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■ भटकती हुई दीदी का रोग ! जिसका इलाज 4-5 विभागों में भटकने के बाद भी सही न होता 😂 ज्यादातर महिलाओं में एक खासियत होती है। घर गृहस्थी की कोई बात या खासकर रिश्तों में कोई बात हो गयी तो उसे वे अपनी मन के अंदर गांठ मार कर रखती है। या मान लो कोई दुःखद घटना हो गयी। इस गांठ को हम अपनी भाषा में #कॉग्निटिव_फ्यूजन कहतें है।
कॉग्निटिव फ्यूजन एक तरह की प्रोसेस होती है मानव मस्तिष्क में जो हमारे विचारों को मतलब थॉट्स को निजी जीवन के अनुभवों से जोड़ती है। हाँ नो डाउट ये बहुत अच्छी चीज है ; जैसे आपकी लव लाइफ, जीवनी, या कोई किस्सा किसी किताब की कहानी से मिलती है या कोई फ़िल्म की स्टोरी से इसलिए आपको वही सबसे ज्यादा पसंद आती है। आपकी कोई भी अच्छी आदत क्या है ? जैसे जल्दी जागना, ये कॉग्निटिव फ्यूजन ही है बस !!
लेकिन इस प्रक्रिया के विपरीत प्रभाव के कारण कुछ लोगों की मानसिक सेहत से ऐसे ऐसे रोग पैदा होतें हैं जो नाम आप कभी सोच भी न सकते। इस प्रोसेस के अनुकूल प्रभाव से कुछ महिलाओं में पैदा होता है दर्द ! इस दर्द को नाम दिया गया है #वाइडस्प्रेड पेन ! ये कमर से नीचे वाले अंगों में हो सकता है और चलते चलते कमर से ऊपर।
दर्द से कराहती दीदी ओपीडी आ चुकी है ! डॉक्टर इनके मन की नब्ज पकडने के बजाय डाक्टर इनके हाथ की नब्ज पकडे बैठा है !
लेकिन दीदी ने अपनी गमों वाली पोटली की गाँठ न खोली है !
डॉक्टर ने पर्चे में सीबीसी, एरिथ्रोसाइट सेडीमेंटेशन रेट, साइक्लिक सिट्रुलिनेटेड पेप्टाइड टेस्ट, रुमेटॉइड फैक्टर, थायराइड फ़ंक्शन, एंटी न्यूक्लियर एंटीबॉडी और विटामिन डी थ्री लिख के थमा दिया है। जाँचें लगभग नॉर्मल या बोर्डरलाइन है ! अब डॉक्टर बोलता है आपको #फाइब्रोमायल्जिया है ! दीदी को घण्टा समझ न आ रहा कि ये क्या हो गया ? दीदी पूछती है क्या है ये ?
ऐसी बीमारी है जिसमें पूरे शरीर में व्यापक मस्कुलोस्केलेटल दर्द के साथ याददाश्त, मनोदशा और नींद संबंधी डिसऑर्डर्स होते हैं। जैसे ही दीदी उस पोटली को टटोलती है और गम का अनुभव होता है बस विशेषज्ञों का कहना है कि फाइब्रोमायल्गिया रोगी की संवेदना में दर्द के कारकों को बढ़ाता है, जो इसलिए होता है क्योंकि जिस तरह से रोगी का मस्तिष्क इस शरीर पर दर्द संकेतों को संसाधित करता है, उससे दर्दनाक इंद्रियां(पेनफुल सेंसेस) प्रभावित होती हैं।
■ अभ्यांशी की उत्सुकता बढ़ती जा रही है...अब उसने जिद कर लिया है कि पापा मुझे भी हार्ट दिखाओ 🤨 पापा को समझ नहीं आ रहा है कि इसको कैसे दिखाऊँ की असली हार्ट कैसा होता है...कन्फ्यूज्ड पापा अब गूगल से हार्ट की फोटो निकाल के उसे फोन थमा देते हैं ! अभ्यांशी ने अब तक अपनी ड्रेस पर, कार्टून में, चॉकलेट के शेप में या तकियों का जो दिल देखा था वो कुछ ऐसा ❤️ था !!
लेकिन पापा के फोन में गूगल वाला दिल बिल्कुल अलग है 🤔
नन्हीं सी ये गुड़िया पापा की गोद में आ बैठी है और अब पापा को बोलती है...अच्छा ये है दिल ! जिसे हार्ट कहतें हैं ? लेकिन पापा ये तो ❤️ ऐसा बिल्कुल नहीं है। और ये कितना बड़ा है पापा ?
पापा उसे समझाते हुए बता रहें हैं ये देखो बेटा, जब आप छोटू से थे आपकी मम्मा के पेट में और केवल इक्कीस दिनों के थे। जब से यह नन्हें लाल गुब्बारे सा अंग ख़ून को पूरे शरीर में फेंक रहा है। और इसका साइज वयस्कों में एक बड़ी सेब जितना होता है बेटा !
गुड़िया - मतलब मेरे जन्मदिन से पहले ही ये धड़कना चालू हो गया था क्या पापा ?
👉 सुना होगा आपने कभी स्त्रीरोग विशेषज्ञ से गर्भवती महिलाओं की USG (सोनोग्राफी) रिपोर्ट देखकर कहते हुए की - बच्चे की धड़कन सही काम कर रही है !
👉 आ गया न कनविक्शन अब ?...की ये आपके जन्म से पहले ये आपका हार्ट जन्म ले चुका था !!
पापा - हाँ बिट्टू ! ये हार्ट एक पेरीकार्डियम नामक पतली झिल्ली से ढँका मांस का पिण्ड है, जो धड़क रहा है, जबसे आप मम्मी के गर्भ में थे और केवल इक्कीस दिनों के थे। तब से वह नन्हें लाल गुब्बारे जैसा अंग ख़ून को पूरे शरीर में फेंक रहा है। कब तक ? पूरी ज़िन्दगी तक। जब तक आपकी धड़कन है , तब तक आपका जीवन है।
अगर रंगों को देख भर लेना, किसी की वृत्ति को गढ़ सकता, तो अभ्यांशी के हिप्पोकैम्पस में ये उलझन न होती ! और अब वो जिज्ञासु भरे लहजे से पूछती है -
पापा हार्ट का खून तो लाल होता है न फिर ये आधा नीला क्यों है ?
अभ्यांशी के पापा जबाब की बजाय सवाल करतें है उस से 👇
पापा - आप स्कूल किसमें जाते हो ? गुड़िया - BUS में जाती हूँ !
पापा- ठीक वैसे ही खून हार्ट से लेकर जाती है वो है आर्टरी 🥰
पापा - और वापस किसमें आते हो ? गुड़िया - Van में आती हूँ !
पापा - और ठीक वैसे ही खून को वापस लाती है वो है वेन्स 🥰
पापा - देखो बेटा इसमें चार खाने यानी चैम्बर होते हैं। राइट वाले दो चैम्बरों में अशुद्ध कार्बनडायऑक्साइड भरा हुआ ये नीला वाला ख़ून शरीर से Vains द्वारा वापस आकर जमा होता है जैसे आप स्कूल से आती हो !!
और फिर यह फेफड़ों में जाकर अपनी कार्बनडायऑक्साइड को छोड़कर ऑक्सीजन ले लेता है। जैसे आप घर आकर स्कूल ड्रेस खोलकर मिकी माउस 🐭 वाला ड्रेस पहन लेती हो न वैसे ही 🥰
फिर दुबारा यह शुद्ध ऑक्सीजन वाला लाल रंग वाला ख़ून हृदय के लेफ्ट के दो चैम्बरों में वापस लौटता है जहाँ से इसे पूरे शरीर में धमनियों (Arteries) में पम्प कर दिया जाता है जैसे आप स्कूल जाते हो !
पापा समझातें हैं गुड़िया को की :- दिल के पास दो अलग-अलग नसें हैं ख़ून लाने और ले जाने के लिए। मोटी दीवारों वाली धमनियाँ जिनमें सुर्ख़ ख़ून है और पतली दीवारों वाली शिराएँ जिनका ख़ून सियाह है। धमनियाँ सभी अंगों तक ख़ून से ऑक्सीजन पहुँचाती हैं और शिराएँ मतलब (Vains) उस इस्तेमाल हो चुके ख़ून को वापस लाती हैं।
पापा - आपकी स्कूल बस बड़ी सी है न ? गुड़िया - हाँ !
पापा - ठीक वैसे ही आर्टरी भी बड़ी सी बड़ी मांसल होती है बेटा !
पापा - और आपकी वेन ? गुड़िया - वो तो छोटू सी है पापा ! हाँ तो अब याद रखना मोटी बड़ी मांसल आर्टरी और छोटू कम मांसल वाली वेन्स ! जो चमड़ी के नीचे चिपकी हुई दिखती है 😒 हाँ वही जहाँ हम सब अपने जीवन मे कभी न कभी कैनुला लगवाएं है 🙄
और फिर एक चैम्बर से दूसरे में ख़ून का प्रवाह वॉल्वों से होकर होता है जैसे आपकी स्कूल Bus रेलवे क्रोसिंग फाटक से होते हुए आती-जाती है न ?
अभ्यांशी को अब समझ आ रहा है की फाटक बंद होगा तो ट्रैफिक मतलब खून वहीं रुक जाएगा और जैसे ही फाटक खुलेगा खून वहाँ से निकल जायेगा या चैम्बर में भर जाएगा !
अभ्यांशी - तो इस पम्प से फेंकने वाले खून के प्रेशर की आवाज आपके अंदर से आ रही थी ? अभ्यांशी को समझ आ चुका है कि यही आवाज ब्लडप्रेशर की थी !
पापा - हाँ बेटा !! हार्ट में कुछ कोशिकाओं के द्वारा धड़कन का जन्म होता है। यानी उसकी मांसपेशियाँ एक ख़ास क्रम में ख़ून से भरती और पिचकती हैं। यह धड़कन ही हमें नब्ज़ पर महसूस होती है जिसकी सामान्य गति 60-100 के बीच प्रति मिनट होती है।
पापा पूछतें है अब अभ्यांशी को की बताओ आपको खेलने के बाद मैग्गी क्यों खानी होती है ? और आपके लिए मैग्गी कौन बनाता है ?
अभ्यांशी - खेलने के बाद भूख लग जाती है पापा इसलिए मैग्गी खाती हूँ और मम्मा मेरे लिए मैग्गी बनाकर लाती है !
पापा - ठीक ऐसे ही रोज काम करते इसके अंगों को भी ख़ून की आवश्यकता होती है, जो इसे कोरोनरी धमनियाँ मतलब आर्टरीज मुहैया कराती हैं। जैसे आपको मम्मा मैग्गी लाकर देती है न वैसे !
पापा को ऑफिस के लिए निकलना है और अभ्यांशी कि मम्मा उसे नहलाने के ले जाने को आ गई है...पापा बात को विराम देते हुए कहतें हैं :- इंसान के हार्ट में इनकी प्रमुख संख्या दो होती है और फिर इन दो प्रमुख कोरोनरी धमनियों की शाखाएँ और प्रशाखाएँ बनती जाती है 😊 जिनपर बातें कभी तस्सली से होंगी 🙏
#ब्लडप्रेशर_सीरीज EP - 3
अभ्यांशी अब चोकोबार लेकर स्कूल के लिए जा रही है 🥰
■ #चक्कर
👉 अब सुनो आप सब ! ओपीडी में मरीजों की कतारें लम्बी होती है समझ सकती हूँ ऐसे हालात में मरीजों को ये महत्वपूर्ण बात समझनी होगी कि आप जब भी डॉक्टर से मिलें, तो चक्कर के दौरान महसूस करने वाली सभी बातों को उन्हें खुलकर बताएं। इस स्थिति का पहला व यह सबसे महत्वपूर्ण कदम होता है, प्रयास करें कि अपने लक्षणों को और बेहतर समझें और डॉक्टर को उनसे और बेहतर अवगत कराएँ ताकि आपके रोग की सही पहचान हो सके, निदान का पता लगाने व इसके इलाज को सही दिशा दी जा सके। क्योंकि लक्षणों की विस्तृत समझ बीमारी को जानने में बड़ी भूमिका निभाती है।
👉 हमें आकर बताया करो कि - आप चक्कर कहते किसको हैं ?
चक्कर आने की आपके अनुसार परिभाषा क्या है ? चक्कर आने के समय आपको होता क्या है ? क्या चक्कर आने पर आप गिर भी पड़ते हैं ? गिरते हैं तो किस तरफ़ ? क्या चक्कर के साथ आपको उल्टी भी लगती है ? कानों में घण्टियाँ भी बजती हैं ? सबकुछ अपने इर्दगिर्द घूमता हुआ दिखता है ? खड़े होने पर आँखों के आगे अँधेरा छा जाता है ? क्या यह खुद ही ठीक हो जाता है या आपको इसके लिए कुछ करने की जरूरत होती है, जैसे- लेट जाना ?
चक्कर के लिए मेडिकल साइंस में बहुत शब्द प्रचलित हैं और सभी के कारण अलग हैं। ऐसे में रोग को ठीक से पकड़ने में और उसके उपचार में समस्या आती है। हाँ...कुछ बातों को ध्यान में रखकर वर्टाइगो को बेहतर समझा जा सकता है। वर्टिगो शब्द लैटिन भाषा वर्टो से लिया गया है। इसका अर्थ है – घूमना। वर्टिगो घूमने का एक अहसास या असंतुलन की अनुभुति है।
इसे हम बीमारी तो नहीं कह सकते, लेकिन हां यह एक लक्षण है हमारे शरीर में होने वाली कई परेशानियों के कारण चक्कर आ सकते है यह परेशानी किसी भी उम्र के लोगों में हो सकती है।
👉 चक्कर आने का पहला रूप - अगर आँखों के आगे अँधेरा छाना और गिर पड़ने की स्थिति है तो अमूमन यह हृदय के पम्प कार्य या ख़ून के संचार से सम्बन्धित मामला है। इसे मेडिकल साइंस में सिंकोपि या नियर सिंकोपि कहतें है। बहुधा ऐसा खड़े होने पर ही अधिक होता है। ठीक से ख़ून मस्तिष्क में नहीं पहुँच पा रहा। ऐसा कई बीमारियों में हो सकता है जिन्हें हृदयरोग विशेषज्ञ जाँचों के द्वारा पहचान सकते हैं।
👉 चक्कर आने दूसरा रूप - बिनाइन पैरोक्जिमल पोजीशनल वर्टिगो (बीपीपीवी) है। #बिनाइन का अर्थ हैं कि ना तो यह गंभीर हैं और न ही जानलेवा। पैरोक्जिमल अर्थात लक्षणों की एकाएक होने वाली घटनाएं। #पोजिशनल अर्थात स्थिति के कारण लक्षणों का उभरना या शुरू होना। #वर्टिगो अर्थात चक्कर आना, घूमने की अनुभुति।
बिनाइन परओक्सिमल पोजिशनल वर्टिगो (बीपीपीवी) कान के भीतरी हिस्से में होने वाला विकार है। शरीर की स्थिति बदलने करवट लेने के साथ वर्टिगो का बार बार होना इसका मुख्य लक्ष्ण है। इसमें व्यक्ति का अचानक से सिर घूमने लगता है और एक ही दिशा में सिर घूमता है। इस प्रकार का ‘वर्टिगो बहुत ही गंभीर होता है।
चक्कर की एक बिरादरी शुद्ध वर्टिगो है, जिसमें रोगी को लगता है कि उसके आसपास की चीज़ें घूम रही हैं और ऐसा होने से वह गिर पड़ेगा। यह कान के आंतरिक भाग का विकार है जो संतुलन और सुनने को दुष्प्रभावित करता है। इसमें तीन लक्षण एक साथ परिलक्षित होते हैं - चक्कर आना, कान में आवाज आना, सुनना कम हो जाना। यह भीतरी कान में तरल पदार्थ के बढ़ते हुए दबाव के कारण होते है। ऐसे रोग अमूमन नाक-कान-गला-रोगों के विशेषज्ञ देखते हैं। जैसे मेनीयर्स रोग, वेस्टिब्यूलर न्यूराईटिस, लाब्रिनिथिटक्स, वेस्टिब्यूलर परोक्सिमिया, पेरीलिम्फ फिस्टूला।
👉 चक्कर आने का का तीसरा रूप - रोगी का असन्तुलित होने लगना है। इसे डिसइक्विलिब्रियम कहा गया है। ऐसा होने से उसके गिरने और चोटिल होने की आशंका रहती है। इन रोगियों को खड़े रहने में परेशानी होती है और आमतौर पर सुनाई की समस्या नहीं होती। ये अक्सर तेज आवाज और चकमदार रोशनी को सहन नहीं कर पाते हैं। असन्तुलन पैदा करने वाले रोग अमूमन मस्तिष्क के होते हैं जैसे माईग्रेन वर्टिगो, ऑटोलिथिक विकार, ऑक्योस्टिक न्यूरोमा और उन्हें न्यूरोलॉजिस्ट देखते हैं।
👉 चक्कर का चौथा रूप - जो इन तीनों से अलग है , वह मानसिक है। वह इन सभी से भिन्न है और उसे मनोचिकित्सक द्वारा ठीक किया जाता है। जैसे मालडी डिबारकमेंट सिंड्रोम (एमडीडीएस) इसमें मरीज को ऐसा अनुभव होता हैं जैसे वह एक नाव या फोम पर चल रहा हो। यह प्रायः लम्बी उड़ान या नाव की लम्बी यात्रा के बाद होता है। महिलाओं में यह रोग पुरूषों की अपेक्षा ज्यादा रहता है। कार में बैठने या कार चलाने से इस रोग के लक्षण अस्थाई रूप से कम हो जाते हैं। इन रोगियों को ऑप्टोकायनिटीक विज्युअल स्टिमुलेशन में शामिल करने से फायदा मिलता है।
👉 चक्कर आने का एक विरले कारण होता है सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस ! क्यों आता है कैसे आता है इसपर बात फिर कभी क्योंकि ये एकदम रेयर कैसेज होतें हैं और जवान लोगों में मैंने आजतक ऐसी कोई समस्या न देखी !
डॉक्टर मोनिका जौहरी
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#गलसुआ mumps
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■ #ब्लडप्रेशर
पहले आप समझो कि हार्ट और बीपी का रोल क्या है ?
क्यों जरूरी है हमारे शरीर में बीपी का रोल ?
क्योंकि अगर प्रेशर नहीं होगा तो ख़ून शरीर में दौड़ेगा कैसे ?
ख़ून तरल है, उसे बहना है। शरीर के हर हिस्से तक ऑक्सीजन, खाना, पानी पहुँचाना है, गन्दगी वहाँ से लानी है।
कौन पैदा करता है ब्लडप्रेशर को ?
हमारा हृदय, जो मांसपेशी का बना है। वह एक मांसल पम्प है। पहले उसमें आकर सारा ख़ून भरता है और फिर उससे ख़ून निकलकर सब जगह जाता है।
और अगर प्रेशर न होने से ख़ून कहीं रुक गया तो ?
ख़ून अगर रुक गया तो अंगों को हानि पहुँचेगी और स्वयं ख़ून को भी। अंग मरने लगेंगे और ख़ून जमने लगेगा। ऐसा ? जमने लगेगा !
हाँ ! ख़ून का रुकना ख़ून को रक्तवाहिनियों में जमाने की क्रिया आरम्भ कर देता है। उसके थक्के बनने लगते हैं।
और बढ़ा हुआ ब्लडप्रेशर कैसे नुकसान पहुँचाता है ?
बढ़ा हुआ ब्लडप्रेशर अपनी ही रक्तवाहिनियों की दीवारों को नुकसान पहुँचाता है। ख़ून जिन धमनियों में बहता है, उनमें कोलेस्टेरॉल नाम की चर्बी के टुकड़े जमा होने लगते हैं। धमनियों के रास्ते सँकरे होने लगते हैं।
तो इस तरह ब्लड-प्रेशर बढ़ कर ख़ून के प्रवाह को कम कर देता है।
हाँ ! लेकिन यह इसका केवल एक नुकसान है। और भी कई हैं।
👉 और क्या क्या नुकसान है कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स के ?
कोलेस्टेरॉल के जमावड़े कई बार फट सकते हैं और उनके सम्पर्क में आया ख़ून जम सकता है। यानी ख़ून का रास्ता पूरी तरह बन्द ! हाँ अगर रास्ता सँकरा हुआ तो दिक्कत कम और पूरी तरह बन्द हुआ तो दिक्कत ज्यादा होगी।
तो अब अगला सवाल - हृदय को अपने लिए भी ख़ून चाहिए न ? वह पूरे शरीर को ख़ून भेजता है, लेकिन खुद भी तो ख़ून की ज़रूरत है उसे !
बिलकुल है। जो धमनियाँ स्वयं हृदय को ख़ून पहुँचाती हैं, वे कोरोनरी धमनियाँ कहलाती हैं। अगर कोरोनरी सँकरी हुई तो काम करते हृदय में ख़ून की कमी के कारण दर्द हो सकता है, जिसे एंजायना कहा जाता है। और अगर कोरोनरी बिलकुल बन्द हो गयी थक्के के कारण, तो यह हृदयाघात या मायोकार्डियल इन्फार्क्शन कहलाता है।"
मतलब अपने पैदा किये ब्लडप्रेशर से बेचारा दिल मारा जाता है ! हाँ ! उसकी मांसपेशियाँ बढ़े ब्लडप्रेशर से लड़ने की बहुत कोशिश करती हैं। वे ख़ूब ज़ोर लगाती हैं ख़ून आगे पम्प करने की। हृदय की दीवार लम्बे ब्लड प्रेशर के मरीज़ों में बहुत मोटी हो जाती है, इसे हृदय की कन्सेन्ट्रिक हायपरट्रॉफ़ी कहा जाता है। लेकिन धीरे धीरे मोटी होने के बाद भी यह मांसल दीवार शिथिल और कमज़ोर पड़ने लगी है ब्लडप्रेशर के सामने।
एक अन्तिम बात। जब हृदय को पता है ब्लड-प्रेशर बढ़ कर उसका ही नुकसान करेगा तो वह उसे बढ़ने ही क्यों देता है ? एक हद के बाद रुकता क्यों नहीं ?
क्योंकि हृदय अपनी मनमानी से ब्लडप्रेशर के साथ कुछ भी नहीं कर सकता। हमारा भोजन और उसमें सोडियम की मात्रा, हमारा तनाव, हमारी नींद, हमारी कसरत, हमारी दवाएँ और अन्य अंगों से निकलते रसायन हृदय को प्रभावित करते हैं ब्लड-प्रेशर घटाने या बढ़ाने में। हृदय ब्लडप्रेशर का प्रवक्ता है, स्पोक्सपर्सन। पूरी टीम ब्लडप्रेशर का गठन करती है - मस्तिष्क भी, गुर्दे भी और अन्य हॉर्मोन बनाने वाली ग्रन्थियाँ भी।
बेचारा हृदय। ख़ून पम्प करने के लिए ब्लड-प्रेशर बनाता है और उसी के तले बीमार हो कर मारा जाता है।
👉 तो अब आप सोचिए
इधर आपके साथ इस बलशाली ब्लडप्रेशर से लड़ने के लिए कौन खड़ा है आपके सहयोग में ?
दवाएं।
गले में खराश - कान, नाक और गले के विकार - MSD Manual Consumer Version गले में खराश - MSD मैनुअल - चिकित्सा उपभोक्ता संस्करण से कारणों, लक्षणों, निदान और उपचार के बारे में जानें।
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ह्यूमन ब्रेन की गहराइयों में राक्षसी वृत्ति वाला, जानवरों जैसी भूख, प्रवृत्ति, आवेग आदि में लिप्त होने जैसा, निर्दयता से भरा हुआ एक सेंटर पॉइंट कुदरत ने फिट कर रखा है !! जिसका नाम हाइपोथैलेमस है।
'हाइपो' नीचे को कहा जाता है, 'थैलेमस' कमरे के लिए इस्तेमाल होता है। इस थैलेमस को आप मस्तिष्क का एक कमरा समझ लो बस ! तो इस कमरे के नीच एक तहख़ाना है, जिसमें इंसानरूपी जानवर के बहुत से राज़ दफ़न हैं। यही हाइपोथैलेमस है। यह मनुष्य के ही नहीं, जीव मस्तिष्क के सबसे पुराने स्थानों में से एक है।
अब इस पृथ्वी पर आप, मैं, या कोई भी शुरुआती मस्तिष्क वाला जीव जन्मा होगा तो उसने न गीत गाये होंगे, न श्लोक रचे होंगे। न उसके मुँह से शेर फूटे होंगे, न उसने ऐसे वीडियो देखे होंगे !! अपने नर्वस सिस्टम के शुरुआती विकास के दौरान उसे सिर्फ़ खाना, सोना और यौन क्रीड़ा करना आता होगा।
ये ही वे क्रियाएँ हैं, जिनके कंट्रोल पॉइंट्स हाइपोथैलेमस में लगे हैं। आहार, निद्रा, मैथुन, प्यास, थकान, तापमान इन सभी के स्विच इसी तहख़ाने में कुदरत ने लगाये हैं। आकार में एक बादाम के बराबर इस अंग में आपके सबसे मूल स्वाभाव के राज़ छिपे हैं। यही आपकी भावनाएँ रहा करती हैं, यहीं से आप माता-पिता, प्रेमी-प्रेमिका, पत्नी-पति सन्तान से प्रेम किया करते/करती हैं।
इसी हाइपोथैलेमस में शरीर के तापमान का सेटपॉइंट लगा हुआ है। वह उठा, तो तापमान को उठाने के निर्देश जारी हुए और बुख़ार की शुरुआत हुई। वह गिरा तो मनुष्य के शरीर का तापमान गिराने का फ़रमान जारी हुआ। बुख़ार पैदा करने वाले भी यहीं असरदार होते हैं, बुखार मिटाने वाले एस्पिरिन और पैरासिटामॉल भी यहीं आया करते हैं।
एक ऐसी कल्पना जो बाहर और कहीं नहीं, हमारे ही अंदर है भीतर है ! पशुता की सभी मूल स्वभावों के एकदम नजदीक। ज़रा सा स्विच ऊपर नीचे होने से दुनिया में धर्म के नाम पर क्या क्या हो जाता है, यह किसी से छिपा नहीं है।
प्यार और बुख़ार की जब भी घण्टियाँ बजे तो समझ जाना कि किसी शरारती तत्त्व ने आपके हाइपोथैलेमस का कोई स्विच छेड़ दिया है। तहखाने में कोई अराजक गतिविधि चल पड़ी है, जो सामने प्रकट हो रही है।
ADRs
आप लोग खासकर एंटीबायोटिक्स को कभी हल्के में मत लो...हाँ इसके साथ बाकी संसार की तमाम दवाओं को भी। सिम्पल भाषा में इतना समझ लो लगभग हर ड्रग की अलग अलग जात है, अलग अलग जनरेशन है l
बुखार होता है आपको, आप पैरासिटामोल लेते हो ! नतीजन बुखार उतर जाता है...ये हुआ प्रभाव ! लेकिन बुखार उतरने की बजाय कुछ अन्य लक्षण उभर आया तो उसे कहतें हैं ADRs।
मतलब कोई भी दवा का उचित स्थिति में...उचित मात्रा में...उचित समय तक और उचित ढंग से ली जाए तो रोग के उपचार करते हुए वह दवा मानव शरीर की रक्षा करती है। लेकिन बात यहाँ यह भी ध्यान देने लायक है कि कई बार दुर्भाग्य से रोगियों में दवाओं के दुष्प्रभाव देखने को मिल सकते हैं। इन दुष्प्रभावों को डॉक्टर कई तरह से पढ़ते एवं समझते हैं। आइए दवाओं के इन्हीं दुष्प्रभावों को, जिन्हें हम हमारी भाषा में एडवर्स ड्रग रिएक्शन ADRs कहतें है।
Type A - ADRs :- जहाँ दवा का प्रभाव ही उसकी डोज़ अधिक दिये जाने पर उसका दुष्प्रभाव बन जाता है। यानी वही दवा उचित मात्रा में देने पर जिस विधि से काम करती है, ज्यादा डोज़ में उसी काम को अधिक करती है और दुष्प्रभाव पैदा हो जाता है। उदाहरण के तौर पर इन्सुलिन एक दवा है, जिसका काम ख़ून में शुगर का लेवल घटाना है। अब लेकिन अगर इसी दवा की जरूरत से ज्यादा मात्रा में ले ली जाए तो ग्लूकोज का लेवल ख़तरनाक रूप से कम हो जाएगा। डोज़ आवश्यकता से अधिक हुई नहीं कि दवा का प्रभाव ज्यादा आया और दुष्प्रभाव के रूप में आया।
Type B - ADRs :- इसे हम idiosyncratic दुष्प्रभाव भी कहतें हैं। ये दुष्प्रभाव अजीबओ ग़रीब हैं और इनका दवा की डोज़ से कोई सम्बन्ध नहीं होता है। ये दरअसल दवा और शरीर के प्रतिरक्षा तन्त्र में हुए बुरे सम्बन्ध के कारण पैदा होते हैं। ये रेयर प्रतिकूल प्रभाव हैं लेकिन कई बार बड़े ख़तरनाक और जानलेवा तक हो सकते हैं। सल्फ़ा दवाओं के कारण होने वाले गम्भीर दुष्प्रभाव इस कैटगरी में आते हैं।
👉 आज एक बात बिठा लीजिए खोपड़ी में की जब भी आपके सामने कोई भी डॉक्टर आपकी -रिपोर्ट्स (जो नॉर्मल है), लक्षण जो उभरे हैं और हिस्ट्री सुनकर बोले idiopathic ईडियोपैथीक (बीमारी का नाम) है तो समझ लेना की कुदरत आपकी कह के ले रही है या कोई ADRs का भी कमाल हो सकता है। इस शब्द का इस्तेमाल हम तब करतें हैं जब बीमारी का मैंन कारण ही पता न हो ! ईडियोपैथीक बीमारियां बहुत सी होती है जैसे ईडियोपैथीक एनीमिया, फाइब्रोमायल्जिया, IBS...बहुत लंबी लिस्ट है शायद। ठीक इसी तरह ही ईडियोसिंक्रैटिक ADRs हैं।
Type C - ADRs :- डोज़ लेते लेते समय के बीतने के कारण दवा के कारण शरीर में कुछ दुष्प्रभाव पैदा हो सकते हैं। दीर्घकालिक स्टेरॉयड सेवन के कारण हड्डियों का कमज़ोर होना इसका एक उदाहरण है।
Type D - ADRs :- दीर्घकालिक समय बीतने के बाद दवा के दुष्प्रभाव का शरीर में पैदा होना। जैसे कई दवाओं के सेवन के कारण सालों बाद किसी अंग में कैंसर का पैदा होना।
Type E - ADRs :- दवा को रोकने के बाद किसी दुष्प्रभाव का उत्पन्न होना। जैसे अफ़ीम के लम्बे समय तक सेवन के बाद जब उसे रोका जाए तो रोगी में अफ़ीम-विदड्रॉल के लक्षण पैदा होने लगें।
माइग्रेन के इलाज में क्या रामबाण साबित होगी ये दवा, अमेरिका समेत 80 देशों में मिली मंज़ूरी - दुनिय दुनिया भर में करीब एक अरब लोग माइग्रेन से पीड़ित हैं. अब एक ऐसी दवा बनाई गई है जो माइग्रेन के मरीजों पर बहुत कारगर सा....
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बात करतें हैं मिर्गी की ! एक सज्जन ने पूछा था कि सीजर और एपिलेप्सी में क्या अंतर होता है ? देखो मैं जितना हो सके जमीनी स्तर या आपकी रफ भाषा में लिखने की कोशिश कर रहा हूँ ताकि आप रोग को...लक्षणों को आसानी से समझ पाएं... आप दौरे का कारण समझ सकें !
तो सज्जन के सवाल का जवाब सुनिए 😊 अगर आपको एक दौरा/जकड़न/ऐंठन होती है तो उसे सीजर कहते हैं और यदि दो या दो से ज्यादा दौरे पड़ चुकें हैं तो हम एपिलेप्सी कहतें हैं। इंग्लिश में बोलूं तो टेंडेंसी ऑफ सीजर एपिलेप्सी या मिर्गी कहलाती है।
अब इसके जनक दो है एक हार्डवेयर मतलब ब्रेन ! ब्रेन मतलब समझ गए हो न ? माँस का फूलगोभी जैसा वो लोथड़ा जो हमारी खोपड़ी के अंदर स्थित है उसमें कोई जन्मजात खराबी हो, या कोई ट्रॉमा हो।
दूजा जनक है माइंड ! माइंड मतलब भी दिमाग ही होता है बस यहाँ हार्डवेयर की जगह सॉफ्टवेयर है। माइंड मतलब मन जिसे आप छू न सकते, चीर फाड़ काट न सकते बस एक तरह की तरंगों का भंडार समझों।
तीसरा और बाकी अन्य जनकों को कभी बाद में समझा दूँगा 🙏
अब आपके आजु बाजू घर परिवार में या जो भी जिसे भी आप मिर्गी का रोगी का समझ रहे हो न दरअसल उनकी शुरुआत सीजर से ही हुई थी !
सिजर्स को बहुत सी जातियों में बांटा गया है न्यूरोलॉजी में ! जैसे :-
सबसे पहले जो आता है वो है पार्शियल सीजर !
टाइप A - पार्शियल सीजर विद एलिमेंट्री सिम्पटम्स मतलब प्राथमिक लक्षण
टाइप B - पार्शियल सीजर विद कॉम्प्लेक्स सिम्पटम्स !
टाइप C- पार्शियल सीजर विद सेकेंडरी जनरलाइज्ड !
टाइप D-E-F-G कभी बाद में चर्चा होगी 🙏
■ 👉 पार्शियल सीजर ब्रेन के किसी स्पेशल हिस्से में इफेक्ट से होता है लेकिन जनरलाइज्ड सीजर जो पूरे ब्रेन की खराबी के कारण आता है या पूरे ब्रेन की ऐसी तैसी करता है
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👉 आप लोगों ने कार्डिओलॉजी नहीं पढ़ी ! न ही फिजियोलॉजी न ही एनाटॉमी ! जब पर्चें में या लैब रिपोर्ट्स में लिखतें हैं - मायोकार्डियल इन्फार्क्शन, एंजायना पेक्टोरिस, एरिद्मिया और कार्डियक एरेस्ट। तब आप लोग इनके मीनिंग नहीं समझ पाते हो 😊
सोचा अवगत करवा दूँ आपको आज 🙏
हमारी पंसलियो के बीच एक माँस का लोथड़ा है, ठीक वैसा ही जैसा आप बकरे मुर्गे वाला खाते हो न 30/45/60ml के साथ 🙄 हाँ हमारा बकरों मुर्गों से अलग है। खोखला है पूरा अंदर से...जो हमारे जन्म से भी पहले धड़कना स्टार्ट हो गया था। वेन्स खून लाती है इसके चेम्बर भर देती है...फिर आर्टरी से ये वापस खून फेंकता है। तुम क्या सोचते हो फोकट का मजदूर है ? इसे भी खुराक चाहिए नहीं तो ये कमजोर हो सकता है, घायल भी हो सकता है या अंत में मर भी सकता है।
इसकी भी तीन धमनियाँ हैं जिनको कोरोनरी आर्टरीज कहतें हैं। अब इन आर्टरीज में ब्लड का फ्लो मतलब बहाव आधा अधूरा या पूरा ही रुकेगा तो आप बिस्मिल बनोगे 😠 हो सकता है ईश्वर के पास भी जाओ !
👉 अब - अगर कोई धमनी मतलब आर्टरी पूरी तरह खून के थक्के से बन्द हो जाये मतलब जिस हिस्से में वो खून पहुँचाती हो और वो हिस्सा मर जाए। हार्ट का उतना मांस मृत। यह मायोकार्डियल इन्फार्क्शन हुआ। इसे ही आम भाषा में जनता कई बार हार्टअटैक कह देती है। 🙄
मान लो अब अगर यही अवरोध आधा-अधूरा हुआ तो हो सकता है कि दर्द चलने या काम करने पर हो लेकिन आराम करने पर न हो। यह स्थिति एंजायना पेक्टोरिस कहलाती है। एंजायना यानी दर्द, चाहे वह कहीं का भी हो। पेक्टोरिस यानी छाती का। तो इस तरह एंजायना पेक्टोरिस छाती में हार्ट के कारण उठने वाले उस दर्द को कहा जाने लगा जो मायोकार्डियल इन्फार्क्शन से कुछ कमतर है।
स्टेबल एंजायना - एंजायना का पहला प्रकार है, जो काम करने पर या तनाव पर उठता है और कुछ देर में आराम करने पर मिट जाता है। एन्जायनारोधक दवाओं से इसमें आराम पड़ जाता है।
लेकिन फिर एंजायना के और प्रकार भी हैं। कई बार यह दर्द बैठे-बैठे बिना कोई काम किये या बिना तनाव के हो गया। सामान्य एंजायना से यह दर्द कुछ लम्बा खिंच गया। या फिर एन्जाइनरोधक दवाओं से नहीं गया। इस तरह के एंजायना को अनस्टेबल एंजायना कहा जाता है। या फिर कोरोनरी बन्द न हुई हो, सिकुड़ गयी हो। अब इस प्रकार के एंजायना को प्रिंज़मेटल एंजायना कहा जाता है।
या ऐसा भी हो सकता है कि कोरोनरी में ख़ून का रुकाव हो, लेकिन दर्द न हो। व्यक्ति को पता ही न चले। या मामूली उलझन-भर हो। या सिर्फ़ घबराहट। यह स्थिति सायलेंट एंजायना कहलाती है। डायबिटीज के रोगियों में ऐसी कई मौतों से डॉक्टर रोज़ जूझते हैं 🙄
👉 अब आ जाओ मौत पर या ईश्वरीय चमत्कार पर - कंडीसन का नाम है कार्डियक एरेस्ट !! कार्डियक एरेस्ट यानी हार्ट का रुकना। हार्ट धड़कते धड़कते कब रुकेगा ? जब उसकी इतनी मांसपेशी को ख़ून न मिले कि वह बिना ऑक्सीजन मर जाए। लेकिन फिर कई बार स्वस्थ हार्ट भी ख़ून में तमाम रसायनों तत्त्वों के बढ़ने-घटने से रुक सकता है।
मांसपेशी ठीक है, लेकिन खून का पर्यावरण गड़बड़ है। ऐसा कैसे होगा इसके लिए एरिद्मिया को ध्यान में रखनी ज़रूरी है। (इसी कार्डियक एरेस्ट को साधारण लोग हार्ट फ़ेल होना भी कह देते हैं।)
हार्ट क्या है एक मांसपेशी है बस ! उसमें एक बिजली की लहरदार कौंध उठती है, तो वह धड़कता हुआ जिस्म में ख़ून फेंकता है। इस धड़कन का एक नियम, एक क्रम है। यही क्रम आपको ईसीजी में दिखता है। अब चाहे हार्ट को ख़ून ढंग से न मिले और चाहे ख़ून में कोई गड़बड़ हो जाए, उसके धड़कन अनियमित हो सकती है। वह मरा नहीं है, लेकिन वह रुक सकता है। वह अभी जिंदा है, लेकिन आराम करने लग गया। लेकिन उसके आराम ने मनुष्य की जान ले ली। यही कार्डियक एरेस्ट है। कई बार यह रुका हृदय दोबारा चल पड़ता है, कई बार कभी नहीं चलता।
👉 लेकिन अगर रुका हार्ट दोबारा चला पर देर से चला, तो तब तक मस्तिष्क मर गया। अब यह मरा मस्तिष्क लेकिन चलता हार्ट लिये व्यक्ति भला किस काम का ?? यही ब्रेनडेथ की स्थिति है।
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