Viad Attmo Darshan
हमारे यहाँ हर बीमारी का इलाज देशी जड़ी बूटियां,आयुर्वेदिक फूड सप्लीमेंट, से किया जाता है
05 ਮਈ ਐਤਵਾਰ ਨੁੰ ਸ਼ਵੇਰੇ 10 ਵਜੇ ਤੋਂ ਸ਼ਾਮ 03 ਵਜੇ ਤੱਕ
ਲਾਈਟਾਂ ਵਾਲਾ ਚੌਂਕ
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਆਯੁਰਵੈਦਾ
ਸਾਹਮਣੇ ਪੁਰਾਣਾ ਬੱਸ ਸਟੈਂਡ ਪਟਿਆਲਾ।
ਸ਼ਵਾਮੀ ਆਤਮੋ ਦਰਸ਼ਨ
9812860927
बच्चेदानी की रसौलियाँ तीन महीने में जड़ से खत्म।
9812860927
बच्चेदानी की रसौलियाँ और गर्भ के सभी रोग तीन महीनों में क्लीयर क्लिनिकल आधार पर।
गुरु रामदास आयुर्वेदा
मोगा।
9812860927
वीर्यशोधन वटी।
"अपना हाथ, जगन्नाथ"
यह कहावत बुजुर्गों की बिल्कुल सत्य है, वीर्यशोधन वटी भी खुद अपने हाथों से तैयार की हुई ही रिजल्ट देती है। कंपनियों का तो बस नाम ही है। जेब से पैसा भी जाता है, और मनमाफिक रिजल्ट भी नहीं मिलता। तो आज आपको वीर्यशोधन वटी के बारे में बता रहा हूँ। खुद बनायें व लाभ लेवें।
वीर्य की सब प्रकार की इन्फेक्शन दूर करने की लाजवाब औषधि है।
वीर्य शोधन वटी :
चांदी के वर्क, वंग भस्म, मूंगा पिष्टी ,शुद्ध शिलाजीत, गिलोय सत्व, सुवर्ण माक्षिक भस्म सभी10,10 ग्राम, भीमसैनी कपूर 3 ग्राम
विधि : भस्मों में चांदी के वर्क अच्छी तरह खरल करके मिला लें और बाद में शिलाजीत को मिला कर जल के सहयोग से दो रती बराबर गोली बना लें ।
उपयोग : वीर्य के सब प्रकार के दोष दूर करके शुक्राणु बढ़ाने के लिए बहुत लाभदायक है । शराब, दर्द निवारक दवा और एन्टिब्युटिक्स के दूषप्रभाव के कारण जब वीर्य आग की तरह जलता हुआ निकले, शुक्राणुओं का काउंट कम होने के साथ साथ शीघ्रपत्न इस के प्रयोग से ठीक होता है।
चांदी के वर्क की शुद्धता किसी सुनार से चैक करवा लें क्योंकि बाजार में मिलने वाले वर्क अक्सर सिक्का या जिस्त की मिलावट वाले होते है या किसी भरोसेयोग फार्मेसी की दवा खरीदें ,बहुत उपयोगी दवा है । सब मूत्र रोगों में बहुत उपयोगी है।
धन्यावाद।
आपका अपना,
स्वामी आत्मो दर्शन।
9812860927
*हार्ट अटैक*
हार्ट अटैक -: भारत में 3000 साल पहले एक बहुत बड़े ऋषि हुये थे। नाम था महाऋषि वागवट जी उन्होंने एक पुस्तक लिखी, जिसका नाम है, अष्टांग हृदयम Astang hrudayam इस पुस्तक में उन्होंने बीमारियों को ठीक करने के लिए 7000 सूत्र लिखें थे। यह उनमें से ही एक सूत्र है। वागवट जी लिखते हैं कि कभी भी हृदय को घात हो रहा है मतलब दिल की नलियों मे blockage होना शुरू हो रहा है तो इसका मतलब है कि रक्त blood में acidity अम्लता बढ़ी हुई है अम्लता आप समझते हैं, जिसको अँग्रेजी में कहते हैं acidity अम्लता दो तरह की होती है एक होती है पेट की अम्लता और एक होती है रक्त blood की अम्लता आपके पेट में अम्लता जब बढ़ती है तो आप कहेंगे पेट में जलन सी हो रही है, खट्टी खट्टी डकार आ रही हैं , मुंह से पानी निकल रहा है और अगर ये अम्लता acidity और बढ़ जाये तो hyperacidity होगी और यही पेट की अम्लता बढ़ते-बढ़ते जब रक्त में आती है तो रक्त अम्लता blood acidity होती है और जब blood में acidity बढ़ती है तो ये अम्लीय रक्त blood दिल की नलियों में से निकल नहीं पाती और नलियों में blockage कर देता है तभी heart attack होता है इसके बिना heart attack नहीं होता और ये आयुर्वेद का सबसे बढ़ा सच है जिसको कोई डाक्टर आपको बताता नहीं क्योंकि इसका इलाज सबसे सरल है ! इलाज क्या है ? वागवट जी लिखते हैं कि जब रक्त (blood) में अम्लता (acidity) बढ़ गई है तो आप ऐसी चीजों का उपयोग करो जो क्षारीय हैं आप जानते हैं दो तरह की चीजें होती हैं अम्लीय और क्षारीय ! acidic and alkaline अब अम्ल और क्षार को मिला दो तो क्या होता है ? acid and alkaline को मिला दो तो क्या होता है ? neutral होता है सब जानते हैं तो वागवट जी लिखते हैं कि रक्त की अम्लता बढ़ी हुई है तो क्षारीय (alkaline) चीजें खाओ ! तो रक्त की अम्लता (acidity) neutral हो जाएगी ! और रक्त में अम्लता neutral हो गई ! तो heart attack की जिंदगी मे कभी संभावना ही नहीं ! ये है सारी कहानी ! अब आप पूछेंगे कि ऐसी कौन सी चीजें हैं जो क्षारीय हैं और हम खायें ? आपके रसोई घर में ऐसी बहुत सी चीजें है जो क्षारीय हैं जिन्हें आप खायें तो कभी heart attack न आए और अगर आ गया है तो दुबारा न आए यह हम सब जानते हैं कि सबसे ज्यादा क्षारीय चीज क्या हैं और सब घर मे आसानी से उपलब्ध रहती हैं, तो वह है लौकी जिसे दुधी भी कहते लौकी जिसे दुधी भी कहते हैं English में इसे कहते हैं bottle gourd जिसे आप सब्जी के रूप में खाते हैं ! इससे ज्यादा कोई क्षारीय चीज ही नहीं है ! तो आप रोज लौकी का रस निकाल-निकाल कर पियो या कच्ची लौकी खायो वागवट जी कहते हैं रक्त की अम्लता कम करने की सबसे ज्यादा ताकत लौकी में ही है तो आप लौकी के रस का सेवन करें, कितना सेवन करें ? रोज 200 से 300 मिलीग्राम पियो कब पिये ? सुबह खाली पेट (toilet जाने के बाद ) पी सकते हैं या नाश्ते के आधे घंटे के बाद पी सकते हैं इस लौकी के रस को आप और ज्यादा क्षारीय बना सकते हैं इसमें 7 से 10 पत्ते तुलसी के डाल लो तुलसी बहुत क्षारीय है इसके साथ आप पुदीने के 7 से 10 पत्ते मिला सकते हैं पुदीना भी बहुत क्षारीय है इसके साथ आप काला नमक या सेंधा नमक जरूर डाले ये भी बहुत क्षारीय है लेकिन याद रखें नमक काला या सेंधा ही डाले वो दूसरा आयोडीन युक्त नमक कभी न डाले ये आओडीन युक्त नमक अम्लीय है तो आप इस लौकी के जूस का सेवन जरूर करें 2 से 3 महीने की अवधि में आपकी सारी heart की blockage को ठीक कर देगा 21 वें दिन ही आपको बहुत ज्यादा असर दिखना शुरू हो जाएगा कोई आपरेशन की आपको जरूरत नहीं पड़ेगी घर में ही हमारे भारत के आयुर्वेद से इसका इलाज हो जाएगा और आपका अनमोल शरीर और लाखों रुपए आपरेशन के बच जाएँगे ।
कल 24 सितंबर दिन रविवार पुराना बस स्टैंड लाइटों वाला चौंक पटियाला मिलो सुबह 11 से शाम 4 बजे तक
स्वामी आत्मो दर्शन
9812860927
*🛕 आयुर्वेद ज्ञानामृत 🛕*
*रात को दूध में मिलाकर पिएं ये चीज, होगा पेट पूरी तरह से साफ*
1. एक गिलास दूध में एक चम्मच देशी गाय के दूध का घी मिलाकर रात में पीने से सुबह तक पेट नरम हो जाता है और मोशन अच्छे से होते हैं।
2. डॉक्टर की सलाह से करीब एक माह तक घी के दूध का सेवन करने से पुरानी कब्ज भी दूर होकर पाचन तंत्र मजबूत हो जाता है।
3. इस दूध को पीने से जोड़ों के दर्द में भी राहत मिलती है।
4. दूध में मौजूद कैल्शियम हड्डियों को मजबूती देता है। इससे पैरों की अकड़न भी दूर होती है।
5. घी मिला दूध पीने से अल्सर और एसिडिटी की समस्या खत्म होती है।
6. इस दूध के सेवन से छाती की जलन भी दूर हो जाती है।
7. इस दूध को इम्यूनिटी बूस्टर माना जाता है।
8. यदि इस दूध में हल्दी भी मिला दी जाए तो यह कई तरह के लोग में लाभदायक है।
*मनुष्य योनि का भोग*
एक दरिद्र ब्राह्मण यात्रा करते-करते किसी नगर से गुजर रहा था, बड़े-बड़े महल एवं अट्टालिकाओं को देखकर ब्राह्मण भिक्षा माँगने गया, किन्तु उस नगर मे किसी ने भी उसे दो मुट्ठी अन्न नहीं दिया।
आखिर दोपहर हो गयी ,तो ब्राह्मण दुःखी होकर अपने भाग्य को कोसता हुआ जा रहा था, सोच रहा था “कैसा मेरा दुर्भाग्य है इतने बड़े नगर में मुझे खाने के लिए दो मुट्ठी अन्न तक नहीं मिला ? रोटी बना कर खाने के लिए दो मुट्ठी आटा तक नहीं मिला ?
इतने में एक सिद्ध संत की निगाह उस ब्राहम्ण पर पड़ी ,उन्होंने ब्राह्मण की बड़बड़ाहट सुन ली, वे बड़े पहुँचे हुए संत थे ,उन्होंने कहाः “हे दरिद्र ब्राह्मण तुम मनुष्य से भिक्षा माँगो, पशु क्या जानें भिक्षा देना ?”
यह सुनकर ब्राह्मण दंग रह गया और कहने लगाः “हे महात्मन् आप क्या कह रहे हैं ? बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं में रहने वाले मनुष्यों से ही मैंने भिक्षा माँगी है”
महात्मा बोले, “नहीं ब्राह्मण मनुष्य शरीर में दिखने वाले वे लोग भीतर से मनुष्य नहीं हैं ,अभी भी वे पिछले जन्म के हिसाब से ही जी रहे हैं। कोई शेर की योनी से आया है तो कोई कुत्ते की योनी से आया है, कोई हिरण की योनी से आया है तो कोई गाय या भैंस की योनी से आया है ,उन की आकृति मानव-शरीर की जरूर है, किन्तु अभी तक उन में मनुष्यत्व निखरा नहीं है ,और जब तक मनुष्यत्व नहीं निखरता, तब तक दूसरे मनुष्य की पीड़ा का पता नहीं चलता। "दूसरे में भी मेरा प्रभु ही है" यह ज्ञान नहीं होता। तुम ने मनुष्यों से नहीं, पशुओं से भिक्षा माँगी है”।
ब्राह्मण का चेहरा दुःख व निराशा से भरा था। सिद्धपुरुष तो दूरदृष्टि के धनी होते हैं उन्होंने कहाः “देख ब्राह्मण, मैं तुझे यह चश्मा देता हूँ इस चश्मे को पहन कर जा और कोई भी मनुष्य दिखे, उस से भिक्षा माँग फिर देख, क्या होता है”
वह दरिद्र ब्राह्मण जहाँ पहले गया था, वहीं पुनः गया और योगसिद्ध कला वाला चश्मा पहनकर गौर से देखाः
‘ओहोऽऽऽऽ….वाकई कोई कुत्ता है कोई बिल्ली है तो कोई बघेरा है। आकृति तो मनुष्य की है ,लेकिन संस्कार पशुओं के हैं, मनुष्य होने पर भी मनुष्यत्व के संस्कार नहीं हैं’। घूमते-घूमते वह ब्राह्मण थोड़ा सा आगे गया तो देखा कि एक मोची जूते सिल रहा है, ब्राह्मण ने उसे गौर से देखा तो उस में मनुष्यत्व का निखार पाया।
ब्राह्मण ने उस के पास जाकर कहाः “भाई तेरा धंधा तो बहुत हल्का है ,औऱ मैं हूँ ब्राह्मण रीति रिवाज एवं कर्मकाण्ड को बड़ी चुस्ती से पालता हूँ ,मुझे बड़ी भूख लगी है ,इसीलिए मैं तुझसे माँगता हूँ ,क्योंकि मुझे तुझमें मनुष्यत्व दिखा है”
उस मोची की आँखों से टप-टप आँसू बरसने लगे वह बोलाः “हे प्रभु, आप भूखे हैं ? हे मेरे भग्वन आप भूखे हैं ? इतनी देर आप कहाँ थे ?”
यह कहकर मोची उठा एवं जूते सिलकर टका, आना-दो आना वगैरह जो इकट्ठे किये थे, उस चिल्लर (रेज़गारी) को लेकर हलवाई की दुकान पर पहुँचा और बोलाः “हलवाई भाई, मेरे इन भूखे भगवान की सेवा कर लो ये चिल्लर यहाँ रखता हूँ जो कुछ भी सब्जी-पराँठे-पूरी आदि दे सकते हो, वह इन्हें दे दो मैं अभी जाता हूँ”
यह कहकर मोची भागा,और घर जाकर अपने हाथ से बनाई हुई एक जोड़ी जूती ले आया, एवं चौराहे पर उसे बेचने के लिए खड़ा हो गया।
उस राज्य का राजा जूतियों का बड़ा शौकीन था, उस दिन भी उस ने कई तरह की जूतियाँ पहनीं, किंतु किसी की बनावट उसे पसंद नहीं आयी तो किसी का नाप नहीं आया, दो-पाँच बार प्रयत्न करने पर भी राजा को कोई पसंद नहीं आयी तो राजा मंत्री से क्रुद्ध होकर बोलाः
“अगर इस बार ढंग की जूती लाया तो जूती वाले को इनाम दूँगा ,और ठीक नहीं लाया तो मंत्री के बच्चे तेरी खबर ले लूँगा।”
दैव योग से मंत्री की नज़र इस मोची के रूप में खड़े असली मानव पर पड़ गयी जिस में मानवता खिली थी, जिस की आँखों में कुछ प्रेम के भाव थे, चित्त में दया-करूणा थी, ब्राह्मण के संग का थोड़ा रंग लगा था। मंत्री ने मोची से जूती ले ली एवं राजा के पास ले गया। राजा को वह जूती एकदम ‘फिट’ आ गयी, मानो वह जूती राजा के नाप की ही बनी थी। राजा ने कहाः “ऐसी जूती तो मैंने पहली बार ही पहन रहा हूँ ,किस मोची ने बनाई है यह जूती ?”
मंत्री बोला “हुजूर यह मोची बाहर ही खड़ा है”
मोची को बुलाया गया। उस को देखकर राजा की भी मानवता थोड़ी खिली। राजा ने कहाः
“जूती के तो पाँच रूपये होते हैं किन्तु यह पाँच रूपयों वाली नहीं है,पाँच सौ रूपयों वाली जूती है। जूती बनाने वाले को पाँच सौ और जूती के पाँच सौ, कुल एक हजार रूपये इसको दे दो!”
मोची बोलाः “राजा जी, तनिक ठहरिये, यह जूती मेरी नहीं है, जिसकी है उसे मैं अभी ले आताहूँ”मोची जाकर विनयपूर्वक उस ब्राह्मण को राजा के पास ले आया एवं राजा से बोलाः “राजा जी, यह जूती इन्हीं की है।
”राजा को आश्चर्य हुआ वह बोलाः “यह तो ब्राह्मण है इस की जूती कैसे ?”राजा ने ब्राह्मण से पूछा तो ब्राह्मण ने कहा मैं तो ब्राह्मण हूँ, यात्रा करने निकला हूँ”
राजाः “मोची जूती तो तुम बेच रहे थे इस ब्राह्मण ने जूती कब खरीदी और बेची ?”
मोची ने कहाः “राजन् मैंने मन में ही संकल्प कर लिया था कि जूती की जो रकम आयेगी वह इन ब्राह्मण देव की होगी। जब रकम इन की है तो मैं इन रूपयों को कैसे ले सकता हूँ ? इसीलिए मैं इन्हें ले आया हूँ। न जाने किसी जन्म में मैंने दान करने का संकल्प किया होगा और मुकर गया होऊँगा तभी तो यह मोची का चोला मिला है अब भी यदि मुकर जाऊँ तो तो न जाने मेरी कैसी दुर्गति हो ?
इसीलिए राजन् ये रूपये मेरे नहीं हुए। मेरे मन में आ गया था कि इस जूती की रकम इनके लिए होगी फिर पाँच रूपये मिलते तो भी इनके होते और एक हजार मिल रहे हैं तो भी इनके ही हैं। हो सकता है मेरा मन बेईमान हो जाता इसीलिए मैंने रूपयों को नहीं छुआ और असली अधिकारी को ले आया!”
राजा ने आश्चर्य चकित होकर ब्राह्मण से पूछाः “ब्राह्मण मोची से तुम्हारा परिचय कैसे हुआ ?
”ब्राह्मण ने सारी आप बीती सुनाते हुए सिद्ध पुरुष के चश्मे वाली बात बताई, और कहा कि राजन्, आप के राज्य में पशुओं के दर्शन तो बहुत हुए लेकिन मनुष्यत्व का अंश इन मोची भाई में ही नज़र आया।
”राजा ने कौतूहलवश कहाः “लाओ, वह चश्मा जरा हम भी देखें।”राजा ने चश्मा लगाकर देखा तो दरबारियों में उसे भी कोई सियार दिखा तो कोई हिरण, कोई बंदर दिखा तो कोई रीछ। राजा दंग रह गया कि यह तो पशुओं का दरबार भरा पड़ा है उसे हुआ कि ये सब पशु हैं तो मैं कौन हूँ ? उस ने आईना मँगवाया एवं उसमें अपना चेहरा देखा तो शेर! उस के आश्चर्य की सीमा न रही, ‘ये सारे जंगल के प्राणी और मैं जंगल का राजा शेर यहाँ भी इनका राजा बना बैठा हूँ।’ राजा ने कहाः “ब्राह्मणदेव योगी महाराज का यह चश्मा तो बड़ा गज़ब का है, वे योगी महाराज कहाँ होंगे ?”
ब्राह्मणः “वे तो कहीं चले गये ऐसे महापुरुष कभी-कभी ही और बड़ी कठिनाई से मिलते हैं।”श्रद्धावान ही ऐसे महापुरुषों से लाभ उठा पाते हैं, बाकी तो जो मनुष्य के चोले में पशु के समान हैं वे महापुरुष के निकट रहकर भी अपनी पशुता नहीं छोड़ पाते।
ब्राह्मण ने आगे कहाः "राजन् अब तो बिना चश्मे के भी मनुष्यत्व को परखा जा सकता है। व्यक्ति के व्यवहार को देखकर ही पता चल सकता है कि वह किस योनि से आया है।
एक मेहनत करे और दूसरा उस पर हक जताये तो समझ लो कि वह सर्प योनि से आया है क्योंकि बिल खोदने की मेहनत तो चूहा करता है ,लेकिन सर्प उस को मारकर बल पर अपना अधिकार जमा बैठता है।”अब इस चश्मे के बिना भी विवेक का चश्मा काम कर सकता है ,और दूसरे को देखें उसकी अपेक्षा स्वयं को ही देखें कि हम सर्पयोनि से आये हैं कि शेर की योनि से आये हैं या सचमुच में हममें मनुष्यता खिली है ? यदि पशुता बाकी है तो वह भी मनुष्यता में बदल सकती है कैसे ?
गोस्वामी तुलसीदाज जी ने कहा हैः
बिगड़ी जनम अनेक की, सुधरे अब और आजु।
तुलसी होई राम को, रामभजि तजि कुसमाजु।।
कुसंस्कारों को छोड़ दें… बस अपने कुसंस्कार आप निकालेंगे तो ही निकलेंगे। अपने भीतर छिपे हुए पशुत्व को आप निकालेंगे तो ही निकलेगा। यह भी तब संभव होगा जब आप अपने समय की कीमत समझेंगे मनुष्यत्व आये तो एक-एक पल को सार्थक किये बिना आप चुप नहीं बैठेंगे। पशु अपना समय ऐसे ही गँवाता है। पशुत्व के संस्कार पड़े रहेंगे तो आपका समय बिगड़ेगा अतः पशुत्व के संस्कारों को आप बाहर निकालिये एवं मनुष्यत्व के संस्कारों को उभारिये फिर सिद्धपुरुष का चश्मा नहीं, वरन् अपने विवेक का चश्मा ही कार्य करेगा और इस विवेक के चश्मे को पाने की युक्ति मिलती है हरि नाम संकीर्तन यानी (सत्य का संग)व सत्संग से! तो हे आत्म जनों, मानवता से जो पूर्ण हो, वही मनुष्य कहलाता है। बिन मानवता के मानव भी, पशुतुल्य रह जाता है..!! इसलिए आप जो भी कमा रहे उसमे से कम से कम 2% दान करते रहे जो सेवा आपको सही लगे उस में..!!
आपको यह जानकर अति खुशी होगी कि हम बहुत जल्दी आपकी सेवा में इसी महीने से श्री अमृतसर साहब जी का टूर प्रोग्राम बना रहे हैं। जो हर पन्द्रह दिन बाद होगा, दिन तारीख आपको बता दिया जायेगा। अधिक जानकारी के लिए आप इन नंबरों पर सम्पर्क कर सकते हैं
आपका दास
स्वामी आत्मो दर्शन 9812860927 डॉ ममता अरोड़ा 8968678478
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@बुढ़ापे से जवानी की और..आयुर्वेद से समाधान# $बुढ़ापे से जवानी की और..आयुर्वेद से समाधान #
मर्दाना ताकत के लिए लाजबाब नुक्सा तैयार है
दोबारा जिंदगी में ताकत के लिए किसी और दवाई की सायद ही जरूरत पड़े इससे ज्यादा क्या तारीफ करूँ।
बनाने के लिए जरूरी
सामग्री ÷
20 ग्राम आकर करा
02 ग्राम जाफरान असली
04 ग्राम शुद्ध सिंगरफ
05 ग्राम वालछड़
05 जावितरी
01 स्वर्ण भस्म
03 ग्राम शुद्ध शंखीया
05 ग्राम तरियाक
42 ग्राम नागौरी आश्वगंधा के काहड़े में मजबूत हाथों से खूब घोटाई करके छोटे चने बराबर गोलियां बना लें। मिश्री दूध के साथ सेवन करें, घी खूब खाएं ।
जरूरी नोट ÷ हाई वी.पी वाले पित दोष और कमजोर औरत वाले ना बरतें।
धन्यवाद साहित:-
स्वामी आत्मो दर्शन
9812860927
आयुर्वेद और न्यूरोथ्रेपी का सुमेल
वैद्य स्वामी आत्मो दर्शन
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बच्चेदानी की रसौली15 दिनों में ग़ायब।
गुरु रामदास आयुवेदा मोगा
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