SHREE AALA JI
शिव मराठो सुरमो ,पतो मेवाड़ पाण !
हम्मीर ज्यो रणथम्भोर हठी ज्यों आलो जैसाण !! JAI SHREE AALA JI तेरा वेभव अमर रहे माँ हम दिन चार रहे ना रहे
शक्ति और भक्ति के संगम हड़बूजी (नागौर) के महाराज सांखला के पुत्र और राव जोधाजी (1438-89 ई.) के समकालीन थे। पिता की मृत्यु के पश्चात् ये फलौदी के गाँव हरभजमाल में रहने लगे जहाँ इन्होंने बालीनाथ जी से दीक्षा ली। लोक-देवता रामदेवजी हड़बूजी के मौसी के बेटे भाई थे। रामदेवजी ने जब समाधि ली तो उसके बाद सबसे पहला परचा उन्होंने हड़बूजी को ही दिया था जिसे लोक-गीतों में व भजनों में आज भी गाया जाता है। राव जोधा जब मंडोर को मेवाड़ के अधिकार से मुक्त करवाने के लिए प्रयास रत थे उसी दौरान राव जोधा हड़बूजी के पास सैनिक सहायतार्थ गए। हड़बूजी को राव जोधा के आगमन के पूर्व ही पता लग गया कि राव जोधा वहाँ आ रहे हैं। उन्होंने भोजन व्यवस्था करवा दी जब जोधा जी हड़बूजी के पास पहुँचे तो व्यवस्था देखकर चकित रह गये कि आपको मेरे आने का समाचार कहाँ से मिल गया, तो बताया कि हरभू पीर छे बड़ी कमाई रो धणी छे। यासू कोई बात छांनी नहीं छे। यानू अगम पिछम री खबर पड़े छे।”
राव जोधा को हड़बूजी ने विजयश्री प्राप्त करने का आशीर्वाद दिया और साथ में एक कटार भी दी। वह कटार बीकानेर राजघराने की पूजनीय वस्तुओं में से एक है।” राव जोधा जब मंडोर पर अधिकार करने में सफल हुए तो उन्होंने हड़बूजी को बेंगटी गांव (फलौदी) देकर अपना आभार प्रकट किया। हड़बूजी एक वीर योद्धा और विद्या में प्रवीण पुरुष दोनों ही थे। इन्हें बड़ा सुगनी, वचन सिद्ध और चमत्कारी महापुरुष माना जाता है।” हड़बूँजी का प्रमुख स्थान बेंगटी (फलौदी) में है। श्रद्धालुओं द्वारा मनायी गयी मनौती या कार्य सिद्ध होने पर गाँव बेंगटी में स्थापित हड़बूजी के मंदिर में हरभूजी की गाडी की पूजा करते हैं और प्रसाद चढ़ाते हैं।बेंगटी में बने मंदिर का निर्माण जोधपुर महाराजा अजीतसिंह ने सम्वत् 1778 (1721 ई.) में 7000 रुपयों की लागत से करवाया था।” हड़बूजी के मंदिर में पुजारी उन्हीं के वंशज सांखला राजपूत हैं। हड़बूजी ने बाबा बाळकनाथ से दीक्षा लेने के बाद भी इन्होंने लोक हित के लिए उपदेश और आशीर्वाद के साथ ही साथ नि:सहाय की भाले से रक्षा की थी।
सुजानसिंह जी सलखा और उनकी टीम के अथक प्रयास व परिश्रम से आज ओरण राजस्व रिकार्ड में दर्ज हुई उन सभी का आभार गुरु वीरनाथ जी और छत्रपति श्री आला जी का आशीर्वाद सदैव आप पर बना रहे
JAI SHREE AALA JI
कदम निरंतर चलते जिनके श्रम जिनका अभिराम है
विजय सुनिश्चित होती उनकी घोषित ये परिणाम है
आभार आपका रुपा राम धनदेव
Jai SHREE AALA JI
#मेवाड़_के_भाटी .....
भाटियों ने अपने #कर्म और #धर्म से सदैव अपने कुल का मान बढ़ाया ... जिससे मेवाड़ भी अछूता नही रहा ... हालांकि यहाँ भाटियों की उपस्थिति कम है लेकिन जितनी भी है महत्वपूर्ण है ... #रावल_रतनसिंह के समय से ही भाटियों का इस धरा ने यशोगान किया क्योंकि उनकी रूपवती #रानी_पद्मिनी भाटियों की बेटी थी ... जिसने मेवाड़ को मेवाड़ होने का #गौरव दिया ... एक वीर राजा की वीर पत्नी होने का गौरव पाया ... न कभी लड़ने से डरी और न ही मरने से ... रावल को खिलजी की कैद से छुड़वाया भी और जरूरत पड़ने पर #जौहर भी रचाया ... ऐसी रचना मेवाड़ ने पहली बार देखी थी ... अपनों को विजय तिलक लगा अग्नि में सामने का साहस मेवाड़ को भाटियों की बेटी ने दिया इससे पहले मेवाड़ में जौहर नही हुए थे ... अग्नि में समाई माताओं की ललकार ने सदियों तक मेवाड़ को मृत्यू से दो दो हाथ करने का साहस दिया ... जहाँ भाटियों की बेटी जौहर में जल रही हो वहाँ भाटी भी रण में रक्त बहाने से पीछे नही हटे ... रावल रतनसिंह से पूर्व भी भाटियों का मेवाड़ के लिए बलिदान रहा क्योंकि भाटी वंश भी मेवाड़ के गुहिल वंश की तरह प्राचीन वंश है पीढ़ियों से दोनों की आपस में रिश्तेदारियां रही है दोनों वंश एक दूसरे के सुख दुःख के साथी रहें है ... जब भाटी मेवाड़ के लिए लड़े तो यहाँ बसे भी लेकिन अभी तक मिली जानकारी के अनुसार #राणा_कुम्भा के समय #जैसा_जी_भाटी मेवाड़ आए और उन्हें राणा कुम्भा ने #ताणा गांव की जागीर के साथ 140 गांव दिए और दरबार में उचित मान सम्मान भी ... जैसा जी वीर योद्धा थे ... राव जोधा को मारवाड़ में राठौडों के राज को स्थापित करने में उनका अमूल्य सहयोग था लेकिन जोधा जी की किस बात पर नाराज हो मारवाड़ से मेवाड़ की और निकल पड़े ... वीरों को ही वीर की पहचान होती है इसलिए राणा कुम्भा ने जैसा जी को मेवाड़ में मान - सम्मान और स्थान दिया ... आज भी जैसा जी की छतरी ताणा गांव में विध्यमान है ... हालांकि जैसा जी का परिवार कुछ समय बाद ताणा से निकल गया और गुजरात - मध्यप्रदेश व राजस्थान में बिखर गया लेकिन जहाँ भी रहें भाटी अपने #स्वाभिमान से रहें ... गुजरात - मध्यप्रदेश और राजस्थान में जैसा भाटियों के अच्छे ठिकाने है ... जो उन्होंने #स्वामिभक्ति में जीवन दे पाए ... मेवाड़ में भी जैसा भाटियों के डगला का खेडा - भाटियों का खेडा - भचरडी एवं अन्य ठिकाने है ... जैसा भाटियों के बाद मेवाड़ में आगमन हुआ रावलोत भाटियों का ... #महासिंह_सबलसिंघोत_रावलोत को मेवाड़ #राणा_राजसिंह_प्रथम द्वारा मोही की जागीर के साथ कुछ गांव दिए गए ... महासिंह वीर योद्धा थे #राणा_संग्रामसिंह के समय मुगलों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए ... मोही के बाद मेवाड़ में रावलोत भाटियों को मुरोली ठिकाना जागीर में मिला जिसके जागीरदार थे #केसरीसिंह_अमरसिंघोत_रावलोत जो महासिंह के भाई और जैसलमेर के #रावल_अमरसिंह के बेटे थे ...महासिंह जैसलमेर #रावल_सबलसिंह के बेटे थे ... मोही और मुरोली के रावलोत भाटियों की स्वामिभक्ति का ही परिचय है कि आज मेवाड़ में सबलसिंघोत और अमरसिंघोत रावलोतों के मोही और मुरोली के अलावा दस - पनरह ठिकाने है ... केसरसिंह जी का खेडा - कांजी खेडा - देवरी खेडा - डांगरी - अलोली - तेजपुरा - देवगांव - खेता खेडा - उदयसिंह जी का खेडा - ऊंचा - खरडी बावड़ी - जगपुरा - बराड़ा - बनीना - वानसीणा ... #तेजसिंघोत_रावलोतों का भी घडोच नाम एक ठिकाना है जो जैसलमेर के #रावल_तेजसिंह के वंशज #चांदसिंह को मिला ... हिंगवनिया - सूली खेडा और चरपोटिया मेवाड़ में #उर्जनोत भाटियों के ठिकाने है ... सगतसिंगोत - जेह और जसोड़ भाटियों की कुछ पीढ़ियों से मेवाड में उपस्थित है ... साथ ही साथ साटोला - आमेट - देवरिया - सेपटीया - बनेड़ा - अरनिया - मोरवन - बिलोला - केरेखेड़े - पाटन - भरडियास - करोली भाटियों का गुडा - पिपलिया - बोहेड़ा गांव में भी पीढ़ियों से भाटियों की उपस्थिति है ... मेवाड़ में रहने वाले भाटियों की तलवारें अपने स्वामी के लिए खिलजियों - लोधियों - मुगलों - मराठों और अंग्रेजों के खिलाफ खूब चली और जीती भी ... रक्त बहा भाटियों ने अपने रक्त की लाज रखी जिसका ही परिणाम है आज मेवाड़ में भाटियों का #मान है #सम्मान है और ्थान है ... वर्तमान में भी मेवाड़ के हमारे भाटी भाई राजनीति और व्यापार में उच्च स्तर पर है ... सामाजिक एवं धार्मिक सहयोग में आगे है ... सरकारी और निजी नोकरियों में उच्च पदों पर स्थापित है ... यह हर भाटी के लिए गर्व और गौरव की बात है की हमारे मेवाड़ी भाई हमारे कुल का मान बढ़ाया है और बढ़ा रहें है ... #माँ_स्वांगिया से प्रार्थना है कि हम भाटियों पर युही मेहर करती रहें जिससे हम #श्री_कृष्ण के इस वंश का नाम रख सकें ...
जय हिंद
जय जैसाण
भोपाल सिंह झलोड़ा
9461993066
नोट - सीमित संसाधनों में अधिकतम जानकारी जुटाने का प्रयास किया है फिर भी भूल वश मेवाड़ में भाटियों का कोई गांव या शाखा छूट गई हो तो अवश्य अवगत करवाए ... साथ ही #धन्यवाद है उन साथियों का जिनकी वजह से मोतियों की तरह बिखरे हम भाटी भाइयों को एक माला में पिरोने के मेरे प्रयास में मेरा सहयोग कर रहें है ...
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वीर शिरोमणि हिंदुआ सूरज “ महाराणा प्रताप " जी की अंग्रेजी कैलेंडर अनुसार जन्म जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं व बधाई ..
" हूँ रजपूतण रो जायो हूं रजपूती करज चुकाऊंला..
ओ सीस पड़े पण पाघ नही दिल्ली रो मान झुकाऊंला.
(हिंदू पंचांग के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म ज्येष्ठ माह शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाता है)
श्रीआलाजी छंद
जैसलमेर ढाई साका युद्ध व्रतांत
मां ऊपर राखे आवड़ो धरे भवानी ध्यान !
आले रो जस उजलो दे मां उगती दान !!
जंज किनोही जन्मियो हुई माता हमगीर !
आलो साख उजालसे पींगे सूतो वीर !!
जंज ताणों घर जन्मियों देखे अर्जुन देव !
करे आलो किलकारियों गोदी खेल गंगेव !!
हमे आलो मोटो हुवो करे घणों रा काम !
ऐ अवनी रे उपरो नवखड रख्यो नाम !!
फिरोज हुकम फरमावियो जावणों जैसलमेर !
कब्जे करणों कोट नो पछे खूब मनाऊं खेर !!
हमे सिंध सो हालिया युद्ध करण जैसाण !
कीडी दल फोजो की है धाटो हर घमसाण !!
खग गेरोला खावती जगावियो जैसाण !,
अमरसागर उतरी अरी फोजो ले आण !!
कियो हेलो किनवारिय सुणों सब सिरदार !
भूरे कोट नो भेल्वा बोंमी आहेगेया बार !!
थोमो पग्ज ठाकरो मोणी घणा दिन मौज !
लाखों दुसमी ले आवियो फिरगी दोलि फौज !!
भूपत सब भेला हूवा कांपण लागा केके !
फिरोज ताणो दल फोरणों आलो कीनोही हैक !!
किनोही हेलो करण दियो हुक्म दरबार !
रिडमल बूवो राईको ऊंट चड उन वार !!
भाणसी जी घर भालों जन्म्यो भूमि उतारण भार !
मरुधर रो दुःख मेटवा आले लियो अवतार !!
कागज रिडमल काढ़ दीनो जन्ज नो जैथ !
मालक जैसलमेर रो आप भरोसे एथ !!
हेवंर चडर हालियो जंज झे आलो जैसाण !
कोटडिया शोभा करे नामी घोड़े निशान !!
आलो जैसाणे आवियों चखो लाल रंग चोल !
मंडिया डावे मालिये पोड़ झ सूरज प्रोल !!
कहें जंज किनोही रो नरपत आलो नाम !
मालक जैसलमेर रा थारे केहड़ो अटक्यो काम !!
पूछे आले नो प्रोलिए हो कुण आप हजूर !
खटका प्रोल नो खोलसो सोंद विदंत सूर !!
आले मुखे सु आखीयो जंझ झ म्हारी जात !
कागज मिल्यो किनोही मो पीलोड़ी प्रभात !!
तो के फोजों पड़ी हैं फोजों दुसमी चारों दोल !
युद्ध यवनों सौ जीतणों तो पहले खोल प्रोल !!
जाणों आले जोणीयो तू कर मुझे तुमार !
हमे जंज दीनी हाथ सो लगामत री ललकार !!
एडी रे बले आपरो घमक्यो ऊंचो घोड़ !
लंगर हेकी लात सु ताला दिया सब तोड़ !!
प्रोल खोलण पग सौ किया जंज कमाल !
इतर उठन आवियो सामन मालदेव !!
जादम आखन जैसाण रा रावेनि आला राज !
फिरोज लाखों ले आवियाे दुसमी आयो आज !!
कहें जंज किनोही रो दुसमी काडू डोट !
भिलण नी दयो भूरियो कब्जे राखु कोट !!
बेगोआ गुरु वीरनाथ जी जटा धर जोगेश !
पुठ मो गुरु देखते आले कियो आदेश !!
देख गुरु आवतो हमे जंज जोड्या हाथ !
कुटे दुसमी काढ़ना स्वामी रहजो साथ !!
सारो पटायत सांभलो दियो हुक्म दरबार !
युद्ध फिरोज सौ जितणों भुजे आले रे भार !!
भिलण नी दयो भूरे कोट री अक़ी नो संको राख !
युद्ध मो आले री जीत री सूरज भरे से साख !!
दुसमी सामा देख न आले लगायो अनुमान !
रूके आजोकी रात तनो खबरों पूछो खान !!
कहें जंज किनोही रो आन पड़ पो पेस !
जवाण नी ड्यो जीवता सिंध तुम्हारे देश !! .......................................................................
#श्री_कृष्ण #आला_जी_भांणसीहोत #भाटी_वंश_परम्परा_एवं_इतिहास #चंद्रवंश
#राज
#भाटी_वंश_परम्परा_एवं_इतिहास
सृष्टि के निर्माता ब्रह्मा के पुत्र अत्रि और अत्रि के पुत्र चंद्र ... इन्ही चन्द्र से #चंद्रवंश का उदय हुआ ... चन्द्र के बुध और बुध के पुरुरवा ... पुरुरवा की ही पीढ़ी में ययाति हुए ... ययाति के पुत्र हुए यदु ... यदु से ही #यदुवंश चला ... यदु से कुछ पीढ़ी बाद हुए शूरसेन और शूरसेन के वासुदेव ... वासुदेव के हुए #श्री_कृष्ण ... प्रभु श्री कृष्ण से ही यदुवंश की ख्याति हर और बढ़ी एवं यदुवंशी कृष्ण पुत्र कहलाए ...कृष्ण ही यदुवंशियों के इष्ट देव है ... यदुवंश से ही गुजरात के #जाडेजा #चुडासमा #रायजादा और #सरवैया राजपुतों का निकास है ... #करौली के जादोनों और #देवगिरी के यादवों का भी निकास यही से माना गया है ... यही यादव आगे चल कर #जाधव कहलाए ... शिवाजी महाराज की माता जीजाबाई इन्ही जाधावों की बेटी थी ... दक्षिण भारत के भी कुछ प्रमुख राजवंशों का निकास यदुवंशियों से माना गया है ... यदुवंश की जो शाखा भारत के उत्तर - पश्चिम में रही उनमें श्री कृष्ण से बारह पीढ़ी बाद गजबाहु हुए जिन्होंने #गजनी शहर बसाया और वहाँ राज किया ... इन्ही के वंशजों ने #लाहौर को अपनी राजधानी बनाया ... लाहौर का भाटी दरवाजा आज भी पाकिस्तान में भाटियों के गौरव में खड़ा है ... अफगानिस्तान और पंजाब के क्षेत्र में लंबे समय तक इनका राज रहा ... इन्ही में आगे चल कर #शालिवाहन_प्रथम हुए उनका साम्राज्य विस्तृत भूभाग में फैला था ... इन्ही के पुत्र #बालबन्ध हुए और बालबन्ध के घर ही #भाटी का जन्म हुआ जो आगे चल कर राजा भाटी कहलाए ... लाहौर के राजा भाटी से ही क्षत्रियों की भाटी शाखा का प्रादुर्भाव हुआ ... राजा भाटी ने भटनेर बसाया ... राजा केहर ने #केहरोर_गढ़ और अपने पुत्र तणु के नाम से तणोट बसाया और तणोट गढ़ की नींव माँ_आवड़ के हाथ से दिलवाई ... तणोट में माँ आवड़ का प्राचीन मंदिर है ... आवड़ ही स्वांगिया है ... स्वांगिया माँ को भाटियों की कुलदेवी माना गया है ... राव तणु के बेटे विजेराव_चूंडाला को माँ स्वांगिया का इष्ट था ... वो बहुत ही बहादुर योद्धा था लेकिन शत्रुओं ने उसे षड्यंत्र से मार दिया और तणोट गढ़ ध्वस्त कर दिया ... राव_तणु भी लड़ते हुए काम आए ... विजेराव का पुत्र देवराज उस समय छोटा था और पुष्करणा ब्राह्मणों के सहयोग से बच गया ... पुष्करणा भाटियों के राजपुरोहित है ...बाबा रतननाथ जी के आशीर्वाद से देवराज ने देरावर_गढ़ बनाया औऱ भाटियों की सत्ता पुनः स्थापित की ... इसी वंश में आगे चल कर विजयराज_लांजा हुआ जिसे " उत्तर भड़ किवाड़ भाटी " की उपाधि मिली ... जिसका अर्थ होता है " भारत के उत्तरी द्वार के रक्षक भाटी " जिसे भाटी सदियों से सिद्ध करते आए है ... विजयराज के पुत्र भोजदेव ने चौदह साल की उम्र में गौरी की सेना से मुकाबला किया और वीरगति को प्राप्त हुआ ... भाटियों में कम आयु का यह महान राजा एवं योद्धा था ... भोजदेव के काका जैसलदेव ने जैसलमेर की नींव रखी और त्रिकुट पहाड़ी पर एक मजबुत दुर्ग बनाया ... जैसलदेव के बाद शालिवाहन_द्वितीय रावल बना शालिवाहन के ही बेटों पोतों ने पंजाब में पटियाला - कपूरथाला - जींद - नाभा - फरीदकोट की रियासतें कायम की ... हिमालय की पहाड़ियों में सिरमोर - नाहन रियासत की स्थापना भी शालिवाहन के ही परिवार ने की ... शालिवाहन के बाद रावल_चाचगदेव हुए ... जिन्होंने उम्र के अंतिम पड़ाव में भी रण में मरणा महल में मरने से बेहतर माना और मुल्तान की सेना को हरा वीरगति को प्राप्त हुए ... चाचगदेव के बाद रावल_जैतसी जी प्रथम और उनके बेटे मूलराज व रतनसी ने भाटियों का मान बढ़ाया ... खिलजी की सेना ने गढ़ को घेर लिया ... क्षत्रिय रण में काम आए और माताओं ने अग्नि स्नान किया ... इसी परम्परा को उनके बाद के रावल_दुदा और तिलोकसी ने कायम रखा और वीरोचित मार्ग से स्वर्ग सिधारे ... ततपश्चात रावल_घड़सी जी ने जैसलमेर पुनः प्राप्त किया और जैसाण का मान बढ़ाया ... घड़सी के बाद रावल_लूणकरण हुए ... आपके समय में अमीर अली ने धोखे से गढ़ को हथियाने का प्रयास किया ... रावल लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुए और रानियों ने धारा स्नान किया ... #मालदेव जो लूणकरण का पुत्र था #आला_जी_भांणसीहोत के नेतृत्व में भाटियों की सेना भेजी और दुर्ग पुनः हासिल किया व शत्रुओं को दंड दिया ... महारावल अमर सिंह के समय #रोहड़ी पर बलोचों और चनों ने आक्रमण किया ... सीमा सुरक्षा चौकी पर तैनात भाटियों ने बहादुरी से उनका मुकाबला किया और वीरगति पाई ... क्षत्राणियों ने जौहर किया ... अमर सिंह जी ने रोहड़ी पुनः हासिल की बलोचों एवं चनों को मार भगाया ... जब भाटी राजवंश देश की आजादी के मुहाने पर खड़ा था तब #महारावल_गिरधर_सिंह जैसा सपूत राजा हुआ जिसने निज हित से प्रजा हित को बड़ा माना और भारत में सम्मिलित होने का निर्णय लिया ... भारत के उत्तरी द्वार के रक्षकों ने पुनः भारत को मजबूती दी ... वर्तमान महारावल चैतन्य राज सिंह जी है जो महारावल ब्रजराज सिंह जी के पुत्र है ... चन्द्र से शुरू हुआ यह सफर जो यदु और भाटी से होता हुआ चैतन्य राज तक पहुँचा जो गौरव पूर्ण और उज्ज्वल है ... इस उज्ज्वल और गौरव पूर्ण सफर में उन अनगिनत योद्धाओं का त्याग तप और बलिदान छुपा है जो जिये भी वंश के लिए और मरे भी वंश की खातिर ... जिनमें से कुछ नाम हमें याद है और बहुत से गुमनाम भी ... वर्तमान में भाटियों की एक सौ साठ के लगभग शाखाएं एवं उप शाखाएं है जो कुछ तो इतिहास की पुस्तकों में दर्ज है और कुछ अभी केवल बोल चाल में ही प्रयोग होती है ... जैसलमेर रियासत में भाटियों के बहुत से गांव एवं ठिकाणे है ... जैसलमेर से बाहर राजस्थान के अन्य जिलों में भी भाटियों के बहुत से ओहदेदार ठिकाणे एवं गांव है ... गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड , दिल्ली और हरियाणा में भाटियों के बहुत से ठिकाणे और गांव है ... पंजाब और हिमाचल में कुछ रियासतों के साथ बहुत से गांव एवं ठिकाणे है ... भाटियों का फैलाव भाटियों के साहस - संघर्ष और विशाल वंश व्रक्ष की और इशारा करता है ... जो सभी यदुवंशियों और भाटियों के लिए गौरव की बात है
काशी मथुरा प्रयागबड़ गजनी अर भटनेर ...
दिगम दिरावर लुद्रवो नौवोँ जैसलमेर ...
काशी से शुरू हुई यह यात्रा गजनी तक गई और जैसलमेर पहुँची ... कई जुंझार इसे आगे भी ले गए ... भाटियों ने कई विशाल साम्राज्य जीते और हारे भी लेकिन नही हारी तो भाटियों की हिम्मत ... जिसने उन्हें हर हार के बाद पुनः खड़े होने की हिम्मत दी हौसला दिया ... आज उसी के बदले अफगानिस्तान से लेकर हिंदुस्तान तक भाटियों के निशान जिंदा है ... शान जिंदा है ... क्यों जिंदा है क्योंकि भाटियों की माताओं ने अग्नि में राख होना स्वीकारा और भाटियों ने रण में रक्त बहाना ... सत्ता से बड़ा जिनके लिए सम्मान था ...धरा पर उनका ही जयगान था ... गजनी छुटी लाहौर छूटा ... भटनेर छूटी तणोट छुटा ... देरावर और लोद्रवा भी छूटा लेकिन नही छुटा तो हमारा #धर्म ... हमारी #ध्वजा और कमर में बंधी #कटार ... जिसकी बदौलत आठ सौ सालों से जैसाण जिंदा है ... भाटी वंश जिंदा है ... यदुवंश जिंदा है ... चंद्रवंश जिंदा है और आगे भी रहेगा ... जिस वंश में श्री कृष्ण - गज - शालिवाहन - राजा भाटी - केहर - राव तणू - विजयराज चुडाला - देवराज - विजेराज लांझा - रावल भोजदेव - रावल जैसल - रावल चाचकदेव - रावल जेतसिंह - युवराज मूलराज - रतनसी - राव केलण - दूदा - तिलोकसी - रावल घड़सी - रावल लूणकरण - युवराज मालदेव - वीरवर आला जी - महारावल अमरसिंह - महारावल गिरधरसिंह जैसे सपूत जन्में है ... जिन पर माँ स्वांगिया की छत्रछाया औऱ डाडे कृष्ण का आशीर्वाद है उनकी जय जय कार सदियों हुई है और सदियों होती रहेगी ...
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Welcome to Arya Haveli .. We gladly welcome you during the upcoming season from 1st July 2016at Ary