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जय महादेव 🙏जिंदगी का जो सबक तुमने मुझे सिखाया, वह किताबों 📚 में भी न था ।
माँ और पापा के बाद तुम्ही थे जिसने हर सफर पर मेरा हाथ थामे रखा ।😢
मेरी जिंदगी में आपके जैसा दूसरा कोई नहीं ।🙂 🙏
आपके जन्मदिन पर दुआ है मेरी कि सलामत रहो आप सारी जिंदगी…🙏
🎂🍫🍬🎂🍫🍬खुशियों का एक संसार लेकर आएँगे,
पतझड़ 🍃 में भी बहार लेकर आएँगे,
जब भी पुकार लेंगे आप दिल ❤️ से,
जिदगी से साँसे उधार लेकर आएंगे.🙂
हमारे प्यारे भाई साहब आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ..!🎂🎂🍫🍫
*हम मेडिकल वाले है....*
ना घूमने जाते हैं, ना फिरने जाते है।
हम मेडिकल वाले है , दुकान के सिवाए कही ना जाते हैं।
ना गाने सुना करते हैं, ना गज़ले सुना करते हैं।
हम मेडिकल वाले हैं, लोगों की परेशानी सुना करते हैं।
अनजान लोगों के दुःख-दर्द कुछ ऐसे पहचान लेते है।
हम मेडिकल वाले हैं, कागज देखकर सब हाल जान लेते हैं।
ना गीता, ना बाइबिल, ना ही क़ुरान पढ़ते है।
हम मेडिकल वाले है, सर्कुलर और वित्त संहिता पढ़ते है।
ना डिस्को में जाते हैं हम, ना डेट पे जाते हैं,
हम मेडिकल वाले है, अक़सर घर देर से जाते है।
खुद ही कहानी लिखते है और खुद ही डायरेक्टर होते हैं।
हम मेडिकल वाले हैं, हमारे अपने परदे, अपने थिएटर होते है।
हसरतें हूबहू है, ख़ुदा नहीं, हम भी बनना इंसान भला चाहते है।
हम मेडिकल वाले है, चाहे कुछ भी हो अपने ग्राहक का भला चाहते हैं।
ना खाकी पे एतबार है , ना खद्दर पे इतना भरोसा करते है।
हम मेडिकल वाले है, लोग हम पे बेहिसाब भरोसा करते है।
हिन्दू भी खड़ा रहता है, मुस्लिम भी खड़ा रहता है।
ये मेडिकल वालो का दिल है, जहां
इंसानियत भीतर रहती है, मज़हब बाहर खड़ा रहता हैं।
💊💊💊💊💊
एक डॉक्टर के क्लिनिक में...
लिखी हुई एक बेहतरीन लाइन
*"दवाई में कुछ भी मजा नही है"*
और
*"मजे जैसी कोई दवाई नही है"*
*Enjoy Life*
Good morning
किसी समय पर इस तस्वीर पर खूब बवाल हुआ था। चर्चा का विषय राष्ट्र के सबसे धनाढ्य परिवार की बहू के हाथ में टँगा सफेद रंग का हैंडबैग था।
हैंडबैग की कुल कीमत 2,60,000,00 (दो करोड़ साठ लाख) बताई जा रही थी। बैग पर 18 कैरेट सोने की कोटिंग है और 200 हीरे जड़े हुये हैं।
सोशल मीडिया के गलियारों में वामपंथी इस तस्वीर की छाती पीट पीट कर आलोचना कर रहे थे। कहा जा रहा था के पूंजीवाद ने इस राष्ट्र में अमीर और गरीब के बीच इतनी बड़ी खाई पैदा कर दी है जिसे दशकों तक पाटना मुश्किल है।नीता अंबानी को नसीहत दी जा रही है के यही पैसा अगर वह गरीबों में बांट देती तो ना जाने कितने लोगों का भला हो जाता।
उन दिनों मैंने आलोचकों को एक मुफ्त सलाह दी थी।
मैंने लिखा था के अगर संभव हो तो मुकेश अम्बानी की पूरी दौलत का हिसाब लगा कर उसके बराबर हिस्से कर राष्ट्र के 135 करोड़ लोगों में बांट देना चाहिये। 135 करोड़ की जनसंख्या में सबके हिस्से में 500 - 1000 रुपये आ जायेंगे। अम्बानी सड़क पर आ जायेगा और इस पूंजीपति को हलाल होता देख उन सभी लोगों की आत्मा तृप्त हो जायेगी जिन्हें आदिकाल से पूंजीपति राष्ट्र के सबसे बड़े लुटेरे लगते आये हैं।
मुकेश अम्बानी के सड़क पर आने से कितने रोज़गार खत्म होंगे इसका अंदाज़ा लगाने की आवश्यकता नहीं है। अर्थव्यवस्था को किस हद तक नुक्सान पहुंचेगा यह अंदाज़ा लगाने की आवश्यकता भी नहीं है। बस मुकेश अम्बानी को सड़क पर ला कर खड़ा कर दो। गरीब की आत्मा तृप्त हो जायेगी।
परंतु अम्बानी को सड़क पर लाने वाले महानुभावों को मैंने एक चैलेंज भी दिया था। मैंने कहा था के आज आप मुकेश अम्बानी की सारी दौलत छीन कर उसकी एक एक पाई पर अपना हक जमा लीजिये। उसकी सम्पति नीलम कर दीजिये...... उसका कमाया हुआ एक एक पैसा गरीबों में बांट दीजिये। उसे पाई पाई के लिये मोहताज कर दीजिये।
फिर भी आज से दो दशकों के बाद यही दौलत......यही पैसा .....यही सम्पति वापिस मुकेश अम्बानी की जेब में होगी।
आप हर पूंजीपति से उसकी दौलत छीन सकते हैं परंतु उससे उसकी बिज़नेस सेंस और उसका बिज़नेस माइंड नहीं छीन सकते। उससे उसका नेटवर्क नहीं छीन सकते।
ग़लतफहमी में हैं वह लोग जो सोचते हैं के अम्बानी अकेला आगे बढ़ रहा है......अकेला प्रगति कर रहा है। लाखों करोड़ों लोग इस प्रगति का हिस्सा हैं। अम्बानी ने जितना भी कमाया है कोरोड़ों लोगों के साथ और विश्वास के दम पर कमाया है.......यही उसकी कमाई है और यही उसकी जमापूंजी है।
गरीबों का मसीहा बनने के लिये पूंजीपति को गाली देना फैशन हो गया है। सेठ की चमचमाती गाड़ी पर नज़र रखने वाले यह नहीं देखते के सेठ की फैक्ट्री में काम कर रहे कितने कर्मचारियों की दो वक्त की रोटी उस उद्योग पर निर्भर है। वामपंथ दरिद्र के काँधे पर हाथ रख कर उसे समझाता आ रहा है के सेठ की चमचमाती गाड़ी पर उसका हक है। सेठ की तिजोरी में रखे पैसे पर उसका हक है।
मुद्दा अडाणी अम्बानी तक सीमित नहीं है। मुद्दा "पूंजीवाद" को घृणित और पूंजीपति को "लुटेरा" साबित करने का है।
जबकि हकीकत यह है के इस राष्ट्र को वैश्विक शक्ति बनाने का सारा दारोबदर "पूंजीवाद" पर टिका है।
हकीकत यह है जो व्यक्ति "श्रम" को "पूंजी" में परिवर्तित कर सकता है वही राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को मझधार से निकाल सकता है।
अरे भईया।
एक साधारण पेट्रोल पंप अटेंडेंट से धीरूभाई ने इतना विराट और विशाल साम्राज्य बनाया है।
आज भी संभावनाओं की कमी नहीं है। आज के दौर में भी हर आदमी के लिये प्रगति के रास्ते खुले हुये हैं। आज भी इस राष्ट्र के हुक्मरां और नागरिक निर्णय कर लें के औद्योगीकरण के रास्ते इस राष्ट्र की गरीबी का उन्मूलन करना है तो 2-3 दशकों में हम चीन को पछाड़ कर उत्पादन में विश्व में शीर्ष पर आ सकते हैं। हम मिल कर इस राष्ट्र में इतनी पूंजी का सृजन कर सकते हैं के राष्ट्र की हर समस्या को जड़ से उखाड़ कर फेंक सकते हैं।
यकीन मानिये पूंजीपतियों को गाली देने से कुछ नहीं होगा। जो नेता पूंजीवाद को सरेआम गाली दे कर गरीबों का मसीहा बनने का नाटक करते हैं उन्हें अक्सर में देर शाम को किसी पूंजीपति के ड्राइंग रूम में इक्कठे बैठ कर जाम छलकाते देखा है। वही हुक्मरां चुनावों के समय कोर्पोर्रेट्स के आगे झोला फैला कर खड़े होते हैं।
पूंजीवाद को "घृणित" नहीं बल्कि "आदर्श" बनाने की आवश्यकता है। राष्ट्र के जिन राज्यों ने औद्योगीकरण के लिये "रेड कारपेट" बिछाया है वह प्रगति कर रहे हैं और जिन राज्यों ने इंडस्ट्री को नकारा है वह फटेहाल हैं।
व्यापारी वर्ग की सफलता से घृणा या फिर उनके पतन से मिलने वाला क्षणिक सुख किसी काम का नहीं है। हर आदमी जिस हिसाब से कमाता है उस हिसाब से खर्च भी करता है। जिन्हें इस बात से जलन है के नीता अंबानी के पास जो पर्स है वह उनकी लुगाई के हाथ में क्यों नहीं है उनके लिये हाइवे पर चलते ट्रकों के पीछे एक शानदार और प्रेरणादायक वाक्य लिखा होता है ..........
#डायरेक्टर
रावण अभी पूरा जला नहीं...
और देखो भीड़ लौटने लगी है....
के रावण गर जल कर बुझ गया...
तो रास्ता भी न दिखाई देगा...
किसी को फ़िकर है..बाहर खड़ी साइकिल की....
कोई अकेली बेटी घर पर छोड़ कर आया है...
ये डर इसलिये के रावण अब भी जिंदा है....
जाने मैदान के बीच....भीड़ ने किसको जलाया है...!!
*उड़ने दो मिट्टी को आखिर कहाँ तक उड़ेगी,*
*हवाओं ने जब साथ छोड़ा तो, आखिर जमीन पर ही गिरेगी !!*
Good morning
*पता नहीं क्यों भारत में डीहाइड्रेटेड प्याज का चलन नहीं हुआ जबकि भारत एशिया का सबसे बड़ा डिहाइड्रेटेड प्याज निर्यातक है*
मित्रों गुजरात के भावनगर जिले में एक छोटा सा कस्बा आता है जिसका नाम है महुआ
किसी जमाने में यह कस्बा अली मौला अली मौला करने वाले सेठ मुरारीलाल के लिए जाना जाता था लेकिन पिछले कुछ दशकों से यह कस्बा पूरे विश्व पर डिहाइड्रेटेड अनियन सप्लाई करने के लिए जाना जाता है
प्याज में 90% पानी होता है और प्याज में से पानी निकालकर उसे सुखा दिया जाता है और जब भी उसका उपयोग करना हो उसे सिर्फ 1 मिनट के लिए पानी में भीगा देने से वह बिल्कुल एक ताजे प्याज की तरह बन जाता है और ठीक वही स्वाद देता है
आज महुआ से अमेरिका आस्ट्रेलिया चीन यूरोप में डिहाइड्रेटेड प्याज निर्यात होता है
डिहाइड्रेटेड प्याज साधारण प्याज से 60% सस्ता पड़ता है और स्वाद में आप बिल्कुल नहीं पहचान पाएंगे कि आप भी हाइड्रेटेड प्याज में बना हुआ खाना खा रहे हैं या साधारण प्याज में बना हुआ खाना खा रहे हैं
दरअसल डिहाईड्रेशन भारतीय पाक शैली में सदियों से मौजूद है मैंने खुद अपने गांव में देखा है जब हमारे गांव में करेला या दूसरी सब्जियां खूब हो जाती थी तब उन्हें टुकड़ों में काटकर सुखा दिया जाता था और जब भी उसे पकाना होता था थोड़ी देर पानी में भीगा कर उसे पकाकर खाई जाती थी
अगर हम भारतीय भी डिहाइड्रेटेड प्याज अपनाना शुरू कर दें तब शरद पवार की प्याज माफिया की कमर तोड़ी जा सकती है
रावण
______________________________________
अंततोगत्वा वो घड़ी फिर आ गई, जब सोशल मीडिया पर “रावण” का प्राकट्य हुआ, हिंदूधर्म साहित्य का सबसे बड़ा खलनायक। और इसके साथ ही आरंभ हुए हैं, रावण-स्तुतिगान।
वस्तुतः ये वो घड़ी है, जब आपको निश्चित करना है कि आप “रावण” को श्रीराम के सम्मुख कुछ क्षण खड़ा हो सकने योग्य खलनायक कह कर प्रशंसा करना चाहते हैं अथवा “रावण” को ही श्रेष्ठ कह देना चाहते हैं।
हमारे कुछ बंधु हैं, जो बरस भर “जय दादा परशुराम” का नारा बुलंद करते हैं, दशहरा आते ही रावण के पक्षधर हो जाते हैं। वे लोग दादा की उपाधि “रावण” को भी दिया करते हैं। ऐसे ही लोग आज सोशल मीडिया पर “रावण” के लिए “लाख बुरा सही, किन्तु ऐसा नहीं, वैसा नहीं” रटकर लहालोट हो रहे हैं।
अवश्य ही, खलनायक की योग्यता नायक को अति-योग्य बनाने का एक प्रच्छन्न आग्रह होता है। “रावण” यदि वास्तव में एक कमज़ोर राक्षस होता, तो उसका नाश करने के लिए श्रीहरि ही क्यों प्रकटते? किन्तु हृदय विचलित हो गया, जब पढ़ा कि “रावण” के लिए राम को हराना क्या मुश्किल था।
हद तो तब हो गई, जब इस पक्ष में अगला तर्क मिला कि “रावण” मायावी था, कुछ भी कर सकता था!
बहुत संभव है कि इस पूरे प्रलाप का कारण अज्ञान हो! मग़र अफ़सोस, ऐसा है नहीं। बड़ा आनंद मिलता मुझे, यदि वाकई इसका कारण “अज्ञान” ही होता, मैं उस अज्ञान का खंडन कर आपके आभार प्राप्त करता।
वैसे आपको ध्यातव्य हो कि अज्ञानी होना अपराधी होने की “रेमिडी” नहीं है। आप किसी अपराध के उपरान्त, यों कह कर नहीं बच सकते कि आपको इस कार्य के विरुद्ध कानूनी धारा का ज्ञान नहीं था।
हालांकि, धार्मिक मामले अब भी जिज्ञासा के भाव को तवज्जो देते हैं। हर मनुष्य अज्ञान के ही सोपान से आरंभ करता है। सो, मुझे आनंद मिलता कि वे लोग रावण की प्रशंसा अज्ञानवश करते, फिर मैं उन्हें सत्य का ज्ञान करवाता!
किन्तु मैं विस्मित हो जाता हूँ कि वे लोग मानस के तमाम रावण संबंधी प्रसंगों को कितने सुन्दर तरीके से सूचीबद्ध कर, रावण का महिमामंडन करते हैं। वे लोग कुछ भी हों, अज्ञानी तो नहीं हो सकते!
# #
“रावण” हमारे हिन्दू धर्म साहित्य का सबसे बड़ा खलनायक है। सहस्रबाहु, कंस और दुर्योधन से भी बड़ा। उससे बड़ा खलनायक कोई नहीं!
अक़्सर ये तर्क दिया जाता है कि “रावण” को पूर्व से ज्ञात था कि “खर दूषन मोहि सम बलवंता, तिन्हहि को मारइ बिनु भगवंता।” ये मानस की रावणोवाच चौपाई है। “रावण” विचार कर रहा है।
और यहीं हमारे ब्राह्मण बंधुओं का वैचारिक स्खलन हो जाता है। फिर वे आगे पढ़ने की जहमत नहीं उठाते कि :
“जौं नररूप भूपसुत कोऊ, हरिहउं नारि जीति रन दोऊ।” [ अर्थात् कि यदि वे दोनों युवान मानुष राजपुत्र हैं, तो उनकी नारी को हरण कर उनदोनों को युद्ध में पराजित कर दूंगा! ]
चूंकि नरों से उसे कोई भय न था। उसका पूर्वाग्रह था कि मनुष्य तो राक्षसों का सामना कर ही नहीं सकते। इसी कारण से तो उसने प्रजापति ब्रह्मा से कहा था कि मेरी मृत्यु मनुष्य के हाथों हो। चौपाई का प्रथम चरण भी है : “रावन मरन मनुज कर जाचा!”
ऐसा विचार “रावण” कर रहा था। वो एक तीर से दो शिकार करने की योजना बना रहा था, किसी कुशल शिकारी की भांति। वो दोनों पत्तों का अवलोकन कर रहा था, किसी चतुर जुआरी की भांति।
किन्तु हमारे रावणपूजक ज्ञानी बंधुओं को इतना विचारने का समय कहाँ कि “रावण” दोनों पक्षों पर विचार कर रहा है। वे रावणपूजक लोग पहले पक्ष को पढ़कर ही इतिश्री कर निर्णय ले लेते हैं कि “रावण” धर्मात्मा था!
# #
उक्त तमाम विचार कर, “रावण” मारीच से भेंट हेतु प्रस्थान कर गया। और वहां भी यही योजना निर्मित की, कि यदि राम तुम्हारी मृगलीला के झांसे में न आए तो वे ईश्वर हैं, और यदि तुम्हारा शिकार करने चले आए तो वे केवल और केवल नर ही हैं!
ठीक यही प्रसंग महर्षि याज्ञवल्क्य ने भरद्वाज मुनि को मानसरोवर के तट पर सुनाया है। इस कथावाचन और श्रवण के विषय में मानस कहता है :
“जागबलिक जो कथा सुहाई,
भरद्वाज मुनिबरहि सुनाई।”
-- इसी कथावाचन में महर्षि याज्ञवल्क्य ने कहा है :
“करि छलु मूढ़ हरी बैदेही,
प्रभु प्रभाउ तस बिदित न तेही।”
यानी कि उसने छल कर के सीता का हरण किया। उस दुष्ट को प्रभु के प्रभाव का लेशमात्र भी भान न था। उसका अहम् “जिमि टिट्टिभ खग सूत उताना” जैसा था, कुछ यों कि जैसे टिटिहरी आकाश को थामे रखने के लिए पैर ऊपर कर सोती है!
“रावण” के विषय में यही सब उक्तियाँ शिव ने उमा के समक्ष दुहराई हैं। वही शिव जी जिनके बारे में प्रसिद्ध है :
१) सिव सर्बग्य जानु सब कोई।
२) मुधा बचन नहिं संकर कहहिं।
अर्थात् इस संसार में शिव से कुछ भी छिपा नहीं है और न ही शिव कभी झूठ बोलते हैं। उक्त दोनों ही कारण न थे, जो शिव ने “रावण” द्वार श्रीराम को मन ही मन प्रभु मान लेने की बात उमा से छुपाए रखी।
यदि कहीं “रावण” के मन में श्रीराम के ईश्वर होने का संदेह भी होता, तो शिव इस बात का उल्लेख उमा से अवश्य करते, याज्ञवल्क्य इसे भरद्वाज से साझा करते!
# #
मानस में ही, प्रभु श्रीराम के ईश्वर या मनुष्य रूप में जांचने की प्रक्रिया महर्षि परशुराम ने भी की है। किंतु वो अज्ञान से उपजी जिज्ञासा थी, “रावण” की भांति कोई छिपी हुई चाल नहीं!
हिन्दू समाज के लिए “रावण” और परशुराम, नदी के दो कूल हैं और मनुष्य की इतनी शक्ति नहीं कि दोनों पर पाँव रख सके। मनुष्य तो दो नावों पर पाँव नहीं रख सकता, तो दो तटों पर पाँव किस भांति रखेगा।
निस्संदेह सोशल मीडिया से बेहतर अपने विचार व्यक्त करने का साधन मनुष्य को अब तक नहीं मिला है। बेहतर है कि इस माध्यम की क्षमताओं का आनंद लिया जाए, न कि इसमें भी धर्म के सबसे बड़े खलनायक के स्तुतिगान का एक और अवसर खोजा जाए।
विजयदशमी के अवसर पर “रावण” का नायकत्व बाँचा जाना, किसी भी स्थिति में प्रभु श्रीराम के देश को स्वीकार्य नहीं। अस्तु, आग्रह है कि देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय व श्रीराम की रावण पर विजय के इस आनंद-क्षणों में रावणस्तुति का विष न घोला जाए।
इति नमस्कारान्ते।
[ चित्र : टीवी के सबसे पहले रावण, अरविंद त्रिवेदी। ]
जय सच्चिदानंद जी 😇
ऊँ नमः शिवाय 🌹
ऊँ नमः शिवाय 🌹
ऊँ नमः शिवाय 🌹
ऊँ नमः शिवाय 🌹
ऊँ नमः शिवाय 🌹
🔵🌾👏🌻👏🌾🔵
नंदी पर सवार भोले शिव शंकर
भूतों के हैं यार भोले शिव शंकर
अर्ध्दनारीश्वर रूप सुहाना लगता है
गौरा से हैं प्यार भोले शिव शंकर
जटाजूट भभूत लपेटे काया है
गल सांपो का हार भोले शिव शंकर
कल्याण धरा का करने ही तो ले आये
सिर गंगा की धार भोले शिव शंकर
भारत के कण-कण पर शंकर नाम लिखा
करो राष्ट्र उद्धार भोले शिव शंकर🔵
🔵🌾👏🌻👏🌾🔵
ऊँ नमः शिवाय 🌹
ऊँ नमः शिवाय 🌹
ऊँ नमः शिवाय 🌹
ऊँ नमः शिवाय 🌹
ऊँ नमः शिवाय 🌹
जय सच्चिदानंद जी 😇
ऊँ में ही आस्था है !!
ऊँ में ही विश्वास है
ऊँ में ही शक्ति है
ऊँ कार से ही सारा संसार है
ऊँ से ही होती अच्छे दिन की शुरुआत है !!
🌹बोलो ऊँ नम: शिवाय :🌹
🌹 ऊ नमः शिवाय 🌹
🌹 सुप्रभातम सभी भगवत प्रेमियों को 🌹
🙏
. "करुणानिधि"
एक बार भगवान राम और लक्ष्मण दोनों भाई एक सरोवर में स्नान के लिए उतरे। उतरते समय उन्होंने अपने-अपने धनुष बाहर तट पर गाड़ दिए। जब वे स्नान करके बाहर निकले तो लक्ष्मण ने देखा की उनकी धनुष की नोक पर रक्त लगा हुआ था। उन्होंने भगवान राम से कहा - "भ्राताश्री ! लगता है कि अनजाने में कोई हिंसा हो गई।" दोनों ने मिटटी हटाकर देखा तो पता चला कि वहाँ एक मेढ़क मरणासन्न पड़ा हुआ है।
भगवान राम ने करुणावश मेंढक से कहा - "तुमने आवाज क्यों नहीं दी ? कुछ हलचल, छटपटाहट तो करनी थी। हम लोग तुम्हे बचा लेते। जब सांप तुम्हे पकड़ता है तब तो तुम खूब आवाज लगाते हो। धनुष लगा तो क्यों नहीं बोले ?"
मेंढक बोला - प्रभु ! जब सांप पकड़ता है, तब मैं 'राम- राम' चिल्लाता हूँ। एक आशा और विश्वास रहता है कि प्रभु अवश्य पुकार सुनेंगे। परन्तु आज जब देखा कि साक्षात् भगवान् श्री राम स्वयं धनुष लगा रहे है तो किसे पुकारता ? आपके सिवाय किसी और का नाम याद नहीँ आया। बस इसी को अपना सौभाग्य मानकर चुपचाप सहता रहा।"
सच्चे भक्त जीवन के हर क्षण को भगवान का आशीर्वाद मानकर उसे स्वीकार करते हैं। जब दुःख होता है वो उसे अपनी गलती की सजा समझते हैं और जब सुख होता है तो उसे ईश्वर की दया समझते है।
----------:::×:::----------
पहली बार कोई MADE IN CHINA चीज इतनी मजबूत देखी है
CORONA VIRUS
🤥🤧💀☠️
*पहला वायरस मामला 😗
एचआईवी - कोंगो
नीपाह - मलेशिया
इबोला - सूडान
बर्डफ्लू - होंन्ग कौंन्ग
डैंन्गू - मनीला
कोरोना - चीन
भारत में लाखों लोग एक साथ शामिल होते हैं-
कुंभ मेले में
पुष्कर मेले में
वैष्णो देवी धाम
स्वर्ण मंदिर
जगन्नाथ रथयात्रा
तिरुपति
शबरीमाल
बद्रीनाथ
केदारनाथ
शिरडी
रामेश्वरम
गंगासागर
गंगा स्नान
दुर्गा पूजा
कावर यात्रा
नवरात्रि
चारधाम
अमरनाथ यात्रा
पैदल यात्रा
आस्था विनायक
सिद्धि विनायक
12 ज्योतिर्लिंग
हजारों त्यौहारों, मेलों और यात्राओं में
एक नदी
एक जगह
और लाखों लोग एक साथ रहते हैं
और खाते हैं
और पवित्र स्नान करते हैं
और उसी समय वॉशरूम का उपयोग करते हैं।
एक भी वायरस नहीं फैला।
*यह है हिन्दुस्तान! अतुल्य भारत!*
कुछ देशों के अजीब खाने की आदतों को रोका जाना चाहिए
*अगर आप प्रकृति का सम्मान नहीं करेंगे तो, प्रकृति आपको नष्ट कर देगी..*🙏🙏🙏🙏
मौसम इस कदर खुमारी में है,
मथुरा कश्मीर होने की तैयारी में हैं।
☃😇
मासूम बनना है तो
पड़ोसन की नजर में बनो
घरवाली की नजर में तो
हमेशा ही ढक्कन रहोगे
पिछली दिवाली पर संदेशे तो बहुत आये लेकिन मेहमान कोई नही आया. आज सोचता हूँ ड्राइंग रूम से सोफा हटा दूं. या ड्राइंग रूम का कांसेप्ट बदलकर वहां स्टडी रूम बना दूं.
दो दिन से व्हाट्स एप और एफबी के मेसेंजर पर मेसेज खोलते, स्क्रॉल करते और फिर जवाब के लिए टाइप करते करते दाहिने हाथ के अंगूठे में दर्द होने लगा है. संदेशें आते जा रहे हैं. बधाईयों का तांता है . लेकिन मेहमान नदारद है .
ये है आज के दौर की दीवाली.
मित्रों, घर के आसपास के पडौसी अगर छोड़ दें तो त्यौहार पर मिलने जुलने का रिवाज़ खत्म हो चला है. पैसे वाले दोस्त और अमीर किस्म के रिश्तेदार मिठाई या गिफ्ट तो भिजवाते है लेकिन घर पर बेल ड्राईवर बजाता है. वो खुद नही आते.
दरअसल घर अब घर नही रहा. ऑफिस के वर्क स्टेशन की तरह घर एक स्लीप स्टेशन है. हर दिन का एक रिटायरिंग बेस. आराम करिए, फ्रेश हो जाईये. घर अब सिर्फ घरवालों का है. घर का समाज से कोई संपर्क नही है. मेट्रो युग में समाज और घर के बीच तार शायद टूट चुके हैं. हमे स्वीकार करना होगा कि ये बचपन वाला घर नही रहा. अब घर और समाज के बीच में एक बड़ा फासला सा है.
वैसे भी शादी अब मेरिज हाल में होती है. बर्थडे मैक डोनाल्ड या पिज़्ज़ा हट में मनाया जाता है. बीमारी में नर्सिंग होम में खैरियत पूछी जाती है. और अंतिम आयोजन के लिए सीधे लोग घाट पहुँच जाते है.
सच तो ये है कि जब से डेबिट कार्ड और एटीएम आ गये है तब से मेहमान क्या ...चोर भी घर नही आते.
मे सोचता हूँ कि चोर आया तो क्या ले जायेगा...फ्रिज, सोफा, पलंग, लैप टॉप..टीवी...कितने में बेचेगा इन्हें चोर? अरे री सेल तो olx ने चौपट कर दी है. चोर को बचेगा क्या ? वैसे भी अब कैश तो एटीएम में है इसीलिए होम डेलिवरी वाला भी पिज़ा के साथ डेबिट मशीन साथ लाता है.
सच तो ये है कि अब सवाल सिर्फ घर के आर्किटेक्ट को लेकर ही बचा है.
जी हाँ....क्या घर के नक़्शे से ड्राइंग रूम का कांसेप्ट खत्म कर देना चाहिये ?
इस दीवाली जरा इस सवाल पर गौर करिएगा
:::अनुराग बंसल
कुत्ता काटने पर लापरवाही न बरतें
तुरंत एन्टी रेबीज वैक्सीन लगाए
इस वीडियो को देखें
एन्टी रैबीज के अभाव में इसका क्या हाल हो गया है
*चिन्तन व मनन हेतु कुछ विषय*
*सच्चा समाजसेवी होना और बात बात पर नाराज होना दोनों एक साथ नहीं चल सकते इसलिए सामाजिक कामों में बात बात पर नाराज होना छोड़ो*
नाराजगी के कुछ प्रचलित कॉमन कारण....
- मेरा फोटो नहीं छपा
- निमंत्रण पत्र में मेरा नाम ही नहीं है
- मुझे इससे कुछ मिलने वाला नहीं था
- मुझे कोई पद ही नहीं मिला
- कोई मेरी तो सुनता और मानता ही नहीं है
- मुझे मंच पर नहीं बैठाया
- मेरा सम्मान ही नहीं किया
- मुझे अपनी बात बोलने का मौका नहीं दिया
- बार बार आर्थिक बोझ मेरे पर ही डाल दिया जाता है
- हर बार सभी काम मुझे ही सौंपा जाता है
- मुझसे तो कभी भी कोई सुझाव लेते ही नहीं है
- समय नहीं मिल रहा, इसलिए मैं नहीं आया,
आदि आदि.....यह सब क्या है ???? क्या इन सबके लिए ही हम समाजसेवी बने हैं..?
सच्चे समाजसेवी को इन सभी कारणों को छोड़ देना होता है और जो छोड़ दे वही एक अच्छा समाज सेवक बाकी समाज सेवा का ढकोसला करने वाले। सच्चा कार्य वही है जो समाज के हित को सर्वोपरि रख कर सकें, इसलिए कहा गया है कि समाज सेवा तलवार की धार पर चलने का काम है और यह कोई कायरों का काम नहीं हैं।
जिंदगी में संघर्ष जरूरी है इसलिए जो लोग समाज सेवा में अपना मूल्यवान समय दे रहे हैं उन लोगों को तन - मन - धन से सहयोग देकर समाज के अच्छे कार्यों को आगे बढ़ाएं।
*खुद को समय जरूर दें*
*आपकी पहली जरूरत*
*खुद आप हैं*!!!
*समय के पास इतना*
*समय नहीं है कि*,
*आपको दुबारा*
*समय दे सके*.....
🍂🍁🍂🍁🥀🌹🌺🌺🌻🌼🌞🙏🙏 सुप्रभात🙏🙏🍂🍁🍂🌺🥀🌹🌼🌻🌻🌞
एक अति सुन्दर महिला ने विमान में प्रवेश किया और अपनी सीट की तलाश में नजरें घुमाईं।
उसने देखा कि उसकी सीट एक ऐसे व्यक्ति के बगल में है। जिसके दोनों ही हाथ नहीं है।
महिला को उस अपाहिज व्यक्ति के पास बैठने में झिझक हुई।
उस 'सुंदर' महिला ने एयरहोस्टेस से बोला "मै इस सीट पर सुविधापूर्वक यात्रा नहीं कर पाऊँगी।
क्योंकि साथ की सीट पर जो व्यक्ति बैठा हुआ है उसके दोनों हाथ नहीं हैं।
" उस सुन्दर महिला ने एयरहोस्टेस से सीट बदलने हेतु आग्रह किया।
असहज हुई एयरहोस्टेस ने पूछा, "मैम क्या मुझे कारण बता सकती है..?"
'सुंदर' महिला ने जवाब दिया "मैं ऐसे लोगों को पसंद नहीं करती। मैं ऐसे व्यक्ति के पास बैठकर यात्रा नहीं कर पाउंगी।"
दिखने में पढी लिखी और विनम्र प्रतीत होने वाली महिला की यह बात सुनकर एयरहोस्टेस अचंभित हो गई।
महिला ने एक बार फिर एयरहोस्टेस से जोर देकर कहा कि "मैं उस सीट पर नहीं बैठ सकती। अतः मुझे कोई दूसरी सीट दे दी जाए।"
एयरहोस्टेस ने खाली सीट की तलाश में चारों ओर नजर घुमाई, पर कोई भी सीट खाली नहीं दिखी।
एयरहोस्टेस ने महिला से कहा कि "मैडम इस इकोनोमी क्लास में कोई सीट खाली नहीं है, किन्तु यात्रियों की सुविधा का ध्यान रखना हमारा दायित्व है।
अतः मैं विमान के कप्तान से बात करती हूँ। कृपया तब तक थोडा धैर्य रखें।" ऐसा कहकर होस्टेस कप्तान से बात करने चली गई।
कुछ समय बाद लोटने के बाद उसने महिला को बताया, "मैडम! आपको जो असुविधा हुई, उसके लिए बहुत खेद है |
इस पूरे विमान में, केवल एक सीट खाली है और वह प्रथम श्रेणी में है। मैंने हमारी टीम से बात की और हमने एक असाधारण निर्णय लिया। एक यात्री को इकोनॉमी क्लास से प्रथम श्रेणी में भेजने का कार्य हमारी कंपनी के इतिहास में पहली बार हो रहा है।"
'सुंदर' महिला अत्यंत प्रसन्न हो गई, किन्तु इसके पहले कि वह अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करती और एक शब्द भी बोल पाती...
एयरहोस्टेस उस अपाहिज और दोनों हाथ विहीन व्यक्ति की ओर बढ़ गई और विनम्रता पूर्वक उनसे पूछा
"सर, क्या आप प्रथम श्रेणी में जा सकेंगे..? क्योंकि हम नहीं चाहते कि आप एक अशिष्ट यात्री के साथ यात्रा कर के परेशान हों।
यह बात सुनकर सभी यात्रियों ने ताली बजाकर इस निर्णय का स्वागत किया। वह अति सुन्दर दिखने वाली महिला तो अब शर्म से नजरें ही नहीं उठा पा रही थी।
तब उस अपाहिज व्यक्ति ने खड़े होकर कहा,
"मैं एक भूतपूर्व सैनिक हूँ। और मैंने एक ऑपरेशन के दौरान कश्मीर सीमा पर हुए बम विस्फोट में अपने दोनों हाथ खोये थे।
सबसे पहले, जब मैंने इन देवी जी की चर्चा सुनी, तब मैं सोच रहा था। की मैंने भी किन लोगों की सुरक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डाली और अपने हाथ खोये..?
लेकिन जब आप सभी की प्रतिक्रिया देखी तो अब अपने आप पर गर्व हो रहा है कि मैंने अपने देश और देशवासियों के लिए अपने दोनों हाथ खोये।"
और इतना कह कर, वह प्रथम श्रेणी में चले गए।
'सुंदर' महिला पूरी तरह से अपमानित होकर सर झुकाए सीट पर बैठ गई।
अगर विचारों में उदारता नहीं है तो ऐसी सुंदरता का कोई मूल्य नहीं है।
मैरे पास ये कहानी आई थी।
मैंने इसे पढ़ा तो हृदय को छू गई इसलिये पोस्ट कर रहा हूँ। उम्मीद करता हूँ कि आप लोगों को भी बहुत पसंद आएगी।
आपको कहानी कैसी लगी
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
ये मोदी पैसा अम्बानी की जेब मे डाल रहा है और निकल कमलनाथ की जेब से रहा है 😂🤣।
#जादूगर_मोदी।
फुर्सत से हम भी करेंगे तुझ से हिसाब,ऐ ज़िन्दगी अभी चूतियों की सरकार न बन जाये,इसमें ही व्यस्त हैं।
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