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खुशी मन की एक अवस्था है और इसका भौतिक संपत्ति से कोई लेना-देना नहीं है।
हम बहु-करोड़पतियों को वॉल स्ट्रीट प्लेइंग स्टॉक्स पर एक बंडल खो देने के बाद से चिल्लाते और दुखी महसूस करते हुए देखते हैं; लेकिन बहुत सच। साथ ही हम एक ऐसे आदमी को भी देखेंगे जो खुद को एक लीक झोपड़ी में रहकर आनंदित कर रहा है, यह भी पता नहीं है कि उसे अपना अगला भोजन कहाँ से मिलेगा !!!!! विरोधाभासी लगता है!
सच में, इस दुनिया में कुछ भी हमें खुश नहीं कर सकता, जब तक कि हम भीतर से खुश न हों। भगवान कृष्ण ने अपने सबसे अच्छे दोस्त अर्जुन से यहां तक कहा:-
"अर्जुन, जीवन में सब कुछ आता है और चला जाता है। सुख और दुख अस्थायी अनुभव हैं जो इंद्रिय बोध से उठते हैं। गर्मी और ठंड, खुशी और दर्द आएंगे और जाएंगे। वे हमेशा के लिए नहीं रहते। इसलिए उनसे आसक्त न हों।"
(भगवद गीता अध्याय 2:14)
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समय भूमि गोपाल की ...
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Happy Bhaidooj
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नवरात्रि का नवमा दिन - मां सिद्धिदात्री
नवरात्रि के नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा का विधान है। मां के नाम का अर्थ है सभी प्रकार की सिद्धि और मोक्ष देने वाली मां। मान्यता के अनुसार जो भी व्यक्ति विधि विधान से मां सिद्धिदात्री की पूजा करता है उसके सभी दुखों का नाश हो जाता है। मां सिद्धिदात्री की कृपा से ही महादेव का आधा शरीर देवी का हो गया था और जिससे शिव अर्धनारीश्वर कहलाए। मां दुर्गा के इस स्वरूप की अराधना करने से व्यक्ति की समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है। पढ़िए मां सिद्धिदात्री की पावन कथा।
एक पौराणिक कथा के अनुसार जब पूरे ब्रह्मांड में अंधकार छा गया था तब उस अंधकार में ऊर्जा की एक छोटी किरण प्रकट हुई। जैसे-जैसे समय बीत रहा था वैसे-वैसे ये किरण बड़ी होती गई और इसने एक पवित्र दिव्य नारी का रूप धारण कर लिया। ऐसा माना जाता है कि यही देवी भगवती का नौवां स्वरूप माँ सिद्धिदात्री के रूप में जाना गया।
मान्यताओं अनुसार माँ सिद्धिदात्री ने प्रकट होकर त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु, और महेश को जन्म दिया था। साथ ही ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान शिव शंकर को जो आठ सिद्धियां प्राप्त थीं वो भी माँ सिद्धिदात्री की ही कृपा से प्राप्त हुई थी। इनकी ही कृपा से शिवजी का आधा शरीर देवी का हुआ जिससे महादेव अर्धनारेश्वर कहलाए।
इसके अलावा ऐसा भी कहा जाता है कि जब सभी देवी देवता राक्षस महिषासुर के अत्याचार से परेशान हो गए थे तब तीनों देवों ने अपने तेज से माँ सिद्धिदात्री को जन्म दिया। जिन्होंने कई वर्षों तक महिषासुर के साथ युद्ध किया और अंत में महिषासुर का वध करके तीनों लोकों को उसके अत्याचार से मुक्ति दिलाई।
#नवरात्रि
नवरात्रि का आठवां दिन- देवी महागौरी
माता महागौरी की कथा
नवरात्रि के आठवें दिन देवी महागौरी के रूप का पूजन किया जाता है। पौराणिक शिव पुराण की कथा के अनुसार, महागौरी जब मात्र आठ वर्ष की थी तभी से उन्हें अपने पूर्व जन्म की घटनाओं का स्पष्ट स्मरण होने लगा था। उसी समय से उन्होंने भगवान भोलेनाथ को अपने पति के रूप में मान लिया और शिवजी को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या करनी भी आरंभ कर दी जिसके चलते देवी ने वर्षों तक घोर तपस्या की। वर्षों तक निराहार तथा निर्जला तपस्या करने के कारण इनका शरीर काला पड़ गया। इनकी तपस्या को देखकर भगवान शिव प्रसन्न हो गए व उन्होंने इन्हें गंगा जी के पवित्र जल से पवित्र किया जिसके पश्चात् माता महागौरी विद्युत के समान चमक तथा कांति से उज्ज्वल हो गई। इसके साथ ही वह महागौरी के नाम से विख्यात हुई।
देवी महागौरी अत्यंत सरल, मोहक और शीतल रूप की हैं। इनका वाहन वृषभ है। मां महागौरी की उपासना करने वाले भक्तों की मनोकामना पूर्ति का दायित्व देवी अपने ऊपर लेती हैं। देवी महागौरी चतुर्भुजी देवी हैं। इनके दाहिनी ओर के ऊपर वाले हाथ में अभय मुद्रा तथा नीचे वाले हाथ में त्रिशूल उपस्थित है। माता महागौरी ने बाहिनी ओर के ऊपर वाले हाथ में डमरू एवं नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा धारण कर रखी है।
नवरात्रि का सातवां दिन - मां कालरात्रि
रात के अंधकार की तरह काला है मां का स्वरूप
कालरात्रि देवी का शरीर रात के अंधकार की तरह काला है। गले में विद्युत की माला और बाल बिखरे हुए हैं। मां के चार हाथ हैं, जिनमें से एक हाथ में गंडासा और एक हाथ में वज्र है। इसके अलावा, मां के दो हाथ क्रमश: वरमुद्रा और अभय मुद्रा में हैं। इनका वाहन गर्दभ (गधा) है।
दैत्य रक्तबीज का किया वध -
आचार्य मिश्र बताते हैं, ‘जब दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था, तब इससे चिंतित होकर सभी देवता शिवजी के पास गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना करने लगे। भगवान शिव ने माता पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा। शिवजी की बात मानकर माता पार्वती ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया। जब मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज को मौत के घाट उतारा, तो उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज दैत्य उत्पन्न हो गए। इसे देख दुर्गा ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके बाद जब मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज का वध किया और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को मां कालरात्रि ने जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लिया। इस तरह मां दुर्गा ने सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया।
‘मां कालरात्रि का मंत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
नवरात्रि का छठा दिन - मां कात्यायनी
पौराणिक कथा के अनुसार महार्षि कात्यायन ने मां आदिशक्ति की घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मां ने उन्हें उनके यहां पुत्री रूप में जन्म लेने का वरदान दिया था। मां का जन्म महार्षि कात्यान के आश्राम में ही हुआ था। मां का लालन पोषण कात्यायन ऋषि ने ही किया था। पुराणों के अनुसार जिस समय महिषासुर नाम के राक्षस का अत्याचार बहुत अधिक बढ़ गया था। उस समय त्रिदेवों के तेज से मां की उत्पत्ति हुई थी। मां ने ऋषि कात्यायन के यहां अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन जन्म लिया था। इसके बाद ऋषि कात्यायन ने उनका तीन दिनों तक पूजन किया था।
मां ने दशमी तिथि के दिन महिषासुर का अंत किया था इसके बाद शुम्भ और निशुम्भ ने भी स्वर्गलोक पर आक्रमण करके इंद्र का सिंहासन छिन लिया था और नवग्रहों को बंधक बना लिया था। अग्नि और वायु का बल पूरी तरह उन्होंने छीन लिया था। उन दोनों ने देवताओं का अपमान करके उन्हें स्वर्ग से निकल दिया था। इसके बाद सभी देवताओं ने मां की स्तुति की इसके बाद मां ने शुंभ और निशुंभ का भी वध करके देवताओं को इस संकट से मुक्ति दिलाई थी। क्योंकि मां ने देवताओं को वरदान दिया था कि वह संकट के समय में उनकी रक्षा अवश्य करेंगी।
नवरात्रि का पांचवा दिन - मां स्कंदमाता
स्कंदमाता की कथा-
एक पौराणिक कथा के अनुसार, कहते हैं कि एक तारकासुर नामक राक्षस था। जिसका अंत केवल शिव पुत्र के हाथों की संभव था। तब मां पार्वती ने अपने पुत्र स्कंद (कार्तिकेय) को युद्ध के लिए प्रशिक्षित करने के लिए स्कंद माता का रूप लिया था। स्कंदमाता से युद्ध प्रशिक्षण लेने के बाद भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर का अंत किया था।
स्कंदमाता को इन नामों से भी जाना जाता है-
स्कंदमाता, हिमालय की पुत्री पार्वती हैं। इन्हें माहेश्वरी और गौरी के नाम से भी जाना जाता है। पर्वत राज हिमालय की पुत्री होने के कारण पार्वती कही जाती हैं। इसके अलावा महादेव की पत्नी होने के कारण इन्हें माहेश्वरी नाम दिया गया और अपने गौर वर्ण के कारण गौरी कही जाती हैं। माता को अपने पुत्र से अति प्रेम है। यही कारण है कि मां को अपने पुत्र के नाम से पुकारा जाना उत्तम लगता है। मान्यता है कि स्कंदमाता की कथा पढ़ने या सुनने वाले भक्तों को मां संतान सुख और सुख-संपत्ति प्राप्त होने का वरदान देती हैं।
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नवरात्रि का चौथा दिन - मां कुष्मांडा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, दैत्यों के संहार के लिए मां कुष्मांडा का अवतरण हुआ था । हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार, कुष्मांडा का मतलब कुम्हड़ा है। कुम्हड़े को कुष्मांडा के नाम से भी जाना जाता है इसीलिए मां जगदंबे के चौथे स्वरूप का नाम कुष्मांडा पड़ा। मां कुष्मांडा का वाहन सिंह बताया गया है। जो भक्त आदि स्वरूपा की सच्चे मन से पूजा करता है उसे स्वास्थ्य, बल, आयु, यश आदि का वरदान मिलता है। मां कुष्मांडा लगाए गए भोग को स्वीकार करती हैं और बेहद प्रसन्न होती हैं । वैसे मां कुष्मांडा को मालपुए का भोग लगाना चाहिए।
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