Abhay yaduvanshi
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Mishrikh
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Village Saiyadpur Post Gurdhapa
Hargaon
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दुश्मनों को घाव देना और मूछों को ताव देना,
हम यादवो की पुरानी आदत है़।।।
अकेलेपन ने बिगाड़ी है आदतें मेरी,
तुम लौट आऔ तो मुमकिन है सुधर जाऊँ मैं..!!
जिम्मेदारी पूरी करते करते,
कुछ ख्वाहिशें अधूरी रह जाती है..!
वो चंद लम्हे जो गुज़रे है तेरे साथ,
ना जाने कितने बरस मेरे काम आएंगे..!!
लौट कर फिर तेरी चौखट नही आऊंगा,
एक ही पत्थर से बार बार ठोकर नही खाऊंगा..!!
#तेराइंतज़ार
तेरे जायके से लेकर ,
तेरी बेचैनी तक,
कौन है जो पढ़ सकता था,
बता कौन करता तुझसे इश्क़ इतना,
मुझ से ज्यादा,
कौन तेरे बारे में लिख सकता था..?
मेरी तमन्ना मेरा एतबार नही करती ,
वो प्यार से बात करती है बस, प्यार नही करती ।
वो इतनी दूर रहने वाला शख्स
टकराया भी तो सीधा दिल से !!
कुछ दरवाजे कभी बंद नहीं होते,
बस हम खटखटाना छोड़ देते हैं।💯
वे लड़के जो बहुत से बेहतर काम कर सकते हैं, प्यार कर बैठते हैं और ख़त्म हो जाते हैं...❤️🌻
उसे शायद मैं ये बता ना पाया, की मैं उसका दीवाना था।"
Atitude
#मिलकर_सबसे_रहो_लेकिन_
िसी_से_नही
ना कागज था. ना कलम थी,
ना फोन था...!!! ❤️🌹
प्रेम तब भी था...
लेकिन पवित्र और मौन था..!❤️🌹
़हर____❤️❤️
बिना चाबी के स्टार्ट करि गाड़ी.
Description
कुछ ऐसी ही शब थी वो आख़िर मुलाक़ात की
न हमने पलकें उठाई न तुमने ही कुछ बात की।।
बड़े गुस्से से मैं घर से चला आया!!
इतना गुस्सा था की गलती से पापा के ही जूते पहन के निकल गया ।मैं आज बस घर छोड़ दूंगा, और तभी लौटूंगा जब बहुत बड़ा आदमी बन जाऊंगा।जब मोटर साइकिल नहीं दिलवा सकते थे, तो क्यूँ इंजीनियर बनाने के सपने देखतें है??
आज मैं पापा का पर्स भी उठा लाया था।जिसे किसी को हाथ तक न लगाने देते थे।मुझे पता है इस पर्स मैं जरुर पैसो के हिसाब की डायरी होगी।पता तो चले कितना माल छुपाया है।माँ से भी।इसीलिए हाथ नहीं लगाने देते किसी को।
जैसे ही मैं कच्चे रास्ते से सड़क पर आया, मुझे लगा जूतों में कुछ चुभ रहा है।मैंने जूता निकाल कर देखा,मेरी एड़ी से थोडा सा खून रिस आया था।जूते की कोई कील निकली हुयी थी, दर्द तो हुआ पर गुस्सा बहुत था।और मुझे जाना ही था घर छोड़कर जैसे ही कुछ दूर चला ।।मुझे पांवो में गिला गिला लगा, सड़क पर पानी बिखरा पड़ा था।पाँव उठा के देखा तो जूते का तला टुटा था।जैसे तेसे लंगडाकर बस स्टॉप पहुंचा, पता चला एक घंटे तक कोई बस नहीं थी।
मैंने सोचा क्यों न पर्स की तलाशी ली जाये।मैंने पर्स खोला, एक पर्ची दिखाई दी, लिखा था,लैपटॉप के लिए 40 हजार उधार लिए।पर लैपटॉप तो घर मैं मेरे पास है ?
दूसरा एक मुड़ा हुआ पन्ना देखा, उसमे उनके ऑफिस की किसी हॉबी डे का लिखा था।उन्होंने हॉबी लिखी अच्छे जूते पहनना,ओह,अच्छे जुते पहनना ???
पर उनके जुते तो!!!!
माँ पिछले चार महीने से हर पहली को कहती है नए जुते ले लो और वे हर बार कहते "अभी तो 6 महीने जूते और चलेंगे .."मैं अब समझा कितने चलेंगे।तीसरी पर्ची पुराना स्कूटर दीजिये एक्सचेंज में नयी मोटर साइकिल ले जाइये पढ़ते ही दिमाग घूम गया।पापा का स्कूटर
ओह्ह्ह्ह
मैं घर की और भागा।अब पांवो में वो कील नही चुभ रही थी।मैं घर पहुंचा,न पापा थे न स्कूटर ।ओह्ह्ह नही
मैं समझ गया कहाँ गए!
मैं दौड़ा और एजेंसी पर पहुंचा......
पापा वहीँ थे।मैंने उनको गले से लगा लिया, और आंसुओ से उनका कन्धा भिगो दिया।नहीं...पापा नहीं........ मुझे नहीं चाहिए मोटर साइकिल।
बस आप नए जुते ले लो और मुझे अब बड़ा आदमी बनना है।वो भी आपके तरीके से।।
"माँ" एक ऐसी बैंक है जहाँ आप हर भावना और दुख जमा कर सकते है...
और
"पापा" एक ऐसा क्रेडिट कार्ड है जिनके पास बैलेंस न होते हुए भी हमारे सपने पूरे करने की कोशिश करते है...
Always Love Your Parents💕
बड़ी धारदार और बेरहम सी है उसकी यादें,
आज भी जब भी आती है रूला के ही जाती है
वो घर से निकली हमसे मिलने की आस लेकर
हम मिले इत्तिफाक से साईकिल पे घास लेकर ll
#गरीबी
✍️
भारत का एक पुल जिसका आज तक नहीं हुआ है उद्घाटन, बिना किसी पिलर के खड़ा ये ब्रिज बेजोड़ है!
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