RN Poet
सम्मान पत्र- 263
सर्वश्रेष्ठ रचनाकार के रूप में सम्मानित करने के लिए स्वभिमान साहित्यिक मंच का बहुत-बहुत आभार 🙏
#स्वभिमान_साहित्यिक_मंच
#शेख_रहमत_अली_बस्तवी
*ग़ज़ल*
मोहब्बत में उनके सफ़र कर रहे हैं।
बता दो उन्हें किस क़दर कर रहे हैं।।
निगाहें मिली जब निगाहों से उनके।
मोहब्बत दिलों पे असर कर रहे हैं।।
कहीं काश होता उन्हें इल्म इसका।
कि हम याद शामों फज़िर कर रहे हैं।।
क्यों रह-रह ज़ेहन में ख़यालात मेरे।
परेशान शाम-ओ-शहर कर रहे हैं।।
लगा ग़र न क़ाबिल उन्हें मेरा तोहफ़ा।
चलो दिल उन्हीं के नज़र कर रहे हैं।।
शेख रहमत अली "बस्तवी"
बस्ती (उ, प्र,)
7317035246
मौलिक स्वरचित
#ग़ज़ल
#शेख_रहमत_अली_बस्तवी'
सम्मान पत्र- 259
दैनिक अख़बार "दि ग्राम टुडे" देहरादून में
प्रकाशित मेरी रचना।
08/10/022 संपादक मंडल का
बहुत-बहुत आभार🙏🙏🙏
कर्म सफलता की सीढ़ी
*******************
आकाश कविघोष ई सा.पत्रिका" प्रथम अंक की समीक्षा द्वितीय अंक में तथा मेरी "गज़ल" "मुश्किल है पर वाह मिलेगी" प्रकाशित, पत्रिका के मार्गदर्शक वरिकवि, श्री सुधीर श्रीवास्तव, संपादक आकाश श्रीवास्तव, और पत्रिका परिवार का आभार 🙏
https://thegramtodaynewspaper.com/literature/सोनभद्र-मानव-सेवा-आश्रम-ट/
सोनभद्र मानव सेवा आश्रम (ट्रस्ट) द्वारा शेख रहमत अली “बस्तवी” को मिला हिन्दी रत्न सम्मान 2022 - Gram Today __दि ग्राम टुडे न्यूज़ 14 सितंबर 2022 को उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के युवा कवि/लेखक:- शेख रहमत अली "
स्वाभिमान मासिक ई पत्रिका के अगस्त अंक में प्रकाशित मेरी रचना संपादक मंडल का हृदय से आभार।🙏
"कविता"
*चाय ऊर्जा का स्रोत*
सुबह निकलते ही सूरज के,
प्याली में मुस्काती चाय।
कड़क स्वाद भरपूर है जिसमें,
आलस दूर भगाती चाय।।
कभी अगर सफ़र पे निकलें,
गैरों को मित्र बनाती चाय।
जाड़ा, गर्मी, बरसात हो मौसम,
खूब हमें फुसलाती चाय।।
ऑफिस की कामों से ऊबे,
अपने पास बुलाती चाय।
मुँह को एक बार लग जाये,
नहीं छुड़ा पाते हम चाय।।
दीपक जी हैं शौक से पीते,
पप्पू का थकान मिटाती चाय।
इन सबको पीते देखूं फिर,
मुझको भी ललचाती चाय।।
शेख रहमत अली बस्तवी
बस्ती (उ, प्र,)
7317035246
मौलिक स्वरचित
आज 01सितंबर मेरे जन्म दिन पर मेरे गुरु
वरि, कवि, श्री सुधीर श्रीवास्तव गोण्डा (उ, प्र)
द्वारा उपहार स्वरूप आशीर्वाद बहुत शुक्रिया गुरु जी 🙏
अनुज शेख रहमत अली बस्तवी के
जन्मदिन(०१ सितंबर) पर विशेष
जन्मदिवस हो अनुज तुमको मुबारक
खुशियों के प्रतिमान का बने कारक
जिंदगी का सफर खुशगवार रहमत
जन्मदिन हो तुमको बहुत मुबारक।
नित्य नव उर्जा का जीवन में संचार हो
प्रगति पथ का नित्य नव विस्तार हो
चढ़ते रहो तुम रोज बुलंदी के शिखर पर
पैरों के नीचे धरा, मुट्ठी में जहान हो।
हर मुश्किल तुम्हारी जीत का वाहक बने
बाधाएं सफलता का तुम्हारे संवाहक बने
नाम चमके जहां में यूँ तुम्हारा बस्तवी
नाम रहमत की प्रिय इक नई मीनार बने।
न रुको, न थको कदम कदम बढ़ते रहो
हौंसले से अपने नवपथ सृजित करते रहो
जन्मदिन पर बस इतना है आशीष रहमत
रहमत की अलग पहचान हो इतना ही करते रहो।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
०१.०९.२०२२
अब शोक न मनाओ!
ऐसे ही झुलस कर रहना है
तुम्हें ग़मों की आंधी में।
तुम्हारे ग़मों की आंधी का
हक़ीक़त में जिम्मेदार
जिन्ना और गांधी है।।
©शेख रहमत अली "बस्तवी"
https://youtu.be/Ucj3kA_Po4k
आज़ादी के अमृत महोत्सव की शानदार वीडियो जरूर देखें और मेरे चैनल को sabscribe करें। 🙏🙏
75स्वतंत्रता दिवस आज़ादी का अमृत महोत्सव
"दि ग्राम टुडे" ई रविवासरीय साप्ताहिक पत्रिका में प्रकाशित मेरी रचना संपादक मंडल का हृदय से आभार।🙏
दैनिक अख़बार "दि ग्राम टुडे" देहरादून में
प्रकाशित मेरी रचना।
27/08/022 संपादक मंडल का बहुत-बहुत धन्यवाद 🙏🙏🙏
*अवधी हास्य कविता"
*पप्पा रहे पावर हाउस*
***********************
सुनो गाँव कै सज्जन नागरिक
फ़िर से उनके बारे में।
करत गुंडई उमर बीती गय
जिनगी कटी सहारे में।।
बहरां कौनों ईज्जत नाहीं
तोप धरे हैं वसारे में।
पप्पा रहे पावर हाउस
अब बेटा मरीहैं अन्हारे में।।
खेती-बाड़ी खूब रहे
भै ख़तम शराब-जुआरे में।
ई मुद्दा तो गंभीर बहुत है
खर्चा चलत उधारे में।।
ताव मूंछ पर जोश उहे बा
धाक जमावैं बजारे में।
बीड़ी, पान, तंबाकू खातिर
घर राशन झोकैं भारे में।।
रोज़ सवेरे खूब मचावैं
तांडव घरे-दुवारे में।
सुनो गाँव कै सज्जन नागरिक
फ़िर से उनके बारे में।।
शेख रहमत अली बस्तवी
बस्ती (उ, प्र,)
7317035246
मौलिक स्वरचित
#कृष्णा_जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। Sheikh Rahmat Ali "Bastvi"
"दि ग्राम टुडे" ई रविवासरीय साप्ताहिक पत्रिका में प्रकाशित मेरी रचना संपादक मंडल का हृदय से आभार।🙏
मासिक ई पत्रिका "मन की लघुकथाएं" में प्रकाशित मेरी रचना।
संपादक मंडल का आभार ।🙏🙏
"लघुकथा"
"उम्मीद है तो जीत है"
******************
सम्मान पत्र- 253
वो ज़ख्म बड़े गहरे होते हैं,
अक्सर जो दिखाई नहीं देते।
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#आज़ादी_का_अमृत_महोत्सव
इश्क़ निभा सको न,
तो इश्क़ करते क्यों हो।
डर ज़माने की सताये तो,
वफ़ा की उम्मीद करते क्यों हो।।
©शेख रहमत अली "बस्तवी"
बस्ती (उ, प्र,)
ये बात सच है
Comment jarur karna
मुझे उस सुबह की ख्वाहिश है,
जिससे मेरे सफ़र की शुरुआत हो।
मंजिल तो मिलेगी एक दिन "रहमत",
अगर तुम उम्र भर मेरे साथ हो।।
©शेख रहमत अली "बस्तवी"
साप्ताहिक पत्रिका "दि ग्राम टुडे" में मेरी रचना
"स्वतंत्रता का उत्सव हो"
07/08/022
संपादक मंडल का बहुत-बहुत धन्यवाद। 🙏
02/08/022 को दैनिक पत्रिका "दि ग्राम टूडे" में प्रकाशित मेरे विचार।
"फरमानी नाज़ पर फ़तवा क्यों"
संपादक मंडल का बहुत-बहुत धन्यवाद🙏
कोलकाता से प्रकाशित होने वाली दैनिक पत्रिका
"साहित्य एक नज़र" 02 अगस्त 2022 को प्रकाशित मेरे विचार।
"फरमानी को फ़तवा क्यों"
रौशन कुमार झा जी का बहुत शुक्रिया। 🙏
शेख रहमत अली "बस्तवी"
बस्ती उ, प्र, (भारत)
7317035246
*फरमानी नाज़ पर फ़तवा क्यों*
संसार में सभी अमीर ही हों,ये असंभव है। ऐसे में जब कोई ग़रीब, आर्थिक रुप से कमजोर व्यक्ति, अपने घर परिवार को चलाने के लिए अगर कोई काम करता है, तो फिर इसमें क्या गलत है? जब गरीब चारों तरफ तकलीफों से घिरा होता है, या रहा है, तब तो किसी ने उसके हाल तक न पूछे? उसके बच्चे का इलाज़ कैसे होगा, किसी ने नहीं सोचा? जब फ़रमानी को उसके शौहर ने बिना तलाक़ के घर से बेदखल कर दिया, तब फ़तवा की बात किसी ने नहीं की?
मेरी समझ में नहीं आता, इसलिए मेरा उन सब से यह सवाल है, कि आखिर अपना खाना-खर्चा चलाने के लिए फरमानी को क्या करना चाहिए था? दो दशक पहले एक फिल्म आया था "तकदीरवाला"। जिसमें कादिरखान ने यमराज का रोल प्ले किया था। तो क्या? वो किसी धर्म का प्रचार-प्रसार कर रहे थे, अगर हां तो फिर उन पर फतवा क्यों नहीं? दुनियाँ के मशहूर गायक मोहम्मद रफ़ी साहब, जिनका मैं ही बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ, उन्होंने बहुत से भक्ति गीतों को अपना आवाज दिया है, तो क्या उन पर भी फतवा होना चाहिए?
जहाँ तक मेरा मानना है कि कोई भी कलाकार, सिंगर, या फिर लेखक हो उसे जाति-धर्म से परे होकर अपना अभिनय करना होता है, और वही फरमानी नाज़ ने भी किया। जिस किसी को भी मेरी बातें गलत लगी हों,उसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ। मगर मुझे भी संतुष्ट करना भी आप सभी का धर्म है।इसी समाज का हिस्सा हूँ। सही ग़लत की कुछ तो समझ मुझमें भी है। इसलिए मैं सही को सही और गलत को गलत कहने में जरा सा भी संकोच करने या झिझक से बचने और अव्यवहारिक बातों का विरोध करने का इरादा दृढ़ता से रखने को संकल्पित हूँ।
शेख रहमत अली बस्तवी
बस्ती (उ, प्र,)
7317035246
पूरा आषाढ़ बीत जाने के बाद भी कहीं-कहीं अभी तक बारिश की एक फ़ुहार तक नहीं पड़ी है, और कहीं-कहीं तो बाढ़ के माहौल से जनमानस के जीवन अस्त व्यस्त हैं।
और इस माहौल में खेती किसानी करना कितना कठिन है कहीं हल्की सी फुहार पड़ जाये तो किसान का मन प्रफुल्लित हो उठता है।
इसी विषय पर स्वाभिमान ई मासिक पत्रिका के
जुलाई अंक में प्रकाशित मेरी रचना🙏🤗
"ख़ुशी के बादल"
✍
शेख रहमत अली "बस्तवी"
बस्ती उ, प्र, (भारत)
7317035246
आज 31/07/022 को "दि ग्राम टूडे" ई मासिक पत्रिका के अगस्त अंक में मेरी रचना "बचपन के दिन याद हैं"
संपादक मंडल का बहुत-बहुत धन्यवाद🙏
"इंसान आदमख़ोर होते जा रहे"
आजकल के रिश्ते क्यों?
कमजोर होते जा रहे।
इंसान बेहया क्यों?
आदमखोर होते जा रहे।
बाप का बेटा न सुनता,
न ही मां से प्यार है।
बात-बात पर चिढ़ रहा,
हर काम से इनकार है।
मां से करती तू, तू, मैं, मैं,
बेटी बड़ी मनचली है।
शर्म हया खूंटी पे टांगे,
घूमती हर गली है।
पर्दा करना छोड़ कर,
बहुयें निकलती सैर पर।
हैं बड़ी नादान बहुयें,
खुदा इन पर खैर कर।
हसद करने में हैं अव्वल,
चाहे जितनी हो दुस्वारियाँ।
क्यों पड़ोसी के जुबां से,
निकलती चिंगारियाँ।
दोस्त भी अब दुस्मनी में,
चूर होते जा रहे।
अपने थे क्यों जिंदगी से,
दूर होते जा रहे।
गाँव से बदतर हुए क्यों?
शहर के हालात हैं।
रौशनी में दिन कहाँ है,
दिन में ही अब रात हैं।
बदल सकते हो तो बदलो,
आजकल के रीत को।
भूल सकते हो भी कैसे,
तुम पुराने मीत को।
~शेख रहमत अली "बस्तवी"
बस्ती (उ, प्र,)
7317035246
मौलिक स्वरचित
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