Sanjeev Clinic Evam Vran Ropan Kendra
Providing Cure from general diseases to Chronic diseases, minor surgeries at clinic level and Kshar-Sutra for Anorectal diseases.
There is no need of admission, if needed room facility available till cure.
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"भास्करस्य यथा तेजो मकरस्थस्य वर्धते।"
"तथैव भवतां तेजो वर्धतामिति कामये।।"
भावार्थः - जैसे मकर राशी में सूर्य का तेज बढता है, उसी तरह इस होली पर आपके #स्वास्थ्य और #समृद्धि की हम कामना करते हैं।
"आशासे यत् #होलिकापर्व भवतु मङ्गलकरम् अद्भुतकरञ्च।"
"जीवनस्य सकलकामनासिद्धिरस्तु।"
भावार्थः – मुझे उम्मीद है कि #होली का पर्व आपके लिए एक सुखद आश्चर्य लेकर आएगा।
आप जीवन में जो कुछ भी चाहते हैं, वह आपको मिले।
Dr. Kumar Biswas &
Dr. Biswas
A case of 3 years old fully cured by a Vd. Rampal Singh within 40 days only by Ayurvedic Medicines.
DID YOU KNOW ?
Sitting on the floor is active sitting!
For centuries, people around the world sat on floors either cross-legged or in a squatting position. If you are a yoga practitioner, this will make complete sense to you. When you sit on the floor (whether it is Vajrasana, Sukhasana or any other yoga pose), you actually engage many of your muscles as opposed to when you sit on a chair. When your feet are below your heart (as in a position when sitting on a chair), the blood circulation is being directed to your feet, as opposed to when you sit cross-legged on the floor where your heart receives the benefit of better circulation!
Because of the fact that chairs and couches surround our generation, we have lost the ability to sit for longer stretches on the floor. Nevertheless, it is enormously rewarding to incorporate ways to sit on the floor whenever you can and worthwhile to explore cushions and backrests to aid active sitting on the floor. By sitting on the floor, we strengthen the lumbar region of the body, reducing back pain and discomfort. The hips open, making our pelvis and legs more flexible. Core muscles strengthen and the ankles are gently stretched. Floor sitting also helps promote mental calmness, soothes frazzled nerves and aid one’s creative imagination.
डाईबिटीज़ की सामान्य चिकित्सा |
आक-अर्क
परिचय
आक के पौधे, या वृक्ष शुष्क, ऊपर और ऊँची भूमि में प्रायः सर्वत्र देखने को मिलते हैं। इन वनस्पति के विषय में साधारण समाज में यह भ्रान्ति फैली हुई है कि आक का पौधा विषैला होता है यह मनुष्य को मार डालता है। इसमें किंचित सत्य जरूर है, आयुर्वेद संहिताओं में भी इसकी गणना उपविषों में की गई है, यदि इसका सेवन अधिक मात्रा में कर लिया जाये तो, उल्दी दस्त होकर मनुष्य यमराज के घर जा सकता है, इसके विपरीत यदि आक का सेवन उचित मात्रा में, योग्य तरीके से, चतुर वैद्य की निगरानी में किया जाये तो अनेक रोगों में इससे बड़ा उपकार होता है। उसका हर अंग दवा है, हर भाग उपयोगी है यह सूर्य के समान तीक्ष्ण तेजस्वी और पारे के समान उत्तम तथा दिव्य रसायन धर्मा हैं। कहीं-कहीं इसे वानस्पतिक पारद भी कहा गया है। इसकी तीन जातियाँ पाई जाती है-जो निम्न प्रकार है:-
1. रक्तार्क :- Calotropis gigantean बाहर से श्वेत रंग के छोटे कटोरीनुमा और भीतर लाल और बैंगनी रंग की चित्ती वाले होते हैं। इसमें दूध कम होता है।
2. श्वेतार्क :- इसका फूल लाल आक से कुछ बड़ा-हल्की पीली आमलिये श्वेत करबीर पुष्प सदृश होता है। इसकी केशर भी बिल्कुल सफेद होती है। इसे मंदार भी कहते हैं। यह प्रायः मन्दिरों में लगाया जाता है। इसमें दूध अधिक होता है।
3. राजार्क :- इसमें एक ही टहनी होती है, जिस पर केवल चार पत्ते लगते है, इसके फूल चांदी के रंग जैसे होते हैं, यह बहुत दुर्लभ जाति है।
इसके अतिरिक्त आक की एक और जाति पाई जाती है। जिसमें पिस्तई रंग के फूल लगते हैं।
बाह्यस्वरूप
आक के बहुवर्षीय व बहुशाखीय गुल्म 4-12 फुट ऊँचे कांडत्वक बहुत कोमल व घूसर होती है। इस पौधे के सभी अंग एक सफेद रूई की तरह धुने हुए सफ़ेद रोमों में आच्छादित रहते है। पत्र-आकृत या वृन्त बहुत ही छोटा होता है, 4-6 इंच लम्बे 1-3 इंच चौड़े आयताकार मांसल व हृदयकर होते है पुष्प सुगन्धित गुच्छों में सफेद या लाल बैंगनी रंग के, पुंकेसर पांच और पुष्प दंत भी पाँच ही होते हैं। फल 2-3 इंच लम्बे 1 से 2 इंच तक चौड़े टेढ़े मेढे गोल या अंडाकार, बीच में कुछ मुड़े हुये होने के कारण तोते की चोंच जैसी लगते हैं इसलिए इन्हें शुकफल भी कहते हैं। फल के भीतर गूदे ही बजाय छोटे-2 भूरे रंग के बीज भरे होते हैं। जिन पर रूई के मुलायम रेशे कूंची की तरह चिपके रहते हैं, फल जब फटते है, तब बीज हवा में उड़कर गोल हो जाते हैं और सब जगह फैल जाते हैं।
आक का सम्पूर्ण पौधा एक प्रकार के दुग्धमय एवं चरपरे रस से परिपूर्ण होता है। इसके किसी भी भाग को तोड़ने से चीकर जैसा, सफेद रसमय दुग्ध निकलता है।
रासायनिक संघठन
आक के सर्वाग में प्रायः एक प्रकार का कडुवा और चरपरा पीला राल जैसा पदार्थ पाया जाता है, और यही इसका प्रभावशाली अंश है। इसके सिवाय जड़ की छाल में मंडारएल्बन और भड़ार फ्युएबिल नामक दो वस्तुएँ और पाई जाती है।
मंड़ारएल्बन आक का एक रवेदार एवं प्रभावात्मक सार है, इसे भंदारिन भी कहते है। यह सार ईथर और मद्यसार में घुलता है, शीतल जल तथा जैतुन के तैल में यह अघुलनशील है। इसमें एक विचित्रता है-यह गरमी में जम जाता है और शीत में खुले रखने पर पिघल उठता है। ये दोनों तत्व इसके दूध या रस में भी अधिक परिमाण में पाये जाते है। नवीन आक की अपेक्षा पुराने आक की जड़ अधिक वीर्यवान होती है।
गुण धर्म
1. दोनों प्रकार के आक दस्तावर है, वात कुष्ठ, कडूं विष, व्रण, प्लीहा, गुल्म, बवासीर, कफ उदर रोग और मल कृमि को नष्ट करने वाले है।1
2. सफेद आक का फूल वीर्यवर्धक, हल्का दीपन, पाचन अरूचि, कफ, बवासीर, खांसी तथा श्वास का नाशक है। 2
3. लाल आक का फूल-मधुर कडुवा ग्राही, कुष्ठ कृमि कफ बवासीर विष, रक्तपित्त, गुल्म तथा सूजन को नष्ट करने वाला है।3
4. आक का दूध :-कड़वा, गर्म, चिकना, खारा, हल्का, कोढ एवं गुल्म तथा उदर रोग नाशक है। विरेचन कराने में यह अति उत्तम है।
5. मूलत्वक :- हृदयोतेजक, रक्त शोधक और शोथहर है। इससे हृदय की गति एवं संकोच शक्ति बढ़ती है, तथा रक्त भार भी बढ़ता है। यह ज्वरध्न और विषमज्वर प्रतिबन्धक है।
6. पत्र:-दोनों प्रकार के आक के पत्ते वामक, रेचक भ्रमकारक तथा कास श्वास, कर्णशूल, शोथ, उरुस्तम्भ, पामा कुष्ठ आदि नाशक है।
औषधीय प्रयोग
मुँह की झाई धब्बे आदि:- हल्दी के 3 ग्राम चूर्ण को आक के दूग्ध 5-7 बूंद व गुलाब जल में घोटकर आंखों को बचाकर झाई युक्त स्थान पर लगायें, इससे लाभ होता है। कोमल प्रकृति वालों को आक की दूध की जगह आक का रस प्रयोग करना चाहिए।
सिर की खुजली:- इसे सिर पर लगाने से क्लेद, दाह वेदना एवं कँडूयुक्त अरुषिका में लाभ होता है।7
कर्णरोग:- तेल और लवण से युक्त आक के पत्तों को वैद्य बांये हाथ में लेकर दाहिने हाथ से एक लोहे की कडछी को गरम कर उसमें डाल दें। फिर इस तरह जो अर्क पत्रों का रस निकले उसे कान में डालने से कान के समस्त रोग दूर होते है। कान में मवाद आना, सॉय-सॉय की आवाज होना आदि में इससे सद्यःलाभ होता है।
कर्णशूल
1. आक के भली प्रकार पीले पड़े पत्तों को थोड़ा सा घी चुपड़कर आग पर रख दें, जब वे झुलसने लगें चपपट निकाल कर निचोड़ लें, इस रस को थोड़ी गरम अवस्था में ही कान में डालने से तीव्र तथा बहुविधि वेदनायुक्त कर्णशूल शीघ्र नष्ट हो जाता है।
2. आक के पीले पके बिना छेद वाले पत्तों पर घी लगाकर अग्नि में तपाकर उसका रस कान में दो-दो बूंद डालने से लाभ होता है।
आक और नेत्र रोग
1. अर्क मूल का छाल 1 ग्राम कूटकर 20 ग्राम गुलाब जल में 5 मिनट तक रखकर छान लें। बूंद-बूंद आंखों में डालने से (3 या 5 बूंद से अधिक न डालें) नेत्र की लाली, भारीपन, दर्द कीच की अधिककता और खुजली दूर हो जाती है।
2. अर्कमूल की छाल को जलाकर कोयला कर लें और इसे थोड़े पानी में घिसकर नेत्रों के चारों और तथा पलकों पर धीरे-धीरे मलते हुये लेप करे तो लाली खुजली पलकों की सूजन आदि मिटती है।
3. आंख दुखनी आने पर, यदि बाई आंख हो और उसमें कड़क दर्द व वेदना हो तो दाहिने पैर के नाखूनों को यदि दाई आंख आई हो तो बांये पैर के नाखूनों को आक के दूध से तर कर दे-सावधानी-आंख में दूध नहीं लगना चाहिये, नहीं तो भयंकर परिणाम होगा। यह एक चमत्कारिक प्रयोग होगा।
फूला जाला :- आक के दूध में पुरानी रूई को 3 बार तर कर सुखाले, फिर गाय के घी या मीठे तैल में तर कर बड़ी सी बती बनाकर जला ले। बत्ती जल कर सफेद नहीं होनी चाहिये इसे थोड़ी मात्रा में सलाई से रात्रि के समय आंखों में लगाने से 2-3 दिन में लाभ होना प्रारम्भ होता है।
मोतिया बिन्द:- आक के दूध में पुरानी ईट का महीन चूर्ण 10 ग्राम तर कर सुखा लें, फिर उसमें लौंग 6 नग मिला, खरल में चावल भर नासिका द्वारा प्रतिदिन प्रातः नस्य लेने से शीघ्र लाभ होता है। यह प्रयोग सर्दी-जुकाम में भी लाभ करता है।
मिर्गी
1. सफेद आक के फूल 1 भाग और पुराना गुड़ तीन भाग प्रथम फूलों को पीसकर, फिर गुड़ के साथ खूब खरल करें। चने जैसी गोलियाँ बनालें, प्रातः सायं 1 या 2 गोली जल के साथ सेवन करें।
2. आक के ताजे फूल और काली मिर्च एकत्र महीन पीस 300-300 मिलीग्राम की गोलियाँ बना रखे और दिन में 3-4 बार सेवन करावें।
3. अर्क दूध में थोड़ी शक्कर या मिश्री खरल कर रखें। मात्रा 125 मिलीग्राम प्रतिदिन प्रातः 10 ग्राम गर्म दूध के साथ सेवन करें।
4. मदार के पत्ते और टहनी के रंग का ही टिड्डा इसके क्षुपपर ग्रीष्म काल में मिलता है। इस टिड्डे को शीशी में बन्दकर सुखाकर समभाग काली मिर्च मिला, महीन पीसकर, अपस्मार के रोगी को बेहोशी की हालत में इसका नस्य देने से वह होश में आ जाता है और धीरे-2 उसका रोग दूर हो जाता है।
दंतपीड़ा
1. आक के दूध में नमक मिलाकर दांत पर लगाने से दंत पीड़ा मिटती है।
2. अंगुली जितनी मोटी जड़ को आग में शकरकन्दी की तरह भूनकर उसका दातुन करने से दन्त रोग व दन्तपीड़ा में तुरन्त लाभ पहुंचता है। कूची वाले भाग को काटकर पुनः उसका अगला भाग प्रयोग कर सकते हैं।
दंत निष्कासन
1. हिलते हुये दांत पर आक का दूध लगाकर उसे सरलता से निकाला जा सकता है।
2. आक के 8-10 पत्तों को 10 ग्राम काली मिर्च के साथ पीसकर उसमें थोड़ी हल्दी व सेंधानमक मिलाकर मंजन करने से दांत मजबूत रहते हैं।
वमन :- अर्कमूल की छाल को समभाग अदरक के रस में भली प्रकार खरल कर 125 मिलीग्राम की गोलियाँ बनाकर धूप में सुखाकर रखलें। मधु के साथ सेवन कराने से किसी भी प्रकार का वमन 1-2 गोली के सेवन से बन्द हो जायेगा। प्रवाहिका, शूल, मरोड़ औरि विसूचिका में इसे जल के साथ देते हैं।
आधाशीशी
1. जंगली कंडो की राख को आक के दूध में तर कर के छाया में सुखा लेना चाहिये। इसमें से 125 मिलीग्राम सुंघाने से छीकें आकर सिर का दर्द, आधा शीशी, जुकाम, बेहोशी इत्यादि रोग में लाभ मिलता है। गर्भवती स्त्री और बालक इसका प्रयोग न करें।
2. पीले पड़े हुए आक के 1-2 पत्तों के रस का नस्य लेने से आधा शीशी में लाभ होता है, किन्तु लगती बहुत है, अतः सावधानी से प्रयोग करें।
3. आक की छाया शुष्क की हुई मूलत्वक के 10 ग्राम चूर्ण में सात इलायची तथा कपूर और पिपरमेंट 500-500 मिलीग्राम मिलाकर और खूब खरल कर शीशी में भर कर रखलें, इसमें सूंघने से छीके आकर व कफस्राव होकर आधा शीशी आदि सिर दर्द में लाभ होता है। मस्तक का भारीपन दूर होता है।
4. अनार की 40 ग्राम खूब महीन पिसी हुई छाल को आक के दूध में गूंथ में कर रोटी की तरह नरम आंच से पकालें, फिर से सुखाकर बहुत महीन पिसी हुई छाल को आक के दूध में गूंथ कर रोटी की तरह नरम आंच से पकालें, फिर इसे सुखाकर बहुत महीन पीसकर, जटामांसी, छरीला, 3-3 ग्राम, इलायची और कायफल डेढ़-डेढ़ ग्राम मिलाकर नसवार बनालें। इसकी नस्य से कुछ देर बाद छीकें आकर दिमागी नजला दूर होता है। तथा बेहोश रोगी को होश में लाने में सहयोग मिलता है।
5. पुरानी पक्की ईंट को पीसकर खूब महीन कर आक के दूध में तर कर सुखाकर और तौलकर प्रति 10 ग्राम में सात लवंग बारीक पीसकर मिलादें इसमें से 125 मिलीग्राम या 250 मिलीग्राम की मात्रा में सुंघाने से मस्तक पीड़ा, सूर्यावर्त, प्रतिश्याय, पीनस और मोतिया बिन्द में लाभ होता है।
श्वास खांसी इत्यादि
1. आक पुष्प की लौंग 50 ग्राम और मिर्च 6 ग्राम दोनों को एकत्रकर खूब महीन पीस मटर जैसी गोलियाँ बनालें। प्रातः 1 या दो गोली गर्म पानी के साथ सेवन करने से श्वास वेग रूक जाता है।
2. आक की जड़ के छिलका को आक के दूध में भिगोकर शुष्क कर महीन चूर्ण कर लें, 10 ग्राम चूर्ण में 25 ग्राम त्रिकुटा चूर्ण श्रृंगभस्म 5 ग्राम, गोदंती 10 ग्राम मिलाकर लगभग एक ग्राम प्रातः-सायं मधु के साथ लेने से कफ भड़ककर पुरातन श्वास रोग में भी लाभ होता है।
3. आक के पत्तों पर जो सफेद क्षार सा छाया रहता है, उसे 5 ग्राम से 10 ग्राम तक गुड़ में लपेटकर गोली बनाकर खाने से कफ छूटकर कास श्वास में लाभ होता है।
4. पत्रों पर छाई सफेदी को इकट्ठा कर बाजरे जैसी गोलियाँ बनाकर 1-1 गोली प्रातः सायं खाकर ऊपर से पान खाने से 2-4 दिन में श्वास रोग में लाभ होता है। पुरानी खांसी भी मिट जाती है।
5. पुराने से पुराने आक की जड़ को छाया शुष्क करके, निर्वात स्थान में जलाकर राख कर लें, इसमें से कोयले अलग कर दें। 1-2 ग्राम राख को शहद या पान में रखकर खाने से कास श्वास में लाभ होता है।
6. आक की कोमल शाखा और फूलो को पीस कर 2-3 ग्राम की मात्रा में घी में सेंक लें। फिर इसमें गुड़ मिला, पाक बना नित्य प्रातः सेवन करने से पुरानी खांसी जिसमें हरा पीला दुर्गन्ध युक्त चिपचिपा कफ निकलता हो, शीघ्र दूर होता है।
7. अर्क पुष्पों की लौंग निकालकर उसमें समभाग सैंधा नमक और पीपल मिला खूब महीन पीसकर मटर जैसी गोलियाँ बनाकर दो से चार गोली बड़ों और 1-2 गोली बच्चों को गौदुग्ध के साथ देने से बच्चों की खांसी दूर होती है।
8. अर्क मूल छाल के 250 मिलीग्राम महीन चूर्ण में, 250 मिलीग्राम शुंठी चूर्ण मिला 3 ग्राम शहद के साथ सेवन करें कफ युक्त खांसी और श्वास में उपयोगी है।
9. छाया शुष्क पुष्पों के बराबर त्रिकुट (सौंठ, पीपल, काली मिर्च) और जवाखार एकत्र कर अदरक के रस में खरल कर मटर जैसी गोलियाँ बना छाया में सुखाकर रख लें। दिन रात में 2-4 गोलियाँ मुख में रख चूसते रहने से कास श्वास में परम लाभ होता है।
10. आक के दूध में चनो की डुबो कर मिट्टी के बरतन में बन्दकर उपलों की आग से भस्म कर लें। 125-125 मिलीग्राम मधु के साथ दिन में 3 बार चाटने से असाध्य खांसी में भी तुरन्त लाभ होता है।
11. आक के एक पत्ते पर जल के साथ महीन पिसा हुआ कत्था और चूना लगाकर दूसरे पत्ते पर गाय का घी चुपड़कर दोनों पत्तों को परस्पर जोड़कर ले इसी प्रकार पत्तों को तैयार कर मटकी में रखकर जलालें, कष्टदायक श्वास में अति उपयोगी है। छानकर कांच की शीशी में रख लें। 10-30 ग्राम तक घी, गेहूं की रोटी या चावल में डालकर खाने से कफ प्रकृति के पुरुषों में मैथुन शक्ति को पैदा करता है। तथा समस्त कफज व्याधियों को और आंत्रकृमि को नष्ट करता है।
12. आक के ताजे फूलों का दो किलो रस निकाल लें, इसमें आक का ही दूध 250 ग्राम और गाय का घी डेढ किलो मिलाकर मंदाग्नि पर पकावें। घृत मात्र शेष रहने पर छान कर बोतल में भर कर रख लें। इस घी को 1 से 2 ग्राम की मात्रा में गाय के 250 ग्राम पकाये हुए दूध में मिला सेवन करने से आंत्रकृमि नष्ट होकर पाचन शक्ति तथा अर्श में भी लाभ होता है। शरीर में व्याप्त किसी तरह का विष का प्रभाव हो तो इससे लाभ होता है पर यह प्रयोग कोमल प्रकृति वालों की नहीं करना चाहिए।
जलोदर
1. अर्क पत्र स्वरस 1 किलो में 20 ग्राम हल्दी चूर्ण मिला मंद अग्नि पर पका कर जब गोली बनाने लायक हो जायें तो नीचे उतारकर चने जैसी गोलियाँ बना लें, 2-2 गोली दोनों समय सौंफ कासनी आदि अर्क के साथ दे, तथा जल के स्थान पर यही अर्क पिलावे।
2. आक के ताजे हरे पत्ते 250 ग्राम और हल्दी 20 ग्राम दोनों को महीन पीस उड़द के आकार की गोलियाँ बना लें, पहले दिन ताजे जल के साथ 4 गोली, फिर दूसरे दिन 5 और 6 गोली तक बढ़ाकर घटाये यदि लाभ हो तो पुनः उसी प्रकार घटाते बढ़ाते है। अवश्य लाभ होगा, पथ्य में दूध साबूदाना व जौ का यूष देवे।
3. आक के 8-10 पत्तों को सैंधा नमक के साथ कूट मिट्टी के बरतन में बन्दकर जला कर 250 मिलीग्राम भस्म को सुबह, दोपहर, शाम छाछ के साथ सेवन करने से जलोदर मिटता है। तिल्ली आदि अंग जो पेट में बढ़ जाया करते हैं, सब अपने स्थान पर आ जाते हैं।
4. रक्त अतिसार : छाया शुष्क एवं महीन पीसकर कपड़छन करी हुई अर्कमूल की छाल, 65 मिलीग्राम ठंडे जल के साथ 50 से 125 मिलीग्राम देवें, अवश्य लाभ होगा।
अजीर्ण :- आक के निथारे हुए पत्र स्वरस में समभाग घृत कुमारी का गुदा व शक्कर मिला पकावें, शक्कर की चाशनी बन जाने पर ठंडा कर बोतल में भर लें आवश्यकतानुसार 2 ग्राम से 10 ग्राम की मात्रा में सेवन कराये यह 6 मास के बच्चें से 9-10 साल के बच्चों तक के अनेक रोगों में यह अचूक दवा है।
पांडुकामला
1. आक के 24 पत्ते लेकर, 50 ग्राम मिश्री मिलाकर खरल में घोटकर एक जीव कर लें, फिर चने जैसी गोलियाँ बना लें दिन में 3 बार व्यस्कों को दो दो गोली सेवन कराने से सात दिन में पूर्ण लाभ होता है। तेल, खटाई मिर्च आदि से परहेज रखें।
2. अर्कमूल की छाल डेढ़ ग्राम और काली मिर्च 12 नग पुननर्वा मूल 2-3 ग्राम, पानी में घोट छानकर दिन में 2 बार पिलावें गर्म और स्निग्ध वस्तुओं से परहेज रखें।
3. आक का पका पत्र 1 नग साफ पोछकर उस पर 250 मिलीग्राम चूना लगा, बारीक पीसकर चने के आकार की गोलियाँ बनावें, और दो गोली रोगी को प्रातः काल पानी से निगलवा दें-पथ्य दही चावल,।
4. आक के कोपल 1 नग, सुबह निराहार पान के पत्ते में रखकर चबा-2 कर खाने से 3-5 दिन में कामला ठीक हो जाता है।
भगन्दर आदि नाड़ी व्रर्णों पर
1. आक का 10 मिली दूध और दारुहल्दी का 2 ग्राम महीन चूर्ण, दोनों को एक साथ खरल कर बती बना व्रणों में रखने से शीघ्र लाभ होता है।
2. आक के दूध में कपास की रुई भिगोकर छाया शुष्क कर बत्ती बनाकर, सरसों के तैल में भिगोकर व्रणों पर लगाने से लाभ होता है।
अंड कोष की सूजन
1. जड़ की 8-10 ग्राम छाल को कांजी के साथ पीसकर लेप करने से पैर और फ़ोतों की गजचर्म के समान मोटी पड़ी हुई चमड़ी पतली हो जाती है।6
2. 2-4 पत्तों को तिल्ली के तैल में मिला पत्थर पर पीसकर मलहम सा बना फोड़े, अंड कोष के दर्द में चुपड़ कर लंगोट कस देने से शीघ्र आराम होता है।
3. इसके पत्तों पर एरंड तैल चुपड़कर फोड़ो पर बांधने से पित्तशोथ मिटता है।
मूत्राघात :- आक के दूध में बबूल की छाल का थोड़ा रस मिलाकर नाभि के आस पास और पेडू पर लेप करने से मूत्राघात दूर होता है।
हैजा
1. आक की जड़ की छाल 2 भाग और काली मिर्च 1 भाग, दोनों को कूट छानकर अदरक के रस में अथवा प्याज के रस में खरलकर चने जैसी गोलियाँ बना लें, हैजे के दिन में इनके सेवन से हैजे से बचाव होता है हैजा का आक्रमण होने पर 1-1 गोली 2-2 घंटे से देने से लाभ होता है।
2. आक का बिना खिला फूल 10 ग्राम तथा भुना सुहागा, लौंग, सौंठ, पीपल और कालानमक 5-5 ग्राम इन्हें कूट पीसकर 125-125 मिलीग्राम की गोलियाँ बना लें और थोड़ी-2 देर में 1-1 गोली सेवन करावें। विशेष अवस्था में 4-4 गोली एक साथ देवें।
3. आक का फूल 10 ग्राम, भुना सुहागा, 4 ग्राम, काली मिर्च 6 ग्राम, इनको ग्वारपाठा के गूदे में खरलकर चने जैसी गोलियाँ बना लें, 1-1 गोली अर्क गुलाब से देवें।
4. आक के फूलों की लौंग और काली मिर्च 10-10 ग्राम और शुद्ध हींग 6 ग्राम इन्हें अदरक के रस की 10 भावनायें देकर उड़द जैसी गोलियाँ बना रखें। प्रत्येक उल्टी दस्त के बाद 1-1 गोली अदरक, पोदीना या प्याज के रस के साथ सेवन कराने से तत्काल लाभ होता है।
5. आक के पीले पत्ते जो झड़कर स्वयं नीचे गिर गये हो, 5 नग लेकर आग में जला दो। जब ये जलकर कोयला हो जाये तो कलईदार बरतन में आधा किलो पानी में इन्हें बुझा दें, यह पानी रोगी को थोड़ा-2 करके, जल के स्थान पर पिलावे।
बवासीर
1. आक के कोमल पत्रों के समभाग पांचों नमक लेकर, उसमें सबके वजन से चौथाई तिल का तैल और इतना ही नींबू रस मिला पात्र के मुख को कपड़ मिट्टी से बन्दकर आग पर चढ़ा दें। जब पत्र जल जाये तो सब चीजों को निकाल पीस कर रख लें, 500 मिलीग्राम से 3 ग्राम तक आवश्यकतानुसार गर्म जल, काँजी, छाछ या मद्य के साथ सेवन कराने से बादी बवासीर नष्ट होता है।
2. तीन बूंद आक के दूध को राई पर डालकर उसपर थोड़ा कूटा हुआ जवाखार बुरक कर बताशे में रखकर निगलने से बवासीर बहुत जल्दी नष्ट हो जाती है।
3. हल्दी चूर्ण को आक के दूध में सात बार भिगोकर सुखा लें, फिर अर्क दुग्ध द्वारा ही उसकी लम्बी-लम्बी गोलियाँ बना छाया में शुष्क कर रखें। प्रातः सायं शौच कर्म के बाद थूक में या जल में घिसकर मस्सो पर लेप करने से कुछ ही दिनों में वह सूखकर गिर जाते है।
4. शौच जाने के बाद आक के दो चार ताजे पत्ते तोड़ कर गुदापर इस प्रकार रगड़े कि मस्सो पर दूध ना लगे केवल सफेदी ही लगे। इससे मस्सों में लाभ होता है।
courtsy- "AYURVED JADI BUTI RAHASYA"
आयुर्वेदिक दोहे
=============
१
दही मथें माखन मिले,
केसर संग मिलाय,
होठों पर लेपित करें,
रंग गुलाबी आय..
२
बहती यदि जो नाक हो,
बहुत बुरा हो हाल,
यूकेलिप्टिस तेल लें,
सूंघें डाल रुमाल..
३
अजवाइन को पीसिये ,
गाढ़ा लेप लगाय,
चर्म रोग सब दूर हो,
तन कंचन बन जाय..
४
अजवाइन को पीस लें ,
नीबू संग मिलाय,
फोड़ा-फुंसी दूर हों,
सभी बला टल जाय..
५
अजवाइन-गुड़ खाइए,
तभी बने कुछ काम,
पित्त रोग में लाभ हो,
पायेंगे आराम..
६
ठण्ड लगे जब आपको,
सर्दी से बेहाल,
नीबू मधु के साथ में,
अदरक पियें उबाल..
७
अदरक का रस लीजिए.
मधु लेवें समभाग,
नियमित सेवन जब करें,
सर्दी जाए भाग..
८
रोटी मक्के की भली,
खा लें यदि भरपूर,
बेहतर लीवर आपका,
टी० बी० भी हो दूर..
९
गाजर रस संग आँवला,
बीस औ चालिस ग्राम,
रक्तचाप हिरदय सही,
पायें सब आराम..
१०
शहद आंवला जूस हो,
मिश्री सब दस ग्राम,
बीस ग्राम घी साथ में,
यौवन स्थिर काम..
११
चिंतित होता क्यों भला,
देख बुढ़ापा रोय,
चौलाई पालक भली,
यौवन स्थिर होय..
१२
लाल टमाटर लीजिए,
खीरा सहित सनेह,
जूस करेला साथ हो,
दूर रहे मधुमेह..
१३
प्रातः संध्या पीजिए,
खाली पेट सनेह,
जामुन-गुठली पीसिये,
नहीं रहे मधुमेह..
१४
सात पत्र लें नीम के,
खाली पेट चबाय,
दूर करे मधुमेह को,
सब कुछ मन को भाय..
१५
सात फूल ले लीजिए,
सुन्दर सदाबहार,
दूर करे मधुमेह को,
जीवन में हो प्यार..
१६
तुलसीदल दस लीजिए,
उठकर प्रातःकाल,
सेहत सुधरे आपकी,
तन-मन मालामाल..
१७
थोड़ा सा गुड़ लीजिए,
दूर रहें सब रोग,
अधिक कभी मत खाइए,
चाहे मोहनभोग.
१८
अजवाइन और हींग लें,
लहसुन तेल पकाय,
मालिश जोड़ों की करें,
दर्द दूर हो जाय..
१९
ऐलोवेरा-आँवला,
करे खून में वृद्धि,
उदर व्याधियाँ दूर हों,
जीवन में हो सिद्धि..
२०
दस्त अगर आने लगें,
चिंतित दीखे माथ,
दालचीनि का पाउडर,
लें पानी के साथ..
२१
मुँह में बदबू हो अगर,
दालचीनि मुख डाल,
बने सुगन्धित मुख, महक,
दूर होय तत्काल..
२२
कंचन काया को कभी,
पित्त अगर दे कष्ट,
घृतकुमारि संग आँवला,
करे उसे भी नष्ट..
२३
बीस मिली रस आँवला,
पांच ग्राम मधु संग,
सुबह शाम में चाटिये,
बढ़े ज्योति सब दंग..
२४
बीस मिली रस आँवला,
हल्दी हो एक ग्राम,
सर्दी कफ तकलीफ में,
फ़ौरन हो आराम..
२५
नीबू बेसन जल शहद ,
मिश्रित लेप लगाय,
चेहरा सुन्दर तब बने,
बेहतर यही उपाय..
२६.
मधु का सेवन जो करे,
सुख पावेगा सोय,
कंठ सुरीला साथ में ,
वाणी मधुरिम होय.
२७.
पीता थोड़ी छाछ जो,
भोजन करके रोज,
नहीं जरूरत वैद्य की,
चेहरे पर हो ओज..
२८
ठण्ड अगर लग जाय जो
नहीं बने कुछ काम,
नियमित पी लें गुनगुना,
पानी दे आराम..
२९
कफ से पीड़ित हो अगर,
खाँसी बहुत सताय,
अजवाइन की भाप लें,
कफ तब बाहर आय..
३०
अजवाइन लें छाछ संग,
मात्रा पाँच गिराम,
कीट पेट के नष्ट हों,
जल्दी हो आराम..
३१
छाछ हींग सेंधा नमक, x
दूर करे सब रोग, जीरा
उसमें डालकर,
पियें सदा यह भोग..।
A
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#अजी_हम_तो_बचपन_से_ही_जिनियस_हैं_जी
Paliwal clinic
The weather is changing and some of us fall prey of irritable infections like common cold and flu caused by certain viruses. These infections are the end result of bad immunity that happens due to accumulation of toxins.
Here are a few tips to cure cold and flu at home with simple home remedies.
1. Drink some warm water during the day.
2. Take herbs like cumin powder, ginger powder, black pepper, white pepper, turmeric powder and lemon grass they have the ability to dissolve the phlegm. One can take them by boiling in hot water or by adding them in soups.
3. In case the cough is dry take ginger root and black pepper with ½ tsp of honey. One can also boil cumin, black pepper, cinnamon, lemon grass, along with mulethi in water and twice or thrice a day.
4. Inhale a few drops of eucalyptus oil. This is very soothing and refreshing.
5. Massage your body with til oil mixed with olive oil.
6. Turmeric is an excellent herb for fighting inflammation and infections. It acts as a natural antibiotic and immunity booster.(courtesy-Kitchen platter)
Live Wire
A man discovered 179 yrs old in India, "Death has forgotten me" || My grand children are dead there for yrs. Somehow forgot me death " Mahashta Mûrasi is an Indian who claims to be born in 1835. It is not only the oldest man in the world but also the man who lived the longest since the history of mankind (according to the Guinness World Records ). According to the information transmitted, the man was born in Bangalore on January 6 1835.De 1903, he lived in Varanasi, where he worked until 1957, until his retirement in 122 yrs. My grandchildren have died there a few years, "said Mûrasi." In a way, death has forgotten me. And now I have lost all hope to die! ".
महत्वपूर्ण समाचारः-
ये याद रखिये की भारत मैं सबसे ज्यादा मौते
कोलस्ट्रोल बढ़ने के कारण हार्ट अटैक से होती हैं।
आप खुद अपने ही घर मैं ऐसे बहुत से लोगो को जानते
होंगे जिनका वजन व कोलस्ट्रोल बढ़ा हुआ हे।
अमेरिका की कईं
बड़ी बड़ी कंपनिया भारत मैं दिल के
रोगियों (heart patients) को अरबों की दवाई बेच
रही हैं !
लेकिन अगर आपको कोई तकलीफ हुई तो डॉक्टर
कहेगा angioplasty (एन्जीओप्लास्टी)
करवाओ।
इस ऑपरेशन मे डॉक्टर दिल की नली में
एक spring डालते हैं जिसे stent कहते हैं।
यह stent अमेरिका में बनता है और इसका cost of
production सिर्फ 3 डॉलर (रू.150-180) है।
इसी stent को भारत मे लाकर 3-5 लाख रूपए मे
बेचा जाता है व आपको लूटा जाता है।
डॉक्टरों को लाखों रूपए का commission मिलता है इसलिए व आपसे
बार बार कहता है कि angioplasty करवाओ।
Cholestrol, BP ya heart attack आने
की मुख्य वजह है, Angioplasty ऑपरेशन।
यह कभी किसी का सफल
नहीं होता।
क्यूँकी डॉक्टर, जो spring दिल
की नली मे डालता है वह बिलकुल pen
की spring की तरह होती है।
कुछ ही महीनो में उस spring
की दोनों साइडों पर आगे व पीछे blockage
(cholestrol व fat) जमा होना शुरू हो जाता है।
इसके बाद फिर आता है दूसरा heart attack ( हार्ट अटैक )
डॉक्टर कहता हें फिर से angioplasty करवाओ।
आपके लाखो रूपए लुटता है और
आपकी जिंदगी इसी में निकल
जाती हैं।
अब पढ़िए उसका आयुर्वेदिक इलाज।..
अदरक (ginger juice) - यह खून को पतला करता है।
यह दर्द को प्राकृतिक तरीके से 90% तक कम
करता हें।
लहसुन (garlic juice) - इसमें मौजूद allicin तत्व
cholesterol व BP को कम करता है।
वह हार्ट ब्लॉकेज को खोलता है।
नींबू (lemon juice) - इसमें मौजूद antioxidants,
vitamin C व potassium खून को साफ़ करते हैं।
ये रोग प्रतिरोधक क्षमता (immunity) बढ़ाते हैं।
एप्पल साइडर सिरका ( apple cider vinegar) -
इसमें 90 प्रकार के तत्व हैं जो शरीर
की सारी नसों को खोलते है, पेट साफ़ करते
हैं व थकान को मिटाते हैं।
इन देशी दवाओं को इस तरह उपयोग में लेवें :-
एक कप नींबू का रस लें;
एक कप अदरक का रस लें;
एक कप लहसुन का रस लें;
एक कप एप्पल का सिरका लें;
चारों को मिला कर धीमीं आंच पर गरम करें
जब 3 कप रह जाए तो उसे ठण्डा कर लें;
उसमें 3 कप शहद मिला लें
रोज इस दवा के 3 चम्मच सुबह खाली पेट लें जिससे
सारी ब्लॉकेज खत्म हो जाएंगी।
आप सभी से हाथ जोड़ कर विनती है
कि इस मैसेज को ज्यादा से ज्यादा प्रसारित करें
ताकि सभी इस दवा से अपना इलाज कर सकें ;
धन्यवाद् !
Acharya Bal Krishna
शराब छोड़ने का उपाय
Guava...
"अमरुद" - एक गुणकारी फल
Paliwal clinic
Pumpkin Seeds are one of nature’s most nourishing foods. They contain high amounts of vitamin E, B-complex, magnesium, zinc, and omega-3 fatty acids. Pumpkin seeds are essential for men’s health and provide significant protection for the prostate gland. They are an excellent source of tryptophan which is critical for good quality sleep and for keeping anxiety and depression at bay. The B-complex vitamins in pumpkin seeds work as co-factors in the body to help reduce cholesterol and enhance GABA activity which is also known to reduce anxiety and neurological disorders. Pumpkin seeds also contain anti-inflammatory properties which provide benefit for those that suffer with chronic inflammation such as in sinusitis, arthritis, bursitis, and other autoimmune disorders. Pumpkin seeds have high concentrations of phytosterols that can help to inhibit the absorption of cholesterol in the gastrointestinal tract which ultimately can help reduce the bad cholesterol in the body. Pumpkin Seeds have also been known to prevent kidney stones and osteoporosis. Pumpkin seed butter is a great and tasty alternative to peanut butter and can be found online and in most health food stores. Raw pumpkin seeds will provide you with the most nutrition and health benefits. Try sprinkling them on salads, adding them to trail mixes.
Acharya Bal Krishna
हिचकी -
Ayurveda info
Panchkarma treatment will be Reimbursement as other Ayurvedic Treatment
Acharya Bal Krishna
चीड़ (Long-leaved pine) -
चीड़ का बहुत ऊँचा वृक्ष होता है | इसकी छाल में किसी औज़ार से क्षत करने पर एक प्रकार का चिकना गोंद निकलता है जिसे श्रीवास या गंधविरोजा कहते हैं | इसके वृक्ष से तारपीन का तेल भी निकाला जाता है | प्राचीन आयुर्वेदीय संहिताओं व निघण्टुओं में सरल नाम से चीड़ का वर्णन प्राप्त होता है | इसके फल देवदारु के फल जैसे किन्तु आकार में कुछ बड़े ,पिरामिड आकार के नुकीले होते हैं | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल मार्च से नवम्बर तक होता है |
चीड़ के औषधीय प्रयोग -
१- चीड़ के गोंद (गंधविरोजा) का क्वाथ बनाकर कुल्ला करने से मुँह के छाले ठीक होते हैं |
२- चीड़ के तेल की छाती पर मालिश करने से सांस की नली की सूजन,श्वास तथा खांसी में लाभ होता है |
३- गंधविरोजा (चीड़ का गोंद ) को घाव पर लगाने से घाव जल्दी भर जाता है तथा घावों में पस भी नहीं होती है |
४- गर्मी के कारण यदि शरीर में छोटी-छोटी फुंसियां निकल आई हों तो चीड़ के तेल को लगाकर पांच मिनट बाद धो देने से लाभ होता है |
५- बच्चों की पसली चलने पर चीड़ तेल में बराबर की मात्रा में सरसों का तेल मिलाकर धीरे-धीरे मालिश करने से लाभ होता है |
Paliwal clinic
DID YOU KNOW ?
Sitting on the floor is active sitting!
For centuries, people around the world sat on floors either cross-legged or in a squatting position. If you are a yoga practitioner, this will make complete sense to you. When you sit on the floor (whether it is Vajrasana, Sukhasana or any other yoga pose), you actually engage many of your muscles as opposed to when you sit on a chair. When your feet are below your heart (as in a position when sitting on a chair), the blood circulation is being directed to your feet, as opposed to when you sit cross-legged on the floor where your heart receives the benefit of better circulation!
Because of the fact that chairs and couches surround our generation, we have lost the ability to sit for longer stretches on the floor. Nevertheless, it is enormously rewarding to incorporate ways to sit on the floor whenever you can and worthwhile to explore cushions and backrests to aid active sitting on the floor. By sitting on the floor, we strengthen the lumbar region of the body, reducing back pain and discomfort. The hips open, making our pelvis and legs more flexible. Core muscles strengthen and the ankles are gently stretched. Floor sitting also helps promote mental calmness, soothes frazzled nerves and aid one’s creative imagination.
Acharya Bal Krishna
अमरूद है एक बेहतरीन औषधि, इन रोगों में करता है दवा का काम
अमरूद एक बेहतरीन स्वादिष्ट फल है। अमरूद कई गुणों से भरपूर है। अमरूद में प्रोटीन 10.5 प्रतिशत, वसा 0. 2 कैल्शियम 1.01 प्रतिशत बी पाया जाता है। अमरूद का फलों में तीसरा स्थान है। पहले दो नम्बर पर आंवला और चेरी हैं। इन फलों का उपयोग ताजे फलों की तरह नहीं किया जाता, इसलिए अमरूद विटामिन सी पूर्ति के लिए सर्वोत्तम है।
विटामिन सी छिलके में और उसके ठीक नीचे होता है तथा भीतरी भाग में यह मात्रा घटती जाती है। फल के पकने के साथ-साथ यह मात्रा बढती जाती है। अमरूद में प्रमुख सिट्रिक अम्ल है 6 से 12 प्रतिशत भाग में बीज होते है। इसमें नारंगी, पीला सुगंधित तेल प्राप्त होता है। अमरूद स्वादिष्ट फल होने के साथ-साथ अनेक गुणों से भरा से होता है।
यदि कभी आपका गला ज्यादा ख़राब हो गया हो तो अमरुद के तीन -चार ताज़े पत्ते लें ,उन्हें साफ़ धो लें तथा उनके छोटे-छोटे टुकड़े तोड़ लें | एक गिलास पानी लेकर उसमे इन पत्तों को डाल कर उबाल लें , थोड़ा पकाने के बाद आंच बंद कर दें | थोड़ी देर इस पानी को ठंडा होने दें ,जब गरारे करने लायक ठंडा हो जाये तो इसे छानकर ,इसमें नमक मिलाकर गरारे करें , याद रखें कि इसमें ठंडा पानी नहीं मिलना है |
अमरूद के ताजे पत्तों का रस 10 ग्राम तथा पिसी मिश्री 10 ग्राम मिलाकर 21 दिन प्रात: खाली पेट सेवन करने से भूख खुलकर लगती है और शरीर सौंदर्य में भी वृद्धि होती है।
अमरूद खाने या अमरूद के पत्तों का रस पिलाने से शराब का नशा कम हो जाता है। कच्चे अमरूद को पत्थर पर घिसकर उसका एक सप्ताह तक लेप करने से आधा सिर दर्द समाप्त हो जाता है। यह प्रयोग प्रात:काल करना चाहिए। गठिया के दर्द को सही करने के लिए अमरूद की 4-5 नई कोमल पत्तियों को पीसकर उसमें थोड़ा सा काला नमक मिलाकर रोजाना खाने से से जोड़ो के दर्द में काफी राहत मिलती है।
डायबिटीज के रोगी के लिए एक पके हुये अमरूद को आग में डालकर उसे भूनकर निकाल लें और भुने हुई अमरुद को छीलकर साफ़ करके उसे अच्छे से मैश करके उसका भरता बना लें, उसमें स्वादानुसार नमक, कालीमिर्च, जीरा मिलाकर खाएं, इससे डायबिटीज में काफी लाभ होता है। ताजे अमरूद के 100 ग्राम बीजरहित टुकड़े लेकर उसे ठंडे पानी में 4 घंटे भीगने दीजिए। इसके बाद अमरूद के टुकड़े निकालकर फेंक दें। इस पानी को मधुमेह के रोगी को पिलाने से लाभ होता है।
जब भी आप फोड़े और फुंसियों से परेशान हो तो अमरूद की 7-8 पत्तियों को लेकर थोड़े से पानी में उबालकर पीसकर पेस्ट बना लें और इस पेस्ट को फोड़े-फुंसियों पर लगाने से आराम मिल जाएगा। चार हफ्तों तक नियमित रूप से अमरूद खाने से भी पेट साफ रहता है व फुंसियों की समस्या से राहत मिलती है।
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