सच्चा सौदा रूहानी सत्संग मताना

सच्चा सौदा रूहानी सत्संग मताना

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धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा
बोलो जिन्दाराम तेरा ही आसरा

01/06/2023

एक बार संत रविदास जी को राजा ने भोजन पर आमंत्रित किया और कहा कि भक्त जी अगर आप हमारे यहां भोजन पर पधारे तो आपकी बड़ी कृपा होगी | संत रविदास जी राजी हो गए और भोजन पर चले गए | परन्तु जाकर देखा तो वहां बड़े-बड़े पंडित, मौलवी, काजी जो अपने आप को ज्ञानी, ध्यानी समझते थे सब भोजन पर आये हुए थे | भोजन परोसने का समय हुआ तब उन्होंने संत रविदास जी को देखा तो उठ खड़े हुए बोले कि हम एक शूद्र के साथ बैठ कर भोजन करेंगे ? क्या हमारा धर्म भ्रस्त नहीं हो जागेगा ?

राजा से कहने लगे कि हम एक शूद्र के साथ बैठक भोजन नहीं कर सकते | राजा की विनती करने पर भी नहीं माने | आखिर में संत रविदास जी बोल पड़े ! नहीं राजन कोई बात नहीं है हम इनके बाद में भोजन कर लेंगे | संत रविदास जी जूते सिलने का काम करते थे वे एकांत में उनके जूतों को साफ करने में लग गए और इधर सब ने भोजन करना सुरु कर दिया |

फिर क्या था !
आश्चर्य हुआ कि जितने भी भोजन पर आये हुए थे उनके साथ रविदास जी खाना खा रहे थे | यह देख कर सब हैरान थे ! कि जिसको देखे उसी के साथ रविदास जी बैठे है | सब एक दूसरे को देख कर हंस रहे थे कि तेरे साथ शूद्र रविदास भोजन कर रहा है | राजा के साथ भी ऐसा ही हुआ उनके साथ भी रविदास जी भोजन करते दिखाई दिए |

यह सब देख कर राजा भी संत रविदास जी का मुरीद हो गया और सब पंडित, मौलवी, काजी बहुत लज्जित हुए और संत रविदास जी के चरणों में गिर कर दण्डवत प्रणाम किया और अपनी भूल की क्षमा मांगी | संत रविदास जी ने यह रूहानी खेल धर्म के ठेकेदारों का भर्म मेटने के लिए किया था |

इसलिए कहा है कि :

जाती नै पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान |
मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो म्यान ||

जो संतो के खेल को समझ गया समझो बेडा पार हो गया | ये जाती-पाती, धर्म मजहब ये सब एक ढोंग व दिखावा है | सभी जीव इस काल के चक्करव्यूह में फंसे हुए है जिनको पूर्ण संत सतगुरु मिल गया वो इस काल के चक्करव्यूह से बाहर निकल कर अपने निज घर परम धाम को चले गए | जो जीव जाती-पांती, धर्म-मजहब, ऊंच-नीच से बाहर नहीं निकल पाये वो काल का ग्रास बनते चले गए अर्थात उन्हे चौरासी की मार पड़ती रही |

जिसने अपने मन को जीत लिया ! मानो उसका मृतलोक में आना सार्थक हो गया | रविदास जी कहते है कि ये मनुष्य चौला सतगुरु भक्ति के लिए मिला है लेकिन काल माया ने जीव के भरम का पर्दा लगा रखा है इसी कारण यह जीव जन्मता मरता रहता है | जिस सतगुरु (परमात्मा) को ये जीव बाहर ढूंढता रहता है अगर उसे अपने अंदर खोजे तो जरूर मिलेगा | संत रविदास जी उच्च कोटि के संत थे |

|| धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा ||

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