Advocate Amit Singh Sengar

Advocate Amit Singh Sengar is a well known criminal defence lawyer..

24/08/2022

Advocate Amit Singh
President-Indian Moms NGO

19/07/2022
12/07/2022

Advocate Amit Singh President-Indian Moms NGO

13/03/2022

एक रूसी सैनिक और यूक्रेनी बच्ची ।
एक बच्ची अपने देश के लिए अकेले लड़ गई।

13/03/2022

अखिलेश जी की spelling ???

15/02/2022

#मैं_भी_आजाद
Chandra Shekhar Azad National Movement
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27/01/2022

CrPC 1973 की धारा 2-L के मुताबिक, असंज्ञेय अपराध में बिना वारंट पुलिस आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकती. फ्रॉड, धोखाधड़ी, मानहानि वगैरह इसमें आते हैं.

23/01/2022

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13/01/2022

Amit Singh Sengar advocate Highcourt
Criminal/civil/divorce Cases
For query whatsapp on -9826987700
Location all M.P.

03/01/2022

15/12/2021

भारतीय दंड संहिता की धारा 326 के अनुसार सजा का प्रावधान

उस व्यक्ति को जिसने भारतीय दंड संहिता की धारा 326 के तहत अपराध किया है, उसे इस संहिता के अंतर्गत कारावास की सजा का प्रावधान किया गया है, ऐसे व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा दी जा सकती है, या इसके अतिरिक्त साधारण कारावास की सजा हो सकती है, जिसकी समय सीमा को 10 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और इस अपराध में आर्थिक दंड का प्रावधान किया गया है, जो कि न्यायालय आरोप की गंभीरता और आरोपी के इतिहास के अनुसार निर्धारित करता है।

09/12/2021

22/11/2021

13/11/2021

IPC यानी इंडियन पेनल कोड जिसे हिंदी में भारतीय दंड संहिता और उर्दू में ताज इरात-ए-हिन्द कहते हैं. IPC में कुल मिलाकर 511 धाराएं ( Sections) और 23 chapters हैं यानी 23 अध्याओं में बंटा है. 1834 में पहला विधि आयोग (first law of commission) बनाया गया था. इसके चेयरपर्सन लॉर्ड मैकॉले थे.

02/11/2021

🅾️'शाखा और सिंदूर' पहनने से इनकार करने का अर्थ है महिला द्वारा शादी को अस्वीकार करना : गुवाहाटी हाईकोर्ट ने तलाक की अपील स्वीकार की

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🟧फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ एक पति की तरफ से दायर वैवाहिक अपील को गुवाहाटी हाईकोर्ट ने स्वीकार करते हुए कहा है कि 'शाखा (शंख से बनी सफेद चूड़ी) और सिंदूर' पहनने से इनकार करना इस बात का संकेत है कि पत्नी अपनी शादी को स्वीकार नहीं कर रही है। इस मामले में फैमिली कोर्ट ने पति की तरफ से दायर तलाक के आवेदन को खारिज कर दिया था। मुख्य न्यायाधीश अजय लांबा और न्यायमूर्ति सौमित्रा सैकिया की पीठ ने कहा कि हिंदू विवाह की प्रथा के तहत, जब एक महिला हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार शादी करती है और उसके बाद वह 'शाखा और सिंदूर' पहनने से इनकार करती है तो इससे यह प्रतीत होगा कि वह अविवाहित है या फिर उसने अपनी शादी को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है।

🟥 वर्तमान मामले में पीठ ने कहा कि प्रतिवादी-पत्नी ने अपने प्रति-परीक्षण में स्पष्ट रूप से कहा था, ''मैं अभी सिंदूर नहीं पहन रही हूं क्योंकि मैं इस आदमी को अपना पति नहीं मानती हूं।'' इन परिस्थितियों में पीठ ने कहा कि परिवार न्यायालय ने ''उचित परिप्रेक्ष्य में साक्ष्यों का मूल्यांकन नहीं किया है।'' पीठ ने कहा कि- ''प्रतिवादी का इस तरह का स्पष्ट रुख उसके स्पष्ट इरादे की ओर इशारा करता है कि वह अपीलार्थी के साथ अपने वैवाहिक जीवन को जारी रखने के लिए तैयार नहीं है। ऐसी परिस्थितियों में अपीलकर्ता पति का प्रतिवादी पत्नी के साथ वैवाहिक जीवन में बने रहना, प्रतिवादी पत्नी द्वारा अपीलकर्ता और उसके परिवार के सदस्यों का उत्पीड़न माना जाएगा।''

🟫ससुराल वालों के साथ रहने से इनकार करना है क्रूरता के समान इसी बीच पीठ ने कहा कि प्रतिवादी-पत्नी ने अपने ससुराल वालों के साथ रहने से इनकार कर दिया था। उसने वास्तव में एक समझौते किया था जिसके तहत अपीलकर्ता पति को उसे वैवाहिक घर से दूर एक किराए का अलग मकान दिलवाने की आवश्यकता थी। अदालत ने कहा कि एक बेटे (अपीलकर्ता) को उसके परिवार से दूर रहने के लिए मजबूर करना, प्रतिवादी-पत्नी की ओर से क्रूरता का एक कार्य माना जा सकता है।

🟩पीठ ने कहा कि मैंटेनेंस एंड वेल्फेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटिजन एक्ट 2007 के तहत बच्चों द्वारा अपने माता-पिता का रख-रखाव करना अनिवार्य है। इन परिस्थितियों में पीठ ने कहा कि- ''यह देखने में आया है कि फैमिली कोर्ट ने सबूतों पर विचार करने के दौरान इस तथ्य को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया था। जबकि अपीलकर्ता को एक्ट 2007 के प्रावधानों के तहत उसका वैधानिक कर्तव्य पूरा करने से रोका गया है,जो उसका अपनी वृद्ध मां के प्रति बनता है। इस तरह के सबूत क्रूरता का कृत्य साबित करने के लिए पर्याप्त हैं, क्योंकि 2007 अधिनियम के प्रावधानों का पालन न करने के आपराधिक परिणाम होते हैं, जिनमें दंड या कारावास के साथ-साथ जुर्माना किए जाने का भी प्रावधान है।''

⬛अप्रमाणित आपराधिक मामला दायर करना है क्रूरता के समान हाईकोर्ट ने दोहराया कि पति या पति के परिवार के सदस्यों के खिलाफ निराधार आरोपों के आधार पर आपराधिक केस दर्ज करवाना भी क्रूरता के समान है। वर्तमान मामले में, प्रतिवादी-पत्नी ने अपीलकर्ता और उसके परिवार के खिलाफ तीन आपराधिक शिकायतें दर्ज की थीं, जिनमें से एक को खारिज कर दिया गया था।

🟨इस प्रकार रानी नरसिम्हा शास्त्री बनाम रानी सुनीला रानी, 2019 एससीसी ऑनलाइन एससी 1595, मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा करते हुए पीठ ने कहा कि- ''पति और परिवार के सदस्यों के खिलाफ आईपीसी की धारा 498 (ए) आदि के तहत आपराधिक मामले दर्ज करवाना, जिसे बाद में फैमिली कोर्ट द्वारा खारिज कर दिया जाता है, यह पत्नी द्वारा की गई क्रूरता के समान ही है या उसे साबित करने के पर्याप्त है ... यह स्पष्ट है कि इस शादी को जारी रखने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा क्योंकि दोनों पक्षों के बीच वैवाहिक सामंजस्य नहीं रहा है।'' इसलिए अपील को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने तलाक की डिक्री पारित कर दी।

केस शीर्षक ः भाष्कर दास बनाम रेनू दास
केस नंबर : Mat app 20 /2019

03/10/2021

कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने एक अहम फ़ैसले में कहा है कि स्तनपान कराना एक एक मां का अधिकार है.

हुस्ना बानो बनाम स्टेट ऑफ़ कर्नाटक मामले में कोर्ट का कहना था कि संविधान के अनुच्छेद-21 के अनुसार ये एक मां का अधिकार है.

इस मामले में न्यायाधीश कृष्णा एस दीक्षित का कहना था कि जैसे मां का स्तनपान कराने का अधिकार है इसी तरह एक नवजात शिशु का भी मां के दूध पर अधिकार है.

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दरअसल ये मामला कर्नाटक का है जहां एक बच्चे को जन्म देने वाली मां (जेनेटिक मदर) और पालने वाली मां (फॉस्टर मदर) आमने-सामने थीं. ये दोनों मांएं कोर्ट से बच्चे की कस्टडी या उसे रखने के लिए इजाज़त की अपील कर रही थीं. और इस मामले में कोर्ट ने जेनेटिक मदर के पक्ष में फ़ैसला सुनाया.

सुप्रीम कोर्ट में वकील प्रणय महेश्वरी इस फ़ैसले को स्वागत योग्य बताते हुए कहते हैं कि इसे फ़ैसले के तौर पर ही नहीं बल्कि इसे दो पार्टियों के बीच समाधान निकालने वाले नज़रिए से भी देखा जाना चाहिए।
वे कहते हैं, "एक मां ने नौ महीने कोख में बच्चा रखा फिर जन्म दिया. बच्चा कोई वस्तु नहीं है कि उसे एक के बाद दूसरे को दे दिया जाए.
क्या है कहानी?
इस बच्चे का जन्म साल 2020 में बेंगलुरु के एक अस्पताल में हुआ लेकिन वहां से वो चोरी हो गया. इस चोर ने इस बच्चे को सरोगेसी से पैदा हुआ बताकर फॉस्टर पेरेंट्स या पालक माता-पिता को बेच दिया.

लेकिन फिर पुलिस ने चोर को पकड़ा और उसके ज़रिए वो फॉस्टर पेरेंट्स तक पहुंची.

इसके बाद ये मामला कर्नाटक हाईकोर्ट में पहुंचा जहां जन्म देने वाली मां और पालक मां ने बच्चे की कस्टडी या उसे अपने-अपने पास रखने की अपील की।

फॉस्टर मां की तरफ़ से वकील ने ये तर्क दिया कि इस मां ने बच्चे की कई महीनों तक बड़े प्यार से देखभाल की है इसलिए बच्चा रखने का अधिकार उसे दिया जाना चाहिए, साथ ही ये भी कहा कि बच्चे को जन्म देने वाली यानी जेनेटिक मदर के पास पहले से दो बच्चे हैं जबकि फॉस्टर मां के पास एक भी बच्चा नहीं है.

इस दलील पर जन्म देने वाली मां की तरफ़ से वकील ने जवाब में कहा कि फॉस्टर मदर जो कह रही है वो सच हो सकता है लेकिन बच्चे को लेकर दावा पैदा करने वाली मां का ही होना चाहिए.

इस पर कोर्ट का कहना था, ''ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि (इस मामले में)सुंदर बच्चे को बिना किसी ग़लती के मां का दूध और स्तनपान कराने वाली मां को अभी तक बच्चा नहीं मिला है. एक सभ्य समाज में ऐसी चीज़ नहीं होनी चाहिए थी.''

साथ ही कोर्ट ने कहा कि बच्चे का पालन करने वाली की तुलना में बच्चे पर ज्यादा दावा उस मां का है जिसने उसे जन्म दिया है और उसके कारण भी बताए.

कोर्ट का कहना था,'' इस मामले पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय क़ानून पर संक्षिप्त में चर्चा हुई है और उसके मुताबिक ये मान्य होना चाहिए स्तनपान कराना एक मां का अधिकार है और वैसे ही ये एक नवजात का भी अधिकार है.''

लेकिन यहां एक सवाल ये उठता है कि एक सरोगेट मदर के मामले या जो मां अपना बच्चा पैदा होने के बाद गोद देने का फैसला कर चुकी है, उस स्थिति में ये अधिकार किसका होगा?

सरोगेसी के मामले में किसका अधिकार
वकील प्रणय महेश्वरी के अनुसार, "सरोगेसी में सरोगेट मदर और एक दंपति के बीच करार होता है. और करार के अनुसार बच्चे की पैदाइश के बाद सरोगेट मदर को तय किए गए दिन पर दंपति को बच्चा सौंप देना होता है. वे ऐसा करने के लिए क़ानूनी रूप से बाध्य होती हैं. कोई सरोगेट मदर केवल इस आधार पर बच्चे को नहीं रख सकतीं कि वे स्तनपान कराना चाहती हैं. उसे करार के मुताबिक चलना होगा नहीं तो सोरोगेट मदर के ख़िलाफ़ करार के उल्लंघन का मामला दर्ज हो सकता है."

वकील सोनाली करवासरा जून तर्क देती हैं कि सरोगेसी अभी एक बिल की शक्ल में है और वो क़ानून नहीं बना है ऐसे में सरोगेट मदर क़ानूनी अधिकार कैसे मांग सकती है.

उनके अनुसार, "अडॉप्शन या गोद लेने के क़ानून में मां के अधिकारों से ज़्यादा बच्चे के वेल्फ़ेयर को सबसे ज़्यादा अहमियत दी गई है. अगर इसमें ये कहा जाता है कि बच्चे के लिए मां का दूध ज़रूरी है तो वो अधिकार में आएगा. लेकिन अगर आपने बच्चा गोद दे दिया है तो आप उस बच्चे पर अधिकार खो देते हैं. भविष्य में इस पर कोई ऐसा फ़ैसला आ सकता है लेकिन अभी इस पर कुछ नहीं है कि अगर स्तनपान कराने वाली मां ने अपने बच्चे को गोद दे दिया है तो उसके क्या अधिकार होंगे."

वे कहती हैं, "ग्राउंड रूल यही है, अदालतें भविष्य में भी ऐसा कुछ नहीं करेंगी जिसमें बच्चे का वेल्फ़ेयर न हो और जिसको स्तनपान कराने वाली मां के अधिकारों से संतुलन में लाया जा सकता है."

सरोगेट मां की नहीं हो सकती आम मां से तुलना
गुजरात के एक निजी आईवीएफ़ क्लीनिक में डॉक्टर नयना पटेल का कहना है कि दिशानिर्देशों के अनुसार एक सरोगेट मदर बच्चा पैदा होने के छह हफ़्ते तक अपना दूध दे सकती है.

साथ ही वे कहती हैं, "सरोगेट मामले में ये साफ़ होता है कि जेनेटिक्ली बच्चा किसी और का है और वो केवल बच्चे को जन्म दे रही है तो आम मां के साथ उसकी तुलना ही नहीं हो सकती है.''

वो आगे बताती हैं कि एक सरोगेट स्तनपान नहीं करा सकती और ऐसा इसलिए होता है ताकि बच्चे और सरोगेट मदर में कोई बॉंडिंग न बने. ऐसे में सरोगेट मां पंप से निकाल कर बोतल के ज़रिए ही अपना दूध बच्चे को पिलाती है.

डॉ नयना पटेल बताती हैं, "15 दिन तो एक सरोगेट मां बच्चे को अपना दूध दे सकती है और अगर दंपति चाहे तो ये अवधि बढ़ भी सकती है लेकिन ये दोनों की सहमति से ही हो सकता है और इस मामले में कोई एक पक्ष फ़ैसला नहीं ले सकता है क्योंकि ये करार के आधार पर होता है और ये दोनों पार्टियां इसे स्वीकार करती हैं."

साथ ही उनका कहना है कि उनके पास सरोगेसी के ऐसे मामले भी आते हैं जिसमें से 50 फ़ीसदी महिलाएं अब इंड्यूसड लेक्टेशन यानी हार्मोन के ज़रिए स्तनपान शुरू करने की प्रक्रिया अपनाती हैं.

ये महिलाएं सरोगेट मदर के तकरीबन छठे महीने तक पहुंचने पर इस प्रक्रिया की शुरुआत कर देती हैं और ऐसे में कम से कम 40 फ़ीसदी महिलाओं को दूध बनने लग जाता है.

क्या होता है इंड्यूसड लेक्टेशन
मैक्स अस्पताल में प्रिंसिपल कंसल्टेंट और स्त्री रोग विशेषज्ञ, डॉ. भावना चौधरी जानकारी देती हैं कि इंड्यूसड लेक्टेशन वो प्रक्रिया होती है जिसमें एक महिला ने बच्चे को जन्म तो नहीं दिया है लेकिन उसे स्तनपान के लिए कृत्रिम तरीके से तैयार किया जाता है.

और इस प्रक्रिया के तहत इस महिला को हार्मोन और अन्य दवाएं देकर स्तनपान के लिए तैयार किया जाता है. वो बताती हैं कि इस दूध की गुणवत्ता बच्चा पैदा करने वाली मां के दूध जैसी ही होती है.

इसके फायदे और नुक़सान बताते हुए डॉ भावना कहती हैं, "अगर कोई दंपति ने सरोगेसी या दूधमुंहे बच्चे को गोद लिया है तो एक महिला इस कृत्रिम प्रक्रिया को अपनाकर बच्चे को अपना दूध पिला सकती है और दोनों में एक भावनात्मक जुड़ाव भी हो जाता है."

लेकिन चूंकि ये कृत्रिम प्रक्रिया होती है तो महिलाओं के शरीर में जाने वाले ये हार्मोन या दवाओं की वजह से एक महिला के शरीर में थोड़े साइड इफेक्ट्स या दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं.

कर्नाटक में आए इस ताज़ा मामले में फॉस्टर मदर का ये कहना था कि उनके बच्चे नहीं है तो उन्हें बच्चा रखने दिया जाए.

इस पर कोर्ट का कहना था, "बच्चे कोई चल संपत्ति नहीं है और क्योंकि वो संख्या में कम या ज़्यादा हैं तो उस आधार पर उसे जेनेटिक मदर और अजनबी में बांट दिया जाए."

बाद में कोर्ट को बताया गया कि फॉस्टर मदर ने बच्चे की कस्टडी जेनेटिक मदर को दे दी है जिसके बदले में जेनेटिक मां ने फॉस्टर मदर को बच्चे को अपनी इच्छा अनुसार मिलने की अनुमति दे दी है.

इस पर कोर्ट का कहना था, "दो अलग-अलग धर्मों, पृष्ठभूमि से आने वाली इन दोनों महिलाओं ने जो भाव दिखाया है वो आज के ज़माने में बहुत कम ही दिखता है. बहरहाल इस सुंदर बच्चे की कस्टडी को लेकर क़ानूनी लड़ाई एक सुखद नोट पर हमेशा के लिए ख़त्म होती है."

22/09/2021

Only Indian Postal Service can deliver letters.

What? The Indian Post Office Act, 1898 states that only the Indian Postal Service can deliver letters to your postal address. Wondering how the courier industry in India is thriving? Courier companies can circumvent this, however, by calling them ‘documents’, which they are allowed to deliver.

22/09/2021

Home delivery of alcohol.

As illogical as it may sound, in Delhi, you can get a beer and wine home delivered from supermarkets, but the home delivery of other alcoholic beverages is prohibited..

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