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Life is too short, enjoy it ��
स्त्रियां
बाथरूम मे जाकर कपड़े भिगोती हैं,बच्चो और पति की शर्ट की कॉलर घिसती है,बाथरूम का फर्श धोती है ताकि चिकना न रहे,फिर बाल्टी और मग भी मांजती है तब जाकर नहाती है
और तुम कहते हो कि स्त्रियां नहाने में कितनी देर लगातीं है।
स्त्रियां
किचन में जाकर सब्जियों को साफ करती है,तो कभी मसाले निकलती है।बार बार अपने हाथों को धोती है,आटा मलती है,बर्तनों को कपड़े से पोंछती है।वही दही जमाती घी बनाती है
और तुम कहते हो खाना में कितनी देर लगेगी ???
स्त्रियां
बाजार जाती है।एक एक सामान को ठहराती है,अच्छी सब्जियों फलों को छाट ती है,पैसे बचाने के चक्कर में पैदल
चल देती है,भीड में दुकान को तलाशती है।और तुम कहते हो कि इतनी देर से क्या ले रही थी ???
स्त्रियां
बच्चो और पति के जाने के बाद चादर की सलवटे सुधारती है,सोफे के कुशन को ठीक करती है,सब्जियां फ्रीज में रखती है,कपड़े घड़ी प्रेस करती है,राशन जमाती है,पौधों में पानी डालती है,कमरे साफ करती है,बर्तन सामान जमाती है,और तुम कहते हो कि दिनभर से क्या कर रही थी ???
स्त्रियां
कही जाने के लिए तैयार होते समय कपड़ो को उठाकर लाती है,दूध खाना फ्रिज में रखती है बच्चो को दिदायते देती है,नल चेक करती है,दरवाजे लगाती है,फिर खुद को खूबसूरत बनाती है ताकि तुमको अच्छा लगे और तुम कहते हो कितनी देर में तैयार होती हो।
स्त्रियां
बच्चो की पढ़ाई डिस्कस करती,खाना पूछती,घर का हिसाब बताती,रिश्ते नातों की हालचाल बताती,फीस बिल याद दिलाती और तुम कह देते कि कितना बोलती हो।
स्त्रियां
दिनभर काम करके थोड़ा दर्द तुमसे बाट देती है,मायके की कभी याद आने पर दुखी होती है,बच्चों के नंबर कम आने पर परेशान होती है,थोड़ा सा आसू अपने आप आ जाते है,मायके में ससुराल की इज़्ज़त,ससुराल में मायके की बात को रखने के लिए कुछ बाते बनाती और तुम कहते हो की स्त्रियां कितनी नाटकबाज होती है।
पर स्त्रियां फिर भी तुमसे ही सबसे ज्यादा प्यार
करती है...
वरिष्ठता और बुढ़ापा में क्या कोई अंतर है ?
आईंये इसे समझते है.................
इंसान को उम्र बढ़ने पर ‘वरिष्ठ’ बनना चाहिये, ‘बूढ़ा’ नहीं|
बुढ़ापा अन्य लोगों का आधार ढूँढता है और वरिष्ठता, वरिष्ठता तो लोगों को आधार देती है ।
बुढ़ापा छुपाने का मन करता है,
और वरिष्ठता को उजागर करने का मन करता है ।
बुढ़ापा अहंकारी होता है,
वरिष्ठता अनुभवसंपन्न, विनम्र और संयमशील होती है ।
बुढ़ापा नई पीढ़ी के विचारों से छेड़छाड़ करता है,
और वरिष्ठता युवा पीढ़ी को, बदलते समय के अनुसार जीने की छूट देती है ।
बुढ़ापा "हमारे ज़माने में ऐसा था" की रट लगाता है,
और वरिष्ठता बदलते समय से अपना नाता जोड़ लेती है, उसे अपना लेती है।
बुढ़ापा नई पीढ़ी पर अपनी राय लादता है, थोपता है,
और वरिष्ठता तरुण पीढ़ी की राय को समझने का प्रयास करती है।
बुढ़ापा जीवन की शाम में अपना अंत ढूंढ़ता है मगर वरिष्ठता,
वह तो जीवन की शाम में भी एक नए सवेरे का इंतजार करती है, युवाओं की स्फूर्ति से प्रेरित होती है ।
संक्षेप में ...
वरिष्ठता और बुढ़ापे के बीच के अंतर को समझकर, जीवन का आनंद पूर्ण रूप से लेने में सक्षम बनना चाहिए ।।✨🍁✨
अनुष्का शर्मा ने अपनी दादी अपने चाचा चाची तक को शादी में नही बुलाया इन्हें पता ही टीवी से लगा की हमारी पोती हमारी भतीजी की शादी हो रही है शायद शर्म लगती इस को अपने आम परिवार वालो से शायद तभी सिर्फ 20 मेहमान बुलाये होंगे।
सुरेश रैना ने 2015 में शादी की जिस मामा की गोद में खेला उस मामा को शादी में नही बुलाया मामा से मीडिया वालों ने बात की मामा आंसुओ के साथ भावनाये व्यक्त करते नजर आये। कारण था सुरेश रैना को मामा से शर्म आती थी आखिर बड़ा आदमी जो ठहरा।
जसप्रीत बुमराह का 84 साल का दादा जो 17 साल से अपने पोते को देखने को तरस रहा था जसप्रीत से मिलने अहमदाबाद आया जहाँ जसप्रीत की माँ ने दादा को भगा दिया इसके बाद दादा ने साबरमती नदी में आत्महत्या करली।
महेंद्र सिंह धोनी इन्होंने अपनी आत्मकथा पर बनी फिल्म में अपने भाई को ही नहीं दिखाया ।
इस तरह के लोग आज युवा पीढ़ी के आदर्श है इन लोगो को आज युवा पीढ़ी फॉलो करती है इनकी फैन है।
और एक ये भुवनेश्वर कुमार था जिसने अपनी शादी में पूरा गांव बुलाया और शादी की खुशी में अपने जिले में चल रहे कन्या गुरुकुल में लाखों रुपए का दान दिया था ! ये होते है संस्कार।
इससे सीखना चाहिए, कुछ उन ओछे सेलिब्रिटीज से नही जो अपने दादा-दादी, मामी-मामी, चाचा-चाची गांव वालों तक को अपना परिवार नही समझते
खेर हमे क्या 😊
मैंने ट्रेन के दरवाजे के पीछे लिखे नंबर पर कॉल लगाया,,,"आप रेनू जी बोल रहीं है"
डरी ओर सहमी सी आवाज में रिप्लाई आया "जी हां, लेकिन आप कौन ओर आपको मेरा ये नंबर कहा से मिला"
"दरअसल वो ट्रेन,,,, दरअसल वो ट्रेन के डिब्बे में किसी ने आपका नंबर आपके नाम से लिख रखा है, शायद आपका कोई अच्छा दुश्मन या फिर कोई बुरा दोस्त होगा, जो भी हो, मुझे आपसे ये कहना था कि हो सके तो ये नंबर चेंज करवा लीजिये या फिर किसी अच्छे से जवाब के साथ तैयार रहिये, वैसे अब तक जितने कॉल्स आ गए, आ गए,,,,आज के बाद किसी का नही आएगा क्योंकि ये नंबर मैं डिलीट कर चुका हूं।
रेनू जी अब मैं फ़ोन रखता हूं अपना ख्याल रखियेगा।"
तब उसने मुझे बोला कि नए नए अनजाने नंबर और उनपे गंदे ओर भद्दे बातो की वजह से मैं बहुत परेशान थी,,आप जो भी हो आपने मेरी बहुत बड़ी हेल्प की है क्योंकि मुझे तो समझ ही नही आ रहा था कि ऐसे कॉल क्यों आ रहे है।
तभी से मुझे एक ओर दिशा मिली और मैं सार्वजनिक स्थानो पे लिखे ऐसे नंबर को मिटाने में लग गया हूं, ताकि किसी ना किसी को तो बचाया जा सके।
माना कि हम किसी बुराई की वजह नही है पर किसी अच्छाई की वजह तो बन ही सकते है।मेरा आप सभी से निवेदन है कि अगर आप कही भी इस तरह के नंबर ओर नाम देखो तो तुरंत मिटा दो ताकि एक अनजान खतरों से किसी की बहन बेटियो की हेल्प कर सको।
एक अकेले के साथ अगर लाखो का साथ मिल जाएगा तो स्थिती जल्दी बदलने लगेगी।
फिर एक दिन वो लोग भी सो जाते हैं जिन्हें.....
रात को नींद नही आती
लाजवाब किस्सा 🙂
ट्रेन चलने को ही थी कि अचानक कोई जाना पहचाना सा चेहरा जर्नल बोगी में आ गया। मैं अकेली सफर पर थी। सब अजनबी चेहरे थे। स्लीपर का टिकिट नही मिला तो जर्नल डिब्बे में ही बैठना पड़ा। मगर यहां ऐसे हालात में उस शख्स से मिलना। जिंदगी के लिए एक संजीवनी के समान था।
जिंदगी भी कमबख्त कभी कभी अजीब से मोड़ पर ले आती है। ऐसे हालातों से सामना करवा देती है जिसकी कल्पना तो क्या कभी ख्याल भी नही कर सकते ।
वो आया और मेरे पास ही खाली जगह पर बैठ गया। ना मेरी तरफ देखा। ना पहचानने की कोशिश की। कुछ इंच की दूरी बना कर चुप चाप पास आकर बैठ गया। बाहर सावन की रिमझिम लगी थी। इस कारण वो कुछ भीग गया था। मैने कनखियों से नजर बचा कर उसे देखा। उम्र के इस मोड़ पर भी कमबख्त वैसा का वैसा ही था। हां कुछ भारी हो गया था। मगर इतना ज्यादा भी नही।
फिर उसने जेब से चश्मा निकाला और मोबाइल में लग गया।
चश्मा देख कर मुझे कुछ आश्चर्य हुआ। उम्र का यही एक निशान उस पर नजर आया था कि आंखों पर चश्मा चढ़ गया था। चेहरे पर और सर पे मैने सफेद बाल खोजने की कोशिश की मग़र मुझे नही दिखे।
मैंने जल्दी से सर पर साड़ी का पल्लू डाल लिया। बालो को डाई किए काफी दिन हो गए थे मुझे। ज्यादा तो नही थे सफेद बाल मेरे सर पे। मगर इतने जरूर थे कि गौर से देखो तो नजर आ जाए।
मैं उठकर बाथरूम गई। हैंड बैग से फेसवाश निकाला चेहरे को ढंग से धोया फिर शीशे में चेहरे को गौर से देखा। पसंद तो नही आया मगर अजीब सा मुँह बना कर मैने शीशा वापस बैग में डाला और वापस अपनी जगह पर आ गई।
मग़र वो साहब तो खिड़की की तरफ से मेरा बैग सरकाकर खुद खिड़की के पास बैठ गए थे।
मुझे पूरी तरह देखा भी नही बस बिना देखे ही कहा, " सॉरी, भाग कर चढ़ा तो पसीना आ गया था । थोड़ा सुख जाए फिर अपनी जगह बैठ जाऊंगा।" फिर वह अपने मोबाइल में लग गया। मेरी इच्छा जानने की कोशिश भी नही की। उसकी यही बात हमेशा मुझे बुरी लगती थी। फिर भी ना जाने उसमे ऐसा क्या था कि आज तक मैंने उसे नही भुलाया। एक वो था कि दस सालों में ही भूल गया। मैंने सोचा शायद अभी तक गौर नही किया। पहचान लेगा। थोड़ी मोटी हो गई हूँ। शायद इसलिए नही पहचाना। मैं उदास हो गई।
जिस शख्स को जीवन मे कभी भुला ही नही पाई उसको मेरा चेहरा ही याद नही😔
माना कि ये औरतों और लड़कियों को ताड़ने की इसकी आदत नही मग़र पहचाने भी नही😔
शादीशुदा है। मैं भी शादीशुदा हुँ जानती थी इसके साथ रहना मुश्किल है मग़र इसका मतलब यह तो नही कि अपने खयालो को अपने सपनो को जीना छोड़ दूं।
एक तमन्ना थी कि कुछ पल खुल के उसके साथ गुजारूं। माहौल दोस्ताना ही हो मग़र हो तो सही😔
आज वही शख्स पास बैठा था जिसे स्कूल टाइम से मैने दिल मे बसा रखा था। सोसल मीडिया पर उसके सारे एकाउंट चोरी छुपे देखा करती थी। उसकी हर कविता, हर शायरी में खुद को खोजा करती थी। वह तो आज पहचान ही नही रहा😔
माना कि हम लोगों में कभी प्यार की पींगे नही चली। ना कभी इजहार हुआ। हां वो हमेशा मेरी केयर करता था, और मैं उसकी केयर करती थी। कॉलेज छुटा तो मेरी शादी हो गई और वो फ़ौज में चला गया। फिर उसकी शादी हुई। जब भी गांव गई उसकी सारी खबर ले आती थी।
बस ऐसे ही जिंदगी गुजर गई।
आधे घण्टे से ऊपर हो गया। वो आराम से खिड़की के पास बैठा मोबाइल में लगा था। देखना तो दूर चेहरा भी ऊपर नही किया😔
मैं कभी मोबाइल में देखती कभी उसकी तरफ। सोसल मीडिया पर उसके एकाउंट खोल कर देखे। तस्वीर मिलाई। वही था। पक्का वही। कोई शक नही था। वैसे भी हम महिलाएं पहचानने में कभी भी धोखा नही खा सकती। 20 साल बाद भी सिर्फ आंखों से पहचान ले☺️
फिर और कुछ वक्त गुजरा। माहौल वैसा का वैसा था। मैं बस पहलू बदलती रही।
फिर अचानक टीटी आ गया। सबसे टिकिट पूछ रहा था।
मैंने अपना टिकिट दिखा दिया। उससे पूछा तो उसने कहा नही है।
टीटी बोला, "फाइन लगेगा"
वह बोला, "लगा दो"
टीटी, " कहाँ का टिकिट बनाऊं?"
उसने जल्दी से जवाब नही दिया। मेरी तरफ देखने लगा। मैं कुछ समझी नही।
उसने मेरे हाथ मे थमी टिकिट को गौर से देखा फिर टीटी से बोला, " कानपुर।"
टीटी ने कानपुर की टिकिट बना कर दी। और पैसे लेकर चला गया।
वह फिर से मोबाइल में तल्लीन हो गया।
आखिर मुझसे रहा नही गया। मैंने पूछ ही लिया,"कानपुर में कहाँ रहते हो?"
वह मोबाइल में नजरें गढ़ाए हुए ही बोला, " कहीँ नही"
वह चुप हो गया तो मैं फिर बोली, "किसी काम से जा रहे हो"
वह बोला, "हाँ"
अब मै चुप हो गई। वह अजनबी की तरह बात कर रहा था और अजनबी से कैसे पूछ लूँ किस काम से जा रहे हो।
कुछ देर चुप रहने के बाद फिर मैंने पूछ ही लिया, "वहां शायद आप नौकरी करते हो?"
उसने कहा,"नही"
मैंने फिर हिम्मत कर के पूछा "तो किसी से मिलने जा रहे हो?"
वही संक्षिप्त उत्तर ,"नही"
आखरी जवाब सुनकर मेरी हिम्मत नही हुई कि और भी कुछ पूछूँ। अजीब आदमी था । बिना काम सफर कर रहा था।
मैं मुँह फेर कर अपने मोबाइल में लग गई।
कुछ देर बाद खुद ही बोला, " ये भी पूछ लो क्यों जा रहा हूँ कानपुर?"
मेरे मुंह से जल्दी में निकला," बताओ, क्यों जा रहे हो?"
फिर अपने ही उतावलेपन पर मुझे शर्म सी आ गई।
उसने थोड़ा सा मुस्कराते हुवे कहा, " एक पुरानी दोस्त मिल गई। जो आज अकेले सफर पर जा रही थी। फौजी आदमी हूँ। सुरक्षा करना मेरा कर्तव्य है । अकेले कैसे जाने देता। इसलिए उसे कानपुर तक छोड़ने जा रहा हूँ। " इतना सुनकर मेरा दिल जोर से धड़का। नॉर्मल नही रह सकी मैं।
मग़र मन के भावों को दबाने का असफल प्रयत्न करते हुए मैने हिम्मत कर के फिर पूछा, " कहाँ है वो दोस्त?"
कमबख्त फिर मुस्कराता हुआ बोला," यहीं मेरे पास बैठी है ना"
इतना सुनकर मेरे सब कुछ समझ मे आ गया। कि क्यों उसने टिकिट नही लिया। क्योंकि उसे तो पता ही नही था मैं कहाँ जा रही हूं। सिर्फ और सिर्फ मेरे लिए वह दिल्ली से कानपुर का सफर कर रहा था। जान कर इतनी खुशी मिली कि आंखों में आंसू आ गए।
दिल के भीतर एक गोला सा बना और फट गया। परिणाम में आंखे तो भिगनी ही थी।
बोला, "रो क्यों रही हो?"
मै बस इतना ही कह पाई," तुम मर्द हो नही समझ सकते"
वह बोला, " क्योंकि थोड़ा बहुत लिख लेता हूँ इसलिए एक कवि और लेखक भी हूँ। सब समझ सकता हूँ।"
मैंने खुद को संभालते हुए कहा "शुक्रिया, मुझे पहचानने के लिए और मेरे लिए इतना टाइम निकालने के लिए"
वह बोला, "प्लेटफार्म पर अकेली घूम रही थी। कोई साथ नही दिखा तो आना पड़ा। कल ही रक्षा बंधन था। इसलिए बहुत भीड़ है। तुमको यूँ अकेले सफर नही करना चाहिए।"
"क्या करती, उनको छुट्टी नही मिल रही थी। और भाई यहां दिल्ली में आकर बस गए। राखी बांधने तो आना ही था।" मैंने मजबूरी बताई।
"ऐसे भाइयों को राखी बांधने आई हो जिनको ये भी फिक्र नही कि बहिन इतना लंबा सफर अकेले कैसे करेगी?"
"भाई शादी के बाद भाई रहे ही नही। भाभियों के हो गए। मम्मी पापा रहे नही।"
कह कर मैं उदास हो गई।
वह फिर बोला, "तो पति को तो समझना चाहिए।"
"उनकी बहुत बिजी लाइफ है मैं ज्यादा डिस्टर्ब नही करती। और आजकल इतना खतरा नही रहा। कर लेती हुँ मैं अकेले सफर। तुम अपनी सुनाओ कैसे हो?"
"अच्छा हूँ, कट रही है जिंदगी"
"मेरी याद आती थी क्या?" मैंने हिम्मत कर के पूछा।
वो चुप हो गया।
कुछ नही बोला तो मैं फिर बोली, "सॉरी, यूँ ही पूछ लिया। अब तो परिपक्व हो गए हैं। कर सकते है ऐसी बात।"
उसने शर्ट की बाजू की बटन खोल कर हाथ मे पहना वो तांबे का कड़ा दिखाया जो मैंने ही फ्रेंडशिप डे पर उसे दिया था। बोला, " याद तो नही आती पर कमबख्त ये तेरी याद दिला देता था।"
कड़ा देख कर दिल को बहुत शुकुन मिला। मैं बोली "कभी सम्पर्क क्यों नही किया?"
वह बोला," डिस्टर्ब नही करना चाहता था। तुम्हारी अपनी जिंदगी है और मेरी अपनी जिंदगी है।"
मैंने डरते डरते पूछा," तुम्हे छू लुँ"
वह बोला, " पाप नही लगेगा?"
मै बोली," नही छू ने से नही लगता।"
और फिर मैं कानपुर तक उसका हाथ पकड़ कर बैठी रही।।
बहुत सी बातें हुईं।
जिंदगी का एक ऐसा यादगार दिन था जिसे आखरी सांस तक नही बुला पाऊंगी।
वह मुझे सुरक्षित घर छोड़ कर गया। रुका नही। बाहर से ही चला गया।
जम्मू थी उसकी ड्यूटी । चला गया।
उसके बाद उससे कभी बात नही हुई । क्योंकि हम दोनों ने एक दूसरे के फोन नम्बर नही लिए।
हांलांकि हमारे बीच कभी भी नापाक कुछ भी नही हुआ। एक पवित्र सा रिश्ता था। मगर रिश्तो की गरिमा बनाए रखना जरूरी था।
फिर ठीक एक महीने बाद मैंने अखबार में पढ़ा कि वो देश के लिए शहीद हो गया। क्या गुजरी होगी मुझ पर वर्णन नही कर सकती। उसके परिवार पर क्या गुजरी होगी। पता नही😔
लोक लाज के डर से मैं उसके अंतिम दर्शन भी नही कर सकी।
आज उससे मीले एक साल हो गया है आज भी रखबन्धन का दूसरा दिन है आज भी सफर कर रही हूँ। दिल्ली से कानपुर जा रही हूं। जानबूझकर जर्नल डिब्बे का टिकिट लिया है मैंने।
अकेली हूँ। न जाने दिल क्यों आस पाले बैठा है कि आज फिर आएगा और पसीना सुखाने के लिए उसी खिड़की के पास बैठेगा।
एक सफर वो था जिसमे कोई हमसफ़र था।
एक सफर आज है जिसमे उसकी यादें हमसफ़र है। बाकी जिंदगी का सफर जारी है देखते है कौन मिलता है कौन साथ छोड़ता है...!!!
Celebrating my 2nd year on Facebook. Thank you for your continuing support. I could never have made it without you. 🙏🤗🎉
🔸🔸🔸भुली हुई यादें 🔸🔸🔸
जब हम स्कूल में पढ़ते थे उस स्कूली दौर में निब पैन का चलन जोरों पर था..!
तब सुलेखा ,क्विंक स्याही प्रायः हर घर में मिल ही जाती थी, कोई कोई टिकिया से स्याही बनाकर भी उपयोग करते थे और जिन्होंने भी पैन में स्याही डाली होगी वो ड्रॉपर के महत्व से भली भांति परिचित होंगे !
महीने में दो-तीन बार निब पैन को खोलकर उसे गरम पानी में डालकर उसकी सर्विसिंग भी की जाती थी और लगभग सभी को लगता था की निब को उल्टा कर के लिखने से हैंडराइटिंग बड़ी सुन्दर बनती है।
हर क्लास में एक ऐसा एक्सपर्ट होता था जो पैन ठीक से नहीं चलने पर ब्लेड लेकर निब के बीच वाले हिस्से में बारिकी से कचरा निकालने का दावा कर लेता था!!!
दुकान में नयी निब खरीदने से पहले उसे पैन में लगाकर सेट करना फिर कागज़ में स्याही की कुछ बूंदे छिड़क कर निब उन गिरी हुयी स्याही की बूंदो पर लगाकर निब की स्याही सोखने की क्षमता नापना ही किसी बड़े साइंटिस्ट वाली फीलिंग दे जाता था..!
निब पैन कभी ना चले तो हम सभी ने हाथ से झटका देने के चक्कर में आजू बाजू वालों पर स्याही जरूर छिड़कायी होगी!!
कुछ बच्चे ऐसे भी होते थे जो पढ़ते लिखते तो कुछ नहीं थे लेकिन घर जाने से पहले उंगलियो में स्याही जरूर लगा लेते थे, बल्कि पैंट पर भी छिड़क लेते थे ताकि घरवालों को देख के लगे कि बच्चा स्कूल में बहुत मेहनत करता है!!
भूली हुइ यादें.... 🥰😊🙏🏻😊🥰
स्कूल के इंटरवेल में टिफिन खुलते ही आम के अचार की महक से क्लास भर जाती थी, जो बच्चा टिफिन में सब्जी लाया होता था वह भी अचार के लिए मचल उठता था… ☺️
हमारे समय में स्कूल के टिफिन का मेन्यू आम या मिर्च का अचार के साथ परांठे हुआ करते थे, आम के अचार को तृप्ति के अंतिम छोर तक चूस-चूस कर खाने वाले बच्चे हमारे जमाने में ही मिलते थे।
एक ही मेन्यू लगभग रोज रिपीट होता,
लेकिन जो संतुष्टि और आनंद उन परांठों और अचार में मिलता, यकीन मानिए दस पकवानों में भी वह आनंद नहीं था, इस अचार और परांठे को खाकर भी हम स्वस्थ और तंदुरुस्त रहते, डॉक्टर्स के यहाँ तो कभी साल दो साल में गए हो तो गए हो वरना हम सब मस्त कलंदर और थोड़े बंदर…
अब तो स्कूल के टिफिन में अचार ले जाना ही मना हैं,
स्कूल की तरफ से डाइट चार्ट जैसे सेट है और मम्मियों की हर रात यही सोचने में सेट है कि सुबह टिफिन के लिए क्या स्पेशल बनाएं…🥹
#यादें_बचपन_की ❤️
लो आ गई हर बार की तरह इस बार भी माँ गंगा शीतला माता का पैर पखारने.....
जय माता दी..
चलिए आज आपको वाराणसी की एक सत्य घटना से आपको रूबरू करवाते है ये माँ शीतला जी का मंदिर है आज भी माँ रोज रात में घाटो पर घूमने निकली है और जो भी भक्त पे प्रसन्न होती है उसे दर्शन भी देती है ऐसे कई भक्तो को जानता हूँ जिन्होंनो माँ का साक्षात दर्शन किया है जब गंगा में बाढ़ आती है तो जब तक माँ गंगा शीतला माता के पैरों को पखार नही लेते गंगा माँ घटती नही ये हर वर्ष वाराणसी में होता है आप भी दर्शन करे जय माता दी हर हर गंगे हर हर महादेव🙏🙏❤
एक नसीहत
👉ट्रेन में एक 18-19 वर्षीय खूबसूरत लड़की चढ़ी जिसका सामने वाली बर्थ पर रिजर्वेशन था ..
उसके पापा उसे छोड़ने आये थे। .
👉अपनी सीट पर बैठ जाने के बाद उसने अपने पिता से कहा "डैडी आप जाइये अब, ट्रेन तो दस मिनट खड़ी रहेगी 👉यहाँ दस मिनट का स्टॉपेज है।" .उसके पिता ने उदासी भरे शब्दों के साथ कहा "कोई बात नहीं बेटा, 10 मिनट और तेरे साथ बिता लूँगा, अब तो तुम्हारे क्लासेज शुरू हो रहे हैं काफी दिन बाद आओगी तुम।"
👉लड़की शायद अध्ययन कर रही होगी, क्योंकि उम्र और वेशभूषा से विवाहित नहीं लग रही थी ।
👉ट्रेन चलने लगी तो उसने खिड़की से बाहर प्लेटफार्म पर खड़े पिता को हाथ हिलाकर बाय कहा :-
👉"बाय डैडी.... अरे ये क्या हुआ आपको !अरे नहीं प्लीज"पिता की आँखों में आंसू थे।
👉ट्रेन अपनी रफ्तार पकड़ती जा रही थी और पिता रुमाल से आंसू पोंछते हुए स्टेशन से बाहर जा रहे थे।
👉लड़की ने फोन लगाया.."हेलो मम्मी.. ये क्या है यार!जैसे ही ट्रेन स्टार्ट हुई, डैडी तो रोने लग गये..
👉अब मैं नेक्स्ट टाइम कभी भी उनको सी-ऑफ के लिए नहीं कहूँगी भले अकेली आ जाउंगी ऑटो से..
अच्छा बाय..पहुंचते ही कॉल करुँगी,डैडी का ख्याल रखना ओके।" .
👉मैं कुछ देर तक लड़की को सिर्फ इस आशा से देखता रहा कि पारदर्शी चश्मे से झांकती उन 👉आँखों से मुझे अश्रुधारा दिख जाए पर मुझे निराशा ही हाथ लगी,उन आँखों में नमी भी नहीं थी।
👉कुछ देर बाद लड़की ने फिर किसी को फोन लगाया- "हेलो जानू कैसे हो.... मैं ट्रेन में बैठ गई हूँ..हाँ अभी चली है यहाँ से,कल अर्ली-मोर्निंग पहुँच जाउंगी.. लेने आ जाना.
लव यू टू यार,
👉मैंने भी बहुत मिस किया तुम्हे.. बस कुछ घंटे और सब्र कर लो कल तो पहुँच ही जाऊँगी।"
🙏मैं मानता हूँ दोस्तों...कि
👉आज के युग में बच्चों को उच्च शिक्षा हेतु बाहर भेजना आवश्यक है पर इस बात में भी कोई दो राय नहीं कि इसके कई दुष्परिणाम भी हैं।
👉मैं यह नहीं कह रहा कि बाहर पढने वाले सारे लड़के लड़कियां ऐंसे होते हैं। मैं सिर्फ उनकी बात कर रहा हूँ जो पाश्चात्य
👉संस्कृति की इस हवा में अपने कदम बहकने से नहीं रोक पाते
👉और उनको माता-पिता, भाई- बहन किसी का प्यार याद नहीं रह जाता सिर्फ एक प्यार ही याद रहता है!!!
👉वो ये भी भूल जाते हैं कि उनके माता-पिता ने कैसे-कैसे साधनों को जुटा कर और किन सपनों को संजो कर अपने दिल के टुकड़े को अपने से दूर पढने भेजा है।
👉लेकिन बच्चे के कदम बहकने से उसका परिणाम क्या होता है??
वो ये नहीं जानते हैं.,
🙏इसलिये सभी से रिक्वेस्ट है
वो अपने माता पिता के जज्बातों के साथ खिलवाड़ नहीं करें.!!
खासकर लड़कियां... क्योंकि लड़की की अपनी इज्जत के साथ सारे परिवार की इज्जत जुडी होती है..
🙏🙏धन्यवाद🙏🙏
👉मेरे पोस्ट से किसी की भावनाओं को ठेस पहुंची हो तो ।।
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