Ajay Tanwar
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मेरे अनुभवों, विचारों, एहसासों को व्यक्त करने का माध्यम है ये पेज I can be your travelling partner
काफ़ी इंतज़ार के बाद पिता जी की पुस्तक प्रकाशित हुई है । आप सभी के स्नेह और सहयोग से उम्मीद है बहुत से पाठकों तक पहुँच पाएगी ॥
Ajay Tanwar
भारतीय इतिहास में वीरता और दृढ़प्रतिज्ञा के लिए विख्यात, त्याग और बलिदान की अमर मिसाल, शूरवीर योद्धा, सर्वधर्म रक्षक, वीर शिरोमणि ब्रजराज महाराजा सूरजमल जी के बलिदान दिवस पर शत्-शत् नमन |
https://jatchiefs.com/maharaja-surajmal/ ( Biography Of Maharaja SurajMal )
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धन्यवाद अज्ञात लोगो - सुना है दाऊद इब्राहिम को किसी अज्ञात ने ज़हर दे दिया है 😂
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धन्यवाद अज्ञात लोगो 🙏🫡😁
हरयाणा का योद्धा चौ राम सिंह ,हरियाणा का गुमनाम जाट योध्दा जिसने दो बार हराया था अंग्रेजो को। ये करनाल के बल्ला गाव के मान जाट थे। घुड़सवारी और तलवार चलाने मे बिल्कुल निपुण थे। 1857 की जंग के लिए अपने गांव के 900जाट बन्दूकचियो की फौज बनायी ।जिनका काम गांव की हिफाजत करना था। खुद एक 50जाट घुड़सवार का जथा बनाकर एक जगह से मोर्चा सम्भाला । मेजर हुघस के नेतृत्व में 1स्त पंजाब घुड़सवार फौज जिसमे अफ़ग़ान और सिख सैनिक थे। इन्होंने गाँव पर हमला किया जिसमे जाटों ने बन्दूको से गोलियों की बौछार करी ।पास आते ही राम सिंह की घुड़सवार जाट फौज ने अंग्रेज़ी फौज पर हमला किया और काफी सैनिकों को काट डाला। यहा से हारने के बाद अगले दिन अंग्रेजी फौज फिर से और संख्या मे आयी लेकीन जाट योद्धा की बहादुरी के कारण सिख पठान फौज को फिर भागना पड़ा । निरंतर दो बार हारने के कारण अब अंग्रेजो ने बड़ी तोपे और ज्यादा सैनिक भेजे ।तोपो की मार से कई जाट बन्दूकची मारे गये । अब जाट योधाओ ने अपनी आखरी लडाई के लिये पगड़ी बान्ध,तलवार लिये जंग करने कूद पड़े । राम सिंह के नेतृत्व में मात्र 50जाट घुड़सवार के सामने तोपो के गोले और उनसे बड़ी सिख पठान फौज जिनके पास आधुनिक हथियार थे। भीषण युध्द हुआ जिसमे राम सिंह और उनके जाट वीर सब के सब कट मरे लेकीन एक कदम भी पीछे नही हटाया।
ऐसे जाट वीर की एक भी मुर्ति ना ही जयंती बनाता ।जय जाट पुरख!
Praying for the safety of our brothers and sisters in Chennai 🙏
Video- Chennai Airport
घनघोर दुःखद और अमानवीय
महिला थाना बल्लभगढ़ प्रभारी इंस्पेक्टर गीता को मलेरना रोड पर झाड़ियों में एक #नवजात बच्ची मिली जिसे तुरन्त बीके अस्पताल में एडमिट कराया गया, बच्ची अब सुरक्षित है।
नवजात बच्ची के पैर पर एक टैग है जिस पर लिखा हुआ है #बेबी_ऑफ_नीतू
डीसीपी बल्लबगढ़ श्री राजेश दुग्गल ने महिला पुलिस द्वारा तत्परता से बच्ची को अस्पताल ले जाने पर टीम को प्रशंसा पत्र व नगद पुरस्कार देने के लिए कहा।
आसपास के अस्पताल के रिकॉर्ड चेक किए जाऐगे। नियम अनुसार कानूनी कार्रवाई की जाएगी । बच्ची के माता-पिता के बारे मे सुचना मिल तो पुलिस को डायल 112 पर सूचित करें
ऋषि, मुनि, साधु और संन्यासी में अंतर :------
भारत में प्राचीन काल से ही ऋषि मुनियों का बहुत महत्त्व रहा है। ऋषि मुनि समाज के पथ प्रदर्शक माने जाते थे और वे अपने ज्ञान और साधना से हमेशा ही लोगों और समाज का कल्याण करते आये हैं। आज भी वनों में या किसी तीर्थ स्थल पर हमें कई साधु देखने को मिल जाते हैं। धर्म कर्म में हमेशा लीन रहने वाले इस समाज के लोगों को ऋषि, मुनि, साधु और संन्यासी आदि नामों से पुकारते हैं। ये हमेशा तपस्या, साधना, मनन के द्वारा अपने ज्ञान को परिमार्जित करते हैं। ये प्रायः भौतिक सुखों का त्याग करते हैं हालाँकि कुछ ऋषियों ने गृहस्थ जीवन भी बिताया है। आईये आज के इस पोस्ट में देखते हैं ऋषि, मुनि, साधु और संन्यासी में कौन होते हैं और इनमे क्या अंतर है ?
ऋषि कौन होते हैं
भारत हमेशा से ही ऋषियों का देश रहा है। हमारे समाज में ऋषि परंपरा का विशेष महत्त्व रहा है। आज भी हमारे समाज और परिवार किसी न किसी ऋषि के वंशज माने जाते हैं।
ऋषि वैदिक परंपरा से लिया गया शब्द है जिसे श्रुति ग्रंथों को दर्शन करने वाले लोगों के लिए प्रयोग किया गया है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है वैसे व्यक्ति जो अपने विशिष्ट और विलक्षण एकाग्रता के बल पर वैदिक परंपरा का अध्ययन किये और विलक्षण शब्दों के दर्शन किये और उनके गूढ़ अर्थों को जाना और प्राणी मात्र के कल्याण हेतु उस ज्ञान को लिखकर प्रकट किये ऋषि कहलाये। ऋषियों के लिए इसी लिए कहा गया है "ऋषि: तु मन्त्र द्रष्टारा : न तु कर्तार : अर्थात ऋषि मंत्र को देखने वाले हैं न कि उस मन्त्र की रचना करने वाले। हालाँकि कुछ स्थानों पर ऋषियों को वैदिक ऋचाओं की रचना करने वाले के रूप में भी व्यक्त किया गया है।
ऋषि शब्द का अर्थ
ऋषि शब्द "ऋष" मूल से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ देखना होता है। इसके अतिरिक्त ऋषियों के प्रकाशित कृत्य को आर्ष कहा जाता है जो इसी मूल शब्द की उत्पत्ति है। दृष्टि यानि नज़र भी ऋष से ही उत्पन्न हुआ है। प्राचीन ऋषियों को युग द्रष्टा माना जाता था और माना जाता था कि वे अपने आत्मज्ञान का दर्शन कर लिए हैं। ऋषियों के सम्बन्ध में मान्यता थी कि वे अपने योग से परमात्मा को उपलब्ध हो जाते थे और जड़ के साथ साथ चैतन्य को भी देखने में समर्थ होते थे। वे भौतिक पदार्थ के साथ साथ उसके पीछे छिपी ऊर्जा को भी देखने में सक्षम होते थे।
ऋषियों के प्रकार
ऋषि वैदिक संस्कृत भाषा से उत्पन्न शब्द माना जाता है। अतः यह शब्द वैदिक परंपरा का बोध कराता है जिसमे एक ऋषि को सर्वोच्च माना जाता है अर्थात ऋषि का स्थान तपस्वी और योगी से श्रेष्ठ होता है। अमरसिंहा द्वारा संकलित प्रसिद्ध संस्कृत समानार्थी शब्दकोष के अनुसार ऋषि सात प्रकार के होते हैं ब्रह्मऋषि, देवर्षि, महर्षि, परमऋषि, काण्डर्षि, श्रुतर्षि और राजर्षि।
सप्त ऋषि
पुराणों में सप्त ऋषियों का केतु, पुलह, पुलत्स्य, अत्रि, अंगिरा, वशिष्ठ और भृगु का वर्णन है। इसी तरह अन्य स्थान पर सप्त ऋषियों की एक अन्य सूचि मिलती है जिसमे अत्रि, भृगु, कौत्स, वशिष्ठ, गौतम, कश्यप और अंगिरस तथा दूसरी में कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि, भरद्वाज को सप्त ऋषि कहा गया है।
मुनि किसे कहते हैं
मुनि भी एक तरह के ऋषि ही होते थे किन्तु उनमें राग द्वेष का आभाव होता था। भगवत गीता में मुनियों के बारे में कहा गया है जिनका चित्त दुःख से उद्विग्न नहीं होता, जो सुख की इच्छा नहीं करते और जो राग, भय और क्रोध से रहित हैं, ऐसे निस्चल बुद्धि वाले संत मुनि कहलाते हैं।
मुनि शब्द मौनी यानि शांत या न बोलने वाले से निकला है। ऐसे ऋषि जो एक विशेष अवधि के लिए मौन या बहुत कम बोलने का शपथ लेते थे उन्हीं मुनि कहा जाता था। प्राचीन काल में मौन को एक साधना या तपस्या के रूप में माना गया है। बहुत से ऋषि इस साधना को करते थे और मौन रहते थे। ऐसे ऋषियों के लिए ही मुनि शब्द का प्रयोग होता है। कई बार बहुत कम बोलने वाले ऋषियों के लिए भी मुनि शब्द का प्रयोग होता था। कुछ ऐसे ऋषियों के लिए भी मुनि शब्द का प्रयोग हुआ है जो हमेशा ईश्वर का जाप करते थे और नारायण का ध्यान करते थे जैसे नारद मुनि।
मुनि शब्द का चित्र,मन और तन से गहरा नाता है। ये तीनों ही शब्द मंत्र और तंत्र से सम्बन्ध रखते हैं। ऋग्वेद में चित्र शब्द आश्चर्य से देखने के लिए प्रयोग में लाया गया है। वे सभी चीज़ें जो उज्जवल है, आकर्षक है और आश्चर्यजनक है वे चित्र हैं। अर्थात संसार की लगभग सभी चीज़ें चित्र शब्द के अंतर्गत आती हैं। मन कई अर्थों के साथ साथ बौद्धिक चिंतन और मनन से भी सम्बन्ध रखता है। अर्थात मनन करने वाले ही मुनि हैं। मन्त्र शब्द मन से ही निकला माना जाता है और इसलिए मन्त्रों के रचयिता और मनन करने वाले मनीषी या मुनि कहलाये। इसी तरह तंत्र शब्द तन से सम्बंधित है। तन को सक्रीय या जागृत रखने वाले योगियों को मुनि कहा जाता था।
जैन ग्रंथों में भी मुनियों की चर्चा की गयी है। वैसे व्यक्ति जिनकी आत्मा संयम से स्थिर है, सांसारिक वासनाओं से रहित है, जीवों के प्रति रक्षा का भाव रखते हैं, अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, ईर्या (यात्रा में सावधानी ), भाषा, एषणा(आहार शुद्धि ) आदणिक्षेप(धार्मिक उपकरणव्यवहार में शुद्धि ) प्रतिष्ठापना(मल मूत्र त्याग में सावधानी )का पालन करने वाले, सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वंदन, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और कायतसर्ग करने वाले तथा केशलोच करने वाले, नग्न रहने वाले, स्नान और दातुन नहीं करने वाले, पृथ्वी पर सोने वाले, त्रिशुद्ध आहार ग्रहण करने वाले और दिन में केवल एक बार भोजन करने वाले आदि 28 गुणों से युक्त महर्षि ही मुनि कहलाते हैं।
मुनि ऋषि परंपरा से सम्बन्ध रखते हैं किन्तु वे मन्त्रों का मनन करने वाले और अपने चिंतन से ज्ञान के व्यापक भंडार की उत्पति करने वाले होते हैं। मुनि शास्त्रों का लेखन भी करने वाले होते हैं
साधु कौन होते हैं
किसी विषय की साधना करने वाले व्यक्ति को साधु कहा जाता है। प्राचीन काल में कई व्यक्ति समाज से हट कर या कई बार समाज में ही रहकर किसी विषय की साधना करते थे और उस विषय में विशिष्ट ज्ञान प्राप्त करते थे। विषय को साधने या उसकी साधना करने के कारण ही उन्हें साधु कहा गया।
कई बार अच्छे और बुरे व्यक्ति में फर्क करने के लिए भी साधु शब्द का प्रयोग किया जाता है। इसका कारण है कि सकारात्मक साधना करने वाला व्यक्ति हमेशा सरल, सीधा और लोगों की भलाई करने वाला होता है। आम बोलचाल में साध का अर्थ सीधा और दुष्टता से हीन होता है। संस्कृत में साधु शब्द से तात्पर्य है सज्जन व्यक्ति। लघुसिद्धांत कौमुदी में साधु का वर्णन करते हुए लिखा गया है कि "साध्नोति परकार्यमिति साधु : अर्थात जो दूसरे का कार्य करे वह साधु है। साधु का एक अर्थ उत्तम भी होता है ऐसे व्यक्ति जिसने अपने छह विकार काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह और मत्सर का त्याग कर दिया हो, साधु कहलाता है।
साधु के लिए यह भी कहा गया है "आत्मदशा साधे " अर्थात संसार दशा से मुक्त होकर आत्मदशा को साधने वाले साधु कहलाते हैं। वर्तमान में वैसे व्यक्ति जो संन्यास दीक्षा लेकर गेरुआ वस्त्र धारण करते हैं और जिनका मूल उद्द्येश्य समाज का पथ प्रदर्शन करते हुए धर्म के मार्ग पर चलते हुए मोक्ष को प्राप्त करते हैं, साधु कहलाते हैं।
संन्यासी किसे कहते हैं
सन्न्यासी धर्म की परम्परा प्राचीन हिन्दू धर्म से जुडी नहीं है। वैदिक काल में किसी संन्यासी का कोई उल्लेख नहीं मिलता। सन्न्यासी या सन्न्यास की अवधारणा संभवतः जैन और बौद्ध धर्म के प्रचलन के बाद की है जिसमे सन्न्यास की अपनी मान्यता है। हिन्दू धर्म में आदि शंकराचार्य को महान सन्न्यासी माना गया है।
सन्न्यासी शब्द सन्न्यास से निकला हुआ है जिसका अर्थ त्याग करना होता है। अतः त्याग करने वाले को ही सन्न्यासी कहा जाता है। सन्न्यासी संपत्ति का त्याग करता है, गृहस्थ जीवन का त्याग करता है या अविवाहित रहता है, समाज और सांसारिक जीवन का त्याग करता है और योग ध्यान का अभ्यास करते हुए अपने आराध्य की भक्ति में लीन हो जाता है।
हिन्दू धर्म में तीन तरह के सन्न्यासियों का वर्णन है
परिव्राजकः सन्न्यासी : भ्रमण करने वाले सन्न्यासियों को परिव्राजकः की श्रेणी में रखा जाता है। आदि शंकराचार्य और रामनुजनाचार्य परिव्राजकः सन्यासी ही थे।
परमहंस सन्न्यासी : यह सन्न्यासियों की उच्चत्तम श्रेणी है।
यति : सन्यासी : उद्द्येश्य की सहजता के साथ प्रयास करने वाले सन्यासी इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं।
वास्तव में संन्यासी वैसे व्यक्ति को कह सकते हैं जिसका आतंरिक स्थिति स्थिर है और जो किसी भी परिस्थिति या व्यक्ति से प्रभावित नहीं होता है और हर हाल में स्थिर रहता है। उसे न तो ख़ुशी से प्रसन्नता मिलती है और न ही दुःख से अवसाद। इस प्रकार निरपेक्ष व्यक्ति जो सांसारिक मोह माया से विरक्त अलौकिक और आत्मज्ञान की तलाश करता हो संन्यासी कहलाता है।
उपसंहार
ऋषि, मुनि, साधु या फिर संन्यासी सभी धर्म के प्रति समर्पित जन होते हैं जो सांसारिक मोह के बंधन से दूर समाज कल्याण हेतु निरंतर अपने ज्ञान को परिमार्जित करते हैं और ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति हेतु तपस्या, साधना, मनन आदि करते हैं।
बधाइयाँ 💐
तब और अब ❤️♥️
Why Human interactions or dealing with people or managing people is very difficult. It is because almost every human being has very little Open Self and very largely Closed Self. People reveal little about their thoughts or desires or intentions or motives etc.
Managing people would have been very easy if it was largely Open Self.
Isn’t it ?
Ajay Tanwar
भगत सिंह को अंग्रेजों द्वारा फाँसी की सजा देने के ग़ुस्से में बदला लेने के लिए एक गोरी मेम का गाला दबाकर उसका दम घोंटकर मारते हुए चाचा लहरु ।
शुभ दीपावली 🙏
This is the beginning of a new day.
I have been given this day to use as I will.
I can waste it, or use it.
I can make it a day long to be remembered
for its joy, its beauty and its achievements,
or it can be filled with pettiness.
What I do today is important because
I am exchanging a day of my life for it.
When tomorrow comes this day will be gone forever,
but I shall hold something which I have traded for it.
It may be no more than a memory, but
if it is a worthy one I shall not regret the price.
I want it to be:
gain not loss,
good not evil,
success not failure.
Pic - With Sh. Sudhir Agarwal - Executive Director of India Glycols Limited
'तुम मुझे खून दो, मैं तूम्हें आजादी दूंगा' के उद्घोष से प्रेरित तथा नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिन्द फ़ौज ने भारतीय स्वतंत्रता क्रांति की अलख जगाई।
प्रथम भारतीय सशस्त्र बल “आजाद हिन्द फ़ौज” के स्थापना दिवस पर माँ भारती के सभी वीर सपूतों को कोटि कोटि नमन।
फ़ौजी जंग में मरे,
दुश्मन की गोली से मरे
याँ फिर किसी हादसे में।
वो हमेशां शहीद ही कहलाएगा।
अपने परिवार को छोड़ कर सिपाही की वर्दी पहनते ही वो देश का सबसे बड़ा वीर बन जाता है।
शहीद अमृतपाल को शहीद का दर्जा देने से हमारे देश के हर फ़ौजी भाई का आत्मविश्वास बढ़ेगा।
जय हिन्द 🇮🇳
जीवन क्या है - जीवन वह है जो हमारी इंद्रियाँ महसूस करके हमको बताती हैं। अगर इंद्रियाँ सदैव कष्ट महसूस करें और यही संदेश हमारे मस्तिष्क को देती रहें तो जीवन क्या हुआ ? दुखों का सागर ॥
अगर वो ही इंद्रियाँ सदैव सुख महसूस करती रहें और यही संदेश वो हमारे मन और मस्तिष्क को देती रहे तो जीवन क्या हुआ अब - सुखों का सागर ॥
इसी लिए हमारे ऋषि मुनियों ने हमको कहा कि अपनी इंद्रियों को जीतो। क्यूँकि जीवन क्या है वो इंद्रियों से हमारी चेतना को पता चलता है। 
अब इंद्रियों को क्या अच्छा लगता है क्या बुरा लगता है वो हमारा विवेक निर्धारित करता है। और विवेक हमारे जीवन मूल्यों, हमारी शिक्षाओं और हमारे आदर्शों से निर्मित होता है।
तभी तो वो भले ही अनैतिक कार्य हो लेकिन हमारे आदर्श लोग उसे करने लगें तो हमारा विवेक भी उसके मूल्यांकन में पक्षपात कर बैठेगा और उसको सही ठहराने में लग जाएगा।
तो कुल मिला कर विवेक और इंद्रियाँ ये ही हमको चलाने लगते हैं और कई बार तो विवेक की सुने बिना भी इंद्रियों के वशीभूत हो
कर जीवन जीने लगते हैं हम और उसी को जीवन मान बैठते हैं।
मैं कहता हूँ आप इस तरह के इंसान बनिये की आप सिर्फ़ वो ना करें जो इंद्रियाँ करायें बल्कि अपनी इंद्रियों से वो कराइए जो आप चाहते हैं उसको कहेंगे इंद्रियों को जीतने वाला - संतुष्ट और परम आनंदित॥
ब्रह्मचर्य का जो पालन करता है - सात्विक भोजन करता है - विलासिता और दिखावे के जगत से प्रभावित नहीं होता - अब आज कल बहुत से लोग तो इंद्रियों को जीतने का सिर्फ़ इतना सा मतलब मानने लगे हैं लेकिन ये तो एक हिस्सा हुआ । वैसे यहाँ तक भी पहुँचे तो बड़ी बात हुई । लेकिन में बताता हूँ इंद्रियों को जीतना सिर्फ़ इतना भर नहीं है - बहुत विराट और विस्तार है। इंद्रियों को जीत कर इसी संसार में हम बिना स्थूल वैभवों को भोगे भी ऐसा आनंद अनुभव कर सकते है जो सांसारिक आनंद से लाखों करोड़ों गुणा गहरा और अनंत है । उसकी कोई सीमा नहीं है । वो प्रयास और अभ्यास पर निर्भर करता है की आप अपने प्रयास और अभ्यास में कितने गहरे उतरे और कितने गहरे पहुँचे।
इसी तरह दुःख के अनुभव की मात्रा भी विवेक और मन पर ही निर्भर हुई । हम जानबूझकर या अनजाने में ही स्वयं के प्रयास और अभ्यास से कितनी गहराई तक दुःख में उतरे वो तो हमारे ऊपर ही निर्भर हुआ।
घर में आग लगी -
दुख हुआ छाती पीटने लगे, फिर याद आया घर तो कल ही बेच दिया तो दुःख छूटा, हंसने लगे सोचा घर तो जला पर अपना नुक़सान नहीं हुआ।
लेकिन फिर बेटे ने बताया कि सौदा टूट गया और घर जिसको बेचा था वो पैसे वापिस ले गया - अब फिर से दुख में डूब गये - रोने पीटने लगे ।
जबकि घटना तो एक ही घटी - घर जला ॥
मेरा था तो दुःख हुआ - किसी और का था तो दुःख नहीं - फिर से अपना था तो फिर से दुख और अब तो दुगुना दुःख कि ऐसा मेरे साथ ही क्यों हुआ ? अच्छा भला तो बिच गया था घर।
दूसरी तरफ़ जिसका सौदा टूटा वो ख़ुशी के मारे पागल - बच गये नुक़सान से ।
बस इसी तरह ही हम संसार में प्रकृति द्वारा घटित घटनाओं को ख़ुद से जोड़ कर इसी संसार में मिले धन वैभव मान को अपना समझ दुखी होते हैं और फिर यह भी विवेक नहीं कर पाते की कितनी देर तक उस दुख को पकड़े रखना है । कोई एक हफ़्ते - कोई एक महीना - कोई एक साल तो कोई एक पूरे जीवन पर्यंत ।
संसार में जितने समय ये क्षुद्र चेतना हमें हमारे व्यक्तिगत अस्तित्व का बोध करा रही है तब तक हम प्रकृति या परम शक्ति का हिस्सा नहीं हैं क्यूँकि हमने तो स्वयं का अस्तित्व ढूँढ लिया बल्कि बेहतर होता हम स्वयं के अस्तित्व में उलझने की बजाय स्वयं इस संसार या प्रकृति का हिस्सा मानते - फिर समर्पण कर देते और कहते की तू ही पैदा करने वाला - तू ही चलाने वाला - और तू ही मुक्त करने वाला। संसार में जो आज मेरा है वो कल किसी और का होगा परसों किसी और का और यही नियम है कुदरत का तो फिर तकलीफ़ क्या वो कल छूटे या आज ही छूट जाए उसके होने ना होने का मूल्य क्या है ? जब ये विचार निर्मित होगा जब ये मन इस विचार को स्वीकार कर लेगा और तब इंद्रियाँ भी क्षुद्र विचारों में घिर कर दुख या संताप का बोध
नहीं करायेंगी फिर आप पाओगे की एक अद्भुत आनंद जीवन के अंदर निर्मित होने लगा है। बस वही परम अवस्था होगी और वो ही मुक्ति होगी॥
सिस्टम जीत गया भाई.. 😀
Ajay Tanwar
Point
दुर्भाग्य 🫡😕
अद्भुत
जिन चंद भाइयों को लगता है असामाजिक तत्व, दंगाई या देशद्रोही जो पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारे लगाते हैं, प्रति दिन सैकड़ों गाय काटते हैं, ट्रक के ट्रक चोरी करते हैं, दिल्ली एनसीआर में अपराधों में अधिकतम रूप से संलिप्त हैं, टट्लू गिरोह चलाते हैं, हनी ट्रैप गिरोह व साइबर क्राइम चलाते हैं, गाय भैंस चोरी में सबसे प्रसिद्ध नाम जिनके रहे हैं, मोटरसाइकिल चोरी का जिन्होंने अब तक का सर्वश्रेष्ठ ख़िताब हासिल किया हुआ है और अवैध खनन माफिया का सबसे मज़बूत हाथ बना हुआ है, बेमियाद जनसंख्या बढ़ा कर संसाधनों का दोहन जिन्होंने किया है, देश की सुरक्षा में पलीता लगा कर हज़ारों विदेशी रोहिंग्याओं को अवैध रूप से देश के अंदर बल्कि दिल्ली के आस पास बसा लेता है, शिक्षा और विज्ञान में उन्नति की बजाय धार्मिक कट्टरवाद की ओर अग्रसरित हो रहा है ऐसे लोगों को उनके द्वारा हिंदू धर्म के प्रति दुश्मनी की भावना रख कर एक धार्मिक यात्रा पर सुनियोजित हमला कर जान माल का नुक़सान करके करोड़ों की संपत्ति आग में जला देने की बड़ी भूल पर उन्हें आईना दिखाने, उनका विरोध करने की बजाय जो भी भाई इसको उड़ता तीर बता रहे हैं उनसे हाथ जोड़ कर निवेदन है वो वीर दादा कान्हा रावत का इतिहास पढ़ें, वीर गोकुला, वीर हरफ़ूल, महाराजा सूरजमल और चौधरी छोटू राम जी को पढ़ें।
और साथ में एक बात और याद रखें - सरकारें सक्षम होती हैं इन सब का इलाज करने में, उत्तर प्रदेश में कोई योद्धा तुम में से नहीं लिया योगी जी ने दंगाइयों और अपराधियों का इलाज करने में।
काग़ज़ जिनके बारे में कहते हैं कि गुम हो गए हैं उनको निकलवाओगे तो पाओगे इनके परदादा का नाम श्यामलाल मिलेगा !
सब म्हारे जैसा ही पर इनको समझावे कौन ?
इन्ही के गाँव नल्हड़ में बना पांडव क़ालीन मंदिर किसी हिसार पलवल रोहतक वालों ने नहीं बनाया होगा इन्ही के पूर्वजों ने बनवाया होगा। जिस मंदिर पे अब दूसरे इलाक़े के लोग यात्रा करके जाते हैं और ये पत्थर - गोली चला के रोकते हैं संभवतः इसकी नींव इनके ही सगे परदादाओं ने रखी होगी पर सोचा ना होगा की औरंगज़ेंब ने जिन्हें बलात् मुसलमान बना दिया वो धीरे धीरे इतने कट्टर बन जाएँगे की उनके ही पुरखों के बनाये मंदिरों पर आने वाली धार्मिक यात्राओं पर गोली बारी करेंगे।
अल्लाह ही दुनिया का एकमात्र भगवान है वाली सोच उनके ही बच्चों की समझ को और सहनशीलता को खा जाएगी।
सिर्फ़ घर दरवाज़े बैठक ही नहीं बल्कि सब कुछ बोले तो सब कुछ सब कुछ अपुन के जैसा है पर इनको ये बात मनवाये कौन ?
फ़ोटो क्रेडिट Sonia Satyaneeta
वो गाना, वो मौसम, मेरे दिल में वो अरमान भी हैं।
ये दुनियाँ, ये बारिश, और ये साजो - सामान भी हैं॥
बस एक तुम ही नहीं हो, देखो तो एक बार।
वरना वो चाँद, वो तारे, वो आसमान भी है ॥
Ajay Tanwar
वैसे तो सामाजिक सुरक्षा की गारंटी देना सरकारों और प्रशासन का काम होता है और ऐसी नामर्दों वाली भाषा “पुलिस फ़ौज हर किसी की रक्षा नहीं कर सकती उसके लिए तो माहौल बनाना पड़ता है” सरासर निंदनीय है। माहौल बनाने के लिए ही तो पुलिस और प्रशासन आप के पास है वरना रोने पीटने के लिए तो अभी तक केजरीवाल जी ही बहुत थे।
हाँ लेकिन एक और ख़ास बात मेरे मन में आयी है कि - जो फलाने ढमकाने समाज को इससे अलग रहने की बात कर रहे हैं उनको याद दिला दूँ पाकिस्तान का ज़्यादातर इलाक़ा उन्हीं फ़लानों का था और पुराने हिंदुस्तान यानी सोने की चिड़िया का दिल हुआ करता था । पाँच पाँच नदियाँ - क्या उम्दा खेती - क्या फसल - क्या किसानी लेकिन आज दिवाला निकला पड़ा है फ़लानों के कन्वर्टेड वंशजों का और उस इलाक़े का भी जिसमें कभी फ़लानों के पुरखे मूँछों पर ताव देते थे ।
सिर्फ़ एक शताब्दी आगे फिर ऊपर वाली लाइन आपके बचे खुचे बच्चे आपके लिए और आपकी लुटी पिटी मूँछों के लिए कह कह के रोयेंगे ॥
और हाँ सिद्धू झप्पी पाइंग विद् बाजवा फॉर कांग्रेस ।
बाजवा सिद्धू का पास्ट है और उन फ़लानों का फ्यूचर है जो आज भी धर्म छोड़ अपने को सिर्फ़ फ़लानी ढमकानी जाती का ही माने बैठा है ।
अगर वो फ़लानी जाती ढमकानी जाती में सिमटे रहे तो सिर्फ़ गोत्र बचेगा धर्म नहीं क्यूँकि बाजवा टाईटल भी फ़लानी जाती का ही तो है बस इस्लाम ही तो क़बूला है॥
मोहम्मद पैग़म्बर के जमाने में तो बम और बंदूक़ें होते नहीं थे केवल तलवार होती थी तो ये बम और बन्दूकों से हो रही जेहाद तो हराम हुई। बुराइयाँ हर धर्म को लोगों में हैं लेकिन हिंसा का अत्यधिक प्रयोग जिन्होंने किया उन्होंने धीरे धीरे अपनी ही ज़मीन को बंजर कर लिया। अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान इसका उदाहरण है वरना तो ये भी कभी प्राचीन सोने की चिड़िया यानी भारत का हिस्सा थे ॥
इतिहास की अनकही प्रामाणिक कहानियां, का एक अंश ......
"बापू की हजामत और पुन्नीलाल का उस्तरा"
‘‘बापू कल मैंने हरिजन पढा।’’ पुन्नीलाल ने गांधीजी की हजामत बनाते हुए कहा।
‘‘क्या शिक्षा ली!’’
‘‘माफ करें तो कह दूं।’’
‘‘ठीक है माफ किया!’’
‘‘जी चाहता है गर्दन पर उस्तरा चला दूं।’’
‘‘क्या बकते हो?’’
‘‘बापू आपकी नहीं, बकरी की!’’
‘‘मतलब!’’
‘‘वह मेरा हरिजन अखबार खा गई, उसमें कितनी सुंदर बात आपने लिखी थी।’’
‘‘भई कौनसे अंक की बात है ??
‘‘बापू आपने लिखा था कि "छल से बाली का वध करने वाले राम को भगवान तो क्या मैं इनसान भी मानने को तैयार नहीं हूं " और आगे लिखा था "सत्यार्थ प्रकाश जैसी घटिया पुस्तक पर बैन होना चाहिए, ऐसे ही जैसे शिवा बावनी पर लगवा दिया है मैंने।’’
आंखें लाल हो गई थी पुन्नीलाल की।
‘‘तो क्या बकरी को यह बात बुरी लगी ?"
‘‘नहीं बापू अगले पन्ने पर लिखा था "सभी हिन्दुओं को घर में महाभारत नहीं रखनी चाहिए, क्योंकि इससे झगड़ा होता है और रामायण तो कतई नहीं, लेकिन कुरान जरूर रखनी चाहिए"
"बकरी तो इसलिए अखबार खा गई, कि हिन्दू की बकरी थी ना, सोचा हिन्दू के घर में कुरान होगी तो कहीं मेरी संतान को ये हिन्दू भी बकरीद के मौके पर काट कर न खा जाएं।’’
पुस्तक: मधु धामा लिखित, इतिहास की अनकही प्रामाणिक कहानियां, का एक अंश
Eklavya bhargav ✍️
#रिपोस्ट
Proud of you my dear brother Advocate Rajkumaar 🙌🫡
कोई राजा राम मोहन राय जैसा व्यक्तित्व इधर भी पैदा होना चाहिए, इक्कीसवीं सदी में ही सही।
"मैं आपका चेहरा याद रखना चाहता हूं ताकि जब मैं आपसे स्वर्ग में मिलूं,
तो मैं आपको पहचान सकूं और एक बार फिर आपका धन्यवाद कर सकूं"
जब एक टेलीफोन साक्षात्कार में भारतीय
अरबपति रतनजी टाटा से रेडियो प्रस्तोता ने पूछा:
"सर आपको क्या याद है कि आपको जीवन में सबसे अधिक खुशी कब मिली"?
रतनजी टाटा ने कहा:
"मैं जीवन में खुशी के चार चरणों से गुजरा हूं, और आखिरकार मुझे सच्चे सुख का अर्थ समझ में आया।"
पहला चरण धन और साधन संचय करना था।
लेकिन इस स्तर पर मुझे वह सुख नहीं मिला जो मैं चाहता था।
फिर क़ीमती सामान और वस्तुओं को इकट्ठा करने का दूसरा चरण आया।
लेकिन मैंने महसूस किया कि इस चीज का असर भी अस्थायी होता है और कीमती चीजों की चमक ज्यादा देर तक नहीं रहती।
फिर आया बड़ा प्रोजेक्ट मिलने का तीसरा चरण। वह तब था जब भारत और अफ्रीका में डीजल की आपूर्ति का 95% मेरे पास था। मैं भारत और एशिया में सबसे बड़ा इस्पात कारखाने मालिक भी था। लेकिन यहां भी मुझे वो खुशी नहीं मिली जिसकी मैंने कल्पना की थी.
चौथा चरण वह समय था जब मेरे एक मित्र ने मुझे कुछ विकलांग बच्चों के लिए व्हील चेयर खरीदने के लिए कहा। लगभग 200 बच्चे थे। दोस्त के कहने पर मैंने तुरन्त व्हील चेयर खरीद लीं।
लेकिन दोस्त ने जिद की कि मैं उसके साथ जाऊं और बच्चों को व्हील चेयर भेंट करूँ। मैं तैयार होकर उनके साथ चल दिया।
वहाँ मैंने सारे पात्र बच्चों को अपने हाथों से व्हील चेयर दीं। मैंने इन बच्चों के चेहरों पर खुशी की अजीब सी चमक देखी। मैंने उन सभी को व्हील चेयर पर बैठे, घूमते और मस्ती करते देखा।
यह ऐसा था जैसे वे किसी पिकनिक स्पॉट पर पहुंच गए हों, जहां वे बड़ा उपहार जीतकर शेयर कर रहे हों।
मुझे उस दिन अपने अन्दर असली खुशी महसूस हुई। जब मैं वहाँ से वापस जाने को हुआ तो उन बच्चों में से एक ने मेरी टांग पकड़ ली।
मैंने धीरे से अपने पैर को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन बच्चे ने मुझे नहीं छोड़ा और उसने मेरे चेहरे को देखा और मेरे पैरों को और कसकर पकड़ लिया।
मैं झुक गया और बच्चे से पूछा: क्या तुम्हें कुछ और चाहिए?
तब उस बच्चे ने मुझे जो जवाब दिया, उसने न केवल मुझे झकझोर दिया बल्कि जीवन के प्रति मेरे दृष्टिकोण को भी पूरी तरह से बदल दिया।
उस बच्चे ने कहा था-
"मैं आपका चेहरा याद रखना चाहता हूं ताकि जब मैं आपसे स्वर्ग में मिलूं,
तो मैं आपको पहचान सकूं और एक बार फिर आपका धन्यवाद कर सकूं।"
उपरोक्त शानदार कहानी का मर्म यह है कि हम सभी को अपने अंतर्मन में झांकना चाहिए और यह मनन अवश्य करना चाहिए कि, इस जीवन और संसार और सारी सांसारिक गतिविधियों
को छोड़ने के बाद आपको किसलिए याद किया जाएगा?
क्या कोई आपका चेहरा फिर से देखना चाहेगा, यह बहुत मायने रखता है ?
साभार
हाई एजुकेटेड बेरोजगार युवक एक बात गांठ बांध लें।
6 महीने में आप बाइक के मैकेनिक बन सकते हो।
6 महीने में आप कार के मैकेनिक बन सकते हो।
6 महीने में आप साइकिल के मकैनिक बन सकते हो।
6 महीने में आप मधुमक्खी पालन सीख सकते हो।
6 महीने में आप दर्जी का काम सिख सकते हो।
6 महीने में आप डेयरी फार्मिंग सीख सकते हो।
6 महीने में आप हलवाई का काम सीख सकते हो।
6 महीने में आप घर की इलेक्ट्रिक वायरिंग सीख सकते हो।
6 महीने में आप घर का प्लंबर का कार्य सीख सकते हो।
6 महीने में आप मोबाइल रिपेयरिंग सीख सकते हो।
6 महीने में आप जूते बनाना सीख सकते हो।
6 महीने में आप दरवाजे बनाना सीख सकते हो।
6 महीने में आप वेल्डिंग का काम सीख सकते हो।
6 महीने में आप मिट्टी के बर्तन बनाना सीख सकते हो।
6 महीने में आप घर की चिनाई करना सीख सकते हैं।
6 महीने में आप योगासन सीख सकते हो।
6 महीने में आप मशरूम की खेती का काम सीख सकते हो।
6 महीने में आप बाल काटने सीख सकते हो।
6 महीने में आप बहुत से काम ऐसे सीख सकते हो जो आपके परिवार को भूखा नहीं सोने देगा।
आज भारत में सबसे अधिक दुखी वह लोग हैं जो बहुत अधिक पढ़ लिखकर बेरोजगार हैं।
जो शिक्षा आप को रोजगार न दे सके वह शिक्षा किसी काम की नहीं।
रोजगार के लिए आपका अधिक पढ़ा लिखा होना कोई मायने नहीं।
भारत में 90% रोजगार वे लोग कर रहे हैं जो ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं।
10% रोजगार पाने के लिए पढ़े लिखे लोगों में मारामारी है।।
स्वंय विचार करें।
#बेरोजगार
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🇮🇳
भगत सिंह के साथ असेंबली में बम फेंकने वाले बटुकेश्वर दत्त को भी फांसी हो गई होती तो ज्यादा अच्छा था !
1947 में आजादी के पश्चात बटुकेश्वर को रिहाई मिली। लेकिन इस वीर सपूत को वो दर्जा कभी ना मिला जो हमारी सरकार और भारतवासियों से इन्हें मिलना चाहिए था।
आज़ाद भारत में बटुकेश्वर नौकरी के लिए दर-दर भटकने लगे। कभी सब्जी बेची तो कभी टूरिस्ट गाइड का काम करके पेट पाला। कभी बिस्किट बनाने का काम शुरू किया लेकिन सब में असफल रहे।
कहा जाता है कि एक बार पटना में बसों के लिए परमिट मिल रहे थे ! उसके लिए बटुकेश्वर दत्त ने भी आवेदन किया ! परमिट के लिए जब पटना के कमिश्नर के सामने इस 50 साल के अधेड़ की पेशी हुई तो उनसे कहा गया कि वे स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र लेकर आएं..!!! भगत के साथी की इतनी बड़ी बेइज़्ज़ती भारत में ही संभव है।
हालांकि बाद में राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को जब यह बात पता चली तो कमिश्नर ने बटुकेश्वर से माफ़ी मांगी थी ! 1963 में उन्हें विधान परिषद का सदस्य बना दिया गया । लेकिन इसके बाद वो राजनीति की चकाचौंध से दूर गुमनामी में जीवन बिताते रहे । सरकार ने इनकी कोई सुध ना ली।
1964 में जीवन के अंतिम पड़ाव पर बटुकेश्वर दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में कैंसर से जूझ रहे थे तो उन्होंने अपने परिवार वालों से एक बात कही थी।
"कभी सोचा ना था कि जिस दिल्ली में मैंने बम फोड़ा था उसी दिल्ली में एक दिन इस हालत में स्ट्रेचर पर पड़ा होऊंगा।"
मै देशवासियों का ध्यान इनकी ओर दिलाया चाहता हूँ कि-"किस तरह एक क्रांतिकारी को जो फांसी से बाल-बाल बच गया जिसने कितने वर्ष देश के लिए कारावास भोगा , वह आज नितांत दयनीय स्थिति में अस्पताल में पड़ा एड़ियां रगड़ रहा है और उसे कोई पूछने वाला नहीं है।"
जब भगतसिंह की माँ अंतिम वक़्त में उनसे मिलने पहुँची तो भगतसिंह की माँ से उन्होंने सिर्फ एक बात कही-"मेरी इच्छा है कि मेरा अंतिम संस्कार भगत की समाधि के पास ही किया जाए। उनकी हालत लगातार बिगड़ती गई।
17 जुलाई को वे कोमा में चले गये और 20 जुलाई 1965 की रात एक बजकर 50 मिनट पर उनका देहांत हो गया !
भारत पाकिस्तान सीमा के पास पंजाब के हुसैनीवाला स्थान पर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की समाधि के साथ ये गुमनाम शख्स आज भी सोया हुआ है।
मुझे लगता है भगत ने बटुकेश्वर से पूछा तो होगा- दोस्त मैं तो जीते जी आज़ाद भारत में सांस ले ना सका, तू बता आज़ादी के बाद हम क्रांतिकारियों की क्या शान है भारत में।"
❓❓❓
🙏 लेखक – आचार्य अनूपदेव
जज साहब मणिपुर मामले पर गुस्सा हो गए हैं,
लेकिन मेरे सवाल हैं माननीय CJI साहब और न्यायपालिका से
- जज साहब, आप गुस्सा होने के बजाय जल्दी फैसले सुनाने का प्रबंध क्यों नहीं करते ?
- आप गुस्सा होने के बजाय कुछ ऐसा क्यों नहीं करते कि अदालत के चक्कर काटते हुए आम नागारिक की चप्पलें न घिसें ?
-जैसे आपने तिस्ता सीतलवाद के लिये समय निकाला वैसे आम नागरिकों के लिये समय क्यों नहीं निकालते ?
- आप गुस्सा होने के बजाय आम आदमी को तारीख पर तारीख देने के सिस्टम में बदलाव क्यों नहीं करते ?
- जज साहब, आप गुस्सा होने के बजाय बलात्कारियों को फांसी पर लटकाने का आदेश क्यों नहीं देते ?
- जज साहब, निर्भया के बलात्कारियों के बाद किसी भी अन्य बलात्कारी को फांसी पर क्यों नहीं लटकाया गया ?
- जज साहब आप गुस्सा हो रहे हो न ? जबकि दिल्ली की ही अदालत ने श्रद्धा के 35 टुकड़े करने वाले आफताब को फांसी पर लटकाने का फैसला देने के बजाय उसे गर्म कपड़े और किताबें देने का निर्देश दिया था
गुस्सा करने वाले जज साहब आपको याद है न ?
- 2021 में बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा में 7 हजार महिलाओं के साथ अत्याचार किया था (Source: फैक्ट फाइंडिंग कमेटी) लेकिन आप न तो गुस्सा हुए और न ही सजा सुनाई
- बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद 60 साल की बूढ़ी दादी का उनके पोते के सामने घर में घुसकर गैंगरेप किया था, आपको गुस्सा क्यों नहीं आया? अगर आया तो अभी तक उन हैवानों को तारीख पर तारीख देने के बजाय फांसी की सजा क्यों नहीं सुनाई ?
- बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद 17 साल की नाबालिग किशोरी को घर से घसीटकर जंगल ले जाया गया जहां उसके साथ 5 लोगों ने गैंगरेप किया, आपको गुस्सा क्यों नहीं आया? अगर गुस्सा आया तो अभी तक फांसी की सजा क्यों नहीं सुनाई ?
- नादिया में नाबालिग किशोरी के साथ TMC नेता के बेटे की जन्मदिन पार्टी में गैंगरेप किया गया और फिर उसकी हत्या कर दी गई जिस पर CM ममता बनर्जी ने कहा कि ये तो लव अफेयर था. इस पर आपको गुस्सा क्यों नहीं आया जज साहब ? अगर आया तो उन हैवानों को अभी तक फांसी पर क्यों नहीं लटकाया गया ?
माननीय CJI साहब क्या आप बताएंगे कि
- दिल्ली में साक्षी को साहिल ने चाकुओं से गोदकर, पत्थर से कुचलकर मार डाला. क्या आपको इस पर गुस्सा नहीं आया जज साहब ? अगर आया तो सारे प्रमाण सामने होने के बाद भी अभी तक साहिल को फांसी पर क्यों नहीं लटकाया गया ?
- चंद्रचूड़ साहब, 8 जुलाई को बंगाल के हावड़ा में TMC नेताओं ने एक महिला के कपड़े फाड़े, उसके शरीर को नोंचा और निर्वस्त्र कर गांव में घुमाया. इस आपको गुस्सा क्यों नहीं आया ?
- कन्हैयालाल, उमेश कोल्हे, निशांक राठौर, प्रवीण नेत्तारू, शानू पांडेय की हत्या/सर तन से जुदा पर आपको गुस्सा नहीं आया जज साहब ? अगर आया तो सारे प्रमाण सामने होने के बाद भी इनके हैवानों को अभी तक फांसी क्यों नहीं दी गई ?
- जज साहब, भारतवर्ष की हजारों बेटियां हैं, जो रेप/गैंगरेप की शिकार हैं. न्याय का इंतजार कर रही हैं लेकिन आपको इस पर गुस्सा क्यों नहीं आता जज साहब ? क्यों बलात्कार के मामलों में जल्द सुनवाई कर न्याय सुनिश्चित नहीं किया जाता ?
- जज साहब, 90 के दशक का अजमेर रेप कांड सुना है आपने ? 250 से ज्यादा बेटियों का रेप/गैंगरेप किया गया था. 30 साल बाद भी एक भी सिंगल बलात्कारी को फांसी नहीं हुई है. क्या आपको इस पर गुस्सा नहीं आता जज साहब ?
जज साहब, मैं भारतवर्ष की एक आम नागरिक हूं, मणिपुर की घटना पर आपको गुस्सा आ गया तो मुझे भी आ गया, इसलिए मैंने गुस्से में ही ये सवाल पूछे हैं. क्या आप जवाब देंगे जज साहब ? अगर दे पाए तो मुझे लगता है कि देश अति प्रसन्न होगा जज साहब
CJI साहब, अगर आपको सच मे गुस्सा आ रहा है न तो एक काम करो. रेप के जिन मामलों में सीधे प्रमाण उपस्थित हैं, उनको तारीख पर तारीख देने के बजाय फैसला सुनाओ, बलात्कारियों को फांसी पर लटकाने का आदेश सुनाओ
जिस दिन नियमित अंतराल पर बलात्कारी फांसी पर झूलने लग जाएंगे, बहन-बेटियां सुरक्षित हो जाएंगी, निर्वस्त्र कर उनकी परेड निकालने की हिम्मत कोई नहीं कर पाएगा
वैसे लगता नहीं है कि आप ऐसा कर पाएंगे क्योंकि न्यायपालिका की क्रेडिबिलिटी आम जन के बीच खत्म सी हो चुकी है. इसका कारण यही है कि जज साहब को भी नेताओं और अभिनेताओ की तरह सेलेक्टिव मामलों पर गुस्सा आता है।
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