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जिंदगी को खुश रहकर जियो, क्योंकि रोज शाम सिर्फ सूरज जी नहीं ढलता… आपकी अनमोल जिंदगी भी ढलती है!! Jay bheem friends
जिंदगी को खुश रहकर जियो, क्योंकि रोज शाम सिर्फ सूरज जी नहीं ढलता… आपकी अनमोल जिंदगी भी ढलती है!! Jay bheem friends @
महान् विचारक और भारत में नव-जागरण के पहले महानायक राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले (11अप्रैल 1827)- (28 नवम्बर,1890) की आज जयंती है। उस महान् संत-विचारक, लेखक और शिक्षक के प्रति हमारी सादर श्रद्धांजलि💐💐💐💐💐💐
"सत्य शोधक समाज" के संस्थापक स्त्री-शिक्षा के अग्रदूत पाखंड एवं अंधविश्वास के प्रखर आलोचक क्रांतिसूर्य महात्मा ज्योतिबा फुले जी की 196वी जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं एवं विनम्र अभिवादन💐💐💐
्रेल #महात्मा_ज्योतिबा_फुले को उनके जन्मदिवस के अवसर पर शत शत नमन। उन्होंने महिलाओं व दलितों के उत्थान के लिय अनेक अभूतपूर्व कार्य किए। समाज के सभी वर्गो को #शिक्षा प्रदान करने के ये प्रबल समथर्क थे। वे भारतीय समाज में प्रचलित जाति पर आधारित विभाजन और भेदभाव के विरुद्ध थे।
विस्तृत विवरण के लिए कृपया ब्लॉग का अवलोकन करे।
1857 की स्वाधीनता संग्राम के महानायक मंगल पांडे को शहादत दिवस पर क्रांतिकारी सलाम 🙏❤️
19 जुलाई 1827 - 8 अप्रैल 1857
1857 के स्वाधीनता संग्राम की रखी थी नींव, 8 अप्रैल 1857 को हुई थी फांसी, बैरकपुर में अंग्रेज अफसर को मारी थी गोली|
जिस वक्त ब्रिटिश हुकूमत के सामने जब हर कोई अपनी जुबां खोलने से भी परहेज करता था, उस दौर में अंग्रेजी फौज के सिपाही मंगल पांडेय ने विद्रोह का बिगुल फूंक दिया। अंग्रेज अफसरों की हत्या के आरोप में उनके खिलाफ मुकदमा चलाया गया। देश गुलामी के दौर में अंग्रेजी सरकार ने आठ अप्रैल 1857 को उन्हें फांसी दे दी।
मंगल पांडे ने अंग्रेज अफसर को मारी थी गोली
जिले के नगवां गांव में 19 जुलाई 1827 को जन्मे मंगल पांडेय कोलकाता के निकट बैरकपुर छावनी में 19वीं रेजीमेंट के 5वीं कंपनी के 1446 नंबर के सिपाही थे। अंग्रेजों का भारतीय सैनिकों से भेदभावपूर्ण व्यवहार एवं अन्य कई कारणों से मंगल पांडेय काफी दुखी थे। 29 मार्च 1857 को बैरकपुर परेड मैदान में सैनिक मंगल का असंतोष खुलकर दिखाई देने लगा। मंगल पांडेय अंग्रेज अधिकारियों पर शेर की तरह दहाड़ने लगे। उन्होंने परेड मैदान पर ही मेजर ह्यूसन को गोली मार दी तथा लेफ्टिनेंट बाग को तलवार से काट दिया।
कर्नल बिलर मैदान छोड़कर भाग गया था
उनका उग्र रूप देखकर कर्नल बिलर मैदान छोड़कर भाग गया। तब मंगल पांडेय की दहाड़ व गोली की आवाज लंदन तक गूंजी थी। हालांकि परेड मैदान में ही अंग्रेजी सेना के जवानों ने उन्हें घेरकर गिरफ्तार कर लिया। सैनिक अदालत में उन पर मुकदमा चला। उन्हें फांसी की सजा सुनायी गयी। फांसी की तिथि सात अप्रैल 1857 तय की गई, लेकिन स्थानीय जल्लादों ने उन्हें फांसी देने से इंकार कर दिया। इसके बाद अंगे्रजी फौज असमंजस में पड़ गई तथा इसके चलते एक दिन के लिए फांसी की तिथि को भी टालनी पड़ी। इसके बाद अंग्रेज अफसरों ने चुपके से कोलकाता से जल्लाद बुलाया तथा आठ अप्रैल 1857 की सुबह बैरकपुर कैंट में एक बरगद के पेड़ से मंगल पांडेय को फांसी पर लटका दिया गया।
जबलपुर संग्रहालय में है फांसी का ऑर्डर
1857 के स्वतंत्रता संग्राम के शहीद मंगल पांडेय को जिस ऑर्डर में सैनिक अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी, वह जबलपुर के हाईकोर्ट म्यूजियम में आज भी सहेज कर रखा गया है। ईस्ट इंडिया कंपनी के सिपाही मंगल पांडेय ने 29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी में विद्रोह किया था। कई दिनों तक चले ट्रायल के बाद छह अप्रैल 1857 को कोर्ट ने आरोप तय करते हुए फांसी की सजा सुना दी थी।
नहीं मिली मंगल पांडे की वर्दी व राईफल फांसी की तिथि पहले 16 अप्रैल तय की गई थी, लेकिन अंग्रेज अफसरों को यह डर सता रहा था कि अगर मंगल पांडेय जीवित रहे तो अन्य हिन्दुस्तानी सैनिकों में भी विद्रोह की भावना जागृत हो जाएगी। इस स्थिति में अंग्रेजों के लिए स्थिति को संभालना मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में सात अपै्रल को ही फांसी देने का फैसला हुआ। हालांकि जल्लादों के फांसी देने से इंकार करने के बाद 8 अप्रैल 1857, दिन बुधवार को सुबह साढ़े पांच बजे 26 वर्ष दो महीने नौ दिन की उम्र में मंगल पांडेय को फांसी दे दी गई। अंग्रेज अधिकारियों ने फांसी के आर्डर तो सुरक्षित रख दिए, लेकिन शहीद से जुड़ी अन्य चीजों का कहीं पता नहीं है। उनकी इनफिल्ड पी-53 राइफल और वर्दी नहीं मिल सकी।
यदि आप सत्य के सच्चे साधक हैं तो आपको अपने जीवन में कम से कम एक बार जितना हो सके हर बात पर संदेह करना चाहिए।
रेने देकार्ते
शानदार निर्णय
Birth anniversary...and I salute dr. Hanniman sahab.
#व्यक्तित्व
मध्यप्रदेश और निमाड़ के महानतम क्रांतिकारी टंट्या भील।
इनका जन्म 1840 के आसपास खंडवा जिले की पंधाना तहसील के बड़दा गांव में हुआ था। अंग्रेजों के दमन और अत्याचार से तंग आकर भील समुदाय का नेतृत्व कर सरकारी खजाना लूटकर गरीबों में बांटना शुरू कर दिया। गुरिल्ला शैली में पंद्रह साल तक छापामार युद्ध किया और अनेक बार अंग्रेजों और होलकर स्टेट की जेल से फरार हुए। अंत में एक करीबी के धोखे से गिरफ्तार हुए, और इंदौर में रखा गया, बाद में 1889 में जबलपुर में फांसी हुई। रॉबिन हुड ऑफ इंडिया के नाम से न्यूयॉर्क टाइम्स में समाचार छपा था गिरफ्तारी के बाद।
पातालपानी के पास रेलवे लाइन के किनारे जहां उनकी लाश को फेंका गया, वहां समाधि बनाकर उनके लकड़ी के बुत रखे गए हैं, और पूरे इलाके के लिए यह पूज्यनीय स्थल है।
"विश्व के शैक्षिक इतिहास का ऐतिहासिक दस्तावेज"-अमरीका के सोलहवें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन का अपनें बेटे के शिक्षक को लिखा पत्र-
अब्राहम अमेरिका के राष्ट्रपति बन चुके थे उनका बचपन अत्यंत गरीबी में बीता था और बड़े संघर्ष के बाद उन्हें शिक्षा मिल पाई थी शिक्षा के प्रति उनकी इतनी गहरी रुचि थी कि किताबों की वे देवता की तरह पूजा करते थे,किताबों के लिए वे मजदूरी करते थे,वे कहते थे कि किताबों से ही सब कुछ है,वह मेरा सबसे बड़ा हितैषी है ,जो मुझे किताबें लाकर देता है,सभी पिताओं की भांति अब्राहम लिंकन भी चाहते थे कि उनके पुत्र को अच्छी शिक्षा मिले , उनका बच्चा अच्छी -अच्छी बातें सीखे ,उसे अच्छा वातावरण मिले वैसे तो लिंकन के चार पुत्र हुए , लेकिन उनमें से लंबी अवधि तक मात्र एक ही पुत्र जीवित रहा लिंकन स्कूली शिक्षा को बहुत महत्व देते थे और कहते थे कि स्कूली शिक्षा की नींव पर ही जीवन का महल खड़ा होता है,इसलिए वे अपने पुत्र के लिए अच्छी शिक्षा चाहते थे और यह नहीं चाहते थे कि उनके पुत्र के जीवन में वे कमियां रह जाएं,जो उनके बाल्यकाल में उन्हें झेलनी पड़ी थीं.
जब उनका पुत्र स्कूली ।शिक्षा प्राप्त कर रहा था ,तब लिंकन ने स्कूल के हेडमास्टर को पत्र लिखा कि उसके पुत्र को किस प्रकार की शिक्षा दी जाए और उसे भावी जीवन के लिए किस प्रकार तैयार किया जाए यह उस समय की बात है ,जब अब्राहम लिंकन राष्ट्रपति बनकर अमरीका के व्हाइट हाउस में रह रहे थे-तब का लिखा उनका ऐतिहासिक पत्र-जो उन्होंने अपने बेटे के शिक्षक को लिखा था-
प्रिय शिक्षक -
मैं जानता हूं और मानता हूँ कि उसे बहुत कुछ सीखना है कि जैसे हर व्यक्ति न तो सही होता है और न ही सच्चा दोस्त होता है ,नेक लोगों के विचार एक हों ,यह जरूरी भी नहीं,सिखा सकते हो , तो मेरे बेटे को सिखाओ कि कौन बुरा है और कौन अच्छा,बता सकते हो ,तो उसे बताना कि चालाक और विद्वान में अंतर क्या होता है ,जहां एक दुर्जन होता है , वहीं सज्जन भी होते हैं ,दुष्ट लोगों की सफलता का सच भी उसे बताना ,पर यह जरूर बताना कि बुरी यंत्रणा और आदर्श प्रेरणा देते हैं,सभी नेता स्वार्थी नहीं होते , समर्पित नेता भी होते हैं ,हालांकि ऐसे लोग कम ही होते हैं ,समाज में शत्रु और मित्र पहले से नहीं होते ,बनाने से बनते हैं ,कुरूप और स्वरूप दृष्टि के अनुरूप होते हैं बता सकते हो,तो उसे बताना कि करुणा पाने से बेहतर है, करुणा जताना ,कृपा से मिले बहुत सारे बेहतर से है ,मेहनत से थोड़ा -सा पाना,सिखा सकते हो, तो उसे सिखाना,कि हार के बाद भी मुस्कराना,बता सकते हो,तो उसे यह भी बताना कि ईर्ष्या और द्वेष प्रतियोगिता की भावना के प्रतिद्वंद्वी हैं,जितनी जल्दी हो उसे यह बताना कि दूसरों को आतंकित करने वाला दरअसल स्वयं ही आतंकित होता है, क्योंकि उसके मन में ही चोर होता है ,ऐसे लोगों को हटाना ,सबसे आसान होता है,उसे दिखा सको , तो दिखाना किताबों में खोया हुआ खजाना ,पर यह भी बताना कि दूसरे की लिखी किताब पढ़ने वालों से बेहतर है ,खुद किताब बन जाना,उसको इतना भी नहीं पढ़ाना कि भूल जाए वह अंतर्मन के गीत गुनगुनाना,उसको चिंता और चिंतन का समय देना ,ताकि वह जाने झरनों का निनाद ,मधुमक्खी का गुनगुनाना ,फूलों की महक ,चिड़ियों की चहक , तारों का टिमटिमाना हो सके ,तो उसे प्रकृति के नजदीक ले जाना,
उसे सिखा सको ,तो सिखाना शाति सफलता से बेहतर है, सिद्धांत के जोखिम उठाना,सत्य स्वतंत्र होता है और साहसी ही विनम्र होते हैं ,यूं तो रेंगते लोगों की भीड़ है ,पर नायक तो वही है , जिसकी मजबूत रीढ़ है,उसे सिखा सकते हो,तो सिखाना ,सदमे में मुस्कराना ,वेदना में गाना,लोगों की फब्तियों को मुस्कराकर सह जाना ,जानता हूं कि इसमें वक्त लगेगा अगर सिखा सकते हो ,तो यह भी सिखाना ,पढ़ाई में नकल करके पास होने के बजाय लाख गुना बेहतर है ,परीक्षा में फेल हो जाना,अपने बाहुबल और बुद्धि का संतुलन बनाना ,भले ही कोई गलत ठहराए,उसे सिखाना अपने विचारों पर भरोसा करना ,भलों के साथ भलाई और दुष्टों के साथ कड़ाई करना,जब हर कोई भीड़ का हिस्सा बनने को उतावला हो , आप कोशिश करना कि मेरे बेटे में इतना आत्मबल हो कि वह भीड़ से अलग चलने में सफल हो,उसे सभी की बातें सुनने की शिक्षा देना ,परंतु यह भी समझा देना कि वह फालतू बातों को भुला दे , झूठी बातों में से सच्चाई को निथार ले,उसे सिखाना कि भीड़ के सामने कैसे टिका जाता है , अगर वह सच्चा हो ,तो सच के लिए कैसे लड़ा जाता है,उसे प्यार से समझाना ,उसे छाती से न लगाए रहना ,क्योंकि मैं भी जानता हूं कि आग से तपकर ही सोना कुंदन बनता है,उसे यह भी सिखाना कि बहादुर बनने के लिए कितने धीरज की जरूरत होती है,अच्छा बनने के लिए खुद पर विश्वास की जरूरत होती है,उसे सिखाना इंसानियत पर विश्वास करना ,आमजन को प्यार करना , देश के लिए मिट जाना ,लेकिन उफ तक न करना,वैसे तो मेरा हर शिक्षक से यह अनुरोध है ,पर चाह लो,तुम तो कर सकते हो ,इसका मुझे बोध है,हर बच्चे का तुम्हारे साथ एक ही रिश्ता है ,समझ लो , हर बच्चा एक प्यारा सा फरिश्ता है,बेशक-आपसे ज्यदा उम्मीदें हैं,
पर जितना मुमकिन हो ,उतना ही करना ,वह सचमुच एक अच्छा बच्चा है ,वह मेरा प्यारा बेटा है-
अब्राहम लिंकन
राष्ट्रपति अमेरिका
' राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के इस पत्र को विश्व के शैक्षिक इतिहास के प्रमुख दस्तावेज का दर्जा प्राप्त है लिंकन का यह चाहना ,पुत्र के लिए पिता का तड़पना ,आज सभी पिताओं की चाहत बन गई है-
------मिशन अम्बेडकर.
https://www.facebook.com/missionambedkar1891/
जनता
मानसिक, सामाजिक एवं आर्थिक गुलामी से मुक्ति हमारा अंतिम उद्देश्य है
लगन, मेहनत और शिक्षा ही उपाय
"विश्व के शैक्षिक इतिहास का ऐतिहासिक दस्तावेज"-अमरीका के सोलहवें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन का अपनें बेटे के शिक्षक को लिखा पत्र-
अब्राहम अमेरिका के राष्ट्रपति बन चुके थे उनका बचपन अत्यंत गरीबी में बीता था और बड़े संघर्ष के बाद उन्हें शिक्षा मिल पाई थी शिक्षा के प्रति उनकी इतनी गहरी रुचि थी कि किताबों की वे देवता की तरह पूजा करते थे,किताबों के लिए वे मजदूरी करते थे,वे कहते थे कि किताबों से ही सब कुछ है,वह मेरा सबसे बड़ा हितैषी है ,जो मुझे किताबें लाकर देता है,सभी पिताओं की भांति अब्राहम लिंकन भी चाहते थे कि उनके पुत्र को अच्छी शिक्षा मिले , उनका बच्चा अच्छी -अच्छी बातें सीखे ,उसे अच्छा वातावरण मिले वैसे तो लिंकन के चार पुत्र हुए , लेकिन उनमें से लंबी अवधि तक मात्र एक ही पुत्र जीवित रहा लिंकन स्कूली शिक्षा को बहुत महत्व देते थे और कहते थे कि स्कूली शिक्षा की नींव पर ही जीवन का महल खड़ा होता है,इसलिए वे अपने पुत्र के लिए अच्छी शिक्षा चाहते थे और यह नहीं चाहते थे कि उनके पुत्र के जीवन में वे कमियां रह जाएं,जो उनके बाल्यकाल में उन्हें झेलनी पड़ी थीं.
जब उनका पुत्र स्कूली ।शिक्षा प्राप्त कर रहा था ,तब लिंकन ने स्कूल के हेडमास्टर को पत्र लिखा कि उसके पुत्र को किस प्रकार की शिक्षा दी जाए और उसे भावी जीवन के लिए किस प्रकार तैयार किया जाए यह उस समय की बात है ,जब अब्राहम लिंकन राष्ट्रपति बनकर अमरीका के व्हाइट हाउस में रह रहे थे-तब का लिखा उनका ऐतिहासिक पत्र-जो उन्होंने अपने बेटे के शिक्षक को लिखा था-
प्रिय शिक्षक -
मैं जानता हूं और मानता हूँ कि उसे बहुत कुछ सीखना है कि जैसे हर व्यक्ति न तो सही होता है और न ही सच्चा दोस्त होता है ,नेक लोगों के विचार एक हों ,यह जरूरी भी नहीं,सिखा सकते हो , तो मेरे बेटे को सिखाओ कि कौन बुरा है और कौन अच्छा,बता सकते हो ,तो उसे बताना कि चालाक और विद्वान में अंतर क्या होता है ,जहां एक दुर्जन होता है , वहीं सज्जन भी होते हैं ,दुष्ट लोगों की सफलता का सच भी उसे बताना ,पर यह जरूर बताना कि बुरी यंत्रणा और आदर्श प्रेरणा देते हैं,सभी नेता स्वार्थी नहीं होते , समर्पित नेता भी होते हैं ,हालांकि ऐसे लोग कम ही होते हैं ,समाज में शत्रु और मित्र पहले से नहीं होते ,बनाने से बनते हैं ,कुरूप और स्वरूप दृष्टि के अनुरूप होते हैं बता सकते हो,तो उसे बताना कि करुणा पाने से बेहतर है, करुणा जताना ,कृपा से मिले बहुत सारे बेहतर से है ,मेहनत से थोड़ा -सा पाना,सिखा सकते हो, तो उसे सिखाना,कि हार के बाद भी मुस्कराना,बता सकते हो,तो उसे यह भी बताना कि ईर्ष्या और द्वेष प्रतियोगिता की भावना के प्रतिद्वंद्वी हैं,जितनी जल्दी हो उसे यह बताना कि दूसरों को आतंकित करने वाला दरअसल स्वयं ही आतंकित होता है, क्योंकि उसके मन में ही चोर होता है ,ऐसे लोगों को हटाना ,सबसे आसान होता है,उसे दिखा सको , तो दिखाना किताबों में खोया हुआ खजाना ,पर यह भी बताना कि दूसरे की लिखी किताब पढ़ने वालों से बेहतर है ,खुद किताब बन जाना,उसको इतना भी नहीं पढ़ाना कि भूल जाए वह अंतर्मन के गीत गुनगुनाना,उसको चिंता और चिंतन का समय देना ,ताकि वह जाने झरनों का निनाद ,मधुमक्खी का गुनगुनाना ,फूलों की महक ,चिड़ियों की चहक , तारों का टिमटिमाना हो सके ,तो उसे प्रकृति के नजदीक ले जाना,
उसे सिखा सको ,तो सिखाना शाति सफलता से बेहतर है, सिद्धांत के जोखिम उठाना,सत्य स्वतंत्र होता है और साहसी ही विनम्र होते हैं ,यूं तो रेंगते लोगों की भीड़ है ,पर नायक तो वही है , जिसकी मजबूत रीढ़ है,उसे सिखा सकते हो,तो सिखाना ,सदमे में मुस्कराना ,वेदना में गाना,लोगों की फब्तियों को मुस्कराकर सह जाना ,जानता हूं कि इसमें वक्त लगेगा अगर सिखा सकते हो ,तो यह भी सिखाना ,पढ़ाई में नकल करके पास होने के बजाय लाख गुना बेहतर है ,परीक्षा में फेल हो जाना,अपने बाहुबल और बुद्धि का संतुलन बनाना ,भले ही कोई गलत ठहराए,उसे सिखाना अपने विचारों पर भरोसा करना ,भलों के साथ भलाई और दुष्टों के साथ कड़ाई करना,जब हर कोई भीड़ का हिस्सा बनने को उतावला हो , आप कोशिश करना कि मेरे बेटे में इतना आत्मबल हो कि वह भीड़ से अलग चलने में सफल हो,उसे सभी की बातें सुनने की शिक्षा देना ,परंतु यह भी समझा देना कि वह फालतू बातों को भुला दे , झूठी बातों में से सच्चाई को निथार ले,उसे सिखाना कि भीड़ के सामने कैसे टिका जाता है , अगर वह सच्चा हो ,तो सच के लिए कैसे लड़ा जाता है,उसे प्यार से समझाना ,उसे छाती से न लगाए रहना ,क्योंकि मैं भी जानता हूं कि आग से तपकर ही सोना कुंदन बनता है,उसे यह भी सिखाना कि बहादुर बनने के लिए कितने धीरज की जरूरत होती है,अच्छा बनने के लिए खुद पर विश्वास की जरूरत होती है,उसे सिखाना इंसानियत पर विश्वास करना ,आमजन को प्यार करना , देश के लिए मिट जाना ,लेकिन उफ तक न करना,वैसे तो मेरा हर शिक्षक से यह अनुरोध है ,पर चाह लो,तुम तो कर सकते हो ,इसका मुझे बोध है,हर बच्चे का तुम्हारे साथ एक ही रिश्ता है ,समझ लो , हर बच्चा एक प्यारा सा फरिश्ता है,बेशक-आपसे ज्यदा उम्मीदें हैं,
पर जितना मुमकिन हो ,उतना ही करना ,वह सचमुच एक अच्छा बच्चा है ,वह मेरा प्यारा बेटा है-
अब्राहम लिंकन
राष्ट्रपति अमेरिका
' राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के इस पत्र को विश्व के शैक्षिक इतिहास के प्रमुख दस्तावेज का दर्जा प्राप्त है लिंकन का यह चाहना ,पुत्र के लिए पिता का तड़पना ,आज सभी पिताओं की चाहत बन गई है-
------मिशन अम्बेडकर.
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कश्ती भी नहीं बदली दरिया भी नहीं बदला ,
हम डूबने वालों का जज्बा भी नहीं बदला ।
है शौक-ए सफर ऐसा एक उम्र है यारों ,
हमने मंजिल भी नहीं पाई और रास्ता भी नहीं बदला. Good morning friends 8707040905.
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