Ashish Kumar Pandey 2
Born to simplify the complicated. To create the best versions of future technologies. To be kind to However, Dashansh Technologies PVT. LTD.
Getting into a 9-5 job was as limited an idea for me as a frenetic adventurer hence I choose entrepreneurship and founded the social enterprise "Dashansh Group"
Dashansh Group works for the welfare of society. For this, it creates a network of social good, technology and encouraging connection between all the sections of the society through its three wings Foundation, Technologies & Social Helplin
The Gyan Talks With Shashish | Episode 03 | ft. Dr. Debajyoti Mukherjee
देश में हर साल 50000 से ज़्यादा मौतें सर्प दंश से होती हैं जहां सिर्फ बिहार में 4500 मौतें सर्पदंश से हो रही हैं. मगर सच यह है कि इन में से अधिकतम को बचाया जा सकता है इसके लिए समुचित उपचार की आवश्यकता है न कि किसी प्रकार के झाड़ फूंक की.
इसी सिलसिले में जीवन जागृति सोसायटी द्वारा सर्पदंश जागरूकता अभियान एवं बटेश्वर स्थान पर डूबने से बचाने की मुहिम चलाई गई. इस अभियान की शुरुआत कहलगांव एवं पीरपैंती प्रखंड से हुई है. एस डी ओ मधुकांत कुमार एवं प्रखंड विकास अधिकारी की गरिमामयी उपस्थिति में इस अभियान की शुरुआत हुई.
अस्पताल का भव्य उद्घाटन।
आप सभी सादर आमंत्रित हैं।
पता: कामाख्या नगर, बंशीटिकर, जगतपुर रोड, भागलपुर। part-2
अस्पताल का भव्य उद्घाटन।
आप सभी सादर आमंत्रित हैं।
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हमारा मेयर कैसा हो?
विचार गोष्ठी।
होटल भावना, भागलपुर।
#भागलपुर_स्थापना_दिवस के उपलक्ष्य में घण्टाघर, भागलपुर से लाइव- #जीवन_जागृति_सोसाइटी।
अखिल भारतीय युवा महोत्सव 2021
लाइव: अखिल भारतीय युवा महोत्सव 2021
(गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड अटेम्प्ट)
आप सभी का स्वागत है देश के सबसे बड़े युवा महोत्सव में,
आईये जीवन मे आगे बढ़ें, बड़ा सोचें, चिंता छोड़ चिंतन करें।
लाइव: अखिल भारतीय युवा महोत्सव 2021
(गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड अटेम्प्ट)
आप सभी का स्वागत है देश के सबसे बड़े युवा महोत्सव में,
आईये जीवन मे आगे बढ़ें, बड़ा सोचें, चिंता छोड़ चिंतन करें।
दोस्तों,
अखिल भारतीय युवा महोत्सव 2021 ( ) की तैयारी के हम अंतिम चरण पर हैं । मात्र साढ़े 16 घंटा बचा है । 15 दिसम्बर सुबह 11 बजे हम सारे देश में एक साथ 100 से ऊपर फेसबुक पेज से लाइव रहेंगे तथा हजारों शेयर के माध्यम से हम महोत्सव को जन जन तक फैलायेंगे ।
आप भी साथ आइए ..... साथियों के साथ ।
जयहिंद ।।
** मिलिए झारखंड संयोजक आलोक कुमार तिवारी और बिहार संयोजक धर्मेंद्र चौबे से
ABYM21
दोस्तों,
अखिल भारतीय युवा महोत्सव 2021 ( ) की तैयारी के हम अंतिम चरण पर हैं । मात्र 3 दिन बचा है । 15 दिसम्बर सुबह 11 बजे हम सारे देश में एक साथ 100 से ऊपर फेसबुक पेज से लाइव रहेंगे तथा हजारों शेयर के माध्यम से हम महोत्सव को जन जन तक फैलायेंगे ।
आप भी साथ आइए ..... साथियों के साथ ।
जयहिंद ।।
** मिलिए जम्मू कश्मीर संयोजक अबरार अहमद बट जी, असम संयोजक सुशांत महापात्र और वरिष्ट शिक्षक तथा संरक्षक रेमांशु मिश्रा
आप से रूबरू होंगे ।
दोस्तों, अब मात्र 4 दिन ।
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हम कोई कसर नहीं छोड़ रहें 15 दिसम्बर को होने वाले अखिल भारतीय युवा महोत्सव 2021 को ऐतिहासिक बनाने को । आप भी साथ आइए देश के सबसे बड़ा युवा समागम में ।
अह्वाहक प्रोफेसर देबज्योति मुखर्जी के साथ मौजूद रहेंगे पूर्विभारत संयोजक अभिषेक कुमार यादव जी और छत्तीसगढ़ संयोजक करुणानिधि यादव जी ।
जयहिंद ।।
अखिल भारतीय युवा महोत्सव, संयोजक के साथ संवाद
हम अब 15 दिसम्बर यानी अखिल भारतीय युवा महोत्सव 2021 तक रोज लाइव रहेंगे । 10 से 14 तारीख शाम 6.30 बजे। आज प्रोफेसर डॉक्टर देबज्योति मुखर्जी के साथ मौजूद रहेंगे उत्तरप्रदेश संयोजक अर्चना सेंगर जी और पश्चिम बंगाल संयोजक सूर्य सुंदर मुखर्जी जी ।
जयहिंद
जानिए अखिल भारतीय युवा महोत्सव 2021 के अब तक के तैयारी के बारे में और अपना बहुमूल्य सुझाव भी दें । साथ में रहेंगे के हमारे पांच अंतराष्ट्रीय वक्ताओं में से दो शख्शियत: विकास कालिता और प्रवीण ठाकुर।
तो आतो आइए दोस्तों मिलिए के हमारे पांच अंतराष्ट्रीय वक्ताओं में से एक विश्वप्रसिद्ध मेंटल टफनेस कोच श्री मृणाल चक्रवर्ती सर । सर कैंब्रिज विश्वविद्यालय, लंदन के स्टार स्कॉलर हैं तथा दुनिया के 10 सर्वश्रेष्ठ कोचों में से एक हैं । आज युवाओं के हौसला अफजाई के लिए हमारे साथ रू ब रू हो रहे हैं। और साथ साथ मेरे साथ जानिए अभी तक की अखिल भारतीय युवा महोत्सव की अभी तक की उपलब्धि।
तो आइए दोस्तों मिलिए के हमारे पांच अंतराष्ट्रीय वक्ताओं में से दो शख्शियतों से। अपूर्व विक्रम शाह और शशिष कुमार तिवारी आज युवाओं के हौसला अफजाई के लिए हमारे साथ रू ब रू हो रहे हैं। और साथ साथ मेरे साथ जानिए अभी तक की अखिल भारतीय युवा महोत्सव की अभी तक की उपलब्धि।
Very rare photo of Yogi Adityanath, initiated as a Sanyasi at very young age of 21 years. Generally, youngsters in their early 20s would be thinking of making money, enjoying with friends, etc. But here was a young karma-yogi who had decided to give up everything at such tender age in the quest for service and spirituality.
Born as Ajay Singh in a humble family, he was highly talented right from his childhood, and loved science & mathematics. In fact, such was his fascination towards the world of calculus and trigonometry that he went on to obtain BSc degree in mathematics, with flying colors! But soon after graduation, he started feeling something was missing in the conventional world, as the aura of spirituality had already started enveloping his life, and had started making inroads into his deeper consciousness.
It was at that juncture when he decided to become a disciple of Mahant Avaidyanath (who was the head of Gorakhnath Math) at the tender age of 21, was soon initiated as Sanyasi, and was given the name "Yogi Adityanath". As a revered Saint, he started visiting villages, to listen to their problems & serve them, because he believed that service & spirituality need not be exclusive, but can complement each other, which is actually the true nature of a genuine karma-yogi.
Within years, not only was he able delve deeply into spirituality, but also managed to serve millions, and thanks to the encouragement by Mahant Avaidyanath, he took his efforts to a whole new level, by contesting elections to further serve the people. Such was his popularity among the masses that when he was still in his mid 20s, he had already won people's mandate, to become the youngest MP in Loksabha, and the rest is history.
हज़ारों सदियों पहले पच्छिम जब अंधकार में गर्क था तो भारत के ऋषियों ने नाड़ी दोष ढूंढ लिया था और उसे गोत्र के रूप में विभाजित करके संसार को उत्तम ज्ञान दिया था, जिसे आज का आधुनिक चिकित्सा शास्त्र क्रोमोसोम थ्योरी कहता है, आईये बताएं कहां से नकल हुई ये क्रोमोसोम थ्योरी......
जानिए पुत्री को अपने पिता का गोत्र ,
क्यों नही प्राप्त होता ?
आइये वैज्ञानिक दृष्टिकोण से
हम आप सब जानते हैं कि स्त्री में गुणसूत्र xx और पुरुष में xy गुणसूत्र होते हैं ।
इनकी सन्तति में माना कि पुत्र हुआ (xy गुणसूत्र) अर्थात इस पुत्र में y गुणसूत्र पिता से ही आया यह तो निश्चित ही है क्योंकि माता में तो y गुणसूत्र होता ही नही है !
और यदि पुत्री हुई तो (xx गुणसूत्र) यानी यह गुण सूत्र पुत्री में माता व् पिता दोनों से आते हैं ।
१. xx गुणसूत्र
〰〰〰〰
xx गुणसूत्र अर्थात पुत्री , अस्तु xx गुणसूत्र के जोड़े में एक x गुणसूत्र पिता से तथा दूसरा x गुणसूत्र माता से आता है ।
तथा इन दोनों गुणसूत्रों का संयोग एक गांठ सी रचना बना लेता है जिसे Crossover कहा जाता है ।
२. xy गुणसूत्र
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xy गुणसूत्र अर्थात पुत्र , यानी पुत्र में y गुणसूत्र केवल पिता से ही आना संभव है क्योंकि माता में y गुणसूत्र है ही नही ।
और दोनों गुणसूत्र असमान होने के कारन पूर्ण Crossover नही होता केवल ५ % तक ही होता है । और ९५ % y गुणसूत्र ज्यों का त्यों (intact) ही रहता है ।
तो महत्त्वपूर्ण y गुणसूत्र हुआ । क्योंकि y गुणसूत्र के विषय में हमें निश्चित है कि यह पुत्र में केवल पिता से ही आया है ।
बस इसी y गुणसूत्र का पता लगाना ही गोत्र प्रणाली का एकमात्र उदेश्य है जो हजारों / लाखों वर्ष पूर्व हमारे ऋषियों ने जान लिया था ।
वैदिक गोत्र प्रणाली और y गुणसूत्र :
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
अब तक हम यह समझ चुके है कि वैदिक गोत्र प्रणाली y गुणसूत्र पर आधारित है अथवा y गुणसूत्र को ट्रेस करने का एक माध्यम है ।
उदहारण के लिए यदि किसी व्यक्ति का गोत्र कश्यप है तो उस व्यक्ति में विद्यमान y गुणसूत्र कश्यप ऋषि से आया है या कश्यप ऋषि उस y गुणसूत्र के मूल हैं ।
चूँकि y गुणसूत्र स्त्रियों में नही होता यही कारण है कि विवाह के पश्चात स्त्रियों को उसके पति के गोत्र से जोड़ दिया जाता है ।
वैदिक / हिन्दू संस्कृति में एक ही गोत्र में विवाह वर्जित होने का मुख्य कारण यह है कि एक ही गोत्र से होने के कारण वह पुरुष व स्त्री भाई बहन कहलाएंगे क्योंकि उनका प्रथम पूर्वज एक ही है ।
परन्तु ये थोड़ी अजीब बात नही कि जिन स्त्री व पुरुष ने एक दुसरे को कभी देखा तक नही और दोनों अलग अलग देशों में परन्तु एक ही गोत्र में जन्मे, तो वे भाई बहन हो गये ?
इसका मुख्य कारण एक ही गोत्र होने के कारण गुणसूत्रों में समानता का भी है ।
आज के आनुवंशिक विज्ञान के अनुसार यदि सामान गुणसूत्रों वाले दो व्यक्तियों में विवाह हो तो उनकी सन्तति आनुवंशिक विकारों के साथ उत्पन्न होगी ।
ऐसे दंपत्तियों की संतान में एक सी विचारधारा ,
पसंद , व्यवहार आदि में कोई नयापन
नहीं होता । ऐसे बच्चों में
रचनात्मकता का अभाव होता है ।
विज्ञान द्वारा भी इस संबंध में यही बात कही गई है कि सगोत्र शादी करने पर अधिकांश ऐसे दंपत्ति की संतानों में अनुवांशिक दोष अर्थात मानसिक विकलांगता , अपंगता , गंभीर रोग आदि जन्मजात ही पाए जाते हैं ।
शास्त्रों के अनुसार इन्हीं कारणों से सगोत्र विवाह पर प्रतिबंध लगाया था ।
इस गोत्र का संवहन यानी उत्तराधिकार पुत्री को एक पिता प्रेषित न कर सके ,
इसलिये विवाह से पहले कन्यादान कराया जाता है और गोत्र मुक्त कन्या का पाणिग्रहण कर भावी वर अपने कुल गोत्र में उस कन्या को स्थान देता है ,
यही कारण था कि उस समय विधवा विवाह भी स्वीकार्य नहीं था , क्योंकि , कुल गोत्र प्रदान करने वाला पति तो मृत्यु को प्राप्त कर चुका है ।
इसीलिये , कुंडली मिलान के समय वैधव्य पर खास ध्यान दिया जाता और मांगलिक कन्या होने पर ज्यादा सावधानी बरती जाती है ।
आत्मज या आत्मजा का
सन्धिविच्छेद तो कीजिये ।
आत्म + ज अथवा आत्म + जा
आत्म = मैं , ज या जा = जन्मा या जन्मी , यानी मैं ही जन्मा या जन्मी हूँ ।
यदि पुत्र है तो 95% पिता और 5% माता का सम्मिलन है । यदि पुत्री है तो 50% पिता और 50% माता का सम्मिलन है ।
फिर यदि पुत्री की पुत्री हुई तो वह डीएनए 50% का 50% रह जायेगा , फिर यदि उसके भी पुत्री हुई तो उस 25% का 50% डीएनए रह जायेगा , इस तरह से सातवीं पीढ़ी में पुत्री जन्म में यह प्रतिशत घटकर 1% रह जायेगा ।
अर्थात , एक पति-पत्नी का ही डीएनए सातवीं पीढ़ी तक पुनः पुनः जन्म लेता रहता है , और यही है सात जन्मों का साथ ।
लेकिन, जब पुत्र होता है तो पुत्र का गुणसूत्र पिता के गुणसूत्रों का 95% गुणों को अनुवांशिकी में ग्रहण करता है और माता का 5% ( जो कि किन्हीं परिस्थितियों में एक % से कम भी हो सकता है ) डीएनए ग्रहण करता है , और यही क्रम अनवरत चलता रहता है ,
जिस कारण पति और पत्नी के गुणों युक्त डीएनए बारम्बार जन्म लेते रहते हैं , अर्थात यह जन्म जन्मांतर का साथ हो जाता है ।
इसीलिये , अपने ही अंश को पित्तर जन्म जन्मान्तरों तक आशीर्वाद देते रहते हैं और हम भी अमूर्त रूप से उनके प्रति श्रध्येय भाव रखते हुए आशीर्वाद ग्रहण करते रहते हैं ,
और यही सोच हमें जन्मों तक स्वार्थी होने से बचाती है , और सन्तानों की उन्नति के लिये समर्पित होने का सम्बल देती है ।
एक बात और, माता पिता यदि कन्यादान करते हैं , तो इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि वे कन्या को कोई वस्तु समकक्ष समझते हैं ,
बल्कि इस दान का विधान इस निमित किया गया है कि दूसरे कुल की कुलवधू बनने के लिये और उस कुल की कुलधात्री बनने के लिये, उसे गोत्र मुक्त होना चाहिये ।
डीएनए मुक्त तो हो नहीं सकती क्योंकि भौतिक शरीर में वे डीएनए रहेंगे ही ,
इसलिये मायका अर्थात माता का रिश्ता बना रहता है, गोत्र यानी पिता के गोत्र का त्याग किया जाता है ।
तभी वह भावी वर को यह वचन दे पाती है कि उसके कुल की मर्यादा का पालन करेगी यानी उसके गोत्र और डीएनए को दूषित नहीं होने देगी , वर्णसंकर नहीं करेगी ,
क्योंकि कन्या विवाह के बाद कुल वंश के लिये रज का रजदान करती है और मातृत्व को प्राप्त करती है । यही कारण है कि प्रत्येक विवाहित स्त्री माता समान पूज्यनीय हो जाती है ।
यह रजदान भी कन्यादान की ही तरह कोटि यज्ञों के समतुल्य उत्तम दान माना गया है जो एक पत्नी द्वारा पति को दान किया जाता है ।
भारतीय संस्कृति और सभ्यता के अलावा यह संस्कारगत शुचिता किसी अन्य सभ्यता में दृश्य ही नहीं है, इसीलिए कहता हूँ
(अपना भारत वो भारत है , जिसके पीछे संसार चला )
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रामो विग्रहवानो धर्म:।
!!शादी समारोह में पवित्र वरमाला रस्म को एक प्रतिस्पर्द्धा स्वरूप मजाक बनाते आज के लोग !!
आजकल शादियों में ये बात काफी नजर आ रही है, कि शादी के समय स्टेज पर वरमाला के वक्त वर या दूल्हा बड़ा तनकर खड़ा हो जाता है, जिससे दुल्हन को वरमाला डालने में काफी कठिनाई होती है, कभी कभी वर पक्ष के लोग दूल्हे को गोद में उठा लेते हैं, और फिर वधु पक्ष के लोग भी वधु को गोद में उठाकर जैसे तैसे वरमाला कार्यक्रम सम्पन्न करवा पाते हैं, आखिर ऐसा क्यों? क्या करना चाहते हैं हम?
हम एक पवित्र संबंध जोड़ रहे हैं, या इस नये संबंध को मजाक बना रहे है, और अपनी जीवनसँगनी को हजार-पांच सौ लोगो के बीच हम उपहास का पात्र बनाकर रह जाते हैं, कोई प्रतिस्पर्धा नही हो रही है, दंगल या अखाड़े का मैदान नही है, पवित्र मंडप है जहां देवी-देवताओं और पवित्र अग्नि का आवाहन होता है भगवान् प्रभु श्रीराम जी ने सम्मान सहित कितनी सहजता से सिर झुकाकर सीता जी से वरमाला पहनी थी।
यही हमारी परंपरा है
विवाह एक पवित्र बंधन है, संस्कार है, कृपया इसको मजाक ना बनने दे..🙏🏼🙏🏼
अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस की आप सभी को अनंत शुभकामनाएं ❤️
दशांश ग्रुप पेश करते हैं " #उम्मीद_2020",
30 दिवसीय ऑनलाइन टैलेंट कॉम्पटीशन प्रोग्राम।
#कॉम्पटीशन_में_निशुल्क_भाग_लेने_के_लिए_नीचे_दिए_गए_लिंक_पर_फॉर्म_भर_दें:
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#दिव्यांग_प्रतिभा #गरीब_प्रतिभा #अन्य_सभी_प्रतिभा
आप भी भाग लें, भारत के सबसे पहले ऑनलाइन टैलेंट प्रोग्राम में जिसमें हर वर्ग के टैलेंट्स को मौका दिया जाएगा। अगर आप में प्रतिभा है तो अभी इस कार्यक्रम का हिसाब बने।
उम्र: 4 वर्ष से 22 वर्ष के टैलेंट्स, दिव्यांग टैलेंट की उम्र सीमा 30 वर्ष।
हमारे सम्मानित सहभागी संस्था:
1. ओ एस ए एन जी ओ, जयपुर
2. रेडियांस डांस एकेडमी, भागलपुर
3. शुभ सेवा ट्रस्ट, जयपुर
4. शी: सोसायटी हैज इव, कोटा
5. संकल्प सिद्धि फाउंडेशन, हल्द्वानी
6. रोटी बैंक यूथ क्लब, धनबाद
7. कर्मवीर सेवा ट्रस्ट, दिल्ली
8. रोटी बैंक अलवर
9. राष्ट्र मानवाधिकार संस्था
10. हेल्पिंग इंडिया फीडिंग इंडिया
11. अर्पण प्रयास, दिल्ली
12. बिंबो
13. संकल्प वेलफेयर सोसायटी, दिल्ली
14. अर्चना फाउंडेशन
15. नव्या सर्जन
16. ऑल इंडिया कपड़ा बैंक धनबाद
17. ड्रीम डांस स्कूल भागलपुर
18. उत्सांग फाउंडेशन
19. एहसास फाउंडेशन
आप या आपकी संस्था हमारे साथ इस पहल में हिस्सा बनना चाहती है तो नीचे दिए लिंक पर अप्लाई करें: https://dashansh.com/association/
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दशांश पेश करते हैं "मेरे सैनिक मेरे भाई- एपिसोड -77"
हमारे वीर सैनिकों के हौसलों को हम आपके देशप्रेम से ओत प्रोत संदेशो को समर्पित करते हैं।
आप भी हिस्सा बनें, प्रोत्साहित करें और "हमारे सैनिक हमारे भाई" कार्यक्रम में लाइव जुड़ें, या आपकी भेजी कविताओं, ऑडियो, वीडियो व अन्य माध्यमों से देश भर से आ रहे संदेशो को सुनें रोज शाम 8 बजे बॉलीवुड एक्टर सत्यकाम आंनद के साथ।
दैनिक कार्यक्रम को देखने के लिए फॉलो करें- https://www.facebook.com/dashansh
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https://dashansh.com/apply-for-broadcast/
कैप्टन विक्रम बत्रा की जयंती पर शत शत नमन 🙏
(09 सितम्बर 1974 - 07 जुलाई 1999)
भारतीय सेना के एक अधिकारी थे जिन्होंने कारगिल युद्ध में अभूतपूर्व वीरता का परिचय देते हुए वीरगति प्राप्त की। उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च वीरता सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
विज्ञान विषय में स्नातक करने के बाद विक्रम का चयन सीडीएस के जरिए सेना में हो गया। जुलाई 1996 में उन्होंने भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून में प्रवेश लिया। दिसंबर 1997 में प्रशिक्षण समाप्त होने पर उन्हें 6 दिसम्बर 1997 को जम्मू के सोपोर नामक स्थान पर सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति मिली। उन्होंने 1999 में कमांडो ट्रेनिंग के साथ कई प्रशिक्षण भी लिए। पहली जून 1999 को उनकी टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया। हम्प व राकी नाब स्थानों को जीतने के बाद विक्रम को कैप्टन बना दिया गया।
इसके बाद श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्त्वपूर्ण 5140 चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने की ज़िम्मेदारी कैप्टन बत्रा की टुकड़ी को मिली। कैप्टन बत्रा अपनी कंपनी के साथ घूमकर पूर्व दिशा की ओर से इस क्षेत्र की तरफ बडे़ और बिना शत्रु को भनक लगे हुए उसकी मारक दूरी के भीतर तक पहुंच गए। कैप्टेन बत्रा ने अपने दस्ते को पुर्नगठित किया और उन्हें दुश्मन के ठिकानों पर सीधे आक्रमण के लिए प्रेरित किया। सबसे आगे रहकर दस्ते का नेतृत्व करते हुए उन्होनें बड़ी निडरता से शत्रु पर धावा बोल दिया और आमने-सामने के गुतथ्मगुत्था लड़ाई मे उनमें से चार को मार डाला। बेहद दुर्गम क्षेत्र होने के बावजूद विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 को सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर इस चोटी को अपने कब्ज़े में ले लिया।कैप्टन विक्रम बत्रा ने जब इस चोटी से रेडियो के जरिए अपना विजय उद्घोष ‘यह दिल मांगे मोर’ कहा तो सेना ही नहीं बल्कि पूरे भारत में उनका नाम छा गया। इसी दौरान विक्रम के कोड नाम शेरशाह के साथ ही उन्हें #कारगिल_का_शेर की भी संज्ञा दे दी गई।
अगले दिन चोटी 5140 में भारतीय झंडे के साथ विक्रम बत्रा और उनकी टीम का फोटो मीडिया में आ गयी।
इसके बाद सेना ने चोटी 4875 को भी कब्ज़े में लेने का अभियान शुरू कर दिया और इसके लिए भी कैप्टन विक्रम और उनकी टुकड़ी को जिम्मेदारी दी गयी। उन्हें और उनकी टुकड़ी एक ऐसी संकरी चोटी से दुश्मन के सफ़ाए का कार्य सौंपा गया जिसके दोनों ओर खड़ी ढलान थी और जिसके एकमात्र रास्ते की शत्रु ने भारी संख्या में नाकाबंदी की हुई थी। कार्यवाई को शीग्र पूरा करने के लिए कैप्टन विक्रम बत्रा ने एक संर्कीण पठार के पास से शत्रु ठिकानों पर आक्रमण करने का निर्णय लिया। आक्रमण का नेतृत्व करते हुए आमने-सामने की भीषण गुत्थमगुत्था लड़ाई में अत्यन्त निकट से पांच शत्रु सैनिकों को मार गिराया। इस कार्यवाही के दौरान उन्हें गंभीर ज़ख्म लग गए। गंभीर ज़ख्म लग जाने के बावजूद वे रेंगते हुए शत्रु की ओर बड़े और ग्रेनेड फ़ेके जिससे उस स्थान पर शत्रु का सफ़ाया हो गया। सबसे आगे रहकर उन्होंने अपने साथी जवानों को एकत्र करके आक्रमण के लिए प्रेरित किया और दुश्मन की भारी गोलीबारी के सम्मुख एक लगभग असंभव सैन्य कार्य को पूरा कर दिखाया। उन्होंने जान की परवाह न करते हुए अपने साथियों के साथ, जिनमे लेफ्टिनेंट अनुज नैयर भी शामिल थे, कई पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा। किंतु ज़ख्मों के कारण यह अफ़सर वीरगति को प्राप्त हुए।
उनके इस असाधारण नेतृत्व से प्रेरित उनके साथी जवान प्रतिशोध लेने के लिए शत्रु पर टूट पड़े और शत्रु का सफ़ाया करते हुए प्वॉइंट 4875 पर कब्ज़ा कर लिया।
इस प्रकार कैप्टन विक्रम बत्रा ने शत्रु के सम्मुख अत्यन्त उतकृष्ट व्यक्तिगत वीरता तथा उच्चतम कोटि के नेतृत्व का प्रदर्शन करते हुए भारतीय सेना की सर्वोच्च परंपराओं के अनुरूप अपना सर्वोच्च बलिदान दिया।
इस अदम्य साहस और पराक्रम के लिए कैप्टन विक्रम बत्रा को 15 अगस्त 1999 को भारत सरकार द्वारा मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
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