Satyam yog & health care
Nearby health & beauty businesses
360001
360002
Drive Rajendra Prasad Road
360001
360001
360001
360001
Rajkot
Kopper Arcade
360001
360001
360001
360001
360005
360001
Contact information, map and directions, contact form, opening hours, services, ratings, photos, videos and announcements from Satyam yog & health care, Medical and health, Rajkot.
रोज लो मौज लो
ना मिले तो खोज लो
अष्टांग योग सिद्ध योग गुरूजी डॉ श्री अमितजी
Sanatan dharam sabha Sangosthi
@ Rajkot Ashtang yog guruji shri amitji with Jagatguru sankrachaeryjj Rameshbhai oza morariBapu & muktanandbapu,
રાજકોટ ના આંગણે અષ્ટાંગ યોગ સિદ્ધા યોગ ગુરુજી શ્રી અમિતજી ના સાનિધ્ય માં ધ્યાન યોગ શિબિર માં જોડાવા નો સુવર્ણ અવસર રોગ, તનાવ, શારીરિક માનસિક તકલીફ મુક્ત જીવન માટે આ શિબિર માં જોડાવા આપેલ નંબર પર નામ રજીસ્ટર કરાવું ફરજીયાત છે.
નામ રજીસ્ટર કરાવા માટે 8530343215 પર સંપર્ક કરો.
योगा नही योग की अनुभीति प्राप्त करने के किये जॉइन कीजिये ध्यान योग शिबिर राजकोट के आँगन मे सुवर्ण अवशर रजिस्ट्रेशन के के लिए 085303 43215
શું તમે દવા લય ને થાકી ગયા છો તો એક વાર મુલાકાત લો સમાધાન મેળવો જુના શારીરિક માનસિક રોગ માટે કુદરતી આયુર્વેદિક તેમજ યોગ ઉપચાર.
એપોઇન્ટમેન્ટ માટે 8530343215 સંપર્ક કરો
See less
योग धीरे-धीरे विलुप्त हो रहा है, और इसके कई कारणों में से एक प्रमुख कारण हैं इसे वैज्ञानिक प्रमाणित करने का प्रयास। पिछली सदी से योग का जो स्वरूप परिवर्तित हुआ है, "विकास" हुआ है, वह इसे वैज्ञानिक बनाने के प्रयास का परिणમ હે
विज्ञान प्रमाण, स्पष्टीकरण और मापनीय परिणामों की मांग करता है। इससे योग शिक्षक योग के उन महत्वपूर्ण अंगों को चतुराई से छोड़ देते हैं जिन्हें वैज्ञानिक रूप से नहीं समझाया जा सकता, जैसे: प्राण, प्राणशक्ति, मनशक्ति, कुंडलिनी, चक्र, नाड़ी, मुद्रा, क्रिया, बंध, समाधि, इच्छापूर्ति, संकल्प शक्ति, सिद्धि इत्यादि।
योग अत्यंत विशाल है; हजारों जन्म भी इसके एक प्रतिशत को सीखने के लिए पर्याप्त नहीं होंगे। चूंकि इसका अधिकांश भाग वैज्ञानिक रूप से नहीं समझाया जा सकता, इसलिए योग शिक्षक केवल वही सिखा पाएंगे जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझाया जा सकता है। इस प्रकार, अनदेखा किया जानेवाला ज्ञान धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगा, और जो बचेगा वह किसी सर्कस के करतब से अधिक मूल्यवान नहीं होगा।
शिव ने कहा है "होश को दोनों भौहों के मध्य में लाओ और मन को विचार के समक्ष आने दो। देह को पैर से सिर तक प्राण तत्व से भर जाने दो, ओर वहां वह प्रकाश की भांति बरस जाए।"
यह विधि बहुत गहन पद्धतियों में से है। इसे समझने का प्रयास करो: ‘’होश को दोनों भौहों के मध्य में लाओ।‘’
आधुनिक मनोविज्ञान और वैज्ञानिक शोध कहता है कि दोनों भौंहों के मध्य में एक ग्रंथि है जो शरीर का सबसे रहस्यमय अंग है। यह ग्रंथि, जिसे पाइनियल ग्रंथि कहते है। यही तिब्बतियों का तृतीय नेत्र है—शिवनेत्र : शिव का, तंत्र का नेत्र। दोनों आंखों के बीच एक तीसरी आँख का अस्तित्व है, लेकिन साधारणत: वह निष्कृय रहती है। उसे खोलने के लिए तुम्हें कुछ करना पड़ता है। वह आँख अंधी नहीं है। वह बस बंद है। यह विधि तीसरी आँख को खोलने के लिए ही है।
‘’होश को दोनों भौंहों के मध्य में लाओ ।‘’......अपनी आंखें बंद कर लो, और अपनी आंखों को दोनों भौंहों के ठीक बीच में केंद्रित करो। आंखे बंद करके ठीक मध्य में होश को केंद्रित करो, जैसे कि तुम अपनी दोनों आँखो से देख रहे हो। उस पर पूरा ध्यान दो।
तंत्र के प्राचीन ग्रंथों में कहा गया है कि होश तीसरी आँख का भोजन है। वह आँख भूखी है; जन्मों-जन्मों से भूखी है। यदि तुम उस पर होश को लाओगे तो वह जीवंत हो जाती है। उसे भोजन मिल जाता है। एक बार बस तुम इस कला को जान जाओं। तुम्हारा होश स्वयं ग्रंथि द्वारा ही चुम्बकीय ढंग से खिंचता है। आकर्षित होता है। तो फिर होश को साधना कोई कठिन बात नहीं है। व्यक्ति को बस ठीक बिंदु जान लेना होता है। तो बस अपनी आंखें बंद करों, दोनों आँखो को भ्रूमध्य की और चले जाने दो, और उस बिंदु को अनुभव करो। जब तुम उस बिंदु के समीप आओगे तो अचानक तुम्हारी आँख जड़ हो जाएंगी। जब उन्हें हिलाना कठिन हो जाए तो जानना कि तुमने ठीक बिंदु को पकड़ लिया है।
‘’होश को दोनों भौंहों के मध्य में लाओ और मन को विचार के समक्ष आने दो।‘’......यदि यह होश लग जाए तो पहली बार तुम्हें एक अद्भुत अनुभव होगा। पहली बार तुम विचारों को अपने सामने दौड़ता हुआ अनुभव करोगे। तुम साक्षी हो जाओगे। यह बिलकुल फिल्म के परदे जैसा होता है। विचार दौड़ रहे है और तुम एक साक्षी हो।
दूसरा, इससे उल्टा भी हो सकता है। यदि तुम तृतीय नेत्र में केंद्रित हो तो तुम साक्षी बन जाओगे। ये दोनों चीजें एक ही प्रक्रिया के हिस्से हैं । तो पहली बात: तृतीय नेत्र में केंद्रित होने से साक्षी का प्रादुर्भाव होगा। अब तुम अपने विचारों से साक्षात्कार कर सकते हो। यह पहली बात होगी। और दूसरी बात यह होगी कि अब तुम श्वास के सूक्ष्म और कोमल स्पंदन को अनुभव कर सकोगे। अब तुम श्वास के प्रारूप को श्वास के सार तत्व को अनुभव कर सकेत हो।
पहले यह समझने का प्रयास करो कि ‘’प्रारूप’’ का, श्वास के सार तत्व का क्या अर्थ है। श्वास लेते समय तुम केवल हवा मात्र भीतर नहीं ले रहे हो। विज्ञान कहता है कि तुम केवल वायु भीतर लेते हो—बस ऑक्सीजन, हाइड्रोजन व अन्या गैसों का मिश्रण। वे कहते है कि तुम ‘’वायु’’ भीतर ले रहे हो। लेकिन तंत्र कहता है कि वायु बस एक वाहन है, वास्तविक चीज नहीं है। तुम प्राण को, जीवन शक्ति को भीतर ले रहे हो। वायु केवल माध्यम है; प्राण उसकी अंतर्वस्तु है। तुम केवल वायु नहीं, प्राण भीतर ले रहे हो।
तृतीय नेत्र में केंद्रित होने से अचानक तुम श्वास के सार तत्व को देख सकते हो—श्वास को नहीं बल्कि श्वास के सार तत्व को, प्राण को। और यदि तुम श्वास के सार तत्व को, प्राण को देख सको तो तुम उस बिंदु पर पहुंच गए जहां से छलांग लगती है, अंतस क्रांति घटित होती
अष्टांग योग सीध्धगूरूजीडो श्रीअमितजी
सोऽहं-साधना।
‘सोऽहं’ का अर्थ है- ‘मैं वह हूँ’ ‘ॐ’ अर्थात् ‘आत्मा’। ‘वह’ अर्थात् ‘परमात्मा’। ‘सोऽहम्’ शब्द में आत्मा और परमात्मा का समन्वय है, साथ ही शरीर और प्राण का भी। ‘सोऽहम्-साधना’ जितनी सरल है, बन्धन रहित है, उतनी ही महत्वपूर्ण भी है। उच्चस्तरीय साधनाओं में ‘सोऽहम्-साधना’ को सर्वोपरि माना गया है, क्योंकि उसके साथ जो संकल्प जुड़ा हुआ है, वह चेतना को उच्चतम स्तर तक जाग्रत कर देने में, जीव और ब्रह्म को एकाकार कर देने में विशेष रुप से समर्थ है। इतनी इस स्तर की भाव संवेदना और किसी साधना में नहीं है। अस्तु, इसे सामान्य साधनाओं की पंक्ति में न रखकर स्वतंत्र नाम दिया गया है। इसे ‘हंसयोग’ भी कहा गया है। जीवात्मा सहज स्वभाव में सोऽहम् का जाप श्वाँस-प्रश्वाँस किया के साथ-साथ अनायास ही करता रहता है, यह संख्या चौबीस घण्टे में 21600 के लगभग हो जाती है। गोरक्ष-संहिता के अनुसार यह जीव ‘हकार’ की ध्वनि से बाहर आता है, और ‘सकार’ की ध्वनि से भीतर जाता है। इस प्रकार वह सदा हंस-हंस जाप करता रहता है। इस तरह एक दिन-रात में जीव इक्कीस हजार छः सौ मन्त्र का जाप करता रहता है। संस्कृत व्याकरण के आधार पर ‘सोऽहम्’ का संक्षिप्त रुप ‘ओऽम्’ हो जाता है। सोऽहम् पद में से सकार और हकार का लोप करके शेष का सन्धि योजन करने से वह प्रणव (ॐकार) रूप हो जाता है।
‘सोऽहम्’ साधना गायत्री की योग-साधना है। यह साधना व्यक्ति के श्वास लेते-निकालते समय स्वतः होती रहती है। श्वास बाहर निकालते समय ‘हकार’ की ध्वनि और भीतर ग्रहण करते समय ‘सकार’ की ध्वनि होती है, विद्वान लोग इसी को ‘सोऽहम्’ साधना कहते है।
इस साधना की दूसरी प्रेरणा जीवात्मा और ब्रह्म कि तथा आत्मा और परमात्मा की तात्त्विक एकता का भी प्रतिपादन करती है। ‘सो’ अर्थात् ‘वह’। kiran'sअहम् अर्थात् मैं। इन दोनों का मिला-जुला निष्कर्ष निकला- वह मैं हूँ। वह अर्थात् परमात्मा, मैं अर्थात् ‘जीवात्मा’ दोनो का समन्वय-एकीभाव-सोऽहम्। इससे आत्मा और परमात्मा एक है- इस अद्वैत सिद्धान्त का समर्थन होता है। ‘तत्त्वमसि’, अयमात्मा ब्रह्म, शिवोऽहम्, सच्चिदानन्दोऽहम्- जैसे वाक्यों में इसी का प्रतिपादन हैं।
‘सोऽहम् साधना’ को ‘अजपा-जप’ अथवा प्राण-गायत्री भी कहा गया है। इसको अजपा-जाप इसलिए कहा गया है, क्योंकि यह जाप अपने आप होता रहता है। इसको जपने की नहीं बल्कि सुनने की आवश्यक्ता है। साथ ही इसको प्राण-गायत्री इसलिए कहा गया है क्योंकि यह जाप प्रत्येक श्वांस के साथ स्वतः ही होता रहता है।
अजपा गायत्री योगियों को मोक्ष प्रदान करने वाली है। उसका विज्ञान जानने से मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। इसके समान और कोई विद्या नहीं है। इसके बराबर और कोई पुण्य न भूतकाल में हुआ है न भविष्य में ही होगा।
सोऽहम् को सद्ज्ञान, तत्वज्ञान, ब्रह्मज्ञान कहा गया है। इसमें आत्मा को अपनी वास्तविक स्थिति समझने, अनुभव करने का संकेत है। ‘वह परमात्मा मैं ही हूँ’, इस तत्त्वज्ञान में मायामुक्ति स्थिति की शर्त जुड़ी हुई है। नर-किट, नर-पशु और नर-पिशाच जैसी निकृष्ट परिस्थितियों में घिरी ‘अहंता’ के लिए इस पुनीत शब्द का प्रयोग नहीं हो सकता। ऐसे तो रावण, कंस, हिरण्यकश्यप जैसे अहंकारग्रस्त आतताई लोगों के मुख से अपने को ईश्वर कहलाने के लिए बाधित करते थे। अहंकार-उन्मत मनःस्थिति में वे अपने को वैसा समझते भी थे, पर इससे बना क्या? उनका अहंकार ही उन्हें ले डूबा।
‘सोऽहम्’ साधना में पंचतत्वों और तीन गुणों से बने शरीर को ईश्वर मानने के लिए नहीं कहा गया है। ऐसी मान्यता तो उल्टा अहंकार जगा देगी और उत्थान के स्थान पर पतन का नया कारण बनेगी, यह दिव्य संकेत आत्मा के शुद्ध स्वरूप का विवेचन है। वह वस्तुतः ईश्वर का अंश हैं। समुद्र और लहरों की, सूर्य और किरणों की मटाकाश और घटाकाश की, ब्रह्माण्ड और पिण्ड की, आग-चिंगारी की उपमा देकर परमात्मा और आत्मा की एकता का प्रतिपादन करते हुए मनीषियों ने यही कहा है कि मल-आवरण विक्षेपों से, कषाय-कल्मषों से मुक्त हुआ जीव वस्तुतः ब्रह्म ही है।kiran's दोनों की एकता में व्यवधान मात्र अज्ञान का है, यह अज्ञान ही अहंता के रूप में विकसित होता है और संकीर्ण स्वार्थपरता में निमग्न होकर व्यर्थ चिन्तन तथा अनर्थ कार्य में निरत रहकर अपनी दुर्गति अपने आप बनाता है।
तत्त्वमसि, अयमात्मा ब्रह्म, शिवोहम् सच्चिदानन्दोहम्, शुद्धोसि, बुद्धोसि, निरंजनोसि
जैसे वाक्यों में इसी दर्शन का प्रतिपादन है, उनमें जीव और ब्रह्म की तात्विक एकता का प्रतिपादन है।
सोऽहम् शब्द का निरन्तर जाप करने से उसका एक शब्द चक्र बन जाता है, जो उलट कर ‘हंस’ के समान प्रतिध्वनित होता है। योग-रसायन में कहा गया है, हंसो-हंसो इस पुनरावर्तित क्रम से जप करते रहने पर शीघ्र ही ‘सोहं-सोहं’ ऐसा जाप होने लगता है। अभ्यास के अनन्तर चलते, बैठते और सोते समय भी हंस-मंत्र का चिंतन परम् सिद्धिदायक है। इसे ही ‘हंस’, ‘हंसो’, ‘सोऽहम्’ मंत्र कहते है।
Kiran'sजब मन उस हंस तत्व में लीन हो जाता है, तो मन के संकल्प-विकल्प समाप्त हो जाता हैं और शक्ति रुप, ज्योती रुप, शुद्ध-बुद्ध, नित्य-निरंजन ब्रह्म का प्रकाश प्रकाशित होता है। समस्त देवताओं के बीच ‘हंस’ ही परमेश्वर है, हंस ही परम वाक्य है, हंस ही वेदों का सार है, हंस परम रुद्र है, हंस ही परात्पर ब्रह्म है।
समस्त देवों के बीच हंस अनुपम ज्योति बन कर विद्यमान है।
सदा तन्मयतापूर्वक हंस मन्त्र का जप निर्मल प्रकाश का ध्यान करते हुए करना चाहिए।
जो अमृत से अभिसिंचन करते हुए ‘हंस’ तत्त्व का जाप करता है, उसे सिद्धियों और विभूतियों की प्राप्ति होती है।
जो ‘हंस’ तत्त्व की साधना करता है, वह त्रिदेव रुप है। सर्वव्यापी भगवान को जान ही लेता है।
शिव स्वरोदय के अनुसारः- श्वाँस के निकलने में ‘हकार’ और प्रविष्ट होने में ‘सकार’ जैसी ध्वनी होती है। ‘हकार’ शिवरुप और ‘सकार’ शक्ति रुप कहलाता है।
प्रसंग आता है कि एक बार पार्वती जी ने भगवान् शंकर से सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाले योग के विषय में पूछा, तो भगवान् शंकर ने इसका उत्तर देते हुए पार्वती जी से कहा- अजपा नाम की गायत्री योगियों को मोक्ष प्रदान करने वाली है। इसके संकल्प मात्र से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। यह सुनकर पार्वती जी को इस विषय में और अधिक जानने की इच्छा हुई। इसके सम्पूर्ण विधि-विधान को जानना चाहा। तब भगवान शंकर ने पुनः कहा-हे देवी, यह देह (शरीर) ही देवालय है। जिसमें देव प्रतिमा स्वरुप जीव विद्यमान है। kiran'sइसलिए अज्ञान रुपी निर्माल्य (पुराने फ़ूल-मालाओं) को त्याग कर ‘सोऽहम्’ भाव से उस (देव) की आराधना करनी चाहिए।
देवी भागवत के अनुसार- हंसयोग में सभी देवताओं का समावेश है, अर्थात् ब्रह्य, विष्णु, महेश, गणेशमय हंसयोग है। हंस ही गुरु है, हंस ही जीव-ब्रह्म अर्थात् आत्मा-परमात्मा है।
सोऽहम् साधना में आत्मबोध, तत्त्वबोध का मिश्रित समावेश है। मैं कौन हूँ? उत्तर- ‘परमात्मा’। इसे जीव और ईश्वर का मिलना, आत्म-दर्शन, ब्रह्म-दर्शन भी कह सकते है और आत्मा परमात्मा की एकता भी। यही ब्रह्म-ज्ञान है। ब्रह्म-ज्ञान के उदय होने पर ही आत्म-ज्ञान, सद्ज्ञान, तत्त्व-ज्ञान, व्यवहार-ज्ञान आदि सभी की शाखाएँ-प्रशाखाएँ फ़ूटने लगती है।
साँस खींचते समय ‘सो’ की, रोकते समय ‘अ’ की और निकालते समय ‘हम्’ की सूक्ष्म ध्वनि को सुनने का प्रयास करना ही ‘सोऽहम्’ साधना है। इसे किसी भी स्थिति में, किसी भी समय किया जा सकता है। जब भी अवकाश हो, उतनी ही देर इस अभ्यास क्रम को चलाया जा सकता है। यों शुद्ध शरीर, शान्त मन और एकान्त स्थान और कोलाहल रहित वातावरण में कोई भी साधना करने पर उसका प्रतिफ़ल अधिक श्रेयस्कर होता है, अधिक सफ़ल रहता है।
‘सोऽहम्’ साधना का चमत्कारी परिणाम भी अतुल है। यह प्राण-योग ‘सोऽहम्’ साधना का चमत्कारी परिणाम भी अतुल है। यह प्राण-योग की विशिष्ट साधना है।
Kiran'sदस प्रधान और चौवन(54) गौण, कुल चौंसठ(64) प्राणायामों का विधि-विधान साधना-विज्ञान के अन्तर्गत आता है। इनकें विविध लाभ हैं। इन सभी प्राणायामों में ‘सोऽहम्’ साधना रुपी प्राण-योग सर्वोपरि है। यह अजपा-गायत्री जप, प्राण-योग के अनेक साधना-विधानों में सर्वोच्च है। इस एक के ही द्वारा सभी प्रणायामों का लाभ प्राप्त हो सकता है।
सोऽहम् और कुण्डलिनी शक्ति
षटचक्र भेदन में प्राण्तत्त्व का ही उपयोग होता है। नासिका द्वारा प्राण तत्त्व में जाने पर आज्ञाचक्र तक तो एक ही ढंग से कार्य चलता है, पर पीछे उसके भावपरक तथा शक्तिपरक ये दो भाग हो जाते हैं। भावपरक हिस्से में फ़ेंफ़ड़े में पहुँचा हुआ प्राण शरीर के समस्त अंग-प्रत्यगों में समाविष्ट होकर सत् का संस्थापन और असत् का विस्थापन करता है। शक्तिपरक प्राणधारा आज्ञाचक्र से मस्तिष्क के पिछले हिस्से को स्पर्श करती हुई मेरूदण्ड में निकल जाती है, जहाँ ब्रह्मनाड़ी का महानाद है। इसी ब्रह्म-नाद में इड़ा-पिंगला दो विधुत धाराएँ प्रभावित हैं, जो मूलाधार चक्र तक जाकर सुषुम्ना-सम्मिलन के बाद लौट आती है। मेरूदण्ड स्थित ब्रह्मनाड़ी के इस महानाद में ही षटचक्र भँवर की तरह स्थित है। इन्हीं षटचक्रों में लोक-लोकान्तरों से सम्बन्ध जोड़ने वाली रहस्यमय कुन्जियाँ सुरक्षित रखी हुई हैं। जो जितने रत्न-भण्डारों से सम्बन्ध स्थापित कर ले, वह उतना ही महान।
कुण्डलिनी शक्ति भौतिक एवं आत्मिक शक्तियों की आधारपीठ है। उसका जागरण षटचक्र भेदन द्वारा ही सम्भव है।kiran's चक्र-भेदन प्राणतत्त्व पर आधिपत्य के बिना सम्भव नहीं है। प्राणतत्त्व के नियन्त्रण में सहायक प्राणायामों में सोऽहम् का प्राणयोग सर्वश्रेष्ठ व सहज है।
सोऽहम् साधना द्वारा एक अन्य लाभ है- दिव्य गन्धों की अनुभूति। गन्ध वायु तत्त्व की तन्मात्रा है। इन तन्मात्रा द्वारा देवतत्त्वों की अनुभूति होती है। नासिका सोऽहम् साधना के समय गन्ध तन्मात्रा को विकसित करती है, परिणामस्वरूप दिक्गन्धों की अनायास अनुभूति समय-समय पर होती रहती है। इन गन्धों को कुतूहल या मनोविनोद की दृष्टि से नहीं लेना चाहिए। अपितु इनमें सन्निहित विभूतियों का उपयोग कर दिव्य शक्तियों की प्राप्ति का प्रयास किया जाना चाहिए। उपासना स्थल में धूपबती जलाकर, गुलदस्ता सजाकर, चन्दन, कपूर आदि के लेपन या इत्र-गुलाब जल के छिड़काव द्वारा सुगन्ध पैदा की जाती है और उपासना अवधि में उसी की अनुभूति गहरी होती चले तो साधना-स्थल से बाहर निकलने पर, बिना किसी गन्ध-उपकरण के भी दिक्गन्ध आती रहेगी। ऐसी दिक्गन्ध एकाग्रता की अभिरूचि का चिन्ह है। विभिन्न पशु-पक्षियों, कीड़े-मकोड़ों में घ्राण-शक्ति का महत्व सर्वविदित है। उसी के सहारे वे रास्ता ढूँढ़ते है, शत्रु को भाँपते और सुरक्षा का प्रबन्ध करते, प्रणय-सहचर को आमंत्रित करते, भोजन की खोज करते तथा मौसम की जानकारी प्राप्त करते है। इसी घ्राण-शक्ति के आधार पर प्रशिक्षित कुत्ते अपराधियों को ढूँढ़ निकालते हैं। मनुष्य अपनी घ्राण-शक्ति को विकसित कर अतीन्द्रिय संकेतों तथा अविज्ञात गतिविधियों को समझ सकते हैं। दिव्य-शक्तियों से सम्बन्ध का भी गन्धानुभूति एक महत्वपूर्ण माध्यम है। सोऽहम् साधना इसी शक्ति को विकसित करती है।
सोऽहम् साधना विधान
Kiran'sसाधना करते समय जब साँस भीतर जा रही हो तब ‘सो’ की भावना, भीतर रूक रही हो तब ‘अ’ का और जब उसे बाहर निकाला जा रहा हो तब ‘हम्’ ध्वनि का ध्यान करना चाहिए। इन शब्दों को मुख से बोलने की आवश्यकता नहीं है। मात्र श्वांस के आवागमन पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है और साथ ही यह भावना की जाती है कि आवागमन के साथ दोनों शब्दों की ध्वनि हो रही है।
आरम्भ में कुछ समय यह अनुभूति उतनी स्पष्ट नहीं होती, किन्तु प्रयास जारी रखने पर कुछ ही समय उपरान्त इस प्रकार का ध्वनि प्रवाह अनुभव में आने लगता है और उसे सुनने में न केवल चित्त ही एकाग्र होता है, वरन् आनन्द का अनुभव होता है।
ध्यान से मन का बिखराव दूर होता है और प्रकृति को एक केन्द्र पर केन्द्रित करने से उससे एक विशेष मानसिक शक्ति उत्पन्न होती है। उससे जिस भी प्रयोजन के लिए- जिस भी केन्द्र पर केन्द्रित किया जाये, उसमें जाग्रति- स्फुरणा उत्पन्न होती है। मस्तिष्कीय प्रसुप्त क्षमताओं को, षट्चक्रों को, तीन ग्रन्थियों को, जिस भी केंद्र पर केन्द्रित किया जाय वहीं सजग हो उठता है और उसके अन्तर्गत जिन सिद्धियों का समावेश है, उसमें तेजस्विता आती है।
सोऽहम् साधना के लिए किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं है। न समय का, न स्थान का। स्नान जैसा भी कोई प्रतिबन्ध नहीं है। जब भी अवकाश हो, सुविधा हो, भाग-दौड़ का काम न हो, मस्तिष्क चिन्ताओं से खाली हो। तभी इसे आरम्भ कर सकते है। यों हर उपासना के लिए स्वच्छता, नियत समय, स्थिर मन के नियम हैं। धूप-दीप से वातावरण को प्रसन्नतादायक बनाने की विधि है। वे अगर सुविधापूर्वक बन सकें तो श्रेष्ठ अन्यथा रात्रि को आँख खुलने पर बिस्तर पर लेटे-लेटे भी इसे किया जा सकता है। यों मेरूदण्ड को सीधा रखकर पद्मासन से बैठना हर साधना में उपयुक्त माना जाता है, पर इस साधना में उन सबका अनिवार्य प्रतिबन्ध नहीं है।
एकाग्रता के लिए हर साँस पर ध्यान और उससे भी गहराई में उतरकर सूक्ष्म ध्वनि का श्रवण इन दो प्रयोजनों के अतिरिक्त तीसरा भाव पक्ष है, जिसमें यह अनुभूति जुड़ी हुई है कि ‘मैं वह हूँ’ अर्थात् आत्मा, परमात्मा के साथ एकीभूत हो रही है। इसके निमित्त वह सच्चे मन से आत्म-समर्पण कर रही है। यह समर्पण इतना गहरा है कि, दोनों के मिलने से एक की सत्ता मिट जाती है और दूसरे की रह जाती है। दीपक जलता है तो लौ ही दृष्टिगोचर होती है। तेल तो नीचे पेंदे में पड़ा अपनी सत्ता बत्ती के माध्यम से प्रकाश रूप में ही समाप्त करता चला जाता है।
Kundalini shakti
શું તમે દવા ઓ લય ને થાકી ગયા છો
તો એક વાર અચૂક મુલાકાત લો
શુ તમને આમાંથી કોઈ તકલીફ છે જેમકે એસીડીટી ,કબજિયત, માઇગ્રેન, અલ્સર ,પેપ્ટીક અલ્સર skin problm, વાળ ખરવા, ઉદરી, અપચો, ભૂખ ના લાગવી, ગેસ, ઓડકાર , આળશ, અનિંદ્રા, ભય,
વજન ઓછું કરવા, વજન વધારવા , દુઃખાવા જેવા જુના હઠીલા રોગ માંથી કાયમી સમાધાન મેળવો, apointment માટે આજે જ સંપર્ક કરો ૮૫૩૦૩૪૩૨૧૫, ઓનલાઇન ઓફ લાઈન માર્ગ દર્શન
શ્રી સત્યમ યોગ & હેલ્થકેરના પેઈન મેનેજમેન્ટ પ્રોગ્રામ શરીરના કોઈ પણ દુખાવા જેવા કે...
#કમરનો_દુખાવો #ખભાનો_દુખાવો #ઢીંચણનો_દુખાવો #માંસપેસીનો_દુખાવો #કરોડરજ્જુનો_દુખાવો ો_દુખાવો #વેરિકોજ_વેઇન #સાયટીકા
ઓપરેશન તેમજ આડઅસરરહીત અસરકારક સારવાર. 15 વર્ષ ના અનુભવી નિષ્ણાંત દ્વારા કુદરતી તેમજ cosmic healing દવારા acupancher therapy.
& એપોઇમેન્ટ માટે આજે જ કોલ કરો: +91 85303 43215
December 28, 2023 knee pain 100% Results more information appointment cont 8530343215
*ॐ आयुर्वेद क्या हैं? ॐ*
आयुर्वेद हमें हजारों वर्षों से स्वस्थ जीवन का मार्ग दिखा रहा है। प्राचीन भारत में आयुर्वेद को रोगों के उपचार और स्वस्थ जीवन शैली व्यतीत करने वाले सर्वोत्तम तरीकों में से एक माना जाता था।
*आयुर्वेद कैसे काम करता है - क्या है तीन दोष?*
*आयुर्वेद में त्रिदोष -*
वात-पित्त-कफ का महत्व और इनका हमारे स्वास्थ्य से संबंध ।
आयुर्वेद तीन मूल प्रकार के ऊर्जा या कार्यात्मक सिद्धांतों की पहचान करता है जो हर किसी इंसान और हर चीज में मौजूद हैं। इसे त्रिदोष सिद्धांत कहते है।
जब ये तीनों दोष - वात, पित्त और कफ *(Vata, pitta, kapha)* संतुलित रहते हैं तो शरीर स्वस्थ रहता है। आयुर्वेद के सिद्धांत शरीर के मूल जीव विज्ञान से संबंधित हो सकते हैं।
आयुर्वेद में, *शरीर, मन और चेतना* संतुलन बनाए रखने में एक साथ काम करते हैं। शरीर, मन और चेतना की असंतुलित अवस्था (vikruti) विकृति कहा जाता है। आयुर्वेद स्वास्थ्य लाता है और दोषों को संतुलन में रखता है।
कुल मिलाकर, इसका उद्देश्य सामान्य स्वास्थ्य को बनाए रखना और बेहतर बनाना है, चाहे आप किसी भी उम्र के हों।
आयुर्वेदिक दर्शन के अनुसार हमारा शरीर पांच तत्वों *( जल, पृथ्वी, आकाश, अग्नि और वायु )* से मिलकर बना है। *वात, पित्त और कफ* इन पांच तत्वों के संयोजन और क्रमपरिवर्तन हैं जो सभी निर्माण में मौजूद पैटर्न के रूप में प्रकट होते हैं।
भौतिक शरीर में, *वात* आंदोलन की सूक्ष्म ऊर्जा है, पाचन और चयापचय की ऊर्जा, और शरीर की संरचना बनाने वाली ऊर्जा को साफ करती है।
वात गति से जुड़ी सूक्ष्म ऊर्जा है - जो अंतरिक्ष और वायु से बनी है। यह श्वास, निमिष, मांसपेशियों और ऊतक आंदोलन, हृदय की धड़कन और साइटोप्लाज्म और कोशिका झिल्ली में सभी आंदोलनों को नियंत्रित करता है।
संतुलन में, वात रचनात्मकता और लचीलेपन को बढ़ावा देता है। संतुलन न होने से, वात भय और चिंता पैदा करता है।
*पित्त* शरीर की चयापचय प्रणाली के रूप में व्यक्त करता है - आग और पानी से बना है। यह पाचन, अवशोषण, आत्मसात, पोषण, चयापचय और शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है।
संतुलन में, पित्त समझ और बुद्धि को बढ़ावा देता है। संतुलन न होने से, पित्त क्रोध, घृणा और ईर्ष्या पैदा करता है।
*कफ* वह ऊर्जा है जो शरीर की संरचना - हड्डियों, मांसपेशियों, टेंडन - का निर्माण करती है और "गोंद" प्रदान करती है।
जो कोशिकाओं को एक साथ रखती है, जो पृथ्वी और जल से मिलकर बनती है। यह जोड़ों को चिकनाई देता है, त्वचा को मॉइस्चराइज़ करता है, और प्रतिरक्षा को बनाए रखता है।
संतुलन में, कफ को प्यार, शांति और क्षमा के रूप में व्यक्त किया जाता है। संतुलन से बाहर, यह लगाव, लालच और ईर्ष्या की ओर जाता है। आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ जीवन पाए। स्वस्थ रहे मस्त रहे व्यस्त रहे जितना व्यस्त रहेंगे उतना स्वस्थ रहेंगे, जय आयुर्वेद योग गूरूजीडो श्रीअमितजी मनोवैज्ञानिक एवम् पंचगव्य आयुर्वेद,🙏🙏🙏,,,,8530343215
ચામડી વાળના રોગ માટે નિ શુલ્ક નિદાન માર્ગદર્શન કેમ્પ તા ૧૧/૧૨ સવારે ૧૦થી ૧૨ અપોઈન્ટમેન્ટ
Regt cont no 085303 43215
*वैरिकोज वेन्स क्या होता है? (What is Varicose Veins?)*
*================*
*शिराएँ ऊतकों से रक्त को हृदय की ओर ले जाती है। शिराओं को गुरुत्वाकर्षण के विपरीत रक्त को टाँगों से हृदय में ले जाना पड़ता है। ऊपर की ओर के इस प्रवाह की सहायता करने के लिए शिराओं के भीतर वाल्व होते हैं। वाल्व रक्त को केवल ऊपर की ही ओर जाने देती है। जब वाल्व दुर्बल हो जाते हैं या कहीं-कहीं नहीं होते हैं तो रक्त भली भाँति ऊपर की ओर चढ़ नहीं पाता और कभी-कभी नीचे की ओर बहने लगता है। ऐसी दशा में शिराएँ फूल जाती हैं और लंबाई बढ़ जाने से टेढ़ी-मेढ़ी भी हो जाती है। ये ही वेरीकोस वेन्स कहलाती है।*
*शिराओं या वेन्स के वैरिकोज वेन्स होने के लक्षण (Symptoms of Varicose Veins)*
*=================*
जब शिराओं में रक्त के सही तरह से संचरण न होने के कारण सूजन आने लगती हैं तो इस लक्षण के अलावा और भी लक्षण होते हैं जो वैरिकोज वेन्स के कारण होते हैं-
-नीली या गहरी बैंगनी नसें।
-पैरों में भारीपन महसूस होना।
-मांसपेशियों में ऐंठन।
-पैरों के निचले हिस्से में सूजन।
-रस्सियों की तरह दिखने वाली सूजी हुई या मुड़ी हुई नसें।
-लम्बे समय तक बैठने या खड़े होने के बाद दर्द होना।
-एक या एक से ज्यादा नसों के आस-पास खुजली होना।
*महिलाओं में सम्भावना ज्यादा- महिलाओं में वैरेकोज वेन होने की सम्भावना ज्यादा होती है। प्रेगनेंसी और पीरियड्स के दौरान होने वाले हार्मोनल चेंजेस वैरेकोस वेन होने का खतरा बढ़ा देते हैं। हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी और गर्भनिरोधक गोलियां भी इस जोखिम को बढ़ा सकती है।*
*आहार-*( ठीक करने के लिए डाइट)
-विटामिन-ए वाले पदार्थ जैसे गाजर, शलजम आदि का सेवन करें क्योंकि ये वेरीकोज वेन्स के कारण बने घाव को भरने में सहायक होता है।
-विटामिन-बी युक्त आहार जैसे फल, दालें, छाछ/लस्सी लेते रहें क्योंकि ये रक्तवाही शिराओं के वाल्वस को मजबूत बनाने में सहायक होता है।
-विटामिन-सी एवं बायोफ्लेवनोइड्स वाले आहार लें क्योंकि ये रक्त के प्रवाह को सुचारू रखते हैं जिससे शिराओं के फैलाव को रोकने में सहायक होते हैं।
-लौकी पर्याप्त मात्रा में खाएं क्योंकि इसमें पाया जाने वाला जिंक भी आंतरिक घाव भरने एवं कोलेजेन के निर्माण में सहायक होता है।
-रूटीन एक ऐसा केमिकल है जिसका प्रयोग वेरीकोज वेन्स के इलाज में भी किया जाता है यह विशेषकर खट्टे फलों में पाया जाता है जैसे नींबू संतरा आदि।
-लेसिथिन नामक एमिनोएसिड भी फैट को गलाता है जिससे रक्त का बहाव नियंत्रित रहता है।
-पानी का भरपूर सेवन करें; कम से कम एक दिन में आठ ग्लास पीना चाहिए।
*लहसुन वैरिकोज वेन्स के उपचार में फायदेमंद घरेलू उपाय*
लहसुन, सूजन और वैरिकोज वेन्स के लक्षणों को कम करने के लिए एक उत्कृष्ट जड़ी बूटी है। यह भी रक्त वाहिकाओं में हानिकारक विषाक्त पदार्थों को निकालने और रक्त परिसंचरण में सुधार करने में मदद करती है। छह लहसुन की कली लेकर उसे एक साफ जार में डाल लें। तीन संतरे का रस लेकर उसे जार में मिलाये। फिर इसमें जैतून के तेल को भी मिलाएं। इस मिश्रण को 12 घंटे के लिए रख दें। फिर इस मिश्रण से कुछ बूंदों को हाथों पर लेकर 15 मिनट के लिए सूजन वाली नसों पर मालिश करें। इस पर सूती कपड़ा लपेट कर रातभर के लिए छोड़ दें। इस उपाय को कुछ महीनों के लिए नियमित रूप से दोहराये। इसके अलावा अपने आहार में ताजे लहसुन को शामिल करें।
*आयुर्वेद में इसके लिए 100% समाधान बिना ऑपरेशन के है आप चिकित्सा के लिए संपर्क कर सकते हैं*
*विशेष ------*
' *आयुर्वेद अपनाएं, स्वस्थ जीवन पाएं। ' हमारे इस अभियान से जुडे़ व स्वास्थ्य संबंधी समस्या - समाधान के लिए, हमारे सेन्टर संपर्क करे नं 085303 43215
☘️☘️☘️☘️☘️☘️
Varicose veains solution By yog guruji shree amitji Back pain Varicose vains solution cont 8530343215
🎊👇🎊👇🎊
એક વૃક્ષ જાંબુ નું અવશ્ય વાવી ઉછેર કરવું.
દરેક વ્યક્તિએ પોતાના ઘરની પાણીની ટાંકીમાં જામુનનાં (જાંબુ) લાકડાનો એક ટુકડો અવશ્ય રાખવો, તેનો એક પણ રૂપિયો ખર્ચ થતો નથી અને માત્ર ફાયદો થાય છે. તમારે ફક્ત જામુનનું લાકડું ઘરે લાવવાનું છે, તેને સારી રીતે સાફ કરીને પાણીની ટાંકીમાં નાખવાનું છે. આ પછી તમારે પાણીની ટાંકીને ફરીથી સાફ કરવાની જરૂર નહીં પડે.
શું તમે જાણો છો કે જાંબુનું લાકડું હોડીના તળિયે કેમ નાખવામાં આવે છે, જ્યારે તે ખૂબ જ નબળું હોય છે..?
ભારતની વિવિધ નદીઓમાં, બોટના તળિયે જાંબુનું લાકડું વાવવામાં આવે છે જે મુસાફરોને એક કિનારેથી બીજા કિનારે લઈ જાય છે. સવાલ એ છે કે જાંબુ જે પેટના દર્દીઓ માટે ઘરગથ્થુ આયુર્વેદિક ઔષધ છે, જેનું લાકડું જંતુમુક્ત અને મજબૂત દાંત બનાવે છે, એ જ જાંબુનું લાકડું હોડીની નીચેની સપાટી પર કેમ લગાવવામાં આવે છે. તે પણ જ્યારે જામુનનું લાકડું ખૂબ જ નબળું હોય છે. જાડાથી જાડા લાકડાને હાથથી તોડી શકાય છે. કારણ કે તેના ઉપયોગથી નદીઓનું પાણી પીવાલાયક રહે છે.
હકીકતમાં, બહુ ઓછા લોકો જાણે છે કે જાંબુનું લાકડું એક ચમત્કારિક લાકડું છે. તે પાણીની નીચે સડી જવાથી નુકસાન થતું નથી. બલ્કે તેમાં ચમત્કારિક ગુણ છે. જો તેને પાણીમાં બોળવામાં આવે તો તે પાણીને શુદ્ધ કરે છે અને પાણીમાં કચરો જમા થતો અટકાવે છે. કેટલું આશ્ચર્યજનક છે કે આપણા પૂર્વજો જેમને આપણે અભણ માનીએ છીએ તેઓએ નદીઓને સ્વચ્છ રાખવા અને હોડીને મજબૂત રાખવા માટે આટલો અસરકારક અને સરળ ઉપાય શોધી કાઢ્યો.
વાવની તળેટીમાં 700 વર્ષ પછી પણ જાંબુનું લાકડું બગડ્યું નથી. -યોગ ગૂરૃજી ડો શ્રી અમિતજી મનોવૈજ્ઞાનિક તેમજ યોગઆયુર્વેદા કુદરતી ઉપચાર એક્સપર્ટ
જાંબુના લાકડાના ચમત્કારિક પરિણામોના પુરાવા તાજેતરમાં મળી આવ્યા છે. જ્યારે દેશની રાજધાની દિલ્હીમાં સ્થિત નિઝામુદ્દીન (અગાઉ હિન્દુ મંદિર તરીકે ઉપયોગમાં લેવાતું) ના પગથિયાંની સફાઈ કરવામાં આવી ત્યારે તેની તળેટીમાં જાંબુ લાકડાનું માળખું મળી આવ્યું. ભારતના પુરાતત્વ વિભાગના વડા શ્રી કે.એન. શ્રીવાસ્તવે જણાવ્યું હતું કે આખી વાવ જાંબુના લાકડાના માળખાની ટોચ પર બનાવવામાં આવી હતી. કદાચ એટલે જ આ પગથિયાંનું પાણી 700 વર્ષ પછી પણ મીઠુ છે અને કોઈ પણ પ્રકારના કચરો અને ગંદકીના કારણે વાવના પાણીના સ્ત્રોત બંધ થયા નથી. જ્યારે 700 વર્ષથી કોઈએ તેની સફાઈ કરી ન હતી.
તમારા ઘરમાં જાંબુના લાકડાનો ઉપયોગ...
જો તમે તમારા ટેરેસ પરની પાણીની ટાંકીમાં જામુનનું લાકડું નાખશો તો તમારું પાણી ક્યારેય જામશે નહીં. 700 વર્ષ સુધી પાણી શુદ્ધ થતું રહેશે. તમારા પાણીમાં વધારાના મિનરલ્સ મળી આવશે અને તેનું TDS બેલેન્સ રહેશે. એટલે કે જાંબુ આપણા લોહીને સાફ કરવાની સાથે નદીના પાણીને પણ સાફ કરે છે અને પ્રકૃતિને સ્વચ્છ રાખે છે.
કૃપા કરીને હંમેશા યાદ રાખો કે વિશ્વભરના તમામ રજવાડાઓ અને હાલમાં અબજોપતિઓ જેઓ તેમના સ્વાસ્થ્ય વિશે ચિંતિત છે. બેરીના ગ્લાસમાં પાણી પીવો...!🙏 Jay gurudev
Hurry up
I've received 200 reactions to my posts in the past 30 days. Thanks for your support. 🙏🤗🎉
appointment cont 8530343215
Click here to claim your Sponsored Listing.
Videos (show all)
Category
Contact the business
Telephone
Website
Address
Rajkot
360001
Venue: , MaaSharda Child Care, Rajnagar Chowk, Opposite Suryamukhi Hanuman Temple, , Nana Mauva Main Road
Rajkot, 360004
The focus of our team is to evaluate each child and work with their family in order to develop medical / surgical procedure and therapeutic plan to maximize each child’s functiona...
Shop No 2 , Krishna Complex , Near Mayur Bhajiya, University Road Rajkot
Rajkot, 360001
Ban House, Opp. Swaminarayan Temple, Kalawad Road
Rajkot, 360001
A unique #HealthCare range made with quality ingredients based on #AyurvedicPrinciples to assure your well-being at all times. By Ban Labs #Crux
Rajkot, 3600001
We make medicines according to Ayurvedic principles along with natural herbs
N M Virani Wockhardt Hospitals, Kalavad Road
Rajkot, 360007
"Dr. Nisarg Thakkar has an experience of over 4 years in diagnosing and treating various types of Benign & Malignant hematological diseases including Bone marrow/stem cell transpla...
Aaditya Industrial Park-3, Opp/Patel Vihar Restaurant, Ahmadabad Highway, Navagam
Rajkot, 360003
Veterinary Medicine & Feed Supplement Manufacturer.
Nanavati Chowk
Rajkot, 360007
ivf center with quality standards setup