Bhojpuriya javan
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Har har mahadev
CocaCola ने 1980 के दशक में भारत में प्रवेश किया, 11 से अधिक भारतीय शीतल पेय ब्रांडों को ले लिया, बाकी को Pepsi ने ले लिया!
कोई आपत्ति नहीं!
चिल्लाओ नहीं
Amazon ने कोई शहर नहीं छोड़ा है!
कोई विरोध नहीं!
चिल्लाओ नहीं!
Blue Dart, DHL & FedEx जैसी कूरियर सेवाएं आईं और अपने विमान भी लाए। अब सारा धंधा चौपट हो गया!
कोई प्रतिरोध नहीं..
कोई चीख-पुकार नहीं..
भारत में चाइनीज और कोरियन मोबाइल का बोलबाला है।
कोई विरोध नहीं, कोई शोर नहीं! चिल्लाओ नहीं..
Nestlé, Maggi, ITC, HUL, Pepsi आदि ने कृषि क्षेत्र में प्रवेश किया!
कोई विरोध नहीं,
कोई शोर नहीं!
4-व्हीलर इंडस्ट्री में Suzuki, MG, Hyundai आदि. टू-व्हीलर इंडस्ट्री में Honda का दबदबा है,
कोई विरोध नहीं, कोई शोर नहीं, कोई चीख-पुकार नहीं..!!
लेकिन अडानी,अंबानी मेरे खिलाफ हैं?
पतंजलि (भारतीय आयुर्वेद का प्रचार) भारत के लिए खतरा है..?
भारतीय कंपनियों का विरोध क्यों? जबकि विदेशी कंपनियां लंबे समय से कई क्षेत्रों में निर्माण कर रही हैं?
सरल सामान्य ज्ञान की कमी?
The reason..
Nestle India अच्छा है क्योंकि हम इसके मालिक को नहीं जानते!
Proctor & Gamble अच्छा है क्योंकि हम उसके मालिक को नहीं जानते!
CocaCola, Pepsi अच्छे हैं क्योंकि हम उनके मालिकों को भी नहीं जानते!
Vodafone अच्छा है क्योंकि हम उसके मालिक को भी नहीं जानते!
Vivo, Samsung, Realme, अच्छा है क्योंकि हम उनके मालिकों को नहीं जानते!
परंतु,
#रामदेव चोर है!
#मुकेशअंबानी चोर है!
#गौतमअदानी चोर है!
#टाटा, #बिड़ला चोर है!
ये अपने ही देश के लोग हैं, ये यहाँ के महापुरुष कैसे हो सकते हैं?
सोच को संकीर्णता के दायरे से बाहर लाओ।बहुत गंदी सोच है कुछ बुद्धिजीवियों की लगता है सोच नहीं शौच है दिमाग में जिसकी बदबूदार गंध से वे परेशान है और सबको बहकाने में लगे है।
#लाला_लाजपत_राय जी की जयन्ती पर उन्हें कोटि-कोटि नमन..!!
अंग्रेज़ों की लाठियां खाने के बाद उन्होनें कहा था,
"मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी"।
मां भारती के इस सच्चे सपूत को सलाम!! #पंजाब_केसरी
“ अरे बुढिया तू यहाँ न आया कर , तेरा बेटा तो चोर-डाकू था . इसलिए गोरों ने उसे मार दिया“
जंगल में लकड़ी बिन रही एक मैली सी धोती में लिपटी बुजुर्ग महिला से वहां खड़ें भील ने हंसते हुए कहा ...
“ नही चंदू ने आजादी के लिए कुर्बानी दी हैं “
बुजुर्ग औरत ने गर्व से कहा .उस बुजुर्ग औरत का नाम जगरानी देवी था और इन्होने पांच बेटों को जन्म दिया था , जिसमे आखरी बेटा कुछ दिन पहले ही शहीद हुआ था ...
उस बेटे को ये माँ प्यार से चंदू कहती थी और दुनियां उसे "आजाद " चंद्रशेखर आजाद के नाम से जानती है ...!
हिंदुस्तान आजाद हो चुका था , आजाद के मित्र सदाशिव राव एक दिन आजाद के माँ-पिता जी की खोज करतें हुए उनके गाँव पहुंचे ...
आजादी तो मिल गयी थी लेकिन बहुत कुछ खत्म हो चुका था ...
चंद्रशेखर आज़ाद की शहादत के कुछ वर्षों बाद उनके पिता जी की भी मृत्यु हो गयी थी ...
आज़ाद के भाई की मृत्यु भी इससे पहले ही हो चुकी थी . अत्यंत निर्धनावस्था में हुई उनके पिता की मृत्यु के पश्चात आज़ाद की निर्धन निराश्रित वृद्ध माताश्री उस वृद्धावस्था में भी किसी के आगे हाथ फ़ैलाने के बजाय जंगलों में जाकर लकड़ी और गोबर बीनकर लाती थी तथा कंडे और लकड़ी बेचकर अपना पेट पालती रहीं ...
लेकिन वृद्ध होने के कारण इतना काम नहीं कर पाती थीं कि भरपेट भोजन का प्रबंध कर सकें .
कभी ज्वार कभी बाज़रा खरीद कर उसका घोल बनाकर पीती थीं क्योंकि दाल चावल गेंहू और उसे पकाने का ईंधन खरीदने लायक धन कमाने की शारीरिक सामर्थ्य उनमे शेष ही नहीं थी ...
शर्मनाक बात तो यह कि उनकी यह स्थिति देश को आज़ादी मिलने के 2 वर्ष बाद (1949 ) तक जारी रही ...
चंद्रशेखर आज़ाद जी को दिए गए अपने एक वचन का वास्ता देकर सदाशिव जी उन्हें अपने साथ अपने घर झाँसी लेकर आये थे, क्योंकि उनकी स्वयं की स्थिति अत्यंत जर्जर होने के कारण उनका घर बहुत छोटा था अतः उन्होंने आज़ाद के ही एक अन्य मित्र भगवान दास माहौर के घर पर आज़ाद की माताश्री के रहने का प्रबंध किया था और उनके अंतिम क्षणों तक उनकी सेवा की ...
मार्च 1951 में जब आजाद की माँ जगरानी देवी का झांसी में निधन हुआ तब सदाशिव जी ने उनका सम्मान अपनी माँ के समान करते हुए उनका अंतिम संस्कार स्वयं अपने हाथों से ही किया था ...
आज़ाद की माताश्री के देहांत के पश्चात झाँसी की जनता ने उनकी स्मृति में उनके नाम से एक सार्वजनिक स्थान पर पीठ का निर्माण किया . प्रदेश की तत्कालीन सरकार ने इस निर्माण को झाँसी की जनता द्वारा किया हुआ अवैध और गैरकानूनी कार्य घोषित कर दिया ...
किन्तु झाँसी के नागरिकों ने तत्कालीन सरकार के उस शासनादेश को महत्व न देते हुए चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापित करने का फैसला कर लिया ...
मूर्ति बनाने का कार्य चंद्रशेखर आजाद के ख़ास सहयोगी कुशल शिल्पकार रूद्र नारायण सिंह जी को सौपा गया ...
उन्होंने फोटो को देखकर आज़ाद की माताश्री के चेहरे की प्रतिमा तैयार कर दी ...
जब केंद्र की सरकार और उत्तर प्रदेश की सरकारों को यह पता चला कि आजाद की माँ की मूर्ति तैयार की जा चुकी है और सदाशिव राव, रूपनारायण, भगवान् दास माहौर समेत कई क्रांतिकारी झांसी की जनता के सहयोग से मूर्ति को स्थापित करने जा रहे हैं तो इन दोनों सरकारों ने अमर बलिदानी शहीद पंडित चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापना को देश, समाज और झाँसी की कानून व्यवस्था के लिए खतरा घोषित कर उनकी मूर्ति स्थापना के कार्यक्रम को प्रतिबंधित कर पूरे झाँसी शहर में कर्फ्यू लगा दिया ...
चप्पे चप्पे पर पुलिस तैनात कर दी गई ताकि अमर बलिदानी चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति की स्थापना न की जा सके ...!
जनता और क्रन्तिकारी आजाद की माता की प्रतिमा लगाने के लिए निकल पड़े ...
अपने आदेश की झाँसी की सडकों पर बुरी तरह उड़ती धज्जियों से तिलमिलाई तत्कालीन सरकारों ने पुलिस को गोली मार देने का आदेश दे डाला ...
आज़ाद की माताश्री की प्रतिमा को अपने सिर पर रखकर पीठ की तरफ बढ़ रहे सदाशिव को जनता ने चारों तरफ से अपने घेरे में ले लिया ...
जुलूस पर पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया ...
सैकड़ों लोग घायल हुए, दर्जनों लोग जीवन भर के लिए अपंग हुए और कुछ लोग की मौत भी हुईं . (मौत की आधिकारिक पुष्टि कभी नही की गयी)...
इस घटना के कारण चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापित नहीं हो सकी ll
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