आनंद लोक हॉस्पिटल एंड मैटरनिटी सेन्टर बरगदवा
bargadwa
सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज का उद्देश्य लोगों तक पर्याप्त रूप से प्रभावी गुणवत्ता वाली प्रोत्साहक, निवारक, उपचारात्मक व पुनर्वास संबंधी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करना है। इसके अलावा यह भी सुनिश्चित करना है कि इन सेवाओं के लिए भुगतान करते समय लोगों को वित्तीय कठिनाई न हो
संविधान में हर इंसान के कुछ मौलिक अधिकार हैं जिनकी जानकारी हर एक को नहीं होती लिहाज़ा ये दिन लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए ही मनाया जाता है।
बरगदवा थाना क्षेत्र के मुड़ेरी गांव में खेले जा रहे दुक्की राउंड प्रतियोगिता में मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित आनंद लोक हॉस्पिटल एंड मैटरनिटी सेन्टर बरगदवा के डॉक्टर शरद कुमार चौधरी (MBBS) व मैनेजर विष्णु पाण्डेय रीबन काट खेल की शुरुवात कराते हुए ।
मृदा जिसे हम आम बोलचाल की भाषा मे मिट्टी कहते हैं, हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होती है। मिट्टी के महत्व को याद रखने और उसके संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए 5 दिसंबर को विश्व मृदा दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र के तहत संचालित अंतरराष्ट्रीय संगठन आज के दिन मृदा दिवस मनाते हैं। इसका उद्देश्य लोगों का ध्यान मृदा संरक्षण और टिकाऊ प्रबंधन की ओर लाना है। मिट्टी के क्षरण के बारे में जागरूक करना है, जोकि एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या है, जिसे मिट्टी की स्थिति में गिरावट के रूप में जाना जाता है। उद्योगों द्वारा पर्यावरण मानकों के प्रति लापरवाही और कृषि भूमि के कुप्रबंधन से मिट्टी की स्थिति खराब होती है।
डॉ॰ (सर) जगदीश चन्द्र बसु (30 नवंबर 1858 – 23 नवंबर, 1937) भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे जिन्हें भौतिकी, जीवविज्ञान, वनस्पतिविज्ञान तथा पुरातत्व का गहरा ज्ञान था। वे पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने रेडियो और सूक्ष्म तरंगों की प्रकाशिकी पर कार्य किया। वनस्पति विज्ञान में उन्होनें कई महत्त्वपूर्ण खोजें की। साथ ही वे भारत के पहले वैज्ञानिक शोधकर्त्ता थे। वे भारत के पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने एक अमेरिकन पेटेंट प्राप्त किया। उन्हें रेडियो विज्ञान का पिता माना जाता है। वे विज्ञानकथाएँ भी लिखते थे और उन्हें बंगाली विज्ञानकथा-साहित्य का पिता भी माना जाता है। उन्होंने अपने काम के लिए कभी नोबेल नहीं जीता। इनके स्थान पर 1909 में मारकोनी को नोबेल पुरस्कार दे दिया गया।
क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी ऐसी समस्या है, जो फेफड़ों से आने वाली सांस यानी एयरफ्लो में रुकावट पैदा कर सकती है. बढ़ते वायुप्रदूषण और स्मोक के चलते कई प्रकार की सांस से संबंधित समस्याएं लोगों को परेशान कर रही हैं. इनमें से एक है क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज यानी सीओपीडी. इसे फेफड़ों की प्रोग्रेसिव डिजीज के रूप में भी जाना जाता है. ये बीमारी समय के साथ बढ़ सकती है. सीओपीडी से ग्रसित लोगों को हार्ट प्रॉब्लम और लंग कैंसर की स्थिति का सामना भी करना पड़ सकता है. हालांकि, इस बीमारी का इलाज यदि समय रहते किया जाए तो मरीज पूरी तरह से स्वस्थ्य हो सकता है. सीओपीडी से संबंधित जानकारी देने और उपचार के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए हर वर्ष नवंबर महीने के तीसरे बुधवार को वर्ल्ड क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डे मनाया जाता है
क्या है सीओपीडी?
सीओपीडी का मतलब है क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज. जब फेफड़ों से एयरफ्लो में रुकावट आती है तो इस खतरानाक फेफड़ों की स्थिति को सीओपीडी के रूप में जाना जाता है. इस समस्या के दौरान फेफड़ों के एयरवेज सिकुड़ जाते हैं, जिस वजह से सांस लेने में परेशानी या अन्य एक्टिविटी करने में मुश्किल आ सकती है.
भारत के एक चिकित्सक, समाजसुधारक, तथा वैज्ञानिक चेतना के प्रसारक नेता थे। 'इण्डियन एसोसियेशन फॉर द कल्टिवेशन ऑफ साईन्स' की स्थापना उन्होने ही की थी।
वे कलकता मेडिकल कॉलेज के दूसरे स्नातक मेडिकल डॉक्टर थे। यद्यपि उन्होने एलोपैथी की शिक्षा ली थी, उन्होने होमियोपैथी को अपनाया और उसी के माध्यम से चिकित्सा की। अपने व्यावसायिक जीवन में उन्होने उस युग के कई महान व्यक्तियों की चिकित्सा की थी, जैसे-बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय, रामकृष्ण परमहंस, त्रिपुरा के महाराज आदि।
शाकाहारी भोजन को अपनाना स्वस्थ और खुश रहने का सही तरीका है। एक वेजिटेरियन डाइट एक संपूर्ण आहार है। जिसमें फाइबर, विटामिन, फोलिक एसिड, मैग्नीशियम और कई फाइटोकेमिकल्स का लाभ शरीर को मिलता है। यही कारण है कि शाकाहारियों में कोलेस्ट्रॉल, रक्तचाप और हृदय रोगों का खतरा कम होता है। इसके अलावा शाकाहारी भोजन पचने में आसान होता है। पकाने में भी कम समय लगया है। सब्जियां न केवल हमारे स्वस्थ जीवन के लिए बल्कि पर्यावरण के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। आज हम आपको वेजिटेरियन होने के 8 फायदे बताने जा रहे हैं। जिससे जानकर आप हैरान हो जाएंगे।
1. जीवनकाल बढ़ाता है
हालांकि ऐसे कई कारण हैं, जो जीवनकाल को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं। शाकाहारी भोजन अपनाना एक ऐसा कारण है। जिसका आप पालन कर सकते हैं। जितना अधिक आप फल और सब्जियां खाते हैं। शरीर में कम टोक्सिन और केमिकल का निर्माण होता है।
2. शाकाहारी भोजन कोलेस्ट्रॉल मुक्त होता है। कोलेस्ट्रॉल प्रत्येक मानव कोशिका का एक जरूरी घटक है। वेजिटेरियन को पर्याप्त कोलेस्ट्रॉल नहीं मिलने के बारे में चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। शरीर शाकाहारी खाद्य पदार्थों से आवश्यक सभी कोलेस्ट्रॉल बना सकता है। कोरियाई शोधकर्ताओं ने शाकाहारी भोजन का पालन करने के दीर्घकालिक प्रभावों की जांच करने के बाद निष्कर्ष निकाला कि शाकाहारियों में वसा और कोलेस्ट्रॉल का स्तर सर्वाहारी की तुलना में कम था।
3. बेल्जियम में यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल गेंट डिपार्टमेंट ऑफ पीडियाट्रिक्स का कहना है कि शाकाहारी आहार अपनाना स्ट्रोक या मोटे होने की संभावना को कम करने का एक अच्छा तरीका है।
4. शाकाहारी भोजन मधुमेह के जोखिम को कम करने मदद करता है। कई वेजिटेरियन डाइट ब्लड शुगर लेवल को स्थिर रखते हैं। एक अध्ययन में सामने आया कि शाकाहारियों को मांसाहारी लोगों की तुलना में टाइप 2 डायबीटिज होने का जोखिम आधा होता है।
5. अगर आप स्वस्थ त्वचा चाहते हैं, तो भरपूर पानी के साथ सही मात्रा में विटामिन और मिनरल का सेवन करना चाहिए। हम जो फल और सब्जियां खाते हैं। वे विटामिन, खनिजों से भरपूर होते हैं। इनमें पर्याप्त मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट होते हैं। कई शाकाहारी खाद्य पदार्थ स्वस्थ त्वचा के साथ रोग मुक्त रहने में मदद करते हैं।
6. शोध के अनुसार मांसाहारी की तुलना में एक शाकाहारी अधिक खुश हो सकता है। यह भी पता चला कि मांस या मछली खाने वालों की तुलना में एक वेजिटेरियन का अवसाद परीक्षण और मूड प्रोफाइल पर कम स्कोर था। इसके अलावा अधिकांश शाकाहारी खाद्य पदार्थों में ताजगी का एक तत्व होता है।
7. शाकाहारी भोजन पचने में आसान होता है। यह व्यक्ति के मेटाबॉलिज्म को अच्छी स्थिति में रखता है।
8. अगर आप शाकाहारी भोजन का पालन करते हैं। तब अच्छी रकम बचा रहे हैं। शाकाहारी भोजन की तुलना में मांसाहारी भोजन निस्संदेह महंगा है।
सरल शब्दों में गठिया का अर्थ है जोड़ों में सूजन। सूजन में दर्द, सूजन, लालिमा और उस स्थान पर गर्मी का अनुभव होता है। हड्डी के जोड़ का सूजन (ऑस्टियोआर्थराइटिस) जिसमें जोड़ों में दर्द का कारण सूजन नहीं होता है, के अलावा गठिया के कारण होने वाली अधिकांश बीमारियां स्वप्रतिरक्षा के कारण होती हैं। स्वप्रतिरक्षा एक अजेय रोग प्रक्रिया है जो हमारे सामान्य प्रतिरक्षा प्रणाली की कोशिकाओं और रसायनों के कारण होती है, जो हमारे स्वयं के जोड़ों पर हमला और नुकसान पहुंचाती रहती हैं। गठिया के कारण होने वाले इन स्वप्रतिरक्षा क्षति को मोटे तौर पर रुमेटोलॉजिकल रोग कहा जाता है और इनकी पहचा रूमेटाइड अर्थराइटिस है। रुमेटोलॉजिकल रोग किसी भी आयु वर्ग को नहीं छोड़ता है। यह 2 साल की उम्र में शुरू हो सकता है और यहां तक कि 80 साल की उम्र के रोगी में भी पहली बार हो सकता है।
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