Govindam
श्री बाँके बिहारी लाल की जय
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राम सिया राम सिया राम जय जय राम #viral #trending #youtubeshorts #jaigopinath #jaishreeram
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जब दोनों ओर से प्रेम धारा भागीरथी और अलकनंदा के रूप में बहती है तो गंगा उत्पन्न होती है ,और तीर्थराज प्रयाग का निर्माण होता है उसी प्रकार गृहस्थ जीवन में सहयोग ,समर्पण , दायित्व , कर्तव्य , प्रेम आदि दोनो ओर से बहता है तब सालों तपस्या से बाग बनता है और उसके बाद भी अधीरता नहीं बाग बनने में ओर फल देने में अंतर होता है समय लगता है पर अधीर मनुष्य गर्म समोसे को खाते समय ना स्वाद ले पाता है ओर अपना मुँह ओर जला बैठता है ।
धीरे धीरे रे मना , धीरे सब कुछ होय ।
साथ ही अधीर मत होना यदि वृक्ष समय होते ही फल नही पड़े कभी कभी अधिक समय लग जाता है और यदि उसमे फल नही भी आये तो भी वृक्ष छाँव अवश्य देगा ।
संत-शिरोमणि तुलसीदासजी कहते है....
शुभ अरु अशुभ सलिल सब बहही ..सुरसरि को कोऊ अपुनीत न कहही..!!
समरथ को नहि दोष गोसाई..रवि-- पावक--सुरसरि की नाइ..!!
इस घोर कलिकाल में हम जिधर देखते है..माया का ही तांडव-नृत्य हो रहा है..सर्वत्र द्वन्द-ही-द्वन्द व्याप्त है..और इसकी ज्वाला में मानव जल रहा है..!!
सुनहु तात मायाकृत गुन अरु दोष अनेक..गुन यह उभय न देखिहहि,,देखीय सो अविवेक..!!
तो इस मायामय संसार में हम जितने भी गुन और दोष देखते है..वह सिर्फ इस शरीर और संसार के लिए ही है..जैसे नाक से सूंघते है..तो इसमे से नकटी भी निकलती है..कान से सुनते है..तो इसमे से खुत भी निकालता है..कंठ से बोलते है तो काफ भी निकालता है..आँखों से देखते है..तो इसमे से कीचड़ भी निकलती है..शरीर सब सुखो--गुणों--कर्मो का साधन है..फिर भी स्वेद (पसीना) ..मल-मुत्रादी का त्याग करता है..!
तो हर कोई..समर्थ है..गुण और दोष साथ-साथ लिए हुए है..!
यही नश्वरता की पहिचान है..!
सबसे अच्छा गुन तो यहि है..की इन सबको देखा ही न जाय..क्योकि बुराई देखना भी एक अवगुण-अविवेक है..!
परमात्मा तो त्रिगुण-संपन्न होकर इस लोक में साकार है..और त्रिगुणातीत (निर्गुण) होकर निराकार है..! सतोगुण--रजोगुण--तमोगुण..यह बस्तुतः दोषरहित गुण है..लेकिन माया से संसर्ग में आकर
इसमे दोष आ जाता है..!
आवश्यकता है..द्वन्द से परे उठाकर निर्द्वंद परमात्मा तक पहुचने की..!
समरथ..होते हुए भी एक्रथ(एकरस) होने की..केवल भक्ति-मार्ग ही ऐसा मार्ग है..जो..गुणों के दोषों से मुक्त कर सकता है..! गुण अन्दर ही रहते है..क्योकि यह प्राकृत है..अवगुण(दोष) प्रकट होते है..क्योकि यह उदभूत है..जैसे अग्नि के संसर्ग में आने से लकड़ी या कोई भी ज्वलनशील बस्तु जलने लगाती है..वैसे ही..माया के संसर्ग में आने से गुणों की निर्मलता कलुषित होने लगाती है..!
गुण आकर्षित करता है..अवगुण प्रतिकर्षित करता है..!
क्रिया-प्रतिक्रिया का शाश्वत-सिद्धांत सदैव लागू होता है..क्योकि यह संसार द्वंदात्मक है..!.इसलिए गुण और दोष के प्रति निरपेक्ष-भाव रखने वाले सदैव आनंदित रहते है..!
तेरी आस्था तुझे ईश्वर के दरवाजे तक जरूर ले जाएगी , परन्तु यह तभी होगा जब या तो ब्रह्मज्ञानी ब्राह्मण की शरणागति प्राप्त हो जाये या तुम स्वयं अनाथ हो जाओ ।
जय श्री राम
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अपने इस जन्म के माता पिता के बारे सोच रहे हो अरे जो माता पिता मृत्यु को नहीं रोक सकते वो क्या तुम्हे जीवन दे सकते है, अपने वास्तविक माता पिता को पहचानो खोजो ढूँढो और उनकी सेवा में जीवन अर्पित करो |
जय गोपीनाथ .....
श्रीकृष्ण ने गीता में ब्रह्म से जगत की उत्पत्ति का संकेत अर्जुन से किया था-
मम योनिर्महद, ब्रह्म तस्मिन् गर्भ दधाम्यहम्।
सम्भवः सर्वभूतानां ततो भवति भारत।
हे अर्जुन मेरी महत- ब्रहम रूप मूल प्रकृति सम्पूर्ण भूतो की योनी है अर्थार्त गर्भाधान का स्थान है और मैं उस योनी में चेतन समुदाय रूप गर्भ को स्थापन करता हूँ | उस जड़ चेतन के संयोग से सब भूतों की उत्पत्तिहुई है ||
सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः
तासां ब्रह्म महत् योनिः अहं बीजप्रदः पिता ॥
हे अर्जुन नाना प्रकार की सब योनियों में जितनी भी मूर्तियाँ अर्थात शरीर धारी प्राणी उत्पन्न होते है प्रकृति तो उनकी गर्भ धारण करने वाली माता है और मैं बीज स्थापन करने वाला पिता हूँ ||
सात्विक धन ही जीवन में सुख देता है
यह सभी ने सुना होगा पर इसके पीछे का भाव क्या है इसे समझिये , सात्विक धन का अर्थ है वह धन जो आपने धर्म पथ पर चल कर अपनी मेहनत से बिना किसी प्रकार की चोरी या दुसरे को नुकसान पहुचाये बिना कमाया हो |
रिश्वत लेना भी मेहनत का काम है परन्तु यह धर्म पथ नहीं है धर्म है दुसरो को हानि पहुचाएं बिना कमाना है , जानवरों को मारकर गोश्त बेचना भी बुरा कर्म है
धार्मिक कर्म है कृषि करना , दूध बेचना , बिना प्रलोभन के अपने नियत कर्म को करना यदि आपकी सैलरी कम है तो एक की जगह दो काम करो ओवरटाइम करो पर कमाना धर्म पथ पर ही है ,
अब अब एक महत्वपूर्ण बात जो आप इस संदर्भ में खोज ही नहीं पाएंगे वो है कितना कमाना है इसकी भी निश्चितता होनी चाहिए
राम इतना दीजिये जा में कुटुंब समाये
मैं भी भूखा ना रहू साधू भी भूखा ना जाये ||
धर्म पथ यदि आपको अनंत संपदा दे रहा है तो रुक जाये और विचार करें कहीं मेरे पास आवश्यकता से अधिक तो नहीं है क्योकि मैं पिछले लेख में बताया था की आवश्यकता से अधिक पाना भी दुःख का कारण है ,
और जब नियत मात्रा में सात्विक धन आपके पास होगा तो भी एक प्रारूप है जो हमें दुखो की और ले जाता है वह है संतोष ना होना , संतोष बहुत आवश्यक है क्योकि असंतोष इन्द्रियों का वह प्रारूप है जो निरंतर प्रयास कर आपको दुःख के दलदल में ले जायेगा |
असंतोष को दूर करने का एक ही उपाय है कर्ता पन का त्याग और इस त्याग का उपाय है ईश्वर की भक्ति , भक्ति भी कैसी भाव भक्ति अर्थात मन में भाव हो निरंतर
" हे प्रभु हे दीनानाथ हे दीनदयाल जगत पिता हे जगदीश्वर हे गोपीनाथ प्रभु आप ही सभी को जन्म देने वाले हो आप से हम है आप की कृपा से ही मैं आनंदमयी जीवन व्यतीत करता है आप ही मुझे सदा अपनी शरण में रखना मुझे आपकी भक्ति सदैव प्रदान करना मुझे अपने चरणों से दूर ना करना प्रभु मैं दास हूँ आपका मैं पुत्र हूँ आपका , हे मेरे दयालु पिता आप सदैव मुझ पर कृपा करते है आप मुझे प्रेम करते है मुझे प्रेम करने के लिए आप प्रकृति बने है आप ही मुझे श्वास रूप जीवन देते है मुझे जल रूप होकर मेरी प्यास बुझाते है पृथ्वी रूप होकर मुझे भोजन प्रदान करते है आप की जय हो प्रभु
प्रेम से बोलना पड़ेगा
राधे-राधे गोविन्द, गोविन्द राधे ।
राधे-राधे गोविन्द, गोविन्द राधे ।
राधे-राधे गोविन्द, गोविन्द राधे ॥
राधे-राधे गोविन्द, गोविन्द राधे ॥
राधे-राधे गोविन्द, गोविन्द राधे ।|
राधे-राधे गोविन्द, गोविन्द राधे ||
जय गोपीनाथ की , मोरमुकुट बंसी वारे की जय जय जय जय बोल प्यारे ......
हर हर महादेव .............
संकटमोचन हनुमान बलदाऊ की जय जय जय जय बोल प्यारे
जय जय श्री राधे जय जय श्री राधे जय जय श्री राधे .....श्याम......
जीवन का पूर्ण सत्य क्या है अगर सुख लोगे तो दुःख भी लेना पड़ेगा अमीर होने के लिए गरीब होना पड़ेगा पुण्य चाहिए तो पाप भी लेना पड़ेगा यही जीवन का सत्य है एक छिपा हुआ दृष्टिगत सत्य जो आपके साथ है प्रति पल ,जन्म लेने के साथ ही मृत्यु हमारे साथ हो लेती है समय होने पर सामने आती है पर तब तक आपके समीप चलती रहती है
समत्व योग ही वास्तविक मार्ग है जीवन का , जिस पर चल कर मानव लक्ष्य को प्राप्त होता है इस मार्ग में की विशेषता है इस पर चलने वाले का पतन नहीं होता है इस मार्ग में दुःख नहीं है इस मार्ग में गरीबी नहीं है इस मार्ग में मृत्यु भी नहीं है यह सास्वत सनातन सत्य मार्ग है इस मगर में उन्नति है इस मार्ग पर स्थिर व्यक्ति का विचलन नहीं है ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,यह मार्ग अत्यंत गुप्त मार्ग है इस मार्ग की खोज ऋषि मुनि वर्षो तक तप करके करते है तब भी नहीं पाते है , इसीलिए भक्तवत्सल श्री श्री १००८ प्रभु श्री गोपीनाथ जी महाराज ने अपने मुखारबिंद से यह मार्ग अपने मित्र अर्जुन को प्रेम भाव भक्ति और समर्पण से द्रवित होकर सहज ही बतला दिया था ..
प्रेम से बोलिए जय गोपीनाथ महाराज की
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