Jitendra dwivedi

Jitendra dwivedi

यह एक धार्मिक पेज है इस पेज पर भगवान श्री सीताराम सरकार के चरित्र का गुणगान सुनने को मिलेगा ।

09/02/2024

(((((((((( माथे का टीका ))))))))))
काफी समय पहले की बात है कि एक मन्दिर के बाहर बैठ कर एक भिखारी भीख माँगा करता था । ( वह एक बहुत बड़े महात्मा जी का शिष्य था जो कि इक पूर्ण संत थे ) उसकी उम्र कोई साठ को पार कर चुकी थी ।
आने जाने वाले लोग उसके आगे रक्खे हुए पात्र में कुछ न कुछ डाल जाते थे । लोग कुछ भी डाल दें , उसने कभी आँख खोल कर भी न देखा था कि किसने क्या डाला ।
उसकी इसी आदत का फायदा उसके आस पास बैठे अन्य भिखारी तथा उनके बच्चे उठा लेते थे । वे उसके पात्र में से थोड़ी थोड़ी देर बाद हाथ साफ़ कर जाते थे ।
कई उसे कहते भी थे कि , सोया रहेगा तो तेरा सब कुछ चोरी जाता रहेगा। वह भी इस कान से सुन कर उधर से निकाल देता था। किसी को क्या पता था कि वह प्रभु के प्यार में रंगा हुआ था। हर वक्त गुरु की याद उसे अपने में डुबाये रखती थी।
एक दिन ध्यान की अवस्था में ही उसे पता लगा कि उसकी अपनी उम्र नब्बे तक पहुंच जायेगी। यह जानकर वह बहुत उदास हो गया। जीवन इतनी कठिनाइयों से गुज़र रहा था पहले ही और ऊपर से इतनी लम्बी अपनी उम्र की जानकारी - वह सोच सोच कर परेशान रहने लग गया।
एक दिन उसे अपने गुरु की उम्र का ख्याल आया। उसे मालूम था कि गुरुदेव की उम्र पचास के आसपास थी। पर ध्यान में उसकी जानकारी में आया कि गुरुदेव तो बस दो बरस ही और रहेंगे।
गुरुदेव की पूरी उम्र की जानकारी के बाद वह और भी उदास हो गया। बार बार आँखों से बूंदे टपकने लग जाती थीं। पर उसके अपने बस में तो नही था न कुछ भी। कर भी क्या सकता था, सिवाए आंसू बहाने के।
एक दिन सुबह कोई पति पत्नी मन्दिर में आये। वे दोनों भी उसी गुरु के शिष्य थे जिसका शिष्य वह भिखारी था। वे तो नही जानते थे भिखारी को , पर भिखारी को मालूम था कि दोनों पति पत्नी भी उन्ही गुरु जी के शिष्य थे।
दोनों पति पत्नी लाइन में बैठे भिखारियों के पात्रों में कुछ न कुछ डालते हुए पास पहुंच गये। भिखारी ने दोनों हाथ जोड़ कर उन्हें ऐसे ही प्रणाम किया जैसे कोई घर में आये हुए अपने गुरु भाईओं को करता है।
भिखारी के प्रेम पूर्वक किये गये प्रणाम से वे दोनों प्रभावित हुए बिना न रह सके। भिखारी ने उन दोनों के भीतर बैठे हुए अपने गुरुदेव को प्रणाम किया था इस बात को वे जान न पाए।
उन्होंने यही समझा कि भिखारी ने उनसे कुछ अधिक की आस लगाई होगी जो इतने प्यार से नमस्कार किया है। पति ने भिखारी की तरफ देखा और बहुत प्यार से पुछा, कुछ कहना है या कुछ और अधिक चाहिए ?
भिखारी ने अपने पात्र में से एक सिक्का निकाला और उनकी तरफ बढ़ाते हुए बोला , जब गुरुदेव के दर्शन को जायो तो मेरी तरफ से ये सिक्का उनके चरणों में भेंट स्वरूप रख देना ।
पति पत्नी ने एक दुसरे की तरफ देखा , उसकी श्रद्धा को देखा, पर एक सिक्का, वो भी गुरु के चरणों में ! पति सोचने लगा क्या कहूँगा, कि एक सिक्का ! कभी एक सिक्का गुरु को भेंट में तो शायद किसी ने नही दिया होगा , कभी नही देखा।
पति भिखारी की श्रद्धा को देखे तो कभी सिक्के को देखे। कुछ सोचते हुए पति बोला , आप इस सिक्के को अपने पास रक्खो , हम वैसे ही आपकी तरफ से उनके चरणों में रख देंगे ।
नही आप इसी को रखना उनके चरणों में । भिखारी ने बहुत ही नम्रता पूर्वक और दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा। उसकी आँखों से झर झर आंसू भी निकलने लग गये।
भिखारी ने वहीं से एक कागज़ के टुकड़े को उठा कर सिक्का उसी में लपेट कर दे दिया । जब पति पत्नी चलने को तैयार हो गये तो भिखारी ने पुछा , वहाँ अब भंडारा कब होगा ?
भंडारा तो कल है , कल गुरुदेव का जन्म दिवस है न। भिखारी की आँखे चमक उठीं। लग रहा था कि वह भी पहुंचेगा , गुरुदेव के जन्म दिवस के अवसर पर।
दोनों पति पत्नी उसके दिए हुए सिक्के को लेकर चले गये। अगले दिन जन्म दिवस ( गुरुदेव का ) के उपलक्ष में आश्रम में भंडारा था। वह भिखारी भी सुबह सवेरे ही आश्रम पहुंच गया।
भंडारे के उपलक्ष में बहुत शिष्य आ रहे थे। पर भिखारी की हिम्मत न हो रही थी कि वह भी भीतर चला जाए। वह वहीं एक तरफ खड़ा हो गया कि शायद गेट पर खड़ा सेवादार उसे भी मौका दे भीतर जाने के लिए। पर सेवादार उसे बार बार वहाँ से चले जाने को कह रहा था।
दोपहर भी निकल गयी, पर उसे भीतर न जाने दिया गया। भिखारी वहाँ गेट से हट कर थोड़ी दूर जाकर एक पेड़ की छावं में खड़ा हो गया।
वहीं गेट पर एक कार में से उतर कर दोनों पति पत्नी भीतर चले गये। एक तो भिखारी की हिम्मत न हुई कि उन्हें जा कर अपने सिक्के की याद दिलाते हुए कह दे कि मेरी भेंट भूल न जाना। और दूसरा वे दोनों शायद जल्दी में भी थे इस लिए जल्दी से भीतर चले गये।
और भिखारी बेचारा, एक गरीबी , एक तंग हाली और फटे हुए कपड़े उसे बेबस किये हुए थे कि वह अंदर न जा सके।
दूसरी तरफ दोनों पति पत्नी गुरुदेव के सम्मुख हुए, बहुत भेंटे और उपहार थे उनके पास, गुरुदेव के चरणों में रखे।
पत्नी ने कान में कुछ कहा तो पति को याद आ गया उस भिखारी की दी हुई भेंट। उसने कागज़ के टुकड़े में लिपटे हुए सिक्के को जेब में से बाहर निकाला, और अपना हाथ गुरु के चरणों की तरफ बढ़ाया ही था तो गुरुदेव आसन से उठ खड़े हुए ,
गुरुदेव ने अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाकर सिक्का अपने हाथ में ले लिया, उस भेंट को गुरुदेव ने अपने मस्तक से लगाया और पुछा, ये भेंट देने वाला कहाँ है, वो खुद क्यों नही आया ?
गुरुदेव ने अपनी आँखों को बंद कर लिया, थोड़ी ही देर में आँख खोली और कहा, वो बाहर ही बैठा है, जायो उसे भीतर ले आयो।
पति बाहर गया, उसने इधर उधर देखा। उसे वहीं पेड़ की छांव में बैठा हुआ वह भिखारी नज़र आ गया।
पति भिखारी के पास गया और उसे बताया कि गुरुदेव ने उसकी भेंट को स्वीकार किया है और भीतर भी बुलाया है।
भिखारी की आँखे चमक उठीं। वह उसी के साथ भीतर गया, गुरुदेव को प्रणाम किया और उसने गुरुदेव को अपनी भेंट स्वीकार करने के लिए धन्यवाद दिया।
गुरुदेव ने भी उसका हाल जाना और कहा प्रभु के घर से कुछ चाहिए तो कह दो आज मिल जायेगा।
भिखारी ने दोनों हाथ जोड़े और बोला - एक भेंट और लाया हूँ आपके लिए , प्रभु के घर से यही चाहता हूँ कि वह भेंट भी स्वीकार हो जाये।
हाँ होगी, लायो कहाँ है ? वह तो खाली हाथ था, उसके पास तो कुछ भी नजर न आ रहा था भेंट देने को, सभी हैरान होकर देखने लग गये कि क्या भेंट होगी !
हे गुरुदेव, मैंने तो भीख मांग कर ही गुज़ारा करना है, मैं तो इस समाज पर बोझ हूँ। इस समाज को मेरी तो कोई जरूरत ही नही है। पर हे मेरे गुरुदेव , समाज को आपकी सख्त जरूरत है, आप रहोगे, अनेकों को अपने घर वापिस ले जायोगे।
इसी लिए मेरे गुरुदेव, मैं अपनी बची हुई उम्र आपको भेंट स्वरूप दे रहा हूँ। कृपया इसे कबूल करें।" इतना कहते ही वह भिखारी गुरुदेव के चरणों पर झुका और फिर वापिस न उठा। कभी नही उठा।
वहाँ कोहराम मच गया कि ये क्या हो गया, कैसे हो गया ? सभी प्रश्न वाचक नजरों से गुरुदेव की तरफ देखने लग गये ।
एक ने कहा, हमने भी कई बार कईओं से कहा होगा कि भाई मेरी उम्र आपको लग जाए , पर हमारी तो कभी नही लगी। पर ये क्या, ये कैसे हो गया ?
गुरुदेव ने कहा, इसकी बात सिर्फ इस लिए सुन ली गयी क्योंकि इसके माथे का टीका चमक रहा था। आपकी इस लिए नही सुनी गयी क्योंकि माथे पर लगे टीके में चमक न थी।
सभी ने उसके माथे की तरफ देखा, वहाँ तो कोई टीका न लगा था। गुरुदेव सबके मन की उलझन को समझ गये और बोले टीका ऊपर नही, भीतर के माथे पर लगा होता है.
( जय जय श्री राधे )

🌷 *श्रीकृष्णं 🙏🙏🙏

22/08/2023

मैंने सुना है, अरस्तु एक दिन सागर के किनारे टहलने गया और उसने देखा एक पागल आदमी—पागल ही होगा, अन्यथा ऐसा काम क्यों करता—

एक गड्डा खोद लिया है रेत में और एक चम्मच लिए हुए है; दौड़कर जाता है, सागर से चम्मच भरता है, आकर गडुए में डालता है, फिर भागता है, फिर चम्मच भरता है, फिर गडुए में डालता है।

अरस्तु घूमता रहा, घूमता रहा, फिर उसकी जिज्ञासा बढ़ी, फिर उसे अपने को रोकना संभव नहीं हुआ—सज्जन आदमी था,

एकदम से किसी के काम में बाधा नहीं डालना चाहता था, किसी से पूछना भी तो ठीक नहीं, अपरिचित आदमी से, यह भी तो एक तरह का दूसरे की सीमा का अतिक्रमण है।

मगर फिर बात बहुत बढ़ गई, उसकी भागदौड़, इतनी जिज्ञासा भर गई कि यह मामला क्या है, यह कर क्या रहा है, पूछा कि मेरे भाई, करते क्या हो?

उसने कहा, क्या करता हूं;सागर को उलीच कर रहूंगा! इस गड्डे में न भर दिया तो मेरा नाम नहीं! अरस्तु ने कहा कि मैं तो कोई बीच मे आने वाला नहीं हूं मैं कौन हूं;जो बीच में कुछ कहूं;लेकिन यह बात बड़े पागलपन की है यह चम्मच से तू इतना बड़ा विराट सागर खाली कर लेगा!

जन्म—जन्म लग जाएंगे फिर भी न होगा, सदियां बीत जाएंगी फिर भी न होगा! और इस छोटे से गडुए में भर लेगा?

और वह आदमी खिलखिलाकर हंसने लगा, और उसने कहा कि तुम क्या सोचते हो, तुम कुछ अन्य कर रहे हो, तुम कुछ भिन्न कर रहे हो?

तुम इस छोटी सी खोपड़ी में परमात्मा को समाना चाहते हो? अरस्तू बड़ा विचारक था। तुम इस छोटी सी खोपड़ी में अगर परमात्मा को समा लोगे, तो मेरा यह गड्डा तुम्हारी खोपड़ी से बड़ा है और सागर परमात्मा से छोटा है; पागल कौन है?

अरस्तू ने इस घटना का उल्लेख किया है और उसने लिखा है कि उस दिन मुझे पता चला कि पागल मैं ही हूं। उस पागल ने मुझ पर बड़ी कृपा की। वह कौन आदमी रहा होगा? वह आदमी जरूर एक पहुंचा हुआ फकीर रहा होगा, समाधिस्थ रहा होगा, वह सिर्फ अरस्तू को जगाने के लिए, अरस्तू को चेताने के लिए उस उपक्रम को किया था।

नहीं, तुम्हारी चाह तो छोटी है—चाय की चम्मच—इस चाह से तुम समाधि को नहीं पा सकोगे। चाह को जाने दो। और फिर जल्दीबाजी मचा रहे हो! जल्दबाजी मे तो चम्मच में थोड़ा—बहुत पानी आया, वह भी गिर जाएगा—अगर ज्यादा भागदौड़ की तो, और ज्यादा जल्दबाजी की। तुमने देखा न, कभी कभी जल्दबाजी में यह हो जाता है, ऊपर की बटन नीचे लग जाती है, नीचे की बटन ऊपर लग जाती है;सूटकेस में सामान रखना था वह बाहर ही रहा जाता है, सूटकेस बंद कर दिया, फिर उसको खोला तो चाबी नहीं चलती, कि चाबी अटक जाती है। तुमने जल्दबाजी में देखा, स्टेशन पहुंच गए और टिकट घर ही रह गई। और बड़ी जल्दी की!

जितनी जल्दबाजी करते हो, उतने ही अशांत हो जाते हो। जितने अशांत हो जाते हो, उतनी संभावना कम है समाधि की। शांत हो रहो। और शांत होने की कला है अचाह से भर जाना। चाहो ही मत, मांगो ही मत; कहो कि जो जब होना है, होगा, हम प्रतीक्षा करेंगे। जल्दी भी क्या है? समय अनंत है।
साभार ।।अज्ञात
श्री राधे

09/08/2023

★★वह महुये का पेड़ ★★

बस्तर के किसी गाँव में कालूराम नाम का एक किसान था, उसके पास लगभग 2 एकड़ का एक खेत था, जिसमें खेती करके वह अपने परिवार का जीवनयापन किया करता था। वह वृद्ध हो चला था इसलिए उसकी खेतीबाड़ी अब उसका इकलौता बेटा भोला देखा करता था।

भोला ने देखा कि उनके खेत के बीचोबीच एक बड़ा महुये का झाड़ है, जिसकी छाया के नीचे चारों तरफ लगभग आधा एकड़ की भूमि पर फ़सल नहीं उगा करती थी।
एक दिन भोला ने कुल्हाड़ी से उस वृक्ष को काटने की कोशिश की, तभी गाँव के कोटवार की शिकायत पर तुरंत ही वनविभाग के अधिकारी उसके घर आकर हिदायत देकर चले गये कि महुआ राज्य सरकार के" प्रतिबंधित वृक्षों की श्रेणी में आने वाली वनोपज हैं" इसे काटना कानूनन जुर्म हैं, अब दुबारा से ऐसी कोशिश की तो सीधा जेल में डाल दिये जाओगे..

डरा सहमा भोला उनके सामने कुछ न बोल सका, उसने बाद में सरपंच और ग्राम प्रधान से भी जानकारी प्राप्त की तो उसे पता चला कि इस प्रकार के वनोपज को काटने के लिए स्थानीय तहसीलदार की अनुमति आवश्यक है। भोला ने जैसे-तैसे अपने गाँव के पटवारी को अनुनय- विनय करके, महुआ का पेड़ काटने की तहसीलदार साहब से अनुमति प्राप्त करने के एवज में 1000 रुपये देकर कहा कि जब मैं यह झाड़ काटूंगा तो इसकी आधी लकड़ियां आपको ही दूँगा। भोला दो सप्ताह तक अनुमति की प्रतीक्षा करता रहा, मग़र अनुमति तो नहीं मिली, उलट उस पटवारी का ही दूसरे गाँव मे तबादला होने से भोला के पैसे पानी में चले गये।

मानसून सिर पर था, भोला को धान की फसल बोना था, लिहाजा उसने उस वृक्ष के छाया वाले स्थान सहित पूरे खेत की जुताई करके धान की रोपाई करना शुरू कर दिया। जिद्दी भोला आश्वस्त था कि कुछ न कुछ करके वह धान की फ़सल बड़ी होने से पहले इस वृक्ष को काट ही लेगा। भोला ने शहर से महंगा खरपतवार नाशक ज़हर एवम अन्य विषैले रसायन उस वृक्ष की जड़ों में डालकर महुये को नष्ट करनें का एक और प्रयास किया... मग़र वह महुआ तो जंगली वनोपज था, उसे इन सब जहरीले रसायनों का भी कोई असर न हुआ, वह महुये का पेड़ ज्यों का त्यों हरा भरा ही था। भोला धान की रोपाई करने के बावजूद भी उस महुये के छाया तले लगभग आधा एकड़ भूमि से कोई उत्पादन न कर पाने से हताश हो गया था।

भोला को यूँ हताश देखकर उसके पिता कालूराम ने कहा कि तुम यदि उस महुये के पेड़ को काटना चाहते हो तो मेरे अनुसार काम करो, पेड़ खुद ब खुद सूखकर गिर जायेगा.. भोला ने कहा ठीक है पिताजी मुझे बताइये क्या करना है.. कालूराम ने कहा कि सबसे पहले तो इस बार रबी की फसल को बाक़ी के भाग में ही बोना, अभी उस महुये के पेड़ के चारो तरफ गोल घेरा करके उसमे गोबर की खाद डालो और रोज ही उसे पानी देना शुरू कर दो,
अरे! सितम्बर अक्टोबर में कौन झाड़ो को पानी देता है, और वह भी उस महुए के पेड़ को जिसे मैं काटना चाहता हूँ, पिताजी आप उसे कटवाने का प्लान बता रहे हैं या संरक्षित करने का? भोला ने हैरत से अपने पिता से पूछा।

कालूराम ने मुस्कुराक़र कहा, तुम सारे प्रयत्न करके देख चुके हो, अब मेरे हिसाब से भी एक बार करके देख लो तुम्हें सफलता न मिले तो कहना।

अपने पिता का कहना मानकर, भोला ने उस महुये के पेड़ के चारों तरफ गोल घेरा बनाकर उसमें गोबर की खाद डालकर रोज एक ड्रम पानी देना शुरू कर दिया, हालांकि ठंड के समय में किसी भी पौधे को पानी की आवश्यकता नहीं होता, फिर तो महुआ एक जंगली वृक्ष था, भोला नाहक ही उसे पानी दे रहा था, परन्तु वह पिताजी का कहना नहीं टाल सकता था।

ख़रीफ़ की फ़सल भी कट चुकी थी, अब गर्मी पड़ना शुरू हो चुकी थी, वह महुये का पेड़ अन्य वृक्षों के उलट और भी ज़्यादा हरा-भरा हो चुका था, परन्तु भोला ने अपने पिता की आज्ञानुसार उस महुये के वृक्ष को खाद पानी देना जारी रखा.. वन कर्मी रेंजर को यह संदेहास्पद लगा भी परन्तु किसी भी वृक्ष को खाद -पानी देना कोई जुर्म तो था नही, इसलिए वह रेंजर भोला के पर्यावरण के प्रति जागरूकता की प्रसंसा करके चला गया।
★★
मई के मध्यान्ह में जब पूरे क्षेत्र में प्रचंड गर्मी पड़ने लगी, कालूराम ने अपने बेटे भोला को बुलाकर कहा, अब उस पेड़ को पानी देना बंद कर दो, भोला ने असमंजस की स्थिति में पिताजी के कहने के अनुसार उस पेड़ पर खाद पानी देना बंद कर दिया.. वह सोच रहा था कि जब इससे पहले भी अति प्रचंड ग्रीष्मकाल में भी यह महुये का वृक्ष गर्मी के थपेड़े सहकर भी खड़ा था, तो अब पानी बन्द करनें से उस वृक्ष को क्या फ़र्क पड़ जायेगा..

परन्तु, आश्चर्यजनक रूप से पहले पंद्रह दिन में ही उस वृक्ष की सारी पत्तियां झड़ गई.. भोला ने पहले तो इसे पतझड़ के मौसम का असर समझा, परन्तु जब एक एक करके उस पेड़ की शाखें और तना भी पूर्णतया शुष्क हो गया, तो भोला को यकीन हो चला कि पिताजी की तरकीब काम कर गई है.. जून की प्रचंड गर्मी वह महुये का वृक्ष बर्दाश्त नहीं कर सका...जुलाई में बरसात आने से सब तऱफ हरियाली थी, मग़र उस महुये के वृक्ष में न तो नये पत्ते आये, न नई बयार..उस महुये के वृक्ष ने दम तोड़ दिया था। इसी दौरान आये छोटे से तूफ़ान को भी वह वृक्ष झेल न सका और स्वतः ही उखड़कर गिर गया।

इस घटना से हैरान परेशान भोला ने अपने पिता कालूराम से पूछा तो उन्होंने कहा, यह महुये का वृक्ष जंगली वृक्ष है, किसी भी तरह के मौसम में बदलाव को सहन करने के बाद ही इतना बड़ा हुआ है, हर गर्मी में इसकी जड़ें पानी के जलस्तर के अनुरूप नीचे ही बढ़ती जाती हैं, जिससे यह वृक्ष कभी भी नहीं सूख सकता था, परन्तु जब तुमने इसे ठंड के मौसम से ही खाद और पानी देना शुरू कर दिया, तो यह वृक्ष अपनी मेहनत की आदत छोड़कर मुफ्त में मिले खाद पानी के ऊपर निर्भर होता गया, जिससे इसकी जड़ें क्षेत्रीय जल स्तर के अनुरूप नीचे की और न बढ़कर, ऊपर से तुम्हारे द्वारा मिल रहे जल की तरफ़ अग्रसर हो गई.. यह स्वावलंबी वृक्ष, तुम्हारे द्वारा मिल रहे खाद पानी पर निर्भर होने से परावलम्बी हो गया, और जब तुमनें अचानक मई के मध्यान्ह में इस महुये को खाद पानी देना बंद कर दिया, इसकी जड़ें मौजूदा जलस्तर से बहुत दूर हो चुकी थी, जिससे यह वृक्ष बिना पानी के सूखकर स्वयं ही नष्ट हो गया।

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कहानी लिखनें का तात्पर्य यह है कि हम सभी क़भी न क़भी उस जंगली महुये के वृक्ष की तरह स्वावलंबी थे, जो राह चलते कुँए, नकलुप या नदी से बिना छना पानी पीकर भी बीमार नहीं होते थे, मिट्टी सने हाथ बिना डेटॉल के धोएं भी स्वस्थ रहते थे, मीलों पैदल चलकर भी थकान महसूस नहीं होती थी।

●आज हम "आर-ओ और मिनरल वाटर" पीकर खुद को महुये के उस वृक्ष की दशा में लाकर खड़े कर चुके हैं कि यदि आर-ओ पानी या मिनरल वाटर न मिलें तो हम बीमार हो जाएंगे। यही वजह है कि इन फ़िल्टर बनाने वाली कम्पनियों ने 10-15 हज़ार के फिल्टर का सालाना मेंटिनेंस 5-6 हज़ार रुपये कर दिया है। यानी अपनी ही बिजली अपना ही पानी होने के बावजूद लगभग 20 रुपये प्रतिदिन का सिर्फ पानी पर ही इन कंपनियों को देतें हैं।

● इन मेहनतकश मजदूरों को भी सरकार मुफ्त या 1-2 रुपये किलो राशन देकर, इसी प्रकार महुये के वृक्ष के समान परावलम्बी बना चुकी है शहरों में यही हाल मुफ्त के बिजली-पानी के लालच का दिया जा रहा है, जो मुफ्त का खाने का आदि होने की वजह से उसी सरकार को वोट देंगे जो उन्हें मुफ़्त का अनाज दे, चाहे उसके एवज में सरकार राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में ही लिप्त क्यों न हो जाये, इन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता।

अपने आपको इस महुये के वृक्ष की तरह परावलम्बी बनायेंगे तो एक न एक दिन बेमौत मारें जाएंगे, इसलिए समय रहते स्वावलंबी बनने का प्रयास करें।
धन्यबाद
साभार :-अविनाश स आठल्ये

27/06/2023

एक पागल भिखारी :- एक बार पढ़ियेगा जरूर...!!

जब बुढ़ापे में अकेला ही रहना है तो औलाद क्यों पैदा करें उन्हें क्यों काबिल बनाएं जो हमें बुढ़ापे में दर-दर के ठोकरें खाने के लिए छोड़ दे ।

क्यों दुनिया मरती है औलाद के लिए, जरा सोचिए इस विषय पर।

मराठी भाषा से हिन्दी ट्रांसलेशन की गई ये सच्ची कथा है ।

लक्ष्मी कांत
जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण आपको प्राप्त होगा।समय निकालकर अवश्य पढ़ें।

हमेशा की तरह मैं आज भी, परिसर के बाहर बैठे भिखारियों की मुफ्त स्वास्थ्य जाँच में व्यस्त था।

स्वास्थ्य जाँच और फिर मुफ्त मिलने वाली दवाओं के लिए सभी भीड़ लगाए कतार में खड़े थे।

अनायाश सहज ही मेरा ध्यान गया एक बुजुर्ग की तरफ गया, जो करीब ही एक पत्थर पर बैठे हुए थे।

सीधी नाक, घुँघराले बाल, निस्तेज आँखे, जिस्म पर सादे, लेकिन साफ सुथरे कपड़े।

कुछ देर तक उन्हें देखने के बाद मुझे यकीन हो गया कि, वो भिखारी नहीं हैं।

उनका दाँया पैर टखने के पास से कटा हुआ था, और करीब ही उनकी बैसाखी रखी थी।

फिर मैंने देखा कि,आते जाते लोग उन्हें भी कुछ दे रहे थे और वे लेकर रख लेते थे।

मैंने सोचा !

कि मेरा ही अंदाजा गलत था, वो बुजुर्ग भिखारी ही हैं।

उत्सुकतावश मैं उनकी तरफ बढ़ा तो कुछ लोगों ने मुझे आवाज लगाई :

"उसके करीब ना जाएँ डॉक्टर साहब,

वो बूढा तो पागल है । "

लेकिन मैं उन आवाजों को नजर अंदाज करता हुवा मैं उनके पास गया।

सोचा कि, जैसे दूसरों के सामने वे अपना हाथ फैला रहे थे, वैसे ही मेरे सामने भी हाथ करेंगे,

लेकिन मेरा अंदाज फिर चूक गया। उन्होंने मेरे सामने हाथ नहीं फैलाया।

मैं उनसे बोला : "बाबा, आपको भी कोई शारीरिक परेशानी है क्या ?

मेरे पूछने पर वे अपनी बैसाखी के सहारे धीरे से उठते हुए बोले :

"Good afternoon doctor......

I
think I may have some eye problem in my right eye .... "

इतनी बढ़िया अंग्रेजी सुन मैं अवाक रह गया।

फिर मैंने उनकी आँखें देखीं।
पका हुआ मोतियाबिंद था उनकी ऑखों में ।

मैंने कहा : " मोतियाबिंद है बाबा, ऑपरेशन करना होगा। "

बुजुर्ग बोले : "Oh, cataract ?

I had cataract operation in 2022 for my left eye in Ruby Hospital."

मैंने पूछा : " बाबा, आप यहाँ क्या कर रहे हैं ? "

बुजुर्ग : " मैं तो यहाँ, रोज ही 2 घंटे भीख माँगता हूँ सर" ।

मैं : " ठीक है, लेकिन क्यों बाबा ? मुझे तो लगता है, आप बहुत पढ़े लिखे हैं। "

बुजुर्ग हँसे और हँसते हुए ही बोले : "पढ़े लिखे ?

मैंने कहा : "आप मेरा मजाक उड़ा रहे हैं, बाबा। "

बाबा : " Oh no doc... Why would I ?

Sorry if I hurt you ! "

मैं : " हर्ट की बात नहीं है बाबा, लेकिन मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है। "

बुजुर्ग : " समझकर भी, क्या करोगे डॉक्टर ?

अच्छा "ओके, चलो हम, उधर बैठते हैं, वरना लोग तुम्हें भी पागल हो कहेंगे। "

(और फिर बुजुर्ग हँसने लगे)

करीब ही एक वीरान टपरी थी। हम दोनों वहीं जाकर बैठ गए।

" Well Doctor, I am Mechanical Engineer...."---

बुजुर्ग ने अंग्रेजी में ही शुरुआत की--- "

मैं, * कंपनी में सीनियर मशीन ऑपरेटर था।

एक नए ऑपरेटर को सिखाते हुए, मेरा पैर मशीन में फंस गया था, और ये बैसाखी हाथ में आ गई।

कंपनी ने इलाज का सारा खर्चा किया, और बाद में कुछ रकम और सौंपी, और घर पर बैठा दिया।

क्योंकि लंगड़े बैल को कौन काम पर रखता है सर ? "

"फिर मैंने उस पैसे से अपना ही एक छोटा सा वर्कशॉप डाला।

अच्छा घर लिया।

बेटा भी मैकेनिकल इंजीनियर है।

वर्कशॉप को आगे बढ़ाकर उसने एक छोटी कम्पनी और डाली। "

मैं चकराया, बोला : " बाबा, तो फिर आप यहाँ, इस हालत में कैसे ? "

बुजुर्ग : " मैं...?

किस्मत का शिकार हूँ ...."

" बेटे ने अपना बिजनेस बढ़ाने के लिए, कम्पनी और घर दोनों बेच दिए।

बेटे की तरक्की के लिए मैंने भी कुछ नहीं कहा।

सब कुछ बेच बाचकर वो अपनी पत्नी और बच्चों के साथ जापान चला गया, और हम जापानी गुड्डे गुड़िया यहाँ रह गए। "

ऐसा कहकर बाबा हँसने लगे। हँसना भी इतना करुण हो सकता है, ये मैंने पहली बार अनुभव किया।

फिर बोला : " लेकिन बाबा, आपके पास तो इतना हुनर है कि जहाँ लात मारें वहाँ पानी निकाल दें। "

अपने कटे हुए पैर की ओर ताकते बुजुर्ग बोले : " लात ? कहाँ और कैसे मारूँ, बताओ मुझे ? "

बाबा की बात सुन मैं खुद भी शर्मिंदा हो गया। मुझे खुद बहुत बुरा लगा।

प्रत्यक्षतः मैं बोला : "आई मीन बाबा, आज भी आपको कोई भी नौकरी दे देगा, क्योंकि अपने क्षेत्र में आपको इतने सालों का अनुभव जो है। "

बुजुर्ग : " Yes doctor, और इसी वजह से मैं एक वर्कशॉप में काम करता हूँ। 8000 रुपए तनख्वाह मिलती है मुझे। "

मेरी तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था।

मैं बोला :
"तो फिर आप यहाँ कैसे ? "

बुजुर्ग : "डॉक्टर, बेटे के जाने के बाद मैंने एक चॉल में एक टीन की छत वाला घर किराए पर लिया।

वहाँ मैं और मेरी पत्नी रहते हैं। उसे Paralysis है, उठ बैठ भी नहीं सकती। "

" मैं 10 से 5 नौकरी करता हूँ । शाम 5 से 7 इधर भीख माँगता हूँ और फिर घर जाकर तीनों के लिए खाना बनाता हूँ। "

आश्चर्य से मैंने पूछा : " बाबा, अभी तो आपने बताया कि, घर में आप और आपकी पत्नी हैं। फिर ऐसा क्यों कहा कि, तीनों के लिए खाना बनाते हो ? "

बुजुर्ग : " डॉक्टर, मेरे बचपन में ही मेरी माँ का स्वर्गवास हो गया था। मेरा एक जिगरी दोस्त था, उसकी माँ ने अपने बेटे जैसे ही मुझे भी पाला पोसा।

दो साल पहले मेरे उस जिगरी दोस्त का निधन हार्ट अटैक से हो गया तो उसकी 92 साल की माँ को मैं
अपने साथ अपने घर ले आया तब से वो भी हमारे साथ ही रहती है। "

लक्ष्मी कांत मैं अवाक रह गया।

इन बाबा का तो खुद का भी हाल बुरा है।

पत्नी अपंग है।

खुद का एक पाँव नहीं, घर बार भी नहीं,
जो था वो बेटा बेचकर चला गया, और ये आज भी अपने मित्र की माँ की देखभाल करते हैं।

कैसे जीवट इंसान हैं ये ?

कुछ देर बाद मैंने समान्य स्वर में पूछा : " बाबा, बेटा आपको रास्ते पर ले आया, ठोकरें खाने को छोड़ गया। आपको गुस्सा नहीं आता उस पर ? "

बुजुर्ग : " No no डॉक्टर, अरे वो सब तो उसी के लिए कमाया था, जो उसी का था, उसने ले लिया।

इसमें उसकी गलती कहाँ है ? "

" लेकिन बाबा "--- मैं बोला "लेने का ये कौन सा तरीका हुआ भला ? सब कुछ ले लिया।

ये तो लूट हुई। "

" अब आपके यहाँ भीख माँगने का कारण भी मेरी समझ में आ गया है बाबा।

आपकी तनख्वाह के 8000 रुपयों में आप तीनों का गुजारा नहीं हो पाता अतः इसीलिए आप यहाँ आते हो। "

बुजुर्ग : " No, you are wrong doctor. 8000 रुपए में मैं सब कुछ मैनेज कर लेता हूँ।

लेकिन मेरे मित्र की जो माँ है, उन्हें, डाइबिटीज और ब्लडप्रेशर दोनों हैं।

दोनों बीमारियों की दवाई चल रही है उनकी।

बस 8000 रुपए में उनकी दवाईयां मैनेज नहीं हो पाती

" मैं 2 घंटे यहाँ बैठता हूँ लेकिन भीख में पैसों के अलावा कुछ भी स्वीकार नहीं करता।

मेडिकल स्टोर वाला उनकी महीने भर की दवाएँ मुझे उधार दे देता है और यहाँ 2 घंटों में जो भी पैसे मुझे मिलते हैं वो मैं रोज मेडिकल स्टोर वाले को दे देता हूँ। "

मैंने अपलक उन्हें देखा और सोचा, इन बाबा का खुद का बेटा इन्हें छोड़कर चला गया है और ये खुद किसी और की माँ की देखभाल कर रहे हैं।

मैंने बहुत कोशिश की लेकिन खुद की आँखें भर आने से नहीं रोक पाया।

भरे गले से मैंने फिर कहा : "बाबा, किसी दूसरे की माँ के लिए, आप, यहाँ रोज भीख माँगने आते हो ? "

बुजुर्ग : " दूसरे की ?

अरे, मेरे बचपन में उन्होंने बहुत कुछ किया मेरे लिए। अब मेरी बारी है। मैंने उन दोनों से कह रखा है कि, 5 से 7 मुझे एक काम और मिला है। "

मैं मुस्कुराया और बोला : " और अगर उन्हें पता लग गया कि, 5 से 7 आप यहाँ भीख माँगते हो, तो ? "

बुजुर्ग : " अरे कैसे पता लगेगा ? दोनों तो बिस्तर पर हैं। मेरी हेल्प के बिना वे करवट तक नहीं बदल पातीं।

यहाँ कहाँ पता करने आएँगी.... हा....हा... हा...."

बाबा की बात पर मुझे भी हँसी आई।

लेकिन मैं उसे छिपा गया और बोला : " बाबा, अगर मैं आपकी माँ जी को अपनी तरफ से नियमित दवाएँ दूँ तो ठीक रहेगा ना।

फिर आपको भीख भी नहीं मांगनी पड़ेगी। "

बुजुर्ग : " No doctor, आप भिखारियों के लिए काम करते हैं। माजी के लिए आप दवाएँ देंगे तो माजी भी तो भिखारी कहलाएंगी।

मैं अभी समर्थ हूँ डॉक्टर, उनका बेटा हूँ मैं।

मुझे कोई भिखारी कहे तो चलेगा, लेकिन उन्हें भिखारी कहलवाना मुझे मंजूर नहीं। "

" OK Doctor, अब मैं चलता हूँ। घर पहुँचकर अभी खाना भी बनाना है मुझे। "

मैंने निवेदन स्वरूप बाबा का हाथ अपने हाथ में लिया और बोला : " बाबा, भिखारियों का डॉक्टर समझकर नहीं बल्कि अपना बेटा समझकर मेरी दादी के लिए दवाएँ स्वीकार कर लीजिए। "

अपना हाथ छुड़ाकर बाबा बोले : " डॉक्टर, अब इस रिश्ते में मुझे मत बांधो, please, एक गया है, हमें छोड़कर...."

" आज मुझे स्वप्न दिखाकर, कल तुम भी मुझे छोड़ गए तो ?

अब सहन करने की मेरी ताकत नहीं रही...."

ऐसा कहकर बाबा ने अपनी बैसाखी सम्हाली। और जाने लगे, और जाते हुए अपना एक हाथ मेरे सिर पर रखा और भर भराई, ममता मयी आवाज में बोले : "अपना ध्यान रखना मेरे बच्चे..."

शब्दों से तो उन्होंने मेरे द्वारा पेश किए गए रिश्ते को ठुकरा दिया था लेकिन मेरे सिर पर रखे उनके हाथ के गर्म स्पर्श ने मुझे बताया कि, मन से उन्होंने इस रिश्ते को स्वीकारा था।

उस पागल कहे जाने वाले मनुष्य के पीठ फेरते ही मेरे हाथ अपने आप प्रणाम की मुद्रा में उनके लिए जुड़ गए।

हमसे भी अधिक दुःखी, अधिक विपरीत परिस्थितियों में जीने वाले ऐसे भी लोग हैं।

*हो सकता है इन्हें देख हमें* *हमारे दु:ख कम प्रतीत हों, और दुनिया को देखने का हमारा नजरिया बदले....*

हमेशा अच्छा सोचें, हालात का सामना करे...

कहानी से कुछ प्रेरणा मिले तो जीव मात्र पर दया करना ओर परोपकार की भावना बच्चों में जरूर दें...!!

पोस्ट अच्छा लगे तो शेयर करें....!!
साभार

13/06/2023

Radha naam sankeertan

30/03/2023

आप सभी को ईशों के ईश श्री श्री राम जी महाराज के अवतरण दिवस की अनेकों मंगल कामनाएं ।
सादर जय सियाराम ।

26/03/2023

एक बार एक आदमी ने अपने बगीचे में एक तितली के कोकून को देखा। वह उसे देखने लगा, उसने नोटिस किया कि उस कोकून में एक छोटा सा छेद बन हुआ है, उसने देखा की छोटी तितली उस छेद से बाहर निकलने की बहुत कोशिश कर रही थी, पर बहुत देर तक कोशिश करने के बाद भी वो उस छेद से बाहर नहीं निकल पा रही थी, वह बहुत कोशिश करती रही, फिर वह शांत सी हो गयी, उस आदमी को लगा जैसे उसने हार मान ली हो।

इसलिए उस आदमी उस तितली की मदद करने के उद्देश्य से एक कैंची उठायी और कोकून की छेद को बड़ा कर दिया की जिससे तितली आसानी से बाहर निकल पाए और यही हुआ, तितली बिना किसी संघर्ष के आसानी से बाहर निकल गयी, पर उसका शरीर सूजा हुआ था, और पंख सूखे हुए थे।

उस आदमी को लगा कि वो तितली अपने पंख फैला कर उड़ने लगेगी, पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। बल्कि कुछ समय बाद ही वह मर गयी। इसका उसे काफी दुःख हुआ।

उस आदमी ने अपने बुजुर्ग को यह सारी बात बताई, बुजुर्ग ने बताया असल में कोकून से निकलने की प्रक्रिया को प्रकृति ने इतना कठिन इसलिए बनाया है, जिससे ऐसा करने से तितली के शरीर में मौजूद तरल पदार्थ उसके पंखों में पहुँच सके, और वो छेद से बाहर निकलते ही उड़ पाए। और जिंदा रह सके। और तुमने उस की मदद करके उसकी सामान्य प्रक्रिया को तोड़ दिया। जिसके कारण उसका यह हश्र हुआ।

सीख

दोस्तों असल में कभी-कभी हमारे जीवन में संघर्ष ही हमे वो मज़बूती प्रदान करता है, जिससे हम आगे बढ़ सके, क्योंकि यदि हमे बिना संघर्ष के जीवन में कुछ मिलेगा तो हम अपंग हो जायेंगे और यदि सफल भी हो गये तो ज्यादा समय तक सफल नही रह पाएंगे।

इसलिए जीवन में आने वाले कठिन पलों को सकारात्मक दृष्टिकोण से स्वीकार करे, क्योंकि वो हमे मजबूत बनाते है ना की मजबूर।👏💐

🌹🙌 जय जय श्री राधे 🙌🌹

07/03/2023

शुभचिन्तक की अज्ञानवस भी उपेक्षा न करें.........

एक कुम्हार को मिट्टी खोदते हुए अचानक एक हीरा मिल गया, उसने उसे अपने गधे के गले में बांध दिया। एक दिन एक बनिए की नजर गधे के गले में बंधे उस हीरे पर पड़ गई, उसने कुम्हार से उसका मूल्य पूछा।
कुम्हार ने कहा: सवा सेर गुड़

बनिए ने कुम्हार को सवा सेर गुड़ देकर वह हीरा खरीद लिया। बनिए ने भी उस हीरे को एक चमकीला पत्थर समझा था, लेकिन अपनी तराजू की शोभा बढ़ाने के लिए उसकी डंडी से बांध दिया।

एक दिन एक जौहरी की नजर बनिए के उस तराजू पर पड़ गई, उसने बनिए से उसका दाम पूछा
बनिए ने कहा: पांच रुपए।
जौहरी कंजूस व लालची था, हीरे का मूल्य केवल पांच रुपए सुन कर समझ गया कि बनिया इस कीमती हीरे को एक साधारण पत्थर का टुकड़ा समझ रहा है।

वह उससे भाव-ताव करने लगा: पांच नहीं, चार रुपए ले लो।

बनिये ने मना कर दिया क्योंकि उसने चार रुपए का सवा सेर गुड़ देकर खरीदा था। जौहरी ने सोचा कि इतनी जल्दी भी क्या है? कल आकर फिर कहूंगा, यदि नहीं मानेगा तो पांच रुपए देकर खरीद लूंगा।

संयोग से दो घंटे बाद एक दूसरा जौहरी कुछ जरूरी सामान खरीदने उसी बनिए की दुकान पर आया। तराजू पर बंधे हीरे को देखकर वह चौंक गया, उसने सामान खरीदने के बजाए उस चमकीले पत्थर का दाम पूछ लिया। बनिए के मुख से पांच रुपए सुनते ही उसने झट जेब से निकालकर उसे पांच रुपये थमाए और हीरा लेकर खुशी-खुशी चल पड़ा।

दूसरे दिन वह पहले वाला जौहरी बनिए के पास आया, पांच रुपए थमाते हुए बोला: लाओ भाई दो वह पत्थर।

बनिया बोला: वह तो कल ही एक दूसरा आदमी पांच रुपए में ले गया।
यह सुनकर जौहरी ठगा सा महसूस करने लगा।

अपना गम कम करने के लिए बनिए से बोला: अरे मूर्ख..! वह साधारण पत्थर नहीं, एक लाख रुपए कीमत का हीरा था।

बनिया बोला: मुझसे बड़े मूर्ख तो तुम हो, मेरी दृष्टि में तो वह साधारण पत्थर का टुकड़ा था, जिसकी कीमत मैंने चार रुपए मूल्य के सवा सेर गुड़ देकर चुकाई थी, पर तुम जानते हुए भी एक लाख की कीमत का वह पत्थर, पांच रुपए में भी नहीं खरीद सके।

हमारे जीवन मे भी अक्सर ऐसा होता है, हमें हीरे रूपी सच्चे शुभचिन्तक मिलते हैं, लेकिन अज्ञानतावश पहचान नहीं कर पाते और उसकी उपेक्षा कर बैठते हैं, जैसे इस कथा में कुम्हार और बनिए ने की।

कभी पहचान भी लेते हैं, तो अपने अहंकार के चलते तुरन्त स्वीकार नहीं कर पाते और परिणाम पहले जौहरी की तरह हो जाता है और पश्चाताप के अतिरिक्त कुछ हासिल नहीं हो पाता

जय जयश्रीराधे 🙏

01/03/2023

राधे राधे सभी हरिप्रेमियों को 🙏

संसार में जब बालक आता है तो उस समय वह माता पिता की शरण में होता है।माता पिता सारे कष्ट सहकर भी बालक की हर तरह से पालन पोषण और रक्षा करते है।उसी प्रकार जब मनुष्य भगवान्‌ के शरण हो जाता है, उनके चरणों का सहारा ले लेता है तो वह सम्पूर्ण प्राणियों से, विघ्न-बाधाओं से निर्भय हो जाता है। भगवान हर प्रकार से हमारा कल्याण ही करते है।फिर उसे कोई भी भयभीत नहीं कर सकता, कोई भी कुछ बिगाड़ नहीं सकता।
😊बहुत-सी भेड़-बकरियाँ जंगल में चरने गयीं। उनमें से एक बकरी चरते-चरते एक लता में उलझ गयी। उसको उस लता में से निकलने में बहुत देर लगी, तब तक अन्य सब भेड़-बकरियाँ अपने घर पहुँच गयीं। अँधेरा भी हो रहा था। वह बकरी घूमते-घूमते एक सरोवर के किनारे पहुँची। वहाँ किनारे की गीली जमीन पर सिंह का एक चरण-चिह्न मँढा हुआ था। वह उस चरण-चिह्न के शरण होकर उसके पास बैठ गयी। रात में जंगली सियार, भेड़िया, बाघ आदि प्राणी बकरी को खाने के लिये पास में जाते हैं तो वह बकरी बता देती है...
'पहले देख लेना कि मैं किसकी शरण में हूँ; तब मुझे खाना !’
वे चिह्न को देखकर कहते हैं.. ‘अरे, यह तो सिंह के चरण-चिह्न के शरण है, जल्दी भागो यहाँ से ! सिंह आ जायगा तो हमको मार डालेगा।’ इस प्रकार सभी प्राणी भयभीत होकर भाग जातें हैं।
अन्त में जिसका चरण-चिह्न था, वह सिंह स्वयं आया और बकरी से बोला...तू जंगल में अकेली कैसे बैठी है ?
बकरी ने कहा.. यह चरण-चिह्न देख लेना, फिर बात करना। जिसका यह चरण-चिह्न है, उसी के मैं शरण हुई बैठी हूँ।
सिंह ने देखा, ओह ! यह तो मेरा ही चरण-चिह्न है, यह बकरी तो मेरे ही शरण हुई ! सिंह ने बकरी को आश्वासन दिया कि अब तुम डरो मत, निर्भय होकर रहो।
रात में जब जल पीने के लिये हाथी आया तो सिंह ने हाथी से कहा..तू इस बकरी को अपनी पीठ पर चढ़ा ले। इसको जंगल में चराकर लाया कर और हरदम अपनी पीठ पर ही रखा कर,
नहीं तो तू जानता नहीं, मैं कौन हूँ ? मार डालूँगा !
सिंह की बात सुनकर हाथी थर-थर काँपने लगा। उसने अपनी सूँड़ से झट बकरी को पीठ पर चढ़ा लिया।
अब वह बकरी निर्भय होकर हाथी की पीठ पर बैठे-बैठे ही वृक्षों की ऊपर की कोंपलें खाया करती और मस्त रहती।
खोज पकड़ सैंठे रहो, धणी मिलेंगे आय।अजया गज मस्तक चढ़े, निर्भय कोंपल खाय॥
भगवान्‌ के साथ काम, भय, द्वेष, क्रोध, स्‍नेह आदि से भी सम्बन्ध क्यों न जोड़ा जाय, वह भी जीव का कल्याण करनेवाला ही होता है। तात्पर्य यह हुआ कि काम, क्रोध, द्वेष आदि किसी तरह से भी जिनका भगवान्‌ के साथ सम्बन्ध जुड़ गया, उनका तो उद्धार हो ही गया, पर जिन्होंने किसी तरह से भी भगवान्‌ के साथ सम्बन्ध नहीं जोड़ा, उदासीन ही रहे, वे भगवत्प्राप्ति से वंचित रह गये।जय जय श्री राधेकृष्णा जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।🙏😊

28/02/2023

मारीच को मारकर जब राम और लक्ष्मण जी वापस आये तो देखा आश्रम में सीता जी नहीं है ,तब भगवान सीता जी को वन में खोजने लगे,विलाप करने लगे।जीवन से जब भक्ति,शुद्धि,शान्ति,चली जाती है तो वह दुःखी और परेशान हो ही जाता है।भगवान को भी दुःख हुआ,,हमारी क्या विसात है।

"हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी ,तुम्ह देखी सीता मृगनैनी
खंजन सुक कपोत मृग मीना, मधुप निकर कोकिला प्रबीना"

अर्थात - हे पक्षियों! हे पशुओ! हे भौरों! की पंक्तियों तुमने कही मृगनयनी सीता को देखा है।जब इस तरह भगवान सीता जी खोजते खोजते रोने लगे।इस पर लक्ष्मण जी ने पूंछा - प्रभु ! क्यों रो रहे हो ? भगवान बोले - लक्ष्मण मै अपनी दुर्दशा पर रो रहा हूँ।जब भगवान के हाथ में बाण देखकर हिरन भागने लगे,हिरणी बोली क्यों भाग रहे हो ?

"महि देखि मृग निकर पराहीं। मृगीं कहहिं तुम्ह कहँ भय नाही
तुम्ह आनंद करहु मृग जाए। कंचन मृग खोजन ए आए"

अर्थात - भगवान को देखकर (जब डर के मारे) हिरनों के झुंड भागने लगते हैं, तब हिरनियाँ उनसे कहती हैं- तुमको किसका भय है,तुम तो साधारण हिरनों से पैदा हुए हो, अतः तुम आनंद करो,,ये तो सोने का हिरन खोजने आए है।
भगवान जब ये सुनते है तो लक्ष्मण जी से कहते है कि हे लक्ष्मण ! यदि मै भक्ति को छोड़कर माया के पीछे न दौड़ता, तो ये हमारा उपहास न करते।इस प्रसंग से मानो भगवान शिक्षा दे रहे है कि जो भक्ति को छोड़कर माया के पीछे दौडता है सृष्टि भी उसका उपहास करती है।
जय सियाराम 🙏

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