर हो जाता है।
*4. बथुवा:*
बथुआ के बीज 20 ग्राम की मात्रा लेकर 500 मिलीलीटर पानी में पकाते हैं। इसे आधा रहने पर छानकर गर्म-गर्म ही औरत को पिला दें। इससे गर्भ बाहर आ जाएगा। एक इन्द्रायन (इडोरन) को पीसकर 50 ग्राम पानी में पका लें। पक जाने पर इसे निचोड़कर रस निचोड़ लें। रूई का फोहा इस पानी में भिगोकर योनि में बांधना चाहिए। इससे मृतक बच्चा भी गर्भ से बाहर आ जाएगा। यदि इडोरन ताजी हो तो पकाने की जरूरत नहीं है। इसके रस को गर्म करके सेवन करना चाहिए।
*5. ढाक:*
ढाक के बीज पीसकर एक चम्मच की मात्रा में एक चौथाई चम्मच हींग के साथ ऋतुस्राव (माहवारी) शुरू होने के दिन से चार दिन तक सेवन करने से गर्भधारण करने की संभावना नगण्य होती है।
*6. अरीठे:*
जिस गर्भवती महिला या जिसकी डिलीवरी हो चुकी हो उसका मस्तक भारी होकर घूमने लगता है, आंखों के आगे अंधेरा छा जाता है और दान्त चिपक जाते हैं, उसे समझ लेना चाहिए कि उसे अनन्तवात या नन्दवायु-रोग हो गया है। उसकी आंख में अरीठे के फेन का अंजन करना चाहिए और दो-तीन दिन तक घी अथवा मक्खन आंखों में लगाना चाहिए।
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*नाड़ी परीक्षण*
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किसी भी व्यक्ति का शरीर का तापमान की जानकारी लेना हो बिना किसी भी थर्मामीटर या किसी भी अन्य यंत्र के तो नीचे लिखे तरीके से जानकारी ले सकते है ।
पुरुष की नाड़ी परीक्षण हमेशा दाहिनी हाथ से किया जाता है और महिला की बायी हाथ से।
अगर किस भी व्यक्ति का शरीर का
60-65 पल्स है तो शरीर का तापमान 98 डिग्री फ़रेनहाएट
70 पल्स है तो 99 डिग्री फ़रेनहाएट तापमान
80 पल्स है तो 100 डिग्री तापमान
90 पल्स = 101 डिग्री फ़रेनहाएट
100 पल्स = 102 डिग्री फ़रेनहाएट
110 पल्स = 103 डिग्री फ़रेनहाएट
120 पल्स = 104 डिग्री फ़रेनहाएट
130 पल्स = 105 डिग्री फ़रेनहाएट
140 पल्स = 106 डिग्री फ़रेनहाएट
यानि हर 10 स्पंदन बढ़ने पर 1 डिग्री तापमान शरीर का बढ़ेगा
गर्भ में बच्चा का पल्स 140 से 150 होगा
सबसे अच्छा पल्स 70 से 74 के बीच होना चाहिए ।
उम्र के हिसाब से ब्लड प्रेसर नापने का अद्भुत तरीका । बिना किसी भी यंत्र के ।
गर्भ में बच्चा का बी पी माँ के बी पी के बराबर होगा
जन्म से 5 साल तक बी पी का हाईयर लिमिट 81 और लोअर लिमिट 45
5 साल से 10 साल तक बी पी का हाईयर लिमिट 90 और लोअर 50
10 साल से 15 साल तक हाई 100 और लोअर 62
15 साल से 20 साल तक हाई बी पी 110 और लोअर बी पी 71
20 साल से 30 साल तक हाई बी पी 120 और लोअर बी पी 80
30 साल से 35 साल तक हाई बी पी 124 और लोअर बी पी 82
35 साल से 40 साल तक हाई बी पी 126 और लोअर बी पी 83
40 साल से 50 साल तक हाई बी पी 128 और लोअर बी पी 84
50 साल से 60 साल तक हाई बी पी 132 और लोअर बी पी 86
60 साल से 65 साल तक हाई बी पी 136 और लोअर बी पी 88
65 साल से 80 साल तक हाई बी पी 140 और लोअर बी पी 90
80 साल से ऊपर तक हाई बी पी 145 और लोअर बी पी 92
किसी किसी का बी पी में + 5 या – 5 का अंतर हो सकता है तो किसी भी प्रकार की समस्या नहीं होगी । उस से ज्यादा अंतर आने पर व्यक्ति बीमार कहलाएगा ।
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*1 महीने पीएं मेथी का पानी, शरीर के हर पार्ट में आएगा ये चमत्कारिक बदलाव*
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घर पर आसानी से मिल जाने वाली मेथी में इतने सारे गुण है कि आप सोच भी नहीं सकते है। यह सिर्फ एक मसाला नहीं है बल्कि एक ऐसी दवा है जिसमें हर बीमारी को खत्म करने का दम है। आइए आज हम आपको मेथी के पानी के कुछ चमत्कारिक तरीके बताते हैं।
*करें ये काम*
एक पानी से भरा गिलास ले कर उसमें दो चम्मच मेथी दाना डाल कर रातभर के लिये भिगो दें। सुबह इस पानी को छानें और खाली पेट पी जाएं। रातभर मेथी भिगोने से पानी में एंटी इंफ्लेमेटरी और एंटी ऑक्सीडेंट गुण बढ जाते हैं। इससे शरीर की तमाम बीमारियां चुटकियों में खत्म हो जाती है। आइए आपको बताते है कि कौन सी है वो खतरनाक 7 बीमारियां जो भग जाएंगी इस पानी को पीने से।
*वजन होगा कम*
यदि आप भिगोई हुई मेथी के साथ उसका पानी भी पियें तो आपको जबरदस्ती की भूख नहीं लगेगी। रोज एक महीने तक मेथी का पानी पीने से वजन कम करने में मदद मिलती है।
*गठिया रोग से बचाए*
इसमें एंटीऑक्सीडेंट और एंटी इंफ्लेमेटरी गुण होने के नाते, यह मेथी का पानी गठिया से होने वाले दर्द में भी राहत दिलाती है।
*कोलेस्ट्रॉल लेवल घटाए*
बहुत सारी स्टडीज़ में प्रूव हुआ है कि मेथी खाने से या उसका पानी पीने से शरीर से खराब कोलेस्ट्रॉल का लेवल कम होकर अच्छ़े कोलेस्ट्रॉल का लेवल बढ़ता है।
*ब्लड प्रेशर होगा कंट्रोल*
मेथी में एक galactomannan नामक कम्पाउंड और पोटैशियम होता है। ये दो सामग्रियां आपके ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में बड़ी ही सहायक होती हैं।
*कैंसर से बचाए*
मेथी में ढेर सारा फाइबर होता है, जो कि शरीर से विषैले तत्वों को निकाल फेंकती है और पेट के कैंसर से बचाती है।
*किडनी स्टोन*
अगर आप भिगोई हुई मेथी का पानी 1 महीने तक हर सुबह खाली पेट पियेंगे, आपकी किडनी से स्टोन जल्द ही निकल जाएंगे।
*मधुमेह*
मेथी में galactomannan होता है जो कि एक बहुत जरुरी फाइबर कम्पाउंड है। इससे रक्त में शक्कर बड़ी ही धीमी गति से घुलती है। इस कारण से मधुमेह नहीं होता।
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*ग्रीष्मकालीन खाद्य पदार्थ जिन्हें अपने दैनिक आहार में शामिल करें:*
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*1. सत्तू*
सत्तू आम तौर पर चने से बना होता है और कहा जाता है कि इसका शरीर पर तुरंत शीतलन प्रभाव पड़ता है। यह अघुलनशील फाइबर में उच्च है जो इसे आपकी आंतों के लिए अच्छा बनाता है, और इसमें ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है जो इसे मधुमेह रोगियों के लिए अच्छा बनाता है। एक उत्तम शीतलन एजेंट और एक पावर-पैक एनर्जाइज़र, आपको अपने आहार में सत्तू को अवश्य शामिल करना चाहिए।
*2. आंवला (भारतीय करौदा)*
आंवला, या भारतीय आंवला, एक लोकप्रिय और स्वस्थ फल बनाता है, और कई पोषण लाभों के लिए जाना जाता है। यह खट्टा-कड़वा फल गर्मी के दिनों में एक बेहतरीन कूलेंट का काम करता है। क्या आप जानते हैं कि आंवले के रस में किसी भी अन्य रस की तुलना में लगभग 20 गुना अधिक विटामिन-सी होता है? तो, इस गर्मी में आपको स्वस्थ रखने के लिए आंवले का मुरब्बा या आंवला का रस पीना चाहिए।
*3. घी*
आयुर्वेद के अनुसार, घी स्वस्थ वसा से भरा होता है जो हमारे शरीर को चलते रहने में मदद करता है। इसके अलावा, गर्मियों में हमारा शरीर सूख जाता है, इसलिए रोजाना आधा चम्मच घी का सेवन आंतरिक नमी को संतुलित करने में मदद कर सकता है। घी एक 'मीठा भोजन' के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह मजबूत होता है, पाचन में सहायता करता है और तीनों शारीरिक दोषों की अति-गतिविधि को शांत करता है।
*4. अदरक*
ज़िंगी रूट में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो अत्यधिक गर्म और चिड़चिड़ी त्वचा को कम करने में मदद करते हैं। वास्तव में, अदरक का रस पीने से पेट की परेशानी को कम करने में मदद मिल सकती है। अदरक की चाय या जूस का सेवन करें; स्वस्थ रहने के लिए आप इसे रोजाना अपनी करी में शामिल कर सकते हैं।
*5. क्षारीय सब्जियां*
पाचन की प्रक्रिया के दौरान, हमारा पेट गैस्ट्रिक एसिड का स्राव करता है जो खाद्य पदार्थों को तोड़ने में मदद करता है। कभी-कभी अस्वास्थ्यकर जीवनशैली और खान-पान की आदतों के कारण शरीर का अम्लीय स्तर बढ़ जाता है, जिससे एसिडिटी और एसिड रिफ्लक्स हो जाता है। एसिड के बढ़े हुए स्तर की संभावना को कम करने के लिए, आपको हरी पत्तेदार सब्जियां, शकरकंद, चुकंदर, गाजर, नट्स, प्याज और लहसुन जैसी जड़ वाली सब्जियां जैसे क्षारीय खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
*6. नारियल*
नारियल पानी गर्मियों में सबसे अच्छे इलेक्ट्रोलाइट्स में से एक है। यह ताज़ा अमृत न केवल आपके शरीर की प्रणाली को फिर से जीवंत करने में मदद करता है, बल्कि आपको अत्यधिक गर्मी में निर्जलीकरण से भी बचाता है। जिंक, मैग्नीशियम, कैल्शियम, पोटेशियम और सोडियम जैसे आवश्यक खनिजों की उपस्थिति के लिए धन्यवाद। नारियल पानी पीने या अपनी करी और सब्जियों में नारियल मिलाने से आप तरोताजा रहेंगे।
*7. पानी से भरपूर फल*
ग्रीष्मकाल में तरबूज, जामुन, अंगूर, अनानास, आड़ू, आम, आदि जैसे पानी से भरपूर फलों का भी स्वागत है। ये फल आपको निर्जलित होने से बचाएंगे और सुनिश्चित करेंगे कि आप तरोताजा रहें। आप इन फलों को स्वादिष्ट जूस में मिलाकर या ऐसे ही खा सकते हैं।
*8. अश्वगंधा, ब्राह्मी और तुलसी जैसी जड़ी-बूटियां*
ये तीन ठंडी जड़ी बूटियां आपके शरीर को ठंडक पहुंचाने में मदद करती हैं। अश्वगंधा को शरीर में सूजन को कम करने के लिए जाना जाता है जो अस्थमा और गठिया जैसी स्थितियों का इलाज करता है। ब्राह्मी शरीर की नसों को शांत कर सकती है और शरीर में तनाव को कम कर सकती है। तुलसी, या पवित्र तुलसी, एक विषहरण और सफाई एजेंट के रूप में कार्य करती है। यह अत्यधिक गर्मी में आपके शरीर के सिस्टम को ठंडा करने के लिए भी जाना जाता है। प्रभावी परिणाम देखने के लिए आप हर्बल चाय पी सकते हैं।
तो आइए जानते हैं गर्मियों में क्या खाएं और किन चीजों से परहेज करें। इन सुपरफूड्स को अपने बचाव में लाएं और एक स्वस्थ और तरोताजा शरीर सुनिश्चित करें।
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*शुगर (मधुमेह) के लिये सरल उपचार*
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गेहूँ का भूसा पच्चास ग्राम रोज शाम को एक जग या लोटे में पानी डालकर भिगो दें पानी इतनी मात्रा में डालें की सुबह लगभग सौ मिलीलीटर छानने पर मिल जाये !! अब सुबह इसको सूती कपड़े से छानकर बिना कुछ मिलाये चाय की तरह घूँट घूँट कर पिये !!
छः महीने के नियमित प्रयोग से शुगर लेवल मेनटेन होकर इस महारोग से हमेसा के लिये छुटकारा मिल जायेगा !!
*नोट*
इस प्रयोग के सुरुआत में आप जो भी दवा ले रहे है !! वह लेते रहे !! एक महीने के प्रयोग से आपकी अलग से ले रही दवाऔं से छुटकारा मिल जायेगा बस फिर इसी का प्रयोग करें व रोग से मुक्ति पांयें !!
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*गूलर ऐसी औषिधि है जो पुरुष और स्त्री के सभी गुप्त रोगों में करती है चमत्कारिक फायदे*
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गूलर का पेड़ भारत में हर जगह पाया जाता ही। यह एक हमेशा हरा रहने वाला पेड़ है। इसे उदंबर, गूलर, गूलार उमरडो, कलस्टर फिग आदि नामों से जाना जाता है। इसका लैटिन नाम फाईकस ग्लोमेरेटा कहा जाता है।
गूलर का पेड़ बड़ा होता है तथा यह उत्तम भूमि में उगता है। इसका तना मोटा होता है। गूलर के पत्ते छोटे कोमल से होते हैं। इसका फूल गुप्त होता है। इसमें छोटे-छोटे फल होते हैं जो कच्चे होने पर हरे और पकने पर लाल हो जाते हैं। फल स्वाद में मधुर होते हैं। फलों के अन्दर कीट होते है जिनके पंख होते हैं। इसलिए इसे जन्तुफल भी कहा जाता है। इसकी छाल भूरी सी होती है। यह फाईकस जाति का पेड़ है और इसके पत्ते तोड़ने पर लेटेक्स या दूध निकलता है।
गूलर के फल खाने योग्य होते है परन्तु उनमें कीढे होते हैं इसलिए इसको अच्छे से साफ़ करके ही प्रयोग किया जाना चहिये।
*आयुर्वेदिक गुण*
गूलर शीतल, रुखा, भारी, मधुर, कसैला, घाव को ठीक करने वाला, रंग सुधारने वाला, पित्त-कफ और रक्त विकार को दूर करने वाला है।
यह पाचक और वायुनाशक है। यह रक्तप्रदर, रक्तपित्त तथा खून की उल्टी को दूर करने वाला है। इसका दूध टॉनिक है जो की शरीर को बल देता है।
गूलर को आयुर्वेद में हजारों साल से चिकित्सीय रूप से प्रयोग किया जाता रहा है। इसमें खून साफ़ करने के, गर्भाशय को शुद्ध करने के, वीर्य वर्धक और डायबिटीज को दूर करने के गुण पाए जाते हैं। औषधीय प्रयोग के लिए इसके पत्ते, छाल, जड़ तथा दूध सभी का इस्तेमाल किया जाता है।
गूलर का प्रयोग विविध रोगों के उपचार में प्रभावी है। यह शरीर को स्वस्थ्य और मजबूत बनाता है। यह दिल के रोगों, मधुमेह, वात-विकार, प्रमेह विकार, प्रदर, गर्भपात, आदि की बहुत ही कारगर औषधि है। गूलर के पके हुए फल खाने योग्य होते हैं। इनका सेवन हृदय रोग, ज्वर, चक्कर आना, कमजोरी आदि को दूर करता है।
*1.पेचिश Dysentery :*
गूलर की कोमल पत्तियों का 10 से 15 मिलीलीटर रस सेवन करें।
*2. कमजोरी, बल, वीर्य की कमी Weakness :*
गूलर की छाल का पाउडर + मिश्री को बराबर मात्रा में मिलाकर रख लें।
इसे रोज़ दस ग्राम की मात्रा में दूध के साथ सेवन करें।
इससे कमजोरी दूर होती है और शरीर में बल और वीर्य की बढ़ोतरी होती है।
*3. वीर्य का पतलापन :*
गूलर की छाल का पाउडर 1 भाग + बरगद की कोपलें 1 भाग + मिश्री/शक्कर 2 भाग, मिलाकर नियमित 10 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ दिन में दो बार सेवन करने से वीर्य गाढ़ा होता है।
ऐसा 2 महीने तक नियमित किया जाना चाहिए।
*4. शुक्राणुओं की कमी Low s***m count :*
गूलर के दूध की 20 बूंदे + छुहारे के साथ खाने से शुक्राणु की संख्या बढ़ती है।
*5. सफ़ेद पानी/ श्वेत प्रदर Leucorrhoea :*
गूलर के सूखे फल + मिश्री, को शहद के स्थ चाटने से लाभ होता है।
*6. प्रदर, प्रमेह Urinary disorders :*
गूलर के ताज़े फल का रस + शहद/शक्कर, के साथ सुबह और शाम लेने से प्रदर में लाभ होता है।
*7. कफ, कफ की अधिकता Excessive cough :*
गूलर के दूध latex को मिश्री + शहद के साथ, दिन में तीन बार खाएं।
*8. गर्भ से असामान्य स्राव Abnormal discharge from uterus :*
गूलर की छाल का काढा बनाकर मिश्री मिलाकर, रोज़ कुछ सप्ताह तक नियमित सेवन करें।
*9. बच्चों का सूखा रोग :*
गूलर का दूध, बताशे में रख कर खाने से लाभ होता है।
*10. ह्रदयविकार :*
गूलर के पत्ते क रस नियमित पियें।
*11. लीवर के रोग, वात-विकार :*
गूलर के पत्ते का रस नियमित पियें।
*12. प्रदर रोग Leucorrhoea, कमजोरी, वीर्यपात Spermatorrhea :*
गूलर के पत्ते का रस एक कप की मात्रा मे नियमित पियें।
*13. जलने पर गूलर की पत्ती का लेप :*
प्रभावित हिस्से पर लगायें।
*14. रक्त स्राव, चोट Bleeding :*
खून निकलने पर पत्ते का रस प्रभावित हिस्से पर लगाने से खून का निकलना बंद होता है।
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*आलस को कैसे दूर भगायें*
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आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। आलस्य को दूर करना सफलता हासिल करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यहां दिये उपाय आलस्य को अपने रास्ते से दूर करने में मददगार साबित हो सकते है।
*1. आलस पर काबू :*
आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। आलस्य ऐसा दोष है जिससे मनुष्य अपने वर्तमान और भविष्य दोनों को नष्ट कर देता है। आलस्य समय-समय पर सभी को प्रभावित करता है। और हर कोई इस आलसीपन को दूर करने के उपायों को ढूढ़ते रहते हैं। आलस्य को दूर करना सफलता हासिल करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यहां पर दिये उपाय चीजों को सही तरीके से करने और आलस्य को अपने रास्ते से दूर करने में मददगार साबित हो सकती है।
*2. टाल-मटोल छोड़ें :*
टाल मटोल वास्तव में आलस का ही प्रतिरूप है। जब भी कोई काम आता है, हम उसे यह कहकर टाल देते हैं कि इसे थोड़ी देर बाद कर लूंगा। लेकिन यह हमारी आदत लत बन जाती है। आज का काम कल पर और कल का काम परसों पर डालने वाली आदत को छोड़कर हम इस लत से आसानी से छुटकारा पा सकते हैं।
*3. लाभ और परिणाम के बारे में सोचें :*
अपने कार्यों के लाभ पर ध्यान केंद्रित करें और आलस्य पर काबू पाने के लिए खुद को पुरस्कृत करें। इसके अलावा इस बारे में सोचें कि आलस्य का शिकार होने पर क्या-क्या हो सकता है। अपने आपको प्रेरित करने के लिए उन सभी पर नजर
*4. व्यवस्थित तरीके से करें :*
एक ही समय में एक साथ बहुत सारे काम करने की स्थिति में आप खुद को हतोत्साहित महसूस करने लगते हैं। लेकिन इन सब चीजों को व्यवस्थित कर आप काम को आसान बना सकते हैं। कुछ भी हो सभी के लिए आयोजन बहुत जरूरी होता है।
*5. प्रारंभ :*
शुरुआत करना थोड़ा मुश्किल होता है। लेकिन शुरूआत के लिए और चीजों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए स्वयं को प्रेरित करें। आप दैनिक लक्ष्य बना कर और ध्यान को भटकने से रोककर शुरूआत के लिए स्वयं को तैयार कर सकते हैं। साथ ही खुद को बताओ कि आप शुरूआत के लिये तैयार
*6. सोने का समय :*
सोना का एक नियमित शेड्यूल होना बहुत महत्वपूर्ण है। यह पता करना बहुत जरूरी है कि आपको रात में पर्याप्त नींद आती है या नहीं। सप्ताहांत सहित, प्रत्येक दिन एक ही समय में बिस्तर पर सोने और एक ही समय पर उठने की आदत बनाये। कम से कम आठ घंटे की नींद जरूर लें। समय के साथ, आप इतने सक्षम हो जायेगें कि बिना अलार्म घड़ी के स्वयं ही यह सब कर पायेगें।
*7. हल्का भोजन :*
एक भारी यानी फैट, शुगर और कार्बोहाइड्रेट से भरपूर भोजन से आपको आलस महसूस होता है। इसके अलावा आपको ग्लाइसेमिक खाद्य पदार्थों से भी दूर रहना चाहिए क्योंकि यह रक्त शर्करा के बढ़ने के साथ आपमें अस्थायी ऊर्जा को बढ़ावा देता है। ऐसी ऊर्जा कुछ मिनट में दूर होकर आपको थकान महसूस करवाती है।
*8. एक्सरसाइज :*
एक्सरसाइज, दिमाग सहित शरीर के हर हिस्से के लिए बहुत लाभकारी होती हैं। जब आप नियमित रूप से एक्सरसाइज करते हैं तो आप खुद को अधिक ऊर्जावान महसूस करते है। रक्त परिसंचरण बेहतर और चयापचय कार्यों भी अच्छी तरह से होते है। इसलिए नियमित रूप से एक्सरसाइज करने की कोशिश करें, आप सिर्फ 15 मिनट की एक्सरसाइज को अपने रूटीन में शामिल करें।
*9. टास्क को छोटा करें :*
अपने नियत कार्य को पूरा करने के लिए समय ले, खासतौर पर यदि अगर आपका टास्क बहुत बड़ा है तो। छोटी चीजों बहुत अधिक सुलभ और अधिक साध्य लगती हैं। नियत कार्य को भागों में तोड़कर आप उस पर अच्छे से नियंत्रण पा सकते हैं और यह दिखने में भी बहुत आरामदेह लगती है।
*10. प्रेरणा के लिए सफल लोगों को देखें :*
सफल लोगों को आलस्य कभी जीत नहीं सकता है। आप खुद को कुछ तरीकों से ऐसे लोगों के साथ संबद्ध करने का प्रयास करें। जानें कि दैनिक चुनौतियों के साथ लड़कर भी सफलता को कैसे हासिल करते हैं और वह किस तरह आलस को अपने दूर करने में कामयाब होते हैं।
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*बवासीर (Piles)*
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बवासीर के रोग का इलाज करने से पहले यह जानना आवश्यक है कि इसके होने का क्या कारण होता है? तथा इसके लक्षण क्या है?
वैसे प्राचीनकाल से ही देखा जाए तो सभ्यता के विकास के साथ-साथ बहुत सारे असाध्य रोग भी पैदा हुए हैं। इनमें से कुछ रोगों का इलाज तो आसान है लेकिन कुछ रोग ऐसे भी हैं जिनका इलाज बहुत मुश्किल से होता है। इन रोगों में से एक रोग बवासीर भी है। इस रोग को हेमोरहोयड्स भी कहते हैं। बवासीर को उर्दू में अर्श कहते हैं। यह रोग 2 प्रकार का होता है।
बवासीर 2 प्रकार की होती हैं। एक भीतरी बवासीर तथा दूसरी बाहरी बवासीर।
*भीतरी बवासीर:-*
भीतरी बवासीर हमेशा धमनियों और शिराओं के समूह को प्रभावित करती है। फैले हुए रक्त को ले जाने वाली नसें जमा होकर रक्त की मात्रा के आधार पर फैलती हैं तथा सिकुड़ती है। इन भीतरी मस्सों से पीड़ित रोगी वहां खुजली और गर्मी की शिकायत करते हैं। यह बवासीर रोगी को तब होती है जब वह मलत्याग करते समय अधिक जोर लगाता है। बच्चे को जन्म देते समय यदि स्त्री अधिक जोर लगाती है तब भी उसे यह बवासीर हो जाती है। इस रोग से पीड़ित रोगी अधिकतर कब्ज से पीड़ित रहते हैं।
*भीतरी बवासीर के लक्षण:-*
इस बवासीर के कारण मलत्याग करते समय रोगी को बहुत तेज दर्द होता है।
इस बवासीर के कारण मस्सों से खून निकलने लगता है।
*बाहरी बवासीर:-*
बाहरी बवासीर मलद्वार के बाहरी किनारे पर होती है। इस बवासीर के अनेक आकार होते हैं तथा इस बवासीर के मस्से एक या कई सारे हो सकते हैं। इस बवासीर के मस्सों के गुच्छे भी हो सकते हैं।
*बाहरी बवासीर के लक्षण:-*
यह बवासीर तब होती है जब मलद्वार के पास की कोई नस फैल जाती है तथा फैलकर फट जाती है। फूली हुई नस के तंतु सूज जाते हैं। नस की कमजोर दीवारों से खून निकलकर जम जाता है तथा कठोर हो जाता है। रोगी को गुदा के पास दबाव और सूजन महसूस होती है और थोड़ी देर के लिए तेज दर्द होने लगता है।
*दोनों प्रकार के बवासीर रोग के लक्षण निम्नलिखित हैं-*
अन्दरूनी बवासीर में गुदाद्वार के अन्दर सूजन हो जाती है तथा यह मलत्याग करते समय गुदाद्वार के बाहर आ जाती है और इसमें जलन तथा दर्द होने लगता है।
बाहरी बवासीर में गुदाद्वार के बाहर की ओर के मस्से मोटे-मोटे दानों जैसे हो जाते हैं। जिनमें से रक्त का स्राव और दर्द होता रहता है तथा जलन की अवस्था भी बनी रहती है।
इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति को बैठने में परेशानी होने लगती है जिसके कारण से रोगी ठीक से बैठ नहीं पाता है।
बवासीर 2 प्रकार की होती है एक खूनी तथा दूसरी बिना खून की।
एक बवासीर में तो मस्सों में से खून निकलता है और यह खून निकलना तब और तेज हो जाता है जब रोगी व्यक्ति शौच करता है।
इस रोग के कारण व्यक्ति को मलत्याग करने में बहुत अधिक कष्टों का सामना करना पड़ता है।
*दोनों प्रकार की बवासीर होने के कारण निम्नलिखित हैं-*
बवासीर रोग होने का मुख्य कारण पेट में कब्ज बनना है। 50 से भी अधिक प्रतिशत व्यक्तियों को यह रोग कब्ज के कारण ही होता है। इसलिए जरूरी है कि कब्ज होने को रोकने के उपायों को हमेशा अपने दिमाग में रखें।
कब्ज के कारण मलाशय की नसों के रक्त प्रवाह में बाधा पड़ती है जिसके कारण वहां की नसें कमजोर हो जाती हैं और आंतों के नीचे के हिस्से में भोजन के अवशोषित अंश अथवा मल के दबाव से वहां की धमनियां चपटी हो जाती हैं तथा झिल्लियां फैल जाती हैं। जिसके कारण व्यक्ति को बवासीर हो जाती है।
यह रोग व्यक्ति को तब भी हो सकता है जब वह शौच के वेग को किसी प्रकार से रोकता है।
भोजन में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी होने के कारण बिना पचा हुआ भोजन मलाशय में इकट्ठा हो जाता है और निकलता नहीं है, जिसके कारण मलाशय की नसों पर दबाव पड़ने लगता है और व्यक्ति को बवासीर हो जाती है।
शौच करने के बाद मलद्वार को गर्म पानी से धोने से भी बवासीर रोग हो सकता है।
तेज मसालेदार, अति गरिष्ठ तथा उत्तेजक भोजन करने के कारण भी बवासीर रोग हो सकता है।
दवाईयों का अधिक सेवन करने के कारण भी यह रोग व्यक्ति को हो सकता है।
रात के समय में अधिक जगने के कारण भी व्यक्ति को बवासीर का रोग हो सकता है।
*दोनों प्रकार की बवासीर रोग से पीड़ित व्यक्ति का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-*
बवासीर रोग का इलाज करने के लिए रोगी को सबसे पहले 2 दिन तक रसाहार चीजों का सेवन करके उपवास रखना चाहिए। इसके बाद 2 सप्ताह तक बिना पके हुआ भोजन का सेवन करके उपवास रखना चाहिए।
रोगी व्यक्ति को सुबह तथा शाम के समय में 2 भिगोई हुई अंजीर खानी चाहिए और इसका पानी पीना चाहिए। फिर इसके बाद त्रिफला का चूर्ण लेना चाहिए। ऐसा कुछ दिनों तक करने से रोगी का बवासीर रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
2 चम्मच काला तिल चबाकर ठंडे पानी के साथ प्रतिदिन सेवन करने से पुराना से पुराना बवासीर भी कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
कुछ ही दिनों तक प्रतिदिन गुड़ में बेलगिरी मिलाकर खाने से रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है और बवासीर रोग ठीक हो जाता है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को कभी भी चाय, कॉफी, मिर्च मसाले आदि गर्म तथा उत्तेजक चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।
इस रोग से पीड़ित रोगी को रात को सोते समय प्रतिदिन गुदा के मस्सों पर सरसों का तेल लगाना चाहिए। फिर इसके बाद अपने पेड़ू पर मिट्टी की पट्टी करनी चाहिए और इसके बाद एनिमा लेना चाहिए तथा मस्सों पर मिट्टी का गोला रखना चाहिए।
यदि इस रोग से पीड़ित रोगी के मस्सों की सूजन बढ़ गई हो या फिर मस्सों से खून अधिक निकल रहा है तो मिट्टी की पट्टी को बर्फ से ठंडा करके फिर इसको मस्सों पर 10 मिनट तक रखकर इस पर गर्म सेंक देना चाहिए। इसके बाद इन पर मिट्टी की पट्टी रखने से कुछ ही दिनों में मस्से मुरझाकर नष्ट हो जाते हैं और उसका यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को कटिस्नान तथा शाम के समय में मेहनस्नान करना चाहिए तथा इसके साथ-साथ प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार इलाज कराना चाहिए। जिसके परिणाम स्वरूप कुछ ही दिनों के बाद रोगी का बवासीर रोग ठीक हो जाता है।
दोनों प्रकार की बवासीर को ठीक करने के लिए कई प्रकार के आसन है जिनको नियमपूर्वक करने से कुछ ही दिनों के बाद रोगी का रोग ठीक हो जाता है।
दोनों प्रकार के बवासीर रोग को ठीक करने के लिए कुछ उपयोगी आसन हैं जैसे- नाड़ीशोधन, कपालभांति, भुजंगासन, प्राणायाम, पवनमुक्तासन, शलभासन, सुप्तवज्रासन, धनुरासन, शवासन, सर्वांगासन, मत्स्यासन, हलासन, चक्रासन आदि।
रोगी के बवासीर रोग में होने वाले दर्द तथा जलन को कम करने के लिए वैसलीन में बराबर मात्रा में कपूर मिलाकर बवासीर के मस्सों पर लगाने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।
यदि बवासीर के रोगी के मस्सों से खून नहीं आ रहा हो तो उसे गरम पानी से कटिस्नान कराना चाहिए और यदि मस्सों से खून निकल रहा हो तो ठंडे पानी से कटिस्नान करना चाहिए।
सुबह, शाम या फिर रात के समय में रोगी को ठंडे पानी से स्नान कराना चाहिए और फिर प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार उसका इलाज कराना चाहिए।
रोगी व्यक्ति को कम से कम दिन में एक बार ठंडे पानी में कपड़ा भिगोकर लंगोट बांधनी चाहिए और फिर इस पर ठंडे पानी की फुहार देनी चाहिए और फिर प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार इलाज कराना चाहिए।
रात को 100 ग्राम किशमिश पानी में भिगो दें और इसे सुबह के समय में उसी पानी में मसल दें। इस पानी को रोजाना सेवन करने से कुछ ही दिनों में बवासीर रोग ठीक हो जाता है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को रात को सोते समय केले खाने चाहिए इससे रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है और धीरे-धीरे बवासीर रोग ठीक होने लगता है।
रोगी व्यक्ति को अपने भोजन में चुकन्दर, जिमीकन्द, फूल गोभी और हरी सब्जियों का बहुत अधिक उपयोग करना चाहिए।
दोनों प्रकार की बवासीर रोग से पीड़ित रोगी को सुबह तथा शाम को 1 गिलास मट्ठे में 1 चम्मच भुना जीरा पाउडर डालकर सेवन करना चाहिए।
आधा गिलास पानी में 1-1 चम्मच जीरा, सौंफ व धनिए के बीज डालकर उबालें । जब यह पानी उबलते-उबलते आधा रह जाए तो इसे छान लें। फिर इस मिश्रण में 1 चम्मच देशी घी मिलाएं और इसको प्रतिदिन 2 बार सेवन करें। इससे बवासीर रोग ठीक हो जाता है।
दोनों प्रकार के बवासीर रोग से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले इस रोग के होने के कारणों को खत्म करना चाहिए फिर इसका इलाज प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार कराना चाहिए।
रोगी व्यक्ति को यदि पेट में कब्ज बन रही हो तो इसका इलाज सही ढंग से कराना चाहिए क्योंकि बवासीर रोग होने का सबसे बड़ा कारण कब्ज होता है।
रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन सुबह-शाम 15 से 30 मिनट तक बवासीर के मस्सों पर भाप देनी चाहिए तथा इसके बाद कटिस्नान करना चाहिए इससे रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन सुबह तथा शाम के समय में स्नान करना चाहिए जिससे रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है और इसके साथ-साथ प्राकृतिक नियमों का पालन करना चाहिए तभी यह रोग ठीक हो सकता है।
इस प्रकार से रोगी का इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से करने से कुछ ही दिनों में उसका बवासीर रोग ठीक हो जाता है
*बवासीर का विभिन्न औषधियों द्वारा उपचार*
*1. जीरा* एक ग्राम तथा पिप्पली का चूर्ण आधा ग्राम को सेंधा नमक मिलाकर छाछ के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से बवासीर ठीक होती है |
*2.* जामुन की गुठली और आम की गुठली के अंदर का भाग सुखाकर इसको मिलाकर चूर्ण बना लें | इस चूर्ण को एक चम्मच की मात्रा में हल्के गर्म पानी या छाछ के साथ सेवन से खूनी बवासीर में लाभ होता है |
*3.* पके अमरुद खाने से पेट की कब्ज़ दूर होती है और बवासीर रोग ठीक होता है |
*4.* बेल की गिरी के चूर्ण में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर , 4 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ सेवन करने से खूनी बवासीर में लाभ मिलता है |
*5.* खूनी बवासीर में देसी गुलाब के तीन ताज़ा फूलों को मिश्री मिलाकर सेवन करने से आराम आता है |
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