Mission God
उस संत का नाम वताओ जो दहेज जैसी कुप्रथा को समाप्त कर रहे है ❓
कुल कितनी योनियाँ होती है?
A. 76 लाख
B. 84 लाख
C. 86 लाख
D. 74 लाख
अपना उत्तर हमे कमेंट बॉक्स में बताए।
Sadhna TV Satsang 05-12-2023 || Episode: 2790 || Sant Rampal Ji Maharaj Live Satsang
Shraddha TV Satsang 05-12-2023 || Episode: 2401 || Sant Rampal Ji Maharaj Live Satsang
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#जीनेकीराह
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#जीनेकीराह
हम को जन्म देने व मारने में किस प्रभु का स्वार्थ है?
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सभी आत्माएं इस पृथ्वीलोक में फंस गई हैं, जो कि काल के 21 ब्रह्मांडों में एक है। जहा मनुष्य लगातार जन्म और जैसा कि भगवान काल को प्रतिदिन 1 मृत्यु के चक्र में हैं। पाठकों को इन 21 ब्रह्मांडों की स्थिति को समझने के लिए सृष्टि रचना को जानने की आवश्यकता है ।
लाख मानव शरीरधारी जीव के आहार का श्राप मिला है , जिस कारण वह नहीं चाहता कि कोई भी आत्मा इस ब्रह्मांड से बच जाए क्योंकि हम उसके भोजन हैं। इसलिए यह काल भगवान यही चाहता है कि आत्माएं मोक्ष प्राप्त न कर सके और अपने निवास स्थान सतलोक ना जा सके । यह सुनिश्चित करने के लिए, आत्मा को अपने जाल में उलझाए रखने के लिए, काल ने अपने ब्रह्मांड में कई जाल बनाए हैं। आगे पढ़ें कौन है काल? इस काल को अन्य धर्मों में शैतान के रूप में संबोधित किया गया है।
https://www.jagatgururampalji.org/hi/creation-of-nature-universe/all-religions/
Live : Nepal 1 TV 05-12-2023 || Episode: 1413 || Sant Rampal Ji Maharaj Satsang Live
Live : Sudarshan News 05-12-2023 || Episode:849 || Sant Rampal Ji Maharaj Satsang
#दीपक फौजी हुआ संत #रामपाल जी महाराज जी का फैन. पखंडियो को,पाखण्डियो का इलाज है #रामपाल जी महाराज
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#ज्ञानगंगा
● शिवलिंग की पूजा कैसे प्रारंभ हुई?
● क्या शिवलिंग की पूजा से कोई लाभ संभव है?
जानने के लिए हिन्दू साहेबान! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण पुस्तक को Sant Rampal Ji Maharaj App से डाउनलोड करके पढ़ें।
*सर्व प्रभुओं की आयु मानव वर्ष अनुसार*
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*इंद्र* - 31 करोड़ लगभग
👉evidence : श्रीविष्णुपुराणे प्रथमेंऽशे अष्टमोऽध्यायः
नवाँ अध्याय
(दुर्वासाजीके शापसे इन्द्रका पराजय)
*शची*(14 इन्द्रौं
की पत्नी) - 4 अरब लगभग
👉Evidence : मुक्ति बोध पुस्तक -अध्याय "पारख का अंग", वाणी सं 200-202, पृष्ठ 244
*ब्राह्मा जी* - 31 लाख करोड़ लगभग
*विष्णु जी* - 2 अरब लाख लगभग
*शिवजी* - 15 लाख अरब लगभग
👉Evidence: श्रीमद् देवीभागवत । स्कंध 3 अध्याय 4 श्लोक 42
विष्णु जी बोले - हे माता ! ब्रह्मा, मैं तथा शिव तुम्हारे ही प्रभाव से जन्मवान हैं, हम नित्य नहीं हैं, फिर अन्य इंद्रादि दूसरे देवता किस प्रकार नित्य हो सकते हैं ? समस्त चराचर जगत् की जननी तथा सनातन प्रकृति रूपा आप ही नित्य हैं ।।
*श्रीमद् देवीभागवत। स्कंध 4 अध्याय 20 श्लोक 19-25
हे राजन् ! ग्रन्थकारों ने देवताओं को अमर तथा निर्जर (बुढ़ापारहित) कहा है, किंतु वे निश्चय ही केवल नाम से अमर हैं, अर्थ से कभी वैसे नहीं। जिन पर सदा उत्पत्ति, स्थिति और विनाश की अवस्थाएँ रहती हैं, वे अमर और निर्जर कैसे हो सकते हैं ? जब वे भी व्यसन तथा क्रीडा में आसक्त रहते हैं, तब उन्हें देव भी क्यों कहा जाय ? इसमें संदेह नहीं कि सामान्य जीवों के भाँति इनका भी क्षण में उत्पत्ति - नाश होता है, इनकी उपमा जल के कीटों और मच्छरों से क्यों न दी जाय ? आयु समाप्त होने पर वे भी मर जाते हैं, तब उन्हें अमर न कहकर 'मर' क्यों न कहें? सामान्य मनुष्य सौ वर्ष की आयु वाले होते हैं, उनसे अधिक आयु वाले देवता हैं और उनसे अधिक आयु वाले ब्रह्मा कहे हैं। उनसे भी अधिक आयु वाले शिव हैं और उनसे भी अधिक आयुवाले विष्णु हैं। अन्त में वे भी नष्ट होते हैं और फिर से क्रमशः उत्पन्न होते हैं ।।
शिव महापुराण। रुद्र संहिता, खंड 1, अध्याय 10, श्लोक 16 - 19
सदाशिव बोले- अब त्रिदेव की आयु सुनो, चार हजार युग का ब्रह्मा का एक दिन होता है और इसी क्रम से रात भी जानो। तीस दिन का एक महीना और बारह महिने का एक वर्ष होता है। इस प्रकार से ब्रह्मा की सौ वर्ष की आयु होती है और ब्रह्मा का एक वर्ष विष्णु का एक दिन होता है। वह भी इसी प्रकार सौ वर्ष जीवेंगे तथा विष्णु का एक वर्ष रुद्र के एक दिन के समान होता है, वह भी इसी क्रम से सौ वर्ष तक स्थित रहेंगे ।।
*ब्रह्म काल* - 25 खरब करोड़ लगभग
👉Evidence : कबीरसागर 274
गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5, अध्याय 10 श्लोक 2
*परब्रह्म* - 2 पदम अरब लगभग
👉Evidence : (प्रमाण श्री विष्णु पुराण भाग 1 अध्याय 9 श्लोक 53 पृष्ठ 32 पर)
गीता अध्याय 8 का श्लोक 17
सहस्त्रायुगपर्यन्तम्, अहः,यत्,ब्रह्मणः, विदुः,रात्रिम्,
युगसहस्त्रान्ताम्, ते, अहोरात्राविदः, जनाः।।17।।
अनुवाद: (ब्रह्मणः) परब्रह्म का (यत्) जो (अहः) एक दिन है उसको (सहस्त्रायुगपर्यन्तम्) एक हजार युग की अवधि वाला और (रात्रिम्) रात्रि को भी (युगसहस्त्रान्ताम्) एक हजार युग तक की अवधि वाली (विदुः) तत्वसे जानते हैं (ते) वे (जनाः) तत्वदर्शी संत (अहोरात्राविदः) दिन-रात्रि के तत्वको जाननेवाले हैं।
केवल हिन्दी अनुवाद: परब्रह्म का जो एक दिन है उसको एक हजार युग की अवधि वाला और रात्रि को भी एक हजार युग तक की अवधि वाली तत्वसे जानते हैं वे तत्वदर्शी संत दिन-रात्रि के तत्वको जाननेवाले हैं।
नोट:- गीता अध्याय 8 श्लोक 17 के अनुवाद में गीता जी के अन्य अनुवाद कर्ताओं ने ब्रह्मा का एक दिन एक हजार चतुर्युग का लिखा है जो उचित नहीं है। क्योंकि मूल संस्कृत में सहंसर युग लिखा है न की चतुर्युग। तथा ब्रह्मणः लिखा है न कि ब्रह्मा। इस श्लोक 17 में परब्रह्म के विषय में कहा है न कि ब्रह्मा के विषय में तत्वज्ञान के अभाव
*पूर्णब्रह्म कबिर्देव*- अजर-अमर अविनाशी
👉Evidence : हाड़ चाम लहु ना मेरे कोई जाने सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभय पद दाता, मैं हूँ कबीर अविनाशी।।
एक ब्रह्मा की आयु 100 (सौ) वर्ष है,किस तरह के 100 वर्ष की है। गौर से नीचे देखिये
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ब्रह्मा का एक दिन = 1008 (एक हजार) चतुर्युग तथा इतनी ही 1008 (एक हज़ार)चतुर्युग की रात्री।
दिन+रात = 2016 (दो हजार सोलह) चतुर्युग।
चार युगो ( (चतुर्युग) की आयु
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सतयुग की आयु = 17,28,000 वर्ष
(17 लाख 28 हजार)
द्वापर युग की आयु = 12,96,000 वर्ष
(12 लाख 96 हज़ार)
त्रेता युग की आयु = 8,64,000 वर्ष
(8 लाख 64 हज़ार)
कलयुग की आयु = 4,32,000 वर्ष
(4 लाख 32 हज़ार)
चार युगौं (चतुर्युग)
की आयु = 43,20,000 वर्ष
43 लाख 20 हज़ार वर्ष
{नोट - ब्रह्मा जी के एक दिन में 14 इन्द्रों का शासन काल समाप्त हो जाता है। एक इन्द्र का शासन काल बहतर चतुर्युग का होता है।
इंद्र की पत्नी शची 14 ईन्द्रो की पत्नी बनती है, फ़िर ये सभी 14 ईन्द्र मर कर गधे बनते है और शची भी मर कर गधी का जीवन प्राप्त करती है।)
इस प्रकार इंद्र का जीवनकाल
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72 चतुर्युग × 43,20,000 = 31,10,40,000
मानव बर्ष
(31 करोड़ 10 लाख 40 हजार मानव वर्ष अनुसार )
शची (14 इंद्रौ की पत्नी) का जीवन काल
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1008 चतुर्युग× 43,20,000 = 4,35,45,60,000 मानव वर्ष
(4 अरब 33 करोड़ 45 लाख 60 हजार मानव वर्ष अनुसार)
इस प्रकार ब्रह्मा जी का एक दिन और रात 2016 चतुर्युग.
1 महीना = 30 गुणा 2016 = 60480 चतुर्युग।
वर्ष = 12 गुणा 60480 = 725760चतुर्युग ।
ब्रह्मा जी की आयु
===========
1 महीना = 30 × 2016 = 60480 चतुर्युग।
वर्ष = 12 × 60480 = 725760चतुर्युग ।
7,25,760 × 100 =7,25,76,000 चतुर्युग × 43,20,000(1चतुर्युग)=31,35,28,32,00,00,000 मानव वर्ष
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कौन सा व्रत करने पर किसका जन्म मिलता है देखिये घट रामायण से 👇👇
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Shraddha TV Satsang 04-12-2023 || Episode: 2400 || Sant Rampal Ji Maharaj Live Satsang
गीता अध्याय 14 का श्लोक 3
मम, योनिः, महत्, ब्रह्म, तस्मिन्, गर्भम्, दधामि, अहम्,
सम्भवः, सर्वभूतानाम्, ततः, भवति, भारत।।3।।
अनुवाद: (भारत) हे अर्जुन! (मम) मेरी (महत्) मूल प्रकृति अर्थात् दुर्गा तो सम्पूर्ण प्राणियोंकी (योनिः) योनि है अर्थात् गर्भाधानका स्थान है और (अहम् ब्रह्म) मैं ब्रह्म-काल (तस्मिन्) उस योनिमें (गर्भम्) गर्भको (दधामि) स्थापन करता हूँ (ततः) उस संयोगसे (सर्वभूतानाम्) सब प्राणियों की (सम्भवः) उत्पत्ति (भवति) होती है। (3)
हिन्दी: हे अर्जुन! मेरी मूल प्रकृति अर्थात् दुर्गा तो सम्पूर्ण प्राणियोंकी योनि है अर्थात् गर्भाधानका स्थान है और मैं ब्रह्म-काल उस योनिमें गर्भको स्थापन करता हूँ उस संयोगसे सब प्राणियों की उत्पत्ति होती है।
अध्याय 14 का श्लोक 4
सर्वयोनिषु, कौन्तेय, मूर्तयः, सम्भवन्ति, याः,
तासाम्, ब्रह्म, महत्, योनिः, अहम्, बीजप्रदः, पिता।।4।।
अनुवाद: (कौन्तेय) हे अर्जुन! (सर्वयोनिषु) सब योनियोंमें (याः) जितनी (मूर्तयः) मूर्तियाँ अर्थात् शरीरधारी प्राणी (सम्भवन्ति) यजुर्वेद अध्याय 40 मन्त्र 10 उत्पन्न होते हैं, (महत्) मूल प्रकृृति तो (तासाम्) उन सबकी (योनिः) गर्भ धारण करनेवाली माता है और (अहम् ब्रह्म) मैं (बीजप्रदः) बीजको स्थापन करनेवाला (पिता) पिता हूँ। (4)
हिन्दी: हे अर्जुन! सब योनियोंमें जितनी मूर्तियाँ अर्थात् शरीरधारी प्राणी यजुर्वेद अध्याय 40 मन्त्र 10 उत्पन्न होते हैं, मूल प्रकृति तो उन सबकी गर्भ धारण करनेवाली माता है और मैं बीजको स्थापन करनेवाला पिता हूँ।
अध्याय 14 का श्लोक 5
सत्त्वम्, रजः, तमः, इति, गुणाः, प्रकृृतिसम्भवाः,
निबध्नन्ति, महाबाहो, देहे, देहिनम्, अव्ययम्।।5।।
अनुवाद: (महाबाहो) हे अर्जुन! (सत्त्वम्) सत्त्वगुण, (रजः) रजोगुण और (तमः) तमोगुण (इति) ये (प्रकृतिसम्भवाः) प्रकृतिसे उत्पन्न (गुणाः) तीनों गुण (अव्ययम्) अविनाशी (देहिनम्) जीवात्माको (देहे) शरीरमें (निबध्नन्ति) बाँधते हैं। (5)
हिन्दी: हे अर्जुन! सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण ये प्रकृतिसे उत्पन्न तीनों गुण अविनाशी जीवात्माको शरीरमें बाँधते हैं।
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