BPSC PORTAL

BPSC PORTAL

You may also like

Marketing Group Zurich
Marketing Group Zurich

RAJ IAS FOUNDATION is today undoubtedly one of the Best Coaching institute for Bpsc aspirant in Patna We give Coaching to BPSC prelims and BPSC mains exams.

"RAJ IAS FOUNDATION is one the best BPSC & IAS coaching in Patna, Bihar. The institute was founded with the aim of empowering IAS candidates and civil services coaching in Patna. We create the customized teaching method for English and Hindi medium students. We Cover Syllabus in a Holistic Way. Our faculty's delivery in class is of top-notch quality. Being the topmost BPSC coaching in Patna it’s O

20/02/2024

सिंधु घाटी सभ्यता की भाषा कौन सी थी?
सैंधवी लिपि को पढ़ने की कोशिश करने वाले डॉक्टर जॉन मार्शल सहित आधे दर्जन से अधिक भाषा और पुरातत्वविदों के हवाले से मोतीरावण कंगाली कहते हैं, "सिन्धु घाटी सभ्यता की भाषा द्रविड़ पूर्व (प्रोटो द्रविड़ीयन) भाषा थी."

18/02/2024

‘माइक्रोलिथ’ का इस्तेमाल शुरुआती इंसानों द्वारा किया जाता था?
A) छोटे पत्थर के औजार
B) शेर बनाने के लिए
C) ज्वेलरी बनाने के लिए
D) चित्रकला में

18/02/2024

एक्स किरणों को बेधन क्षमता किसके द्वारा बढाई जा जाती है ?

A. तन्तु में धारा बढ़ाकर

B. कैथोड और एनोड के बीच विभवान्तर घटाकर

C. तन्तु में धारा घटाकर

D. कैथोड के बीच विभवान्तर बढ़ाकर

15/02/2024

हड़प्पाई बाँटों के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य नहीं है?

(a) बाँट का निर्माण सामान्यतः चर्ट नामक पत्थर से होता था।
(b) बाँट निशानरहित तथा घनाकार होते थे।
(c) इन बाँट का निचला मानदंड दशमलव प्रणाली पर आधारित था।
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।

28/01/2024

Q14. जन्तु किन लक्षणों में पादपों से मिलते हैं?

(a) ये दिन-रात श्वसन करते हैं।

(b) ये केवल दिन में श्वसन करते हैं।

(c) ये केवल रात में श्वसन करते हैं।

(d) ये जब चाहें श्वसन करते हैं।

Answer || A

70TH BPSC PT पर चर्चा/परिचर्चा/BPSCTAIYARI /BPSC TOPPER KAISE BAN0 -4.0 HOW TO CRACK BPSC PT 25/01/2024

https://youtube.com/live/p6CgdQ1uY7Q?feature=share

70TH BPSC PT पर चर्चा/परिचर्चा/BPSCTAIYARI /BPSC TOPPER KAISE BAN0 -4.0 HOW TO CRACK BPSC PT BPSC FOUNDATION BATCH"RAJ IAS FOUNDATION" PATNA -8920641806➥ सामान्य अध्ययन फाउंडेशन कोर्स (प्रिलिम्स + मेन्स)➥ हाइब्रिड कोर्स ऑफलाइन+ऑनलाइन Janua...

22/01/2024

"RAJ IAS FOUNDATION" PATNA
-8920641806
➥ सामान्य अध्ययन फाउंडेशन कोर्स (प्रिलिम्स + मेन्स)
➥ हाइब्रिड कोर्स ऑफलाइन+ऑनलाइन
-----------------------------
FEATURE OF COURCE/कोर्स की विशेषताएं ::-
➥1. SMART CLASSROOM
➥2. CHAPTER WISE TEST
➥3. 15 FULL TEST {JUST 90 DAYS BEFORE EXAM}
➥4.MENTORSHIP PROGRAM
➥5. 2 YEAR COURSE VALIDITY
➥6.LIBRARY FACILITY
➥7.PDF NOTES
➥8.PERSONAL GUIDANCE
➥9.DAILY ANSWERS WRITING PROGRAM
MAINS CLASSES ..........................
➥EVERY DAY INTERACTIVE CLASS
➥DOUBT CLASSES
➥TOPIC WISE TEST
➥15 FULL TEST JUST 60 DAYS BEFOR MAINS EXAM
CLASS NOTES
➥INTERVIEW PROGRAM
➥DAILY ANSWERS WRITING PROGRAM
RAJ IAS FOUNDATION
AN INSTITUTE FOR BPSC/UPSC
-8920641806
कोर्स की विशेषताएं :
➥ कोर्स की वैधता : 2 वर्ष तक
➥ प्रत्येक विषय / खंड के PDF क्लास नोट्स
Registration started
Call #8920641806
Payment जारी है:-
●Google pay 9555508870
●phone pay:- 9555508870
●UPI PAY 9555508870
या आप
●State Bank of india
Name of Account holder:-
Rajkishor prasad
ifsc code:-SBIN0005997
ACCOUNT NUMBER-33801392844
slip और कोई एक id proof इस नम्बर पर send करें:-
7859883710
-8920641806
अगर आपका BPSC PT लगातार नही हो रहा है तो आपके पास TARGET OF THE DAY से जुड़ने का मौका है.

07/01/2024
07/01/2024

"RAJ IAS FOUNDATION" PATNA


➥ सामान्य अध्ययन फाउंडेशन कोर्स (प्रिलिम्स + मेन्स)
➥ हाइब्रिड कोर्स ऑफलाइन+ऑनलाइन
January
-----------------------------

FEATURE OF COURCE/कोर्स की विशेषताएं ::-
➥1. SMART CLASSROOM
➥2. CHAPTER WISE TEST
➥3. 15 FULL TEST {JUST 90 DAYS BEFORE EXAM}
➥4.MENTORSHIP PROGRAM
➥5. 2 YEAR COURSE VALIDITY
➥6.LIBRARY FACILITY
➥7.PDF NOTES
➥8.PERSONAL GUIDANCE
➥9.DAILY ANSWERS WRITING PROGRAM

MAINS CLASSES ..........................
➥EVERY DAY INTERACTIVE CLASS
➥DOUBT CLASSES
➥TOPIC WISE TEST
➥15 FULL TEST JUST 60 DAYS BEFOR MAINS EXAM
CLASS NOTES
➥INTERVIEW PROGRAM
➥DAILY ANSWERS WRITING PROGRAM
RAJ IAS FOUNDATION
AN INSTITUTE FOR BPSC/UPSC
-8920641806
कोर्स की विशेषताएं :
➥ कोर्स की वैधता : 2 वर्ष तक
➥ प्रत्येक विषय / खंड के PDF क्लास नोट्स

07/01/2024

Q.कोणार्क सूर्य मंदिर के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

1. इसका निर्माण 1244 में पूर्वी गंग राजवंश के नरसिम्ह देव प्रथम द्वारा कराया गया।
2. इसे 1984 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया गया।
3. सरकार ने मंदिर के सौ प्रतिशत सौर्यीकरण के लिए एक योजना शुरू की है।

उपर्युक्त में से कितने कथन सही हैं/हैं?

(a) केवल एक
(b) केवल दो
(c) सभी तीन
(d) कोई भी नहीं

70TH BPSC SCHOLARSHIP TEST|BPSC ADMISSION TEST | BPSC Scholarship| |BPSC SCHOLARSHIP TEST PROGRAM 22/12/2023

भारत में, सभी राष्ट्रीयकृत वाणिज्यिक बैंकों में बचत खातों पर ब्याज दर निर्धारित की जाती है:
(A) भारत के वित्त मंत्री
(B) केंद्रीय वित्त आयोग
(C) इंडियन बैंक एसोसिएशन
(D) भारतीय रिजर्व बैंक

70TH BPSC SCHOLARSHIP TEST|BPSC ADMISSION TEST | BPSC Scholarship| |BPSC SCHOLARSHIP TEST PROGRAM RAJ IAS FOUNDATION के आधिकारिक चैनल में आपका स्वागत है! Hello BPSC Aspirants,"RAJ IAS FOUNDATION" PATNA➥ सामान्य अध्ययन फाउंडेशन कोर्स (प्रिलिम्स + मेन्स)➥ .....

21/12/2023

वर्ष 1907 में सूरत में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विभाजन का मुख्य कारण क्या था ?

(a) लार्ड मिंटो द्वारा भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता का प्रवेश कराना

(b) अंग्रेजी सरकार के साथ नरमपंथियों की वार्ता करने की क्षमता के बारे में चरमपंथियों में विश्वास का अभाव

(c) मुस्लिम लीग की स्थापना

(d) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित हो सकने में अरविन्द घोष की असमर्थता

21/12/2023

निम्न में से कौन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रस का अंग्रेज अध्यक्ष रहा ?

1 जॉर्ज युले 2 अल्फ्रेड बेब 3 विलियम वेडरवर्न 4 हेनरी कॉटन

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 2 और 3

(c) केवल 1, 3 और 4

(d) उपर्युक्त सभी

21/12/2023

मानव विकाश के क्रम में सबसे नई खोज क्या है?.....................................................
ड्रैगन मैन, होमो लोंगी, मानव परिवार के पेड़ का नवीनतम खोज है। भू-रासायनिक सर्वेक्षणों के अनुसार, चीनी शहर हार्बिन में एक अच्छी तरह से संरक्षित खोपड़ी की खोज की गई थी, जो कि 138,000 से 309,000 वर्ष पुराना है।

खोपड़ी में एक विस्तृत नाक, कम माथे और ब्रेनकेस जैसी आदिम मनुष्य के विशेषताओं को जोड़ती है, जिसमें होमो सेपियन्स के समान विशेषताएं होती हैं।

18/12/2023

किस शताब्दी में युद्धों में तोपों और गोलाबारी का पहली बार इस्तेमाल हुआ?

(a) चौदहवीं शताब्दी

(b) पंद्रहवीं शताब्दी

(c) सोलहवीं शताब्दी

(d) सत्रहवीं शताब्दी

14/12/2023

कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार दक्षिण भारत निम्न में से किसके लिए प्रसिद्ध था?

(A) कंबल के लिए

(B) सोना और कीमती पत्थर के लिए

(C) लाल संगमरमर के लिए

(D) उच्च कोटि के लकड़ी के लिए

12/12/2023

हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम की व्याख्या सबसे पहले किसने की थी?

(a) माइकेल फैराडे

(b) हैजेनबर्ग

(c) नील्स बोर

(d) न्यूटन

12/12/2023

संवहन द्वारा ऊष्मा का स्थानांतरण हो सकता है-

(a) ठोस एवं द्रव में

(b) ठोस एवं निर्वात में

(c) गैस एवं द्रव में

(d) निर्वात एवं गैस में

12/12/2023

कुतुबमीनार का निर्माण किन दो शासकों ने करवाया था?

(ए) इल्तुतमिश एवं अलाउद्दीन खिलजी

(बी) बलबन एवं कुतुबुद्दीन ऐबक

(सी) कुतुबुद्दीन ऐबक एवं इल्तुतमिश

(D) कुतुबुद्दीन ऐबक एवं मोहम्मद बिन तुगलक

08/12/2023

] साबुन कठोर जल में किन-किन लवणों से अभिक्रिया करता है

(A) मैग्नीशियम
(B) कैल्शियम
(C) दोनों लवणों से
(D) किसी से नहीं

08/12/2023

. प्रबल विद्युत्-अपघट्य वे हैं जो :
(A) जल में शीघ्र घुल जाते हैं
(B) विद्युत प्रवाहित करते हैं
(C) उच्च तनुता पर आयनों में विभक्त हो जाते हैं
(D) सभी तनुताओं पर आयनों में विभक्त हो जाते हैं

69TH BPSC PT SET- A ANSWER KEY सटीक ANSWER से मिलाएं !सब से सही सम्पूर्ण विश्लेषण #69thbpsc 01/10/2023

https://youtu.be/Hf7yffizpEI?feature=shared

69TH BPSC PT SET- A ANSWER KEY सटीक ANSWER से मिलाएं !सब से सही सम्पूर्ण विश्लेषण #69thbpsc 69TH BPSC PT ANSWER KEY69th BPSC सटीक ANSWER से मिलाएं !Source-PIB, बिहार गजट,प्रतियोगिता दर्पण, आर्थिक सर्वेक्षण ,NCERT,TEXT BOOK, ETCपर, आधारित ✔For any ki...

05/07/2023

"TARGET OF THE DAY"
90 day's program. BPSC PT
केवल 200 स्टूडेंट्स होंगे इस प्रोग्राम से! START NOW-8920641806

03/07/2023

एक बार फिर से 5 जुलाई से Start हो रहा है सफलता की गारंटी....
"TARGET OF THE DAY"
90 day's program.
केवल 200 स्टूडेंट्स होंगे इस प्रोग्राम से!

Photos from BPSC PORTAL's post 23/06/2023

बांका

पौराणिक जिला...................
interview Bpsc
बांका भारत के बिहार राज्य में बांका जिले के मुख्यालय के रूप में एक शहर और एक नगर पालिका है। बांका का हिंदी अर्थ "बहादुर" है।

बांका बिहार राज्य, भारत के अड़तीस जिलों में से एक है। बांका का जिला मुख्यालय बांका शहर में स्थित है। जिले की स्थापना 21 फरवरी, 1991 को हुई थी। पहले यह भागलपुर जिले का सबसे धनी और सबसे बड़ा उप-मंडल था।

बांका जिला बिहार पूर्वी भाग में अवस्थित है । जिले का पूर्वी और दक्षिणी सीमा रेखा झारखण्ड राज्य के गोड्डा जिले को छूता है तथा पश्चिमी एवं उत्तरी सीमा बिहार के क्रमश जमुई एवं मुंगेर जिले को छूता है । पुराना जिला भागलपुर, बांका के उत्तरी भाग में अवस्थित है ।

इतिहास ............

आधुनिकता की अंधी दौड़ में हमारी संस्कृति और पंरपरा का अधिकांश हिस्सा टूट चुका है। ऐसे में वनवासी समाज की आदिवासी संस्कृति को पोषित करने में जुटा है बांका जिला!
यह एक अत्यंत प्राचीन शहर है। पुराणों में और महाभारत में इस क्षेत्र को अंग प्रदेश का हिस्सा माना गया है।

इस अंग प्रदेश के निकट स्थित चम्पानगर महान पराक्रमी शूरवीर कर्ण की राजधानी मानी जाती रही है। यह बिहार के मैदानी क्षेत्र का आखिरी सिरा और झारखंड और बिहार के सीमा का मिलन स्थल है। यहाँ का निकटतम हवाई अड्डा गया और पटना है। रेल और सड़क मार्ग से भी यह शहर अच्छी तरह जुड़ा है।

पुराणों में वर्णित समुद्र मंथन में प्रयुक्‍त मथान अर्थात मंदराचल तथा मथानी में लपेटने के लिए जो रस्‍सा प्रयोग किया गया था वह दोनों ही उपकरण यहाँ विद्यमान हैं और आज इनका नाम तीर्थस्‍थ‍लों के रूप में है ये हैं वासुकिनाथ और मंदारहिल. इस शहर मे बहुत ही अछे-अछे विधालय भी है। शहर में एक महाविधालय भी है - पी० बी० एस० महाविधालय।

भागलपुर का कुख्यात अखफोड़वा कांड रजौन थाने से ही शुरू हुआ था, और सबसे ज्यादा कांड यहीं हुआ था। इस पर गंगाजल पिक्चर भी बनी है. रजौन प्रखन्ड में कुछ गांव है:-तेलोन्ध खिड्डी, बनगांव, नरीपा, नीमा, नवादा, धर्मचक, सोहानि, खैरा आदि, खैरा में एक प्रसिद्ध मन्दिर भी है।

बांका में देखने के लिए शीर्ष स्थान,
..............................
बांका भारत के बिहार राज्य में बांका जिले के मुख्यालय के रूप में एक शहर और एक नगर पालिका है। बांका का हिंदी अर्थ "बहादुर" है।

बांका बिहार राज्य, भारत के अड़तीस जिलों में से एक है। बांका का जिला मुख्यालय बांका शहर में स्थित है। जिले की स्थापना 21 फरवरी, 1991 को हुई थी। पहले यह भागलपुर जिले का सबसे धनी और सबसे बड़ा उप-मंडल था।



बोली........
जिले में इस्तेमाल की जाने वाली भाषाओं में अंगिका, देवनागरी लिपि में लिखी गई एक इंडो-आर्यन भाषा शामिल है और अंगिका क्षेत्र में कम से कम 725,000 लोगों द्वारा बोली जाती है। [include]


नदियों..........
चन्नान बांका की मुख्य नदी है। बांका के दुबा गांव के पास बरुआ दूसरी मुख्य नदी है। डब्बा बांका का मुख्य गांव है।

वनस्पति और जीव..............

जिले में बांका, बौंसी कटोरिया वन श्रेणियों के अंतर्गत कुछ वन क्षेत्र हैं। बांका रेंज की लकड़ी पहाड़ी ढलानों पर स्थित है, जो अन्य दो श्रेणियों में अवनत भूमि में स्थित हैं। वनाच्छादित क्षेत्रों में पेड़ों की प्रमुख विविधता में साल होते हैं जो आमतौर पर अबुन, आसन, केंडु और महुआ से जुड़े पाए जाते हैं।

आसन के पेड़ों पर तसर के कीड़े पाले जाते हैं। कुछ अन्य पेड़ बहेड़ा, कदम, अमलतास हैं। बबूल के खास लोगों में बाबुल, सिरिश और साईं बाबुल हैं। फलों के पेड़ों में आम और कटहल आम हैं। पौधे, खजूर के पौधे, बेर, जामुन कुछ अन्य महत्वपूर्ण फल वृक्ष हैं।

जिले में बंदर आम हैं, खासकर हनुमान। तो जैकाल, प्रिय, शेर, भालू, तेंदुए, हाथी कभी-कभी मिलते हैं। उत्तरार्द्ध में बारसिंह और सांभर हैं। वाइल्ड गीज़, डक, लील और क्वेल कुछ खेल पक्षी हैं जो जिले में रहते हैं। मोर, तोते, हॉक्स और कबूतर अन्य पक्षी हैं जो कटोरिया वन / चंदन वन में पाए जाते हैं। गौरैया, कौवे और गिद्ध बेशक आम हैं।

कई प्रकार की मछलियाँ पाई जाती हैं उदा। रोहू, कटला, बोरी और टेंगरा। बछवा, झिंगा और पोथी अन्य किस्में हैं।

बांका जिले में केवल एक सरकारी कॉलेज पीबीएस कॉलेज है।

मन्दार पर्वत.............

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन में देवताओं ने मन्दराचल (मंदार पर्वत) को मथनी बनाया था। सदियों से खड़ा मंदार आज भी लोगों की आस्था का पर्वत है। इसे मंदराचल या मंदार पर्वत भी कहते हैं। यह बांका जिला में अवस्थित है
मन्दार पर्वत बिहार राज्य के बंका जिला में स्थित छोटा सा पर्वत है।

यह भागलपुर शहर के दक्षिण में लगभग 45 किमी की दूरी पर स्थित है। इसकी ऊँचाई लगभग 700फीट (21 मीटर) है। यह एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। इसके शिखर पर दो मन्दिर हैं, एक हिन्दू मन्दिर और दूसरा जैन मन्दिर।

हिन्दू पौराणिक कथाओं में इसे मन्दराचल (मन्दर + अचल = मन्दर पर्वत) कहा गया है और इसी को मथनी बनाकर समुद्र मन्थन किया गया था।

इस पर्वत के पास में ही 'पापहरनी' सरोवर है किसके बीच में स्थित मन्दिर में लक्ष्मी और विष्णु विराजमान हैं।
बिहार राज्य के बांका जिला के बौंसी (Bounsi) में यह पर्वत स्थित है। भागलपुर से बौंसी पहुँचने से पूर्व स्टेट हाइवे - 19 और मंदार विद्यापीठ हॉल्ट के करीब यह पर्वत है। यहाँ से भागलपुर 50 किलोमीटर है। यह पर्वत अक्षांश 240 50’ उत्तर तथा देशांतर 870 4’ पूरब में अवस्थित है।

लोक मान्यता है कि भगवान विष्णु सदैव मंदार पर्वत पर निवास करते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह वही पर्वत है, जिसकी मथानी बनाकर कभी देव और दानवों ने समुद्र मंथन किया था। मकर-संक्रांति के अवसर पर यहां एक मेला भी लगता है जो करीब पंद्रह दिन तक चलता है। मंदार पर्वत से लोगों की आस्थाएं कई रूप से जुड़ी हैं।

हिंदुओं के लिए यह पर्वत भगवान विष्णु का पवित्र आश्रय स्थल है तो जैन धर्म को मानने वाले लोग प्रसिद्ध तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य से इसे जुड़ा मानते हैं। आदिवासियों के लिए मंदार पर्वत एक सिद्धि क्षेत्र है जहां वे प्रतिवर्ष 13 जनवरी की रात्रि में रातभर राम-लक्ष्मण की साधना करते हैं।

यह सबसे बड़ा संताली मेला है जहां प्रतिवर्ष रातभर के लिए एक लाख से अधिक लोग (सफा संप्रदाय के अनुयायी) आते हैं। इस संप्रदाय को बाबा चंदर दास ने बनाया था। बौंसी में लगनेवाले प्राचीन बौंसी मेले को अब 'राजकीय मेला' का दर्ज़ा प्राप्त हुआ है।

बौंसी से दक्षिण में रेल और सड़क मार्ग पर स्थित बिहार राज्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस मेले का इतिहास काफी पुराना है इसमें आदिवासी और गैर-आदिवासी बड़े पैमाने पर मिलजुल कर मेले का आनंद लेते हैं। मेले का मुख्य आकर्षण काले ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित सात सौ फीट ऊंचा मंदार पर्वत है। यह अनेक दंत कथाओं को समेटे बौंसी से करीब दो किलोमीटर उत्तर में स्थित है।

समुद्र मंथन की पौराणिक गाथा से जुड़ा होने के कारण इसका विशेष महत्व है। मंदार की चट्टानों पर उत्कीर्ण सैकड़ों प्राचीन मूर्तियां, गुफाएं, ध्वस्त चैत्य और मंदिर धार्मिक और सांस्कृतिक गौरव के मूक साक्षी हैं। विभिन्न पुराणों, ऐतिहासिक और धार्मिक ग्रंथों में अनेक बार मंदार का नाम आया है स्कंद पुराण में तो मंदार महातम्य नामक एक अलग अध्याय ही है।

मंदार वैष्णव संप्रदाय का प्रमुख केंद्र माना जाता है। प्रसिद्ध वैष्णव संत चैतन्य महाप्रभु ने भी अनेक जगह मंदार पर्वत की चर्चा की है। समुद्र मंथन का आख्यान महाभारत के आदि पर्व के 18वें अध्याय में भी है। महाभारत के मुताबिक भगवान विष्णु की प्रेरणा से मेरू पर्वत पर काफी विचार विमर्श के बाद देवताओं और दानवों ने समुद्र को मथा।

पर्व .........
मकर संक्रांति के दिन मंदार पर्वत की तलहट्टी में उपस्थित पापहरणि तालाब का महत्व तो कुछ और है। लोकमान्यता है कि इस तालाब में स्नान करने से कुष्ठ रोग से मुक्ति मिलती है। लोग मकर संक्रांति के दिन अवश्य यहां स्नान करते हैं। जगह-जगह जल रही आग का लुत्फ उठाते हैं। उसके बाद भगवान मधुसूदन की पूजा अर्चना करते हैं। दही-चूड़ा और तिल के लड्डू विशेष रूप से खाए जाते हैं।

सोहराय..........
सोहराय आदिवासी समाज की संस्कृति की पहचान है. लोक परंपराओं और संस्कृति में आस्था रखने वाले आदिवासी समाज के लिए यह महापर्व सबसे बड़ी पूंजी और धरोहर है.

आदिवासी समाज ने लोक संस्कृति और परंपराओं के निर्वहन की जो मिसाल दुनियाभर में पेश की है, उससे अन्य समाज के लोगों को भी नसीहत लेने की जरूरत है. सोहराय सिर्फ आदिवासी समाज की ही नहीं, बल्कि भारतीय आदि सभ्यता से जुड़ी सबसे बड़ी लोक सांस्कृतिक विरासत है. इसे कायम रखना सभी समाज के लोगों का दायित्व और कर्तव्य है.

संस्कृति और विरासत...........................

हिंदू देवी दुर्गा को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर जगतपुर, करारीया, कुशमाहा, सहारन, लक्ष्मीपुर बांध, बांका, बाभंगामा, चंदन में स्थित है। हर साल दुर्गा पूजा के दौरान, भारत के कई हिस्सों से भक्त इस मंदिर की यात्रा करते हैं। दो मंदिर- नरसिंह (विष्णु के अवतारों में से एक) मंदिर और दिगंबर जैन तीर्थनकर- मंडार पर्वत के नाम से जाना जाता है, जो कि मंडार पर्वत के ऊपर स्थित है, जो लगभग 500 मीटर (1600 फीट) लंबा है और पत्थर के एक टुकड़े से बना है। नरसिंह मंदिर का प्रबंधन एक ट्रस्ट के तहत है।

मंदार पर्वत के तल पर एक बहुत पुराने अवंतिका नाथ मंदिर भी है। सबलपुर गांव के बाबू बिरो सिंह द्वारा स्थापित अवंतिका नाथ मंदिर ट्रस्ट, मंदिर के पीछे दिखती है। कैलाश पाठक अवंतिका नाथ मंदिर की सेवात है। भगवान शिव का एक प्रसिद्ध मंदिर चंदन नदी के पास जेठोरे पहाड़ी में है। जेठोरे का शाब्दिक अर्थ है ज्येष्ठ का बड़ा अर्थ है गौौर का अर्थ देवघर मंदिर का भाई है।

कामलपुर गांव में माँ काली मंदिर एक प्रसिद्ध मंदिर है। महालक्ष्मी मंदिर पाफार्नी तालाब के सामने स्थित है। हाल ही में स्थानीय लोगों के योगदान के माध्यम से पाक्षर्णी के केंद्र में एक लक्ष्मीनारायण मंदिर का निर्माण किया गया था। यह पूर्व में सलपुर राज्य के पूर्व फतह बहादुर सिंह के नेतृत्व में एक ट्रस्ट द्वारा प्रबंधित किया जाता है।

पूर्व में रजौन गांव महदा से स्थित है, जो देवी मंदिर मंदिर, काली मंदिर और भगवान शिव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। जिला अपनी समृद्ध आदिवासी संस्कृति और इसके हस्तशिल्प और हथकरघा के लिए जाना जाता है। घर के खादी और रेशम का क्षेत्र लोकप्रिय है। काटो रेशम में अधिकतर कोकून का उत्पादन होता है; वास्तव में, भागलपुर में रेशम उद्योग के लिए जरूरी कच्चे माल का प्रमुख हिस्सा कटोरिया से दिया जाता है।

बांका भारत के बिहार राज्य में बांका जिले के मुख्यालय के रूप में एक शहर और एक नगर पालिका है। बांका का हिंदी अर्थ "बहादुर" है।

बांका बिहार राज्य, भारत के अड़तीस जिलों में से एक है। बांका का जिला मुख्यालय बांका शहर में स्थित है। जिले की स्थापना 21 फरवरी, 1991 को हुई थी। [1] पहले यह भागलपुर जिले का सबसे धनी और सबसे बड़ा उप-मंडल था।



बोली.......

जिले में इस्तेमाल की जाने वाली भाषाओं में अंगिका, देवनागरी लिपि में लिखी गई एक इंडो-आर्यन भाषा शामिल है और अंगिका क्षेत्र में कम से कम 725,000 लोगों द्वारा बोली जाती है। [include]



नदियों.........
चन्नान बांका की मुख्य नदी है। बांका के दुबा गांव के पास बरुआ दूसरी मुख्य नदी है। डब्बा बांका का मुख्य गांव है।



प्रखंड.........
बाँका जिले में 11तहसिलें हैं- बाँका, रजौन, अमरपुर, धोरैया, कटोरिया, बौसी, शंभुगंज, बाराहाट, बेलहर, चांदन,तेलोन्ध फूल्लीडूमर।

मुख्य आकर्षण .........
मंदार पहाड़ी- वैसे तो यहाँ अनेक पहाड़ी है लेकिन कुछ देखने लायक है, इसमें से एक है मंदार पहाड़ी। यह पहाड़ी भागलपुर से 48 किलोमीटर की दूरी पर है, जो अब बांका जिले में स्थित है। इसकी ऊंचाई 800 फीट है। इसके संबंध में कहा जाता है कि इसका प्रयोग सागर मंथन में किया गया था।

किंवदंतियों के अनुसार इस पहाड़ी के चारों ओर अभी भी शेषनाग के चिन्‍ह को देखा जा सकता है, जिसको इसके चारों ओर बांधकर समुद्र मंथन किया गया था। कालिदास के कुमारसंभवम में पहाड़ी पर भगवान विष्‍णु के पदचिन्‍हों के बारे में बताया गया है। इस पहाड़ी पर हिन्‍दू देवी देवताओं का मंदिर भी स्थित है।

यह भी माना जाता है कि जैन के 12वें तिर्थंकर ने इसी पहाड़ी पर निर्वाण को प्राप्‍त किया था। लेकिन मंदार हिल की सबसे बड़ी विशेषता इसकी चोटी पर स्थित झील है। इसको देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते हैं। पहाड़ी के थीक नीचे एक पापहरनी तलाब है, इस तलाब के बीच में एक विष्णु मन्दिर इस दृश्य को रोमान्चक बानाता है।

यहाँ जाने के लिये भागलपुर से बस और रेल दोनों की सुविधा उपलब्ध है। इसके अलावे यहा चान्दन डैम और कोज़ी डैम भी देखने लायक है। यहाँ से देवघर और बाबा बासुकीनाथ नजदीक है।

कमलपुर गाँव में माँ काली मंदिर एक प्रसिद्ध मंदिर है। पाफरनी तालाब के सामने एक महालक्ष्मी मंदिर स्थित है। हाल ही में स्थानीय लोगों के योगदान के माध्यम से एक लक्ष्मीनारायण मंदिर पपरनी के केंद्र में बनाया गया था। इसका प्रबंधन राजपूत ग्राम म्हाडा से पूर्ववर्ती सबलपुर राज्य के फतेह बहादुर सिंह के नेतृत्व में एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है। यह मंदिर दुर्गा मंदिर, काली मंदिर और भगवान शिव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।

Photos from BPSC PORTAL's post 21/06/2023

."मुक्ति और मोक्ष की नगरी गया जिला"
.................….....................

BPSC INTERVIEW
Bpsc
गया, झारखंड और बिहार की सीमा और फल्गु नदी के तट पर बसा भारत प्रान्त के बिहार राज्य का दूसरा बड़ा शहर है। वाराणसी की तरह गया की प्रसिद्धि मुख्य रूप से एक धार्मिक नगरी के रूप में है। पितृपक्ष के अवसर पर यहाँ हजारों श्रद्धालु पिंडदान के लिये जुटते हैं। गया सड़क, रेल और वायु मार्ग द्वारा पूरे भारत से जुड़ा है। नवनिर्मित गया अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा द्वारा यह थाइलैंड से भी सीधे जुड़ा हुआ है। गया से 17 किलोमीटर की दूरी पर बोधगया स्थित है जो बौद्ध तीर्थ स्थल है और यहीं बोधि वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।

गया बिहार के महत्वपूर्ण तीर्थस्थानों में से एक है।यह शहर खासकर हिन्दू तीर्थयात्रियों के लिए काफी प्रसिद्ध है। यहां का विष्णुपद मंदिर पर्यटकों के बीच लोकप्रिय है। दंतकथाओं के अनुसार भगवान विष्णु के पांव के निशान पर इस मंदिर का निर्माण कराया गया है। हिन्दू धर्म में इस मंदिर को अहम स्थान प्राप्त है। गया पितृदान के लिए भी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि यहां फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करने से मृत व्यक्ति को बैकुण्ठ की प्राप्ति होती है।

गया, मध्य बिहार का एक महत्वपूर्ण शहर है, जो गंगा की सहायक नदी फल्गु के पश्चिमी तट पर स्थित है। यह बोधगया से 13 किलोमीटर उत्तर तथा राजधानी पटना से 100 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। यहां का मौसम मिलाजुला है। गर्मी के दिनों में यहां काफी गर्मी पड़ती है और ठंड के दिनों में औसत सर्दी होती है। मानसून का भी यहां के मौसम पर व्यापक असर होता है। लेकिन वर्षा ऋतु में यहां का दृश्य काफी रोचक होता है।

कहा जाता है कि गयासुर नामक दैत्य का बध करते समय भगवान विष्णु के पद चिह्न यहां पड़े थे जो आज भी विष्णुपद मंदिर में देखे जा सकते है।

मोक्ष........
मोक्ष चार प्रकार का होता है (अर्थात् मोक्ष की उत्पत्ति चार प्रकार से होती है)—

1.ब्रह्मज्ञान से
2.गयाश्राद्ध से
3.गौओं को भगाये जाने पर उन्हें बचाने में मरण से
4.कुरुक्षेत्र में निवास करने से,

किन्तु गया श्राद्ध का प्रकार सबसे श्रेष्ठ है। गया में श्राद्ध किसी समय भी किया जा सकता है। अधिक मास में भी, अपनी जन्म-तिथि पर भी, जब बृहस्पति एवं शुक्र न दिखाई पड़ें तब भी या जब बृहस्पति सिंह राशि में हों तब भी ब्रह्मा द्वारा प्रतिष्ठापित ब्राह्मणों को गया में सम्मान देना चाहिए। कुरुक्षेत्र, विशाला, विरजा एवं गया को छोड़कर सभी तीर्थों में मुण्डन एवं उपवास करना चाहिए।संन्यासी को गया में पिण्डदान नहीं करना चाहिए। उसे केवल अपने दण्ड का प्रदर्शन करना चाहिए और उसे 'विष्णुपद' पर रखना चाहिए। सम्पूर्ण गया क्षेत्र पाँच कोसों में है। गयाशिर एक कोस में है और तीनों लोकों के सभी तीर्थ इन दोनों में केन्द्रित हैं।

गया में पितृ-पिण्ड.............

ब्रज में गया की बहुत मान्यता है, ब्रजवासी गया में ही पितृ-पिंड का दान करते हैं। गया में पितृ-पिण्ड निम्न वस्तुओं से दिया जा सकता है; पायस (दूध में पकाया हुआ चावल), पका चावल, जौ का आटा, फल, कन्दमूल, तिल की खली, मिठाई, घृत या दही या मधु से मिश्रित गुड़। गयाश्राद्ध में जो विधि है, वह है पिण्डासन बनाना, पिण्डदान करना, कुश पर पुन: जल छिड़कना, (ब्राह्मणों को) दक्षिणा देना एवं भोजन देने की घोषणा या संकल्प करना; किन्तु पितरों का आवाहन नहीं होता, दिग्बन्ध (दिशाओं से कृत्य की रक्षा) नहीं होता और न (अयोग्य व्यक्तियों एवं पशुओं से) देखे जाने पर दोष ही लगता है। जो लोग (गया जैसे) तीर्थ पर किये गये श्राद्ध से उत्पन्न पूर्ण फल भोगना चाहते हैं उन्हें विषयाभिलाषा, क्रोध, लोभ छोड़ देना चाहिए, ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए, केवल एक बार खाना चाहिए, पृथ्वी पर सोना चाहिए, सत्य बोलना चाहिए, शुद्ध रहना चाहिए और सभी जीवों के कल्याण के लिए तत्पर रहना चाहिए। प्रसिद्ध नदी वैतरणी गया में आयी है, जो व्यक्ति इसमें स्नान करता है और गोदान करता है वह अपने कुल की 21 पीढ़ियों की रक्षा करता है। अक्षयवट के नीचे जाना चाहिए और वहाँ (गया के) ब्राह्मणों को संतुष्ट करना चाहिए। गया में कोई भी ऐसा स्थल नहीं है जो पवित्र न हो।

इतिहास ..........
गया का उल्लेख महाकाव्य रामायण में भी मिलता है। गया मौर्य काल में एक महत्वपूर्ण नगर था। खुदाई के दौरान सम्राट अशोक से संबंधित आदेश पत्र पाया गया है। मध्यकाल में यह शहर मुगल सम्राटों के अधीन था।उसी समय यहां के कुछ स्थानों पर राजपूतो का अधिकार था।जिनमे सिरमौर और राठौर राजपूत प्रमुख थे।मुगलकाल के पतन के उपरांत गया पर अनेक क्षेत्रीय राजाओं ने राज किया। 1787 में होल्कर वंश की साम्राज्ञी महारानी अहिल्याबाई ने विष्णुपद मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था।

श्वेत वाराह काल - पूर्व काल (प्रथम चरण) - गया तीर्थ का अभ्युदय ।

2727 ई0 पू0 - राजर्षि मनु के पोते द्वारा महायज्ञ सम्पन्न ।

2000 ई0 पू0 - राजा गया का शासन ।

1409 ई0 पू0 - कोल राजवंश का काल प्रारम्भ ।

1280 ई0 पू0 - व्रहद्रथ वंशी राजाओ का राज्य प्रारम्भ ।

628 ई0 पू0 - बुद्ध के पितामह अयोधन का गया प्रारंभ।

600 ई0 पू0 - कश्यप त्रय (उरुविल्ब, गया और नदी) का गया क्षेत्र में शासन ।

533 ई0 पू0 - तथागत का गया तीर्थ में आगमन।

528 ई0 पू0 - उरुबेला (बोधगया) में तथागत को ज्ञान प्राप्त ।

258 ई0 पू0 - राजा आशोक का गया-बोधगया भ्रमण, बराबर पर्वत पर गुफा
निर्माण ।

220 ई0 पू0 - अशोक के पौत्र दशरथ द्वारा बराबर पर गुफा निर्माण ।

49 ई0 पू0 - कलिंगराज खारवेल का बराबर पर्वत आगमन की अनुश्रुतिगत तिथि।

126 ई0 पू0 - कुशान राजा हुविश्क के प्रतिनिधि का गया-बोधगया भ्रमण।

350 ई0 पू0 - सिंहल नरेश मेघवर्मन राजा समुद्रगुप्त के समय में बोधगया में
संधाराम बना।

409 ई0 पू0 - चीनी यात्री फाह्यान का गया आगमन।

593 ई0 पू0 - फसली साल की शुरुआत मौखरी राजा अवन्तिवर्मन (580-600) के समय ।

600 ई0 पू0 - बंगाल के शैव नरेश शशांक के किया बोधिदृम का नाश किया।

602 ई0 पू0 - मगध नरेश पुर्ववर्मा द्वारा महाबोधि तरु का उद्धार ।

636-637 ई0 पू0 - चीनी यात्री ह्वेनसांग का गया-बोधगया भ्रमण।

@ मध्यकाल में गया
(हर्षबर्धन काल से मुग़ल काल तक)
• 655 ई०-675 ई० - मगध के गुप्त वंश के महान राजा आदित्यासेन का कार्यकाल।

• 676 ई० - चीनी यात्री इत्सिंग का गया आगमन ।

• 798 ई०- राष्ट्रकूट नरेश गोविन्द तृतीय का गया आगमन।

• 801 ई०- आदि शंकराचार्य का गया आगमन।

• 806 ई०- पालराज धर्मपाल के ज़माने में बोधगया में चतुर्मुखी महादेव की स्थापना।

• 976 ई०- हर प्रसाद शास्त्री की कृति में गया का विशेष वर्णन।

• 1001 ई०- वृद्ध परपिता महेश्वर मंदिर का निर्माण ।

• 1014 ई०- रामशिला पर्वत के ऊपर मंदिर का निचला भाग पूर्ण।

• 1046 ई०- पाल राजा नयपाल द्वारा अक्षयवट के समीपस्थ सत्र का निर्माण ।

• 1113 ई०- मुहम्मद वाख्तियार खिलजी का गया क्षेत्र पर आक्रमण ।

• 1175 ई०- राजा गोविन्द पाल द्वारा गदाधर विष्णु मंदिर का निर्माण ।

• 1229-1230 ई०- स्वामी माधवाचार्य का गयातीर्थ कर्म संपन्न ।

• 1234-1236 ई०- तिब्बती तीर्थ यात्री धर्म स्वामिन का गया - बोधगया भ्रमण ।

• 1244 ई०- जामा मस्जिद गया का बुनियाद वर्ष ।

• 1419 ई०- उदयपुर के महाराजा लक्षा का गया आगमन ।

• 1451 - 1552 ई० - महाराज जोधा जी का गया आगमन ।

• 1508 ई०- गुरुनानक का गया आगमन ।

• 1508 ई०- श्री चैतन्य महाप्रभु का गया आगमन (आश्विन) में ।

• 1538 ई०- गुरुनानक पुत्र श्रीचंद महाराज का गया आगमन ।

• 1577 ई०- अकबर क्व नवरत्न में एक टोडरमल का गया आगमन ।

• 1587 ई०- राजा मान सिंह का गया प्रवास काल, मानपुर बसावट प्रारंभ ।

• 1666 ई०- सिक्खों क्व नौबे गुरु तेग बहादुर जी गया आये ।

• 1688 ई०- शहरचंद गयापाल ने गया शहर को व्यवस्थित करवाया ।

• 1680 ई०- दु:खहरनी फाटक का निर्माणपूर्ण |@

आधुनिक काल में गया
(मुगलकाल से अबतक)

1743 ई०- मराठा शासक बाला जी का गया आगमन ।

1750 ई०- जर्मन यात्री टृफेंथेलर की गया यात्रा ।

1761 ई०- दिल्ली सम्राट शाह आलम एवं कम्पन सेना के बिच मानपुर में युद्ध ।

1766-1787 ई०- श्री विष्णुपद का पुनर्निर्माण (सर्वेक्षण कार्य से कार्यांत तक)।

1787 ई०- गया को बिहार जिला का मुख्यालय बनाया गया ।

1787 ई०- गया का उत्तरी भाग साहबगंज के नाम से बसना शुरु ।

1787 ई०- मि. थॉमस लॉ गया जिले के प्रथम कलक्टर बने ।

1790 ई०- श्री विष्णुपद में अंग्रेज अधिकारी फ्रांसिस गिलैंदर्स द्वारा विशाल घंटा दान ।

1811-1812 ई०-अंग्रेज यात्री सर्बेयर फ़्रांसिसी बुकानन का गया आगमन और पुरस्थालो का सिलसिलेबार परिदर्शन ।

1815 ई०- सत्संग आश्रम की स्थापना (परिसर में विधमान घंटा पर अंकित तथ्यानुसार)

1824 ई०- बाबा प्रीतमदास के करकमलो से पंचायती अखारा का निर्माण संपन्न ।

1835 ई० - श्री रामकृष्ण परमहंस के पिता श्री क्षुदीराम चट्टोपाध्याय का गया आगमन ।

1835 ई०- गया में अंग्रेजी माध्यम का प्रथम विद्यालय खुला ।

1842 ई०- मी. शेरविल ने आधुनिक काल में गया का पहला नक्सा बनाया ।

1843 ई०- गया की भूमि पर प्रथम चर्च का निर्माण पूर्ण ।

1845 ई०- गया में पहला सरकारी स्कूल खुला ।

1855 ई०- गया म्यूजियम सह पब्लिक लाइब्रेरी स्थापित ।

1857 ई०- वजीरगंज में किसान राज्य की स्थापना।

1858 ई०- जिला स्कूल की स्थापना ।

1865 ई०- गया जिले का विधिवत गठन (3 अक्तूबर)।

1870 ई०- भयंकर आंधी के कारण उजड़े बोधिवृक्ष का पुनर्रोपन ।

1876 ई०- पटना-गया रेलमार्ग पूर्ण ।

1881,86 और 1902 ई०-स्वामी विवेकानंद की गया-बोधगया यात्रा ।

1882 ई०- गया बार एसोसियोशन की स्थापना ।

1883 ई०- श्री श्री विजय कृष्ण गोस्वामी को आकाशगंगा में दीक्षा लाभ ।

1887 ई०- गया गोशाला (गोरक्षणी, मानपुर, गया) की स्थापना।

1887 ई०- ओल्डम टावर का निर्माण पूर्ण (यही टावर अब राजेंद्र टावर के नाम से जाना जाता है)

1887 ई०- जिला बोर्ड, गया का गठन ।

1887 ई०- पिलग्रिम अस्पताल स्थापित ।

1887 ई०- हरानचन्द्र हाई स्कूल स्थापित ।

1891 ई०- महाबोधि सोसाइटी ऑफ़ इंडिया की स्थापना ।

1891-1893 ई०- ग्रियर्सन कूप का निर्माण काल ।

1894 ई०- हरिदास सेमिनरी की स्थापना।

1895 ई०- लेडी एलगिन जनाना हॉस्पिटल स्थापित (लेडी डफरिन फंड से)

1895 ई०- गया-किउल रेलमार्ग पूर्ण ।

1900 ई०- गया-मुगलसराय (ग्रैंड कोड लाइन) रेलमार्ग पूर्ण ।

1901 ई०-गया में हिंदी साहित्य का गठन ।

1906 ई०- गया रेलवे स्टेसन का निर्माण पूर्ण ।

1911 ई०- श्री मन्नूलाल पुस्तकालय की स्थापना ।

1914 ई०- गया जेल प्रेस की स्थापना (ढाका से स्थानांतरोप्रान्त)।

1915 ई०- थियोसोफिकल मॉडल विद्यालय स्थापित ।

1916 ई०- गया सेंट्रल जेल का निर्माण ।

1916 ई०- गया क्लब स्थापित ।

1916 ई०- गया प्रधान डाकघर की स्थापना ।

1920 ई०- लाजिंग हाउस कमिटी का गठन ।

1921, 1925, 1927 और 1934 ई०- गाँधी जी का गया आगमन ।

1922 ई०- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का 32 वाँ अधिवेशन (जेल में रहने के कारण गाँधी जी नहीं शामिल हो सके।) 1925 ई०- गया इम्पिरिअल बैंक ऑफ़ इंडिया की शाखा स्थापित।

1930 ई०- गया के थियोसोफिकल हॉल में चतुर्थ महिला सम्मलेन ।

1930 ई०- कुष्ठ रोग अस्पताल की स्थापना ।

1932 ई०- राजेंद्र आश्रम की कुमार वीरेंद्र बहादुर सिंह द्वारा स्थापना ।

1934 ई०- गया सेंट्रल जेल में क्रन्तिकारी बैकुंठ शुक्ल को फांसी ।

1934 ई०- गया जिला गौरक्षण सम्मलेन का प्रथम समारोह संपन्न ।

1934 ई०- गया जिला स्पोर्ट्स एसोसिएशन्स की स्थापना ।

1935 ई०- वीर सावरकर और डॉ० मुंगे का गया आगमन।

1937 ई०- गया कॉटन मिल की स्थापना ।

1939 ई०- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ गया शाखा की स्थापना।

1939 ई०- अखिल भारतीय किसान सभा का अधिवेशन ।

1940 ई०- जिन्ना का गया आगमन ।

1940 ई०- सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया गया शाखा स्थापित ।

1944 ई०- गया कॉलेज की स्थापना ।

1948 ई०- गया फायर स्टेशन की स्थापना ।

1948 ई०- गाँधी जी का स्मारक गाँधी मंडप निर्माण शुरू ।

1949 ई०- हिन्दी साहित्य सम्मलेन गया की स्थापना ।

1950 ई०- 'गया के लेखक और कवि' पुस्तक का प्रकाशन ।

1953 ई०- गौतम बुद्ध महिला कोलेज स्थापित ।

1954 ई०- छठा अखिल भारतीय सर्वोदय सम्मलेन का बोधगया में आयोजन,
जिसमे जे पी भूदान यज्ञ के जीवनदानी बने ।

1954 ई०- बिहार राज्य पथ परिवहन का गया डिवीज़न स्थापित ।

1955 ई०- विनोवा भावे का गया आगमन ।

1956 ई०- तथागत के जन्म के 2500 वें जन्म संस्कार पूर्ण होने पर विशेष कार्यक्रम बोधगया क्षेत्र में ।

1961 ई०- गया डेयरी का स्थापना ।

1962 ई०- मगध विश्विधालय का शिलान्यास ।

1972 ई०- गया से कटकर नवादा और औरंगाबाद स्वतंत्र जिला बना ।

1974-75 ई०- अहिंसा स्तम्भ का निर्माण ।

1981 ई०- मगध वि० वि० में 42वां भारतीय इतिहास कोंग्रेस ।

1981 ई०- गया में मगध प्रमंडल का मुख्यालय का निर्माण ।

1983 ई०- गया म्युनिस्पलिटी नगर निगम में परिवर्तित ।

1984 ई०- गया में दूरदर्शन टावर की स्थापना ।

1986 ई०- गया दूरसंचार केंद्र (पिआरएक्स- ए) की स्थापना, जो बिहार में प्रथम है ।

1984 ई०- महेश सिंह यादव कॉलेज की स्थापना ।

1986 ई०- जहानाबाद अनुमंडल जिला बना ।

1992 ई०- गया में पितृवाटिका की स्थापना ।

1993 ई०- विश्व इस्लामिक सम्मलेन (इल्तजा) का आयोजन ।

1995 ई०- गया पितृपक्ष मेल में प्रशासन द्वारा पहली बार स्मारिका (नाम- चरणामृत) प्रकाशित ।

1997 ई०- बोधगया का सौन्दर्यीकरण (OECF) जापान के कोश से ।

1998 ई०- बोधगया में प्रथम बौद्ध महोत्सव ।

2003 ई०- बोधगया के महाबोधि महाविहार यूनेस्को द्वारा विश्वधरोहर घोषित ।

2004 ई०- डाक टिकट प्रदर्शनी 'गयापेक्स' संपन्न ।

2006 ई०- तथागत के जन्म के 2550 वें जयंती पर विशेष कार्यक्रम ।

2008 ई०- पहली बार जिला स्थापना दिवस समारोह का आयोजन ।

2008 ई०- गाँधी मैदान में पुस्तक मेला का पहली बार आयोजन ।

2009 ई०- गया जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन का 60वीं वर्षगांठ पर विशेष कार्यक्रम ।

गया तीर्थ की कथा....................
ब्रह्माजी जब सृष्टि की रचना कर रहे थे, उस समय उनसे असुर कुल में गया नामक असुर की रचना हो गई। गया असुरों की संतान रूप में पैदा नहीं हुआ था, इसलिए उसमें आसुरी प्रवृति नहीं थी। वह सभी देवताओं का सम्मान और आराधना करता था। उसके मन में एक बात खटक रही थी। वह सोचा करता था कि भले ही मेरा स्वभाव संत प्रवृति का है लेकिन असुर कुल में पैदा होने के कारण उसे कभी सम्मान नहीं मिल पायेगा। इसलिए क्यों न अच्छे कर्मो से इतना पुण्य अर्जित किया जाए ताकि उसे स्वर्ग प्राप्ति हो। गयासुर ने कठोर तप करके भगवान श्री विष्णुजी को प्रसन्न किया। भगवान ने गयासुर वरदान मांगने को कहा तो गयासुर ने मांगा। भगवन आप मेरे शरीर में वास करें, जो मुझे देखे तो उसके सारे पाप नष्ट हो जाएं। वह जीव पुण्यात्मा हो जाए और उसे स्वर्ग में भी स्थान मिले।

भगवान श्री हरी से वरदान पाकर गयासुर घूम-घूमकर लोगों के पाप दूर करने लगा। जो भी उसे देख लेता उसके सभी पाप नष्ट हो जाते और स्वर्ग का अधिकारी हो जाता। गयासुर के इस कर्म से यमराज की व्यवस्था गड़बड़ा गई, कोई भी घोर पापी गयासुर के दर्शन कर लेता तो उसके सभी पाप नष्ट हो जाते। यमराज उसके कर्मो के अनुसार उसे नर्क भेजने की तैयारी करते तो वह गयासुर के दर्शन के प्रभाव से स्वर्ग मांगने लगता। धर्मराज को कर्मो का हिसाब रखने में संकट हो गया था। यमराज ने ब्रह्माजी से कहा कि अगर गयासुर को अभी न रोका गया तो आपका वह विधान समाप्त हो जाएगा जिसमें आपने सभी को उनके कर्मो के अनुसार फल भोगने की व्यवस्था दी है। पापी भी गयासुर के प्रभाव से स्वर्ग भोगने लगते है।

ब्रह्माजी ने उसी समय उपाय निकाला, उन्होंने गयासुर से कहा कि तुम्हारा शरीर सबसे अधिक पवित्र है इसलिए मैं तुम्हारी पीठ पर बैठकर सभी देवताओं के साथ यज्ञ करुंगा। उसकी पीठ पर यज्ञ होगा यह सुनकर गयासुर सहर्ष तैयार हो गया। ब्रह्माजी सभी देवताओं के साथ एक पत्थर से गयासुर को दबाकर बैठ गए। इतने भार के बावजूद भी वह अचल नहीं हुआ और वह घूमने-फिरने में फिर भी समर्थ था। देवताओं को चिंता हुई, उन्होंने आपस में सलाह की कि इसे भगवान श्री विष्णु ने वरदान दिया है इसलिए अगर स्वयं श्री हरि भी देवताओं के साथ बैठ जाएं तो गयासुर अचल हो जाएगा। तब श्री हरि भी उसके शरीर पर आकर बैठ गये।

भगवान श्री विष्णु जी को भी सभी देवताओं के साथ अपने शरीर पर बैठा देखकर गयासुर ने कहा- आप सब देवता और मेरे आराध्य श्री हरि की मर्यादा के लिए अब मैं अचल हो रहा हूं, सभी जगह घूम-घूमकर लोगों के पाप हरने का कार्य बंद कर दूंगा। लेकिन मुझे श्री हरि का आशीर्वाद है इसलिए वह व्यर्थ नहीं जा सकता इसलिए श्री हरि आप मुझे पत्थर की शिला बना दें और यहीं स्थापित कर दें। भगवान श्री हरि उसकी इस भावना से बड़े खुश हुए, उन्होंने गयासुर से कहा अगर तुम्हारी कोई और इच्छा हो तो मुझसे वरदान के रूप में मांग लो।

गयासुर ने कहा- ” हे नारायण मेरी इच्छा है कि आप सभी देवताओं के साथ अप्रत्यक्ष रूप से इसी शिला पर विराजमान रहें और यह स्थान मृत्यु के बाद किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों के लिए तीर्थस्थल बन जाए।” भगवान श्री विष्णु ने कहा- गया तुम धन्य हो, तुमने जीवित अवस्था में भी लोगों के कल्याण का वरदान मांगा और मृत्यु के बाद भी मृत आत्माओं के कल्याण के लिए वरदान मांग रहे हो। तुम्हारी इस कल्याणकारी भावना से हम सब बंध गए हैं।

तब भगवान श्री हरि ने आशीर्वाद दिया कि जहां गया स्थापित हुआ वहां पितरों के श्राद्ध-तर्पण आदि करने से मृत आत्माओं को पीड़ा से मुक्ति मिलेगी। और इस क्षेत्र का नाम गयासुर के अर्धभाग गया नाम से तीर्थ रूप में विख्यात होगा। मैं स्वयं यहां विराजमान रहूंगा। गया तीर्थ से समस्त मानव जाति का कल्याण होगा। और साथ ही वहा भगवान “श्री विष्णुजी ने अपने पैर का निशान स्थापित किया जो आज भी वहा के मंदिर मे स्थित हे। गया विधि के अनुसार श्राद्ध फल्गू नदी के तट पर विष्णु पद मंदिर में व अक्षयवट के नीचे किया जाता है। वह स्थान बिहार के गया में हुआ जहां श्राद्ध आदि करने से पितरों का कल्याण होता है।

पिंडदान की शुरुआत कब और किसने की.............
यह उतना ही कठिन है जितना कि भारतीय धर्म-संस्कृति के उद्भव की कोई तिथि निश्चित करना। गया के स्थानीय पंडों का कहना है कि सर्व प्रथम सतयुग में ब्रह्माजी ने पिंडदान किया था। महाभारत के ‘वन पर्व’ में भीष्म पितामह और पांडवों की गया-यात्रा का उल्लेख मिलता है। श्रीराम ने महाराजा दशरथ का पिण्ड दान गया में किया था। गया के पंडों के पास जो साक्ष्य है उनसे स्पष्ट है कि मौर्य और गुप्त राजाओं से लेकर कुमारिल भट्ट, चाणक्य, रामकृष्ण परमहंस और चैतन्य महाप्रभु जैसे महापुरुषों का भी गया में ही पिंडदान करने का प्रमाण मिलता है। गया में फल्गू नदी प्रायः सूखी रहती है। इसके संदर्भ में भी एक कथा प्रचलित है।

श्री राम अपनी पत्नी सीताजी के साथ पिता दशरथ का श्राद्ध करने गयाधाम पहुंचे। श्री राम श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री लाने वे चले गये। तब तक राजा दशरथ की आत्मा ने पिंड की मांग कर दी थी। फल्गू नदी तट पर अकेली बैठी माता सीताजी अत्यंत असमंजस में पड़ गई। माता सीताजी ने वहा उपस्थित फल्गु नदी, गाय, वटवृक्ष और केतकी के फूल को साक्षी मानकर पिंडदान कर दिया। जब श्री राम जी आए तो उन्हें पूरी कहानी सुनाई, परंतु भगवान को विश्वास नहीं हुआ। तब जिन्हें साक्षी मानकर पिंडदान किया गया था, उन सबको सामने लाया गया। उनमें से पंडा, फल्गु नदी, गाय और केतकी फूल ने झूठ बोल दिया परंतु अक्षयवट ने सत्यवादिता का परिचय देते हुए माता की लाज रख ली।

उन सबके झूट से क्रोधित होकर माता सीताजी ने फल्गू नदी को श्राप दे दिया कि तुम सदा सूखी रहोगी जबकि गाय को मैला खाने का श्राप दिया केतकी के फूल को पितृ पूजन मे निषेध का। और वटवृक्ष पर प्रसन्न होकर सीताजी ने उसे सदा दूसरों को छाया प्रदान करने व लंबी आयु का वरदान दिया। तब भी से ही फल्गू नदी हमेशा सूखी रहती हैं, जबकि वटवृक्ष अभी भी तीर्थयात्रियों को छाया प्रदान करता है। आज भी फल्गू तट पर स्थित सीता कुंड में बालू का पिंड दान करने की परंपरा संपन्न होती है।

गया में पिंडदान से मिलता है मोक्ष.................

हिंदू मान्यताओं और वैदिक परम्परा के अनुसार पुत्र का पुत्रत्व तभी सार्थक होता है, जब वह अपने जीवित माता-पिता की सेवा करें और उनके मरणोपरांत उनकी बरसी पर तथा पितृपक्ष में उनका विधिवत श्राद्ध करें। विद्वानों के मुताबिक किसी वस्तु के गोलाकर रूप को पिंड कहा जाता है। प्रतीकात्मक रूप में शरीर को भी पिंड कहा जाता है। पिंडदान के समय मृतक की आत्मा को अर्पित करने के लिए जौ या चावल के आटे को गूंथकर बनाई गई गोलाकृत्ति को पिंड कहते हैं।

श्राद्ध की मुख्य विधि में मुख्य रूप से तीन कार्य होते हैं, पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोज। दक्षिणाविमुख होकर आचमन कर अपने जनेऊ को दाएं कंधे पर रखकर चावल, गाय का दूध, घी, शक्कर एवं शहद को मिलाकर बने पिंडों को श्रद्धा भाव के साथ अपने पितरों को अर्पित करना पिंडदान कहलाता है।

जल में काले तिल, जौ, कुशा एवं सफेद फूल मिलाकर उससे विधिपूर्वक तर्पण किया जाता है। मान्यता है कि इससे पितृ तृप्त होते हैं। इसके बाद ब्राह्मण भोज कराया जाता है। पंडों के मुताबिक शास्त्रों में पितृ का स्थान बहुत ऊंचा बताया गया है। उन्हें चंद्रमा से भी दूर और देवताओं से भी ऊंचे स्थान पर रहने वाला बताया गया है।

पितृ की श्रेणी में मृत पूर्वजों, माता, पिता, दादा, दादी, नाना, नानीसहित सभी पूर्वज शामिल होते हैं। व्यापक दृष्टि से मृत गुरू और आचार्य भी पितृ की श्रेणी में आते हैं।

कहा जाता है कि गया में पहले विभिन्न नामों के 360 वेदियां थीं जहां पिंडदान किया जाता था। इनमें से अब 48 ही बची है। वैसे कई धार्मिक संस्थाएं उन पुरानी वेदियों की खोज की मांग कर रही है। वर्तमान समय में इन्हीं वेदियों पर लोग पितरों का तर्पण और पिंडदान करते हैं।

यहां की वेदियों में विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी के किनारे और अक्षयवट पर पिंडदान करना जरूरी माना जाता है। इसके अतिरिक्त वैतरणी, प्रेतशिला, सीताकुंड, नागकुंड, पांडुशिला, रामशिला, मंगलागौरी, कागबलि आदि भी पिंडदान के लिए प्रमुख है। यही कारण है कि देश में श्राद्घ के लिए 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है जिसमें बिहार के गया का स्थान सर्वोपरि है।

पर्यटन स्थल...................

विष्णुपद मंदिर

फल्गु नदी के पश्चिमी किनारे पर स्थित यह मंदिर पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण भगवान विष्णु के पदचिन्हों पर किया गया है। यह मंदिर 30 मीटर ऊंचा है जिसमें आठ खंभे हैं। इन खंभों पर चांदी की परतें चढ़ाई हुई है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु के 40 सेंटीमीटर लंबे पांव के निशान हैं। इस मंदिर का 1787 में इंदौर की महारानी अहिल्या बाई ने नवीकरण करवाया था। पितृपक्ष के अवसर पर यहां श्रद्धालुओं की काफी भीड़ जुटती है।

जामा मस्जिद ................
जामा मस्जिद जो दिल्ली में है, वह अलग है, ील बोध गया मंदिर के पीछे जाम मस्जिद नामक एक मस्जिद है , बिहार की सबसे बडी मस्जिद नहीं है। यह तकरीबन 200 साल पुरानी है। इसमे हजारो लोग साथ नमाज अदा कर सकते हैं।

बिथो शरीफ ..............
मुख्य नगर से 10कि॰मी॰ दूर गया पटना मार्ग पर स्थित एक पवित्र धर्मिक स्थल है। यहाँ नवी सदी हिज‍री में चिशती अशरफि सिलसिले के प्रख्यात सूफी सत हजरत मखदूम सयद दर्वेश अशरफ ने खानकाह अशरफिया की स्थापना की थी। आज भी पूरे भारत से श्रदालू यहाँ दर्शन के लिये आते है। हर साल इस्लामी मास शाबान की १० तारीख को हजरत मखदूम सयद दर्वेश अशरफ का उर्स मनाया जाता है।

बानाबर (बराबर) पहाड़ ................
गया से लगभग २० किलोमीटर उत्तर बेलागंज से १० किलोमीटर पूरब में स्थित है। इसके ऊपर भगवान शिव का मन्दिर है, जहाँ हर वर्ष हजारों श्रद्धालू सावन के महीने में जल चढ़ते है। कहते हैं इस मन्दिर को बानासुर ने बनवाया था। पुनः सम्राट अशोक ने मरम्मत करवाया। इसके नीचे सतघरवा की गुफा है, जो प्राचीन स्थापत्य कला का नमूना है। इसके अतिरिक्त एक मार्ग गया से लगभग ३० किमी उत्तर मखदुमपुर से भी है। इस पर जाने हेतु पातालगंगा, हथियाबोर और बावनसीढ़ी तीन मार्ग है, जो क्रमशः दक्षिण, पश्चिम और उत्तर से है, पूरब में फलगू नदी है।

और गया से लगभग २५ किलोमीटर पूरब में टनकुप्पा प्रखंड में चोवार एक गाँव है जो की गया जिले में एक अलग ही बिशेषता रखता है!इस गाँव में एक प्राचीन शिव मंदिर है जो अपने आप में ही एक बहुत बड़ी महानता रखता है!इस मंदिर में भगवान शिव को चाहे जितना भी जल क्यों नहीं चढ़ाये पर आजतक इसका पता नहीं लग पाया है!और इसी गाँव में खुदाई में बहुत ही प्राचीन अष्टधातु की मूर्तियाँ और चाँदी के बहुतें सिक्के मिले है!इस गाँव में एक ताड़ का पेड़ भी है,जो की बहुत ही अद्भुत है। इस ताड़ के पेड़ की विशेषता यह है कि इस पेड़ में तिन डाल है जो की भगवान शिव की त्रिशूल की आकार का है,ये गाँव की शोभा बढ़ाता है जी हाँ ये चोवार गाँव की विशेषता है।

प्राचीन एबं अद्भुत शिव मंदिर (चोवार गॉव) ..........
चोवार गया शहर से 35 किलोमीटर पूर्व में एक गाँव है चोवार जो की अपने आप में एक बहुत ही अद्भुत है इस गाँव में एक बहुत ही प्राचीन शिव मंदिर है जहा सैकड़ो सर्धालू बाबा बालेश्वरनाथ के ऊपर जल चढाते है पर आजतक ये जल कहाँ जाता है कुछ पता नहीं चलता है इसके पीछे के कारण किसी को नहीं पता चला लगभग हजारो सालों से ये चमत्कार की जाँच करने आये सैकड़ो बैज्ञानिको ने भी ये दाबा किया है कि ये भगवान शिव का चमत्कार है। .और इसी गाँव में कुछ सालों पहले सड़क निर्माण के दौरान यहाँ एक बहुत ही बड़ा घड़ा निकला जिसमे हजारो शुद्ध चाँदी के सिक्के निकले थे!और आज भी इस गाँव से अष्टधातु की अनेको मूर्तियाँ है जो की,आज भी शिव मंदिर में देखने को मिलता है। . इस गाँव में एक ताड़ का पेड़ भी है जो इस चोवार गाँव की शोभा बढ़ाता है इसमे खास बात तो ये हैं की,ये ताड़ का पेड़ एक,दो,नहीं बल्कि पूरे तिन डाल का पेड़ है जी हाँ इस ताड़ के पेड़ में तिन डाल है जो की भगवान शिव की त्रिशूल की आकार का है!दूर-दूर से लोग इस पेड़ को देखने के लिये आते हैं।

कोटेस्वरनाथ ..............

यह अति प्राचीन शिव मन्दिर मोरहर नदी के किनारे मेन गाँव में स्थित है। यहाँ हर वर्ष शिवरात्रि में मेला लगता है। यहाँ पहुँचने हेतु गया से लगभग ३० किमी उत्तर पटना-गया मार्ग पर स्थित मखदुमपुर से पाईबिगहा समसारा होते हुए जाना होता है। गया से पाईबिगहा के लिये सीधी बस सेवा उपलब्ध है। पाईबिगहा से इसकी दूरी लगभग २ किमी है।

सूर्य मंदिर ...............
सूर्य मंदिर प्रसिद्ध विष्णुपद मंदिर के 20 किलोमीटर उत्तर और रेलवे स्टेशन से 3 किलोमीटर दूर स्थित है। भगवान सूर्य को समर्पित यह मंदिर सोन नदी के किनारे स्थित है। दिपावली के छ: दिन बाद बिहार के लोकप्रिय पर्व छठ के अवसर पर यहां तीर्थयात्रियों की जबर्दस्त भीड़ होती है। इस अवसर पर यहां मेला भी लगता है।

सूर्य कुंड.........
यह मगध का प्राचीन सरोवर है। सूर्य पूजा से जुडे इस तालाब का धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व है।

सीता कुंड..........
यह मंदिर विष्णु पद मंदिर के ठीक सामने फल्गु नदी के दूसरी ओर बना है। इस मंदिर में काले पत्थर का एक हाथ रखा है। किवंदंती है कि यह हाथ अयोध्या के राजा दशरथ का है।



कमला देवी का मंदिर.............
यह मंदिर रामशिला दुखहरनी देवी से एक मील दूर है। यहा पिंडदान किया जाता है। इस पहाड पर चढने के लिए 357 सीढियां है।



प्रेतशिला पहाड............
प्रेतशिला पहाड राशिला से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। धार्मिक मान्यताओ के अनुसार यहा पिंडदान देने से मृतक का प्रेत योनि से उद्धार हो जाता है। इस पहाड पर चढने के लिए 400 सीढिया है।

जनार्दन मंदिर.............
मंगला गौरी मंदिर के पास बनबना यह मंदिर अपने शिल्प के लिए गया दर्शन में महत्वपूर्ण है।



ब्रह्मयोनि पहाड..........
यह पहाड विष्णु पद से डेढ किलोमीटर दूर है। इस पर चढने के लिए 424 सीढिया है। इस पहाड के ऊपर 2 संकीर्ण गुफाएं है। जिनके बारे में कहा जाता है कि इन गुफाओ के अंदर से पार निकलने पर आवागमन से मुक्ती मिल जाती है। वैसे आजकल यह गुफाएं बंद है।

इसके शिखर पर भगवान शिव का मंदिर है। यह मंदिर विशाल बरगद के पेड़ के नीचे स्थित हैं जहां पिंडदान किया जाता है। इस स्थान का उल्लेख रामायण में भी किया गया है। दंतकथाओं पर विश्‍वास किया जाए तो पहले फल्गु नदी इस पहाड़ी के ऊपर से बहती थी। लेकिन देवी सीता के शाप के प्रभाव से अब यह नदी पहाड़ी के नीचे से बहती है। यह पहाड़ी हिन्दुओं के लिए काफी पवित्र तीर्थस्थानों में से एक है। यह मारनपुर के निकट है।

मंगला गौरी ................
पहाड पर स्थित यह मंदिर मां शक्ति को समर्पित है। यह स्थान 18महाशक्तिपीठों में से एक है। माना जाता है कि जो भी यहां पूजा कराते हैं उनकी मन की इच्छा पूरी होती है। इसी मन्दिर के परिवेश में मां काली, गणेश, हनुमान तथा भगवान शिव के भी मन्दिर स्थित हैं।

बराबर गुफा ................
यह गुफा गया से 20 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। इस गुफा तक पहुंचने के लिए 7 किलोमीटर पैदल और 10 किलोमीटर रिक्शा या तांगा से चलना होता है। यह गुफा बौद्ध धर्म के लिए महत्वपूर्ण है। यह बराबर और नागार्जुनी श्रृंखला के पहाड़ पर स्थित है। इस गुफा का निर्माण बराबर और नागार्जुनी पहाड़ी के बीच सम्राट अशोक और उनके पोते दशरथ के द्वारा की गई है। इस गुफा उल्लेख ई॰एम. फोस्टर की किताब ए पैसेज टू इंडिया में भी किया गया है। इन गुफओं में से 7 गुफाएं भारतीय पुरातत्व विभाग की देखरख में है।

देवी मंदिर नियाजीपुर, गया बिहार ..........................

देवी मंदिर नियाजीपुर का निर्माण सन 1961 में हुई और इसका उद्घाटन फ़रवरी 1961 में किया गया, इसका निर्माण नियाजीपुर गया के मूल निवासी स्वर्गीय राम उग्रह सिंह द्वारा किया गया था|

इसका उद्घाटन एक बहुत बड़े यज्ञ से हुआ था|इस समय मंदिर की देखभाल एक ट्रस्ट के माध्यम से की जाती है जिसके ट्रस्टी राम उग्रह सिंह के सबसे छोटे पुत्र श्री राज नंदन सिंह हैं। यह मंदिर एक तालाब के किनारे स्थित है जो इसकी खूबसूरती मे चार चाँद लगा देता है |

●आवागमन

हवाई मार्ग .............
बिहार एवं झारखण्ड के एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा गया अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा है

रेल मार्ग ...........
गया जन्कशन बिहार का दूसरा बड़ा रेल स्टेशन है। यह एक विशाल परिसर में स्थित है। इसमे ९ प्लेटफार्म है। गया से पटना, कोलकाता, पुरी, बनारस, चेन्नई, मुम्बई, नई दिल्ली, नागपुर, गुवाहाटी आदि के लिए सीधी ट्रेनें है।

सड़क मार्ग .............
गया राजधानी पटना और राजगीर, रांची, बनारस आदि के लिए बसें जाती हैं। गया में दो बस स्टैंड हैं। दोनों स्टैंड फल्गु नदी के तट पर स्थित है। गांधी मैदान बस स्टैंड नदी के पश्चिमी किनार पर स्थित है। यहां से बोधगया के लिए नियमित तौर पर बसें जाती हैं।

Want your university to be the top-listed University in Patna?
Click here to claim your Sponsored Listing.

Videos (show all)

"RAJ IAS FOUNDATION"  PATNA#Call-8920641806➥ सामान्य अध्ययन फाउंडेशन कोर्स (प्रिलिम्स + मेन्स)➥ हाइब्रिड कोर्स ऑफलाइन+ऑन...
मिलिए हमारे बिहार के भावी officer से  BPSC 67TH MOCK INTERVIEW ....  ONLINE. IS GOING ON... #delhi/PATNA  "हमारे विशेषज्...
आज से interview session start हुआ है!#UPSC INTERVIEWKVS HEAD MASTER,RAJ IAS FOUNDATION, PATNA#BPSC  इंटरव्यू जल्द ही sta...
EVERY DAY UPDATE CURRENT AFFAIRS FOR BPSC ASPIRANTS
67th BPSC MAINS के छात्रों को मार्गदर्शन करते हुए MANOHAR KUMARREVENUE OFFICER66th BPSC
67th BPSC MAINS के छात्रों को मार्गदर्शन करते हुए MANOHAR KUMARREVENUE OFFICER66th BPSC
कब निकलोगे? जब सारे पर कट जाएंगे,तब निकलोगे?SPECIAL FOR BPSC ASPIRANTS.

Telephone

Address


SAGAR MARKET, 3RD FLOOR, ABOVE SBI ATM, ASOK RAJPATH, PATNA
Patna
80005

Other Community Colleges in Patna (show all)
Macet_official Macet_official
Maulana Azad College Of Engineering & Technology
Patna, 801113

First Minority Engineering College in Bihar

NIT PATNA Family NIT PATNA Family
Nit Patna
Patna, 800005

Hit the like button to get latest updates about NITP and some funny memes.�

AIIMS Patna MBBS Admissions AIIMS Patna MBBS Admissions
Walmi, PhulwariSharif
Patna

This Page is for AIIMS Patna Aspirants for Admission in 2013 Batch

Government Polytechnic, Gulzarbagh, Patna-07 Government Polytechnic, Gulzarbagh, Patna-07
Patna, 800007

Bihar Number 1(One) largest & oldest Polytechnic college.

NIT Patna Alumni NIT Patna Alumni
NIT Patna, Ashok Rajpath
Patna, 800005

NIT Patna Alumni Page

Indian Pharmaceutical Association Students' Forum - Bihar Branch Indian Pharmaceutical Association Students' Forum - Bihar Branch
N M C H Road
Patna, 800007

A unit of Indian Pharmaceutical Association, Bihar Branch

A. N. College MBA (2012-14 Batch) A. N. College MBA (2012-14 Batch)
Boring Road Patna
Patna, 800001

Training & Placement Cell,  NIT Patna Training & Placement Cell, NIT Patna
Patna, 800005

Training & Placement activities : Updates for concerned students of NIT Patna

Institute of Hotel Management & Catering Technology Institute of Hotel Management & Catering Technology
Patna, 800013

The institute is 5th Hotel Mgt Institute of India and 1st in the state of Bihar & Jharkhand. Established in 1979 with 100% placement in india & Abroad.

CybotechCampus CybotechCampus
Patna, 800013

www.cybotechcampus.com.! Welcome to the official page of the Best IT & MANAGEMENT College of Bihar. Affiliated to Patliputra University,Patna.

Azad Alumni Network Azad Alumni Network
Gorhna
Patna

Maulana Azad College of Engineering and Technology, Patna is one of the most prestigious engineering