Dharmendra Chaudhary
Digital Growth Marketer | Digital Business Transformation Consultant | Image Consultant to Politicians & Public Figures |
आज जनसंख्या के मामले में हम विश्व गुरु बन गए....
जो कहा, सो किया - मोदी जी
❤️Dil मिले न मिले तोह हाथ जरूर मिलाओ क्युकी पानी चाहे गन्दा हो
पीने के न सही सफाई के काम आ जाता हैं।
मुझे इस बात की खुशी है कि पिछले साक्षात्कार में मांट क्षेत्र के विकास के लिए सुझाई गई 5 मांगों में से मांट विधायक राजेश चौधरी जी ने मांट क्षेत्र में अनाज मंडी की मांग को विधानसभा में उठाया....भाजपा शासन से उम्मीद है कि जल्द ही इस क्षेत्र को अनाज मण्डी मिले ।
साक्षात्कार को देखने के लिए लिंक है https://www.facebook.com/RajNeta.Club/videos/635812654562993
हैरत हुई गालिब तुम्हें मस्जिद में देख कर,
एैसा भी क्या हुआ कि ख़ुदा याद आ गया!
#मोहनभागवत #भारतजोडो
विधायक राजेश चौधरी जी के साथ ख़ास बातचीत |
किसानों के संघर्ष व बलिदान की जीत का 1 पड़ाव तय, अब अगला पड़ाव होगा MSP पर कानून ।
https://politics.rajneta.club/pm-modi-repeal-all-3-farm-laws-says-i-apologize/gyankibaat/farm-laws/2021/11/
कृषि कानून वापस: PM Modi बोले- मैं क्षमा मांगता हूं, किसानों को समझा नहीं पाया, तपस्या में कमी रह गई | Rajne Sign in Welcome! Log into your account your username your password Forgot your password? Get help Privacy Policy Password recovery Recover your password your email A password will be e-mailed to you. Homeचौपालकिसान आंदोलनकृषि कानून वापस: PM M...
ये है विकास का असली चेहरा...असलियत ये है कि जिन चीज़ों को मुख्यतः बाजार के भरोसे छोड़ दिया जाता है उन पर सरकार घण्टा कुछ नहीं कर सकती। ये पिछले कई सरकारों में भी होता था परंतु विगत 3 साल से ऐसा नहीं हुआ था तोह भाजपाई बड़ी डींग मारते थे कि पहले खाद की लाइन में लगना पड़ता था अब योगी जी के विकास में ऐसा नहीं होता है, भाजपाईयो आपके पहले वर्ष में भी किल्लत हुई थी और अंतिम शाषन वर्ष में भी हो गयी, तुम्हारे वश का कुछ नहीं है l
यह तश्वीर मथुरा शहर के रात 3 बजे की है...अब 3 बजे लाइन में लगने के लिए किसान या तोह रात के 1-2 बजे अपने गाँव से शहर को चला होगा या पूरी रात इस बेमौसम बरसात में सड़क पर अपनी लोई ओढ़कर ट्रैक्टर ट्राली के नीचे बिताई होगी।
Updates on IT raid :
Collected ₹ 19 crore as donation thru crowd funding violating FCRA.
Spent only ₹ 1.9 crores for relief work.
Bogus billing of ₹ 65 Crores for other works.
Entered into Rs 175 crore dubious circular transaction with a Infra company.
Rashtriya Lok Dal-राष्ट्रीय लोक दल और Samajwadi Party इस वजह से नहीं हारेंगे कि ये गलत हैं या इनके मुददे अच्छे व नेक नहीं हैं बल्कि एक ये भी मुख्य वजह रहेगी कि ये मुददों को उतनी जोरदारी से नहीं उठा रहे जितना कि उठाना चाहिए।
यह विज्ञापन जिसमे higway बंगाल का दिखाया जा रहा है व factory USA की, उसको RLD व SP के बड़े से लेकर किसी भी छोटे नेता ने छुआ तक नहीं है और ये तोह तब है जब अभी 24 घण्टे पूर्व ही समस्त मीडिया संयोजको व प्रवक्ताओं की वर्चुअल मीटिंग हुई है। अभी तक तोह ये सब काफी Motivated भी होंगे फिर भी निल बटे सन्नाटा।
अब इसके क्या कारण हैं वो Jayant Chaudhary जी व Akhilesh Yadav जी जानें।
चित्रा त्रिपाठी के साथ ये नहीं होना चाहिए था😅
The Problematic Situation of Uttarpradesh!
UP Violence: The Great Leader And Demise Of A Great Democracy The state machinery in Uttar Pradesh appeared to have been complicit in all-out rigging to ensure a win for the BJP in the recent Zila Panchayat (ZP) President Polls and the Block Pramukh elections.
जंगल व् जमीन उसीकी होगी जो इसको जोतेगा जैसे विचार के महान पुरोधा को की तरफ से शत-शत नमन🙏🏻
Do You Agree?
P18: Productive vs Destructive Work🌾
P17: Reflection of Positivity🙏
P16: शत्-शत् नमन 🙏
P15:
P14: राष्ट्रीय चौधरी को नमन व श्रद्धांजलि🙏
Jayant Chaudhary जी, The Show Must Go On🌾
P13: ॐ शांति। ईश्वर हमारे इष्ट रूपी चौधरी साहब को अपने सानिध्य में स्थान दे।
मेरी पश्चिमी उत्तरप्रदेश की किसान-कमेरी कौम से विनती है कि वो आने वाले दिनों में चौधरी साहब की आत्मा की शांति हेतु हवन का आयोजन कर उनको श्रधांजलि अर्पित करें। Jayant Chaudhary Yogesh Nauhwar Ajeet Balyan Vineet Narain 🙏
P12-यह उन लोगों के लिए जिनका मानना ये था कि भाजपा सिर्फ समर्थित उम्मीदवार उतारेगी, बाकी लिस्ट देख के पता चल जाएगा कि उम्मीदवारों को अपनी दावेदारी का बहुत पहले से पता था व उसी हिसाब से चुनावी प्रचार चल रहा था
P11- हार्दिक शुभकामनाएं।
P10: #ताण्डव
एक चुनावी राजनीति पर आधारित ड्रामा सीरीज है जिसमें एक तरफ आदर्शविहीन महत्वाकांक्षी किरदार हैं जिनके लिए "सत्ता व शक्ति" ही एकमात्र मोक्ष है और उसकी प्राप्ति के लिए धर्म/अधर्म, मानवीय/अमानवीय, प्रेम/नफरत सब जायज है। कहानी कभी JNU में घुस जाती है तोह कभी हरयाणा में। कभी लोकदल के कुछ किरदारों को दिखाती है तोह कभी जाट बेल्ट के संघर्ष को। बहुत कुछ कन्हैया कुमार व बिहार से भी जुड़ा हुआ है। कहने का मतलब एकदम Multi Grain खिचड़ी है, अब स्वादिस्ट होगी या कबाड़ा ये अगले season में ही क्लियर हो पायेगा।
देखने लायक सिर्फ 4 चीजें हैं :
- सुनील ग्रोवर की अधार्मिक परफॉरमेंस
- डिम्पल कपाड़िया की रेशम व कश्मीरी साड़ियां
- नवीं नवीं हीरोइनों के साथ चूमा-चाटी के सीन
- सैफअलीखान के पटौदी महल की सुंदरता।
कुछ ऐसी चीजें जो कुछ को गलत लग सकती हैं व कुछ उसे समाज की सच्चाई मानकर स्वीकार कर सकते हैं -
जाति आधारित किरदार जैसे जाखड़, चौधरी, ठाकुर, दलित, दलित के मन में स्वर्णो के प्रति कुंठा, स्वर्णो के मन मे दलितों के लिए तिरस्कार,
P09: अमेरिका में सबसे ज्यादा कृषि योग्य जमीन बिल गेट्स के पास है और हमारे चौकीदार भी यही चाहते हैं कि जल्द ही हिंदुस्तान की एक ऐसी लिस्ट बने और उसमें उनके लँगोटिया यारों (अम्बानी & अडानी) का क्रम भी 1 व 2 हो। इसलिए ये 3 कानून लुटेरों को तरह लाये और लागू करा दिए।
America’s Biggest Owner Of Farmland Is Now Bill Gates The Microsoft billionaire has been quietly building a 242,000-acre portfolio of agricultural land across 18 states.
P08: There are somethings which Time can't heel.
P07: ***de और
2017 NCBI रिपोर्ट के अनुसार 197 Millions ,इंडियन Mental Disorder से गुजर रहे है , जो टोटल पॉपुलेशन का 14.3 परसेंट है ,46 Millions को Depression है और 45 Millions को Anxiety है ।। की रिपोर्ट के अनुसार इंडिया , चीन और अमेरिका में Schizophrenia और Bipolar के केस ज्यादा है ।।
भारत मे Average Su***de rate 10.9 प्रति एक लाख है , ज्यादातर 44 साल से नीचे के लोग सुसाइड करते है ।।
मुख्य कारण , नींद का पूरा ना होना, पारिवारिक हिस्ट्री , बचपन का कोई ऐसा हादसा जो दिमाग मे हो , कैरियर में success ना होना , पारिवारिक क्लेश , निजी सम्बन्ध इत्यादि ।। इंसान के साथ जब कुछ ऐसा हादसा हो , जो वो नही चाहता , तो वो depression में चला जाता है , उसका असर हम ज्यादातर रोज मरा की जिंदगी में देखते है ।।
साथियो , #पागलपन कोई बीमारी नही , बस मन का वहम है , ज्यादातर लोग है , की लोग क्या कहेंगे , क्या कहेगी, सबसे बड़ा पागलपन ये है कि हम दूसरों के हिसाब से जिंदगी जीते है और में इतने चले जाते है कि खुद का नुकसान कर लेते है ।।
ज्यादा दोस्त होना और कम दोस्त होना भी एक बीमारी है ।।
#सुशांत #राजपूत का केस देख कर मैंने सोचा कि इंसान इतना कामयाब होने के बाद इतने में था ,आत्महत्या जैसा कदम उठाया ।।। कहीं ना कहीं , इंसान चकाचौध की जिंदगी में इतना उलझ जाता है कि अपनो को भूल जाता है ।।।
जीवन का एक सार याद रखिये, जो खुद से मोहब्बत करना सीख जाएगा, उसे जिंदगी जीने में मजा आएगा , जो आपका दिल करे, वो काम करो, ये दुनिया कोई नही है , जो आपको तगमे दे ।।। आपके सुख हो या दुख हो , आपको एन्जॉय करना है ।।।
खुद के लिए जीना और खुद से प्यार करो , जो खुद से प्यार करेगा, वही दुसरो से मोहब्बत करेगा ।।यही Depression का इलाज है ✍️✍️✍️
आत्महत्या कायरता है🙏🙏
From the Wall of Ms. Sangita
P06: Few glorious words by the Legendary 👌
P05: ॐ शांति:।।
P04: आज 29 अप्रेल को उस महापुरुष की पुण्यतिथि है जिसने भारत की आजादी के लिए अपना सबकुछ न्योछावर कुर्बान कर दिया था भारत की आजादी के लिए सबसे पहले आजाद हिंद फौज का गठन किया अंग्रेजों से लोहा लिया उस महान क्रांतिकारी राजा महेंद्रप्रतासिंह को कोटि कोटि नमन ।
एक नजर :
राजा महेंद्र प्रताप
राजा महेंद्र प्रताप वो व्यक्ति थे जिन्होने अटल बिहारी बाजपेयी को चुनावों में धूल चटा दी, ये वो क्रांतिकारी थे जिन्होने 28 साल पहले वो काम कर दिया, जो नेताजी बोस ने 1943 में आकर किया। ये वो व्यक्ति है, जिसे गांधी की तरह ही नोबेल पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया गया और उन दोनों ही साल नोबेल पुरस्कार का ऐलान नहीं हुआ और पुरस्कार राशि स्पेशल फंड में बांट दी गई।
राजा महेंद्र प्रताप का सही से आकलन इतिहासकारों ने किया होता तो आज राजा को ही नहीं दुनिया हाथरस जिले को और उनकी रियासत मुरसान को भी उसी तरह से जानती, जैसे बाकी महापुरुषों के शहरों को जाना जाता है। आखिर कोई तो बात थी राजा में कि पीएम मोदी ने उदघाटन तो काबुल की संसद में अटल ब्लॉक का किया और तारीफ राजा महेंद्र प्रताप की की, वो भी तब जब राजा खुद को मार्क्सवादी कहते थे।
फ्रंटियर या सीमांत गांधी को जानने वाले आज लाखों मिल जाएंगे, लेकिन राजा महेंद्र प्रताप का नाम कितने लोग जानते हैं, मोदी ने सीमांत गांधी के साथ राजा महेंद्र प्रताप का नाम लिया और उनके और अफगानिस्तान के किंग के बीच की बातचीत को भाईचारे की भावना का प्रतीक बताया।
स्वदेशी आंदोलन: 1905 के स्वदेशी आंदोलन से वो इतना प्रभावित हुए कि अपने ससुर के मना करने के बावजूद वो 1906 के कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में हिस्सा लेने चले गए। 19वीं सदी के पहले दशक में एक जाट और राजा के परिवार में कोई ऐसा सोचने की भी हिम्मत नहीं कर सकता था। फिर विदेशी वस्त्रों के खिलाफ अपनी रियासत में उन्होंने जबरदस्त अभियान चलाया।
बाद में उनको लगा कि देश में रहकर कुछ नहीं हो सकता। लाला हरदयाल, वीरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय, रास बिहारी बोस, श्याम जी कृष्ण वर्मा, अलग- अलग देशों से ब्रिटिश सरकार की गुलामी के खिलाफ उस वक्त भारत के लिए अभियान चला रहे थे। उस वक्त तक जर्मनी में रह रहे भारतीय क्रांतिकारी बर्लिन कमेटी बना चुके थे, प्रथम विश्वयुद्ध को वो एक मौका मान रहे थे, जब इंग्लैंड की विरोधी शक्तियों से हाथ मिलाकर भारत को गुलामी से मुक्ति दिलाई जा सके।
राजा महेंद्र का नाम तब तक इतना हो चुका था कि स्विट्जरलैंड में उनकी मौजूदगी की भनक लगते ही चट्टोपाध्याय ने लाला हरदयाल और श्याम जी कृष्ण वर्मा को उन्हें बर्लिन बुलाने को कहा। बाकायदा जर्मनी के विदेश मंत्रालय से कहा गया उन्हें बुलाने को। लेकिन राजा ने खुद जर्मनी के किंग से व्यक्तिगत तौर पर मिलने की इच्छा जताई, इधर जर्मनी के राजा भी उनसे मिलना चाहते थे, जर्मनी के राजा ने उन्हें 'ऑर्डर ऑफ दी रैड ईगल' (Order Of The Red Eagle) की उपाधि से सम्मानित किया। राजा जींद के दामाद थे और उन्होंने अफगानिस्तान की सीमा से भारत में घुसने के लिए पंजाब की फुलकियां स्टेट्स जींद, नाभा औरपटियाला की रणनीतिक पोजीशन की उनसे चर्चा की।
जर्मन राजा से काफी भरोसा पाकर वो बर्लिन से चले आए। बर्लिन छोड़ने से पहले उन्होंने पोलैंड बॉर्डर पर सेना के कैंप में रहकर युद्ध की ट्रेनिंग भी ली। उसके बाद वो स्विट्जरलैंड, तुर्की, इजिप्ट में वहां के शासकों से ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सपोर्ट मांगने गए, उसके बाद अफगानिस्तान पहुंचे। उन्हें लगा कि यहां रहकर वो भारत के सबसे करीब होंगे और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जंग यहां रहकर लड़ी जा सकती है।
आप जानकर हैरत में पड़ जाएंगे कि उस वक्त जब वो कई देश के राजाओं से अपने देश की आजादी के लिए मिल रहे थे, उनकी उम्र महज 28 साल थी और अगले 32 साल वो दुनिया भर की खाक ही छानते रहे..... दरबदर।
भारत की पहली निर्वासित सरकार: एक दिसंबर 1915 का दिन था, राजा महेंद्र प्रताप का जन्मदिन, उस दिन वो 28 साल के हुए थे। उन्होंने भारत से बाहर देश की पहली निर्वासित सरकार का गठन किया, बाद में सुभाष चंद्र बोस ने 28 साल बाद उन्हीं की तरह आजाद हिंद सरकार का गठन सिंगापुर में किया था। राजा महेंद्र प्रताप को उस सरकार का राष्ट्रपति बनाया गया यानी राज्य प्रमुख। मौलवी बरकतुल्लाह को राजा का प्रधानमंत्री घोषित किया गया और अबैदुल्लाह सिंधी को गृहमंत्री।
भोपाल के रहने वाले बरकतुल्लाह के नाम पर बाद में भोपाल में बरकतुल्लाह यूनीवर्सिटी खोली गई। राजा की इस काबुल सरकार ने बाकायदा ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जेहाद का नारा दिया। लगभग हर देश में राजा की सरकार ने अपने राजदूत नियुक्त कर दिए, बाकायदा वो उन सरकारों से बतौर भारत के राजदूत मान्यता देने की बातचीत में जुट गए। लेकिन उस वक्त ना कोई बेहतर सैन्य रणनीति थी और ना ही उन्हें इस रिवोल्यूशरी आइडिया के लिए बोस जैसा समर्थन मिला और सरकार प्रतीकात्मक रह गई। लेकिन राजा की लड़ाई थमी नहीं उनकी जिंदगी तो हंगामाखेज थी।
दिलचस्प बात ये थी कि जिस साल में राजा ने भारत की पहली निर्वासित सरकार बनाई, उसी साल गांधी जी साउथ अफ्रीका से भारत वापस लौटे थे और प्रथम विश्व युद्ध के लिए भारतीयों को ब्रिटिश सेना में भर्ती करवा रहे थे, उन्हें भर्ती करने वाला सर्जेंट तक कहा गया था।
राजा के सिर पर ब्रिटिश सरकार ने इनाम रख दिया, रियासत अपने कब्जे में ले ली, और राजा को भगोड़ा घोषित कर दिया। राजा ने काफी परेशानी के दिन झेले। फिर उन्होंने जापान में जाकर एक मैगजीन शुरू की, जिसका नाम था वर्ल्ड फेडरेशन। लंबे समय तक इस मैगजीन के जरिए ब्रिटिश सरकार की क्रूरता को वो दुनिया भर के सामने लाते रहे। फिर दूसरे विश्व युद्ध के दौरान राजा ने फिर एक एक्जीक्यूटिव बोर्ड बनाया, ताकि ब्रिटिश सरकार को भारत छोड़ने के लिए मजूबर किया जा सके। लेकिन युद्ध खत्म होते-होते सरकार राजा की तरफ नरम हो गई थी, फिर आजादी होना भी तय मानी जाने लगी। राजा को भारत आने की इजाजत मिली। ठीक 32 साल बाद राजा भारत आए, 1946 में राजा मद्रास के समुद्र तट पर उतरे। वहां से वो घर नहीं गए, सीधे वर्धा पहुंचे गांधीजी से मिलने।
गांधीजी और राजा में अजीबो-गरीब रिश्ता था, बहुत कम लोगों को पता होगा कि हाथरस के इस राजा को नोबेल पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया गया था और एक तय वक्त के बाद नोबेल कमेटी के कमेंट्स को सार्वजनिक कर दिया जाता है।
सबसे खास बात थी कि नोबेल पुरस्कार समिति की इन्हीं लाइनों से ये पता चला कि वो गांधीजी के साउथ अफ्रीका वाले आंदोलन में भी हिस्सा लेने जा पहुंचे थे, इतना ही नहीं वो तिब्बत मिशन पर दलाई लामा से भी मिले थे। ऐसी इंटरनेशनल तबीयत के थे राजा महेंद्र प्रताप। उस साल किसी को भी नोबेल पुरस्कार नहीं दिया गया, सारी पुरस्कार राशि किसी स्पेशल फंड में दे दी गई। इसका गांधी कनेक्शन ये है कि बिलकुल ऐसा ही तब हुआ था, जब गांधीजी को 1948 में नोबेल पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया गया था, गांधीजी की हत्या होने के चलते बात आगे नहीं बढ़ी और उस साल भी नोबेल पुरस्कार के लिए किसी के नाम का ऐलान नहीं हुआ। सारा पैसा स्पेशल फंड में दे दिया गया।
नोबेल पुरस्कार समिति के कमेंट्स से ही पता चलता है कि गांधीजी ने एक बार राजा महेंद्र प्रताप की अपने अखबार यंग इंडिया में जमकर तारीफ की थी, गांधीजी ने लिखा था, “"For the sake of the country this nobleman has chosen exile as his lot. He has given up his splendid property...for educational purposes. Prem Mahavidyalaya...is his creation,"।
गांधीजी से उनके गहरे नाते की मिसाल देखिए, 32 साल बाद भारत आए तो सीधे उनसे मिलने जा पहुंचे, मद्रास से सीधे वर्धा। बावजूद इसके वो कांग्रेस में शामिल नहीं हुए। लेकिन उनकी हस्ती इस कदर बड़ी थी कि कांग्रेस तो कांग्रेस उस वक्त के जनसंघ के बड़े नेता और अटल बिहारी वाजपेयी को भी लोकसभा के चुनावों में उन्होंने धूल चटा दी। वो 1952 में मथुरा से निर्दलीय सांसद बने और1957 में फिर से अटल बिहारी वाजपेयी को हराकर निर्दलीय ही सांसद चुने गए। बिना किसी का अहसान लिए शान से राजा की तरह जीते रहे।
राजा महेंद्र प्रताप की उपलब्धियां यहीं कम नहीं होतीं, उनके खाते में भारत का पहला पॉलिटेक्निक कॉलेज भी है। अपने बेटे का नाम रखा उन्होंने प्रेम और वृंदावन में एक पॉलिटेक्निक कॉलेज खोला, जिसका नाम रखा प्रेम महाविद्यालय। राजा मॉर्डन एजुकेशन के हिमायती थे, तभी एएमयू के लिए भी जमीन दान कर दी।
देश की आजादी के बाद लोग मानते थे कि उनसे बेहतर कोई विदेश मंत्री नहीं हो सकता था, लेकिन उन्होंने किसी से कुछ मांगा नहीं और आमजन के लिए काम करते रहे। पंचायत राज कानूनों, किसानों और फ्रीडम फाइटर्स के लिए लड़ते रहे।
राजा जो भी काम करते थे, वो क्रांति के स्तर पर जाकर करते थे। हिंदू घराने में वो पैदा हुए थे, मुस्लिम संस्था में वो पढ़े थे, यूरोप में तमाम ईसाइयों से उनके गहरे रिश्ते थे, सिख धर्म मानने वाले परिवार से उनकी शादी हुई थी। लेकिन उनको लगता था मानव धर्म ही सबसे बड़ा धर्म है या सब धर्मों का सार ये है कि मानवीयता को, प्रेम को बढ़ावा मिलना चाहिए। राजा महेंद्र प्रताप ने तब वो कर डाला जो कभी मुगल बादशाह अकबर ने किया था, जैसे अकबर ने नया धर्म दीन ए इलाही चलाया था, वैसे भी राजा महेंद्र प्रताप ने भी एक नया धर्म शुरू कर दिया, प्रेम धर्म। इस धर्म के अनुयायियों का एक ही उद्देश्य था प्रेम से रहना, प्रेम बांटना और प्रेम भाईचारे का संदेश देना। हालांकि दीन ए इलाही की तरह प्रेम धर्म भी उसको चलाने वाले के साथ ही गुमनामी में खो गया।
राजा महेंद्र प्रताप भी उन्हीं तमाम चेहरों में से हैं, जिनका आजादी के बाद इतिहासकारों ने सही ढंग से मूल्यांकन नहीं किया। दुनिया भले ही नोबेल के लायक उनको मान ले, लेकिन भारत की मनुवादी सरकारें उनकी जयंती पुयतिथि तक मनाने लायक नहीं समझती आई और ये नाइंसाफी की मार केवल राजा महेंद्र प्रताप ने ही नहीं भुगती, उनके जिले हाथरस ने भी भुगती है।
#अंतरराष्ट्रीय_इतिहास
P03- गुजरात पहले केंद्रीय खजाने से रुपया लूटा, अब केद्रीय गोदाम से अनाज उडा रहा है। इसकी हिस्सेदारी देने में कम और लेने में अधिक रहती है चाहे वो रुपया हो या अनाज....
Foodgrain supply to Gujarat doubled during lockdown: FCI The official said the foodgrains are being issued to the state government for distribution at an average of 12,000 MT per day wherein 600 trucks transport the stock from the 33 FCI depots across the state to 17,000 fair price shops.
P02- हौंसले के साथ घोंसले में बने रहें।
#कोरोना
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