Nashik Baptist Church

Nashik Baptist Church

We are a baptist church in our doctrine, and reforming in our nature. The Bible is the basis for what we believe, teach, and practice.

Nashik Baptist Church is a Bible-teaching, Bible-preaching ministry with a growing passion to be God-centered in all we do. We exist to glorify God by making disciples of the Lord Jesus Christ and to boast in the greatness of our Savior through the gospel of Christ. We are committed to making known the name of our Lord Jesus Christ and proclaiming His Word in our community and the world. We long to see lives transformed by God’s sheer grace and would love to have you join us in this mission.

09/05/2024

Join us. Everyone is welcome.

18/04/2024

आता मराठीत उपलब्ध आहे

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01/01/2024

1 January

नवीन वर्षासाठीं कृपा

तरी जो कांही मी आहें तो देवाच्या कृपेनें आहें आणि माझ्यावर त्याची जी कृपा झाली आहे ती व्यर्थ झाली नाहीं; परंतु ह्या सर्वांपेक्षां मीं अतिशय श्रम केले, ते मीं केले असें नाहीं, तर माझ्याबरोबर असणार्‍या देवाच्या कृपेनें केले. (1 करिंथकरांस 15:10).

कृपा म्हणजे देवाचा केवळ स्वभावगुण नव्हे ज्याद्वारे तो आमची लायकी नसतांनाहि आमच्यासाठीं काहीतरी चांगले घडवून आणतो. तर ती देवा कडून असलेलें वास्तविक सामर्थ्य आहे जें सतत आमच्या ठायीं आणि आमच्यासाठीं कृति करते व आमच्या ठायीं आणि आमच्यासाठीं उत्तम अशा गोष्टी घडवून आणते.

पौलाला अतिशय श्रम करण्यासासाठीं चालना मिळावी म्हणून देवाची कृपा पौलाच्या ठायीं देवाची कृति साधून देत होती: “देवाच्या कृपेनें . . . ह्या सर्वांपेक्षां मीं अतिशय श्रम केले.” म्हणून जेव्हा पौल म्हणतों, “भीत व कांपत आपले तारण साधून घ्या,” तो पुढे असेहि म्हणतो, “कारण इच्छा करणें व कृति करणें हे तुमच्या ठायीं आपल्या सत्संकल्पासाठीं साधून

देणारा तो देव आहे” (फिलिप्पै 2:12-13). कृपा ही देवापासून येणारे सामर्थ्य आहे जे आमच्या ठायीं आणि आमच्यासाठीं उत्तम अशा गोष्टी घडवून आणते.

आम्हांवर ही कृपा गतकाळात झाली आणि ती भावी काळातहि होणार आहे. ती वर्तमान समयाच्या अमर्याद झऱ्यावर सतत होणारा वर्षाव आहे, तो झरा तर भविष्यातून आमच्याकडे वाहत येणाऱ्या कृपेच्या अक्षय नदीतून वाहत आम्हांवर गतकाळात झालेल्या कृपेच्या सतत वाढत जाणाऱ्या जलाशयात भरती करतो.

पुढच्या पाच मिनिटांत, तुमच्या आत्म्याचे पोषण करणारी कृपा तुम्हांला प्राप्त होईल जी तुमच्याकडे भावीकाळातून वाहत येते, व तसेच तुम्हीं गतकाळाच्या कृपेच्या जलाशयात आणखी पाच मिनिटांची कृपा साठवून ठेवाल. गतकाळात तुम्हांवर झालेल्या कृपेला योग्य प्रतिसाद म्हणजे देवाचे आभार मानणे, आणि भविष्यात तुम्हांवर होणाऱ्या कृपेच्या

अभिवचनाला योग्य प्रतिसाद म्हणजे विश्वासात स्थिर राहणे. गेल्या वर्षाच्या गतकाळातील आम्हांवर झालेल्या कृपेबद्दल आम्हीं देवाचे आभार मानतो, आणि ह्या नवीन वर्षासाठीं सुद्धा

तो आम्हांला भविष्यातील कृपा पुरवेल असा आम्हीं विश्वास धरितो.
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Gospel of Jesus Christ (100 Pack) - Alethia Books 06/11/2023

Paul Washer - Gospel of Jesus Christ
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Sharing the Gospel of Jesus Christ is crucial to our faith as Christians. The Good News can help others find salvation and eternal life. Use this resource to share the gospel with new visitors in your church or your neighbours who live close to you or even your family members who have yet to hear the good news. Click on the link to place your order:

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07/04/2023

Good Friday church service at Church hall (Sadguru Mangal Karyalay, Dusak Stop, Jailroad, Nashik Road @ 10:00AM.

Subject :My Lord My Lord why have You forsaken Me!
Speaker: Ps. Nilesh Hiwale.

Thank you.

08/11/2022

नीतिवचन 8:15

मुझ से राजा राज्य करते हैं; और राजपुत्र न्याय का आदेश देते हैं।

सुलैमान ने कुलीन महिला-बुद्धि के साथ, जो बुद्धि का मानवीकरण है, राजनीतीशास्त्र की शिक्षा दी। यहां महिला-बुद्धि ही वक्ता है (नीतिवचन 8:1-36)। उसने सिखाया कि भले राजाओं और राजपुत्रों के पास वह होनी ही चाहिए ताकि वे मनुष्यों पर उनके पदों द्वारा निर्धारित कार्यों को उचित रीति से अमल में ला सके। यहां राष्ट्र के अगुवों के लिए अनमोल बुद्धि है।

महान राष्ट्रों के पास महान अगुवे, कानून और कानूनी प्रणालियां होती हैं। उनकी महानता प्रत्येक नागरिक के लिए न्याय को लागू करने और अमल में लाने के लिए बुद्धि प्राप्त रानैतिक शासकों पर निर्भर करती है। उनकी बुद्धि परमेश्वर के उनके भय और परमेश्वर के वचन में ईश्वर-प्रेरित निर्देशों से आती है।

बुद्धिहीन राजा अत्याचारी होता है, क्योंकि उसे राज्य के उसके शासन का न्यायपूर्ण रूप से संचालन करने हेतु बुद्धि की आवश्यकता होती है (नीतिवचन 28:16)। अनेक राजाओं ने बिना बुद्धि के शासन किया है, परंतु वे अच्छे राजा नहीं थे; बहुत से राजपुत्रों ने नियम तो बनाए, परंतु वे अच्छे या धर्मी नियम नहीं थे।

सुलैमान ने अपने और अपने पिता के समान भक्तिमान एवं धर्मी राजाओं के विषय में लिखा। जब वह कहता है कि दुष्टता करना राजाओं के लिये घृणित काम है (नीतिवचन 16:12), तो उसने केवल अच्छे राजाओं का वर्णन किया, क्योंकि कई राजा अत्यंत दुष्ट थे। उसने भक्तिमान राजाओं के लिए सच्ची बुद्धि के विषय में लिखा।

नीतिवचन में एक पदलोप है - संदर्भ द्वारा निहित शब्द जो लापता हैं और जिन्हें सावधान पाठक सरल रूप से समझ लेते हैं। लापता शब्द की आपूर्ति दूसरे खंड में की गई है - न्याय। पहले खंड में सुलैमान ने किसी प्रकार के राजा के विषय में नहीं सोचा था; उसने अच्छे राजाओं के बारे में लिखा जो बुद्धि और विवेक से न्याय और धार्मिकता के साथ शासन करते हैं। अच्छे शासक बनने के लिए अच्छे राजाओं में बुद्धि होनी चाहिए।

सुलैमान ने अपने आप को एक अत्यंत बुद्धिमान राजा साबित किया जब उसने तलवार से एक शिशु को दो हिस्सों में बांटने का आदेश दिया (1 राजा 3:16-28), क्योंकि केवल बड़ी बुद्धि और विवेक ही उन वेश्याओं के विवाद को सुलझा सकते थे। उसने अपने राज्यकाल के आरम्भ में ही विचारपूर्वक इस समझ की खोज की थी, क्योंकि उसे सच्चे ज्ञान तथा सम्मति का महत्व सिखाया गया था (1 राजा 3:7-9; नीतिवचन 4:1-9)।

शासन चलाने के लिए बुद्धि इतनी महत्वपूर्ण है कि एक बुद्धिमान लड़का दरिद्र होने पर भी उस बूढ़े राजा से अधिक उत्तम है जो धनवान तो है परंतु बुद्धि से रहित है (सभो 4:13)। बुद्धि सीमाओं की पूर्ति कर सकती है, इसलिए उसकी खोज करें (याकूब 1:5)। और यह हर पति, पिता, गुरु, न्यायाधीश और पास्टर पर लागू होता है जो अच्छी तरह से शासन करना चाहता है।

बुद्धि राजाओं को बहुत-सी बातों का महत्व सिखाती है: दुष्टों को दंड देना (नीति 20:8,26), दया और सत्य (नीति 20:28), विश्वासयोग्यता के साथ गरीबों का न्याय करना (नीति 29514; 31:8-9; 24:11-12), अनुग्रहपूर्ण भाषण रखने वाले अच्छे लोग (नीति 14:35; 16:13; 22:11), और मसलों की छानबीन करना (नीति 25:2)।

बुद्धि राजाओं को कई बातों से बचना सिखाती है: घूस के रूप में मिले उपहार (नीति 29रू4), मदिरा और दाखमधु (नीति 31रू4-5), वेश्याएं (नीति 31रू3; सभो 7:26-29), पेटूपन (सभो 10:16-17), झूठ (नीति 17:7; 29:12), जामिन होना (नीति 6:1-5), और दुष्ट सलाहकार (नीति 25:5)।

काई भी पुरुष या स्त्री बुद्धि पा सकती है (याकूब 1:5)। जबकि यह दीवानी शासकों को महान बना सकती है और उनके राष्ट्रों को शांति और समृद्धि के स्थान बना सकती है, आप भी परमेश्वर से सचमुच प्रेम करने और उसका भय रखने के लिए अपने आप को नम्र बनाकर, इसके लिए बिनती करके, और बाइबल की बुद्धि का अध्ययन करके इसे आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।

यीशु मसीह के समान कोई राजा नहीं है, जो पृथ्वी पर निर्णय और न्याय का कार्य करता है, और उसने यहोवा हमारी धार्मिकता यह उपाधि प्राप्त की है (यिर्म 23:5-6)। उसे विश्वासयोग्य और सच्चा कहा गया है (प्रकाशित 19:11), क्योंकि वह अपने बुद्धि और ज्ञान के महान भण्डार से शासन करता है (कुलु 2:3)। मृत्यु के समय दाऊद ने इस पुत्र के बारे में भविष्यवाणी की थी जिससे वह अभी तक नहीं मिला था, एक ऐसा पुत्र जो परमेश्वर का भय मानते हुए मनुष्यों पर न्यायपूर्ण प्रभुता करेगा (2 शमूएल 23:1-5)। प्रिय पाठक, क्या आप उसे जानते हैं?

21/09/2022

नीतिवचन 20:12

सुनने के कान और देखने की आखें, दोनों को यहोवा ने बनाया है। (केजेवी)

नवजात शिशुओं का यह देखने के लिए निरीक्षण किया जाता है कि उनके कान और आँखें काम कर रहे हैं या नहीं। विश्वासीजन अपने स्वस्थ बच्चे के लिए परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं। विधर्मी भाग्य को, या अपनी किस्मत को धन्यवाद देते हैं। सुननेवाले कान और देखनेवाली आंखें बहुत मूल्यवान और उपयुक्त होती हैं। परंतु दोनों ही परमेश्वर की इच्छा से हैं; वह किसी भी बात के लिए किसी मनुष्य का ऋणी नहीं है, फिर चाहे कान हो या आंखें।

यदि किसी को सुनने के कान और देखने की आंखें हैं तो यह परमेश्वर का सर्वोच्च और अनुग्रहकारी चुनाव है। सुनना और देखना हमारा अधिकार नहीं है; वे धन्य अनुग्रह हैं। और सुनने और देखने का सबसे बड़ा वरदान वह है जब आप यीशु मसीह के गौरवशाली सुसमाचार, और बुद्धि तथा सत्य के वचनों को समझ पाते हैं और उन्हें बड़ी तत्परता से ग्रहण करते हैं। सुसमाचार को समझना, पश्चाताप करना, और उस पर विश्वास करना बहुत ही दुर्लभ सामर्थ्य है।

बहरा या अंधा बच्चा पैदा होना कोई इत्तेफाक नहीं है। यह भाग्य या किस्मत का परिणाम नहीं है। इसे विज्ञान के द्वारा पलटा नहीं जा सकता। यह सच्चे परमेश्वर का चुनाव है, उसकी मर्जी है। वह अपने सभी चुनावों में निर्दोष है, और वह प्रत्येक व्यक्ति के लिए ऐसे हज़ारों चुनाव करता है। उसकी सामर्थ्य असीम और उसका अधिकार मुकम्मल हैं। एक विद्रोही मानवजाति के सृष्टिकर्ता के रूप में उसे वह सब करने का अधिकार है जैसा वह करना चाहता है।

आप जीवन चाहते थे या नहीं, आप अस्तित्व में आना चाहते थे या नहीं, इस विषय में उसने आपसे आपकी सलाह तक नहीं ली। आप पर उसके परम अधिकार और परम सम्प्रभुता पर विचार करें। एक बार आप जीवित प्राणी बनने के पश्चात आप अपने अस्तित्व को बुझा नहीं पाए। आत्महत्या से आप केवल अपने शरीर को मारते हैं, जिसके बाद आपकी आत्मा को एक दोषी हत्यारे के रूप में परमेश्वर का सामना करना होता है। आपका अस्तित्व सर्वशक्तिमान परमेश्वर का चुनाव है, जिसमें आपकी रज़ामंदी नहीं ली गई थी।

आप किस घराने में जन्म लेंगे, आप की ऊंचाई क्या होगी, आप किस राष्ट्र में जन्म लेंगे, आपका लिंग क्या होगा, आपके माता-पिता कौन होंगे, आपका स्वभाव क्या होगा, आपके भाई-बहन कौन होंगे, आप में बुद्धि कितनी होगी, आप में क्या कौशल्य होगा या आपके जीवन में कौन-कौन से अवसर आएंगे, आप के अस्तित्व को कौन-कौन सी बातें प्रभावित करेगी, यह सब उसी ने तय किया। वह यहोवा है! आप कुछ भी नहीं है! वह कुम्हार है! आप मिट्टी हैं! उसके चुनाओं ने आपके जीवन को प्रचंड रूप में प्रभावित किया है जिसमें आपकी कोई भी स्वीकृति नहीं ली गई थी।

आपने अब तक जो पढ़ा है, क्या आप उस पर नम्रता से विश्वास करते हैं? परमेश्वर आपको उसके, या उसकी संप्रभुता के विरुद्ध लड़ने के विषय में चेतावनी देता है (यशा 45:7)। क्योंकि वह कुम्हार है, और आप मात्र मिट्टी है, इस कारण वह आपके तर्क-वितर्को को केवल टूटे हुए मिट्टी के बर्तन के तुल्य समझता है। जब किसी व्यक्ति को बिना कानों या बिना आखों के बनाया जाता है, तब मिट्टी को कुम्हार से सवाल करने का भी अधिकार नहीं है (यशा 45:7)।

इस महान और भयानक परमेश्वर के सामने नम्र हो जाओ। अपने व्यर्थ विचारों को कुचल दो। उसकी स्तुति करो और आराधना करो। उसकी प्रशंसा करो। आपके पास जो कुछ है, और आप जो हैं, उसके लिए उसका धन्यवाद करो। उस को वह सब चढ़ाओ जो आपके पास है, और जो आप हैं। तुम्हारे पापों के कारण तुम पर अनुग्रह होने के लिए उस से प्रार्थना करो। आज ही अपना जीवन उसे समर्पित करो।

जब चेलों ने एक ऐसे मनुष्य को देखा जो जन्म से ही अंधा था, तब वे जानते थे कि यह परमेश्वर की इच्छा से ही था। यीशु ने उन्हें बताया कि यह परमेश्वर की महिमा के लिए था (युहन्ना 9:1-3)। क्या परमेश्वर किसी व्यक्ति को केवल अपनी महिमा के लिए 30 वर्षों तक अंधा रख सकता है? बिल्कुल! क्या परमेश्वर अपनी महिमा के लिए किसी मनुष्य को बैल के सामान घांस खाने के लिए चारागाह में डाल सकता है? बेशक! नबूकदनेस्सर के विषय में दानियल का चौथा अध्याय पढ़े। क्या तुम इस परमेश्वर से प्रेम करते हो और उसका भय मानते हो?

आत्मिक कान और आत्मिक आंखें शारीरिक कान और शारीरिक आंखों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। यह केवल परमेश्वर के बिना-मूल्य अनुग्रह से ही है कि किसी भी पापी को परमेश्वर की बातें सुनने और देखने के लिए आत्मिक कान और आंखें दी जाती हैं। मानवजाति अपने पूरे जीवन भर परमेश्वर के विषय में सार्थक रूप से कोई विचार नहीं रखती (भजन 10:4)। जब आपका नया जन्म होता है तब आपको सुनने और देखने की आत्मिक इंद्रिया दी जाती हैं। आपने अपने शारीरिक जन्म में प्राकृतिक कान और आंखें पाई; अब आप अपने आत्मिक जन्म में आत्मिक कान और आंखें पाते हैं।

यीशु ने कहा, “यदि कोई नये सिरे से न जन्मे तो परमेश्‍वर का राज्य देख नहीं सकता” (युहन्ना 3:3) । उस ने यह भी कहा, “जो परमेश्‍वर से होता है, वह परमेश्‍वर की बातें सुनता है; और तुम इसलिये नहीं सुनते कि परमेश्‍वर की ओर से नहीं हो” (युहन्ना 8:47)। देखने की आंखें और सुनने के कान दोनों ही परमेश्वर के वरदान हैं। यीशु मसीह ने यहूदियों से सत्य को छिपाकर रखा, परंतु उसने अपने शिष्यों पर इसे प्रकट किया (मत्ती 11:25-27; 13:10-16)।

क्यों अधिकांश मनुष्य परमेश्वर और सत्य पर विचार तक नहीं करते? क्यों ज्यादातर मनुष्य सुसमाचार को मूर्खता समझते हैं? क्योंकि परमेश्वर ने इसे विश्वाससहित समझने और सुनने के लिए उनके कान नहीं खोले हैं। क्यों अधिकांश लोग सृष्टि में उसकी महिमामय रचना को देखकर भी अपने अस्तित्व का श्रेय विकासवाद और भाग्य को देते हैं? क्योंकि परमेश्वर ने उनकी आंखें नहीं खोली कि वे उसे और उसके सत्य को देखें। आपका अस्तित्व और उद्धार परमेश्वर के चुनाव पर निर्भर है।

नरक में यातनाएं भोग रहे धनवान मनुष्य ने अब्राहम से कहा कि वह लाज़र को मरे हुए में से जिलाकर वापस भेज दे कि वह उसके भाईयों के पास जाकर उन्हें चेतावनी दे, कही वे भी उसके साथ पीड़ा भोगने नरक में न आए जाये। परंतु अब्राहम ने बड़ी शालीनता से उत्तर दिया कि यदि परमेश्वर उनके कान और आंखें खोलने के लिए उन पर अनुग्रह नहीं करता, तो मुर्दों में से वापस जानेवाला व्यक्ति भी उनके भ्रष्ट और विद्रोही हृदयों को न तो विश्वास दिला पाएगा और न बदल पाएगा (लुका 16:27-31)। यदि उन्हें बाइबल पढ़ने में दिलचस्पी नहीं है, तो वे मरे हुए में से किसी मनुष्य की सुनने में भी कोई दिलचस्पी नहीं लेंगे।

क्या आपने कभी सोच कर देखा है कि आपका परिवार और मित्र उन बातों को क्यों मूल्य नहीं देते जो परमेश्वर ने आपको उसके वचन में प्रकट की? उन्हें परमेश्वर और भक्तिमानता के विषय में वैसी प्रतीति क्यों नहीं है जैसी आपको है? आप जानते हैं कि क्या होगा जब आप अपने सहपाठियों या सहकर्मियों को यीशु मसीह, आने वाले न्याय, और एक पवित्र जीवन जीने के विषय में बताएंगे। वे आपकी बातों को ठुकरा देंगे, और आपके शत्रु बन जाएंगे। इसका क्या स्पष्टीकरण है? तुम्हारे सुननेवाले कान और देखने वाली आंखें हैं, परंतु उनकी नहीं।

सत्य और बुद्धि को अस्वीकार करने वाली भीड़ को देखकर निराश न हो, (क्योंकि कान और आँख खोलना परमेश्वर का कार्य है) चाहे आप इसे कितनी भी अच्छी तरह से प्रस्तुत क्यों न करें। यीशु और पौलुस को भी ऐसी ही प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा था। यहूदियों के धार्मिक अगुओं ने यीशु को सूली पर चढ़ा दिया और उन्होंने रोमी साम्राज्य के चारों ओर और उसका तब तक पीछा किया जब तक कि उसका शिरच्छेद नहीं किया गया। अपने सुनने वाले कानों और देखने वाली आंखों के लिए परमेश्वर का धन्यवाद करो, और उस से प्रार्थना करो कि वह आपको उन लोगों तक ले जाए जो आत्मा की सामर्थ्य से नया जन्म पा चुके हैं। परमेश्वर आपको कुरनेलियुस या लुदिया तक ले जा सकता है और ले भी जाएगा।

सुनने के कान और देखने की आखें बनाने का कोई मानवीय माध्यम नहीं है। यह महान कार्य केवल यहोवा ही कर सकता है। बहरे कानों को सुसमाचार सुनाने या अंधी आंखों को उद्धारकर्ता को दिखाने के लिए मानव निर्मित सुसमाचारवादी प्रयास मूर्खता से भरे और व्यर्थ हैं। सुसमाचार को केवल वे लोग सुन और देख सकते हैं जो आत्मा के कार्य के द्वारा पहले ही नया जन्म पा चुके हैं, अर्थात वे जिनके अब सुननेवाले कान और देखनेवाली आंखें हैं (1 कुरिन्थ 1:18,24; 2:14-15).।

उद्धार तो यहोवा ही से होता है! परमेश्वर ने कुछ लोगों को अनंत जीवन के लिए चुना है (इफि 1:4)। उसने यीशु मसीह को उनके पापों के लिए मरने भेजा, और वह निश्चित रूप से उन्हें नया जन्म देगा और उनकी महिमा करेगा (रोमि 8:29-33)। वह उन्हें सुननेवाले कान और देखनेवाली आंखें देता है। लुका ने उन लोगों का वर्णन जिन्होंने पौलुस के सुसमाचार पर विश्वास किया, इस प्रकार किया, "और जितने अनन्त जीवन के लिये ठहराए गए थे, उन्होंने विश्‍वास किया"(प्रेरितों 13:48)।

जब अनंत जीवन की बात आती है, तो उसमे परमेश्वर कुम्हार भी है और मैं और आप केवल मिट्टी हैं (रोमि 9:20-24)। वह कुछ लोगों को प्रतिष्ठा के पात्र (अनन्त जीवन पाने) बनाता है, और कुछ लोगों को अप्रतिष्ठा के पात्र (नरक की अनन्त यातना भोगने) बनाता है। आपको उससे सवाल करने का भी अधिकार नहीं है। इस गौरवशाली शास्त्र पाठ को पढ़े और उसकी आराधना करें। हम एक विद्रोही जाति है, और वह कुछ लोगों का उद्धार करने और कुछ लोगों को दंड देने के अपने उद्देश्य में पूरी तरह से न्यायी है। उसने कुछ को चुना कि उनमें अपना क्रोध और सामर्थ्य प्रकट करें, और कुछ को इसलिए चुना कि उन में अपनी महिमा को प्रकट करें ।

एक व्यक्ति नया जन्म कैसे पाता है जिसके सुनने के आत्मिक कान और देखनेवाली आत्मिक आंखें होती हैं? परमेश्वर का पुत्र यीशु उसे जीवित होने की आज्ञा देता है, और उसकी आत्मा को आत्मिक मृत्यु से पुनर्जीवित करता है (युहन्ना 5:25-29)। यह महिमामय कार्य परमेश्वर की सामर्थ्य और अनुग्रह के द्वारा, और बिना किसी मानवीय सहयोग के होता है (युहन्ना 1:13; 3:8; रोमि 9:16; इफि 1:19-20; 2:1-10)। प्रभु यीशु मसीह सृष्टि की निर्मिती करने के उस सामर्थ्य का उपयोग करता है जिसका उपयोग उसने आदि में अंधकार में से ज्योति को लाने के लिए किया था (2 कुरिन्थ 4:3-6; इफि 2:10)।

इस महान घटना के बाद ही आप परमेश्वर की बातें सुन पाते हैं और देख पाएंगे। इस नए जन्म के कार्य के बाद ही कुरनेलियुस जैसे विधर्मी परमेश्वर का भय मानना, प्रतिदिन प्रार्थना करना, और निर्धनों को बहुत दान देना शुरू करते हैं (प्रेरितों 10:1-4)। और जब परमेश्वर द्वारा पहले ही से ठहराएँ हुए माध्यम से ऐसे व्यक्ति के पास सुसमाचार लाया जाता है, तब वह उस पर महिमामय सुसमाचार के रूप में विश्वास करता है और मानता है (प्रेरितों 10:33, 44-48)।

यदि आप आज परमेश्वर की बातों को सुन या देख सकते हैं, तो उसे धन्यवाद दें, और उस प्रतीति की दिशा में आज ही दौड़ें चले जाएं। अगर आपको डर है कि आपका नया जन्म नहीं होगा, तो आपका कर्तव्य वही है। प्रभु यीशु मसीह के पास दौड़ें, उसे अपना सम्प्रभु और एकमात्र आशा समझे, और उसकी आज्ञा का पालन करें। यह सुननेवाले आत्मिक कानों और देखनेवाली आत्मिक आँखों का प्रमाण है (2 पतरस 1:5-10; 1 यूहन्ना 2:29; 3:7; 5:1-5)।

यीशु मसीह इस संसार पर अपने आप को प्रकट करने वाला है, क्योंकि वही धन्य और एकमात्र अधिपति, राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु है (1 तीमु 6:14-15)। वह अपने दस हजार स्वर्गदूतों के साथ अपने शत्रुओं का नाश करने के लिए आ रहा है (यहूदा 1:14; 2 थिस्स 1:7-9)। आज ही उस पर विश्वास करो और उसकी आज्ञा मानो, क्योंकि कल जब वह आएगा तो पश्चाताप न करनेवालों और अविश्वासियों के लिए शाप की घोषणा करेगा (1 कुरिं 16:22)।

Hindi Study Bible 14/09/2022

Hindi Study Bible The HINDI STUDY BIBLE is a unique project that combines the IBP (India Bible Publishers) Hindi, ‘Pavitra Bible’ with the ESV Study Bible Notes.The translatio...

06/09/2022

नीतिवचन 5:19

वह तेरे लिए प्रिय हिरनी और सुन्दर साम्भरनी के समान हो, उसके स्तन सर्वदा तुझे संतुष्ट रखे, और उसी का प्रेम नित्य तुझे मोहित करता रहे। (KJV)

अपनी पत्नी से संतुष्ट रहना एक सुखी वैवाहिक जीवन के लिए महत्वपूर्ण है। सुलैमान ने अपने बेटे को तीन महत्वपूर्ण विकल्प चुनने की चेतावनी दी - अपनी पत्नी को प्रेम की एक नाजुक पात्र समझकर उसके साथ कोमलता से व्यवहार करना, उसके शरीर और स्त्रीत्व की सराहना करना, और अपने पति के प्रति उसके प्रेम और उसकी भक्ति से भर उठना। इस ईश्वर-प्रेरित नीतिवचन में पतियों के लिए कुछ सबसे आवश्यक वैवाहिक सलाह शामिल है। इस बुद्धि को और कुलुस्सियों 3:19 में की बुद्धि को सीखने और उसके अनुसार करने से एक व्यक्ति बहुत अधिक लाभ प्राप्त कर सकता है।

यदि कोई पुरुष अपनी कटुता के कारण अपनी पत्नी के प्रति कठोर बनता है, अन्य स्त्रियों के शरीर की लालसा रखता है, या अपनी पत्नी के उसकी प्रेमिका बनने के प्रयासों को तुच्छ जानता है, तो वह अपना विवाह, अपनी कामुकता और अपने प्राण का विनाश कर देगा। असंतोष के भयानक परिणाम होते हैं, विशेषकर विवाह में। खबरदार! धन्य परमेश्वर, जो सभी पुरुषों की तुलना में वैवाहिक प्रेम और आनंद के बारे में अधिक जानता है, उसने उन लोगों को अनमोल निर्देश दिया जो खुद को विनम्र करेंगे, इसे सुनेंगे और इसका व्यवहारिक लागुकरण करेंगे।

कटुता से भरा एक मनुष्य अत्यंत नाखुश, हमेशा निराश और यौन रूप से कमज़ोर होता है। वह अपनी पत्नी को चोट पहुँचाएगा और उसकी उपेक्षा करेगा, जब तक कि वह उससे नफरत नहीं करने लगती, और विवाह एक दिखावा न बन जाए। वह पराई स्त्रियों के लिए एक भेद्य और आसान शिकार होगा, जिनके स्तन संतुष्ट नहीं कर सकते, चाहे वे कितने भी सुंदर और सुडौल क्यों न हों, क्योंकि वे स्तन क्रूर स्त्रियों के हैं जिन्हें परमेश्वर ने दोषी ठहरा दिया हैं (नीति 5:9)। अपने पुत्र से प्रेम करनेवाले और बुद्धिमान पिता, सुलैमान ने अपने पुत्र को असंतोष के खतरों के विरुद्ध गंभीरता से चेतावनी दी।

हिरनी एक मादा हिरण है, जो आम तौर पर लाल रंग की होती है। साम्भरनी यूरोप और एशिया के हिरनों की एक छोटी प्रजाति है। ये दोनों शब्द एक छोटी, नाजुक, सुंदर और कोमल हिरनी का वर्णन करते हैं। सुलैमान के समय में इन हिरनियों को राजाओं और अन्य लोगों द्वारा पालतू जानवरों के रूप में पकड़ा जाता, पाला जाता था, और उनका आनंद लिया जाता था। उनके निर्मल, सौम्य स्वभाव पुरुषों और स्त्रियों दोनों को प्रसन्न करते थे। और बुद्धिमान मनुष्य सुलैमान अपनी पत्नी की सुंदरता का वर्णन करते समय उनका फिर से उल्लेख करता है (गीत 4:5; 7:3)।

सुलैमान द्वारा प्रयुक्त विशेषणों-प्रिय और सुन्दर-के युग्मों पर ध्यान देने पर हम एक प्रसन्नचित्त और कुलीन स्त्री का, जो प्रेम और देखभाल के योग्य है, एक अद्भुत शब्द-चित्र देखते हैं। कुलीन स्त्री नामक बुद्धि सब पुरुषों को आव्हान करती है कि वे अपनी-अपनी पत्नियों को इसी नज़रिए से देखें और वैसा ही आचरण रखें। एक पति को चाहिए कि वह अपनी पत्नी के साथ कोमल प्रेम और संयमी करुणा से व्यवहार करें, कि मानों वह एक प्रिय और सुन्दर हिरनी की देखभाल कर रहा हो। पौलुस ने नए नियम में इस नियम की पुष्टि की, जहां उसने पुरुषों को आज्ञा दी कि वे अपनी अपनी पत्नियों का पालन-पोषण करें - अर्थात्, विशेष देखभाल करें (इफि 5:28-29)।

परमेश्वर ने हव्वा के स्तनों और उसके शरीर के अन्य सभी अवयवों को बनाया जो आदम की आँखों और स्पर्श के लिए बहुत ही अद्भुत थे। आज भी कुछ नहीं बदला है - पुरुष आज भी स्त्री के शरीर को देखकर अभिभूत होते हैं। परमेश्वर ने पुरुषों को वह गुण दिया जिससे वे स्त्री के शरीर की ओर आकर्षित होते हैं, और विवाहित पुरुष इस आकर्षण के कारण बड़े प्रसन्न मन से काम से घर लौटते हैं। उसका शरीर और रतिक्रिया सुख का एक निरंतर स्रोत बना रहना चाहिए, और एक बुद्धिमान स्त्री अपने और अपने पति के सुख और आनंद के लिए इसकी जानकारी रखेगी और इसे काम में लाएगी।

पति-पत्नी के बीच यौन-सम्बन्ध कितनी बार होना चाहिए, कितना रचनात्मकता होना चाहिए, उसके मदहोशपूर्ण और विभिन्न प्रकार के आसन, ये सब सुझाव, सम्भावनाएं, या पसन्द-ना-पसन्द की बातें नहीं है, बल्कि ये आज्ञाएँ हैं (1 कुरिं 7:1-5)। इस कर्तव्यपरायण विशेषाधिकार और सम्मानजनक आनंद के किसी भी पहलू में अपने जीवनसाथी को धोखा देना, वाचा तोड़ने, कपट करने और नफरत का भयावह कृत्य है। परमेश्वर सभी स्वार्थी और टाल-मटोल करनेवाले पति-पत्नी को दण्ड देगा, क्योंकि नया नियम भी हिदायत देता है कि परमेश्वर पति और पत्नी दोनों को एक-दुसरे में संतुष्ट रहते देखना चाहता है।

हालांकि, इस नीतिवचन में स्तनों का उल्लेख नाम से किया गया है, फिर भी वे स्त्री के पूरे शरीर और यौन सुख के लिए प्रयुक्त होनेवाला एक सर्वसमावेशी शब्द है। परन्तु आकर्षण और रतिक्रिया की दृष्टी से स्तनों के स्थायी महत्व को सुलैमान की स्पष्ट भाषा के द्वारा बलपूर्वक रीति से हमारे ध्यान में लाया गया है। कुछ बदला नहीं है; स्तन अब भी एक स्त्री की सुन्दरता और आकर्षकता के लिए महत्वपूर्ण है (गीत 4:5; 7:1-10; यहेज 16:7; 23:3, 8; होशे 2:2)। सुलैमान के दिनों में स्त्रियाँ अपने स्तनों के लिए उतनी ही जागरूक रहती थीं जितनी कि आज की स्त्रियाँ हैं (गीत 1:13; 8:8-10)।

परन्तु आज के इस दुष्ट समाज की स्त्रियां अपने स्तनों को लोगों के सामने बेपरदा करने की कोशिश करती हैं, और मसीहियों को इस मानसिक विकृति के विरुद्ध अपनी पूरी शक्ति से लड़ना चाहिए। ऐसे अनैतिक परिधानों का, जो स्तनों के आकार या रूप की ओर ध्यान खींचते हैं, उन्हें बड़ा दिखाते हैं, या उन्हें खुला दिखाते हैं, विरोध किया जाना चाहिए। और पवित्रता और भक्ति का यह नियम स्त्री के शरीर के अन्य भागों पर भी लागू होना चाहिए जो पुरुषों का ध्यान खींचते हैं और उनकी वासना को भड़काते हैं। वर्तमान समय में सार्वजनिक स्थानों पर अंगप्रदर्शन के भड़कीले परिधानों के कारण पुरुष अपने महान वैवाहिक जीवन में घर पर ही अपनी पत्नी से संतुष्ट रहने में कठिनाई का सामना करते हैं। परमेश्वर स्त्रियों की निर्लज्जता से घृणा रखता है (यशा 3:16-24; 1 तीमुथियुस 2:9-10; 1 पतरस 3:3-4)।

यह नीतिवचन प्रत्येक पुरुष को बाध्य करता है कि वह अपनी पत्नी के स्तनों, उसका शरीर और उसके साथ रतिक्रिया से तृप्त और संतुष्ट रहे। यह चुनाव है। प्रत्येक पति को चाहिए कि जो कुछ उसके पास है उसमें आनंदित रहे, बजाय इसके कि जो नहीं है उसके लिए तड़पकर विलाप करें। यह तो आज्ञा है। यह नीतिवचन एक सुझाव नहीं है, और प्रत्येक पुरुष इसका पालन कर सकता है यदि वह प्रभु की आज्ञा माने। निस्सन्देह, यदि उसकी पत्नी उसे यौन सुख से वंचित रखती है या वह अपनी खूबसूरती को बिगड़ती है, तो यह पति का कर्तव्य बनता है कि वह बुद्धिमानी तथा संयम से अपने वैवाहिक जीवन को सूझबूझ के साथ सम्भालते हुए इस परिस्थिति को सुधारें (उत्पत्ति 3:16; 1 कुरिं 7:3-5; 11:9; 14:34-35; इफि 5:22-24; तीतुस 2:4-5)।

एकमात्र असीम सृष्टिकर्ता, जिस ने प्रेम, यौन-इच्छा और शरीर का हर अंग बनाया, उसने मनुष्य को केवल एक ही स्त्री तक और स्त्री को एक ही पुरुष तक विवाह में सीमित कर दिया। एक-पत्नीक सम्बंध को उबाउपन से बचाने के लिए उसने पुरुषों के लिए वैवाहिक सम्मति के ये नियम दिए। यदि पुरुष इन नियमों का पालन करें तो वह उस महिमामय आनंद और तृप्ति को पा लेगा जिसे यहोवा परमेश्वर ने आदम के लिए हव्वा को बनाने में नियत किया था (उत्पत्ति 2:18; 1 कुरिन्थियों 11:9)। वह बड़े उत्साह से भरकर अपने सृष्टिकर्ता के साथ कहेगा “यह बहुत अच्छा है!” जब एक पुरुष और स्त्री के बीच यौन सम्बंध का विषय आता है तब बॉलीवुड, हॉलीवुड और प्लेबॉय जैसी पत्रिकाएं आपको पराजित कर देगी, जैसा कि उनके जीवनों, तलाकों, दुष्क्रियाओं और एक-दूसरे के प्रति नाखुशी से प्रमाणित होता है। परमानंद से भरा प्रेम केवल आज्ञाकारी मसीहियों के लिए है।

किसी बात से मोहित होने का अर्थ है उसे अपने कब्जे में लेकर आक्रामक बल के द्वारा अपने साथ ले जाना, जैसे किसी शत्रु से लूट का सामान ले जाया जाता है। उसी प्रकार किसी व्यक्ति को मोहित करने का अर्थ है उस पर हावी हो जाना और अपने साथ बलपूर्वक ले जाना, जैसे उन्हें वश में करके ले जाया जाता है। बुद्धिमान पुरुष अपनी पत्नी के प्रेम, भक्ति और प्रणयक्रिया के द्वारा वश में रहने का चुनाव करते हैं। यहां का नियम अपनी पत्नी को मोहित करना नहीं है, बल्कि अपनी पत्नी के द्वारा मोहित हो जाना है। परंतु क्योंकि वह प्रत्युत्तरकर्ता है, अतः इसमें उसके प्रति आपका प्रेम भी शामिल है। यह उसके प्रेम के द्वारा लूट लिए जाने का चुनाव करना है, ताकि पराई स्त्री के पास आप तक कोई पहुंच या फुसलानेवाली तरकीब न हो।

मामूली ज्ञान और अनुभव के साथ किसी भी स्त्री में यौन सुख के लिए पुरुष से अधिक काबिलियत और क्षमता होती है, जिसका अर्थ है आपकी पत्नी आप से अधिक सामर्थी है; यदि आप उससे उचित रीति से प्रेम करें। सच्चा परमेश्वर सब बातों को बड़े कौशल से करता है, जिनमें पुरुष और स्त्री के विषय में यह तथ्य भी शामिल है। यद्यपि उसे पुरुष के लिए बनाया गया था (उत्पत्ति 2:18; 1 कुरिं 11:9), तौभी उसका अपना बड़ा यौन सुख उसके यौन सुख पर बल देने से आता है (गीत 2:6-7; 8:3-4)। सर्वश्रेष्ठ बनने में अपनी पत्नी की सहायता करें, पराई स्त्री के विषय में ज़रा भी परवाह न करते हुए उसी के प्रेम में आनंदविभोर हो जाएँ।

यह बात भी स्पष्ट समझ ले कि यह नीतिवचन अश्लील साहित्य की भी पूरी-पूरी निंदा करता है। सदैव अपनी पत्नी के स्तनों और शरीर से तृप्त रहने का तात्पर्य है, अन्य किसी भी स्त्री के स्तनों या शरीर पर ज़रा भी नज़र नहीं डालना। यदि कोई पुरुष इस नीतिवचन का व्यवहारिक उपयोग करना चाहता है, तो अवश्य है कि वह टेलीविजन, OTT, वेब सीरीज़, वयस्कों की अश्लील पत्रिकाओं से अत्यंत सावधान रहे, और अश्लील स्त्रियों से बचने सार्वजनिक जगहों, जैसे समंदर-किनारे, शॉपिंग मॉल्स, पुरुष-स्त्री के साझा जिमखाने ,और कार्यालयों में, जहाँ व्यभिचारी स्त्रियाँ मंडराती हैं, जाना टाले। यदि ऐसे नियम आपको अति कठोर और पत्थर-दिल लगते हैं तो अपने नाखुश वैवाहिक जीवन के विषय में शिकायत न करें।

स्त्रियां भी अपने वैवाहिक जीवनों, यौन इच्छाओं और अपने प्राणों का विनाश कर बैठ सकती हैं, यदि वे सोचने लगे कि काश उनका पति अलग व्यक्तिमत्व वाला होता। किसी स्त्री को ऐसे वार्तालाप-कौशल, भावनाएं, बुद्धिमत्ता, अगुवाई, व्यक्तित्व, आत्मिकता, सफलता, या अन्य किसी लक्षण की अपने पति में चाहत नहीं रखनी चाहिए जिसे वह अन्य पुरुषों में देखती है। उसे ऐसी बातों के विषय में सोचने से बचना चाहिए। ऐसे विचार वैसे ही हैं मानो उसका पति किसी पराई स्त्री के चेहरे, स्तनों, कमर, या पैरों की लालसा कर रहा हो। उसे अवश्य है कि वह उस पुरुष के साथ संतुष्ट रहने का फैसला करें जिस से उसने विवाह किया है, जैसा कि वह भी चाहती है कि उसका पति उसके साथ संतुष्ट रहे।

प्रेम क्रीडा की कहानियों के उपन्यास पढ़ना, जिनमें काल्पनिक पुरुषों, आवेशी प्रलोभनों और अवास्तविक भावनाओं का वर्णन किया होता है, स्त्रियों के लिए अश्लील साहित्य है। ऐसी तृष्णायुक्त काल्पनिक कहानियां पढ़ना एक स्त्री को अपने पति से नाखुशी की अवस्था में ले जा सकता है, क्योंकि कोई भी पुरुष ऐसे घिनौने विचारों की बराबरी नहीं कर पाएगा। ऐसे काल्पनिक पुरुषों के विषय में पढ़ना आत्मविनाशी और मानसिक विक्षिप्तता है। यह वैसा ही पाप है जब पुरुष अश्लील साहित्य देखकर अपनी पत्नियों को शारीरिक रूप से विद्रूप समझने लगते हैं।

वैवाहिक जीवन में संतुष्टि एक चुनाव है और फैसला है, जैसा कि बाकी सब बातों में होता है (फिली 4:11)। यह एक मनोवृत्ति है, न कि बेहतर परिस्थितियां (फिली 4:12)। कोई जीवनसाथी परिपूर्ण या सिद्ध नहीं होता है, और न ही कभी होगा। न ही कोई परिपूर्ण नौकरी, उद्योग, घर, कार, या छुट्टियां होती हैं। इसलिए एक सफल विवाह की कुंजी है उस व्यक्ति के साथ संतुष्ट, पूरी तरह से संतुष्ट रहना और उसी से मोहित होना जिससे आपका विवाह हुआ है। किसी ऐसे दूसरे व्यक्ति की प्रतिक्षा न करें जिस से आप अपने जीवनसाथी को बदलना चाहते हैं, और न ही कामना करें कि काश आप किसी अन्य व्यक्ति के साथ होते। संतोषसहित भक्ति बड़ा लाभ है (1 तिमु. 6:6), और यह नियम निश्चित ही विवाह पर भी लागू होता है।

पतियों, तुमने अभी-अभी सबसे बड़े बुद्धिमान मनुष्य से वैवाहिक सलाह को पढ़ा है जो आपके भविष्य को उज्वल बना सकती है (1 राजा 11:3)। वैवाहिक आनंद, संतोषप्रद प्रेम, और संतोषजनक यौन-सम्बंध आप पर निर्भर है। यह सलाह एकदम स्पष्ट और सरल है : उसके साथ संवेदनशील अपनेपनसहित कोमलता का आचरण रखे; हमेशा उसी के शरीर और प्रेम-प्रणय में संतुष्ट रहने का चुनाव करें, और आपके प्रति उसकी जो श्रद्धा, प्रेम और वफादारी है उस पर अपना मन लगाए। आप आनंद से ओतप्रोत हो सकते हैं!

किसी भी पराई स्त्री को जीवन के इन क्षेत्रों के करीब भी न आने दे। एक महान वैवाहिक जीवन को उन्नत करने के लिए सुलैमान के वचन अत्यंत मूल्यवान हैं, परंतु वे इसलिए दिए गए थे कि पराई स्त्री के प्रलोभनों को नाकाम किया जा सके। अपनी पत्नी को उसका अधिकारयुक्त स्थान देकर आप अन्य स्त्रियों के कचोटनेवाले आकर्षणों से सुरक्षित रहेंगे जो आपकी वासना को भड़काने का प्रयास करके आप को पराजित और बर्बाद करना चाहती है। व्यभिचारियों के लिए कोई सच्ची शांति, सुख या समृद्धि नहीं है। इसलिए परमेश्वर का वचन स्पष्ट और सरल है - अन्य किसी भी पराई स्त्री की ओर न तो देखें और न ही उसके विषय में सोचे (नीति 6:25; अय्युब 31:1; मत्ती 5:28)।

पत्नियों यदि आप चाहती है कि आपका पति महान वैवाहिक जीवन के लिए वर्णित इन तीनों मार्गों के अनुसार आपके साथ संतुष्ट रहे, यहां तक कि आप पर मोहित और अभिभूत हो जाए, तो फिर आप इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उसकी सहायता करने क्या कर रही हैं? क्या आप प्रेम और अपनेपन के योग्य एक सौम्य तथा अनुग्रहकारी व्यक्ति हैं, जैसे एक प्रिय हिरनी या सुंदर साम्भरनी होती हैं? क्या आप अपने शरीर को सुडौल बनाए रखने के लिए नियमित रूप से कसरत और खान-पान पर विशेष ध्यान देती हैं? क्या आप अपने शरीर को नियमित रूप से उसके यौन सुख के लिए काम में लाती हैं? क्या आप अपने पति पर अपना प्रेम, भक्ति, प्रेम-प्रणय और प्रशंसा लुटाती हैं? क्या आप यह एक कामुक मदहोशी के साथ पूरी सरगर्मी से करती हैं? क्या आप प्रणय के लिए उसे मोहित करने में सफल होती हैं, या असफल?

प्रभु यीशु के शीघ्र आगमन के पश्चात एक ऐसा विवाहोत्सव होगा जब दूल्हा और दुल्हन दोनों सिद्ध और परिपूर्ण हैं। पराई स्त्री या पराए पुरुष के लिए कोई लालसा नहीं होगी, क्योंकि वह आपकी कल्पनाओं और विचारों से परे असीम रूप से महाप्रतापी और देदीप्यमान होगा, और उसने आपको अपने लिए पूरी तरह से प्रिय और सुंदर बना दिया होगा (भजन 45:10-15; इफि 5:25-27; प्रका 19:7-8)। प्रभु यीशु, शीघ्र आ! आमीन।

25/08/2022

नीतिवचन 24:17

जब तेरा बैरी गिर पड़े तो आनन्दित मत हो, और जब वह ठोकर खाए तेरा मन मगन न होने पाए : (केजेवी)

यहाँ चरित्र की एक कठिन जाँच है। यहाँ एक मज़बूत प्रमाण है कि आप परमेश्वर की एक सन्तान है या नहीं। यहाँ भक्ति और बुद्धि की वास्तविक जाँच-पड़ताल है। यहाँ आपके विश्वास के लिए एक चुनौती है, फिर चाहे आप इस चुनौती को ले या नहीं। अभी सोचें। क्या आप आनंदित होते हैं जब आपके शत्रुओं के साथ कुछ बुरी घटनाएं होती हैं?

परमेश्वर आप को आदेश देता है कि आप अपने व्यक्तिगत शत्रुओं से प्रेम रखें, और ये एक सच्चे मसीही के प्रमुख प्रमाणों में से एक है। ऐसे प्रेम में तब दुखी होना शामिल है जब आपके शत्रु का पतन होता है या जब वह ठोकर खाकर गिरता है। जब उस पर विपत्ति आ पड़ती है तब यदि आप मगन होते हैं या आनन्दित होते हैं, आप ने पाप किया है। इस नीतिवचन में आपके जीवन में आत्मिक विजय के लिए प्रभु परमेश्वर एक सरल नियम प्रस्तुत करता है। आगे पढ़ते रहे।

यह नीतिवचन अपने आप में पूर्ण नहीं है, क्योंकि अगला वचन अपने शत्रुओं की विपत्तिओं पर आनन्दित होने के परिणामों को समझाता है, “कहीं ऐसा न हो कि यहोवा यह देखकर अप्रसन्न हो और अपना क्रोध उस पर से हटा ले” (नीति.24:18)। परमेश्वर आपका पक्ष छोड़कर आपके शत्रु का पक्ष ले सकता है, यदि वह देख ले की आप अपने शत्रु की जिन्दगी में पीड़ा या संकट को देखकर अपनी आँखें सेक रहे हो। सावधान!

जब बुरी चीजें आपके शत्रु के साथ घटित होती हैं तब यदि आप मगन होते हैं, प्रभु आपके स्वार्थी और प्रतिशोधी उल्लास को देखेगा; वह आपके दुष्ट मनोभाव पर क्रोधित होगा; और वह आपके शत्रु के दण्ड को उठा सकता है (नीति.24:18)। आप अपने शत्रु से भी अधिक नीचे गिर चुके होंगे, लगभग हत्यारे के हृदय के विचारों तक। एक पवित्र और धार्मिक परमेश्वर इसे सहन नहीं कर सकता।

प्रतिशोध पाप है; पलटा लेना तो परमेश्वर का है (रोमि.12:17-21)। परन्तु यह नीतिवचन इतना सरल नहीं है। उपदेशक आप को मात्र इसलिए बच निकलने नहीं देगा क्योंकि आप ने अपने शत्रु को कोई शारीरिक चोट नहीं पहुंचानी चाही। परमेश्वर की बुद्धि उस से अधिक व्यापक है (भजन.119:96)। सुलैमान आप के गुप्त द्वेषपूर्ण विचारों के पीछे है जो आप के शत्रुओं को दर्द या कष्ट में देखकर आनंदित होते हैं (नीति.24:9)।

क्या आप अपने विचारों में मगन होते हैं जब आप का शत्रु गिरता है? क्या आप आनंदित होते हैं -अपने गुप्त हृदय में- जब आपका शत्रु ठोकर खाता है? क्या आप उसके दुर्भाग्य के विषय में सुनकर, प्रतिशोध और सुख का एक बोध महसूस करते हैं? ये वो पाप हैं जिनकी सुलैमान ने निन्दा की। ओह, प्रिय मसीही, परमेश्वर के वचन का महिमामय प्रकाश गहराई से चमकता है - बिलकुल आपके भीतरी भावनाओं तक।

शत्रु कैसे गिरते और ठोकर खाते हैं? वे पाप में लड़खड़ाकर गिर सकते हैं, जो आपको आनन्द करने का कोई अधिकार नहीं देता, क्योंकि प्रेम “कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्दित होता है” (1 कुरि.13:6)। यदि आप किसी के विषय में चिन्ता करते हैं, आप पाप में उसकी भागीदारी के विषय में सुनकर जरा भी मगन नहीं होंगे, क्योंकि सभी मनुष्य धार्मिकता का जीवन जिए ऐसी आपकी अभिलाषा होनी चाहिए।

शत्रु सांसारिक परेशानियों में गिरकर ठोकर खा सकते हैं। वे एक नौकरी खो सकते हैं, किसी का तलाक हो सकता है, उनके बच्चों के साथ उनकी अनबन हुई हो सकती है, किसी बीमारी से ग्रस्त हो सकते हैं, किसी वाहन से दुर्घटना हो सकती है, कोई अपने किसी पशु को खो बैठा हो सकता है, या जुकाम हो सकता है। दुष्ट लोग उनके कपटपूर्ण हृदयों में गुप्त में मुस्कुराते हैं, क्योंकि एक भ्रष्ट हृदयवाला व्यक्ति अपने शत्रु को संकटों में देखकर मधु से भी अधिक मीठास महसूस करता है।

आपके शत्रु पर पवित्र प्रतिशोध या पलटा लेने का एक उचित मार्ग है। क्या आप ईश्वर-प्रेरित बुद्धि के भेद को जानने के लिए तैयार हैं? अपने शत्रु से प्रेम और दयालुता का बर्ताव करें, यहाँ तक कि अपने विचारों में भी, और प्रभु को उसे निपटने दे (नीति.25:20-21; 20:22)। आप एक धर्मी हृदय प्रमाणित करते हैं; प्रभु आपके कार्यों से प्रसन्न होता है; और आपका शत्रु आप के क्रोधित पिता का सामना करेगा।

आप को सत्य के वचन को उचित रीति से विभाजित करना चाहिए (2 तीमु.2:15)। आप को पौरुषहीन रीति से इस नीतिवचन को परमेश्वर के शत्रुओं पर लागू नहीं करना चाहिए। यहाँ पर शत्रु एक व्यक्तिगत शत्रु है जिसने आप को ठोकर दिलाई या आपकी हानि करनी चाही। सावधानी से ध्यान दें कि वचन ‘तेरा बैरी’ कहता है। ये वो लोग हैं जिन्होंने विगत समय में आपको ठोकर खिलाई या चोट पहुंचायी है या जो वर्तमान में आपकी हानि करने के बुरे उद्देश्य रख रहे हैं।

पवित्रजन परमेश्वर के शत्रुओं से प्रेम नहीं रखते; वे ईश्वरीय व्यवस्था और उदाहरण से जानते हैं कि उन्हें उस के शत्रुओं से घृणा करनी है (नीति.11:10; 29:27; निर्ग.15:1-21; 2 इति.19:2; अय्यूब 22:19; भजन.15:4; 3:16; 58:10; 139:19-22; प्रका.6:9-11; 18:20; 19:1-6)। परमेश्वर के बैरियों से प्रेम करना पाप है, और जिन से वह घृणा करता है उन पर कृपा करने या उनसे मित्रता रखने से परमेश्वर आपको दण्ड करेगा (2 इति 19:2; याकूब 4:4; प्रका.2:6, 15)।

मनुष्य स्वभाव ही से उनके शत्रुओं से घृणा करते हैं। आप नैसर्गिक प्रवृत्ति से किसी से नाराज होते हैं जो आप से दुर्व्यवहार करता, आप को तुच्छ जानता, या आपका अपमान करता है; प्रतिशोध लेना आपकी इच्छा बन जाती है। फरीसियों ने इस प्रकार की घृणा को उचित ठहराने के एक प्रयास में परमेश्वर की व्यवस्था को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया। परन्तु प्रभु यीशु ने व्यक्तिगत शत्रुओं के प्रति दयालुता की मांग करने के द्वारा, ताकि परमेश्वर के सच्चे सन्तानों को पहचाना जा सके, उनकी झूठी शिक्षा को सुधारा (मत्ती.5:43-48)।

फरीसियों ने परमेश्वर की व्यवस्था के प्रावधान “आंख के बदले आंख” को भी व्यक्तिगत अपराधों पर लागू करने के लिए बिगाड़ दिया था। यद्यपि परमेश्वर ने उस नियम को केवल नागरी-शासको के उपयोग के लिए लिखा, उन्होंने व्यक्तिगत शत्रुओं से बदला लेने को उचित ठहराने के लिए इसका दुरुपयोग किया। यदि कोई शत्रु आपको मारता है, तो अपना दूसरा ग़ाल फेर देने की बुद्धि की शिक्षा देकर यीशु ने उन में फिर एक बार सुधार किया (मत्ती 5:38-42)। परमेश्वर सच्चा ठहरे!

अय्यूब, जो एक सिद्ध मनुष्य था, जिस ने बुराई को ठुकराया, जिस पर परमेश्वर ने शैतान के सामने गर्व किया, वह उसके शत्रुओं के सम्बन्ध में बहुत विवेकशील था। उसने कहा कि वह परमेश्वर के न्याय के योग्य था, “यदि मैं अपने बैरी के नाश से आनन्दित होता, या जब उस पर विपत्ति पड़ी तब उस पर हंसा होता; परन्तु मैंने न तो उसको शाप देते हुए, और न उसके प्राणदण्ड की प्रार्थना करते हुए अपने मुंह से पाप किया है” (अयूब 31:29-30)। क्या ही धन्य मनुष्य!

दाऊद, जो परमेश्वर के मन के अनुसार मनुष्य था उसने अपने शत्रुओं के विषय में लिखा, “जब वे रोगी थे तब तो मैं टाट पहिने रहा, और उपवास कर करके दुख उठाता रहा और मेरी प्रार्थना का फल मेरी गोद में लौट आया। मैं ऐसा भाव रखता था कि मानो वे मेरे संगी वा भाई हैं; जैसा कोई माता के लिए विलाप करता हो, वैसा ही मैंने शोक का पहिरावा पहिने हुए सिर झुकाकर शोक किया” (भजन.35:13-14; 2 शमू.1:11-12, 17)। तौभी, उन्होंने उसकी विपत्ति पर आनन्द करने के द्वारा बड़ी दुष्टता दिखाई (भजन.35:15-16)।

यहाँ तक कि सबसे अच्छे पवित्रजनों के शत्रु होते हैं, क्योंकि आप का परिवार, पड़ोसी, सहकर्मी और चर्च के सदस्य, सभी पापी हैं, और यह संसार धर्मी का मित्र नहीं है। अपने जीवन पर विचार करें। आप के शत्रु कौन हैं? आपका पति या आपकी पत्नी भी इस अर्थ में कभी-कभी शत्रु हो सकता या सकती है।

क्या आप के कार्य स्थल पर कोई आपको गुस्सा दिलाता है? क्या चर्च में कोई ऐसा व्यक्ति है जो आप से घृणा करता प्रतीत होता है? क्या परिवार का कोई सदस्य आपको अनदेखा करता व तुच्छ जानता है? क्या स्कूल का कोई साथी है जो आप को चिढ़ाता है? क्या एक पड़ोसी ने आपकी सम्पत्ति रेखा पर अतिक्रमण किया है? क्या एक कर्मचारी आप के प्रति अनादर प्रदर्शित करता है? क्या आपके किसी पुराने मित्र ने अकारण आप की निन्दा की है? सावधानीपूर्वक छानबीन करें। उन सभी को पहचानिये।

आप कैसे प्रतिक्रिया देंगे। यद्यपि वे अकारण ही आप से घृणा करते हैं, आप को फिर भी उन से प्रेम रखना चाहिए। वे आपकी झूठी निन्दा और चुगली कर सकते हैं, परन्तु आपको उन्हें आशीष देना व उनकी प्रशंसा करनी चाहिए। वे आप को अनदेखा कर सकते और तुच्छ जान सकते हैं, परन्तु आपको उनका अभिवादन और प्रशंसा करनि चाहिए। वे आपको चोट पहुंचा सकते हैं, किन्तु आप को उनका भला करना चाहिए। यदि वे आपके विरोध में बुरा करते हैं, उनकी बुराई को भलाई से जीत लें (नीति.25:21-22; निर्ग.23:4-5; मत्ती.5:43-48; रोमि.12:14, 17-21; 1 थिस्स.5:15; 1 पतरस 3:9)।

यदि आज आप आत्मिक विजय चाहते हैं, कि आपके पिता को प्रसन्न करें और उस के समान सिद्ध हों, तो अपने शत्रुओं के लिए प्रार्थना करें। उनके लिए प्रार्थना करना आप को इस पवित्र नीतिवचन का उल्लंघन करने से बचायेगा। यदि आप इसे ईमानदारी से करते हैं, आप शान्ति और आनन्द से आशीषित होंगे, और आत्मा आपके जीवन पर भरपूरी से उंडेला जाएगा कि आपको सामर्थ्य दे और आपके नये मनुष्यत्व से फल उत्पन्न करे। आप व्यक्तिगत शत्रुओं के प्रति घृणा से भरे और कठोर विचारों के द्वारा उसे शोकित करते और बुझाते हैं (इफि.4:30; 1 थिस्स.5:19; याकूब 3:14-17)।

प्रिय चुने हुए पाठक, जबकि आप उस के बैरी ही थे क्या होता यदि आप के पिता ने यीशु मसीह के माध्यम से आप से प्रेम न रखा होता (रोमि.5:6-10)? क्या होता यदि उस ने उसका प्रेम केवल उन तक सीमित रखा होता जिन्होंने उससे प्रेम रखा? आप खो गये होते। क्या आप उस के उदाहरण का अनुसरण कर सकते हैं? वह इसके लिए आप को आशीष देगा।

यीशु मसीह ने उसके व्यक्तिगत शत्रुओं पर दया दिखायी और यरूशलेम और उसकी सन्तानों के विनाश के सम्बन्ध में उन पर मानवीय करुणा रखी (लूका 19:41-44)। उसने उसके पिता से उन सैनिकों को क्षमा करने की प्रार्थना करने के द्वारा दयालुता की भावना का प्रदर्शन भी किया, जो क्रूस के नीचे उसके वस्त्रों के लिए जुआ खेल रहे थे (लूका 23:34)। अनुसरण करने के लिए कैसा पवित्र उदाहरण!

कुलीन सेवक स्तिफनुस, जब उसके शरीर पर पत्थर बरसाएं जा रहे थे, और जो प्रभु यीशु को दर्शन में देख रहा था, उसने उसे पत्थरवाह करके जान से मारने वाले यहूदियों के लिए परमेश्वर से क्षमा की याचना की (प्रेरित.7:55-56)। यहाँ पर एक सेवक था, जो पवित्र आत्मा से भरा हुआ था और जो इस भरपूरी को सम्भवत: सर्वाधिक गम्भीर परीक्षा के दौरान जी रहा था। ये आपके पवित्र उदाहरण हैं : उन्हीं के समान सोचे, प्रार्थना करें, प्रचार करें, और कार्य करें।

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