Brain Wish
Brain Wish, posts include a mixture of Black history, organizational news, and political activism.
हिन्दी दिवस विशेष...
कमर दर्द, सर्वाइकल और चारपाई ( खाट)
ये समझिए कि हमारे पूर्वज वैज्ञानिक थे
सोने के लिए खाट हमारे पूर्वजों की सर्वोत्तम खोज है क्या हमारे पूर्वजों लकड़ी को चीरना नहीं जानते थे!, वे भी लकड़ी चीरकर उसकी पट्टियाँ बनाकर डबल बेड बना सकते थे डबल बेड बनाना कोई रॉकेट साइंस नहीं था
लकड़ी की पट्टियों में कीलें ही ठोंकनी होती हैं चारपाई भी भले कोई सायंस नहीं है , लेकिन एक समझदारी है कि कैसे शरीर को अधिक आराम मिल सके चारपाई बनाना एक कला है उसे रस्सी से बुनना पड़ता है और उसमें दिमाग और श्रम लगता है।
जब हम सोते हैं , तब सिर और पांव के मुकाबले पेट को अधिक खून की जरूरत होती है क्योंकि रात हो या दोपहर में लोग अक्सर खाने के बाद ही सोते हैं पेट को पाचनक्रिया के लिए अधिक खून की जरूरत होती है। इसलिए सोते समय चारपाई की जोली ही इस स्वास्थ का लाभ पहुंचा सकती है
दुनिया में जितनी भी आराम कुर्सियां देख लें सभी में चारपाई की तरह जोली बनाई जाती है बच्चों का पुराना पालना सिर्फ कपडे की जोली का था लकडी का सपाट बनाकर उसे भी बिगाड़ दिया गया,चारपाई पर सोने से कमर और पीठ का दर्द का दर्द कभी नही होता है दर्द होने पर चारपाई पर सोने की सलाह दी जाती है
डबलबेड के नीचे अंधेरा होता है, उसमें रोग के कीटाणु पनपते हैं, वजन में भारी होता है तो रोज-रोज सफाई नहीं हो सकती चारपाई को रोज सुबह खड़ा कर दिया जाता है और सफाई भी हो जाती है, सूरज का प्रकाश बहुत बढ़िया कीटनाशक है खाट को धूप में रखने से खटमल इत्यादि भी नहीं लगते हैं
अगर किसी को डॉक्टर Bed Rest लिख देता है तो दो तीन दिन में उसको English Bed पर लेटने से Bed -Soar शुरू हो जाता है भारतीय चारपाई ऐसे मरीजों के बहुत काम की होती है चारपाई पर Bed Soar नहीं होता क्योकि इसमें से हवा आर पार होती रहती है
गर्मियों में Bed मोटे गद्दे के कारण गर्म हो जाता है इसलिए AC की अधिक जरुरत पड़ती है जबकि चारपाई पर नीचे से हवा लगने के कारण गर्मी बहुत कम लगती है
बान की चारपाई पर सोने से सारी रात Automatically सारे शारीर का Acupressure होता रहता है
हमारी देशी ‘चारपाई’ की उपयोगिता और गुण के समझते हुए अमेरिकी कंपनीयां विदेश में 1 लाख रुपये से ज्यादा में इसे बेच रही पर हम इसके गुणों को अनदेखा कर बेड पर लेट कर हज़ारों बीमारियाँ ले रहे और अपनी ही किफ़ायती गुणकारी चीज़ों विदेशों में जाकर उनके मनचाहे पे अपनी देशी चीजें ख़रीद रहे!
मैं फेसबुक को पूरी इजाज़त देता हूँ कि वो मेरी फ़ोटो को अपने मुख्यालय के मेन गेट पर लगवा दे तब भी मुझे कोई ऐतराज़ नहीं है। उल्टा मैं ही फेसबुक वालों को धन्यवाद दूंगा ! मेरी कोई भी निजी जानकारी अगर फेसबुक के पास है तो उसकी किताब छपवा कर या अख़बार में छपवाकर पूरे इंडिया और अमरीका में बंटवा दे, मेरे उपर कोई डाक्यूमेंट्री या वेब सीरीज बनवा दे इसकी भी इजाज़त मै देता हूँ ! बोलेगा तो मैं एडिट भी कर दूंगा।
फेसबुक मेरे खाने पीने घूमने-फिरने से लेकर मेरे इंस्टाग्राम, ट्विटर व खुद फेसबुक मुझे फ़ॉलो करे ! तब भी मुझे कोई ऐतराज़ नहीं है !
इसी प्रकार मै कहीं भी जाऊँ वो मेरी लोकेशन पता लगाकर हर चौराहे पर डिस्प्ले बोर्ड लगा कर सबको सूचित करता रहे तब भी मुझे कोई ऐतराज़ नही।
Regards....... 😎
#दलिया छोड़ दिए हो, इसलिए #रोग पकड़े हुए हो
स्कूल में मिलने वाला मिड डे मील हमेशा दलिया ही होता था। अक्सर मैं सोचा करता था कि हमें दलिया ही क्यों देते हैं? ढेर भर के आइटम्स छोड़ छाड़ के सिर्फ दलिया ही क्यों परोस देते हैं? खैर, वक्त बीतता गया और दलिया हमारे रोज के खानपान से दूर होता गया थोड़ी पढ़ाई लिखाई किये और फिर जंगलों की तरफ रुख किया। आदिवासियों के साथ रहने लगा और देखते ही देखते मेरे खानपान में दलिया एक बार फिर लौट आया और जब दलिया से जुड़ी जानकारियां गाँव देहात के जानकारों से मिलने लगी तो समझ आया कि दलिया तो जन्नत है। शुक्रिया है उन पॉलिसी मेकर्स का जिन्होंने मिड डे मील में दलिया इनकॉरपोरेट करवाया होगा
दलिया बेहद पौष्टिक आहार है। 100 ग्राम दलिया खा लेंगे तो दिन भर के लिए आवश्यक फाइबर्स का 75% हिस्सा आपको मिल जाएगा। मैग्नेशियम भी खूब होता है इसमें जो हार्ट के लिए जरूरी है। इसमें आयरन और विटामिन B6 भी अच्छा खासा मिल जाता है। हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए भी दलिया हमारे शरीर में ताबड़तोड़ मेहनत करता है। इतने सारे गुण है इस दलिये में तो फिर हमारी रसोई से क्यों नदारद है ये? मुझे याद आ रही है एक घटना, उस वक्त मेरी उम्र करीबन 16 साल रही होगी। क्रिकेट खेलने का चस्का लग चुका था। मेरे दोस्त के पिताजी बड़े सरकारी ओहदे पर थे, सरकारी बंगला मिला हुआ था उन्हेँ, घर में एकाध दो नौकर चाकर भी थे। अक्सर उनके घर पर मैं और मेरे कुछ दोस्त क्रिकेट खेला करते थे। एक दिन उनके कुक ने दलिया परोसकर हमें खाने के लिए बुलाया। मैं दलिया पाते ही खुश हो गया, स्कूल वाला मिड डे मील याद आ रहा था। दोस्त के पिताजी ने हमें दलिया खाते हुए देख नौकर को अच्छी खासी फटकार लगा दी, 'ये भी कोई चीज है जो बच्चों को दे रहे हो? कोई ढंग की चीज बना लेते'...मैं बड़ा एन्जॉय कर रहा था दलिया को लेकिन प्लेट हाथों से ले ली गयी और हमें नूडल्स खाने के लिए दिया गया। बस ऐसे ही सत्यानाश हुआ होगा हमारे पारंपरिक भोज दलिया का। नूडल्स ने निगल लिया दलिया..
आदिवासी तबकों में अलग-अलग प्रकार के दलिया बनते हैं। कहीं दरदरे गेंहू का दलिया, कहीं चावल या किनकी का दलिया और कहीं कुटकी का दलिया। दक्षिण गुजरात में आदिवासी नागली (रागी) का दलिया भी बनाते हैं। औषधीय गुणों की खान होता है दलिया लेकिन भागती दौड़ती ज़िंदगी में हम शहरी लोग इस कदर भागे कि देहाती खानपान को तुच्छ समझने लगे। हम गबदू और आलसखोर हो गए और जल्दबाज़ी के चक्कर में फास्टफूड की तरफ रीझने लगे। हमारा फ़ूड तो बेशक फास्ट हुआ लेकिन बॉडी का सिस्टम स्लो हो गया। हम बीमार होने लगे, शारीरिक और मानसिक रूप से। यहाँ मानसिक बीमार इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि कुछ खानपान को हमने निम्नस्तर का या गरीबों का खानपान मान लिया, बस वहीं गलती हो गई।
सन 1990 के बाद से हिंदुस्तान में लाइफ स्टाइल डिसऑर्डर्स की भरमार होने लगी। डायबिटीज, आर्थराइटिस, कैंसर, हार्ट डिसीसेस, मोटापा और तरह तरह के टीमटाम वाले रोग हर परिवार में पैर पसारने लगे, क्यों? बताइये क्यों? आज भी ग्रामीण तबकों में ये सब समस्याएं काफी कम हैं या ना के बराबर हैं, क्यों? बताइये क्यों? क्योंकि ये लोग आज भी पारंपरिक खानपान को अपनाए हुए हैं। इनका गरीब होना या भीड़भाड़ और भागते दौड़ते वाले समाज से दूरी होना, इनके लिए 'ब्लेसिंग इन डिस्गाइज़' है। अगर हमारे गांव देहात लाइफ स्टाइल डिसऑर्डर्स से काफी हद तक दूर हैं, उनके जीवन में तनाव कम है और उनके नसीब में पिज़्ज़ा, बर्गर, चाउमीन और अट्टरम सट्टरम चीजें नहीं हैं, तो ये उनके विकसित होने का प्रमाण है, फिर हम लोग लाख कहते रहें कि वो देहाती हैं, आदिवासी हैं या गरीब हैं लेकिन सच्चाई ये है कि वे हमसे लाख गुना बेहतर हैं.. गाँव देहातों में आज भी दलिया और दलिया जैसे कई पौष्टिक व्यंजन अक्सर बनते हैं, इन्हें बड़े शौक से खाया जाता है। बाज़ारवाद ने दलिया को ओट मील बना दिया और आपकी पॉकेट ढीली करवा दी। आप घर में ही दलिया तैयार करें या पता कीजिये आसपास में आटा चक्की कहाँ है, और दलिया बनवा लाइये। अब ये ना पूछना कि आटा चक्की क्या होती है? दलिया बनता कैसे है? इतना भी तेज ना भागो कि लौटने की गुंजाइश खत्म हो जाए...अपने घर परिवार के बुजुर्गों से पूछिये, सब समझा देंगे, गूगल के दादा परदादी सब आपके घर में ही हैं, उनसे बात कीजिये, सीखिये, इसी बहाने उनका मान भी बढ़ेगा और उन्हें अच्छा लगेगा। भागती दौड़ती लाइफ में हम दलिया तो भूल ही चुके हैं, बुजुर्गों से संवाद भी तो नदारद है पता नहीं किधर भागे जा रही है दुनिया, वापसी करो उस पगडंडी की तरफ जो आपको फार्मेसी और अस्पताल नहीं, अच्छी सेहत की ओर पहुंचाए। भटको, सारे चक्कर एक तरफ फेंक मारो... #दलिया खाना शुरू करें, कम से कम दस दिन में एक बार ही सही
बच्चों की परवरिश कैसे करे....
पूरी पोस्ट पढ़ें...
#मुस्लिम_इतिहासकार ऐसा लिखते है कि इस्लाम द्वारा भारत विजय का प्रारंभ मुहम्मद बिन कासिम के 712 AD में सिंध पर आक्रमण से हुआ और महमूद गजनवी के आक्रमणों से स्थापित, तथा मुहम्मद गौरी के द्वारा दिल्ली के प्रथ्वीराज चौहान को 1O92 A.D. में हराने से पूर्ण हुआ !
फिर दिल्ली सल्तनत के गुलाम वंश, खिलजी, तुगलक, सैयद और लोदी वंश के सुल्तान और मुग़ल बादशाह हिंदुस्तान के शासक बताये गए !
यह इतिहास का पूरा सच नहीं हैं ,सच यह है कि य़ह 1200 वर्षोँ तक चलने वाला राजपूत मुस्लिम युद्ध था ! जिसमे शुरू के 500 वर्षो में स्लामिक आक्रान्ताओ को राजपूतो ने भारत मे घुसने तक नही दिया था. और बाद के 700 वर्ष में राजपूत और स्लामिक संघर्ष चरम पर रहा, जिसमे अंतिम विजय मराठा साम्राज्य, राजपूत और सिख साम्राज्य के रूप में हुयी और अब सच की विवेचना के लिए इनके बारे में कुछ तथ्य !
मुहम्मद बिन कासिम 712 AD में जब वह सिंध के राजा दाहिर को हराकर आगे बढ़ा उसे गहलोत वंश के राजा कालभोज ने बुरी तरह हराकर वापस भेजा !
अब अगले 250 वर्ष तक मुस्लिम प्रयास तो बहुत हुए पर पीछे धकेल दिए गए इस बीच भारत में राजपूत राज्य ही प्रभावी रहे !
1000 AD से महमूद गजनवी के कथित सत्रह आक्रमणों में पांच हारे, और पांच मन्दिरों की लूट की,
सबसे महत्वपूर्ण सोमनाथ की लूट की दौलत भी गजनी तक वापस नहीं ले जा पाया, जिसे सिन्ध मे लूट लिया गया था वह कही भी सत्ता स्थापित नहीं कर पाया !
इसके बाद अगले 150 वर्ष तक फिर कोई मुसलमान राजपूत सत्ता को चुनौती देने को नहीं आया और भारत में राजपूत राज्य प्रभावी बने रहे !
1178 में मुहम्मद गौरी का गुजरात पर आक्रमण हुआ, चालुक्य राजा ने गौरी को बुरी तरह हराया !इसके बाद 1191 में पृथ्वीराज ने भी गौरी को वुरी तरह हराया ! और जान की भीख दी.
1192 में गौरी ने पृथ्वीराज को हराया फिर गौरी ने पंजाब, सिंध, दिल्ली, और कन्नौज जीते !
पर ये विजयें अस्थायी रहीं क्योंकि वह 1206 में सिंध के खक्खरों के साथ युद्ध में गौरी मार डाला गया !
उसके बाद सत्ता में आया कुतुबुद्दीन ऐबक भी 1210 में लाहौर में ही मर गया और गौरी का जीता हुआ क्षेत्र बिखर गया !
उसके बाद इल्तुतमिश ने अजमेर, रणथम्मौर, ग्वालियर कालिंजर और महोबा जीते !
मगर कुछ समय में ही कालिंजर चंदेलों ने, ग्वालियर को प्रतिहारों ने, बूंदी को चौहानो ने मालवा को परमारों ने वापस ले लिया, रणथम्मौर, मथुरा पर राजपूत कब्ज़ा कर चुके थे !
गहलोत वंशी जैत्र सिंह ने इल्तुतमिश से चित्तौड़ वापस ले लिया इस प्रकार सत्ता राजपूतों के हाथ में ही रही थी !
उसके बाद बलबन ने राज्य बिखराव और राजपूत ज्वार रोकने में असफल रहा और सल्तनत सिमटकर दिल्ली के आसपास रह गयी थी !
गुलाम वंश को हटाकर खिलजी वंश आया, इस वंश के अलाउद्दीन खिलजी ने 1298 में गुजरात और 1303 मे चित्तौड़ जीत लिया !
पर 1316 में राजपूतों ने युद्ध कर पुनः चित्तौड़ वापस जीत लिया, रणथम्मौर में भी खिलजी को हार का मुंह देखना पड़ा था !
खिलजी के सेनापति मलिक काफूर ने देवगिरी, वारंगल, द्वारसमुद्र और मदुराई पर अभियान किया और जीता !
पर उसके वापस जाते ही इन राजाओं ने अपने को स्वतत्र घोषित कर दिया !
1316 में खिलजी के मरने के बाद उसका राज्य ध्वस्त हो गया !
इसके बाद तुगलक वंश आया 1325 में मुहम्मद तुगलक ने देवगिरी और काम्पिली राज्य पर विजय और द्वारसमुद्र और मदुराई को शासन के अन्तर्गत लाया ! राजधानी दिल्ली से हटाकर देवगिरी ले गया !
पर मेवाड़ के महाराणा हम्मीर सिंह ने मुहम्मद तुगलक को बुरी तरह हराया और कैद कर लिया था !
फिर अजमेर, रणथम्मौर और नागौर पर आधिपत्य के साथ 50 लाख रुपये देने पर छोड़ा जिससे तुगलक राज्य दिल्ली तक सीमित रह गया और 1399 में तैमूर के आक्रमण से तुगलक राज्य पूरी तरह बिखर गया !
मुहम्मद तुगलक पर विजय के उपलक्ष्य में हम्मीर ने “महाराणा“ की उपाधि धारण की !
उसके बाद महाराणा कुम्भा द्वारा गुजरात के राजा कुतुबुद्दीन और मालवा के सुल्तान पर विजय प्राप्त की.
इन विजयों के उपलक्ष्य में चित्तौड़ गढ़ मे विजय स्तम्भ और पूरे राजस्थान में 32 किले भी बनवाये !
महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) ने अपने शुरू के शासनकाल में मालवा के शासक को पराजित कर बंदी बनाया और छह महीने बाद छोड़ा !
1519 में इब्राहीम लोदी को भी बुरी तरह हराया !
इस प्रकार महाराणा हम्मीर से राणा सांगा तक 1326 से 1527 (200 वर्ष तक) उत्तर भारत के सबसे बड़े भूभाग पर राजपूत साम्राज्य छा रहा था और इन्हें चुनौती देने वाला कोई नहीं था !
इसी बीच दक्षिण में विजय नगर साम्राज्य क्षत्रिय शक्ति के रूप में केन्द्रित हो चूका था और कृष्ण देव राय (1505-1530) के समय चरम उत्कर्ष पर था और उड़ीसा ने भी क्षत्रिय स्वातंत्र्य पा लिया था !
तुगलकों के बाद सैयद वंश 1414 से 1451 तक और लोदी वंश 1451 से 1526 तक रहा जो दिल्ली के आस पास तक ही रह गया था !
इसके बाद फिर दोवारा इब्राहीम लोदी को राणा सांगा ने हराया !
प्रमुख इतिहासकार आर सी मजूमदार लिखते है कि दिल्ली सल्तनत अलाउद्दीन खिलजी राज्य के 20 साल (1300-1320)और
मुहम्मद तुगलक के 10 साल इन दो समय को छोड़कर भारत पर तुर्की का कोई साम्राज्य नहीं रहा था !
फिर मुग़ल वंश आया मुग़ल बाबर ने कुछ विजयें अपने नाम की पर कोई स्थायी साम्राज्य बनाने में असफल रहा, इसी दौर में मेवाड़ के राणा सांगा ने बयाना के युद्ध मे बाबर को धूल चटाई....उसके बाद उसका बेटा हुमायु भी शेरशाह से हार कर भारत से बाहर भाग गया था !
शेर शाह (1540-1545) तक रणथम्मौर और अजमेर को जीता पर कालिंजर युद्ध के दौरान उसकी मौत हो गयी और उसका राज्य अस्थायी ही रहा !
फिर एक बार राजपूत राज्य सगठित हुए और दिल्ली की गद्दी पर राजा हेम चन्द्र ने 1556 में विक्रमादित्य की उपाधि धारण की !
1556 में ही अकबर ने हेमचन्द्र (हेमू ) को हराकर मुग़ल साम्राज्य का स्थायी राज्य स्थापित किया जो 150 वर्ष तक चला जिसमे सभी दिशाओं राज्य विस्तार हुआ ! लेकिन इस दौर मेवाड़ ऐसा राज्य था जो अकबर के अधीन नही था, हल्दीघाटी और दिवेर में अकबर की सेना को मुंह की खानी पड़ी.....
इस काल के अधिकांश विजयें राजपूत सेनापतियों और उनकी सेनाओं द्वारा हासिल की गयीं जिनका श्रेय अकबर ने अकेले लिया !
अकबर ने इस्लामिक कट्टरता छोड़ राजपूतों की शक्ति को समझा और उन्हें सहयोगी बनाया !
जहाँगीर और शाहजहाँ के समय तक यही नीति चली, इन 100 वर्षों में मुसलमानों और राजपूत का संयुक्त और राजपूत शक्ति पर आश्रित राज्य था इस्लामी राज्य नहीं |
पूरे मुग़ल राज्य के बीच भी मेवाड़ में राजपूतों की सत्ता कायम रही !
औरंगजेब ने जैसे ही अकबर की नीतियों के विपरीत इस्लामी नीतियां लागू करनी आरम्भ की राजपूतों ने अपने को स्वतन्त्र कर लिया !
उधर शिवाजी ने मुग़ल साम्राज्य के खिलाफ विगुल बजा दिया और 1707 तक मुग़ल राज्य का समापन हो गया उसके बाद के दिल्ली के बादशाह दयनीय स्थिति में कभी राजपूतों के, कभी अंग्रेजों के आश्रित रहे !
1674 से 1818 तक मराठा साम्राज्य भारत में बढ़ता व घटता रहा....
राजस्थान में राजपूत राज्य और पंजाब में सिख साम्राज्य राज्य के रूप में विजयी हुए |
इन शक्तियों के द्वारा मुस्लिम सत्ता की पूर्ण पराजय और अंत हुआ !
इस पूरे विषम काल मे राजपूतों ने 712 ईसवी से ,बप्पा रावल के रूप से संघर्ष शुरू किया और 1000 वर्ष के लंबे संघर्ष के बाद 1600ईसवी में महाराणा प्रताप तक रक्तसंचित संघर्ष किया...1600 के बाद मराठा,सिख, व और साम्रज्यों की नींव पड़ी....जिन्होंने भी इस्लामिक शक्तियों से लोहा लिया......
इस प्रकार जिसे मुस्लिम साम्राज्य कहा जाता है वह वस्तुतः राजपूत राजाओं और मुसलमान आक्रमण कारियों के बीच एक लम्बे समय (1200 वर्ष) तक चलने वाला युद्ध था कुछ लड़ाइयाँ राजपूत हारे, कुछ में हराया और अंतिम जीत राजपूतों की ही रही !!!!
#राजन्य_क्रॉनिकल्स_टीम
#केले के पत्तों पर खाना खाने का रिवाज
दक्षिणी भारत में केले के पत्तों पर विशेष भोजन परोसा जाता है। सामुदायिक परोसने की थाली के रूप में एक बड़े पत्ते का उपयोग करने की प्रथा है। इस प्रकार के भोजन को तमिल में सापड़ कहा जाता है।
विभिन्न प्रकार के भोजन को भाप में पकाने, ग्रिल करने और पकाने के दौरान केले के पत्तों का उपयोग प्राकृतिक खाद्य आवरण के रूप में किया जाता है।
सांस्कृतिक मान्यताएँ:
किसी भी दक्षिण भारतीय उत्सव में केले के पत्ते पर पारंपरिक भोजन जरूरी है। सबसे पहले कार्बोहाइड्रेट (चावल), फिर प्रोटीन (दाल), आयरन से भरपूर सब्जियां और वसा (दही) खाना होगा। यही वह क्रम है जिसमें खाना परोसा भी जाता है और खाया भी जाता है। फर्श पर चटाई पर बैठकर खाना खाना और भी अधिक पारंपरिक है। व्यक्ति को ऐसे बैठना होता है जैसे कि वह पद्मासन (कमल) की मुद्रा में बैठा हो।
केले के पत्ते से खाना स्वच्छ और स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है। किसी भी अतिथि को केले के पत्ते पर भोजन परोसा जा सकता है जिसे विनम्र और सम्मानजनक माना जाता है।
केले के पत्तों के उपयोग के फायदे:
केले के पत्ते पर गर्म खाना परोसने से पत्ते से महत्वपूर्ण पोषक तत्व निकलेंगे जो खाने में मिल जाएंगे और खाए जाएंगे।
अतीत में कोई प्लेटें उपलब्ध नहीं थीं; केले के पत्ते आसानी से उपलब्ध थे और इतने बड़े थे कि उनमें सारा भोजन समा सके। इसके अलावा, पत्ते में कोई विशेष गंध नहीं होती जो आपको परेशान कर सके।
पत्तियां आसानी से डिस्पोज़ेबल और पर्यावरण के अनुकूल हैं। पत्तियां जलाने पर भी ओजोन परत प्रभावित नहीं होती।
वैज्ञानिक कारण:
केले के पत्तों में बड़ी मात्रा में पॉलीफेनोल्स जैसे एपिगैलोकैटेचिन गैलेट या ईजीसीजी होते हैं, जो ग्रीन टी में भी पाए जाते हैं। पॉलीफेनोल्स प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट हैं जो कई पौधों पर आधारित खाद्य पदार्थों में पाए जाते हैं।
चूँकि कोई रासायनिक प्रतिक्रिया नहीं होती है, भोजन अपना मूल्य बरकरार रखता है: यह गर्मी सहन कर सकता है और गर्मी से अलग हुए बिना अच्छी तरह से प्रतिक्रिया कर सकता है।
फर्श पर बैठकर खाना भी फायदेमंद होता है, क्योंकि यह स्थिति भोजन को आहार नली के माध्यम से पेट तक कुशलतापूर्वक पहुंचने में मदद करती है। जिससे अधिक खाने के खतरे को नियंत्रित किया जा सकता है।
Hidden Story of Soniya Gandhi and Congress Party
एक सच जो छिपाया गया... राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का असली नाम क्या था?
जानने के लिए पूरी कहानी देखे.
हमारा चाय वाला प्रधान मंत्री जिसे कुछ लोग चौथी फैल मानते है... उन यूनिवर्सिटी टॉपर को सीखने की जरूरत है..
PM Modi अमेरीका के ख़र्चे पर अमेरिका जाते है मस्त डिनर करते है, और वहाँ से ले आते है...
1- 82 हजार करोड़ Google से.
2- 15 billion dollar Amazon से.
3- Apple का manufacturing प्लांट.
4-Tesla के elon musk को व्यापार का न्योता.
5- बोइंग के सीईओ से HAL के साथ मिल कर जेट इंजन का भारत मे manufacturing.
बदले मे दिया क्या?
1 महाराष्ट्र का गुड़ (भेली).
2 हरियाणा का ghee.
3 राजस्थान का सोने का सिक्का.
4 उत्तराखंड का लंबा दाने वाला चावल.
5 उत्तर प्रदेश के तांबे से निर्मित पत्रा जिसपर मंत्र लिखे है.
6- सफेद तिल, चांदी का नारियल जो तमिलनाडु से लाया गया.
7- झारखंड से हस्त निर्मित रेशम का कपड़े का टुकड़ा.
8- गुजरात का नमक
9- चांदी की गणपति प्रतिमा
10-चांदी का नारियल
11- चांदी का सिक्का
और ये सब कर्नाटक के चंदन के लड़की के बॉक्स मे छोटी छोटी डिब्बी मे भरे हुए थे.
World's richest business tycoons join PM Modi for State Dinner at the White House
आत्मनिर्भर भारत फैल हो रहा है क्या???
जिन लोगों को GST, infrastructure, privatisation, आत्मनिर्भर, Industrial corridor, जैसे दूरदर्शी स्टेप अब तक बुद्धि मे नहीं घुसे उनको ये केस स्टडी देखनी चाहिए..
रवीश कुमार वाकई मे तुम देश की जाहिल जनता के राजनीतिक गुरु हो? जो किसी एक व्यक्ति विषेश के विरोध मे देश को बदनाम कर रहे हों.....?
2000 के नोट की खबर सुन कर कुछ लोग इतने दुखी है कि
ऐसी पोस्ट डाल रहे है....
बहुत ढूँढा 2000 का नोट घर मे मिल नहीं रहा.... बेरोजगारी
ये वही है पंचर बनाने वाले!
पढ़ना लिखना है नहीं सरकारी नौकरी इनको पहिले चाहिए...
Reality Of Kerala Story.....
&
Politics
Research By Nitish Rajput
Sambha Ji Raje Tribute.
Every Indians must watch about sambhaji raje a forgotten prince of Bharat
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अपनी अपनी डेट ऑफ बर्थ सबको पता होगी ??
मैं 100 देशों की डेट ऑफ बर्थ बता सकता हू.....!
क्या आप केवल भारत की डेट ऑफ बर्थ बता सकते
हो??
यही है सनातन...
देश मत बेचो खुद के स्वार्थ के लिए बस यही कर लो......
भारत से वापिस जाने के बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्री का बयान सुनने लायक है |
बीते दो दिन पहले हुई समिट मे भारत आए पाकिस्तान सहित अन्य देशों के प्रमुख ने भारत के विदेश मंत्री श्रीं जयशंकर से मुलाकात की, पाकिस्तान के अलावा सभी देशों के प्रमुख के साथ जयशंकर सहाब ने अच्छी-खासी मुलाकात की और उनका स्वागत किया
वही पाकिस्तान के विदेश मंत्री को दूर से नमस्ते कर के जयशंकर सहाब ने आगे जाने का इशारा करते हुए इग्नोर कर दिया.
इस घटना के बाद जयशंकर सहाब का बयान सुनने लायक था.
उन्होंने साफ़ कहा कि पाकिस्तान के साथ जैसा बर्ताव करना चाहिए था मैंने उसी तरह किया, बिलावल भुट्टो आतंकवाद को पालने वालों के मसीहा है, उनके साथ ऐसा बर्ताव करना ही उचित है.
यहा तक तो ठीक है मगर....
सोंचने वाली बात ये है कि भुट्टो सहाब पाकिस्तान लौट कर भारत के बारे मे एक भी शब्द ना बोल कर सीधा बीजेपी और आरएसएस के बारे मे बोल रहे है. वो भी 2024 इलेक्शन के ठीक पहले.
अखिर उनका क्या सम्बंध बीजेपी आरएसएस से?
ये उन्हीं की भाषा बोल रहे है जो भारत मे बैठ कर उनकी जी हजूरी करते है.
कितना जरूरी है देश को एक सही नेतृत्व करने वाले की इसका अंदाजा लगाया जा सकता है!
फिल्म PK vs फिल्म The Kerala Story.
पीके फिल्म का निष्कर्ष आपको याद है...?
पीके फिल्म इस अंतिम दृश्य के साथ समाप्त हो जाती कि " मुसलमान कभी धोखा नहीं देता" सरफराज (अब्दुल) धोखेबाज नहीं हैं।
का निष्कर्ष आपको पता है ?
"अब्दुल धोखा देने के लिए ही प्यार करता है।"
यह दोनों फिल्में एक दूसरे से एकदम विपरीत हैं ।
जैसे जादूगर अपने खेल में पहले तो कबूतर, टॉर्च, कोल्ड ड्रिंक एक के बाद एक वस्तु निकालता जाता है आपको लगता है यह जादू दिखा रहा है लेकिन वास्तव में उसका मुख्य उद्देश्य अंतिम में दृष्टिगोचर होता है जब वह अंत में आपके सामने पैसे के लिए झोली फैला देता है।
जादूगर का उद्देश्य आपको जादू दिखाना नहीं अपितु जादू के नाम पर अपने भोजन पानी की व्यवस्था करना हैं ।
ऐसे ही पीके फिल्म का जादूगर आमिरखान हिन्दुओं की कुछ रूढ़िवादी मान्यताओं, कुरीतियों, अंधविश्वास को स्पष्ट करने का जादू दिखाता है और उससे आप फूलकर कुप्पा हो जाते हैं फिर अंत में जादूगर आमिरखान अपना असली गेम खेलता है जो कि उसका मुख्य उद्देश्य था कि "मुसलमान कभी धोखा नहीं देता" और आपको थियेटर से निकलते निकलते अंतिम निष्कर्ष ही स्मरण रहता है कि मुसलमान कभी धोखा नहीं देता यह सब साधु संत ही हमारे समाज में मुसलमानों के विरोध में विषैला वातावरण निर्मित कर रहे है।
साधु-संतों प्रचारकों, विद्वानों के द्वारा लव जिहाद के विरोध में फैलाई जा रही जागरूकता से परेशान होकर ही राजकुमार हीरानी और आमिर खान जैसे लोगों ने हिन्दू लड़कियों का ब्रेनवाश करने के लिए ही पीके फिल्म की ऐसी पटकथा लिखी जिसमें संतों को विलेन और अब्दुल को हीरो प्रमाणित किया जा सके जो कि फिल्म का मुख्य उद्देश्य था और उसमें वे बहुत सीमा तक सफल भी रहे।
परन्तु पीके द्वारा फैलाई गई भ्रांति का निवारण के द्वारा बहुत ही उत्तम ढंग से किया गया है।
सभी समाज सुधारक लोग हिन्दू लड़कियों को जितना जागरूक नहीं कर पाए उससे कहीं ज्यादा अकेली फिल्म पीके ने लव जिहाद को प्रोत्साहित किया।
और अब ऐसे ही एक ओर सभी सनातनी प्रचारक जितना कार्य करेंगे उससे कहीं अधिक एक ओर अकेली फिल्म TKS जागरूक करेगी, क्योंकि लोग आजकल स्क्रीन से ही बहुत कुछ सीखते हैं।
पीके द्वारा फैलाए गए लव जिहाद के कीड़े को अपने फिनायल से तडपा- तड़पाकर मारने वाली फिल्म सिद्ध होगी
Back Camera Stuff
Must watch till End, who love
भारत की संस्कृति जितनी ज़्यादा रोचक है, उतनी दुनियां के किसी देश की नहीं है। विविधताओं से भरे हमारे देश का हर रंग निराला है.. जब रंगों की बात होती है तो याद आते हैं यहाँ मनाये जाने वाले उत्सव या पर्व!
भारत में बहुत समय पहले से त्योहारों पर नृत्य करने की परम्परा चली आ रही हैं और प्रत्येक राज्य के अपने कुछ लोक नृत्य हैं। सामान्य भाषा में कहें तो ऐसा नृत्य जो लोगो या समुदाय में प्रिय हो, वह लोक नृत्य कहलाता है।
इन्हीं अलग-अलग नृत्यों को भारत के मानचित्र में हमने दर्शाने की कोशिश की है। इनमें से आपके राज्य का लोक नृत्य कौन-सा है, हमें कमेंट बॉक्स में बताएँ।
For Cricket Lovers only......
अंदर की बात । पुरानी याद...
🇮🇳
CONGRATULATIONS !!
launches PSLV-C55/TeLEOS-2 Mission from Satish Dhawan Space Centre (SDSC) SHAR, Sriharikota.
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Lalu Parsad Yadav, Mamta Banerjee, Jaffer Shariff, Nitish Kumar, etc., etc., - have been our previous Central Railway Ministers; now see this.
He is Mr. Ashwini Vaishnav, M. Tech, MBA. (B. Tech from IIT Kanpur) Former IAS (+) Former MD, GE Transportation...
Former Vice President, Siemens...
No Political Background...
And yet made the Minister of Railways as well as Minister of Electronics and Information Technology...
The result is in front of us...
Amazing clarity... How this Minister is working silently and in a synced manner... He speaks like a CEO of a $1 Trillion Corporation ...
Fully on top of his subject...!
ब्राह्मण कौन है?
आओ बताता हूँ .... प्रधानमंत्री जी या मुख्यमंत्री जी ध्यान से सुनिए गा...
ब्राह्मण (General Category) कौन हैं ?
जिस व्यक्ति पर एट्रोसिटी_एक्ट 89 के तहत बिना इन्क्वारी के भी कार्यवाई की जा सकती है, वो ब्राह्मण !
जिसको जाति सूचक शब्द इस्तेमाल करके बेखौफ गाली दी जा सकती है, वो ब्राह्मण है!
देश में आरक्षित 131 लोकसभा सीटो और 1225 विधानसभा सीटो पर चुनाव नही लड़ सकता है, लेकिन वोट दे सकता है, वो ब्राह्मण है!
जिसके हित के लिए आज तक कोई आयोग नही बना, वो ब्राह्मण है!
जिसके लिए कोई सरकारी योजना न बनी हो,
वो ब्राह्मण है!
जिसके साथ देश का संविधान भेदभाव करता है, वो ब्राह्मण है!
मात्र जिसको सजा देने के लिए NCSC और NCST का गठन किया गया वो ब्राह्मण है!
मात्र जिसे सजा देने के लिए हर जिले में विशेष SCST न्यायालय खोले गए हैं, वो अभागा ब्राह्मण है!
जो स्कूल में अन्य वर्गों के मुकाबले चार गुनी फीस दे कर अपने बच्चों को पढाता है, वो बेसहारा ब्राह्मण है!
नौकरी, प्रमोशन, घर allotment आदि में जिसके साथ कानूनन भेदभाव वैध है वो बेचारा ब्राह्मण है!
सरकारों व सविधान द्वारा सबसे ज्यादा प्रताड़ित किया जाने वाला वो ब्राह्मण है!
सबसे ज्यादा वोट देकर भी खुद को लुटापिटा ठगा सा महसूस करने वाला वो ब्राह्मण है!
सभाओं में फर्श तक बिछा कर एक अच्छी सरकार की चाह में आपको सत्ता सौंपने वाला वो ब्राह्मण है !
देश हित मे आपका तन मन धन से साथ देने वाला वो ब्राह्मण है!
इतने भेदभाव के बावजूद भी,
धर्म की जय हो,अधर्म का नाश हो प्राणियों में सद्भावना हो,विश्व का कल्याण हो की भावना जो रखता है,वो ब्राह्मण है!
सबका साथ सबका विकास में हमारी स्थिती क्या है ? विचार अवश्य करें!
समस्त ब्राह्मण परिवारों की तरफ से भारत सरकार को समर्पित ...
अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी जैसे माफियाओं के लिए हमदर्दी दिखाने वालों से कुछ सवाल ?
जब मुख्तार अंसारी ने कोतवाली में ताला लगवा दिया था, तब कानून का राज था ?
जब अतीक अहमद ने 20 सिपाहियों को अपने घर में बंदी बना लिया था, तब भी कानून का राज था ??
जब आजम खान ने एक एसएसपी को 3 घंटे अपने घर पर खड़ा होने की सजा दी थी,तब भी कानून का ही राज था ?
जब 12 जजों की बेंच ने अतीक अहमद और मुख्तार के खिलाफ चलने वाले केसों को सुनने से मना कर दिया था,तब कानून का राज था ..??
जैसे ही एक संन्यासी ने प्रदेश की कमान संभाली असहाय सी दिखने वाली पुलिस इन्हीं अपराधियों को घसीट घसीट कर थाने में लाने लगी, दौड़ा दौड़ा कर इनकाउंटर करने लगी यूपी को अपने बाप की बपौती समझने वाले अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी जैसे दुर्दांत अपराधी डर के मारे यूपी से हजारों किलोमीटर दूर जेलों में छुप कर बैठ गए ।
लाखों अपराधियों ने अपनी जमानत रद्द करा लिया ।
हजारों गले में तख्ती लगा कर आत्म समर्पण करने लगे, लोगों की जान लेने वाले गुंडों का परिवार प्रेस कांफ्रेंस कर के जान बख्श देने की गुहार मांग रहे है
तब कुछ लोगों की नजर में प्रदेश में कानून का राज नहीं है ?
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि जीवन आपके ऊपर क्या फेंकता है, आपके पास यह चुनने की आजादी होती है कि उसको कैसे रेस्पान्ड करना है। अगर आप चुनने की इस आजादी का हमेशा इस्तेमाल करते हैं, तो आप एक सफल इंसान हैं।
1823 में ईस्ट इंडिया कंपनी के द्वारा एकत्रित किये गए डेटा का एक सैंपल ।
गुरुकुल शिक्षा पद्धति में जब तक शिक्षा ब्राह्यणों के हाँथ में थी तब तक शिक्षा में भेद नही किया जाता था ।
शुद्र छात्रों की संख्या ब्राम्हण छात्रों से चार गुनी थी ।
सरकारी सहायता से मुक्त ।
छात्रो का शिक्षक को अनुदान 2 आना से लेकर 1 रूपये तक महीना था , छात्र के माँ बाप के आर्थिक हैसियत के हिसाब से ; और 15 दिन में एक सेर सिद्धा चावल दिया था ।
फिर 1835 में आया मैकाले ।
मैकाले दीक्षित #आंबेडकर ने कहा कि वेदों में लिखा है कि चूँकि शुद्र परमब्रम्ह के पैरो से पैदा हुवा है इसलिए उसको शिक्षा से वंचित किया गया है।
अम्बेडकर का कच्चा चिटठा खोलता एक अभिलेख।
ये डेटा धर्मपाल जी के The Beautiful Tree से उद्धरित है।
आप सबको पढ़ना चाहिए।
क्या आपने कभी पढ़ा है कि हल्दीघाटी के बाद अगले १० साल में मेवाड़ में क्या हुआ..
इतिहास से जो पन्ने हटा दिए गए हैं उन्हें वापस संकलित करना ही होगा क्यूंकि वही हिन्दू रेजिस्टेंस और शौर्य के प्रतीक हैं.
इतिहास में तो ये भी नहीं पढ़ाया गया है कि हल्दीघाटी युद्ध में जब महाराणा प्रताप ने कुंवर मानसिंह के हाथी पर जब प्रहार किया तो शाही फ़ौज पांच छह कोस दूर तक भाग गई थी और अकबर के आने की अफवाह से पुनः युद्ध में सम्मिलित हुई है. ये वाकया अबुल फज़ल की पुस्तक अकबरनामा में दर्ज है.
क्या हल्दी घाटी अलग से एक युद्ध था..या एक बड़े युद्ध की छोटी सी घटनाओं में से बस एक शुरूआती घटना..
महाराणा प्रताप को इतिहासकारों ने हल्दीघाटी तक ही सिमित करके मेवाड़ के इतिहास के साथ बहुत बड़ा अन्याय किया है. वास्तविकता में हल्दीघाटी का युद्ध , महाराणा प्रताप और मुगलो के बीच हुए कई युद्धों की शुरुआत भर था. मुग़ल न तो प्रताप को पकड़ सके और न ही मेवाड़ पर अधिपत्य जमा सके. हल्दीघाटी के बाद क्या हुआ वो हम बताते हैं.
हल्दी घाटी के युद्ध के बाद महाराणा के पास सिर्फ 7000 सैनिक ही बचे थे..और कुछ ही समय में मुगलों का कुम्भलगढ़, गोगुंदा , उदयपुर और आसपास के ठिकानों पर अधिकार हो गया था. उस स्थिति में महाराणा ने “गुरिल्ला युद्ध” की योजना बनायीं और मुगलों को कभी भी मेवाड़ में सेटल नहीं होने दिया. महाराणा के शौर्य से विचलित अकबर ने उनको दबाने के लिए 1576 में हुए हल्दीघाटी के बाद भी हर साल 1577 से 1582 के बीच एक एक लाख के सैन्यबल भेजे जो कि महाराणा को झुकाने में नाकामयाब रहे.
हल्दीघाटी युद्ध के पश्चात् महाराणा प्रताप के खजांची भामाशाह और उनके भाई ताराचंद मालवा से दंड के पच्चीस लाख रुपये और दो हज़ार अशर्फिया लेकर हाज़िर हुए. इस घटना के बाद महाराणा प्रताप ने भामाशाह का बहुत सम्मान किया और दिवेर पर हमले की योजना बनाई। भामाशाह ने जितना धन महाराणा को राज्य की सेवा के लिए दिया उस से 25 हज़ार सैनिकों को 12 साल तक रसद दी जा सकती थी. बस फिर क्या था..महाराणा ने फिर से अपनी सेना संगठित करनी शुरू की और कुछ ही समय में 40000 लडाकों की एक शक्तिशाली सेना तैयार हो गयी.
उसके बाद शुरू हुआ हल्दीघाटी युद्ध का दूसरा भाग जिसको इतिहास से एक षड्यंत्र के तहत या तो हटा दिया गया है या एकदम दरकिनार कर दिया गया है. इसे बैटल ऑफ़ दिवेर कहा गया गया है.
बात सन १५८२ की है, विजयदशमी का दिन था और महराणा ने अपनी नयी संगठित सेना के साथ मेवाड़ को वापस स्वतंत्र कराने का प्रण लिया. उसके बाद सेना को दो हिस्सों में विभाजित करके युद्ध का बिगुल फूंक दिया..एक टुकड़ी की कमान स्वंय महाराणा के हाथ थी दूसरी टुकड़ी का नेतृत्व उनके पुत्र अमर सिंह कर रहे थे.
कर्नल टॉड ने भी अपनी किताब में हल्दीघाटी को Thermopylae of Mewar और दिवेर के युद्ध को राजस्थान का मैराथन बताया है. ये वही घटनाक्रम हैं जिनके इर्द गिर्द आप फिल्म 300 देख चुके हैं. कर्नल टॉड ने भी महाराणा और उनकी सेना के शौर्य, तेज और देश के प्रति उनके अभिमान को स्पार्टन्स के तुल्य ही बताया है जो युद्ध भूमि में अपने से 4 गुना बड़ी सेना से यूँ ही टकरा जाते थे.
दिवेर का युद्ध बड़ा भीषण था, महाराणा प्रताप की सेना ने महाराजकुमार अमर सिंह के नेतृत्व में दिवेर थाने पर हमला किया , हज़ारो की संख्या में मुग़ल, राजपूती तलवारो बरछो भालो और कटारो से बींध दिए गए।
युद्ध में महाराजकुमार अमरसिंह ने सुलतान खान मुग़ल को बरछा मारा जो सुल्तान खान और उसके घोड़े को काटता हुआ निकल गया.उसी युद्ध में एक अन्य राजपूत की तलवार एक हाथी पर लगी और उसका पैर काट कर निकल गई।
महाराणा प्रताप ने बहलोलखान मुगल के सर पर वार किया और तलवार से उसे घोड़े समेत काट दिया। शौर्य की ये बानगी इतिहास में कहीं देखने को नहीं मिलती है. उसके बाद यह कहावत बनी की मेवाड़ में सवार को एक ही वार में घोड़े समेत काट दिया जाता है.ये घटनाये मुगलो को भयभीत करने के लिए बहुत थी। बचे खुचे ३६००० मुग़ल सैनिकों ने महाराणा के सामने आत्म समर्पण किया.
दिवेर के युद्ध ने मुगलो का मनोबल इस तरह तोड़ दिया की जिसके परिणाम स्वरुप मुगलों को मेवाड़ में बनायीं अपनी सारी 36 थानों, ठिकानों को छोड़ के भागना पड़ा, यहाँ तक की जब मुगल कुम्भलगढ़ का किला तक रातो रात खाली कर भाग गए.
दिवेर के युद्ध के बाद प्रताप ने गोगुन्दा , कुम्भलगढ़ , बस्सी, चावंड , जावर , मदारिया , मोही , माण्डलगढ़ जैसे महत्त्वपूर्ण ठिकानो पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद भी महाराणा और उनकी सेना ने अपना अभियान जारी रखते हुए सिर्फ चित्तौड़ कोछोड़ के मेवाड़ के सारे ठिकाने/दुर्ग वापस स्वतंत्र करा लिए.
अधिकांश मेवाड़ को पुनः कब्जाने के बाद महाराणा प्रताप ने आदेश निकाला की अगर कोई एक बिस्वा जमीन भी खेती करके मुसलमानो को हासिल (टैक्स) देगा , उसका सर काट दिया जायेगा। इसके बाद मेवाड़ और आस पास के बचे खुचे शाही ठिकानो पर रसद पूरी सुरक्षा के साथ अजमेर से मगाई जाती थी.
दिवेर का युद्ध न केवल महाराणा प्रताप बल्कि मुगलो के इतिहास में भी बहुत निर्णायक रहा। मुट्ठी भर राजपूतो ने पुरे भारतीय उपमहाद्वीप पर राज करने वाले मुगलो के ह्रदय में भय भर दिया। दिवेर के युद्ध ने मेवाड़ में अकबर की विजय के सिलसिले पर न सिर्फ विराम लगा दिया बल्कि मुगलो में ऐसे भय का संचार कर दिया की अकबर के समय में मेवाड़ पर बड़े आक्रमण लगभग बंद हो गए.
इस घटना से क्रोधित अकबर ने हर साल लाखों सैनिकों के सैन्य बल अलग अलग सेनापतियों के नेतृत्व में मेवाड़ भेजने जारी रखे लेकिन उसे कोई सफलता नहीं मिली. अकबर खुद 6 महीने मेवाड़ पर चढ़ाई करने के मकसद से मेवाड़ के आस पास डेरा डाले रहा लेकिन ये महराणा द्वारा बहलोल खान को उसके घोड़े समेत आधा चीर देने के ही डर था कि वो सीधे तौर पे कभी मेवाड़ पे चढ़ाई करने नहीं आया.
ये इतिहास के वो पन्ने हैं जिनको दरबारी इतिहासकारों ने जानबूझ कर पाठ्यक्रम से गायब कर दिया है. जिन्हें अब वापस करने का प्रयास किया जा रहा है।
साभार...
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