Rathore G Bauddh

Rathore G Bauddh

i m baudhisth and i don't know Angel

24/09/2023
17/09/2023

गाय और मुर्गियों के एक झुण्ड में पैरो की संख्या के दोगुने से 14 अधिक है बताइए इस झुण्ड में कुल कितनी गाय है
A 7
B 9
C 11
C 6

15/08/2023

15 अगस्त की सभी क्षेत्र वासियों को हार्दिक शुभकामनाएं

16/03/2023

Nokari jane vali hai jisko nokari ki talash hai to ye dekh lo jo ek vyakti petrol pump par nokri karta tha uski nokri aaj kal khatre me hai isiliye online business karni ho to sampark karen salah nahi sath Dunga

25/12/2022

मनु स्मृति दहन की सभी हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼

30/09/2022

😀😀😀😀

24/06/2022

रामचरितमानस घोर जातिवाद का पिटारा

संविधान के अनुच्छेद 45 में 6 वर्ष से 14 वर्ष तक के बालक-बालिकाओं की शिक्षा अनिवार्य और मुफ्त करने की बात लिखी गयी है

लेकिन तुलसी की रामायण, इसका विरोध करने की वकालत करती है

1- *अधम जाति में विद्या पाए।*
*भयहु यथाअहि दूध पिलाए।।*

अर्थात : जिस प्रकार से सांप को दूध पिलाने से वह और विषैला (जहरीला) हो जाता है, वैसे ही शूद्रों (नीच जाति ) को शिक्षा देने से वे और खतरनाक हो जाते हैं

संविधान जाति और लिंग के आधार पर भेद करने की मनाही करता है तथा दंड का प्रावधान देता है। लेकिन तुलसी की रामायण (राम चरित मानस) जाति के आधार पर ऊंच नीच मानने की वकालत करती है

देखें : पेज 986, दोहा 99 (3), उ. का.
2- *जे वर्णाधम तेली कुम्हारा।।*
*स्वपच किरात कोल कलवारा।*
अर्थात : तेली, कुम्हार, सफाई कर्मचारी,आदिवासी, कौल, कलवार आदि अत्यंत नीच वर्ण के लोग हैं

यह संविधान की धारा 14, 15 का उल्लंघन है। संविधान सब की बराबरी की बात करता है! तथा तुलसी की रामायण जाति के आधार पर *ऊंच-नीच* की बात करती है, जो संविधान का खुली उल्लंघन है

देखें : पेज 1029, दोहा 129 छंद (1), उत्तर कांड
3- *अभीर (अहीर) यवन किरात खलस्वपचादि अति अघरूप जे।*
अर्थात : अहीर (यादव), यवन (बाहर से आये हुए लोग जैसे इसाई और मुसलमान आदि) आदिवासी, दुष्ट, सफाई कर्मचारी आदिअत्यंत पापी हैं, नीच हैं
(तुलसी दास कृत रामायण)

(रामचरितमानस) में तुलसी ने छुआछूत की वकालत की है, जबकि यह कानूनन अपराध है।
देखें: पेज 338, दोहा 12(2)अयोध्या कांड।
*4-कपटी कायर कुमति कुजाती।*
*लोक,वेद बाहर सब भांति।।*
तुलसी ने रामायण में मंथरा नामक दासी(आया) को नीच जाति वाली कहकर अपमानित किया जो संविधान का खुला उल्लंघन है

देखें : पेज 338, दोहा 12(2) अ. का.
5- *लोक वेद सब भाँतिही नीचा।*
*जासु छांह छुई लेईअ सींचा।।*
केवट (निषाद, मल्लाह) समाज, वेद शास्त्र दोनों से नीच है, अगर उसकी छाया भी छू जाए तो नहाना चाहिए

तुलसी ने केवट को कुजात कहा है, जो संविधान का खुला उल्लंघन है। देखें :
पेज 498 दोहा 195 (1), अ.का.
6- *करई विचार कुबुद्धि कुजाती।*
*होहिअकाज कवन विधि राती।।*
अर्थात वह दुर्बुद्धि नीच जाति वाली विचार करने लगी है कि किस प्रकार रात ही रात में यह काम बिगड़ जाए❗

7- *काने, खोरे, कुबड़ें, कुटिल, कूचाली, कुमति जानतिय विशेष पुनि चेरी कहि, भरतु मातु मुस्कान।*
भरत की माता कैकई से तुलसी ने शारीरिक व मानसिक गुलाम लोगों के साथ-साथ स्त्री और खासकर नौकरानी को नीच और धोखेबाज कहलवाया है,‘कानों, लंगड़ों, और कुबड़ों को नीच और धोखेबाज जानना चाहिए, उन में स्त्री और खास कर नौकरानी को… इतना कह कर भरत की माता मुस्कराने लगी। ये संविधान का उल्लंघन है।

देखें : पेज 339,दोहा 14, अ. का.
8--तुलसी ने निषाद के मुंह से उसकी जाति को चोर, पापी, नीच कहलवाया है।
*हम जड़ जीव, जीव धन खाती।* *कुटिल कुचाली कुमति कुजाती।।*
*यह हमार अति बाद सेवकाई।*
*लेही न बासन,बासन चोराई।।*
अर्थात : हमारी तो यही बड़ी सेवा है कि हम आपके कपड़े और बर्तन नहीं चुरा लेते (यानि हम तथा हमारी पूरी जाति चोर है, हम लोग जड़ जीव हैं, जीवों की हिंसा करने वाले हैं)।

जब संविधान सबको बराबर का हक देता है, तो रामायण को गैरबराबरी एवं जाति के आधार पर ऊंच-नीच फैलाने वाली व्यवस्था के कारण उसे तुरंत जब्त कर लेना चाहिए, नहीं तो इतने सालों से जो रामायण समाज को भ्रष्ट करती चली आ रही है। इसकी पराकाष्ठा अत्यंत भयानक हो सकती है।

यह व्यवस्था समाज में विकृत मानसिकता के लोग उत्पन्न कर रहे है तथा देश को अराजकता की तरफ ले जा रही है। देश के कर्णधार, सामाजिक चिंतकों,विशेष कर युवा वर्ग को तुरंत इसका संज्ञान लेकर न्यायोचित कदम उठाना चाहिए, नहीं तो मनुवादी संविधान को न मानकर अराजकता की स्थिति पैदा कर सकते हैं।

जैसा कि बाबरी मस्जिद गिराकर, सिख नरसंहार करवा कर, ईसाइयों और मुसलमानों का कत्लेआम (ग्राहम स्टेंस की हत्या तथा गुजरात दंगा) कर मानवता को तार-तार पहले ही कर चुके हैं। साथ ही सत्ता का दुरुपयोग कर ये दुबारा देश को गुलामी में डाल सकते हैं, और गृह युद्ध छेड़कर देश को खंड खंड करवा सकते हैंcp

🇮🇳🇮🇳🇮🇳 बोल 85 जय मूल निवासी 🇮🇳🇮🇳🇮🇳
🌹जय जवान जय किसान जय विज्ञान जय भारत 🌹
🌹जय फूलेजी जय बिरसा जय भीम जय संविधान 🌹
🇮🇳Jaago Bahujano Jaago Moolniwasiyo🇮🇳

30/05/2022

👉तर्क : वितर्क✍

प्रश्न : - भेद कहां है?
उत्तर : - भेद वेदों में,

प्रश्न : - समानता कहां हैं?
उत्तर : - समानता संविधान में,

प्रश्न : - मांग कर खाने बालों का स्थान कहां है?
उत्तर:-भीख मांग कर खाने वालों का स्थान मंदिर में है

प्रश्न : - क्या आरक्षण भीख है?
उत्तर :-नहीं आरक्षण आर्थिक सामाजिक स्तर को बराबर लाने का साधन है,

प्रश्न : - क्या पत्थर की मूर्तियां वरदान देने में सक्षम हैं ?
उत्तर : -नहीं जैसे पत्थर की गाय दूध नहीं दे सकती पत्थर का शेर इंसान की हत्या नहीं कर सकता उसी प्रकार पत्थर की देवी कुछ नहीं कर सकती,

प्रश्न : -आंबेडकरवाद क्या है ?
उत्तर : - एक शुद्ध देशी घी है जो गधों को समझ नहीं आता और कुत्तों को हजम नहीं होती

प्रश्न : - क्या कुत्ता इंसानों से ज्यादा समझदार और स्वाभिमानी होता है?
उत्तर: - हां क्यो कि कुत्ता को दो या चार बार डंडे मारेंगे तो आपके दरवाजे पर आना बंद कर देगा लेकिन शडुयल कास्ट बार-बार बेइज्जत होकर भी मंदिर जाना नहीं छोड़ता,

प्रश्न : - क्या ब्राह्मण को बाबा साहेब के साहित्य से खतरा है या मूर्तियों से ?
उत्तर : - मूर्तियों से कम साहित्य से ज्यादा,

प्रश्न : - क्या दलितों को बाबा साहेब की मूर्तियों से प्रेम है या साहित्य से?
उत्तर : - साहित्य से कम मूर्तियों से ज्यादा,

प्रश्न :- सिद्ध करो कि ईश्वर-अल्लाह-गाॅड है?
उत्तर : - जब इंसान अपने आप को बचाने में लग जाए तब समझ लें कि ईश्वर,अल्लाह,गाॅड नहीं है,

प्रश्न :-विज्ञान विकसित होने का अच्छा उदाहरण बताए?
उत्तर : - यदि आज के समय विज्ञान विकसित नहीं हुआ होता तो सभी धर्म के ठेकेदार कोरोना को ईश्वर-अल्लाह- गाॅड प्रकोप बता कर जनता को ठग लेते,

प्रश्न : - क्या मंदिरों में भगवान हैं?
उत्तर : - नहीं यदि होते तो कोरोना की महामारी में जरूर मदद करते,

प्रश्न:-ओबीसी,एसटी,एससी कि शिक्षा पर चोटक्षहो रही है?
उत्तर : - हां हो रही है अब हम सभी को मिलकर उनकी भिक्षा पर चोट करना चाहिए यानी कि मंदिरों में चढ़ोती और मान सम्मान बंद,

प्रश्न : - जाति श्रेष्ठ है या कर्म?
उत्तर : - कर्म श्रेष्ठ है क्यो कि बाबा साहेब ने पढ़ाई की संविधान लिखा और सुदामा ने पढ़ कर भीख मांगी,

प्रश्न : - क्या कोरोना से भी बढ़ कर कोई दूसरा वायरस भारत में पाया जाता है?
उत्तर : - हां जैसे पुनर्जन्म भाग्यवाद,चमत्कार,पांखन्ड, अंधविश्वास, छूआछूत, जातिवाद, अन्याय और शोषण इस वायरस से बचने का उपाय बाबा साहब और तथागत बुद्ध जी का साहित्य पढ़ें।

26/05/2022

*हिन्दू कौन है?*

*हिंदू शब्द की उत्पत्ति किसने की और कब की ???*

👉 हिन्दू धर्म कोई धर्म नहीं है परंतु यह एक जीवन जीने की शैली है। ऐसा कहना मेरा नहीं है ये इस देश के सर्वोच्च न्यायलय का कहना है क्योंकि हिन्दू शब्द का वर्णन या प्रयोग न तो चारों वेदों ( ऋग्वेद , सामवेद , यजुर्वेद , अथर्ववेद ) ,श्रीमद् भागवत और 18 पुराणों में है और न ही कहीं 120 स्मृतियों में ही कहीं मिलती है।

इस देश में सबसे पहले श्रमण धर्म हुआ करती थी जिनको मिटाकर विदेशी ब्राह्मणों ने अपना धर्म स्थापित किया जिसको पहले ब्राह्मण धर्म कहा जाता था परंतु बाद में अन्य लोगों में जागरूकता आने पर पर पैंतरा बदलकर इनको सनातन धर्म कहना शुरू कर दिया।

हिन्दू शब्द की वास्तविकता यह है कि जब मुगल आक्रमणकारियों ने हमारे देश को गुलाम बना लिया और यहाँ का शासक बन बैठा तब सिंधु नदी के इस तरफ रहनेवाले सभी लोगों को हिन्दू नाम से संम्बोधित करना शुरू कर दिया।

हिन्दू फारसी भाषा का शब्द है। इसका अर्थ होता है - चोर , डाकू , गुलाम , काफिर , काला आदि।

जो ब्राह्मण (RSS) सबसे ज्यादा आज हिन्दू - हिन्दू की रट लगाये हुए है ये 1922 के पहले अपने को हिन्दू नहीं मानता था और हिन्दू शब्द को एक गाली मानता था, यहाँ तक की आज भी ये ब्राह्मण दिल से अपने आपको हिन्दू नहीं मानते हैं।

अगर विश्वास न हो तो किसी ब्राह्मण से पूछ कर देख सकते की तुम कौन हो?
जवाब मिलेगा मैं ब्राह्मण हूँ न कि हिन्दू?

इस देश में जिस धर्म को आज हम हिन्दू धर्म के नाम से जानते हैं पहले ब्राह्मण धर्म के नाम से जाना जाता था और यही शब्द वेदों में भी वर्णित है।

एक बात और सोचनें वाली है कि अगर ये लोग अपने आपको हिन्दू मानते तो क्या 1875 में दयानंद सरस्वती नामक ब्राह्मण आर्य समाज की स्थापना करते या फिर हिन्दू समाज की।

यहाँ तक कि जब मुगलों द्वारा इस देश के हिंदुओं के ऊपर जब जजिया कर लगाया , तो ब्राह्मणों ने इस कर को यह कह कर मना कर दिया था कि मैं तो तुम्हारी तरह ही विदेशी हूँ और मैं ब्राह्मण हूँ कोई हिन्दू नहीं( हिन्दू शब्द इस देश के असली वाशिंदों के लिए प्रयुक्त किये गए थे)।

ब्राह्मणों का ये भी कहना था कि एक विदेशी दूसरे विदेशी से कैसे कर ले सकता है? हिंदुओं से कर लिया जाय, हम लोगों से नहीं क्योंकि मैं ब्राह्मण हूँ हिन्दू नहीं।

इस बात को और आगे ले जाते हुए उनके दरबारों में न सिर्फ ये लोग मंत्री बन बैठे बल्कि अपने आपको हिन्दू कर( जजिया कर) से भी मुक्त करवा लिया।

साथियों जब 1917 में रशिया में क्रांति हुई और ठीक उसी समय ब्रिटेन में भी प्रौढ़ मताधिकार का आंदोलन शुरू हुई क्योंकि वहाँ लोकतंत्र तो थी , लेकिन सभी लोगों को मत देने का अधिकार नहीं थी।

इस आंदोलन के डर से यहाँ के ब्राह्मणों ने एक बार पुनः पैतरा बदला और अपने आपको हिन्दू नाम की चादर में लपेट लिया, क्योंकि ब्रिटेन में अगर प्रौढ़ मताधिकार लागू होती तो भारत में भी ये लागु होना ही था क्योंकि भारत पर तब ब्रिटेन का शासन था।

इनको डर था की अगर भारत में प्रौढ़ मताधिकार लागू होता है (जैसा की बाद में हुआ भी) तो सत्ता ब्राह्मणों के हाथ से छीनकर यहाँ के शूद्रों के हाथों में चली जाती, क्योंकि लोकतंत्र में तो सत्ता चुनने का हक़ जानता के पास होता है और इस देश की 85% जनता शुद्र थी।

इसलिए शासन - सत्ता पर कब्ज़ा करने के उद्देश्य से इन ब्राह्मणवादियों ने सिर्फ हिन्दू हिन्दू चिल्लाना शुरू किया बल्कि 1922 में हिन्दू महासभा का गठन करके उसपर अपना कब्ज़ा भी जमा लिया जो आज भी निरंतर जारी है और अपने को पहली बार मजबूरी में हिन्दू कहलाना स्वीकार किया वो भी राजनितिक स्वार्थ सिद्धि के लिए तथा अपने को अल्पसंख्यक से बहुसंख्यक बनाने के लिए।

यही नहीं ठीक इसके 3 साल बाद 27 सितम्बर 1925 को इन्होने मनुसमिर्ती के सिद्धान्तों को लागु करने के लिए एक ब्राह्मण, हेडगेवार ने एक नया ब्राह्मणी संगठन बनाया, जिनको हम RSS के नाम से जानते हैं। जिसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कभी कोई हिस्सा नहीं लिया और जिसका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ एक था ।
इस देश में ब्राह्मणवाद स्थापित करना यानि वर्ण और जातिव्यवस्था को मजबूती से इस देश में पुनर्स्थापित करना, हिन्दू मुस्लिम दंगे करवाना और इन देश में आज़ादी के बाद भी धर्म के नाम की सत्ता स्थापित करना जिसमे वो आज़ादी के बाद से अब तक पूर्णतया सफल हैं क्योंकि हम इसके चल को समझ नहीं पाते हैं और इलेक्शन के टाइम पर हिन्दू बनकर इनको जीत देते जो सत्ता पते ही पुनः हमें जातियों में बाँट देते हैं।

हम सबको पता होना चाहिए कि इस देश का 99 % मुसलमान कोई और नहीं बल्कि ब्राह्मणों के द्वारा सताया गया हिन्दू है जिन्होने ब्राह्मणवाद/उच-नीच से तंग आकर अपने आर्थिक और सामाजिक सम्मान पाने के लिए अपना धर्म त्याग किया था जो असल में हमारे ही भाई हैं।

ब्राह्मणवादी लोग हम लोगों को आपस में लड़ाने का काम कर रहे हैं। यह हम सब लोगों को आपस में समझना पड़ेगा।

इसलिए आज से हम सब मिलकर कसम खाएं कि
1) धर्म के नाम पर ब्राह्मणों द्वारा फैलाये जानेवाले दंगे का कभी हिस्सेदार नहीं बनेंगे,
2) आज से ब्राह्मणवाद/ ब्राह्मण को मिटाने के लिए संघर्ष शुरू करेंगे
3) ब्राह्मणों द्वारा दंगे फ़ैलाने की चेष्टा करने पर हमसब जाकर मुस्लमान भाइयों को ब्राह्मणों का घर दिखा देंगे की ढोग फैलानेवाले ब्राह्मण है हम सब नहीं।
4) मुस्लमान भाइयों के साथ मिलकर ब्राह्मणवाद/ब्राह्मण को मिटा देंगे और पहले इनको कश्मीर से विष्ठापित किया गया था अब इनको इस देश से विस्थापित कर इनको इनके गृहस्थं यूरेशिया पहुंच देंगे।
5) शोषित वर्ग के सभी जाति के लोग तथा इस देश में जन्मे परंतु आज अल्पसंख्यक के क्षद्म नाम से जाने जानेवाले हम सभी भाई आपस में मिलकर रहेंगे और मिलकर इस देश में संविधान लागु करने की जंग शुरू करेंगे जो हमें समता,स्वतंत्रता, बंधुत्व की शिक्षा देता है हमें अपने मौलिक अधिकार देता है उसकी प्राप्ति के लिए और मनुवाद को जड से उखार फेकने के लिए मिलकर संघर्ष करेंगे।

👉 क्योंकि इस देश का दुश्मन ब्राह्मण
👉 आपका दुश्मन ब्राह्मण
👉 मेरा दुश्मन ब्राह्मण
👉 हमारा दुश्मन ब्राह्मण
👉 देशद्रोही ब्राह्मण
👉 समाज द्रोही ब्राह्मण
👉 देश और समाज के विकाश का दुश्मन ब्राह्मण
👉 उच्च-नीच,छुवाछुत फैलानेवाला ब्राह्मण
👉 मनु समिर्ति/आतंकवादी शास्त्र लिखनेवला ब्राह्मण
👉 दुनियां में आतंकवाद/मनुवादRSS का जनक ब्राह्मण
👉दंगे भड़कानेवाला ब्राह्मण
👉हमें आपस में लड़नेवाला ब्राह्मण
👉समाज तोड़नेवाला ब्राह्मण
👉 राम, कृष्ण, हनुमान, दुर्गा, काली, शंकर आदि फर्जी भगवानों और देवी देवताओं को बनाने वाले ब्राह्मण
👉 वेद, पुराण, शास्त्र, भगवतगीता, रामायण आदि सैकड़ों काल्पनिक ग्रथों को लिखने वाले ब्राह्मण।
ब्राह्मण इंसान नहीं है ब्राह्मणी व्यवस्था का एक वर्ण है और एक जाति है।
हम वर्ण और जाति व्यवस्था को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं किसी व्यक्ति को नहीं।

तो चलो हम सब मिलकर कदम बढ़ाएं।

ब्राह्मण /ब्राह्मणवाद/आतंकवाद को जड़ को मिटाये।

हम सब मिलकर अपना नया भारतवर्ष बनाएं।

08/05/2022

Reel kaise banate hai Instagram par

02/05/2022

सूचना:-
D.B CAMPUS की घोषणाएं........❤️
1.अलीगढ़ परिक्षेत्र का ऐसा कोई छात्र/छात्रा जो कि विकलांग/दिव्यांग है, को निशुल्क सरकारी नौकरी की तैयारी करवाई जाएगी।

2.अलीगढ़ परिक्षेत्र की ऐसी कोई विधवा महिला जो कि सरकारी नौकरी करने की इच्छुक हैं,को निशुल्क सरकारी नौकरी की तैयारी करवाई जाएगी।

3.अलीगढ़ परिक्षेत्र के ऐसे सभी समुदाय (जनरल,ओबीसी,एससी) जिनके आय प्रमाण पत्र के विवरण में वार्षिक आय 50,000 रू हो,के लिए शुल्क (फीस) में 40% की छूट होगी।

4.अलीगढ़ परिक्षेत्र का ऐसा कोई छात्र/छात्रा जिनके अंदर सरकारी नौकरी पाने का सपना हो, यदि वह शुल्क (फीस) देने की स्थिति में नहीं हैं, बिना एक पैसा दिए निशुल्क शिक्षा प्राप्त कर सकता है।

मुख्य बातें:-
D.B.CAMPUS द्वारा बैचेस का शुल्क ( फीस) इस प्रकार नियत किया गया है।
SSS (CGL,CPO,MTS):- 6500 /-
BANK:- 6500/-
RAILWAY:- 5500/-
POLICE/SSC (GD) 5500/-
CET , PET:- 5000/-
TET, C - TET 5500/-
SUPER - TET :- 6000/-

सभी बैचस के लिए डेमो 7 दिन के होंगे। आपको chilled & hygiene environment दिया जाएगा, क्योंकि पूरा कैंपस fully AC है।
पता:-विक्रम पैलेस ज्वाला पुरी पुलिस चौकी के पास एटा चुंगी जीटी रोड अलीगढ़।

कोई भी इच्छुक व्यक्ति दिए गए संपर्क सूत्रों के माध्यम से अधिक जानकारी प्राप्त कर सकता है।
9058100653 बिक्रम ठाकुर सर
6395986260 धीरज कुशवाहा सर

D.B.CAMPUS आपसे ऐसी आशा/अपेक्षा रखता है कि यह आवाज
आप वहां तक पहुंचाएंगे जहां तक पहुंचने की इसे सख्त जरूरत है।
आप इस सूचना को वॉट्सएप,फेसबुक,इंस्टाग्राम या अन्य कोई माध्यम अपनाकर प्रसारित कर सकते हैं। 🙏

#पढ़े_अलीगढ़_आगे_बढ़े_अलीगढ़........
अलीगढ़ कीर्तिमान स्थापित करेगा ❤️

01/05/2022

#राम_राज्य_कितना_घिनोना_था ?

राम के समय को तुम रामराज्य कहते हो। हालात आज से भी बुरे थे।
कभी भूल कर रामराज्य फिर मत ले आना! एक बार जो भूल हो गई, हो गई। अब दुबारा मत करना।

राम के राज्य में आदमी बाजारों में गुलाम की तरह बिकते थे। कम से कम आज आदमी बाजार में गुलामों की तरह तो नहीं बिकता!
और जब आदमी गुलामों की तरह बिकते रहे होंगे, तो दरिद्रता निश्चित रही होगी, नहीं तो कोई बिकेगा कैसे ? किसलिए बिकेगा ? दीन और दरिद्र ही बिकते होंगे, कोई अमीर तो बाजारों में बिकने न जाएंगे।
कोई टाटा, बिड़ला, डालमिया तो बाजारों में बिकेंगे नहीं।

स्त्रियां बाजारों में बिकती थीं! वे स्त्रियां गरीबों की स्त्रियां ही होंगी। उनकी ही बेटियां होंगी। कोई सीता तो बाजार में नहीं बिकती थी। उसका तो स्वयंवर होता था।
तो किनकी बच्चियां बिकती थीं बाजारों में ?
और हालात निश्चित ही भयंकर रहे होंगे।
क्योंकि बाजारों में ये बिकती स्त्रियां और लोग आदमी और औरतें दोनों, विशेषकर स्त्रियां-राजा तो खरीदते ही खरीदते थे, धनपति तो खरीदते ही खरीदते थे,

जिनको तुम *ऋषि-मुनि* कहते हो, वे भी खरीदते थे! गजब की दुनिया थी! ऋषि-मुनि भी बाजारों में बिकती हुई स्त्रियों को खरीदते थे!

अब तो हम भूल ही गए वधु शब्द का असली अर्थ। अब तो हम शादी होती है नई-नई, तो वर-वधु को आशीर्वाद देने जाते हैं। हमको पता ही नहीं कि हम किसको आशीर्वाद दे रहे हैं!

राम के समय में, और राम के पहले भी–वधु का अर्थ होता था, खरीदी गई स्त्री! जिसके साथ तुम्हें पत्नी जैसा व्यवहार करने का हक है, लेकिन उसके बच्चों को तुम्हारी संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होगा!
पत्नी और वधु में यही फर्क था। सभी पत्नियां वधु नहीं थीं, और सभी वधुएं पत्नियां नहीं थीं। वधु नंबर दो की पत्नी थी। जैसे नंबर दो की बही होती है न, जिसमें चोरी-चपाटी का सब लिखते रहते हैं!
ऐसी नंबर दो की पत्नी थी वधु।

ऋषि-मुनि भी वधुएं रखते थे! और तुमको यही भ्रांति है कि ऋषि-मुनि गजब के लोग थे। कुछ खास गजब के लोग नहीं थे। वैसे ऋषि-मुनि अभी भी तुम्हें मिल जाएंगे।

इन ऋषि-मुनियों में और तुम्हारे पुराने ऋषि-मुनियों में बहुत फर्क मत पाना तुम। कम से कम इनकी वधुएं तो नहीं हैं!
कम से कम ये बाजार से स्त्रियां तो नहीं खरीद ले आते! इतना बुरा आदमी तो आज पाना मुश्किल है जो बाजार से स्त्री खरीद कर लाए।
आज यह बात ही अमानवीय मालूम होगी! मगर यह जारी थी!

रामराज्य में शूद्र को हक नहीं था वेद पढ़ने का! यह तो कल्पना के बाहर की बात थी, कि डाक्टर अम्बेडकर जैसा अतिशूद्र और राम के समय में भारत के विधान का रचयिता हो सकता था! असंभव !!

खुद राम ने एक शूद्र के कानों में सीसा पिघलवा कर भरवा दिया था–गरम सीसा, उबलता हुआ सीसा! क्योंकि उसने चोरी से, कहीं वेद के मंत्र पढ़े जा रहे थे, वे छिप कर सुन लिए थे।
यह उसका पाप था; यह उसका अपराध था। और राम तुम्हारे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं! राम को तुम अवतार कहते हो!

और *महात्मा गांधी* रामराज्य को फिर से लाना चाहते थे। क्या करना है? शूद्रों के कानों में फिर से सीसा पिघलवा कर भरवाना है ? उसके कान तो फूट ही गए होंगे। शायद मस्तिष्क भी विकृत हो गया होगा।
उस गरीब पर क्या गुजरी, किसी को क्या लेना-देना! शायद आंखें भी खराब हो गई होंगी।
क्योंकि ये सब जुड़े हैं; कान, आंख, नाक, मस्तिष्क, सब जुड़े हैं। और दोनों कानों में अगर सीसा उबलता हुआ…!

तुम्हारा खून क्या खाक उबल रहा है *निर्मल घोष* उबलते हुए शीशे की जरा सोचो! उबलता हुआ सीसा जब कानों में भर दिया गया होगा, तो चला गया होगा पर्दों को तोड़ कर, भीतर मांस-मज्जा तक को प्रवेश कर गया होगा; मस्तिष्क के स्नायुओं तक को जला गया होगा। फिर इस गरीब पर क्या गुजरी, किसी को क्या लेना-देना है! धर्म का कार्य पूर्ण हो गया।
ब्राह्मणों ने आशीर्वाद दिया कि राम ने धर्म की रक्षा की। यह धर्म की रक्षा थी! और तुम कहते हो, “मौजूदा हालात खराब हैं!’

*युधिष्ठिर* जुआ खेलते हैं, फिर भी धर्मराज थे! और तुम कहते हो, मौजूदा हालात खराब हैं!
आज किसी जुआरी को धर्मराज कहने की हिम्मत कर सकोगे ? और जुआरी भी कुछ छोटे-मोटे नहीं, सब जुए पर लगा दिया। पत्नी तक को दांव पर लगा दिया!
एक तो यह बात ही अशोभन है, क्योंकि पत्नी कोई संपत्ति नहीं है। मगर उन दिनों यही धारणा थी, स्त्री-संपत्ति!

उसी धारणा के अनुसार आज भी जब बाप अपनी बेटी का विवाह करता है, तो उसको कहते हैं कन्यादान!
क्या गजब कर रहे हो! गाय-भैंस दान करो तो भी समझ में आता है। कन्यादान कर रहे हो! यह दान है? स्त्री कोई वस्तु है? ये असभ्य शब्द, ये असंस्कृत हमारे प्रयोग शब्दों के बंद होने चाहिए। अमानवीय हैं, अशिष्ट हैं, असंस्कृत हैं।

मगर युधिष्ठिर धर्मराज थे।
और दांव पर लगा दिया अपनी पत्नी को भी! हद्द का दीवानापन रहा होगा। पहुंचे हुए जुआरी रहे होंगे। इतना भी होश न रहा। और फिर भी धर्मराज धर्मराज ही बने रहे; इससे कुछ अंतर न आया। इससे उनकी प्रतिष्ठा में कोई भेद न पड़ा। इससे उनका आदर जारी रहा।

- भीष्म पितामह-
को ब्रह्मज्ञानी समझा जाता था। मगर ब्रह्मज्ञानी कौरवों की तरफ से युद्ध लड़ रहे थे! गुरु द्रोण को ब्रह्मज्ञानी समझा जाता था। मगर गुरु द्रोण भी कौरवों की तरफ से युद्ध लड़ रहे थे! अगर कौरव अधार्मिक थे, दुष्ट थे, तो कम से कम भीष्म में इतनी हिम्मत तो होनी चाहिए थी!

और बाल-ब्रह्मचारी थे और इतनी भी हिम्मत नहीं?
तो खाक ब्रह्मचर्य था यह! किस लोलुपता के कारण गलत लोगों का साथ दे रहे थे? और द्रोण तो गुरु थे अर्जुन के भी, और अर्जुन को बहुत चाहा भी था।
लेकिन धन तो कौरवों के पास था; पद कौरवों के पास था; प्रतिष्ठा कौरवों के पास थी। संभावना भी यही थी कि वही जीतेंगे। राज्य उनका था।
पांडव तो भिखारी हो गए थे। इंच भर जमीन भी कौरव देने को राजी नहीं थे। और कसूर कुछ कौरवों का हो, ऐसा समझ में आता नहीं।
जब तुम्हीं दांव पर लगा कर सब हार गए, तो मांगते किस मुंह से थे? मांगने की बात ही गलत थी। जब हार गए तो हार गए। खुद ही हार गए, अब मांगना क्या है ?

लेकिन गुरु द्रोण भी अर्जुन के साथ खड़े न हुए...खड़े हुए उनके साथ जो गलत थे।

यही गुरु द्रोण एकलव्य का अंगूठा कटवा कर आ गए थे अर्जुन के हित में, क्योंकि तब संभावना थी कि अर्जुन सम्राट बनेगा।
तब इन्होंने एकलव्य को इनकार कर दिया था शिक्षा देने से। क्यों? क्योंकि शूद्र था। और तुम कहते हो, “मौजूदा हालात बिलकुल पसंद नहीं!’

निर्मल घोष, एकलव्य को मौजूदा हालात उस समय के पसंद पड़े होंगे ? उस गरीब का कसूर क्या था ? अगर उसने मांग की थी, प्रार्थना की थी कि मुझे भी स्वीकार कर लो शिष्य की भांति, मुझे भी सीखने का अवसर दे दो ? लेकिन नहीं, शूद्र को कैसे सीखने का अवसर दिया जा सकता है !!!

मगर एकलव्य अनूठा युवक रहा होगा। अनूठा इसलिए कहता हूं कि उसका खून नहीं खौला। खून खौलता तो साधारण युवक, दो कौड़ी का।
सभी युवकों का खौलता है, इसमें कुछ खास बात नहीं। उसका खून नहीं खौला। शांत मन से उसने इसको स्वीकार कर लिया। एकांत जंगल में जाकर गुरु द्रोण की प्रतिमा बना ली।
और उसी प्रतिमा के सामने शर-संधान करता रहा। उसी के सामने धनुर्विद्या का अभ्यास करता रहा। अदभुत युवक था। उस गुरु के सामने धनुर्विद्या का अभ्यास करता रहा जिसने उसे शूद्र के कारण इनकार कर दिया था; अपमान न लिया।
अहंकार पर चोट तो लगी होगी, लेकिन शांति से, समता से पी गया।

धीरे-धीरे खबर फैलनी शुरू हो गई कि वह बड़ा निष्णात हो गया है। तो गुरु द्रोण को बेचैनी हुई, क्योंकि बेचैनी यह थी कि खबरें आने लगीं कि अर्जुन उसके मुकाबले कुछ भी नहीं।
और अर्जुन पर ही सारा दांव था। अगर अर्जुन सम्राट बने, और सारे जगत में सबसे बड़ा धनुर्धर बने, तो उसी के साथ गुरु द्रोण की भी प्रतिष्ठा होगी। उनका शिष्य, उनका शागिर्द ऊंचाई पर पहुंच जाए, तो गुरु भी ऊंचाई पर पहुंच जाएगा।
उनका सारा का सारा न्यस्त स्वार्थ अर्जुन में था। और एकलव्य अगर आगे निकल जाए, तो बड़ी बेचैनी की बात थी।

तो यह बेशर्म आदमी, जिसको कि ब्रह्मज्ञानी कहा जाता है, यह गुरु द्रोण, जिसने इनकार कर दिया था एकलव्य को शिक्षा देने से, यह उससे दक्षिणा लेने पहुंच गया! शिक्षा देने से इनकार करने वाला गुरु, जिसने दीक्षा ही न दी, वह दक्षिणा लेने पहुंच गया!
हालात बड़े अजीब रहे होंगे! शर्म भी कोई चीज होती है! इज्जत भी कोई बात होती है! आदमी की नाक भी होती है! ये गुरु द्रोण तो बिलकुल नाक-कटे आदमी रहे होंगे! किस मुंह से–जिसको दुत्कार दिया था–उससे जाकर दक्षिणा लेने पहुंच गए!

और फिर भी मैं कहता हूं, एकलव्य अदभुत युवक था; दक्षिणा देने को राजी हो गया। उस गुरु को, जिसने दीक्षा ही नहीं दी कभी! यह जरा सोचो तो! उस गुरु को, जिसने दुत्कार दिया था और कहा कि तू शूद्र है! हम शूद्र को शिष्य की तरह स्वीकार नहीं कर सकते!

बड़ा मजा है! जिस शूद्र को शिष्य की तरह स्वीकार नहीं कर सकते, उस शूद्र की भी दक्षिणा स्वीकार कर सकते हो! मगर उसमें षडयंत्र था, चालबाजी थी।

उसने चरणों पर गिर कर कहा, आप जो कहें। मैं तो गरीब हूं, मेरे पास कुछ है नहीं देने को। मगर जो आप कहें, जो मेरे पास हो, तो मैं देने को राजी हूं। यूं प्राण भी देने को राजी हूं।

तो क्या मांगा? मांगा कि अपने दाएं हाथ का अंगूठा काट कर मुझे दे दे!

जालसाजी की भी कोई सीमा होती है! अमानवीयता की भी कोई सीमा होती है! कपट की, कूटनीति की भी कोई सीमा होती है! और यह ब्रह्मज्ञानी!
उस गरीब एकलव्य से अंगूठा मांग लिया। और अदभुत युवक रहा होगा, निर्मल घोष, दे दिया उसने अपना अंगूठा!
तत्क्षण काट कर अपना अंगूठा दे दिया! जानते हुए कि दाएं हाथ का अंगूठा कट जाने का अर्थ है कि मेरी धनुर्विद्या समाप्त हो गई।
अब मेरा कोई भविष्य नहीं। इस आदमी ने सारा भविष्य ले लिया।
शिक्षा दी नहीं, और दक्षिणा में, जो मैंने अपने आप सीखा था, उस सब को विनिष्ट कर दिया।

अमित_कुमार_भारती

27/04/2022

बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर सदा सूट-बूट पहने रहते थे तो शुरुआती दिनों में लोगों को लगा कि विलायती बाबू होने का नशा है इसलिए पेंट की जेब से हाथ नहीं निकाल सकते अम्बेडकर। कई लोगों ने ध्यान दिलाया, मज़ाक बनाया, ताना सुनाया मगर डॉक्टर अम्बेडकर न गुस्सा करते, न असहज होते और न घमंड में रहते। बस चुपचाप मुस्कुराते और अपना काम करते।

एकदिन किसी राष्ट्रवादी पत्रकार ने उनसे पूछ ही लिया कि गाँधीजी को देखिए एक अधनंगी महिला को देखकर अपने वस्त्रों का त्याग कर दिया और कहा जबतक देश के एक-एक व्यक्ति के तन पर कपड़ा न हो तबतक मैँ पूरे कपड़े नहीं पहनूंगा और उन्होंने विलायती कपड़े जलाकर स्वदेशी अपनाए लेकिन आप? आपको नहीं लगता आपका समाज?

डॉक्टर अम्बेडकर मुस्कुराते हुए। गाँधीजी एक महिला को देखकर इतना बड़ा त्याग किया, वह उनकी समझ लेकिन जिस समाज से मैं आया हूँ वहां एक भी महिला या पुरुष बदन में पूरे कपड़े नहीं पहन सके। मैँ इसलिए सूट-बूट पहनता हूँ ताकि समाज के लोग इससे भी प्रेरणा ले सकें क्योंकि वे कई तो सक्षम हैं मगर डरपोक भी हैं और आप जैसों की वजह से असहज भी।

वे जिस समाज में रहते हैं वहां उन्हें अच्छे कपड़े पहनने पर प्रतिबंध है, कहते हैं, यदि तुम अच्छे कपड़े पहनेंगे तो हम क्या पहनेंगे? उन्हें कोई प्रेरणा चाहिए क्योंकि प्रेरणा से ही क्रांति आती है, आदर्श बनते हैं। मेरे ऐसा करने से कितना बदलाव आया ये आप नहीं समझ पाएंगे लेकिन इतना समझ लीजिए कि अधनंगा रहना स्वदेशी या राष्ट्रवाद नहीं है।

भविष्य में सबके तन पर कपड़ा हो यह विचार अच्छा है। कपड़े के साथ सम्मान, स्वाभिमान और आत्मसम्मान भी रोटी, कपड़ा, मकान से ज्यादा जरूरी है। आज जब मूंछ रखने, मन्दिर जाने, घोड़ी चढ़ने, कुर्सी पर बैठने, खाना छूने इत्यादि भर से जान ली जा रही, तब तमाम बातें समझ आ रही है। असँख्य विषय के कई पहलू अनदेखे या एकतरफा हैं, जो कि न्यायोचित नहीं

19/04/2022

🥀🌿जय 🙏🙏भीम 🌿🥀
‼️नमो बुद्धाय ‼️

भारत सदा क्यों खंडित हुई और हिन्दू सदा सीमित क्यों हुआ इस विषय पर क्या आरएसएस ने कभी जड़ तक पहुंच कर विमर्श किया होगा? ऊपरी तौर पर भले ही हम मुगल, अंग्रेज, जयचंद, औरंगजेब, अधर्मी, विधर्मी सबको दोषी माने या फिर मिशनरियों इत्यादि को कोसते जाएं लेकिन क्या कारण हैं जो हिन्दू धर्म आजतक भारत के बाहर ही निकल न सका? इसके उलट अपने ही देश में खतरे में रहती है?

अकबर और अशोक को छोड़कर किसी भी दौर में भारत अखंड नहीं रही। आजादी के समय में ही 500 से अधिक रियासतें थी जो खुद में एक-एक देश समान थे। एक राजा अपने पड़ोसी रियासत से जाने कब लड़ जाये और यदि पड़ोसी मजबूत राजा हो तब दूर के राजा से समझौता करके षड्यंत्र के तहत पड़ोसी राजा पर आक्रमण कर जाए नहीं पता। कई आक्रमणकारी इसी वजह से भारत लाये गये थे।

इस मित्रता और शत्रुता के असंख्य उदाहरण इतिहास में विधमान है। जिनमें हिन्दू-मुस्लिम रिश्तेदारी सबसे अग्रणी है। राजा की हजारों रानियां ही उसकी मुख्य उपलब्धि रही है। बाक़ी तो मौज,मस्ती, अय्याशी और शोषण यही इतिहास रही है राजप्रथाओं की कोई राजा ईमानदार हो तो प्रजा का सौभाग्य अन्यथा सीमित रियासत वहां की जनता के लिए काल कोठरी समान भी रहे हैं। उनकी दुनिया, उनका हाई कोर्ट, उनका सुप्रीम कोर्ट सब सीमित थी।

उसके बाद बात है हिंदुओं की। हिन्दू धर्म खतरे में रही क्योंकि इसमें जाति व्यवस्था थी। आज भी कोई हिन्दू धर्म अपनाने में अक्षम है क्योंकि बदले में जाति कौन सी मिलेगी? देश गुलाम बनने का मुख्य कारण ही यह जाति व्यवस्था थी। ब्राह्मण पढ़ने, पढ़ाने में असफल रहे, क्षत्रिय बाहरी आक्रमण रोकने में अक्षम रहे, वैश्य धन, सम्पदा सम्भालने में असफल रहे और शूद्रों को अधिकार ही नहीं कोई। ऐसे में लुटेरे सबकुछ लूट ले गये। आज भी वही चल रही है।

आप हर वर्ष के आंकड़े निकालिए जो भी व्यक्ति सक्षम हो जाता है वह देश छोड़कर विदेश बस जाता है। अच्छी शिक्षा, अच्छा स्वास्थ्य, अच्छी सुरक्षा, अच्छा माहौल आज भी यहां एक चुनौती है। ऊपर से जाति व्यवस्था जिसने सरेआम बंटवारे का ऐलान किया हुआ है ऐसे में एकता, अखंडता कैसे आयेगी? आत्मसम्मान के लिए लोग इस व्यवस्था को त्याग रहे हैं। क्या आरएसएस ने इस विषय पर चिंतन,मंथन किया होगा?

डॉ अंबेडकर ने धर्म के विषय में लिखा था कि धार्मिक एकता का सबसे बड़ा सिद्धांत होता है उसकी उपासना पद्धति। यानि एक समय में, एक साथ बैठकर, एक ईश्वर की उपासना करना ही धार्मिक एकता है लेकिन क्या यह हिन्दू धर्म में सम्भव है? क्या सभी जाति के लोग एकसाथ, एक ईश्वर की एक समान पूजा कर सकते हैं? यदि नहीं तो हिन्दू कभी मिशनरी धर्म नहीं बन सकती है इसलिए वह खंडित और सीमित है।

यहां ब्राह्मण जाति के अतिरिक्त कोई अन्य जाति पुजारी नहीं हो सकते है जबकि अन्य धर्मों में उपासना पद्धति हो या पुजारी व्यवस्था सबके लिए समान अवसर है। यह अवसर समता, एकता का भाव प्रकट करते हैं। उच्च वर्ण का व्यक्ति अपने धर्म पर गर्व करेगा यह स्वाभाविक है लेकिन निम्न वर्णों की भावना के हिसाब सोचो, समझो, वह केवल अपमानित होने, सेवा करने या भीड़ दिखाने के लिए वहां उपलब्ध है?

बहुत लोग कहते हैं कि दूसरे धर्मों के लोग लालच देकर धर्म परिवर्तन करवाते हैं। कितनी विचित्र बात है यह? जितना धन मन्दिरों के पास है इस लिहाज से वे एक दिन में पूरी दुनिया को हिन्दू बना सकते हैं। अम्बानी और अडानी तो अपने, अपने धर्म खड़ा करते? जबतक असल मुददों को नहीं समझेंगे तबतक इसी प्रकार के कुतर्क चलते रहेंगे लेकिन वर्णव्यवस्था को समाप्त किये बगैर समता, एकता, बन्धुता, अखंडता नहीं आ सकती है।

12/04/2022

भारतीय संस्कृति और भिक्षावृत्ति.

भिक्षावृत्ति उन्मूलन कानून बने वर्षों हो चुके हैं, लेकिन भारत में प्रायः सर्वत्र बेरोकटोक भिक्षा मांगी जाती है और पुण्य अर्जन के लोभ में सर्वत्र श्रद्धापूर्वक दी.जाती है. ये भिक्षा मांगने वाले तरहतरह के स्वांग रचते हैं, जिस से लोगों की करुणा, भावना को जाग्रत किया जा सके. हिंदू लोग न केवल उन से प्रभावित हो कर भिक्षा प्रदान करते हैं, बल्कि हिंदू धर्म के संस्कारों के वशीभूत हो कर भी
ऐसा करते हैं.

पवित्र धर्म

हिंदू धर्म में भिक्षा को बहुत पवित्र कार्य कही गई है. संपूर्ण जीवन में द्विजों (ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ) के लिए जो सोलह संस्कार माने जाते हैं उन में से तीनसंस्कारों-उपनयन, वानप्रस्थ और संन्यास-में तो भिक्षा मांगने की शिक्षा दी जाती है. उपनयन संस्कार बचपन में विद्यारंभ करने से पहले करने का विधान है. इस संस्कार के आरंभ से 25 वर्ष की अवस्था तक विद्यार्थी के लिए भिक्षा मांगने का विधान है. 50वें वर्ष में वानप्रस्थ है, 75वें वर्ष में संन्यास ग्रहण करने का विधान है. दोनों में फिर भिक्षावृत्ति अपनाने का आदेश है. संक्षेप में, जीवन के पहले 25 वर्षों तक और फिर 50 वें से मृत्युपर्यंत भीख मांग.कर जीवन निर्वाह करने का हिंदू धर्मशास्त्रों में विधान है. केवल गृहस्थाश्रम के 25
वर्षों में अन्य साधन अपनाने का नियम है. (यह शूद्रों पर लागू नहीं होती, केवल द्विजों के लिए है, शूद्र काम न करें तो जीवन ही न चले.) विभिन्न धर्मशास्त्रों-स्मृतियों, धर्मसूत्रों, गृह्यसूत्रों और संस्कार विधियों-में पूर्वोक्त तीनों संस्कारों के संदर्भ में भिक्षा के विभिन्न पक्षों पर हिंदू धर्माचार्यों ने पर्याप्त प्रकाश डाला है. उपनयन संस्कार अर्थात विद्यारंभ संस्कार के समय दंडधारण और अग्नि की प्रदक्षिणा कर के भिक्षा मांगने का विधान है. मनु ने इस प्रसंग में विस्तार सहित बताया है कि किस जाति का आदमी भिक्षा मांगते समय किस प्रकार आवाज लगाए और.पहले किसकिस से भिक्षा मांगनी शुरू करे:
प्रदक्षिणं परीत्याग्नि चरेद् भैक्षं यथाविधि,

भवत्पूर्वं चरेद् भैक्षमुपनीतो द्विजोत्तमः..
भवन्मध्यं तु राजन्यो वैश्यस्तु भवदुत्तरम्.
मातरं वा स्वसारं वा मातुर्वा भगिनी निजाम्..
भिक्षेत भिक्षां प्रथमं या चैनं नावमानयेत्.
समाहृत्य तु तद् भैक्षं यावदन्नममायया..
निवेद्य गुरवेऽश्नीयादाचम्य प्राङ्मुखः शुचिः..
-मनुस्मति 2/48-51
अर्थात ब्रह्मचारियों को अग्नि की प्रदक्षिणा कर के विधिपूर्वक भिक्षा मांगनी चाहिए. भिक्षा मांगते समय ब्राह्मणजातीय ब्रह्मचारी भवति, भिक्षा देहि (भद्रे, भिक्षा
दो) कहे, क्षत्रिय-जातीय ब्रह्मचारी भिक्षा भवति देहि (भिक्षा दो, भद्रे) कहे. और वैश्य-जातीय ब्रह्मचारी भिक्षां देहि भवति (भिक्षा दो, भद्रे) कहे. सर्वप्रथम भिक्षा
माता या बहन या सगी मौसी या उस से जो अवश्य भिक्षा दे, मांगनी चाहिए. इस तरह मांग कर इकट्ठी की हुई भिक्षा को बिना किसी उत्कृष्ट वस्तु को छिपाए गुरु के
सामने रख दे. गुरु की आज्ञा पाने के बाद उसे खाए.
भिक्षा में प्राप्त वस्तु यही बात बौधायन धर्मसूत्र (1/2/17), याज्ञवल्क्य स्मृति (1/30), शांखायन
गृह्यसूत्र (2/6/5-8), गोभिल गृह्यसूत्र (2/10/42-44), खादिर गृह्यसूत्र (2/4/28/31) जैसे पुराने और संस्कार विधि (पृ. 114-115, स्वामी दयानंद रचित), षोडश संस्कार विधि (पृ. 195, पं. भीमसेन शर्मा कृत) आदि अर्वाचीन ग्रंथों में कही गई है. याज्ञवल्क्य स्मृति में भिक्षा में प्राप्त वस्तु को पवित्र कही है ( देखें 1/187 ). मनु
ने कहा है
भैक्षेण व्रतिनो वृत्तिरुपवाससमा स्मृता.
-मनु. 2/188
अर्थात भिक्षा मांग कर खाने का फल उपवास (व्रत) करने के समान है. मनुस्मृति में ही अन्यत्र भिक्षा मांग कर खाने को सोमरस-पान के समान घोषित किया है।

सोमपानसमं भैक्ष्यं तस्माद् भैक्षेण वर्तयेत्
-मनु. अ. 2 के श्लोक 188 के बाद
अर्थात भिक्षा मांग कर खाना सोमरस पीने के समान पुण्यकार्य है. अतः हमेशा भिक्षा मांगे. इन विधानों से स्पष्ट है कि धर्मशास्त्रकार पेशेवर भिखारी बनाने वालों की तरह ब्रह्मचारी अर्थात विद्यार्थी को भिक्षा मांगने की शिक्षा देने में बहुत सचेत थे. उन्हें ध्यान था कि यदि पहले दिन ही भिक्षा मांगने पर ब्रह्मचारी को कहीं से 'न' सुनना पड़ा तो वह हतोत्साहित हो कर भीख मांगना छोड़ सकता है. अतः उन्होंने पहले दिन ऐसे लोगों से भीख मांगने का विधान किया है, जो इनकार न करें. महामहोपाध्याय डा. पांडुरंग वामन काणे ने लिखा है: “ब्रह्मचारी को भिक्षा देने में कोई आनाकानी नहीं कर सकता था, क्योंकि ऐसा करने पर किए गए सत्कार्यों से उत्पन्न गुण, यज्ञादि से उत्पन्न पुण्य, संतान, पशु, आध्यात्मिक यश आदि का नाश हो जाती है." (धर्मशास्त्र का इतिहास, जिल्द 1, पृ. 226). प्रथम दिन के बाद ब्रह्मचारी निम्नलिखित विधान के अनुसार भिक्षा मांगा करेः

वेदज्ञैरहीनानां प्रशस्तानां स्वकर्मसु.
ब्रह्मचार्याहरेद् भैक्षं गृहेभ्यः प्रयतोऽन्वहम्..
गुरोः कुले न भिक्षेत न ज्ञातिकुलबंधुषु.
अलाभे त्वन्यगेहानां पूर्वं पूर्वं विवर्जयेत्..
सर्वं वापि चरेद् ग्रामं पूर्वोक्तानामसंभवे.
नियम्य प्रयतो वाचमभिशस्तांस्तु वर्जयेत्..
-मनुस्मृति, 2/183-185
अर्थात वेदाध्ययन और पांच महायज्ञ करने वाले और अपने कर्म में श्रेष्ठ लोगोंके घरों से जितेंद्रिय ब्रह्मचारी प्रतिदिन भिक्षा मांगे. वह गुरु के कुल, अपनी जाति
वालों में और मामा, मौसी आदि कुल बांधवों से भिक्षा न मांगे. यदि भिक्षा मांगने योग्य दूसरा घर न मिले तब कुल बांधवों से मांगे. उन के अभाव में अपनी जाति वालों
से और उन के अभाव में गुरु के कुल में भिक्षा मांगे, किंतु महापातकियों के घरों को छोड़ दे. उन के यहां से भिक्षा न मांगे.

भिक्षा मांगना अनिवार्य

भिक्षा मांगना ब्रह्मचारियों (विद्यार्थियों) के लिए इतना अनिवार्य कही गई हैकि इसे छोड़ने पर दंड का विधान है:
अकृत्वा भैक्षचरणमसमिध्य च पावकम्,
अनातुरः सप्तरात्रमवकीर्णिव्रतं चरेत्
-मनु. 2/187
अर्थात यदि नीरोग रहते हुए भी ब्रह्मचारी सात दिन लगातार भिक्षा न मांगे और हवन न करे तो इस पाप से मुक्त होने के लिए अवकीर्णिव्रत करे.

अवकीर्णी तु काणेन गर्दभेन चतुष्पथे.
पाकयविधानेन यजेत निति निशि..
-मनुस्मृति. 11/118
अर्थात रात में काने गधे की चरबी से चौरस्ते पर पाकयज्ञ की विधि से 'निर्ऋति'नामक देवता के नाम पर यज्ञ करे (मनु. 11/118, मणिप्रभा व्याख्या). यही बात
बौधायन धर्मसूत्र ( 1/2/54) और विष्णु धर्मसूत्र ( 28/52 ) में कही गई है. जिस तरह हिंदुओं के धार्मिक जीवन में उपनयन संस्कार का महत्त्व है, उसी तरह
गृहस्थाश्रम के बाद वानप्रस्थ संस्कार का महत्त्व है. जाबालोपनिषद् खंड चार का एक वचन शतपथब्राह्मण के नाम पर उद्धृत कर के स्वामी दयानंद ने अपनी पुस्तक
'संस्कार विधि' के 'वानप्रस्थ संस्कार' प्रकरण में लिखा है

ब्रह्मचर्याश्रमं समाप्य गृही भवेद् गृही भूत्वा वनी भवेद्, वनी भूत्वा प्रव्रजेत्.
-1. शतपथब्राह्मणे
अर्थात मनुष्यों को उचित है कि ब्रह्मचर्याश्रम की समाप्ति कर के गृहस्थ होवें. गृहस्थ हो के बनी अर्थात वानप्रस्थ होवें, और वानप्रस्थ हो कर संन्यास ग्रहण करें. (पृ. 268, आर्यसमाज शताब्दी संस्करण). मनु ने लिखा है कि जब गृहस्थाश्रमी अपने शरीर के चमड़े को सिकुड़ा हुआ, बालों को पका हुआ और पौत्र के मुख को देख ले, तब वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश करे.

क्या बालू की भीत पर खड़ा है हिंदू धर्म पृष्ठ 100 / 101/ 102 / 103
क्रमशः

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