Astrologer Vishal Pareek
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भूमिगत पानी की टंकी कभी भी मूल ईशान कोण में नहीं होनी चाहिए।
आमतौर पर यह माना जाता है कि भूमिगत पानी की टंकी हमेशा ईशान कोण में होनी चाहिए। लेकिन वास्तु के वैदिक सिद्धांतों के अनुसार भूमिगत पानी की टंकी का ईशान कोण में होना शुभ नहीं होता है। इससे बृहस्पति की स्थिति खराब हो जाती है। इसलिए भूमिगत पानी को हमेशा उत्तर की तरफ बनाना चाहिए। इसके साथ यह भी जरूरी है इस टैंक का भूमि से बाहर का आयतन कभी भी 1 फीट से ज्यादा भूमि के बाहर नहीं होना चाहिए।
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नेगेटीव और पोजिटीव अगर ये दो शक्तियाँ किसी में बहुत बडे स्तर पर मौजूद हों तो फिर उससे शक्तिशाली इस संसार में और कोई नही होता क्यों की ये ईश्वरीय गुण हैं
सम्पूर्णता का यही अर्थ है ...जो ईश्वर प्रेममय होकर सृष्टि की रचना करते हैं वही क्रोध में आकर प्रलय रूप धारण कर सृष्टि का अंत भी कर देते हैं
अगर किसी भवन में भी इस तरहं के दोनों गुण मौजूद हों तो फिर उसमें निवास करने वाले लोगो से ज्यादा पावरफुल और कोई नही होता।
बकिंघम पैलेस (ब्रिटिश राजशाही का लंदन स्थित आधिकारिक निवास है) का दक्षिणी नैऋत्य कोण बढा हुआ है वास्तु शास्त्र के हिसाब से ऐसे घर मैं रहने वाले लोगों की प्रोपर्टी प्रतिष्ठा और धन की भूख इतनी ज्यादा बढ जाती है और वो इसको पाने के लिए इतने आक्रामक हो जाते हैं की नरसंहार करने से भी नही चूकते।
इसी के साथ इस पैलेस का ईशान कोण भी पहले नैऋत्य कोण से कई गुना ज्यादा बढा हुआ था मतलब नकारात्मक गुण के साथ में पोजिटिविटी ज्यादा थी जिसके फलस्वरूप ही इसमें रहने से अंग्रेज़ों ने अपने बल से पुरी दुनिया में राज किया था
सिर्फ भवन में वास्तु की इस विशेषता की वजह से उनके राज में कभी सुर्य अस्त नही होता था
पर 1913 में उन्होंने ईशान कोण में निर्माण करवाकर इस पोजिटिविटी को खत्म कर लिया जिसका परिणाम हमारे सामने हैं।
कोई भी साधारण व्यक्ति अगर अपने घर का निर्माण इस तरहं से कर ले तो वह अंग्रेज़ों की तरहं पूरे विश्व में सबसे ताक़तवर बन सकता है पर हमें अपने ही पूर्वजों के लिखे शास्त्रों पर भरोसा नही है और विदेशी उसको पढ़कर हमें अपना ग़ुलाम बना लेते हैं।
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बृहस्पति पर्वत पर अत्यधिक उभार शुभ नहीं माना जाता. ऐसे व्यक्ति जीवन में किसी न किसी बात से हमेशा परेशान होते रहते हैं.
हस्त रेखा के मुताबिक तर्जनी अंगुली के समीप या गुरु पर्वत पर क्रॉस का निशान हो तो ऐसे व्यक्ति बहुत कम उम्र से प्रेम प्रसंग में पड़ जाते हैं. लेकिन प्रेम संबंध लंबे समय तक नहीं चलते. जबकि गुरु पर्वत के मध्य में क्रॉस हो तो ऐसे व्यक्ति अपने जीवन के मध्यकाल में प्रेम प्रसंग में पड़ते हैं. साथ ही संबंध भी बहुत लंबा चलता है.
हथेली की हृदय रेखा, मस्तिष्क रेखा और जीवन रेखा को यदि कोई और रेखा नहीं काट रही हो तो समझ लीजिए कि ऐसे व्यक्ति के जीवन में किसी भी तरह का तनाव नहीं होगा. साथ ही ऐसे लोगों का व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन सुखद रहता है।
दशम भाव में गुरु शनि युति |
दशम भाव में गुरु शनि की युति सर्वश्रेष्ठ मानी गई है क्योंकि यह व्यक्ति को अनुशासित और समाजसेवी बनाती है।
ऐसे लोग समाज के लिए कुछ करने के इच्छुक होते हैं।
शनि कर्म कारक ग्रह है इसलिए जब वह कर्म के स्थान पर गुरु की शुभता के साथ बैठता है तो व्यक्ति सही रास्ते पर काम करता है तथा जीवन में मान सम्मान और उन्नति प्राप्त करता है।
ऐसे लोग न्याय प्रिय होते हैं तथा किसी के साथ गलत करने का विचार नहीं रखते।
ज्यादातर ऐसे लोग वकील, जज या मैजिस्ट्रेट के पद पर प्रतिष्ठित होते हैं।
यह कोई भी काम बड़े ही सलीके से करना पसंद करते हैं।
यह हो गई कारक तत्वों की बात अब आधिपत्य के बारे में भी बात करना महत्वपूर्ण है।
अगर तुला लग्न की कुंडली है जिसमें शनि सर्वथा कारक होते हैं और वह गुरु के साथ जो कि कष्टकारी होते हैं दशम भाव में युति बना कर बैठ जाएं तो यह श्रेष्ठ परिणाम नहीं देगा।
यहां पर बैठा गुरु आपके कर्म में बाधा उत्पन्न करेगा साथ ही साथ जैसे ही आप कर्म करने जाएंगे आपको शत्रुओं का सामना करना पड़ेगा।
शनि और गुरु की दशम भाव में युति आपके पढ़ाई लिखाई में भी बाधा उत्पन्न कर सकती है।
आप कर्मठ और जुझारू तो होंगे लेकिन इस युति के कारण आपको अपनी मेहनत का भरपूर परिणाम नहीं मिलेगा।
जिस प्रकार हमने देखा कि तुला लग्न में शनि सर्वथा कारक होते हैं लेकिन गुरु तीसरे और छठे घर के स्वामी होने के कारण शनि की शुभता में कमी ला रहे हैं।
अगर दशम में गुरु शनि की युति हो तो व्यक्ति जैसे ही कर्म करता है वैसे ही उसके शत्रु बढ़ते जाते हैं। तो यह शनि और गुरु की युति का नुकसान भी है।
कुंडली में शनि और गुरु दशम भाव में बैठे हैं और वह आपके कर्म में बाधा बन रहे हैं तो सबसे पहले आपको यह देखना होगा कि इन दोनों ग्रहों में से आपकी कुंडली में कौन सा ग्रह लाभदायक है और कौन सा बाधक।
अगर आपकी कुंडली में शनि बाधक है तो आपके शनि की चीजों का दान करना चाहिए।
गरीबों की सेवा करिए और असहाय लोगों की सदैव मदद करिए जिससे आपके शनि देव बुरे परिणाम देना कम कर देंगे।
अगर कुंडली में गुरु बाधक बने हुए हैं तो निश्चित तौर पर गुरु के मंत्र का जप करना चाहिए और गुरु के चीजों का दान करना चाहिए साथ ही साथ कभी भी अपने गुरु का अपमान ना करें और पिता का भी सदैव सम्मान करें।
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