Abhishek Dass Official

जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा ।
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा।।

03/06/2024

जो शिष्य गुरु की आज्ञा को अनदेखा करता है। वह पीढ़ी सहित नरक में गिरता है अर्थात् पूरे वंश को डुबो देता है।

03/06/2024

( के आगे पढिए.....)
📖📖📖


हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 502

◆ पारख के अंग की वाणी नं. 1206 :-
गरीब, पीतांबर कूं पारि करि, द्रौपदी दिन्ही लीर।
अंधेकू कोपीन कसि, धनी कबीर बधाये चीर।।1206।।

◆ सरलार्थ :- द्रोपदी ने अपनी साड़ी के कपड़े में से कपड़े का टुकड़ा (लीर) अंधे महात्मा को दान किया था। अंधे महात्मा ने कोपीन कसकर बांधी। धन्य हुआ। धनी कबीर सबके मालिक कबीर जी ने द्रोपदी का चीर बढ़ाया। द्रोपदी कोपीन दान करके आशीर्वाद लेकर अपने नगर में चली गई।

◆ आदि पुराण के अंग की वाणी नं. 509-521 :-
दुर्योधन राजा जहां बोले, द्रौपदी नग्न करौ पट ओले।
द्रौपदी तुंही तुंही करि टेरी, राखौ लाज मुरारी मेरी।।509।।
बिदुर कहै ये बंधू थारा, एकै कुल एकै परिवारा।
बिदुर के मुख लग्या थपेरा, तूं तौ पंडौं का है चेरा।।510।।
तूं तौ है दासी का जाया, भीष्म द्रोण कर्ण मुसकाया।
दुःशासन भरि हैं गल बांही, द्रौपदी ध्यान धर्या पद मांही।।511।।
गरीब, द्रौपदी टेरी ध्यान धरि, सुनौ पुरुष रघुबीर।
दुःशासन थाके जबै, अनंत कोटि भये चीर।।512।।
प्रियतम पूरण ब्रह्म बिनानी, मेरी लाज रखो प्रवानी।
गज ग्राह के तारन हारे, बिल्ली के सुत अग्नि उबारे।।513।।
प्रहलाद भक्त किये प्रवाना, नृसिंह रूप धर्या बिधि नाना।
पापी अधम को तारन हारे, मैं बांदी हूं पंच भर्तारे।।514।।
द्रौपदी टेर सुनी प्रवाना, द्रौपदी है कैलास समाना।
जैसैं अडिग अडोलं खंभा, ध्यान धर्या है पिंड हुरंभा।।515।।
रूक्मणि कर पकर्या मुसकाई, अनंत कहा मो कूं समझाई।
दुःशासन कूं द्रौपदी पकरी, मेरी भक्ति सकलमें सिखरी।।516।।
जो मेरी भक्ति पंछोंडी होई, हमरा नाम न लेवै कोई।
तन देही सें पासा डारी, पौंहचे सूक्ष्म रूप मुरारी।।517।।
द्रुपद सुता के चीर बढाये, संख असंखौं पार न पाये।
खैंचत खैंचत खैंचि कसीसा, शिरपर बैठे हैं जगदीशा।।518।।
संखों चीर पितंबर झीनें, द्रौपदी कारण साहिब कीनें।
संखों चीर पीतंबर डारे, दुःशासन से योधा हारे।।519।।
गरीब, पंडौं सेती द्रोह करि, गये इकोतर बीर।
भीष्म द्रोण कर्ण कै, शीश चढी तकसीर।।520।।
भीष्म द्रोण कर्ण कुल द्रोहा, पंडौं सेती पकर्या लोहा।
दुर्योधन की संग्या कीन्हीं, बासुदेव की कल्प न चीन्ही।।521।।

क्रमशः_____
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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02/06/2024
02/06/2024
02/06/2024

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हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 500-501

◆ अपनी वित्तीय स्थिति के अनुसार सच्चे मन से दान किया जाए, वह वास्तव दान फलता है। (टोपी) सिर पर पहनने वाला सर्दी से बचाने वाला टोपा दान ही किया जाए।
यदि अधिक दान करने का सामर्थ्य नहीं है तो यही फल देगा। (कोपी) कोपीन जो साधु लंगोट (कटिवस्त्र) पहनते हैं जो छः इंच चौड़ा तीन फुट लंबा कपड़े का टुकड़ा होता है। यदि
अधिक दान करने का सामर्थ्य नहीं है तो सच्ची श्रद्धा से इतना भी दान लाभ देगा। एक बार दान करना शुरू करें। परमात्मा बरकत (लाभ) देने लगेगा। फिर दान की मात्रा बढ़ाते जाएँ। बताया है कि जब पाण्डवों को श्राप देने ऋषि दुर्वासा अठासी हजार ऋषियों की सेना लेकर गया। तब पाण्डव जंगल में तेरह वर्ष का वनवास काट रहे थे। उस समय परमात्मा श्री कृष्ण रूप में पाण्डवों के पास गए। एक साग का पत्ता ही दान किया गया था। उसी से अठासी हजार ऋषि तृप्त हो गए थे। इससे लघु दान और क्या हो सकता है? जितना घर पर बचा था, सब दान कर दिया। ऐसा दान जो सच्चे और समर्पण भाव से किया जाता है,
पूरा लाभ देता है।(1205)
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 1206 :-
गरीब, पीतांबर कूं पारि करि, द्रौपदी दिन्ही लीर।
अंधेकू कोपीन कसि, धनी कबीर बधाये चीर।।1206।।
◆ आदि पुराण के अंग की वाणी नं. 503-508 :-
द्रौपदी न्हान चली है गंगा, सहंस सुहेली कै सत्संगा।
द्रौपदी गंग किया अस्नाना, धूपदीप दे कीना ध्याना।।503।।
अंधरे की कोपीन बहाई, ढूंढत बेर लगी रे भाई।
औघट घाट द्रौपदी मेला, देख्या अंधरे का सब खेला।।504।।
चीर फारि कोपीन बहाई, द्रौपदी अधंरे आगै ल्याई।
एक तो बही गंग की धारा, दूजैं और करी जहां त्यारा।।505।।
पांच सात कोपीन बहाई, द्रौपदी मुख सें बोलत नाहीं।
लकड़ी कै जब दिया लपेटा, अंधरे सेती हो गई भेटा।।506।।
चीर फारि पीतंबर डार्या, द्रौपदी चाली नगर मंझारा।
दुःशासन योधा महमंता, दश सहंस रापति बलवंता।।507।।
गरीब, नगन अंधरे कूं दिये, द्रौपदी चीर उतार।
कोटि सहंस हो गये, दुःशासन की बार।।508।।

◆ पारख के अंग की वाणी नं. 1206 तथा आदि पुराण की वाणी नं. 503-508 का
◆सरलार्थ :- राजा द्रोपद की बेटी कृष्णा उर्फ द्रोपदी अपने पिता के घर पर कंवारी थी। उस नगर के साथ एक नदी बहती थी। राजा द्रोपद ने उस नहर के ऊपर अपनी रानियों तथा बेटी के स्नान के लिए एक पक्का घाट बनवा रखा था। उस घाट के आसपास कोई नर नही जा सकता था यानि उस घाट के आसपास नर का जाना वर्जित था। द्रोपदी प्रतिदिन नगर की सैंकड़ों सहेलियों को साथ लेकर स्नान करने जाती थी।
◆ एक सुबह एक अंधा साधु गलती से उस ओर स्नान करने चला गया। उसे पता नहीं था कि यहाँ आसपास कोई जनाना घाट भी है। उस घाट के नीचे की ओर जिस ओर जल बहकर जा रहा था (कवूदेजतमंउ), घाट से लगभग दो सौ फुट की दूरी पर स्नान करने
लगा। उसके पास केवल एक कोपीन थी। (कोपीन एक कटिवस्त्र होता है जो छः इंच चौड़ा तथा दो-तीन फुट लंबा कपड़े का टुकड़ा है जिसे लंगोट भी कहते हैं।) दरिया में स्नान करते
समय कोपीन पानी में बह गई। उसी समय द्रोपदी अपनी हजारों सहेलियों के साथ दरिया में स्नान करने के लिए वहाँ घाट पर पहुँच गई। बालिकाओं की आवाज सुनकर अंधे साधु को समझते देर नहीं लगी कि मैं किसी जनाना घाट के पास पहुँचा हूँ। उस समय साधु नग्न हो गया था। शर्म के मारे दरिया के अंदर छाती तक गहरे जल में चला गया तथा पानी पर
हाथ मारने लगा कि हो सकता है कोई फटा-पुराना कपड़ा जल में बहता हुआ आ जाए।
द्रोपदी भक्ति के संस्कारों युक्त थी। साधु को देखकर खुशी हुई कि साधु स्नान कर रहा है। हम भी स्नान कर लेते हैं। फिर साधु से परमात्मा की चर्चा सुनूँगी। आशीर्वाद लूँगी। आधा
घंटा स्नान करके द्रोपदी घाट से बाहर आई और साधु को देखा कि कहीं चला न गया हो।
साधु स्नान ही नहीं कर रहा था। कुछ खोज रहा था। द्रोपदी ने विचार किया। ध्यान लगाकर देखा तो पता चला कि साधु नंगा है। बाहर पटरी पर भी कोई कपड़ा नहीं है। द्रोपदी समझ
गई कि साधु की कोपीन पानी में बह गई है। उसे यह भी ध्यान था कि यदि साधु के निकट जाकर बोलूंगी तो लड़की की आवाज सुनकर जल में और आगे भी जा सकता है। दरिया
का तेज बहाव है, साधु मर जाएगा। लड़की ने अपनी स्वच्छ नई साड़ी जो प्रतिदिन बदलकर पहनती थी। राजा की लड़की थी। प्रतिदिन नई साड़ी पहनती थी। पुरानी दासियों
(नौकरानियों) को देती थी। अपनी साड़ी से एक नौ इंच चौड़ा टुकड़ा साड़ी की चौड़ाई जितना लम्बा फाड़ा। जल में कोपीन के लिए छोड़ दिया। अंधा होने के कारण साधु देख नहीं पा रहा था। जिस कारण से कपड़े का टुकड़ा साथ से निकल जाता। लगभग सात
टुकड़ी द्रोपदी देवी ने निःस्वार्थ फाड़कर साधु के लिए बहा दिए। परंतु बात नहीं बनी। फिर लड़की ने एक लंबी लकड़ी खोजी। उसके एक सिरे पर कोपीन के लिए कपड़ा फाड़कर लपेटा। अंधे साधु के हाथों से छू दिया। बाबा कपड़ा बहता आने की आशा में बार-बार हाथ
पानी पर चला रहा था। साधु के हाथों पर कपड़ा लगा। तुरंत मजबूती से पकड़ लिया। अंधे के हाथ आँखों का कार्य करते हैं। संत को समझते देर नहीं लगी कि यह किसी बेटी की साड़ी
का कपड़ा है। मेरी समस्या को समझकर पानी में डाला गया है। वह आसपास ही होगी। महात्मा ने कोपीन पर्दे पर बाँधी तथा भरे कण्ठ से भावुक होकर बोला कि बेटी! महा उपकार
मेरे पर किया है। आज आपने मेरी इज्जत रखी है। मैं नंगा बाहर जाता, शर्म लगती या दरिया में ही मर जाता। हे देवी! परमात्मा तेरी इज्जत रखे। तेरे को अनंत गुना चीर परमात्मा देवे।
(साधु बोले सहज स्वभाव, साधु का बोला मिथ्या न जावै।
देते को हरि देत हैं, जहाँ तहाँ से आन। अनदेवा माँगत फिरे, साहेब सुने ना कान।।)

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01/06/2024
01/06/2024
01/06/2024
31/05/2024
30/05/2024
30/05/2024
30/05/2024

With SA News Madhya Pradesh – I just got recognized as one of their top fans! 🎉

30/05/2024

30/05/2024

Next Pandemic: अगली महामारी से मुकाबला करने को हो जाएं तैयार ! वैज्ञानिक ने दी चेतावनी, कहा- इस प्रकोप को रोक पाना असंभव I

एक बार फिर दुनिया में महामारी का सामना करने के लिए लोगों को तैयार होने की जरूरत पड़ गई। अपने हेल्थ पर प्राथमिकता से ध्यान देना आवश्यकता हो गया है। जानकारी के मुताबिक दुनिया जल्द ही एक और महामारी का सामना करने जा रही है, जिसे रोक पाना वैज्ञानिकों के लिए भी असंभव हो गया है। बता दें कि मीडिया रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटिश सरकार के पूर्व मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार पैट्रिक वालेंस ने चेतावनी दी है। उन्होंने जानकारी दी कि आने वाली एक और महामारी रोकना तकरीबन नामुमकिन है।

पैट्रिक वालेंस ने दी चेतावनी : वालेंस ने कहा कि ये सही समय है जब देश में चुनाव चल रहे हैं। चुनाव में महामारी के खतरे को मुद्दा बनाया जाना जरूरी है। उन्होंने चुनाव के बाद आने वाली सरकार को महामारी की स्थिति में तेज डायग्नोस्टिक टेस्ट, जल्दी वैक्सीन उपलब्ध कराने जैसी चीजों पर काम करने की सलाह दी है।

वालेंस ने 2021 में G7 देशों के नेताओं की बैठक में कहा था कि महामारी के खिलाफ एकजुट होने की जरूरत है। इसके लिए हमें रैपिड डायग्नोस्टिक टेस्ट, रैपिड वैक्सीन और रैपिड ट्रीटमेंट करने होंगे ताकि खतरे को कम किया जा सके।

वालेंस ने अफसोस जताते हुए कहा कि 2023 तक G7 ने उनकी सलाह को भुला दिया। उन्होंने कहा कि यदि G7 या फिर G20 देशों के एजेंडे से महामारी का मुद्दा हटा दिया जाता है तो फिर स्थिति पहले जैसी हो सकती है। उन्होंने कहा कि महामारी से युद्ध की तरह ही निपटा जाना चाहिए।

हमारे पास एक सेना है। ये इसलिए नहीं है कि इस साल युद्ध होने वाला है। बल्कि हम जानते हैं कि एक राष्ट्र के होने के लिए ये एक जरूरी चीज है। ठीक इसी तरह से हमें महामारी को भी देखना चाहिए। हमें भी इससे निपटने के लिए हमेशा तैयारी रखनी चाहिए।

30/05/2024

जो जन गुरु की निंदा करई। सूकर श्वान गरभमें परई।।
गुरु की निंदा सुने जो काना। ताको निश्चय नरक निदाना।।
अपने मुख निंदा जो करई। परिवार सहित नर्क में पड़ही।।
सरलार्थ:- जो शिष्य गुरु जी की निन्दा करता है, उसकी भक्ति समाप्त हो जाती है। फिर शुकर (सूअर) तथा श्वान (कुत्ते) के जन्म प्राप्त करता है। जो शिष्य गुरु जी की निन्दा अपने कानों से सुनता है उसको नरक प्राप्ति होती है, यह निश्चय कर मानें। जो शिष्य होकर अपने मुख से गुरु जी की निन्दा करता है तो वह पूरे परिवार सहित नरक में गिरता है।

30/05/2024

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हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 494-495

◆ एक रात्रि को स्वपन में बाबा जिंदा तैमूरलंग को दिखाई दिया और बोला कि जिस लुहार के अहरण पर शाम को नौकरी करता है, उसके नीचे खजाना है। तू उस स्थान को मोल ले ले। मैं उस लुहार के मन में बेचने की प्रेरणा कर दूँगा। दो महीने की उधार कह
देना। तैमूरलंग ने अपना सपना अपनी माता जी को बताया। जो-जो बात परमात्मा से हुई थी, माता जी को बताई। माता जी ने कहा, बेटा! बाबा जी मुझे भी आज रात्रि में स्वपन में
दिखाई दिए थे। कुछ कह रहे थे, मुझे स्पष्ट नहीं सुनाई दिया। माता ने कहा कि बाबा जी की बात सच्ची है तो बेटा धन्य हो जाएँगे। तू जा, अहरण वाले से बात कर।
अहरण वाले के मन में कई दिन से प्रबल प्रेरणा हो रही थी कि यह स्थान कम पड़ गया है। मेरी दूसरी जगह जमीन बड़ी है। इसे कोई उधार भी ले ले तो दे दूँगा। मैं अपने बड़े प्लाट में अहरण लगा लूँगा।
तैमूरलंग अहरण वाले मालिक के पास गया और वर्तमान अहरण वाली जगह को उधार लेने की प्रार्थना की। अहरण वाला बोला कि बात पक्की करना। जो समय रूपये देने का रखा जाएगा, उस समय रूपये देने होंगे। तैमूरलंग ने कहा कि दो-तीन महीने में रूपये दे दूँगा। अहरण वाला तो एक वर्ष तक उधार पर देने को तैयार था। बात पक्की हो गई। तीसरे दिन अहरण वाली जगह खाली कर दी गई। तैमूरलंग ने अपनी माता जी के सहयोग से उस जगह की मिट्टी के डलों की चारदिवारी बनाई। वहाँ पर झोंपड़ी डाल ली। रात्रि
में खुदाई की तो खजाना मिला। अहरण वाला पुराना अहरण भी उसे दे गया। उसके कुछ रूपये ले लिए। स्वयं नया अहरण ले आया। परमात्मा स्वपन में फिर तैमूरलंग को दिखाई
दिए तथा कहा कि बेटा! खजाने से थोड़ा-थोड़ा धन निकालना। उससे एक-दो घोड़ा लेना। उन्हें मंहगे-सस्ते, लाभ-हानि में जैसे भी बिके, बेच देना। फिर कई घोड़े लाना, उन्हें बेच
आना। जनता समझेगी कि तैमूरलंग का व्यापार अच्छा चल गया। तैमूरलंग ने वैसे ही किया। छः महीने में अलग से जमीन मोल ले ली। पहले भेड़-बकरियाँ खरीदी, बेची। फिर
सैंकड़ों घोड़े वहाँ बाँध लिए। उन्हें बेचने ले जाता, और ले आता। गाँव के नौजवान लड़के नौकर रख लिए। बड़ा मकान बना लिया। तैमूरलंग को वह घटना रह-रहकर कचोट रही थी कि यदि मैं राजा बन गया तो सर्वप्रथम उस अपराधी बेशर्म राजा को मारूँगा जिसने मेरे गाँव की इज्जत लूटी थी। जवान लड़की को उसके सैनिक बलपूर्वक उठाकर ले गए थे। अब तैमूरलंग के साथ धन था। जंगल में वर्कशॉप बनाई। लुहार कारीगर था, स्वयं तलवार बनाने लगा। गाँव के नौजवान व्यक्तियों को अपना उद्देश्य बताया कि उस राजा को सबक
सिखाना है जिसने अपने गाँव की बेटी की इज्जत लूटी है। मैं सेना तैयार करूँगा। जो सेना में भर्ती होना चाहे, उसे एक रूपया तनख्वाह दूँगा। उस समय एक रूपया चाँदी का बहुत
होता था। जवान लड़के सैंकड़ों तैयार हो गए। वे अपने रिश्तेदारों को ले आए। इस प्रकार बड़ी सेना तैयार की। लुहार कारीगर तनख्वाह पर रखे। तलवार-ढ़ाल तैयार करके उस राजा पर धावा बोल दिया। उसे अपने आधीन कर लिया। उसका राज्य छीन लिया। उसको मारा नहीं, अलग गाँव में भेज दिया। उसके निर्वाह के लिए महीना देने लगा। धीरे-धीरे तैमूरलंग ने इराक, ईरान, तुर्किस्तान पर कब्जा कर लिया। फिर भारत पर भी अपना शासन जमा लिया। दिल्ली के राजा ने उसकी पराधीनता (गुलामी) स्वीकार नहीं की, उसे मार भगाया। उसके स्थान पर बरेली के नवाब को दिल्ली का वायसराय बना दिया जो तैमूरलंग
का गुलाम रहा। उसे प्रति छः महीने फसल कटने पर कर देकर आता था। तैमूरलंग की मृत्यु के पश्चात् दिल्ली के वायसराय ने कर देना बंद कर दिया। स्वयं स्वतंत्रा शासक बन गया। तैमूरलंग का पुत्र दिल्ली का राज्य लेना चाहता था तो उसे नहीं दिया। बाबर
तैमूरलंग का तीसरा पोता था। उसने बार-बार युद्ध करके अप्रैल सन् 1526 में भारत का राज्य प्राप्त कर लिया। बाबर का पुत्र हमायूं था। हमायूं का अकबर, अकबर का जहांगीर,
जहांगीर का शाहजहां, शाहजहां का पुत्र औरंगजेब हुआ। सात पीढियों ने भारत पर राज्य किया। इतिहास गवाह है। फिर औरंगजेब के बाद राज्य टुकड़ों में बँट गया। अन्नदेव की आरती में भी संत गरीबदास जी ने कहा है कि :-
रोटी तैमूरलंग कूं दिन्ही, तातें सात पादशाही लिन्हीं।।
तैमूरलंग को परमात्मा उसी जिंदा वाले वेश में फिर मिले जब वह अस्सी (80) वर्ष का हो गया था। शिकार करने गया था, राजा था। तब उसको समझाया कि भक्ति कर राजा, नहीं तो (दोजख) नरक में गिरेगा। भूल गया वो दिन जब एक रोटी ही घर पर थी। उस
समय तैमूरलंग बाबा के चरणों में गिर गया। दीक्षा ली। राज्य पुत्रा को दे दिया। दस वर्ष और जीवित रहा। वह आत्मा जन्म-मरण में है। परंतु भक्ति का बीज पड़ गया है। यदि उस
निर्धनता में भक्ति करने को कहता तो नहीं मानना था। परमात्मा कबीर जी ही जानते हैं कि काल की जकड़ से कैसे जीव को निकाला जा सकता है।
वाणी नं. 1180 का सरलार्थ :- धर्म (मजहब) कोई भी है, जो उसके प्रवर्तक होते हैं, वे साफ-सुथरे (स्वच्छ) व्यवहार के होते हैं। धर्म-कर्म करने वाले, परमात्मा से डरने वाले होते
हैं। बाद में केवल दिखावा रह जाता है। इसका ध्यान देकर देखा जा सकता है। यही होता है। इस बात में कोई अंतर नहीं है। सतगुरू फिर से धर्म को सुधारता है। सत्य साधना पर लगाता है।

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30/05/2024
29/05/2024
Way of Living Audiobook by Sant Rampal Ji Maharaj | Episode- 15 | जीने की राह 29/05/2024

Way of Living Audiobook by Sant Rampal Ji Maharaj | Episode- 15 | जीने की राह Way of Living Audiobook by Sant Rampal Ji Maharaj | Episode- 15 | जीने की राह_________________________________________संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा प्रा...

29/05/2024

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हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 492-493

‘‘तैमूरलंग को सात पीढ़ी का राज्य कबीर जी ने दिया’’

‘‘कबीर परमात्मा ने एक रोटी के बदले सात पीढ़ी का राज तैमूरलंग को दिया’’

◆ पारख के अंग की वाणी नं. 1170-1180 :-
गरीब, दिल्ली अकबराबाद फिरि, लाहौराकूं जात।
रोटी रोटी करत हैं, किन्हें न बूझी बात।।1170।।
गरीब, तिबरलंग तालिब मिले, एक रोटी की चाह।
जिंदा रूप कबीर धरहीं, तिबरलंग सुनि राह।।1171।।
गरीब, रोटी पोई प्रीतसैं, जलका ठूठा हाथि।
जिंदेकी पूजा करी, मात पुत्र दो साथ।।1172।।
गरीब, संकल काढी चीढकी, सन्मुख लाई सात।
लात धमूक्के लाय करि, जिंदा भया अजाति।।1173।।
गरीब, रोटी मोटी हो गई, साग पत्र बिस्तार।
सहंस अठासी छिकि गये, पंडौं जगि जौंनार।।1174।।
गरीब, दुर्बासा पूठे परै, कौरव दीन शराप।
पंडौं पद ल्यौलीन हैं, कौरव तीनौं ताप।।1175।।
गरीब, अठारा खूंहनि खपि गइ, दुर्योधन बलवंत।
पंडौं संग समीप हैं, आदि अंत के संत।।1176।।
गरीब, तिबरलंग हुम्यौं रहैं, मन में कछु न चाह।
मौज मेहर मौला करी, दीन्या तख्त बठाय।।1177।।
गरीब, हिंद जिंद सबही दीई, सेतबंध लग सीर।
गढगजनी ताबै करी, जिंदा इसम कबीर।।1178।।
गरीब, सात सहीसल नीसलीं, पीछै डिगमग ख्याल।
औंरंगजेबअरु तिबरलग, इन परि नजरिनिहाल।।1179।।
गरीब, अगले सतगुरु शेर थे, पिछले जंबुक गीद।
यामें भिन्न न भांति है, देखि दीद बरदीद।।1180।।

◆पारख के अंग की वाणी नं. 1170-1180 का सरलार्थ :- परमेश्वर कबीर जी एक जिंदा बाबा का वेश बनाकर पृथ्वी के ऊपर धार्मिकता देखना चाहते थे। वैसे तो परमात्मा कबीर जी अंतर्यामी हैं, फिर भी संसार भाव बरतते हैं। जिंदा बाबा के वेश में कई शहरों-गाँवों में गए, एक रोटी माँगते रहे। अन्न का अभाव रहता था। बारिश पर खेती निर्भर थी। जिस
कारण से अधिकतर व्यक्तियों का निर्वाह कठिनता से चलता था। जब परमात्मा चलते-चलते उस नगर में आए जिसमें तैमूरलंग मुसलमान लुहार अपनी माता के साथ रहता था। तैमूर
के पिता की मृत्यु हो चुकी थी। तैमूर अठारह वर्ष की आयु का था। निर्धनता कमाल की थी।
कभी भोजन खाने को मिलता, कई बार एक समय का भोजन ही नसीब होता था। तैमूरलंग की माता जी बहुत धार्मिक स्त्री थी। कोई भी यात्री साधु या सामान्य व्यक्ति द्वार पर आता था तो उसे खाने के लिए अवश्य आग्रह करती थी। स्वयं भूखी रह जाती थी, रास्ते चलते व्यक्ति को अवश्य भोजन करवाती थी। जिस दिन परमात्मा जिंदा रूप में परीक्षा के उद्देश्य से आए, उस दिन केवल एक रोटी का आटा बचा था। तैमूरलंग को भोजन खिला दिया था। स्वयं भी खा लिया था। शाम के लिए केवल एक रोटी का आटा शेष था। तैमूरलंग अमीर व्यक्तियों की भेड़-बकरियों को चराने के लिए जंगल में प्रतिदिन ले जाया करता। वह किराये का पाली था। धनी लोग उसे अन्न देते थे। निर्धनता के कारण तैमूरलंग एक लौहार के अहरण पर शाम को बकरी-भेड़ गाँव लाने के बाद घण की चोट लगाने की ध्याड़ी करता था। उससे भी अन्न मिलता था।
जिस दिन परमात्मा तैमूरलंग को जंगल में मिले। उस दिन भी तैमूरलंग प्रतिदिन की तरह भेड़-बकरियाँ चराने जंगल में गाँव के साथ ही गया हुआ था। जब परमात्मा तैमूरलंग को मिले तथा रोटी माँगी तो तैमूरलंग खाना खा चुका था। तैमूरलंग ने कहा कि महाराज! आप बैठो। मेरी भेड़-बकरियों का ध्यान रखना कि कहीं कोई गुम न हो जाए। मैं निर्धन हूँ।
भाड़े पर बकरियों तथा भेड़ों को चराता हूँ। मैं घर से रोटी लाता हूँ। यहाँ पास में ही हमारा घर है। परमात्मा ने कहा ठीक है, संभाल रखूँगा। तैमूरलंग घर गया। माता को बताया कि एक बाबा कई दिन से भूखा है। रोटी माँग रहा है। माता ने तुरंत आटा तैयार किया। एक
रोटी बनाई क्योंकि आटा ही एक रोटी का बचा था। एक रोटी कपड़े में लपेटकर जल का लोटा साथ लेकर बाबा जी के पास दोनों माँ-बेटा आए। रोटी देकर जल का लोटा साथ रख
लिया। माता तथा बेटे ने बाबा जी की स्तूति की तथा माता ने कहा, महाराज! हम बहुत निर्धन हैं। दया करो, कुछ रोटी का साधन बन जाए। बाबा ने रोटी खाई। तब तक माई ने आँखों में आँसू भरकर कई बार निवेदन किया कि मेहर करियो दाता। बाबा जिंदा ने रोटी
खाकर जल पीया। बकरी बाँधने की सांकल (बेल) लेकर उसको तैमूरलंग की कमर में सात बार मारा। चीढ़ की सण की बेल थी। चीढ़ को कामण भी कहते हैं। कामण की छाल का रस्सा बहुत मजबूत होता है। फिर लात मारी तथा मुक्के मारे। माता को लगा कि मैंने बाबा को बार-बार बोल दिया जिससे चिढ़कर लड़का पीट दिया। माई ने पूछा कि बाबा जी! बच्चे ने क्या गलती कर दी। माफ करो, बच्चा है। परमात्मा बोले कि माई! इस एक रोटी का फल तेरे पुत्र को सात पीढ़ी का राज्य का वरदान दिया है जो सात बार बेल (सांकल) मारी है।
जो लात तथा मुक्के मारे हैं, यह इसका राज्य टुकड़ों में बँट जाएगा। माई को लगा कि बाबा पागल है। रोटी शाम की नहीं, कह रहा है तेरा बेटा राज करेगा। माई विचार कर ही रही थी कि बाबा जिंदा अंतर्ध्यान हो गया।
कुछ दिन के पश्चात् गाँव की एक जवान लड़की को राजा के सिपाही उठाने की कोशिश कर रहे थे। वे राजा के लिए विलास करने के लिए ले जाना चाहते थे। तैमूरलंग दौड़ा-दौड़ा गया। सिपाहियों को लाठी से पीटने लगा। कहने लगा कि हमारी बहन हमारी
इज्जत है। दुष्ट लोगो! चले जाओ। परंतु वे चार-पाँच थे। घोड़े साथ थे। उन्होंने तैमूरलंग को बहुत पीटा। मृत समझकर छोड़ दिया और लड़की को उठा ले गए। तैमूरलंग होश में आया। गाँव में चर्चा चली की तैमूरलंग ने बहादुरी का काम गाँव की इज्जत के लिए किया।
अपनी जान के साथ खेलकर गाँव की इज्जत बचानी चाही। गाँव के प्रत्येक व्यक्ति की हमदर्दी का पात्र बन गया।

(अब आगे अगले भाग में)

क्रमशः_____
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29/05/2024
28/05/2024
28/05/2024

कमाल को अभिमान हो गया था। मैंने उसको त्याग दिया था। मेरे को अहंकारी प्राणी पसंद नहीं हैं। हम तो भक्ति के साथी हैं, हाथी-घोड़ों को नहीं चाहता। जो प्रेम भक्ति करता है, उसको हृदय में रखता हूँ।

28/05/2024

तहजीब की मिसाल गरीबों के घर पे है, दुप्पटा फटा हुआ है, मगर उनके सर पे है।
.

28/05/2024

( #मुक्तिबोध_भाग255 के आगे पढ़ें....)
📖📖📖
#मुक्तिबोध_भाग256

हम पढ़ रहे हैं पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज क्रमांक 490-491

◆ पारख के अंग की वाणी नं. 1147- 1169 :-
गरीब, मन को मुर्जीवा करैं, गोता दिल दरियाव।
माणिक निश्चित समुद्र में, बाहिर लेकै आव।।1147।।
गरीब, बैरागर के गंज हैं, ऊँचे शून्य सुमेर।
तापर आसन मार कर, सुन मुरली की टेर।।1148।।
गरीब, बाजै मुरली कौहक पद, बिना कंठ मुख द्वार।
आठ बख्त सुनता रहै, सुनि अनहद झंकार।।1149।।
गरीब, उस मुरली की लहरी सैं, खर जरां ज्यौं घास।
आठ बख्त पद में रहै, कोई जन हरि के दास।।1150।।
गरीब, मुरली मधुर अधर बजै, राग छतीसौं बैन।
इत उत मुरली एक हैं, चरणां बिसरी धन्न।।1151।।
गरीब, मुरली उरली बिधि नहीं, बाजत है परलोक।
सरब जीव आचारचरं, सुनि करि पाय पोष।।1152।।
गरीब, मुरली मदन मुरारि मुख, बाजी नन्द द्वार।
सकल जीव लयोलिन गति, सुनिया गोपी ग्वाल।।1153।।
गरीब, बाजत मुरली मुख बिना, सुनियत बिनही कान।
स्वर्ग सलहली गर्ज धुन, फिर भी अबगत पद निर्वाण।।1154।।
गरीब, मुरली बाबा कबीर की, परखो मुरली बिबेक।
ताल प्रारब्ध नहीं भंग होय, बजैं बजैं अनेक।।1155।।
गरीब, अनंत कोटि बाजै बाजै, ता मधि मुरली टेर।
रणसींगे सहनाईयां, झालरि झांझरि भेर।।1156।।
गरीब, बजै नफिरी शुन्य में, घाट मठ नहीं आकाश।
सो जन भिन्न-भिन्न सुनत हैं, जो लीन करैं दमशवास।।1157।।
गरीब, मुरली गगन गर्ज धुनि, जहाँ चन्द्र नहीं सूर।
नाद अघाध घुरैण जहां, बाजत अनहद तूर।।1158।।
गरीब, तूर दूर नहीं निकट हैं, तन मन करि ले नेश।
मुरली के मोहे पडे, ब्रह्मा विष्णु महेश।।1159।।
ग़रीब, बिष्णु सैनी शंकर सन्ति, ब्रह्मा सन्तान एक रिंच।
पारब्रह्म कूं मोहिया, और भू आत्म पंच।।1160।।
गरीब, मुरली सरली सुरति सर, जिन सरबर तूं न्हाय।
अनंत कोटि तीरथ बागै, परबी द्यौं समझाय।।1161।।
गरीब, मुरली बजै अगाधि गति, शिब विरंच बिष्णु सुन लीन्ह।
उस मुरली की तेर सुन, नारद दारी बीन।।1162।।
गरीब, नारद शरद सब थके, सनक सन्न्दन संत।
अनंत कोटि जुग कल्प क्या, बाजत हैं बे अंत।।1163।।
गरीब, सुंदर मूर्ति मोहनी, पीतांबर फिरानां।
मुरली जाके मुख बजै, दर दिवाल गलतानं।।1164।।
गरीब, कालन्दरी के तीर, बाजी मुरली मुख कबीर।
एकांत ब्रह्मा बिष्णु महेश कुं, और दरिया का नीर।।1165।।
गरीब, सूक्ष्म मूर्ति स्वर्ग में, छत्रसेत श्री शीश।
खेल के बाहर, कबीर अबीगत जगदीश।।1166।।
गरीब, भिरंग नाद अगाध गति, राग रूप होय जात।
नूरी रूप हो गया, पिण्ड प्राण सब गत।।1167।।
गरीब, उस मुरली की तेर सुनि, फेरि धरत नहीं जुन्नी।
अरण गगन औजुद बिन, बिचरत शून्य बेशुन्नी।।1168।।
गरीब, बिन शाखा फूलै फलै, बिना मूल महन्त।
बिना घटे लखी दामनी, बिन बादल गारंट।।1169।।

सरलार्थ:- जैसे समुद्र में मोती होते हैं। (मुरजीवा) अवास्तविक समुद्र तट से
मोती लाया गया है। ऐसे इंसान के दिल रूपी दरिया में भगवान की शक्ति का खजाना है। सत्य साधना करने से वह भक्त की आत्मा में प्रवेश कर जाता है। जैसे कोई बैंक में नौकरी करता है।
बैंक रूपयों से भरा है, लेकिन वह नौकरी करता रहेगा तो बैंक से उसकी तनख्वाह उसे मिल जाएगी, उसके खाते में आ जाएगा।(1147)
(बैरागर) हीरों के (गंज) भगवान हैं, ऊँचे-ऊँचे खड़े हैं। तापर आसन का अर्थ है भक्ति करने से भक्त को आध्यात्मिक शक्तियाँ मिलती हैं। भगवान के पास तो शक्ति के पहाड़ हैं। सुमेरू पर्वत सबसे विशाल माना जाता है। भगवान की शक्ति की उपमा है सत्य साधना से भक्त की भक्ति की कमाई (धन) बहुत अधिक हो जाएगी। उसके कारण शरीर में धुन (संगीत) की आवश्यकता होती है। वैसे तो परमात्मा के सतलोक में असाँख्यों
धुन (संगीत की ध्वनि) हो रही हैं। जब भक्ति आय (शक्ति) अधिक हो जाती है, तब मूरली की (तेर) कथित ध्वनि दिखाई देती है। इसलिए उपमासिक विधि से समझा जाता है कि सुमेरू पर्वत में विशाल भक्ति की शक्ति हो जाए, तब उसे सुमेरू जैसी भक्ति के बाद मुरली
कहा हुआ देवी। तब आपका सत्यलोक जाने का मार्ग खुल गया है। जीवात्मा उसे सुनती-सुनती है जो उसकी ओर चलती है। सतलोक जाना है। वह लगातार बजती रहती है। वह मुरली की
आवाज सुनने से (कहर) भयंकर दंड देने वाले पाप ऐसे नष्ट हो जाते हैं जैसे सूखा घास जलकर भस्म बन जाता है।
श्री कृष्ण जी नंद बाबा के द्वार पर पृथ्वी पर मुरली बजाते थे तो अनेकों गोपियाँ (गौपालन करने वालों की पत्नियाँ) और ग्लवले मस्त हो जाते थे। गोपियाँ रात में अपने पुरोहितों को सोये हुए रात में जंगल में श्री कृष्ण के पास चली गई थीं।
लेकिन जो मुरली सतपुरुष कबीर जी के सत्यलोक में बज रही है, उसकी मधुरता और आकर्षण श्री कृष्ण वाली मुरली से असाँख्य गुणा अधिक है। स्वर्ग में बादलों की गर्ज जैसी आवाज आती है। (अविगत पद निर्वाण) पूर्ण मोक्ष की पद्यति भिन्न है। कबीर परमात्मा की
मुरली की आवाज़ को देखो जो सत्यलोक में बज रही है। काल ने धोखा देने के लिए ब्रह्मलोक में भी मुरली की ध्वनि निकाली जो सतपुरुष कबीर जी की सत्यलोक वाली मुरली की ध्वनि की तुलना में बहुत खराब है। सत्यलोक में असाँख्यों बाजे बज रहे हैं। संगीत चल रहा है। उनके बीच में ही मुरली की आवाज़ भी चल रही है। जो मुरली काल ब्रह्म ने ब्रह्मलोक में मूर्ति बजाई है, परमेश्वर कबीर जी ने अपने लोक वाली मुरली ब्रह्मा, विष्णु और शिव को एक-एक बार मनाया था। वे उस मुरली की (तेर) ध्वनि पर मोहित हो गए हैं। परंतु उनकी साधना सतलोक वाली नहीं है। इसलिए वे उसे नहीं सुन पा रहे हैं।
परमात्मा जी कबीर के अच्छे भक्त दर्शन मिलते हैं। इस क्रम में ऋषि नारद को भी मिले थे। उसे भी सतलोक वाली मुरली एक बार दिखी थी। कुछ समय तक नारद जी बैठे रहे। उस मुरली की सुरीली ध्वनि को देखकर दंग रह गए नारद मुनि ने अपनी मुरली फैन दी कि यह तो उस मुरली की तुलना में कुछ मतलब नहीं लिखा।(1148-1164)
जिस समय परमात्मा कबीर जी काशी नगर (भारत) में जुलाहे की भूमिका निभाकर तत्त्वज्ञान का प्रचार किया था। उस समय धनी धर्मदास जी मिले थे। सेठ धर्मदास जी श्री कृष्ण के परम भक्त थे। बाद में तत्त्वज्ञान से प्रसन्न होकर सत्यलोक में भगवान कबीर जी आये
जिसे देखकर मन चला गया कि परमपिता परमात्मा कबीर जी हैं। एक दिन की चलती-फिरती बात पर धर्मदास जी ने कहा कि हे सतगुरु देव! श्री कृष्ण की मुरली की ध्वनि में इतना आकर्षण था, कि गौएँ, गोपियाँ और ग्वालें उनकी ओर आकर्षित होकर स्वतः चली आती थीं। ऐसी क्या शक्ति थी उनमें? भगवान बोले कि हे धर्मदास! इसका उत्तर जंज़ी नहीं दिया जा सकता। कार्यरूप डेक (व्यावहारिक रूप से) उत्तर दिया जायेगा। चलो उस स्थान पर जहां श्री कृष्ण मुरली बजाया करते थे। परमात्मा जी कबीर अपने प्रिय भक्त धर्मदास जी को साथ लेकर कालन्दरी (यमुना) के उस तट पर गए थे जहाँ श्री कृष्ण मुरली बजाया करते थे। कबीर
परमात्मा ने आकाश की ओर संकेत किया। एक मुरली उनके हाथ में आ गई। भगवान ने मुरली बजानी स्टार की। आसपास के क्षेत्र के सभी स्त्री-पुरुष, पशु-पक्षी, स्वर्ग लोक के
देवता, स्वर्ग चले गए ऋषि-मुनि, त्रि ब्रह्मा-विष्णु-महेश भी अपने-अपने लोक त्यागकर मुरली की (तेर) ध्वनि ध्वनि सुनाते थे।
यमुना नदी का जल भी भगवान की मुरली की तेरे श्रवण के लिए रूका हुआ था। एक पहर यानी तीन वंशज तक मुरली बजाई। सब यथास्थिति में बने रहे। टीएस से मास भी नहीं हुए। जब मुरली रुकी तो सब कबीर जी की जय-जयकार करने लगे। स्थानीय लोगों को पता चला कि यह कौन सा देव है जो इतनी मधुर मुरली बजाता है। युसुकी शक्ति का कोई युद्ध-पार नहीं है। उन्हें बताया गया कि ये पूर्ण परमात्मा हैं। काशी में जुलाहे का काम कर
रह रहे हैं। सब अपने-अपने स्थान को लौट गये।
संत मलूक दास जी को परमबीर कबीर जी मिले थे। सत्यलोक दिखाया गया। अपने से परिचित था। उन्होंने कहा:-
एक समय गुरु मुरली बजाई, कालंद्री के तीर।
सुरनर मुनिजानत थके थे, रुक गया जमना नीर।
जपो रे मन साहेब नाम कबीर।।(1165)
परमात्मा जी कबीर सूक्ष्म रूप में स्वर्ग में गुप्त निगरानी रखते हैं। सत्यलोक में
सिंहासन पर बैठे हैं। सिर के ऊपर सफेद (सफ़ेद) छत्र रखा हुआ है। नारा है. उस मुरली की तेर से दुखी यदि साधक ने शरीर त्याग दिया तो उसे पुनर्जन्म लेने में बहुत समय लग गया। आकाश में उड़ने की सिद्धि मिलती है। वह सूर्य के ऊपर और अन्य शून्य स्थानों में ब्रह्माता रहती है। उसे कोई (आसन) उपदेशक नहीं होता। उनका स्थूल शरीर भी नहीं होता। सूक्ष्म शरीर में अपनी भक्ति को खा-खर्चकर पुनः पृथ्वी पर मानव जन्म भी प्राप्त कर सकते हैं। चौरासी प्रकार के लाखो के शरीरों का जन्म भी हो सकता है।(1166-1168)
सतलोक में परमात्मा की शक्ति से फूल बिना शाखा के प्रकट होते हैं। यह कुछ क्षेत्र है। बिना बिजली के बादलों के (दामिनी) बिजली देखो। बिना बादल के बादल की गर्जना सुनो। ऐसा दिव्य है सतलोक।(1169)

(अब आगे अगले भाग में)

क्रमशः_____
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत पामलाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनें। संत रामपाल जी महाराज यूट्यूब चैनल प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत पामर जी महाराज जी विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से निवेदन है कि अनुलोम संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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(Read ahead of .....)



We are reading the book "Muktibodh"
Page Number 490-491

◆ The speech part of the connoisseur no. 1147- 1169 :-
Poor, let your mind die, let your heart sink.
Come out into the ruby filled sea..1147.
They are poor and barren, there is no height in the sky.
After hitting the Tapar seat, listen to the flute's tune..1148.
Poor, bajai murli kauhak pad, mouth without throat.
Kept listening for eight hours, heard the infinite jingal..1149.
Poor, like the waves of that flute, like grass wreaking havoc.
Has remained in the post for eight times, no one is Hari's slave..1150.
Poor, flute plays melodious adhar, raga chathisaun bain.
This Murli is one, the feet are forgotten..1151.
Poor, the Murli is not the Urli method, it is the other world.
All living beings behave well, listen and get nourishment..1152.
Poor, Murli Madan Murari mouth, Baji Nand door.
Sakal Jeeva Lyauline Gati, Suniya Gopi Gwal..1153..
Poor, Baajat Murli without a mouth, Suniyat without ears.
The thunderous tune of the heaven, yet the next verse is Nirvana..1154.
Poor, instead of Murli Kabir, try Murli Bibek.
The rhythm is not broken, the sound is sounding..1155.
Poor, infinite number of instruments are being played, the flute is playing.
Runsinge Sahanaiyaan, Jhalari Jhanjhari Bher..1156..
Poor, the void is in the void, the sky is not decreasing.
So people listen to different people, who should absorb the breath..1157.
Poor, Murli sky thunders, where there is no moon but the sun.
1158.
Poor, you are not far away, you are near, let your body and mind die.
Murli fell in love, Brahma Bishnu Mahesh..1159.
Poor, Vishnu listened, Shankar listened, Brahma listened to a wrench.
Parbrahma K*m Mohiya, and Bhu Atma Panch..1160.
Poor, Murli Sarli Surti Sir, Jin Sarbar Tu Nahay.
1161.
Poor, the Murli plays Agadhi Gati, Shib Viranch Bishnu Sun Linh.
Listen to the sound of that flute, Narad Dari Bean..1162.
The poor, Narad and Shard are all tired, the saints are crazy and happy.
What are the infinite millions of universes, there is no end..1163.
Poor, beautiful idol Mohini, wearing pitambar.
Murli goes and blows his mouth, makes mistakes on the wall..1164.
Poor, Kalandari's arrows, Baji Murli Mukh Kabir.
Listened to Brahma, Bishnu, Mahesh Kun, and the river's water..1165.
Poor, subtle idol in heaven, Chhatraset Shir Sheesh.
Kabir plays inside and outside, Abigat Jagdish..1166.
Poor, colorful sound, immense speed, raga form hoy jaat.
Nuri became form, body and soul all sang..1167.
Poor guy, listen to that flute and don't touch the earth again.
1168.
Poor, blossoming without branches, fragrant without a root.
Lakhi Damani without rain, thunder without clouds..1169.

Simple meaning:- Like there are pearls in the sea. (Murajiva) from the sea as a diver
Brings pearls. There is a treasure of God's power in the ocean of such a human being's heart. By doing true sadhana, it enters the soul of the devotee. Like someone works in a bank.
The bank is full of money, but if he continues to work, he will get his salary from the bank, it will come into his account. (1147)
(Bairagar) There are (Ganj) treasures of diamonds, they are piled high. By doing Tapar Asan Laikar i.e. devotion, the devotee gets spiritual power. God has mountains of power. Sumeru Mountain is considered to be the largest. It has been compared to the power of God that by practicing the truth, the devotee's earnings (wealth) of devotion will increase greatly. Due to that, tune (music) will start being heard in the body. However, in the Satlok of God, there are innumerable
Tunes (sounds of music) are being played. When the earning (shakti) of devotion becomes high, then the sound of Murli (ter) starts being heard. Therefore, it has been explained in a metaphorical manner that if the power of devotion is as huge as Mount Sumeru, then after devotion like Sumeru, he will receive the Murli.
Will be heard. Then your path to Satyalok has opened. The living soul hears it and moves towards it. Reaches Satlok. It keeps ringing continuously. of that flute
By hearing the voice (Kahaar) the sins which cause terrible punishment are destroyed like dry grass gets burnt to ashes.
When Shri Krishna ji used to play the flute on the earth at the door of Nand Baba, many Gopis (wives of cow herders) and cowherds would become enthralled after hearing it. The gopis would leave their husbands sleeping and go quietly to Shri Krishna in the forest on moonlit nights to listen to the Murli.
But the Murli which is being played in Satyalok of Satpurush Kabir Ji, its sweetness and attraction is innumerable times more than the Murli of Shri Krishna. There is a sound like thunder in heaven. (Avigat Pada Nirvana) The method of complete salvation is different. God's Kabir
Listen to the sound of the flute which is playing in Satyalok. To deceive, Kaal has played the sound of Murli in Brahmalok also which is much worse than the sound of Murli of Satyalok of Satpurush Kabir ji. Innumerable musical instruments are playing in Satyalok. Music is playing. The sound of the flute is also being played among them. The Murli which Kaal Brahm has played in Brahmlok is fake, God Kabir ji had narrated the Murli of his world once to Brahma, Vishnu and Shiva. They are fascinated by the sound of that flute. But his sadhana is not of Satlok. That's why they can't hear him.
God Kabir ji is found by good devotee souls. Sage Narad also met in this sequence. He too had once heard the Murli of Satlok. Narad ji kept listening for some time. Hearing the melodious sound of that flute, Narada Muni threw away his flute saying that it has no importance in comparison to that flute. (1148-1164)
At the time when God Kabir ji used to propagate philosophy by playing the role of a weaver in Kashi Nagar (India). At that time Dhani Dharamdas ji was found. Seth Dharamdas ji was a great devotee of Shri Krishna. Later, after listening to philosophy and in Satyalok, God Kabir ji
By looking at him, he accepted that Kabir ji is the Almighty God. One day during a conversation Dharamdas ji said, O Satguru Dev! There was so much attraction in the sound of Shri Krishna's flute that it is said that cows, gopis and cowherds were automatically attracted towards it. What kind of power did they have? God said, O Dharamdas! This cannot be answered verbally. The answer will be given practically. Let's go to the place where Shri Krishna used to play the flute. God Kabir ji along with his beloved devotee Dharamdas ji went to the banks of Kalandari (Yamuna) where Shri Krishna used to play Murli. Kabir
God pointed towards the sky. A flute came into his hand. God started playing the flute. All the men, women, animals and birds of the surrounding area, the heavenly bodies
The gods, the sages who had gone to heaven, the three Brahma-Vishnu-Mahesh also left their respective worlds and came to listen to the sound of the flute.
The water of river Yamuna also stopped to listen to the music of God's flute. Played the flute for one hour i.e. three hours. Everyone stood in the same position. Didn't even budge. When Murli stopped, everyone started cheering Kabir ji. The local people wanted to know who was this god who played such a melodious flute. There is no comparison to their power. He was told that he was the Supreme God. work as a weaver in Kashi
Have been. Everyone returned to their respective places.
Saint Maluk Das ji had met God Kabir ji. Showed Satyalok. Had introduced myself. He had said :-
Once the Guru played the flute, the arrows of Kalandari.
Surnar monks were tired, the rain stopped flowing.
Chant Re Man Saheb Naam Kabir..(1165)
God Kabir ji keeps a secret watch in heaven in a subtle form. in Satyalok
Sitting on the throne. A white umbrella is placed over the head. Is formless. If a seeker leaves his body after listening to the tune of that flute, he does not take rebirth for a long time. He gets the ability to fly in the sky. He keeps wandering in the Sunn above and in other void places. He has no place to sit. He doesn't even have a physical body. By consuming and spending his devotion in the subtle body, one can take human birth again on earth. Can also take birth in the bodies of eighty-four lakh types of creatures. (1166-1168)
In Satlok, due to the power of God, flowers appear without branches. This is some area. Look at the lightning without the clouds (Damini). Hear the thunder of a cloudless cloud. Such is divine Satlok.(1169)

(Now on to the next part)

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