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Travel blog 1
हम सुबह। 5बजे कोलेज से दिल्ली के लिए निकले! 8बजे हम एक ढाबे पे रूके और वहां पर हम ने खाना खाया। ढाबे पर हम ने खाना खाने के बाद फोटो भी लिए। फिर हम बस में बैठे और दिल्ली के लिए निकले। जब हम दिल्ली में पहुंच तो जाते समय रास्ते में बहुत सारी चीज़ें देखी। दिल्ली की बस हमारी बसें से अलग थी दिल्ली की बसें में आगे की सीटें नीची थी और पीछे की सीटें ऊंची थी हमने ऐसी बस पहली बार देखी थी रास्ते में हमने बहुत सारी चीज़ें देखी जो हमने पहली बार देखी थी दिल्ली हम पहली बार ही दिल्ली जा रहे थे तो हम बहुत खुश हो रही थी दिल्ली जाते समय दिल्ली में पहुंच कर हम अमृत उधान देखा वहा पर हम ने राष्ट्रपति का भवन भी देखा व वहां पृदशित हुए विभिन्न प्रकार के उधान व फूलों की जानकारी ली अमृत उधान में प्रत्येक फुल के पास क्यूआर कोड लगाया गया था ताकि उससे संबंधित सारी जानकारी ली जा सके राष्ट्रपति भवन पहुंचकर हमने मौजूद अधिकारियों से उसके इतिहास के बारे में जानकारी हासिल की शैक्षणिक भ्रमण का आयोजन हमारे कोलेज के जनसंचार विभाग द्वारा करवाया गया था वहां पर हमने बहुत सारी फोटो ली ताकि वे हमेशा याद रहेंगी हमारे नरेंद्र सैनी सर ने बताया कि संसद की कार्रवाई को देखना मीडिया के विधार्थियों के लिए रोमांचक अनुभव था हमने संसद के बारे में जो बातें पुस्तक में पढ़ते थे व लोकसभा राज्यसभा सांसद टीवी पर देखते थे उन सभी से रूबरू होने का मौका मिला हम संसद की व्यवस्था को जानकर अभिभूत हुए हिसार लोकसभा के संसद बृजेन्द्र सिंह जी ने सश्र दिखाने हेतु गुप पास का प्रबंध करवाया व उनके पीए वरुण तिवारी द्वारा सश्र का भ्रमण करवाया गया इसके अलावा संसद उस ने संसद का इतिहास उसकी भौगोलिक संरचना आदि जानकारी हमारे साथ साझा की हमने संसद भवन में जा कर उस के बारे में बहुत सारी जानकारी प्राप्त की क्योंकि जो चीज हम टीवी पर देखते हैं और उस चीज को हम रुबरु देखते हैं तो इन दोनों में बहुत अंतर है हमने ईन सब की जानकारी के साथ बहुत ज्यादा ईजऐ भी किया था शाम को हम वहां से वापसी को लिए निकले और आते समय भी हमने बहुत इनजओ किया हम बस में गाने सुनें और नाचते हुए आए आते समय भी हम उस ढाबे पर रूके जिस पर हम ने जाते समय खाना खाया था रात को भी हम ने उसी ढाबे पर खाना खाया और फिर वहां भी फोटो ली और फिर हम ऐसे ही नाचते हुए आए दिल्ली का ये टृर हमारे लिए बहुत ही यादगार पल रहे गा क्योंकि हम दिल्ली पहली बार गय थे और हम ने इस टूर में बहुत इनजओ भी किया और इनजओ के साथ साथ बहुत कुछ सीखा भी है ये हमारे लिए बहुत ही यादगार पल में रहने वाले हैं
Personal blog 1
मैंने अपनी शिक्षा पेमरी स्कूल से प्राप्त की है और छटी कक्षा से बाहरमी तक कि पढ़ाई माध्यमिक विद्यालय से की है और फिर एक साल तक घर पे ही रही हूं मैं अपनी पढ़ाई आगे भी करना चाहतीं थीं पर घर वालों ने मना कर दिया था जिस की वजह से मैं एक साल तक घर पे ही रही और उस साल में मैंने सिलाई करना सीखा था और फिर मेरे भाई ने कहा कि अब तुम अपनी पढ़ाई आगे कर सके गई क्योंकि मैं तुम्हें आगे पढ़ने के लिए तेरा दाखिला हिसार के कोलेज में करवाउ गा जो भी खर्च होंगे गा सब में दुंगा। उस के बाद मेरा दाखिला हिसार के दयानंद कोलेज में हो गया। और अब मैं अपनी पढ़ाई दयानंद कोलेज से कर रही हूं कोलेज से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला है और घर से बाहर निकल कर पता चला कि बाहर की दुनिया कैसी है कैसे लोग उन की कैसी सोच है। अगर मेंरा भाई मुझे पढ़ने को लिए नहीं भेजता तो मुझे बहार की दुनिया के बारे में कुछ भी नहीं पता होता और ना ही कुछ सीखने को मिलता कोलेज में आने के बाद पता चला है कि दुनिया में कैसे लोग हैं और वे कैसी सोच रखते हैं। दयानंद कोलेज में मैंने बी अम सी में दाखिला लिया है और मैंने अपनी पढ़ाई दयानंद कोलेज से ही कर रही हूं। अब मैं फाइनल में हूं। कोलेज की पढ़ाई के साथ साथ में टूसन भी पढ़ाती थी बच्चे को पढ़ाने के साथ मुझे भी कुछ ना कुछ सीखने को मिला है और टउसन पढ़ने जो बच्चे आते थे उन में से कुछ बच्चे ऐसे थे जो अपनी फीस जमा नहीं करवा सकते थे मैं उन बच्चों को बिना फीस के भी पढ़ाती थी जिसे वो बच्चे पढ़ सकते थे। मैंने जिन बच्चों को पढ़ाया है उन में से बहुत बच्चे आज निवेदय में अपनी पढ़ाई कर रहे हैं। अब मैं टउसन तो नहीं पढ़ाती मेंरा कोई वजह है जिस की वजह से मैंने पढ़ना छोड़ दिया है पर मैं अपनी पढ़ाई कर रही हूं कोलेज की पढ़ाई करने को बाद में अपनी आगे की पढ़ाई युनिवर्सिटी से करीब गई। मुझे पढ़ना बहुत पसंद हैं और मैंने अपनी बी अम सी की पुस्तक को अलावा और भी पुस्तक पढ़ती हूं। मैंने अपनी कोलेज की पढ़ाई के साथ साथ कंपीटिशन तैयारी भी कर रही हूं। पुस्तक से भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है और हमें इन से सीखना चाहिए क्योंकि ये हमारे बहुत काम आएगी। अगर मेंरा भाई ना होता तो मैं आज कुछ भी नहीं सीखती जो मैंने कोलेज में और कोलेज से बाहर की दुनिया से सीखा है। मुझे जो अपनी जिंदगी में बनना है वो मे बन कर ही रहू गी। कितनी भी मेहनत करनी पड़ेगी तो मैं करुंगी क्योंकि मैंने कभी हार ना नहीं सीखा है हमेशा हार कर जितना सीखा है
Social blog 2
भारत में इस समय करोड़ों लोग बेरोज़गारी का सामना कर रहे हैं। कार्य अनुभव तथा आय के निश्चित क्षेत्र की अनुपस्थिति निर्धनता को जन्म देती हैं तथा इसके बाद निर्धनता व बेरोज़गारी का यह दुश्चव्र सदा चलता रहता है। बेहतर अवसरों की तलाश में युवा गाँव, प्रदेश अथवा देश से पलायन करते रहते हैं। ऐसे पलायन के फलस्वरूप उनका शोषण किये जाने का संकट बना रहता है। बेरोज़गारी की अधिकता से उनका शोषण किये जाने का संकट बना रहता है। बेरोज़गारी की अधिकता राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की प्रगति को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है।
युवाओं में बेरोज़गारी का मूल कारण अशिक्षा तथा रोज़गारपरक कौशल की कमी है। बेरोज़गारी व निर्धनता के निवारण का सबसे सशक्त माध्यम शिक्षा ही है। शिक्षा व्यापक अर्थों में लगभग हर सामाजिक-आर्थिक समस्या का समाधान बन सकती है, परंतु बेरोज़गारी निवारण में इसकी भूमिका अतुलनीय है। यदि भारत में शिक्षा तंत्र को जड़ से लेकर उच्चतम स्तर तक सशक्त बना दिया जाए तो बेरोज़गारी की समस्या का हल ढूँढना बेहद आसान हो जाएगा। यह ध्यान देने योग्य है कि प्राथमिक स्तर पर अवधारणा विकास तथा उच्च स्तरों पर रोज़गारपक कौशल विकास आधारित शिक्षा तंत्र को विकसित किया जाए।
प्राचीन समय में शिक्षा बिना किसी औपचारिक शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से दी जाती थी किंतु कालांतर में ‘शिक्षा’ संस्थाओं के माध्यम से दी जाने लगी। पहले मनुष्य प्रकृति, परिवेश एवं अपने अनुभवों तथा जीवन के संघर्षों के माध्यम से सीखता था। जब शिक्षा का संस्थानीकरण हुआ तो भेदभाव की भी शुरुआत हुई। हालाँकि शिक्षा सभी को समान रूप से प्रदान की जाती है लेकिन उसे ग्रहण करना व्यक्ति विशेष की मानसिक क्षमता पर निर्भर करने लगा। इससे सबकी योग्यताओं में भिन्नता आने लगी एवं ऐसे लोगों की संख्या में वृद्धि होने लगी। आगे चलकर जब उन्हें अपनी योग्यता अनुरूप कार्य नहीं मिला तो वे बेरोज़गार की श्रेणी में शामिल होते गए । हालाँकि शिक्षित या गैर-शिक्षित मनुष्य का बेरोज़गार होना ‘उत्पादन प्रणाली’ से जुड़ा हुआ मुद्दा माना जाता है। वर्तमान समय में शिक्षा सभी के लिये सुलभ नहीं है परंतु शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत भी रोज़गार प्राप्त नहीं हो रहा। इसलिये शिक्षा प्राप्त करने भर से रोज़गार मिलना ज़रूरी नहीं है। बेरोज़गारी एक सापेक्षिक अवधारणा है एवं शिक्षा द्वारा समझ विकसित की जाती है जिससे चेतना का आविर्भाव होता है। अतएव बेरोज़गारी एवं शिक्षा को दो भिन्न प्रकार से देखने की आवश्यकता है। बेरोज़गारी की समस्या का वास्तविक हल रोज़गार सृजन में ही निहित है।
भारत सरकार द्वारा ‘प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना’ के तहत युवाओं में कौशल निर्माण के उद्देश्य से जगह-जगह कौशल विकास केंद्रों की स्थापना की गई है। इन केंद्रों के माध्यम से विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षणों द्वारा युवाओं के कौशल का विकास किया जाता है। स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया जैसी योजनाएँ भी इस संदर्भ में उल्लेखनीय है। इन योजनाओं के तहत भारत में प्रौद्योगिकी आधारित उद्योगों को विभिन्न प्रकार के अनुदान तथा कर लाभ प्रदान किये जाते हैं। इन योजनाओं के माध्यम से सरकार का लक्ष्य देश को विनिर्माण गतिविधियों का हब बनाना है, जिसके लिये लाखों की संख्या में कौशल प्रशिक्षित युवाओं की आवश्यकता है। यदि इन योजनाओं को सुचारु रूप से संचालित किया जाए तो न केवल उच्च आर्थिक संवृद्धि दर प्राप्त की जा सकती है बल्कि काफी हद तक बेरोज़गारी की समस्या का भी समाधान किया जा सकता है।
शिक्षा बेरोज़गारी दूर करने का लगभग अकेला माध्यम है, परंतु यह भी सुनिश्चित व विनियमित किया जाना आवश्यक है कि कितने लोगों को गुणवत्तापरक शिक्षा प्रदान की जा रही है तथा शिक्षा प्राप्ति के बाद उनकी रोज़गार तक पहुँच सुनिश्चित हो पाती है या नहीं। शिक्षित बेरोज़गारी की समस्या उत्पन्न होने पर यह स्थिति राष्ट्र व अर्थव्यवस्था के लिये अच्छी नहीं मानी जाती। भारत वर्ममान में शिक्षित बेरोज़गारी की समस्या से ग्रस्त है। ऐसे में आगे बढ़ने के लिये अशिक्षितों को शिक्षा तथा शिक्षितों को उनकी क्षमता के अनुरूप रोज़गार दिलाने हेतु पर्याप्त प्रयास किये जाने चाहिये।
देखा जाता है कि सरकारी प्राइमरी स्कूलों में कक्षा पाँच के छात्रों के पास न्यूनतम सामान्य ज्ञान भी नहीं होता। इस तरह से प्राथमिक स्तर पर ही असमान शिक्षा प्रणाली दो भिन्न मानसिक स्तर एवं योग्यता वाले छात्रों को जन्म देती है, जिन्हें रोज़गार प्राप्त करने हेतु भविष्य में एक ही प्रतियोगी परीक्षा में प्रतिस्पर्द्धी बनना पड़ता है। सरकारी हाईस्कूल व इंटर कॉलेजों में पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम व उनमें पढ़ाने वाले अध्यापकों की योग्यता भी वर्तमान समय की मांग अनुरूप नहीं है। वहीं दूसरी तरफ सीबीएसई व आईएससी जैसे केंद्रीय बोर्डों से निकलने वाले छात्र अपेक्षित रूप से राज्य बोर्ड के छात्रों से कुशल व भिन्न सोच वाले होते हैं। इस तरह माध्यमिक स्तर पर भी असमान प्रतिभा व योग्यता वाले छात्रों का एक वर्ग तैयार हो जाता है।
ऐसे में आवश्यक है कि प्राथमिक स्तर से लेकर उच्च स्तर तक एक समान शिक्षा प्रणाली लागू की जाए। स्कूलों के विभिन्न स्तरों को समाप्त कर एक समान स्कूल प्रणाली अगर लागू कर दी जाए तो गरीब व अमीर परिवार दोनों के बच्चों की मानसिक योग्यता एक प्रकार की होगी। शिक्षण संस्थानों में पढ़ाने वाले अध्यापकों के लिये निरंतर मूल्यांकन प्रक्रिया का होना बहुत आवश्यक है। इसके अलावा शिक्षा संस्थानों को अत्याधुनिक संसाधनों जैसे- कंप्यूटर, प्रोजेक्टर, वाई-फाई अरि सुविधाओं से भी सुसज्जित होना चाहिये।
हम पाते हैं कि शिक्षा समाज में आमूलचूल परिवर्तन लाने में सक्षम एक अस्त्र है, परंतु उसे कारगर बनाने हेतु उसका कुशल संचालन तथा लक्ष्य तय करना आवश्यक है। शिक्षा को रोज़गार से जोड़कर बेरोज़गारी एवं अन्य कई सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का हल निकाला जा सकता है।
Social blog 1
करोना वायरस ने एक साल में दुनिया बदल दी है। लोग हफ्तों से घरों में बंद रहने को मजबूर हुए हैं। भारत में भी लंबा लॉकडाउन चला लेकिन खतरा अब भी टला नहीं है। घरों में बंद लोगों के पास कोरोना से जुड़ी सूचनाओं का सबसे तेज सोर्स सोशल मीडिया है, यही नहीं लोगों की हर सोशल मीडिया पोस्ट या एक्टिविटी कोरोना से या लॉकडाउन एक्टिविटी से जुड़ी हुई है। इसके कारण लोग सोशल मीडिया बर्न आउट के शिकार भी हो रहे रहे हैं।
दरअसल, सोशल मीडिया बर्न आउट सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग से उपजी स्थिति होती है। जब हर कुछ मिनटों में आप अपना अकाउंट और नोटिफिकेशन चेक करते हैं और अपेक्षाकृत नई सूचना या अपडेट न मिलने पर झुंझलाहट, निराशा और कई बार अवसाद का शिकार भी हो सकते हैं।
सोशल मीडिया बर्न आउट की एक और गंभीर स्थिति होती है, जब आप सही और गलत खबर के मध्य अंतर नहीं कर पाते हैं। कोविड 19 में भी यही हो रहा है। लोग संक्रमण के आकंड़ों, उपचार, व उससेे जुड़ी खबरों को फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सप्प पर सर्च कर रहे हैं तथा शेयर कर रहे हैं और इससे इतना अधिक डाटा उत्पन्न हो रहा है कि यूजर के समक्ष सही-गलत, रियल- फेक के अंतर को समझने की चुनौती उत्पन्न हो रही है।
जहां एक तरफ समाज, करोना वायरस के कारण उत्पन्न हुई विभिन्न जनस्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था से संबंधित समस्याओं से जूझ रहा है वहीं उसे अब फेक न्यूज के कारण विभिन्न मनोवैज्ञानिक और सामजिक ताने बाने को चोट पहुंचाने वाली नई समस्याओं से भी जूझना पड़ रहा है। इस समस्या से हम अनुशासन, संयम और बुद्धिमत्ता से पार पा सकते हैं।
हमें यह समझना होगा की सोशल मीडिया कितनी भी तेज गति से चले, करोना से संबंधित अपडेट और जानकारियां अपनी गति से चलेंगी। सामान्यतः दिन में एक या दो बार सरकार के स्तर से अधिकृत सूचनाओं को जारी किया जाता है। इन्हीं सूचनाओं को विभिन्न माध्यम से दिनभर अलग-अलग कोणों से परोसते हैंं।
सामान्य रूप से आप दिन में एक दो बार स्वास्थ्य विभाग की वेबसाइट या सोशल मीडिया अकाउंट देख सकते हैं, जहां आपको अपने राज्य और पूरे देश की स्थिति पता चल सकती है। फेसबुक और ट्विटर दोनों ही माध्यमों में अधिकृत सरकारी स्रोतों, विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा दी गई जानकारी फ्लैग करके या डैशबोर्ड बनाकर प्रदर्शित की जा रही है।
अभी भारत सरकार ने कोविड इंडिया सेवा नामक ट्विटर हैंडल शुरू किया है। आज के समय में प्रामाणिक और विस्तृत सूचना का सबसे बढ़िया स्रोत आपका अखबार है, जिसके पास बिना किसी हड़बड़ी के पूरे दिन सूचनाओं को वेरिफाई और क्रॉस वेरिफाई करने का टाइम होता है। इसके साथ ही सोशल मीडिया और व्हाट्सएप पर कोविड संक्रमण से जुड़ी हर सूचना को उसके स्रोत के आधार पर वर्गीकृत करें, चाहे वह करोना से संबंधित किसी इलाज की खबर हो या किसी व्यक्ति या वर्ग विशेष से जुड़ी कोई खबर, उसकी सत्यता को जानने का प्रयास करें।
याद रहें कोई भी बड़ी और महत्वपूर्ण घटना मुख्यधारा की मीडिया से छुपी नहीं रह सकती। यदि आप स्वयं खबर को वेरिफाई नहीं कर पा रहे हैं तो उस खबर को किसी अखबार या प्रतिष्ठित मीडिया की वेबसाइट पर तलाशने की कोशिश करिए।
याद रखिए इस संकट काल में फेक न्यूज हमारी समस्याओं में इजाफा करने का काम करेंगी। सोशल मीडिया बर्न आउट से बचने के लिए अपने सोशल मीडिया के उपयोग को नियंत्रित करिए, हर समय नोटिफिकेशन या टाइम लाइन चेक करने की आदत से बचिए।
सोशल मीडिया पर क्या पोस्ट कर सकते हैं, हर समय इस विचार से बाहर आने की कोशिश करिए। लॉकडाउन में बहुत से अच्छे और रचनात्मक कार्य कर सकते हैं, लेकिन हर बात सोशल मीडिया पर शेयर करने की आवश्यकता नहीं है।
इससे आप अपने अच्छे कार्य का परिणाम सोशल मीडिया पर प्राप्त होने वाले लाइक्स और शेयर्स से जोड़ कर देखने लगते हैं और फिर अपेक्षाकृत परिणाम न मिलने पर अवसाद का शिकार होने का खतरा है। अच्छी किताबें पढ़िए, बागवानी करिए, परिजनों के साथ समय बिताइए, कुछ लिखिए लेकिन सोशल मीडिया बर्न आउट से खुद को बचाइए।
Political blog 2
खालिस्तान आंदोलन के फिर से उभरने का डर पूरी तरह कभी खत्म नहीं हुआ था और हमेशा छाया में दुबका रहता था।
सिख डायस्पोरा में दूसरी पीढ़ी, जिसे भारत में रहने का शायद ही कोई वास्तविक समय का अनुभव था, भारत की सांस्कृतिक गतिशीलता, अंतर-धार्मिक सद्भाव और विविधता की समझ का अभाव था। अलगाववादी आंदोलन के दौरान भारत में सिखों के साथ हुए अन्याय और हत्याओं के बारे में सिख चरमपंथी नेताओं और आईएसआई द्वारा इंजीनियर किए गए राजनीतिक रूप से प्रेरित प्रचार पर उनका पोषण हुआ है। झूठी प्रचार मशीन भी झूठ पर पनपती है कि अब भी भारत में सिखों को भारतीय राज्य और हिंदू राष्ट्रवादी दलों के हाथों भारत में दमन का सामना करना पड़ रहा है।
वे बब्बर खालसा इंटरनेशनल (BKI), खालिस्तान कमांडो फोर्स (KCF) और इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन (ISYF) जैसे प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों के सदस्य हैं। अक्टूबर 2018 में अमेरिका की राष्ट्रीय आतंकवाद-विरोधी रणनीति का अनावरण किया गया, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया कि बब्बर खालसा आतंक और हिंसा के माध्यम से एक स्वतंत्र सिख राज्य स्थापित करना चाहता है। पंजाब में सिख उग्रवाद को कुचलने के बाद, ऊपर उल्लिखित समूहों ने खुद को काफी हद तक लो-प्रोफाइल सक्रियता तक सीमित कर लिया था। हालाँकि, 2015 से खालिस्तान आंदोलन फिर से बढ़ रहा है। आंदोलन के दूसरे अवतार में अब कहीं अधिक प्रभावशाली सिख प्रवासी हैं जो रसद सहायता प्रदान कर रहे हैं। इसमें पारंपरिक खालिस्तान नेटवर्क के अलावा SFJ और कनाडा स्थित पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन (PJF) जैसे संगठन शामिल हैं। उनका प्रचार, जो उनके देशों में गुरुद्वारों के माध्यम से भी किया जाता है, मुख्य रूप से ऑपरेशन ब्लू स्टार और इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए सिख विरोधी दंगों के आसपास बनाया गया है। जानकार सूत्रों से संकेत मिलता है कि सिख चरमपंथी समूह सक्रियतावाद से आगे बढ़ चुके हैं और हिंसक गतिविधियों में लिप्त होने लगे हैं।
पिछले छह वर्षों में, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और हिंदुत्व नेताओं की हत्याओं और सिख प्रचारकों पर हमलों सहित 20 से अधिक घटनाओं को खालिस्तान अलगाववादियों से जोड़ा गया है। इस तरह के हमले पंजाब में वैमनस्य बोने के लिए किए जा रहे हैं और लंबे समय से मृत खालिस्तान आंदोलन के भूत को अब पुनर्जीवित करने की कोशिश की जा रही है, ज्यादातर विदेशों से।
जैसा कि खालिस्तानी कारण का पंजाब में बहुत कम प्रभाव है, खालिस्तानी चरमपंथियों के पाकिस्तान के समर्थन में कनाडा और कुछ अन्य देशों में स्थित चरमपंथियों का लाभ उठाना शामिल है, जिसमें आतंकवाद से जुड़े समर्थक भी शामिल हैं।
पाकिस्तानी प्रतिष्ठान भारतीय हितों को लक्षित करने के लिए सिख चरमपंथी समूहों और पाकिस्तान स्थित इस्लामी संगठनों के साथ-साथ कश्मीर केंद्रित आतंकवादी समूहों के बीच एक समझ बनाने की कोशिश कर रहा है।
आईएसआई पंजाब और जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती इलाकों में हथियारों और ड्रग्स को उतारने के लिए 2019 से ड्रोन का इस्तेमाल कर रही है। सितंबर 2019 से ड्रोन-आधारित खेप के कम से कम एक दर्जन मामलों का पता चला है।
किसानों का विरोध, जो पहली बार पिछले सितंबर में पंजाब में फूटा था, सिख डायस्पोरा के वर्गों के लिए एक प्रमुख रैली स्थल बन गया। हो सकता है कि विरोध प्रदर्शनों ने आईएसआई और कुछ उत्तरी अमेरिकी समूहों को उनके प्रचार के लिए सोशल मीडिया और वेब चैनलों का उपयोग करके खालिस्तान भावना को पुनर्जीवित करने के लिए एक स्प्रिंगबोर्ड दिया हो। किसान संगठनों ने खालिस्तान समर्थकों को अपने आंदोलन से बाहर रखने की कोशिश की है, लेकिन शायद पूरी सफलता नहीं मिली है।
पंजाब में उग्रवाद के पुनरुत्थान का मुकाबला करने के लिए कई मोर्चों पर कार्रवाई करने की आवश्यकता है। इनका विवेचन इस प्रकार किया गया है:-
1.पंजाब में उग्रवाद के 'पुनरुत्थान' का प्रमुख कारण विदेशों में स्थित सिख संगठनों का समर्थन है।
खुफिया एजेंसियों को पुख्ता सबूत तलाशने चाहिए और इन फ्रंट संगठनों को पंजाब में उग्रवादियों से जोड़ना चाहिए। इन संगठनों के वरिष्ठ नेतृत्व को प्रत्यर्पित कर भारत में आजमाया जाना चाहिए। साथ ही उनकी संपत्तियों को जब्त किया जाए। विदेश मंत्रालय को और अधिक सक्रिय होने की आवश्यकता है और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी उपस्थिति का दावा करना चाहिए। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के तमाम प्रयासों के बाद भी इनमें से अधिकांश संगठन और उनके नेता हानिकारक रूप से प्रभावित नहीं हो पा रहे हैं।
भारतीय राजनयिकों को उन देशों के साथ बेहतर संबंध और नेटवर्क विकसित करने चाहिए जहां ये संगठन आधारित हैं। भारत के कारण का समर्थन करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में एक अनौपचारिक समूह का गठन किया जाना चाहिए। साथ ही, खालिस्तान समर्थकों के कुछ समूहों को खालिस्तान समर्थक समूहों के प्रचार का मुकाबला करने के लिए भारतीय खुफिया एजेंसियों द्वारा सहारा दिया जा सकता है।
एसएफजे जैसे संगठनों पर प्रतिबंध लगाने के अलावा, भारतीय राजनयिकों को अपने समकक्षों के साथ जुड़ने और यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि ऐसे संगठनों को कोई समर्थन नहीं दिया जाए। भारत की नाराजगी को स्पष्ट शब्दों में उन सभी देशों तक पहुँचाया जाना चाहिए जो किसी भी तरह से खालिस्तान आंदोलन को बढ़ावा देने में मदद करते हैं।
विदेश मंत्रालय को भारत के मामले को मजबूत और स्पष्ट बनाने के लिए भारतीय सुरक्षा एजेंसियों द्वारा तैयार किए गए डोजियर को अपने समकक्षों को प्रस्तुत करना चाहिए।
इसके अलावा, हमें आईएसआईएस जैसे इस्लामी संगठनों के खिलाफ हमारे समर्थन के बदले में इन देशों, विशेष रूप से कनाडा, ब्रिटेन और जर्मनी से मुआवज़े पर जोर देना चाहिए।
भारतीय खुफिया एजेंसियों के पास भी आईएसआई की जनसंपर्क शाखा आईएसपीआर की तर्ज पर कुछ होना चाहिए।
2. उग्रवाद के मामलों से निपटने के लिए, हमारे पास पंजाब में एक एकीकृत कमांड सेंटर होना चाहिए जिसमें आईबी, रॉ, एनआईए, सैन्य खुफिया और पंजाब पुलिस शामिल हों। यह निश्चित रूप से सूचना के तत्काल प्रसार और संबंधित एजेंसियों से बहुत तेज प्रतिक्रिया में मदद करेगा। विशेष रूप से विदेशी सामग्री प्रदाताओं के डेटा और मेटाडेटा की निगरानी और नियंत्रण के लिए विशेषज्ञों की भर्ती की जानी चाहिए। संदिग्धों की गतिविधियों और गतिविधियों का पता लगाने के लिए युवा लोगों, साइबर युद्ध और हैकिंग के विशेषज्ञों को काम पर रखा जा सकता है। संदिग्ध व्यक्तियों या समूहों के बैंकिंग और वित्तीय लेन-देन की लगातार निगरानी की जानी चाहिए।
सुरक्षा एजेंसियों के पास विशेष रूप से साइबर उपकरण और उपकरण खरीदने के लिए धन होना चाहिए। उन्हें न केवल अपने कुछ आदमियों को प्रशिक्षित करना चाहिए बल्कि साइबर प्रौद्योगिकी में काम करने वाले विशेषज्ञों को भी नियुक्त करना चाहिए।
व्हाट्सएप, फेसबुक और अन्य एप्लिकेशन कंपनियों को कानून प्रवर्तन एजेंसियों को तत्काल प्रासंगिक जानकारी प्रदान करने के लिए जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए।
सोशल मीडिया पर झूठी सिख पहचान का उपयोग करने वाले नकली प्रोफाइल को तुरंत ब्लॉक किया जाना चाहिए और इसका प्रति-प्रचार किया जाना चाहिए।
यदि आवश्यक हो, तो फोन डेटा के साक्ष्य को स्वीकार करने के लिए कुछ कानूनी संशोधन लाए जा सकते हैं।
3. खालिस्तानी गुटों और उनके समर्थकों ने असंतुष्ट लोगों, विशेषकर पंजाब के युवाओं के बीच असंतोष के बीज बोते हुए एक झूठी कहानी बुनी है। वे विभिन्न मंचों का उपयोग कर रहे हैं और फेसबुक, ट्विटर और यहां तक कि क्लब हाउस जैसे सोशल मीडिया पर विशेष रूप से प्रभावी रहे हैं। हमें इन सभी प्लेटफॉर्म्स और सोशल मीडिया पर सक्रिय उपस्थिति बनाकर इस नैरेटिव का मुकाबला करने की जरूरत है। विदेशों में तैनात भारतीय सरकार के प्रतिनिधियों को केंद्र और राज्य दोनों सरकारों द्वारा पंजाब राज्य में किए गए कार्यों के पक्ष में लेख प्रकाशित करने के लिए वैश्विक थिंक टैंक, प्रकाशन गृहों, समाचार एजेंसियों के साथ संबंध विकसित करने चाहिए। यहां तक कि बड़ी संख्या में प्रवासी भारतीय भी भारतीय राज्य के बारे में सकारात्मक जानकारी के प्रसार को बढ़ा सकते हैं। सिखों द्वारा आयोजित किए जा सकते हैं सेमिनार,
पंजाब के गौरवशाली अतीत और उज्ज्वल भविष्य के बारे में बोलने के लिए स्पष्टवादी, अधिमानतः सिख और पंजाबी व्यक्तियों को नियुक्त करने के लिए एक अलग बजट निर्धारित किया जाना चाहिए। झूठे आख्यान का मुकाबला करने के लिए एक सतत अभियान होना चाहिए। सरकार को देशी मीडिया में अधिक निवेश करना चाहिए।
दुर्भाग्य से, कई बार मीडिया ने 'खालिस्तान' के बारे में अनावश्यक प्रचार और सुप्त मुद्दे को विश्वसनीयता देने के बारे में बहुत कुछ कहा है। मीडिया को निश्चित रूप से खालिस्तान के बारे में अपनी चर्चाओं को कम करना चाहिए और जितना हो सके 'क' शब्द का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए।
4.पंजाब भारत के सबसे अमीर राज्यों में से एक था, लेकिन विभिन्न कारणों से, यह पिछड़ गया, जबकि भारत ने 2000 के दशक की शुरुआत में और प्रगति की। पंजाब के युवाओं ने आधुनिक भारतीय अर्थव्यवस्था में अधिक भाग नहीं लिया। युवा खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे थे। उनमें से कई मादक पदार्थों की लत के शिकार हो गए और उनमें से कुछ उग्रवाद की ओर भी आकर्षित हुए। बेरोजगार, असंतुष्ट नौजवानों के दिमाग में सत्ता विरोधी विचार प्रक्रिया के बीज बोने की उर्वर जमीन थी।
इसलिए, उद्योगों को पुनर्जीवित करने की तत्काल आवश्यकता है, विशेष रूप से पंजाब में कृषि से संबंधित। मुसीबत के हॉट स्पॉट पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। युवाओं को सार्थक रूप से रोजगार देना होगा। लगभग निष्क्रिय पर्यटन उद्योग को समर्थन देना होगा। स्किल इंडिया मिशन और अन्य सरकारी योजनाओं के माध्यम से युवाओं को प्रशिक्षण देना है। राज्य सरकार को लोगों को नए व्यवसाय और स्टार्ट अप शुरू करने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करना चाहिए, विशेष रूप से नए युग की अर्थव्यवस्था से संबंधित। केंद्र और राज्य के बीच काफी बेहतर तालमेल होना चाहिए। केंद्र सरकार की ओर से प्रोत्साहन और पैकेज निश्चित रूप से पंजाब के लोगों को उत्साहित करेंगे और इस भावना को कम करेंगे कि केंद्र द्वारा पंजाब के साथ सौतेला व्यवहार किया गया था।
5. पंजाब लंबे समय से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों के खिलाड़ी पैदा करने के लिए जाना जाता था। स्कूलों से लेकर कॉलेजों तक खेलों की संस्कृति को विकसित करना होगा। अधिक खेल विश्वविद्यालयों की स्थापना की जानी चाहिए। CAPFS, राज्य पुलिस और विभिन्न सरकारी संगठनों में खेल कोटा के माध्यम से अधिक भर्ती होनी चाहिए। यह कदम निश्चित रूप से युवाओं को खेलों की ओर आकर्षित होने के लिए प्रेरित करेगा। विभिन्न अर्धसैनिक बलों और सेना को लोगों को, विशेषकर सीमावर्ती आबादी के युवाओं को प्रशिक्षित करना चाहिए ताकि वे इन बलों की भर्ती परीक्षाओं के लिए अर्हता प्राप्त कर सकें।
सरकार को सभी देश विरोधी तत्वों के राजनीतिक संरक्षण पर कड़ा प्रहार करना चाहिए। बेईमान राजनेताओं, पुलिसकर्मियों और राष्ट्र विरोधी तत्वों के गठजोड़ को नष्ट करना होगा। अगर पुलिस को फ्री हैंड दिया जाए तो ड्रग सिंडिकेट को ध्वस्त किया जा सकता है। दूसरी ओर, अगर हम खालिस्तानी समर्थक समूहों को हाशिए पर लाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल करने में कामयाब होते हैं, तो पंजाब में उग्रवाद के पुनरुत्थान को कली में ही उखाड़ा जा सकता है।
खालिस्तान के विचारकों को महिमामंडित करने का प्रयास एक तरफ, आंदोलन का जमीन पर बहुत कम प्रभाव है। खालिस्तान एक विचार है, और एक विचार कभी मरता नहीं है। सिखों में एक छोटा वर्ग है जो इसका प्रचार करता है। लेकिन पंजाब में आंदोलन की कोई गूंज नहीं है।
सर्वोच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक सच्चाई और सुलह आयोग, सिख विरोधी दंगों के पीड़ितों और गवाहों के खातों का दस्तावेजीकरण कर सकता है।
यदि [ऑपरेशन] ब्लू स्टार को बंद कर दिया जाता है और 1984 के सिख विरोधी दंगों के 3,000 पीड़ितों के लिए न्याय सुनिश्चित किया जाता है, तो यह सिख समुदाय को आगे बढ़ने की अनुमति देगा; अन्यथा, खालिस्तान का भूत निहित स्वार्थों के शोषण का एक उपकरण बना रहेगा।
हिन्दोस्तानी राज्य को पंजाब के असंतुष्ट लोगों के दिल और दिमाग को फिर से जीतना होगा। लोगों का विश्वास जीतना ही इस दीर्घकालिक संकट का एकमात्र वास्तविक दीर्घकालिक समाधान है
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भारत सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा है कि वह समान-लिंग विवाह का विरोध करती है, यह तर्क देते हुए कि ऐसे विवाह 'भारतीय परिवार इकाई' के साथ 'संगत' नहीं होंगे, और 'स्पष्ट रूप से भिन्न' वर्गों के साथ समान व्यवहार नहीं किया जा सकता है। इस पर कार्यपालिका और विधायिका के विचार भारतीय समाज की अधिकांश परंपरावाद और रूढ़िवाद से काफी हद तक अवगत हैं। लेकिन लोकप्रिय समर्थन के साथ या उसके बिना मौलिक अधिकारों को बनाए रखना एससी का काम है। सीजेआई ने खुशी से कहा है कि "परिवार इकाई की असामान्य अभिव्यक्ति" कानूनी संरक्षण के लायक है।
दुनिया के कुछ हिस्सों में पहले से ही कानूनी रूप से विवाह समानता स्थापित है। धार्मिक नेता भी झुक गए हैं - आयरलैंड जैसे कट्टर धार्मिक देशों ने जनमत संग्रह के बाद समलैंगिक विवाह को वैध कर दिया है, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसी जगहों पर बहुमत की राय झूल गई है। ताइवान की अदालतों ने इसे वैध कर दिया है, और यहां तक कि जापान में भी, जहां समलैंगिक विवाह अवैध है, 256 नगर पालिकाओं और 12 प्रान्तों में 'साझेदारी शपथ प्रणाली' है। समान-लिंग विवाह को वैध बनाने पर रोक लगाने वाले अन्य अधिकार क्षेत्र पंजीकृत नागरिक संघों या घरेलू भागीदारी की अनुमति देते हैं, जो किसी धार्मिक मान्यता की तलाश नहीं करते हैं, लेकिन एक कानूनी जोड़े के अधिकांश अधिकारों और जिम्मेदारियों को लाते हैं - एक अस्पताल के बिस्तर पर होना, पालना और उठाना एक साथ बच्चे, संपत्ति के मालिक और उत्तराधिकारी या एक साथ बैंक खाते का संचालन करने के लिए, कर या आप्रवासन के मामलों में परिवार के रूप में गिने जाते हैं,
ये नागरिक संघ, जो यौन अभिविन्यास या लिंग की परवाह किए बिना किसी पर भी लागू हो सकते हैं, फ्रांस और उत्तरी यूरोप जैसे स्थानों में पारंपरिक विवाह से अधिक लोकप्रिय हैं। यह कुछ ऐसा है जो भारत की अदालतों और सांसदों को गंभीरता से अध्ययन करना चाहिए। वास्तव में, यदि राजनीतिक वर्ग क्वीर विवाह की धारणा से परेशान है, तो उसे सिविल यूनियन को एक स्मार्ट समाधान के रूप में देखना चाहिए। और विवाह समानता की मांग करने वाले भी इसे एक कदम आगे बढ़ने के रूप में देख सकते हैं।
भारत में विशेष विवाह अधिनियम है, एक नागरिक कानून जो प्रत्येक धार्मिक समुदाय के व्यक्तिगत कानूनों के बाहर संचालित होता है। इस बात पर कोई तर्क नहीं दिया जा सकता है कि यह अधिनियम सभी वर्गों के नागरिकों को विवाह करने का अधिकार प्रदान करता है। लेकिन दमघोंटू सामाजिक रूढ़िवादिता एक ऐसी सच्चाई है जिसे राजनेता नज़रअंदाज़ नहीं करेंगे। इसलिए, सिविल यूनियन एक अच्छी शुरुआत हो सकती है। और न सिर्फ समलैंगिक जोड़ों के लिए। लिव-इन हेट्रोसेक्शुअल कपल्स के पक्ष में SC को कई बार दखल देना पड़ा है। सिविल यूनियन, इसलिए, अपने रिश्ते के लिए कानूनी आधार मांगने वाले किन्हीं दो लोगों के लिए एक विकल्प है।
मैंने अपनी शिक्षा पेमरी स्कूल से प्राप्त की है और छटी कक्षा से बाहरमी तक कि पढ़ाई माध्यमिक विद्यालय से की है और फिर एक साल तक घर पे ही रही हूं मैं अपनी पढ़ाई आगे भी करना चाहतीं थीं पर घर वालों ने मना कर दिया था जिस की वजह से मैं एक साल तक घर पे ही रही और उस साल में मैंने सिलाई करना सीखा था और फिर मेरे भाई ने कहा कि अब तुम अपनी पढ़ाई आगे कर सके गई क्योंकि मैं तुम्हें आगे पढ़ने के लिए तेरा दाखिला हिसार के कोलेज में करवाउ गा जो भी खर्च होंगे गा सब में दुंगा। उस के बाद मेरा दाखिला हिसार के दयानंद कोलेज में हो गया। और अब मैं अपनी पढ़ाई दयानंद कोलेज से कर रही हूं कोलेज से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला है और घर से बाहर निकल कर पता चला कि बाहर की दुनिया कैसी है कैसे लोग उन की कैसी सोच है। अगर मेंरा भाई मुझे पढ़ने को लिए नहीं भेजता तो मुझे बहार की दुनिया के बारे में कुछ भी नहीं पता होता और ना ही कुछ सीखने को मिलता कोलेज में आने के बाद पता चला है कि दुनिया में कैसे लोग हैं और वे कैसी सोच रखते हैं। दयानंद कोलेज में मैंने बी अम सी में दाखिला लिया है और मैंने अपनी पढ़ाई दयानंद कोलेज से ही कर रही हूं। अब मैं फाइनल में हूं। कोलेज की पढ़ाई के साथ साथ में टूसन भी पढ़ाती थी बच्चे को पढ़ाने के साथ मुझे भी कुछ ना कुछ सीखने को मिला है और टउसन पढ़ने जो बच्चे आते थे उन में से कुछ बच्चे ऐसे थे जो अपनी फीस जमा नहीं करवा सकते थे मैं उन बच्चों को बिना फीस के भी पढ़ाती थी जिसे वो बच्चे पढ़ सकते थे। मैंने जिन बच्चों को पढ़ाया है उन में से बहुत बच्चे आज निवेदय में अपनी पढ़ाई कर रहे हैं। अब मैं टउसन तो नहीं पढ़ाती मेंरा कोई वजह है जिस की वजह से मैंने पढ़ना छोड़ दिया है पर मैं अपनी पढ़ाई कर रही हूं कोलेज की पढ़ाई करने को बाद में अपनी आगे की पढ़ाई युनिवर्सिटी से करीब गई। मुझे पढ़ना बहुत पसंद हैं और मैंने अपनी बी अम सी की पुस्तक को अलावा और भी पुस्तक पढ़ती हूं। मैंने अपनी कोलेज की पढ़ाई के साथ साथ कंपीटिशन तैयारी भी कर रही हूं। पुस्तक से भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है और हमें इन से सीखना चाहिए क्योंकि ये हमारे बहुत काम आएगी। अगर मेंरा भाई ना होता तो मैं आज कुछ भी नहीं सीखती जो मैंने कोलेज में और कोलेज से बाहर की दुनिया से सीखा है। मुझे जो अपनी जिंदगी में बनना है वो मे बन कर ही रहू गी। कितनी भी मेहनत करनी पड़ेगी तो मैं करुंगी क्योंकि मैंने कभी हार ना नहीं सीखा है हमेशा हार कर जितना सीखा है
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Agroha Mandir
अग्रोहा हिसार जिले , हरियाणा, भारत के अग्रोहा में एक हिंदू मंदिर परिसर है । निर्माण 1976 में शुरू हुआ और 1984 में पूरा हुआ। मंदिर हिंदू देवी महालक्ष्मी को समर्पित है ।
अग्रोहा वह ऐतिहासिक स्थान है जहां प्राचीन काल में अग्रवाल समुदाय की उत्पत्ति हुई थी। 1194 में, अग्रोहा पर घोरी ने कब्जा कर लिया और अग्रोहा की बस्ती में गिरावट आई, और लोग पास के हांसी, हिसार, दिल्ली और अन्य स्थानों में बस गए। अग्रोहा वीरान हो गया।1907 में, एक तपस्वी ब्रह्मानंद ब्रह्मचारी एक अग्रोहा पहुंचे। उन्होंने अग्रवाल समाज के प्रतिनिधियों (पंचायत) को प्रेरित कर 1908 में अग्रवाल दरबार नामक समूह का गठन किया। एक गौशाला, एक शिव मंदिर और 18 सती मंदिर स्थापित किए गए। कलकत्ता के मारवाड़ी अग्रवाल जैसे ताराचंद घनश्यामदास ने परियोजना का समर्थन किया।
आधुनिक मंदिर के निर्माण का निर्णय 1976 में अखिल भारतीय अग्रवाल प्रतिनिधियों के सम्मेलन में लिया गया था। इस उद्देश्य के लिए श्रीकृष्ण मोदी और रामेश्वर दास गुप्ता के नेतृत्व में ट्रस्ट की स्थापना की गई थी। [4] भूमि लक्ष्मी नारायण गुप्ता द्वारा ट्रस्ट को दान की गई थी और निर्माण तिलक राज अग्रवाल की देखरेख में शुरू किया गया था। मुख्य मंदिर का निर्माण 1984 में पूरा हुआ जबकि अन्य सुविधाओं का निर्माण 1985 में सुभाष गोयल के अधीन शुरू हुआ।
अग्रोहा विकास ट्रस्ट मंदिर परिसर के निर्माण और रखरखाव के लिए जिम्मेदार मंदिर बोर्ड है। इसकी स्थापना 1976 में हुई थी।
शीला माता मंदिर अग्रोहा
मुख्य मंदिर को तीन विंग्स में बांटा गया है। केंद्रीय विंग हिंदू देवी महालक्ष्मी , पश्चिमी विंग देवी सरस्वती और पूर्वी विंग महाराजा अग्रसेन को समर्पित है ।
शक्ति सरोवर मंदिर परिसर के पीछे एक बड़ा तालाब है। यह 1988 में भारत की 41 नदियों के पानी से भर गया था। उत्तर-पश्चिम छोर पर एक मंच समुद्र मंथन के दृश्य को दर्शाता है । शक्ति सरोवर के पास एक प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र स्थित है , जहां योग के माध्यम से उपचार किया जाता है । परिसर के पास एक नौका विहार स्थल के साथ एक मनोरंजन पार्क बनाया गया है।
अग्रोहा भारत की सर्वश्रेष्ठ पहलवान गीतिका जाखड़ का जन्मस्थान है, जिन्होंने 2006 में दोहा में आयोजित एशियाई खेलों में रजत पदक जीता था, साथ ही एशियाई खेलों 2014 में कांस्य और राष्ट्रमंडल खेलों 2014 में रजत पदक जीता था।
मंडी आदमपुर (हिसार)। देश की राजधानी दिल्ली से 185 किलोमीटर की दूरी पर नेशनल हाईवे संख्या -9 पर हिसार जिले के गांव अग्रोहा का इतिहास महाभारत काल से रहा है। महाराजा अग्रसेन के द्वारा निर्मित इस गांव का इतिहास काफी पुराना है।
अग्रोहा धाम का निर्माण 1976 से प्रारंभ किया गया जो आज भी जारी है। अग्रोहा धाम को तीन भागों में बांटा गया है बीच वाला भाग मां लक्ष्मी व पूर्वी हिस्सा महाराजा अग्रसेन व पश्चिमी हिस्सा मां सरस्वती को समर्पित है। मंदिर के पिछले हिस्से में बारह ज्योर्तिलिंग से बना रामेश्वर धाम बना है। मंदिर के बीच में सरोवर का निर्माण किया गया है, जिसको 41 पवित्र नदियों के जल के साथ पावन किया गया है। वैसे तो हर रोज ही धाम में पर्यटकों का जमावड़ा लगा रहता है, लेकिन शरद पूर्णिमा के अवसर पर हर साल अग्रोहा धाम में मेला लगता है, जिसमें देशभर से लाखों पर्यटक धाम को देखने आते है।
अग्रवंशों का पावन धाम है अग्रोहा
अग्रवाल समाज अग्रोहा धाम को अपना पावन धाम मानता है। धाम में काफी दर्शनीय स्थल हैं, जिनमें मंदिर परिसर में कृष्ण लीला की झांकी, गजमुक्तेश्वर झांकी, जमीन के 15 फुट नीचे मां वैष्णो देवी गुफा, तिरुपति बालाजी, भैरवनाथ, बाबा अमरनाथ के साथ-साथ हनुमान जी की 90 फुट ऊंची प्रतिमा शामिल है।
अग्रोहा टीले में छिपा महाभारत काल का इतिहास
महाभारत के युद्ध के पश्चात महाराजा अग्रसेन द्वारा अग्रोहा को अपनी राजधानी बनाया गया। यहां कई एकड़ में फैले टीले की यदि खुदाई की जाए तो आज भी महाभारत कालीन अवशेषों को प्राप्त किया जा सकता है।
शक्ति सरोवर मंदिर परिसर के पीछे एक बड़ा तालाब है। यह 1988 में भारत की 41 नदियों से पानी से भर गया था। परिसर उत्तर-पश्चिम के अंत में समुद्र मंथन के दृश्य को दर्शाया गया है। एक प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र शक्ति सरोवर के पास स्थित है।
संग्रहालय बनाने की तैयारी:अग्रोहा थेह की खुदाई के लिए पुरातत्व विभाग ने 35 करोड़ का प्रोजेक्ट बनाया
अग्रोहा2 वर्ष पहले
पुरातत्व विभाग की टीम ने 20 जनवरी काे किया था अग्रोहा टीले पर सर्वे
अग्रोहा में संग्रहालय बनाने की तैयारियों शुरू हो चुकी हैं। अग्रोहा महाराजा अग्रसेन की राजधानी होने के कारण हिसार का नाम पूरे विश्व में हुआ है।अग्रोहा न जाने कितने बार उजड़ा कितने बार बसा है। यहां पर मुगल, अंग्रेज, मराठा आदि ने आक्रमण किए। अग्रोहा का पुराना इतिहास बहुत लंबे समय से एक थेह के रूप में दबा है। इसे पुरातत्व विभाग ने अपने अधीन कर रखा है।
पुरातत्व विभाग अब इस टीले की खुदाई की योजना बनाकर काम शुरू करने जा रहा है, ताकि पुराने अवशेषों को एकत्रित किया जा सके। यहां पर बड़े संग्रहालय का निर्माण कर अवशेष को रखा जाएगा। इसके लिए अग्रवाल समाज और सरकार ने व्यापक तैयारियां कर ली हैं। पुरातत्व विभाग की टीम ने 20 जनवरी काे डीजी डॉ प्रवीण कुमार के नेतृत्व में अग्रोहा टीले पर सर्वे करने के लिए पहुंची थी। इसके तकनीकी सहायक शुभम, रविकांत ने टीले पर सर्वे किया। इस टीले काे पुरातत्व विभाग ने 13 जनवरी 1926 की अधिसूचना संख्या 20590 के तहत अधीन कर लिया था। अग्रोहा थेह की खुदाई सबसे पहले अंग्रेजी शासकों ने 1888-89 के दौरान पंजाब प्रांत के पुरातत्व सर्वेक्षक सिटी राजसर ने 16 फुट गहरी खुदाई करवाई थी। उसके बाद उत्खनन का कार्य लंबे रुका रहा।
1938 -39 में अग्रोहा के विशाल टीले के एक भाग के उत्खनन कार्य पुन: प्रारंभ हुआ। टीले की ऊपरी सतह पर ही प्राचीन काल के ईंटों के टुकड़े व अन्य सामग्रियां बिखरी पड़ी थी। गहरी दरारों से ईंटों की दीवारें दिखाई देती थी। जिस पर पुरातत्व विभाग ने खुदाई के बाद पुरानी दीवारों को सुरक्षित रख लिया है। खुदाई के दौरान रोमन सभ्यता के अवशेष मिले हैं फिरोज शाह तुगलक के किले में लगा अशोक का 234 बीसी का पिलर भी अग्रोहा टीले से मिला था।
पुरातत्व विभाग की महानिदेशक डॉ. प्रवीण कुमार ने बताया कि अग्रोहा टीले की खुदाई के लिए केंद्र व राज्य सरकार के सहयोग से पुरातत्व विभाग ने लगभग 35 करोड़ की लागत से कार्य शीघ्र ही शुरू करने जा रही है। आईआईटी कंपनी को एक करोड़ 85 लाख रुपए में खुदाई का ठेका दिया है। जो टीले की खुदाई धरातल से 80 फीट लगभग 220 एकड़ में करेगी। प्रोजेक्ट के लिए भारत सरकार की इजाजत मिल चुकी है। जल्दी अमलीजामा पहनाया जाएगा।
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